फैसला: क्या आदित्य की हो पाई अवंतिका?

‘‘4 साल… और इन 4 सालों में कितना कुछ बदल गया है न,’’ अवंतिका बोली.

‘‘नहीं, बिलकुल नहीं… तुम पहले भी 2 चम्मच चीनी ही कौफी में लिया करती थी और आज भी,’’ आदित्य ने मुसकराते हुए कहा. ‘‘अच्छा, और तुम कल भी मुझे और मेरी कौफी को इसी तरह देखते थे और आज भी,’’ अवंतिका ने आदित्य की ओर देखते हुए कहा.

आदित्य एकटक दम साधे अवंतिका को देखे जा रहा था. दोनों आज पूरे 4 साल बाद एकदूसरे से मिल रहे थे. आदित्य का दिल आज भी अवंतिका के लिए उतना ही धड़कता था, जितना 4 साल पहले.

आदित्य और अवंतिका कालेज के दोस्त थे. दोनों ने एकसाथ अपनी पढ़ाई शुरू की और एकसाथ खत्म. आदित्य को अवंतिका पहली ही नजर में पसंद आ गई थी, लेकिन प्यार के चक्कर में कहीं प्यारा सा दोस्त और उस की दोस्ती खो न बैठे इसलिए कभी आई लव यू कह नहीं पाया. सोचा था, ‘कालेज पूरा करने के बाद एक अच्छी सी नौकरी मिलते ही अवंतिका को न सिर्फ अपने दिल की बात बताऊंगा, बल्कि उस के घर वालों से उस का हाथ भी मांग लूंगा.’

वक्त कभी किसी के लिए नहीं ठहरता. मेरे पास पूरे 2 साल थे अच्छे से सैटल होने के लिए, लेकिन 2 साल शायद अवंतिका के लिए काफी थे. उस शाम मुझे अवंतिका के घर से फोन आया कि कल अवंतिका की सगाई है. ये शब्द उस समय एक धमाके की तरह थे, जिस ने कुछ समय के लिए मुझे सन्न कर दिया.

मैं ने उसी दिन नौकरी के सिलसिले में बाहर जाने का बहाना बनाया और अपना शहर छोड़ दिया. मैं ने अवंतिका को बधाई देने तक के लिए भी फोन नहीं किया. मैं उस समय शायद अपने दिल का हाल बताने के काबिल नहीं था और अब उस का हाल जानने के लिए तो बिलकुल भी नहीं.

वक्त बदला, शहर बदला और हालात भी. हजार बार मन में अवंतिका का खयाल आया, लेकिन अब शायद उस के मन में कभी मेरा खयाल न आता हो और आएगा भी क्यों, आखिर उस की नई जिंदगी की शुरुआत हो गई है, जिस में उस का कोई भी दोष नहीं था.

मैं ने भी इसे एक अनहोनी मान लिया था या फिर जिस चीज को मैं बदल नहीं सकता उस के लिए खुद को बदल लिया था, लेकिन कहीं न कहीं अधूरापन, एक याद हमेशा मेरे साथ रहती थी.

वक्त की एक सब से बड़ी खूबी कभीकभी वक्त की सब से बड़ी कमी लगती है. शायद, यही मेरी अधूरी प्रेम कहानी का अंत था.

मेरी नौकरी और मेरे नए घर को पूरे 3 साल हो गए थे. रोज की ही तरह मैं अपने औफिस का कुछ काम कर रहा था. आज जल्दी काम हो गया तो अपना फेसबुक अकाउंट जो आज की जेनरेशन में बड़ा मशहूर है, को लौगइन किया. आज पता नहीं क्यों अवंतिका की बहुत याद आ रही थी.

कलैंडर पर नजर पड़ने पर याद आया कि आज तो अवंतिका का जन्मदिन है. मैं ने उस के पुराने मोबाइल नंबर को इस आशा से मिलाया कि अगर उस ने फोन उठा लिया तो उस को जन्मदिन की बधाई दे दूंगा. बहुत हिम्मत कर के मैं ने उस का नंबर मिलाया, लेकिन मोबाइल स्विचऔफ था.

पता नहीं क्यों, दिल ने कहा कि मैं उस को फेसबुक पर ढूंढं़ू, क्या पता खाली समय में वह भी फेसबुक लौगइन करती हो. अवंतिका नाम टाइप करते ही कई अवंतिकाओं की प्रोफाइल मेरी आंखों के सामने आ गई. कोई अवंतिका शर्मा, मल्होत्रा, खन्ना कितनी ही अवंतिका सामने आ गईं, लेकिन मेरी अवंतिका अभी तक नहीं मिली. आशा तो कोई थी नहीं, लेकिन एक अजीब सी निराशा हो रही थी.

अचानक मेरी नजर एक प्रोफाइल पर पड़ी. अवंतिका वर्मा… मुझे आश्चर्य हुआ कि शादी के बाद भी उस का सरनेम नहीं बदला और लोकेशन भी मुंबई की है. लगता है मुंबई के ही किसी शख्स से उस की शादी हुई होगी.

उस ने अपना फोटो नहीं डाला था और सबकुछ लौक कर रखा था. मैं फिर भी उस की प्रोफाइल को बारबार देख रहा था. मुझे विश्वास था यह मेरी ही अवंतिका है, लेकिन मुझे खुद पर विश्वास नहीं था. मैं ने उस को फ्रैंड रिक्वैस्ट भेज दी.

एक पुराने दोस्त के नाते वह मेरी रिक्वैस्ट जरूर स्वीकारेगी. उस रात मुझे नींद नहीं आई. मैं मन ही मन यह सोच रहा था कि कितनी बदल गई होगी न वह, शादी के बाद सबकुछ बदल जाता है.  अगर वह मुझे भूल गई होगी तो? अरे, ऐसे कैसे कोई कालेज के दोस्तों को भूलता है, भला? इसी असमंजस में पूरी रात बीत गई.

सुबह होते ही सब से पहले मैं ने फेसबुक अकाउंट चैक किया. आज पता चला कि लोग प्यार को बेवकूफ क्यों कहते हैं? उस दिन मुझे निराशा ही हाथ लगी.

2 दिन तक यही सिलसिला चलता रहा और 2 दिन बाद आखिर वह दिन आ ही गया जिस का मैं बेसब्री से इंतजार कर रहा था. अवंतिका ने मेरी रिक्वैस्ट स्वीकार कर ली, लेकिन सबकुछ अच्छा होते हुए भी मुझे अचानक आश्चर्य हुआ, क्योंकि यह अवंतिका वर्मा तो सिंगल थी. उस का रिलेशनशिप स्टेटस सिंगल आ रहा था.

कहीं मैं ने किसी दूसरी अवंतिका को तो रिक्वैस्ट नहीं भेज दी. अचानक एक मैसेज मेरे फेसबुक अकाउंट पर आया. ‘‘कहां थे, इतने दिन तक.’’

यह मैसेज अवंतिका ने भेजा था. वह इस समय औनलाइन थी. मेरा दिल बहुत तेजी से धड़क रहा था. मन कर रहा था कि उस से सारे सवालों के जवाब पूछ लूं. किसी तरह अपनेआप पर काबू पाते हुए मैं ने जवाब दिया, ‘‘बस, काम के सिलसिले में शहर छोड़ना पड़ा.’’ तभी अवंतिका ने जवाब देते हुए कहा, ‘‘ऐसा भी क्या काम था कि एक बार भी फोन तक करने की जरूरत नहीं समझी.’’

‘‘वह सब छोड़ो, यह बताओ कि शादी के बाद उसी शहर में हो या कहीं और शिफ्ट हो गई हो? और हां, फेसबुक पर अपना फोटो क्यों नहीं डाला? बहुत मोटी हो गई हो क्या,’’ उसे लिख कर भेजा.

‘‘शादी… यह तुम्हें किस ने कहा,’’ अवंतिका ने लिख कर भेजा. ‘‘मतलब…’’ मैं ने एकदम पूछा.

‘‘तुम्हारी तो सगाई हुई थी न.’’ मैं ने लिखा. ‘‘हम्म…’’ अवंतिका ने बस इतना ही लिख कर भेजा.

‘‘तुम अपना नंबर दो मैं तुम्हें फोन करता हूं.’’ अवंतिका ने तुरंत अपना नंबर लिख दिया. मैं ने बिना एक पल गवांए अवंतिका को फोन कर दिया. उस ने तुरंत फोन रिसीव कर कहा, ‘‘हैलो…’’

आज मैं पूरे 4 साल बाद उस की आवाज सुन रहा था. एक पल के लिए लगा कि यह कोई खुली आंखों का ख्वाब तो नहीं. अगर यह ख्वाब है तो बहुत ही खूबसूरत है जिस ख्वाब से मैं कभी बाहर न निकलूं. मुझे खुद पर और उस पल पर विश्वास ही नही हो रहा था. उस की हैलो की दूसरी आवाज ने मुझे अपने विचारों से बाहर निकाला.

मैं ने कहा, ‘‘कैसी हो?’’ ‘‘मैं तो ठीक हूं, लेकिन तुम बताओ कहां गायब हो गए थे. वह तो शुक्र है आजकल की टैक्नोलौजी का वरना मुझे तो लगा था कि अब तुम से कभी बात ही नहीं हो पाएगी.’’

‘‘अरे, ऐसे कैसे बात नहीं हो पाएगी,’’ मैं ने कहा, ‘‘लेकिन तुम यह बताओ कि तुम ने शादी क्यों नहीं की अभी तक?’’ ‘‘अभी तक? क्यों, तुम्हारी शादी हो गई क्या,’’ अवंतिका ने मुसकराते हुए कहा. ‘‘नहीं हुई,’’ मैं ने हंसते हुए कहा, ‘‘क्या कर रही हो आजकल.’’

उस ने हंसते हुए बताया, ‘‘जौब कर रही हूं. दिल्ली में एक सौफ्टवेयर कंपनी है पिछले 3 साल से वहीं जौब कर रही हूं.’’ ‘‘क्या?’’ मुझे यकीन ही नहीं हो रहा था. उस पल पर, न अपने कानों पर, न ही अवंतिका पर. कौन कहता है अतीत अपनेआप को नहीं दोहराता? मेरा अतीत मेरे सामने एक बार फिर आ गया था. 3 साल से हम दोनों एक ही शहर में थे और आज इस तरह…‘‘तुम्हें पता है कि मैं कौन से शहर में हूं,’’ मैं ने उस से पूछा. ‘‘नहीं,’’ उस ने कहा. ‘‘मैं भी दिल्ली में ही हूं.’’ ‘‘पता है मुझे,’’ अवंतिका बोली. ‘‘क्या,’’ मैं ने उस से कहा. ‘‘मुझे तुम से मिलना है, जल्दी बोलो कब मिलेंगे.’’ ‘‘ठीक है… जब तुम फ्री हो तो कौल कर देना.’’

‘‘तुम से मिलने के लिए मुझे वक्त निकालने की जरूरत है क्या?’’ ‘‘ठीक है तो कल मिलते हैं.’’ ‘‘हां, बिलकुल,’’ मैं ने तपाक से कहा.आज मुझे अवंतिका से मिलना था. पूरे 4 साल बाद मैं जैसा इस समय महसूस कर रहा हूं, उसे बताने के लिए शब्दों की कमी पड़ रही थी. मेरा दिल बहुत तेजी से धड़क रहा था, जैसे मानों पेट में तितलियां उड़ रहीं थीं.

जिंदगी भी बड़ी अजीब होती है, जो पल सब से खूबसूरत होते हैं, उन्हीं पर विश्वास करना मुश्किल होता है. जब आप को जिंदगी दूसरा मौका देती है, तो आप चाहते हैं कि हर एक कदम संभलसंभल कर रखें. यही है जिंदगी, शायद ऐसी ही होती है जिंदगी.

मैं एक रेस्तरां के अंदर बैठा अवंतिका का इंतजार कर रहा था और सोच रहा था कि किस सवाल से बातों की शुरुआत करूं. मेरी निगाहें मेन गेट पर थीं. दिल की धड़कन बहुत तेजी से आवाज कर रही थी, लेकिन उसे सिर्फ मैं ही सुन सकता था.

आखिरकार, वह समय आ ही गया. जब अवंतिका मेरे सामने थी. वह बिलकुल भी नहीं बदली थी. उस में 4 साल पहले और अब में कोई फर्क नहीं आया था, मुझे ऐसा लग रहा था कि कल की एक लंबी रात के बाद जैसे आज एक नई सुबह में हम मिले हों. उस के वही पहले की तरह खुले बाल, वही मुसकराहट ओढ़े हुए उस का चेहरा… सबकुछ वही.

मैं ने अवंतिका से पूछा, ‘‘अच्छा, तुम्हारी मम्मी ने तो मुझे बताया था कि तुम्हारी सगाई है. मुझे तो लगा था अब तक तुम्हारी एक प्यारी सी फैमिली बन गई होगी.’’

‘‘हम्म… सोचा तो मैं ने भी यही था, लेकिन जो सोचा होता है अगर हमेशा वही हो तो जिंदगी का मतलब ही नहीं रह जाता. मेरा एक जगह रिश्ता तय हुआ तो था, लेकिन जिस दिन सगाई थी, जिस के लिए मेरी मम्मी ने तुम्हें इन्वाइट किया था, उसी दिन लड़के वालों ने दहेज में कार और कैश मांग लिया, उन्हें बहू से ज्यादा दहेज प्यारा था. मैं ने उसी समय उस लड़के से शादी करने से मना कर दिया. उस दिन काफी दुख हुआ था मुझे, सोचा तुम मिलोगे तो तुम्हें अपनी दिल की व्यथा सुनाऊंगी लेकिन तुम भी ऐसे गायब हुए जैसे कभी थे ही नहीं,’’ अवंतिका ने कहा.

उस वक्त मुझे अपने ऊपर इतना गुस्सा आ रहा था कि काश, मैं उस दिन अवंतिका के घर चला जाता… कितनी जरूरत रही होगी न उस वक्त उस को मेरी. जिस वक्त मैं यह सोच रहा था कि उस के साथ उस का हमसफर होगा उस वक्त उस के साथ तनहाई थी… मैं कितना गलत और स्वार्थी था.

‘‘यहां नौकरी कब मिली,’’ मैं ने अवंतिका से पूछा. ‘‘3 साल पहले,’’ उस ने बताया. 3 साल… 3 साल से हम दोनों एक ही शहर में थे. कभी हम दोनों गलती से भी नहीं टकराए,’’ मैं ने मन में सोचा. आज मैं इस सुनहरे मौके को गवांना नहीं चाहता था. आज मैं वह गलती नहीं करना चाहता था, जो मैं ने 4 साल पहले की थी.

मैं ने अवंतिका का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा, ‘‘अवंतिका मुझे माफ कर दो, पहले मुझ में इतनी हिम्मत नहीं थी कि तुम से अपने दिल की बात कह सकूं, लेकिन आज मैं इस मौके को खोना नहीं चाहता. मैं तुम्हारे साथ जिंदगी बिताना चाहता हूं, बोलो न, दोगी मेरा साथ,’’ अवंतिका मुझे एकटक देखे जा रही थी. उस ने धीरे से पास आ कर कहा, ‘‘ठीक है, लेकिन एक शर्त पर, तुम हफ्ते में एक बार डिनर बनाओगे तो,’’ इतना कह कर वह जोर से हंस दी. मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा था, लेकिन आखिर पूरे 4 साल बाद मैं अपने खो प्यार से जो मिला था.

 

फैसला: शशि के बारे में ऐसा क्या जान गई थी वीणा?

Serial Story: फैसला (भाग-3)

मैं वीणा को पहले ही सब बता दूं… बाद में उसे कोई शिकायत न हो.’’  बातों का रुख कहां से कहां पहुंच गया था. अब जश्न का वह मजा नहीं रहा. बेमन से सब ने खाना खाया. खाना खाने के बाद तुरंत शशि वहां से चला गया. लेकिन अपने पीछे बहुत से सवाल छोड़ गया. वीणा खामोश हो गई थी. मांपापा दोनों को समझ नहीं आ रहा था कि बात को कैसे संभालें?  जैसेजैसे दिन गुजरते जा रहे थे शशि का स्वभाव उन के सामने खुलता  जा रहा था. बड़ा ही सनकी और अजीब हठी था वह. किसी की एक नहीं सुनता. हरकोई उस की सुने, उस की यही मंशा थी. वीणा ने शशि की मां से बात की तो उन का भी यही मानना था कि शशि का कोई इलाज नहीं. बस यही कर सकते हैं कि वह जैसा बरताव करे हम उस के साथ वैसा ही करें ताकि उसे उस की गलती का एहसास हो.

लेकिन वीणा को लगता कि यह स्थायी समाधान नहीं. उस के जैसा बरताव कर के कब तक वह जिंदगी के सवालों को सुलझा सकती है? वीणा जैसे उलझन में फंस गई थी. आतेआते शादी अगले महीने तक आ गई. गुजरता वक्त उसे बेचैन कर रहा था. उस की तड़प बढ़ रही थी. तभी मोबाइल बज उठा. वीणा ने देखा तो उसे शशि का नंबर नजर आया. बैल बजती रही… लेकिन उसे बात करने की इच्छा नहीं थी. फोन बजता रहा और फिर कट गया. वह औफिस के लिए तैयार हो रही थी कि फिर से बैल बजी. इस बार मां ने फोन उठाया और वीणा को देने आ गईं.

इस बार वीणा को बात करनी ही पड़ी.  ‘‘हैलो वीणा, क्या कर रही हो? क्या इतनी बिजी हो कि मेरा फोन भी नहीं उठा सकतीं? खैर, सुनो आज तुम से मिलना है. कुछ जरूरी काम है. या तो पूरे दिन की छुट्टी ले लो या फिर हाफ डे कर लो. अब तुम्हीं तय कर मुझे फोन कर देना. और हां, टालना मत वरना मुझे वहां आना पड़ेगा.’’ उस का धमकी भरा स्वर सुन कर वीणा सकते में आ गई. बेमन से वह औफिस के लिए निकली. औफिस पहुंच कर उस ने हाफ डे के लिए अर्जी दी और शशि को फोन कर दिया.

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शशि को ऐसा क्या जरूरी काम आन पड़ा होगा, सोचते हुए वह फटाफट काम निबटाने लगी ताकि वक्त से पहले काम निबटा सके. आखिर डेढ़ बजे तक उस ने काम समाप्त कर दिया और शशि का इंतजार करने लगी. ठीक 2 बजे शशि उसे लेने आ गया. फिर दोनों उस की बाइक से एक रेस्तरां में आ गए. ‘‘बैठो वीणा, मुझे तुम से कुछ जरूरी बातें करनी हैं,’’ शशि बैठते हुए बोला, ‘‘वीणा अब हमारी शादी के दिन पास आ रहे हैं. शादी के बाद तुम हमारे घर आओगी.

वैसे तो तुम वहां पहले से आजा रही हो, फिर भी मैं कुछ बातें समझा देना चाहता हूं. वीणा वह तुम्हारी ससुराल होगी मायका नहीं. जैसे मायके में आजाद पंछी की तरह फुदकती रहती हो वैसे वहां नहीं चलेगा. वहां तुम्हें बहू के हिसाब से रहना होगा. घर के सारे काम तुम्हें करने होंगे. मैं ये सब इसलिए बता रहा हूं, क्योंकि मुझे लगता है कि तुम जौब और घर दोनों नहीं संभाल पाओगी, तो तुम काम छोड़ दो.’’ ‘‘शशि यह क्या कह रहे हो? मैं काम क्यों छोड़ूं? मैं दोनों जिम्मेदारियां ठीक से निभाऊंगी… इतना भरोसा है मुझे खुद पर. घरबार संभालना हम औरतों का जिम्मा है, तुम इस में न ही पड़ो तो बेहतर है. यकीन रखो मैं सब संभाल लूंगी,’’ वीणा ने सयंत हो कर कहा.

वैसे जिस तरह का स्वभाव शशि का था उस से वह कोई बात नहीं मानेगा यह वीणा समझ ही गई थी. फिर भी वह कोशिश करना चाहती थी.  ‘‘वीणा मैं कोई तुम से सलाहमशवरा करने नहीं बैठा हूं. मैं तुम्हें बता रहा हूं  कि तुम्हें नौकरी छोड़नी पड़ेगी और हां हमारे घर के फैसले घर के मर्द लेते हैं… जो होशियारी दिखानी हो घर में रह कर दिखाओ. बातबात में मुझ पर रौब मत जमाया करो. होगी तुम सयानी तो अपने घर की. मेरे घर में मेरी चलेगी, यह बात ठीक से समझ लो तो बेहतर है,’’ गुस्से में बड़बड़ाता शशि वहां से चला गया.  वीणा उसे आवाजें लगाती रह गई, पर वह नहीं रुका. वीणा ने बिल पे किया और घर चल पड़ी. घर पहुंची तो पापा ने दरवाजा खोला. उस की सूरत से ही वे समझ गए कि बात काफी उलझी है. मां किसी काम से बाहर गई थीं. वीणा ने पापा को देखा तो उस का दिल भर आया. पापा के सीने से लग कर वह फफकफफक कर रो पड़ी.

‘‘अरे, क्या हुआ बेटे. ऐसे क्यों रो रही हो?’’ ‘‘पापा आज शशि मिलने आया था,’’ और फिर उस ने सारी बात उन्हें बता दी. सारी बात सुन कर पापा सोच में पड़ गए. अभी तो शादी हुई नहीं है और शशि के ये तेवर हैं.’’  आगे न जाने क्या हालात होंगे. ‘‘पापा, मैं उस के साथ सहज नहीं हो पाऊंगी… मेरा मन नहीं मान रहा है इस शादी को… क्या करूं कुछ समझ नहीं आ रहा है?’’

‘‘ठीक है बेटे हम इस बारे में तुम्हारी मां के आने के बाद बात करेंगे. अब तुम फ्रैश हो लो.’’  वे दोनों उठने ही वाले थे कि तभी मां आ गई. ‘‘अरे मां, आप आ गईं? फ्रैश हो जाओ. मैं चाय ले कर आती हूं.’’ थोड़ी ही देर में मां फ्रैश हो कर आ गईं और वीणा की चाय भी. चाय के साथसाथ शशि की बात चल निकली. वीणा के मन में ‘शादी’ पर सवाल अंकित देख कर मां सहम गईं.

फिर बोलीं, ‘‘वीणा, मुझे तो हमेशा उस का हठी स्वभाव शंका में डालता था पर लगता था वक्त के साथ सब ठीक हो जाएगा. तुम दोनों एकदूसरे को समझ जाओगे लेकिन आज तुम कुछ  और ही बता रही हो. अब शादी अगले महीने है. सभी रिश्तेदारों और परिचितों को पता चल चुका है… सारी तैयारी हो चुकी है… ऐसे में रिश्ता टूटे तो बदनामी हमारी ही होगी.’’  मां की बातों में भले ही वजन था पर अब वीणा के मन से शशि उतर चुका था और  किसी भी कीमत पर वह शादी नहीं चाहती थी.

अत: वह मायूस हो कर वहां से चली गई. बाद में पता नहीं पापा ने उस की मां को किस तरह समझाया. अगली सुबह जब वीणा चाय लेने टेबल पर पहुंची तो पापा ने बताया कि वह शशि को फोन कर शादी से इनकार कर दे… जो होगा देख लेंगे. ‘‘पापा, आप सच कह रहे हैं? क्यों वाकई मैं इनकार कर दूं?’’ ‘‘हां बेटे, कल रात मैं और तुम्हारी मां देर तक सोचते रहे. अरे अपनी बेटी खुश रहे, उसे एक अच्छा जीवनसाथी मिले यही तो हर मम्मीपापा की इच्छा होती है. जो रिश्ता शुरू होने से पहले ही बोझ लगने लगा है तो उसे उम्रभर किस तरह निभाओगी तुम? इस से बेहतर है कि हम रिश्ता तोड़ दें.

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अब जाओ उसे फोन करो.’’ ये सब सुन कर वीणा को लगा जैसे दिल से भारी बोझ उतर गया हो. मम्मीपापा का हाथ उस के सिर पर है यह जान उसे तसल्ली मिली. वह मोबाइल पर शशि का फोन मिलाने ही वाली थी कि शशि का ही फोन आ गया. बोला, ‘‘हैलो वीणा… फिर क्या तय किया तुम ने? आज इस्तीफा भेज रही हो या नहीं?’’ ‘‘इस्तीफा नहीं शशि. मैं ने तुम से सगाई तोड़ने का फैसला किया है.’’ शशि हैलोहैलो… ही कहता रहा, लेकिन कुछ न कह वीणा ने फोन काट दिया. एक नयानया रिश्ता खत्म हो गया था, लेकिन किसी को भी रंज नहीं था वीणा के इस फैसले पर.

Serial Story: फैसला (भाग-2)

उस की सोच बड़ी दकियानूसी थी. उस दिन शशि ने उसे दोस्तों से मिलने बुलाया, लेकिन उस रोज कंपनी के एमडी के साथ उस की मीटिंग थी और हमेशा की तरह शशि उसे आने के लिए मजबूर करने लगा, जो वीणा के लिए नामुमकिन था. वह मीटिंग में उलझी रही, जिस कारण उस का मोबाइल साइलैंट मोड पर था. शशि अपने दोस्तों के साथ उस का इंतजार करता रहा. वह बारबार वीणा को फोन करता रहा, लेकिन वीणा फोन नहीं उठा सकी. बस फिर क्या था. शशि का दिमाग घूम गया. वह गुस्से से भरा बारबार मोबाइल का नंबर लगाता रहा. वीणा जब अपने काम से फ्री हुई तो उस ने यों ही मोबाइल देखा. शशि की 20 मिस्ड कौल देख कर वह घबरा उठी. उस ने तुरंत शशि को फोन किया.

शशि ने जैसे ही उस का नंबर देखा गुस्से से आगबबूला हो कर फोन पर बिफर पड़ा, ‘‘वीणा क्या समझती हो तुम खुद को? मैं ने तुम्हें अपने दोस्तों से मिलने बुलाया था न? फिर तुम क्यों नहीं आईं? मेरे ही दोस्तों के सामने मेरा अपमान करना चाहती हो तुम? ऊपर से इतनी बार फोन मिलाया… क्या उठा नहीं सकती थीं… जवाब दो मुझे.’’ ‘‘अरे, यह क्या शशि मैं ने तुम्हें सुबह ही तो बताया था न कि आज मुझे बिलकुल भी फुरसत नहीं है. आज मेरी सर के साथ मीटिंग थी… तुम्हें तो पता ही है न कि मीटिंग के वक्त मोबाइल साइलैंट रखा होता है.’’

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‘‘हांहां सब पता है मुझे. तुम ज्यादा मत सिखाओ मुझे. और सुनो यह काम का बहाना मत बनाया करो. अगर मैं ने तुम्हें बुलाया है तो तुम्हें आना ही होगा… तुम्हारे काम गए भाड़ में,’’ गुस्से से शशि और भी बहुत कुछ बोल गया.  उस का हर शब्द वीणा के दिल में नश्तर की तरह उतर गया. वह सोचने लगी कैसे निभेगी उस की शशि के साथ जिसे अपनी पत्नी की कोई कदर नहीं. बस अपने ही अहंकार में मदमस्त रहता है. नएनए रिश्ते की खुमारी भी कब की रफूचक्कर हो गई थी. रिश्ता जुड़ने की कगार पर था और अभी से वीणा को बोझ लगने लगा था. आज ही उस की प्रमोशन की खबर आई थी. बहुत उतावली थी वह यह खबर शशि को सुनाने को, लेकिन शशि तो कुछ सुनने के लिए तैयार ही नहीं था.  बड़ी मायूसी से वीणा घर चल पड़ी. घर पहुंची तो मां कहीं बाहर गईं थीं.

पापा अकेले थे. वीणा को आया देख वे चाय रखने किचन की तरफ चले गए. वीणा जब फ्रैश हो कर आई तब तक पापा चाय टेबल पर रख चुके थे. ‘‘अरे, पापा चाय आप ने क्यों बनाई? मैं बनाने आने ही वाली थी,’’ उस ने पापा से कहा. ‘‘कोई बात नहीं बेटा. तुम भी तो थक कर आई हो. और यह क्या चेहरा इतना उतरा हुआ क्यों है? तबीयत ठीक है न? या फिर शशि से लड़ कर आई हो?’’ पापा ने सहज भाव से पूछा. ‘‘पापा क्या आप को लगता है मैं ही लड़ती रहती हूं? आज तो उस ने हद ही कर दी. आज मेरी सर के साथ मीटिंग थी सो मैं ने उसे उस के दोस्तों से मिलने से मना कर दिया.

फिर भी पापा वह फोन करता रहा. बाद में जब मैं ने उसे फोन किया तब ठीक से बात करना तो दूर वह पूरी बातों में चीखताचिल्लाता रहा. मेरी एक नहीं सुनी. पापा वह भी तो एक कामकाजी है, फिर उसे ये बातें समझ क्यों नहीं आती? वह अभी मेरा कायदे से पति बना तो नहीं… फिर किस हक से मुझ पर हुक्म चला रहा है? पति है इसलिए दादागिरी करता रहे और मैं अपनी गलती न होने पर भी उस की सुनती रहूं,’’ उस की भावनाएं जैसे फूट पड़ीं. पापा उस की हालत देख कर सोच में पड़ गए. वैसे उन्हें भी शशि का यह बरताव नागवार गुजरा था. उन की फूल सी बेटी, जिस का उन्होंने इतना खयाल रखा, जिस की आंखों से उन्होंने एक शबनम तक नहीं गिरने दी, आज वह इस तरह बेबस हो कर बातें कर रही है?  वे दोनों खामोश बैठे थे कि तभी वीणा की मां आ गई.

उन दोनों को साथ बैठे देख वे भी उन के साथ बैठ गईं. चाय का एक दौर और गुजरा. इतने में मां को याद आया कि आज सुबह वीणा प्रमोशन के बारे में कुछ बता रही थी. अत: बोलीं, ‘‘वीणा, सुबह तुम कुछ बता रही थी न प्रमोशन के बारे में? क्या हुआ कुछ पता चला क्या?’’ ‘‘हां, मां मेरा प्रमोशन हुआ है. आज ही सर ने बताया. और्डर 2 दिन में आ जाएगा,’’ वीणा ने दोनों को बताया. ‘‘अरे यह तो बड़ी अच्छी खबर है… पर तू इतनी मायूस क्यों है? चलो आज हम जश्न मनाते हैं. तेरी पसंद का खाना बनाते हैं और हां शशि को भी फोन कर देना. भई वह इस घर का दामाद है अब.

वह भी हमारी खुशी में शामिल हो तो खुशी और बढ़ जाएगी,’’ मां ने उठते हुए कहा. वीणा ने इनकार किया, लेकिन मां ने उस की बात को कोई तवज्जो नहीं दी. वीणा ने पापा को ही शशि को फोन करने को कहा और खुद मां का हाथ बंटाने किचन में पहुंच गई.   करीब 1 घंटे के बाद शशि घर पहुंचा. वहां पहुंच कर उसे दावत की वजह पता  चली. वीणा की प्रमोशन की खबर सुन कर वह प्रसन्न नहीं हुआ. उस के चेहरे के हावभाव बदल गए. बड़ा रंज था उस के चेहरे पर. ‘‘क्या बात है दामादजी, आप खुश नहीं हुए क्या?’’ मां ने पूछा. ‘‘अगर उसे प्रमोट किया गया है तो इस में इतनी खुशी की क्या बात है. इसे काम ही क्या है घर में… सारा काम आप करती हैं.

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इसलिए यह कंपनी के काम में पूरा ध्यान लगा सकती है. अगर वह पूरा ध्यान नहीं भी लगाएगी तो भी उसे सफलता तो मिलनी ही है. ‘‘सुनो वीणा, ये सब मेरे घर में नहीं चलेगा. तुम्हें वहां घर का सारा काम करना पड़ेगा. बहू आने के बाद मेरी मां काम नहीं करेगी. वहां तुम्हारी मरजी बिलकुल नहीं चलेगी… बहू हो बहू ही रहना, बेटी बनने की कोशिश न करना,’’ शशि बड़बड़ाए जा रहा था. तीनों अवाक उसे घूरते जा रहे थे. तभी पापा बोल उठे, ‘‘शशि, यह क्या कह रहे हो? आजकल के लड़के हो कर इतनी दकियानूसी सोच है तुम्हारी? हैरानी हो रही है मुझे… तुम्हारी पत्नी बनने जा रही है यह… इस का अपमान मत करो.’’ ‘‘पापा, आप हम दोनों के बीच न ही पड़ें तो अच्छा है.

आगे पढ़ें- वीणा को लगता कि यह स्थायी…

Serial Story: फैसला (भाग-1)

वीणा औफिस के काम में व्यस्त थी. इस महीने उस ने 3 फुल डे और 2 हाफ डे लिए थे. ऊपर से अगला महीना मार्च का था. काम का बोझ ज्यादा था सो वह बड़ी शिद्दत से काम में जुटी थी. लंच तक उसे आधे से ज्यादा काम पूरे करने थे. काम करते अभी उसे एकाध घंटा ही हुआ था कि उस का मोबाइल बज उठा. बड़े बेमन से उस ने मोबाइल उठाया. लेकिन नंबर देख कर उसे टैंशन होने लगी, क्योंकि फोन शशि यानी उस के मंगेतर का था, जो किसी न किसी कारण से उसे फोन कर के घर बुलाता था.

कभी उस के काका मिलना चाहते हैं, तो कभी मामाजी अथवा बूआजी. इस तरह के बहाने बना कर वह उसे घर आने के लिए मजबूर करता था. नईनई शादी तय हुई थी, इस कारण वीणा के घर वाले मना नहीं कर पाते थे. वीणा को इच्छा न होते हुए भी वहां जाना पड़ता. इसी कारण जब उस ने मोबाइल पर शशि का नाम देखा तो वह मायूस हो गई. ‘‘हैलो,’’ उस ने फोन उठाते हुए बेमन से कहा. ‘‘हैलो, वीणा मैं बोल रहा हूं. आज मेरी मौसी आई हैं लखनऊ से और वे तुम से मिलना चाहती हैं. आज तुम हाफ डे ले लो. मैं तुम्हें 2 बजे तक लेने आ जाऊंगा. और हां, घर चल कर तुम्हें साड़ी भी पहननी है, क्योंकि आज तुम पहली बार मेरी मौसी से मिल रही हो. ठीक से तैयार हो कर चलना.’’

‘‘सुनो शशि, मैं आज नहीं आ पाऊंगी. बहुत ज्यादा काम है और फिर अब मुझे हाफडे नहीं मिलेगा.’’ ‘‘वीणा मैं तुम्हें यह बता रहा हूं कि तुम्हें मेरे साथ मेरे घर चलना है न कि तुम से पूछ रहा हूं… तुम्हें चलना ही पड़ेगा. अपनी छुट्टी कैसे मैनेज करनी है यह तुम जानो और हां, तुम्हें घर आ कर मां का हाथ भी बंटाना है. मैं तुम्हें ले कर पहुंच जाऊंगा, यह मैं उन से कह कर आया हूं.’’ ‘‘शशि, मुझ से पूछे बगैर तुम ने ये सब कैसे तय कर लिया?’’ ‘‘तुम से क्या पूछना? मुझे तुम से पूछ कर हर काम करना पड़ेगा?’’

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‘‘हां शशि जो मुझ से संबंधित हो… उस बारे में तुम्हें मुझ से पूछना चाहिए… एक तो हर दूसरे दिन मुझे किसी न किसी से मिलवाने अपने घर ले जाते हो और खुद गायब हो जाते हो… यह ठीक है कि तुम्हारे रिश्तेदार मुझ से मिलना चाहते हैं लेकिन शशि मेरा ऐसे बारबार तुम्हारे घर आना क्या अच्छा लगता है?’’ ‘‘और… और क्या? अब क्या शादी से पहले ही मेरे घर वालों से कतराना चाहती हो? या उन से ऊब गई हो?’’  ‘‘नहीं शशि मेरा यह मतलब नहीं… प्लीज गलतफहमी मत रखना… न मैं उन से कतराना चाहती हूं और न ही ऊब चुकी हूं. सच तो यह है कि मैं तुम्हारे साथ ज्यादा वक्त बिताना चाहती हूं. तुम्हें जानना चाहती हूं ताकि एकदूसरे को ज्यादा से ज्यादा समझ सकें, एकदूसरे की पसंदनापसंद जान सकें.’’ ‘‘नहीं, उस की कोई जरूरत नहीं. जो कुछ जाननासमझना है उस के लिए उम्र पड़ी है. अगर मेरे घर वाले तुम्हारे साथ वक्त बिताना चाहते हैं, तो तुम्हें उन की बात माननी पड़ेगी.

मैं तुम्हें लेने आ जाऊंगा. गेट पर मिलना,’’ और शशि ने फोन काट दिया. वीणा और शशि की शादी डेढ़ महीना पहले ही तय हुई थी. शशि वीणा की ही कंपनी की बाजू वाली कंपनी में काम करता था. आतेजाते दोनों एकदूसरे के आमनेसामने हो जाते थे. पहले मुलाकात हुई, फिर दोस्ती. शशि की तरफ से रिश्ता आया था. दोनों एकदूसरे से परिचित थे तो दोनों के घर वालों ने रिश्ते के लिए हां कर दी और फिर सगाई हो गई. उस के बाद हर दूसरेतीसरे दिन शशि वीणा को फोन कर के घर आने के लिए मजबूर करता.

शुरूशुरू में तो उसे अच्छा लगता कि उस के जाने के बाद उस की ससुराल वाले उस के आसपास मंडराते थे, लेकिन बाद में उसे ऊब होने लगी. वह शशि के साथ समय बिताना चाहती थी, जो जरूरी था. वह हर बात को ले कर जबरदस्ती करता. जैसे वीणा क्या पहनेगी या आज कहां जाना है? वह कभी उस के घर आएगा तो नाश्ता भी उसी की पसंद का बनेगा… यहां तक कि टीवी का चैनल भी उस की पसंद का लगाया जाएगा.  एक दिन जब शशि घर आया तो वीणा के घर वाले खाना खा रहे थे. आते ही उस ने  हमेशा की तरह जल्दी मचानी शुरू कर दी. ‘‘आओ बेटा खाना खाओ,’’ मां ने कहा. ‘‘नहीं मांजी, आज नहीं और वैसे भी मुझे यह भिंडी की सब्जी पसंद नहीं,’’ शशि मुंह बनाते हुए बोला. ‘‘अरे, यह तो हमारी बेटी की पसंदीदा सब्जी है,’’ पापा ने हंस कर कहा. ‘‘तो क्या हुआ? आज अगर पसंदीदा है तो खाए, बाद में तो उसे मेरे अनुसार ही खुद को ढालना पड़ेगा.’’ ‘‘क्या मतलब?’’ पापा ने चौंक कर पूछा. ‘‘पापा, मेरी बीवी मेरे अनुसार ही तो अपनी पसंदनापसंद तय करेगी न?

आखिर पति हूं मैं उस का… उसे मेरा कहना मानना ही पड़ेगा,’’ शशि रौब से बोला. ‘‘नहीं शशि… मैं क्यों हर बात तुम्हारी मरजी से करूंगी?’’ वीणा ने बात को हंसी में लेते हुए कहा, ‘‘आखिर मेरी जिंदगी मेरी मरजी से चलेगी न कि तुम्हारी मरजी से.’’ ‘‘वीणा, एक बात पल्ले बांध लो. हमारे समाज ने मर्दों को सारे अधिकार दे रखे हैं न कि औरतों को. अत: घर में पति की ही चलेगी न कि पत्नी की… और मैं तो…’’ ‘‘अरेअरे, रुको बेटा गुस्सा मत हो,’’ मां बीच में बोल पड़ीं… ‘‘तुम बाहर बैठो मैं उसे तैयार कर के भेजती हूं,’’ कह मां वीणा को अंदर ले गईं. बोलीं, ‘‘देखो बेटा, शशि थोड़ा हठी स्वभाव का लगता है… नईनई शादी तय हुई है. इस कारण हम पर खासकर तुम पर रौब झाड़ रहा… बाद में सब ठीक हो जाएगा और फिर शादी नाम ही उस रिश्ते का है जिस में समझौते से ही रिश्ते पनपते हैं. तुम चिंता मत करो. सब ठीक हो जाएगा. अब जाओ खुशीखुशी घूम आओ,’’ मां ने उसे समझा कर तैयार होने भेज दिया.  मां ने वीणा को तो समझा दिया, किंतु खुद उन की आंखों में फिक्र के साए उमड़ पड़े.  दिन बीतते गए. शादी की तारीख दीवाली के बाद की निकली थी.

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इसी बीच दोनों  मिलते रहे. उन मुलाकातों में बातें कम और शशि की सूचनाएं अधिक होती थीं. वीणा एक पोस्टग्रैजुएट लड़की थी. जिंदगी के प्रति उस की अपनी कुछ सोच थी, कुछ सपने थे, लेकिन उस का पार्टनर तो कुछ समझने को तैयार ही नहीं था.

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