स्वाद का खजाना है इलाइची

इलाइची के दो प्रकार की आती है, हरी या छोटी इलायची तथा बड़ी इलायची. जहाँ हरी इलायची मिठाइयों की खुशबू बढ़ाती है, वहीं बड़ी इलायची व्यंजनों को लजीज बनाने के लिए एक मसाले के रूप में प्रयुक्त होती है. तों आईये एक नजर डालते है,  इलाइची के सुनहरे इतिहास पर साथ ही जानते है,  इलाइची की अदभुत खेती, इलाइची पहाड़ी एवं  इलाइची के औषधीय गुण के बारे में ….

1. काफी सुनहरा हैइतिहास

हमारे देश  में इलायची के उत्पादन, उपयोग एवं व्यापार का इतिहास काफी और बड़ा है. कहा जाता है कि इलायची का कारोबार हमारे देश  में कम से कम 1000 साल पुराना है. प्राचीन काल से ही इसे मसालो की रानी के रूप में जाना जाता है, जबकि काली मिर्च को मसालो का राजा कहा जाता है. कई ऐतिहासिक एवं धार्मिक भारतीय ग्रंथों में भी एक स्वादिष्ट बनाने का मसाला और दवा के रूप में इलायची का उल्लेख है. चिकित्सा संग्रह चरक को 2 शताब्दी ईसा पूर्व से 2 शताब्दी ई. के बीच  गया था, इन ग्रथों में इलायची का जिक्र यह साबित करता है कि इलायची का उपयोग सदियों से होते आ रहा है. इसके अलावा चाणक्य के कौटिल्य के साथ कई संस्कृत ग्रंथों में इलायची का उल्लेख मिलता है.

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भारत में 11 वीं सदी में इलायची का उपयोग बडे पैमाने पर होता है, तभी तो उस समय के कई राज्यो का यह पसंदीदा खाद्य साम्रगी में एक था. कई जगह इसे पांच खुशबू पान चबाना के लिए सामग्री की सूची में शामिल किया गया था, तो कई जगह यह उस समय के व्यंजनों को लजीज बनाता था. दक्षिण भारत के पश्चिमी घाट के जंगलों का कुछ हिस्सों सदियो से इलायची हिल्स के नाम से प्रसिद्ध है, अगर हम इन की प्रसिद्ध पर बात करते है तो हमे 200 साल पीछे जाना होगा, क्योकि उन दिनो इन पहाडि़यो का स्वार्णिक काल चल रहा था. इन पहाडि़यों के जंगली में एक सुनहरी इलायची की दुनिया बसती थी, यहां उत्पादित इलाइची का निर्यात दुनिया के कई देशो में किया जाता था.

2. इलाइची की खेती

इलाइची की खेती के लिए वह इलाका काफी श्रेष्ठ होता है, जहाँ 600-1500 मीटर के बीच उन्नतांश वाला उष्णदेशीय वन के साथ 1520 सेमी से अधिक वर्षा की अच्छी उपलब्धता हो और वहा का तापमान 10-35 डिग्री सें.ग्रे. के दायरे में हो. इलाइची के पौधे बेहद नाजुक होते है, इनके विकास के लिए बड़े एवं हमेशा हरा रहने वाले वनों के पेड़ों की छाया के साथ हल्के गर्म एवं नम मौसम काफी उपयुक्त होता है. हवा और सूखे के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होने के साथ यह जल-जमाव या अत्यधिक नमी के प्रति भी अत्यधिक संवेदनशील होता है. इलायची के उत्पादको को इन बातो का ख्याल रखना पडता है.  इलायची के लिए अनुकूल क्षेत्र ढलुआ भूमि है जहां जल निकासी की अच्छी व्यवस्था हो. फसल को मुख्यतः अच्छी जल निकासी वाली उपजाऊ दोमट वन भूमि तथा लाल गहरी, अच्छी बनावट वाली लाल मिट्टी में लगाया जाता है. जहां पर्याप्त मात्रा में खाद मिट्टी या पत्ती युक्त-चिकनी मिट्टी उपलब्ध हो लगाया जा सकता है. पौधे जैविक तत्वों से भरी दुमट मिट्टी को ज्यादा पसंद करते हैं. इनका स्वभाव आमतौर पर अम्लीय होता है तथा इनका पीएच मान 5.0 से 6.5 के बीच होता है.

बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए पहले विशेष नर्सरी में बीज बोना जाता है, फिर एक से दो सप्ताह में बीज से पौधों अंकुर होने लगते है, इन पौधों को छायादार पेड़ के नीचे लगाया जाता है. पौधों को विकास एवं इनके फल का पकाना एक विस्तारित अवधि के दौरान होता  हैं. इस दौरान पौधों का पुरा ख्याल रखना पडता है. तय समयावधि पर इन फलो का काटा जाता है .

3. इलायची की पहाड़ी

भारत में इलायची की खेती प्राकृति परिस्थितियों के अंतर्गत हमेशा हरा-भरा रहने वाली पश्चिमी घाट के वनों में की जाती है. इलायची की पहाड़ी पश्चिमी घाट का दक्षिणी विस्तार हैं. केरल तथा तमिलनाडु में इन पहाडियों का अत्यधिक विस्तार है. यहाँ पर इलायची की खेती बहुतायत से की जाती है, इसी कारण से इन्हें इलायची की पहाड़ी कहते हैं.

4. इलायची का सबसे बड़ा उत्पादक देश

 हमारे देश के अलावा कई के देशो में इसकी खेती बडे पैमाने पर किया जाता है. चीन, लाओस और वियतनाम के स्थानीय क्षेत्रों में अधिक ऊंचाई पर रहने वाले किसानों के लिए एक आय का प्रमुख स्त्रोत हैं. किसी जमाने में नेपाल बड़ी इलायची का सबसे बड़ा उत्पादक देश गया था, लेकिन फिलहाल ग्वाटेमाला दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक है. ग्वाटेमाला के बाद भारत इलायची का सबसे बड़ा उत्पादक देश हैं.

5. कई औषधीय गुणों का भंडार हैइलाइची

हरी इलायची का इस्तेमाल दक्षिण एशिया के कई देशो के साथ विश्व के कई देशो में किया जाता है. चीन में पारंपरिक चीनी चिकित्सा, भारत, पाकिस्तान, जापान, कोरिया और वियतनाम में आयुर्वेद के सिस्टम में पारंपरिक चिकित्सा में एक घटक के रूप में इसका इस्तेमाल किया जाता है. इसके साथ कई यूरोपिय देशो, अमेरिकन प्रयाद्वीपो, आस्ट्रेलिया एवम् अफ्रीका के कई इलाको में इलायची का उपयोग मसालो के साथ पारंपरिक चिकित्सा भी में किया जाता है.

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यदि आपका आवाज बैठ गया है या गले में खराश है, तो सुबह उठते समय और रात को सोते समय छोटी इलायची चबा-चबाकर खाएँ एवं इसके साथ गुनगुना पानी पीएँ, सब कुछ पहले जैसे हो जायेगा.

यदि आप के गले में सूजन आ गई हो, तो आप पानी में छोटी इलायची पीसकर सेवन कर सकते है.सर्दी-खाँसी और छींक की समस्या होने पर आप एक छोटी इलायची के साथ अदरक, लौंग, तुलसी के पत्ते एवं पान को सही मात्र में मिला कर लेते है तो यह काफी लाभदायक सिद्ध होता हैँ.

मुँह में छाले हो जाने पर बड़ी इलायची को महीन पीसकर उसमें पिसी हुई मिश्री मिलाकर जबान पर रखें, इससे आपको तुरंत लाभ मिलता है.

जी मिचलाना या जी घबराता पर आप एक छोटी इलायची को मुँह में रख सकते है, इससे आपको तुरंत आराम मिलता हैं.

यदि आपको यात्रा के दौरान बस में बैठने पर चक्कर आता हैं या जी घबराता है, तो आप  इससे निजात पाने के लिए एक छोटी इलायची मुँह में रख सकते है. इससे तुरंत आराम मिलता है.

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