घटते फासले बढ़ती नाराजगी

देश में अब परिवार नई चुनौतियों से जूझ रहे हैं. पहले सासबहू और देवरानीजेठानी विवादों के कारण घरों में कलह रहती थी, अब पतिपत्नी और उस से ज्यादा पिताबेटे और मांबेटी की कलह के किस्से बढ़ रहे हैं. आमतौर पर खुद को सक्षम और समझदार समझने वाली पत्नियां अब पतियों के आदेशों को मानने से इनकार कर रही हैं और घर के बाहर एक अलग जिंदगी की तलाश करने लगी हैं, फिर चाहे वह दफ्तरों में नौकरी हो या किट्टी पार्टियां.

घरों में विवादों के बढ़ने का कारण न सिर्फ सतही जानकारी का भंडार होना है, बल्कि गहराई वाली सोच का अभाव होना भी है. सतही जानकारी ने यह तो सब को समझा दिया है कि हरेक का अपना अधिकार है, अपना जमीनी व व्यक्तिगत दायरा है, जीवन जीने के फैसले खुद करने का अधिकार है पर यह जानकारी यह नहीं बताती कि कोई भी गलत फैसला कैसे खुद को परेशान कर सकता है.

लोगों ने अपने अधिकारों को जानना तो शुरू कर दिया है पर जब इन अधिकारों के कारण दूसरों के दायरे में दखल हो तो क्या करना चाहिए, यह ज्ञान आज का मीडिया या मोबाइल देने को तैयार नहीं है. आज का मीडिया तब तक ही पसंद और सफल है जब तक वह दर्शकों को आत्ममंथन करने को न कहे.

अपने फैसलों का प्रभाव दूसरों पर खराब पड़ सकता है यह आज का मीडिया नहीं बताता, क्योंकि वह फास्ट फूड की तरह स्वादिष्ठ और शानदार दिखने वाली बात करता है. आज का मीडिया आप को अपनी गलतियों की ओर झांकने को नहीं कहता, क्योंकि इस से आप ऊब कर किसी दूसरी स्क्रीन पर चले जाएंगे.

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आज तो दवा के रूप में भी आप को कैप्सूल दिए जा रहे हैं. सेहत बनाने के लिए भी एअरकंडीशंड माहौल वाला जिम चाहिए. फूड सप्लिमैंट चाहिए जो बिना खराबियां बताए आप को मिनटों, घंटों में ठोकपीट कर ठीक कर दे.

ये कैप्सूल, ये टिप्स, ये फास्ट ट्रीटमैंट जीवन को चलाने के लिए नहीं मिलते. पतिपत्नी एकदूसरे से रूठे रहते हैं, बच्चे मातापिता पर भुनभुनाते रहते हैं. हरकोई पकापकाया चाहता है, बिना समस्या की गहराई में जाए उस का हल चाहता है.

सासबहू या जेठानीदेवरानी के झगड़े जब भी होते थे या होते हैं तो इसीलिए कि दोनों को नहीं मालूम कि कैसे एकदूसरे के पूरक बनें. यह शिक्षा कहीं दी ही नहीं जा रही कि लेना है तो किसी को देना भी पड़ेगा. लोगों ने सोच लिया है कि दफ्तरों में काम दे कर जो ले लिया वह घर के लिए देना हो गया. अब घर वाले उस के बदले में मांगी गई चीज दें.

पत्नी सोचती है कि उस ने बनठन कर, साथ चल कर या रात को साथ सो कर जो दे दिया वही काफी है. अब उसे सिर्फ लेना है. बच्चे सोचते हैं कि उन्होंने जन्म ले कर मातापिता को संपूर्णता दे दी. अब मातापिता उन्हें वापस देते रहें. जीवन को एटीएम समझ लिया गया है जहां मशीनी तौर पर लेनदेन होता है.

लोग भूल रहे हैं कि आधुनिक सुविधाएं या तकनीकें कितनी महंगी हैं और कितनी तनाव पैदा करने वाली हैं. वे जानते ही नहीं कि लाखों सालों में विकसित हुए मानव स्वभाव को 1 पीढ़ी में नहीं बदला जा सकता. मानव स्वभाव सदियों से बहुतों के सुझावों, ज्ञान, उदाहरणों पर टिका हुआ है. आज यह आप को केवल पढ़ने से मिल सकता है, काउंसलर या प्रवचन से नहीं मिल सकता.

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आज भी लेखक आप को भ्रमित या गुदगुदाने के लिए नहीं लिखता. वह अपने और दूसरों के उदाहरणों का विश्लेषण करता है. व्हाट्सऐप मैसेजों में बंटता ज्ञान केवल अच्छे शब्द होते हैं. आमतौर पर वे दूसरों की सलाह लेते हैं, जो खुद को ठीक करने की दवा नहीं देते.

पारिवारिक विवाद, प्रेम विवाहों का तलाकों में बदलना, बारबार के ब्रेकअप, उद्दंड बच्चे, खफा बेटेबेटी उस अंधकार की देन हैं जिस में हम अपनेआप को धकेल रहे हैं. हर रोज, हर घंटे, हर उस समय जब आप फालतू की चैटिंग कर रहे हैं और मोबाइल या टीवी को अपना अकेला मार्गदर्शक मान रहे हैं.

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