आत्महत्या: एक खौफनाक सच

उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर जिले के अलगअलग थाना क्षेत्रों में 24 घंटे के अंदर 9 लोगों के आत्महत्या करने की घटना सामने आई है.

पुलिस का कहना है कि आत्महत्या करने वालों में ज्यादातर ने मानसिक तनाव के चलते यह कदम उठाया. वहीं कुछ ने घरेलू कलह के चलते आत्महत्या कर ली.

राष्ट्रीय अपराध रिकौर्ड ब्यूरो के हालिया आंकड़ों के मुताबिक भारत में 2019 में कुल 1,39,123 लोगों ने आत्महत्या की. इस का मतलब यह है कि देश में हर रोज करीब 381 लोगों ने आत्महत्या की.

आंकड़ों के मुताबिक करीब 32.4% फीसदी मामलों में लोगों ने पारिवारिक समस्याओं के चलते अपनी जिंदगी खत्म की तो 17.1% लोगों ने बीमारी से परेशान हो कर यह कदम उठाया. वहीं 5.5% लोगों ने वैवाहिक समस्याओं के कारण, तो 4.5% लोगों ने प्रेम प्रकरण की वजह से आत्महत्या की.

करीब 2% लोगों की आत्महत्या करने की वजह बेरोजगारी और परीक्षा में फेल होना रही. 5.6% लोगों ने ड्रग ऐडिक्‍शन के चंगुल में फंस कर अपनी जान दे दी.

इन आंकड़ों से पता चलता है कि आत्महत्या के प्रत्येक 100 मामलों में से 29.8% महिलाएं और 70.2% पुरुष शामिल थे यानी आत्महत्या करने वालों में अधिकतर पुरुष थे. इन में भी लगभग 68.4% पुरुष विवाहित थे.

रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2019 में आत्महत्या के मामलों में 53.6% लोगों ने फांसी लगा कर, 25.8% ने जहर खा कर, 5.2% लोगों ने पानी में डूब कर और 3.8% लोगों ने आत्मदाह कर अपना जीवन खत्म किया.

जीवन से हार कर, निराश हो कर या तनाव में आ कर जब कोई शख्स आत्महत्या करता है तो वह न सिर्फ खुद के साथ अन्याय करता है बल्कि अपने पूरे परिवार को सजा देता है. अपना तनाव खत्म करने की कोशिश में वह अपने घर वालों को उम्रभर का तनाव दे कर चला जाता है.

किस ने दिया यह हक

आत्महत्या करने वाला शख्स तो चला जाता है मगर अपने पीछे अपनों को अकेला छोड़ जाता है. भले ही बूढ़े मांबाप हों जो अकेले रह गए हों, जीवनसाथी हो, जिस का पूरा जीवन अब अकेले बीतने वाला है या फिर बच्चे जिन्हें छोड़ कर उस ने आत्महत्या कर ली. एक इंसान के इस तरह जाने से कितनों की ही जिंदगी बरबाद हो जाती है.

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भला उसे क्या हक है कि वह घर के उन सदस्यों के जीवन में दुख और तनाव का जहर घोल दे जिन्होंने उसे जन्म दिया, पालपोस कर बड़ा किया, साथ निभाया और हर कदम पर खुद से बढ़ कर उस की खुशियों की परवाह की.

पेरैंट्स कितने भी स्ट्रिक्ट या गलत सोच वाले क्यों न हों मगर वे सदा अपने बच्चे का भला ही सोचते हैं. अपनी संतान का सुख ही देखते हैं. अपनी पूरी जिंदगी अपने बच्चों पर कुरबान करने वाले पेरैंट्स या सुखदुख बांटने वाले भाईबहनों को उम्रभर का गम देना कहां का इंसाफ है? यह हक किसी इंसान को कैसे मिल सकता है?

कचोटती हैं यादें

इंसान खुद तो आत्महत्या कर के निकल जाता है मगर परिवार वालों को तड़पता छोड़ जाता है. घर वालों को जाने वाले शख्स की यादें हर वक्त कचोटती हैं. खासकर जब मामला आत्महत्या का हो तो उस व्यक्ति के परिवार वाले कहीं न कहीं खुद को ही दोषी महसूस करने लगते हैं. वे हर संभव कारण ढूंढ़ते हैं कि आखिर उस को आत्महत्या करने को विवश क्यों होना पड़ा? वे खुद को पश्चाताप और अफसोस की आग में जलाते रहते हैं. उन्हें यह अफसोस होता है कि शायद उन की ही गलती थी. उन्होंने ऐसा न किया होता या वैसा किया होता तो वह जिंदा होता. यह अफसोस अपनों के जीवन में हमेशा का तनाव छोड़ जाता है.

अधूरापन

आत्महत्या करने वाला इंसान अपनी जिंदगी के साथसाथ दूसरों की जिंदगी को भी अधूरा छोड़ कर चला जाता है. जो सपने उस ने खुद या दूसरों के साथ मिल कर देखे थे वे अधूरे ही रह जाते हैं. दिल की तमाम ख्वाहिशें भी अधूरी रह जाती हैं. इस बात का तनाव घर वालों के जीवन में हमेशा के लिए रह जाता है.

सवालों का जवाब नहीं मिलता

कोई आत्महत्या करता है तो उस के अपनों के मन में हजारों सवाल उठते रहते हैं. इन सवालों के जवाब उन्हें फिर कभी नहीं मिलते. अगर जाने वाला शख्स सुसाइड नोट लिख कर नहीं गया है तो जाहिर है घर वालों को जवाब कभी भी नहीं मिल पाता. वे ताउम्र यही सोचते रह जाते हैं कि आखिर उस ने ऐसा क्यों किया? ऐसी क्या वजह हुई कि उस को इतना भयानक कदम उठाना पड़ा. वे अंदाजा लगाते रहते हैं और अंदाजे के आधार पर सवालों के जवाब ढूंढ़ते रहते हैं.

कोर्टकचहरी का चक्कर

आत्महत्या के बाद घर वालों को कोर्टकचहरी का चक्कर भी लगाना पड़ता है. वे कानूनी पचड़ों में पड़े रहते हैं.

बौलीवुड अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत को आज करीब 4 महीने से ज्यादा वक्त बीत चुका है. उस के घर वाले और फैंस आज भी यह बात मानने को तैयार नहीं कि उस ने आत्महत्या की होगी.

अब जरा सुशांत के वृद्ध पिता के बारे में सोचें जिन्होंने अपना इकलौता और इतना काबिल बेटा खो दिया. पिछले 4 महीने से वे कितने तनाव में जी रहे हैं इस का अंदाजा भी हम नहीं लगा सकते. पहले एफआईआर फिर सीबीआई जांच और अंत में नतीजा शून्य. सुशांत के पिता और बहनें अब तक कारण ढूंढ़ने में ही लगे हुए हैं कि उस ने आत्महत्या क्यों की? इस बात को ले कर उन के मन में कितने सवाल उठते होंगे. हर वक्त सुशांत का मुसकराता चेहरा आंखों के आगे आ जाता होगा.

सुशांत ही नहीं आम घरों में भी जब परिवार का कोई सदस्य आत्महत्या करता है तो पूरे परिवार में मातम और सूनापन छा जाता है. पर सब के दिमाग में भूचाल आया रहता है. उस के खोने के गम के साथ ही क्यों खोया यह सवाल तनाव का कारण बनता है.

जरा सोचिए

अपने दिल को तसल्ली देने और आत्महत्या करने के फैसले को सही ठहराने के चक्कर में भले ही आप लाख बहाने बना लें, मन में तर्कवितर्क की लंबी फिहरिश्त तैयार कर लें मगर अंत में जब आप एक पलड़े में पेरैंट्स और घर वालों के प्यार और कुरबानी को रखेंगे और दूसरे पलड़े में आत्महत्या करने के हजारों कारण तो भी पेरैंट्स और घर वालों के प्यार का पलड़ा ही भारी होगा.

ऐसे में अपनी परेशानियों के बारे में सोचने से बहुत अच्छा क्या यह नहीं कि आप तनाव की वजहों पर ध्यान देना छोड़ कर नए सिरे से अपने जीवन की कहानी लिखें?

कभी आप जीवन से बिलकुल हताश हो कर आत्महत्या का फैसला कर लेने की सोचें तो पहले मात्र आधा घंटा खुद को समय दें. शांत मन से यह सोचना शुरू करें कि आप के तनाव और उदासी की वजह क्या है? कोई एक वजह है या कई वजह हैं ? उन सब को एक कागज पर लिखें. अब कागज पर लिखे इन कारणों में जिन्हें आप खुद से दूर कर सकते हैं, भूल सकते हैं या अपनी जिंदगी से निकाल सकते हैं उन्हें काट दें. जैसे प्रेमी द्वारा धोखा दिया जाना, परीक्षा में नंबर अच्छे न आना, किसी से झगड़ा या धोखा मिलना, पैसों की तंगी, पारिवारिक कलह आदि. इन सब समस्याओं से बचने का उपाय है.

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प्रेमी ने धोखा दिया, उस से झगड़ा हुआ, उस ने बेइज्जत किया तो साफ रास्ता है कि आप उसे जिंदगी से निकाल दें, क्योंकि किसी एक शख्स के लिए आप खुद को या परिवार को सजा नहीं दे सकते.

इसी तरह रिजल्ट खराब हुआ तो अगले साल फिर कोशिश करें या कोई और विषय लें जिस में आप का मन लगे. घर वालों ने डांटा तो पहले उन का प्यार याद करें. जो प्यार करते हैं वे डांट भी सकते हैं. घर में कलह से परेशान हैं तो अलग घर ले लें. पैसों की तंगी/बेरोजगारी है तो पैसे कमाने का जरीया बदलें. अपने मौजूदा काम की जगह कोई और फील्ड ट्राई करें.

अकसर लोग ऐसी छोटीमोटी वजहों से खुदकुशी कर लेते हैं जिन्हें वे अपनी जिंदगी से दूर कर बेहतर जीवन जी सकते हैं. कुछ कारण ऐसे भी हो सकते हैं जिन्हें वे चाह कर भी खुद से दूर नहीं कर सकते. जैसे कोई गंभीर बीमारी या बड़ी शारीरिक तकलीफ. ऐसे में खुद को मजबूत बनाना होगा. बीमारी की सोच से लड़ना होगा. जब तक शरीर साथ न छोड़े सकारात्मक सोच के साथ जीना होगा. सकारात्मक सोच के आगे बड़ीबड़ी बीमारियां हार जाती हैं. खुद से कमजोर, बीमार, गरीब या असहाय लोगों की तरफ देखें. आप के अंदर एक विश्वास पैदा होगा. उन्हें तकलीफ से लड़ता देख कर खुद लड़ने का जज्बा पैदा होगा.

दूसरे स्टेप में आप यह सोचें कि आप के बाद आप के प्रियजनों की स्थिति क्या होगी? आप की छोटी सी असफलता सहना उन के लिए आसान है या फिर आप के जाने के बाद उम्रभर का दर्द सहना. इसलिए अपने पेरैंट्स की तकलीफ महसूस कर आत्महत्या का विचार दिमाग से निकाल दें. आप उन्हें खुशी नहीं दे सकते तो कोई बात नहीं मगर उन्हें दुख देने का हक आप को किस ने दिया?

तीसरे स्टेप में अपने मन में सकारात्मक भावों को जगह दें. अपने पास मौजूद उन रिश्तों और चीजों के बारे में सोचें जिन्हें पाना दूसरों का ख्वाब होता है. अपने पास मौजूद चीजों को वैल्यू दें. अपने स्वस्थ शरीर, प्यार करने वाला परिवार, सुखसुविधा के साधन, कुछ करने का मौका. यह सब आप के जीने की वजह हो सकते हैं. जिंदगी को अच्छा या बुरा समझना हमारी अपनी सोच पर निर्भर करता है. आप चाहें तो जो मिला है उसी में ख़ुशी से जी सकते हैं और आप चाहें तो जो नहीं मिला उस के गम में खुद को खत्म कर बाकी सब भी खो सकते हैं.

क्यों करते हैं लोग आत्महत्या

आखिर क्यों लोग आत्महत्या कर अपने जीवन को खत्म कर लेना चाहते हैं, आइए जानते हैं :

घर में कलह होना : कई बार घर में काफी कलह होते रहने से या पति/पत्नी, मांबाप या भाईबहन से लड़ाईझगड़े होने पर इंसान आवेश में आ कर आत्महत्या का फैसला ले लेता है.

बेवफाई का दर्द : जीवनसाथी या प्रेमी द्वारा दगा किए जाने पर इंसान टूट जाता है. जब वह अपने जीवनसाथी या प्रेमी को किसी और की तरफ आगे बढ़ते देखता है तो यह बात सह नहीं पाता. उसे लगता है जैसे वह हार गया है. उन कमजोर पलों में वह आत्महत्या जैसे कदम उठा सकता है.

प्यार में असफलता : प्रेमी ने प्यार स्वीकार नहीं किया या लोगों के सामने मजाक बनाया या फिर बिना किसी ठोस वजह छोड़ दिया तो भी लोग तनाव में आ जाते हैं.

रिजल्ट खराब होना : पढ़ाई या नौकरी में कुछ समस्या आ जाए जैसेकि परीक्षा अच्छा न जाना, रिजल्ट खराब आना या नौकरी छूट जाना कुछ ऐसे कारण हैं जो किशोरों और युवाओं को परेशान करते हैं. इस से वे तनाव में आ कर गलत फैसला भी ले लेते हैं.

बीमारी : किसी तरह की शारीरिक लाचारी या गंभीर बीमारी से ग्रस्त होने पर व्यक्ति का मनोबल गिर जाता है. ऐसे में संभव है कि वह आत्महत्या कर के सारी तकलीफों से मुक्ति पाने की कोशिश करे.

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