Family Hindi Story : फर्क पड़ता है

Family Hindi Story : अभी  सरला आंटी सीढि़यों से उतर कर नीचे आएंगी, आते ही पूछेंगी, ‘‘चिडि़यों को प्रसाद खिलाया?’’

कभीकभी नीलू का दिल करता कि झूठ कह दे हां खिला दिया… 2 घंटे के पूजापाठ एवं मंत्र जाप के बाद प्रसाद खिलाने के लिए चिडि़यों की प्रतीक्षा में उस का काफी समय नष्ट हो जाता था. अकसर वह काफी विलंब से औफिस पहुंचती. परंतु नीलू चाह कर भी सरला आंटी से झूठ नहीं कह सकती थी. आंटी तुरंत उस का झूठ ताड़ लेंगी. उन की तेज नजर फौरन उस के झूठ को पकड़ लेगी. सरला आंटी किसी सीबीआई के जांच अधिकारी की तरह उस से पूछताछ करेंगी और झूठ पकड़ने में उन्हें जरा सी भी देर नहीं लगेगी.

आते ही सरला आंटी पूछेंगी, ‘‘आज चिडि़यों की चहचहाट सुनाई क्यों नहीं पड़ी? चिडि़यों को प्रसाद में क्या खिलाया? आज कितनी चिडि़यां थीं?’’ अब भला, चिडि़यों की गिनती कौन करे. इतने सारे सवाल पूछ लेने के बाद भी वह सीधे पूजा के स्थान पर जाएंगी, आरती के थाल को छू कर देखेंगी, अगरबत्ती एवं कपूर की गंध को सूंघ कर ही वे सारी सचाई पता कर लेंगी.

चिडि़यों को प्रसाद खिलाने का सिलसिला पिछले कुछ महीनों से प्रतिदिन नियमपूर्वक चलता आ रहा है, जब से नीलू की प्रैगनैंसी की खबर सरला आंटी के कानों तक पहुंची थी तभी से.

आंटी को नीलू की प्रैगनैंसी की खबर जैसे ही मिली, उन्होंने अपने घरेलू पंडितजी को बुलाया. पंडितजी ने नीलू की जन्मपत्री मंगवाई और मन में ही कुछ गुणाभाग कर के नीलू एवं उस के गर्भ में पल रहे बच्चे के ऊपर राहु की बुरी दृष्टि के होने का पता लगा लिया एवं साथ के साथ ही इस से बचने का उपाय भी सुझा दिया.

पंडितजी के बताए गए उपाय के अनुसार, नीलू को प्रतिदिन सुबह अपने इष्ट देव की प्रतिमा के आगे दीप, अगरबत्ती, कपूर आदि जला कर बताए गए मंत्र का जाप करना था एवं चढ़ाए गए प्रसाद को कम से कम 5 या 7 चिडि़यों को खिलाना था. इतने सारे टोटके अथवा मंत्र जाप से राहु की बुरी दृष्टि का तो पता नहीं लेकिन इन सभी विधिविधान को नियम एवं निष्ठापूर्वक करने के बाद जब नीलू औफिस देरी से पहुंचती तो बौस की कोप दृष्टि का शिकार अवश्य होती.

जिस प्रैगनैंसी की खबर को पा कर उस का मन आह्लादित हो उठा था, उस हर्षोल्लास की जगह अब डर एवं चिंता ने ले ली थी. नीलू एवं उस के पति गौरव के पहली बार मांबाप बनने की खुशी पर राहु नाम के इस अज्ञात दुश्मन ने अपने खौफ एवं आतंक का चाबुक लगा दिया था.

बैंगलुरु के शोभा डुप्लैक्स अपार्टमैंट की निचली मंजिल पर नीलू अपने पति गौरव के साथ पिछले साल ही रहने आई थी. अपार्टमैंट की ऊपरी मंजिल पर अपार्टमैंट की अकेली मालकिन सरला आंटी अकेली रहती है.

मकानमालकिन सरला आंटी, नीलू एवं उस के पति गौरव पर अपनी सगी संतान की तरह प्यार और अधिकार रखती हैं क्योंकि सरला आंटी का अपनी कोई संतान नहीं है. नीलू एवं गौरव भी सरला आंटी को पूरी इज्जत और सम्मान देते हैं एवं बदले में सरला आंटी भी उन पर अपने बच्चों जैसा प्यार लुटाती हैं.

आज नीलू की थोड़ी सी भी इच्छा मंत्र जाप करने की नहीं थी, फिर भी जैसेतैसे उस ने मंत्र जाप तो कर लिए लेकिन नियम अनुसार उस ने जैसे ही आरती के लिए कपूर एवं अगरबत्ती जलाई, उस के गंध एवं धुएं से उस का जी मिचलाने लगा. वह कुछ देर के लिए कमरे से निकल कर बाहर बालकनी में आ गई है ताकि वहां की फ्रैश हवा में उसे कुछ बेहतर महसूस हो. बाहर आ कर उस ने अपने चारों ओर दृष्टि दौड़ाई. आज उसे एक भी चिडि़या नजर नहीं आ रही थी. कुछ देर तक उस की दृष्टि यहांवहां दौड़ती रही फिर वह आकाश की ओर देखने लगी. आकाश में  इस वक्त छोटेछोटे बादल के टुकड़े आपस में अठखेलियां कर रहे थे. बादल के ये टुकड़े कभी एक जगह एकत्रित हो जाते तो कभी अलगअलग हो कर नीले आकाश में कहीं गुम हो जाते. बादलों के इसी क्रीडा को देखती हुई नीलू कुछ पलों के लिए खो सी गई.

तभी उस के कानों में गौरव की आवाज गूंजी, ‘‘पूजा अधूरी ही छोड़ दी.’’

‘‘नहीं, वह बस. आरती करनी रह गई है. मु?ा से कपूर की गंध बरदाश्त नहीं हो रही थी. इसीलिए बाहर आ गई,’’ नीलू ने बालकनी से ही उत्तर दिया.

‘‘इतने दिनों से तुम्हें  इस तरह की कोई समस्या नहीं थी. अब अचानक तुम्हें कपूर के गंध अच्छे नहीं लग रही.’’

‘‘कपूर ही नहीं अगरबत्ती की गंध से भी मेरा जी मिचल रहा है,’’ नीलू ने अपनी परेशानी सम?ाने की कोशिश की.

‘‘कपूर ही तो है, थोड़ी देर के लिए बरदाश्त कर लो, कुछ दिन की ही तो बात है. आंटी की बात मान कर अब तक जैसे करती आई हो, थोड़े दिन और कर लेने से क्या फर्क पड़ता है?’’

गौरव की जिद करने पर नीलू बालकनी से अंदर आ गई. बालकनी के खुलने के साथ ही हवा का एक तेज ?ांका पूजा के पास रखे दीपक से टकराया और वह बुझ गया.

‘‘अपशगुन, अमंगल,’’ पीछे से सरला  आंटी की तेज आवाज कमरे में गूंज गई.

नीलू विस्मित सी सरला आंटी की ओर देखने लगी.

एक पल के लिए नीलू की इच्छा हुई कि वह आंटी से कह दे, ‘‘अब उस से यह सब नहीं होता. ये सब टोनेटोटके कर पाना अब उस के वश  की बात नहीं… लेकिन वह कुछ भी न कह पाने की विवशता में खुद को जकड़ा हुआ महसूस करती रही. आने वाले बच्चे के शुभअशुभ का डर अब उस के दिमाग पर भी हावी हो गया था.

आंटी की बातें सुन कर गौरव का चेहरा भी सहमा सा दयनीय हो गया, ‘‘पूजा खंडित हो गई. दीए का इस तरह बुझ जाना अशुभ का संकेत है, पूजा खंडित हो गई. इस के काफी बुरे परिणाम हो सकते हैं,’’ सरला आंटी बारबार एक ही वाक्य दोहराए जा रही थी.

नीलू को कुछ भी सम?ा में नहीं आ रहा था. दिग्भ्रांत सी खड़ी नीलू सरला आंटी का चेहरा देखे जा रही थी.

घबराई हुई आंटी ने पंडितजी को फोन लगा दिया, ‘‘हूं. हां… हां… अच्छा ठीक है’’ आदि शब्दों के साथसाथ आंटी के चेहरे का भाव बनता और बिगड़ जाता, ‘‘जी.. हां ठीक… करने के लिए समझा देंगे. ठीक है, आज ही यह उपाय करवा देंगे… जी, धन्यवाद रखती हूं,’’ और आंटी ने एक ?ाटके में फोन कट कर दिया.

पंडितजी से बात हो जाने के बाद आंटी की आंखें जुगनू सी चमक उठी, ‘‘नीलू, तुम चिंता मत करो, जो कुछ भी तुम से भूलचूक हो गई है उस का प्रायश्चित्त एवं ग्रहों की दशा सुधारने के लिए पंडितजी ने बहुत ही अच्छा उपाय बता दिया है. यह उपाय तुम्हें आज ही करना होगा…’’ कहती हुई आंटी नीलू को अपने साथ ले कर अपार्टमैंट के बाहर आ खड़ी हुईं.

आंटी के साथ चलती हुई नीलू ने अपनी कलाई घड़ी पर नजर दौड़ाई.  सुबह के 8:30 बज चुके थे. कहां तो उस ने सोचा था आज औफिस जल्दी पहुंच कर इस महीने की रिपोर्ट तैयार करने का काम पूरा कर लेगी. ग्रहों को सुधारने के चक्कर में उस के औफिस के कामों में गड़बडि़यां होने लगी हैं. डाटा माइनिंग का कार्य भी वह ठीक से नहीं कर पा रही है.

अपार्टमैंट के बाहर सड़क की दूसरी ओर एक छोटा सा पार्क था, आंटी चारों तरफ नजरें घुमाघुमा कर कुछ ढूंढती रहीं. फिर अचानक बोल पड़ीं,’’ अरे वह रहा.’’

नीलू की दृष्टि भी आंटी के निगाहों का पीछा करती हुई एक पीपल के पेड़ पर जा टिकी.

यही वह पेड़ है, जहां तुम्हें यह उपाय करना है. सब से पहले बेलपत्र के पत्तों पर तुम्हें चंदन से कुछ मंत्र लिखने हैं और पंचमुखी दीपक इस पेड़ के नीचे जलाने हैं,’’ आंटी पंडितजी द्वारा बताई गई सारी विधि एकएक कर नीलू को समझती जा रही थीं और नीलू औफिस में होने वाली एक इंपौर्टैंट मीटिंग के लिए सोचसोच कर परेशान हो रहे थी कि आज अगर वह देर से पहुंची तो बौस की डांट तो लगेगी ही, समय पर मीटिंग में शामिल भी नहीं हो सकेगी.

‘‘अरे हां ,एक और बात, आज तुम्हें निर्जला रहना है 24 घंटे के लिए.’’

आंटी की बात पर नीलू जैसे सोते से जागी. अभी तक वह इसे जितना सरल समझ रही थी उतना था नहीं. बहुत ही कठीन पूजा करने के लिए आंटी उस से कह रही थीं. लेकिन सरला आंटी बड़ी ही सरलता से पंडितजी द्वारा बताए गए एकएक विधिविधान को समझ रही थीं.

‘‘बेटा, यह उपाय तुम्हें थोड़ा से कठीन लग रहा होगा. पर तुम्हें ही करना है, तभी इस का लाभ होगा. अपनी  संतान की रक्षा आखिर एक मां को ही  तो करनी होती है,’’ आंटी ने नीलू के माथे को प्यार से सहलाया.

निर्जला व्रत की बात को सुन कर गौरव भी थोड़ा परेशान हो उठा. उस ने नीलू से कहा, ‘‘यदि  मैं तुम्हारी जगह निर्जला रह लूं तो कोई दिक्कत तो नहीं होगी?’’

‘‘नहीं गौरव, तुम नहीं कर सकते. यह व्रत आंटी ने सिर्फ मुझे ही रखने के लिए कहा है. छोड़ो, जाने दो, तुम चिंता मत करो, एक दिन की ही तो बात है, क्या फर्क पड़ता है. थोड़ी सी भूख और प्यास ही तो बरदाश्त करनी है, मैं कर लूंगी,’’ नीलू ने जब दृढ़ता से कहा तो गौरव ने भी चैन की सांस ली.

‘‘फिर तुम औफिस से आज के लिए छुट्टी क्यों नहीं ले लेती?’’ गौरव ने सुझाव दिया.

‘‘छुट्टी नहीं ले सकती. आज ही रिपोर्ट सबमिट करनी है, एक इंपौर्टैंट मीटिंग भी है. नहीं,  मैं छुट्टी लेने का सोच भी नहीं सकती,’’ नीलू ने अपनी विवशता दिखाने की कोशिश की.

आंटी के द्वारा बताए गए विधिविधान को पूरा करने में नीलू को काफी समय लग गया. आज पहले से भी अधिक देर से औफिस पहुंची, रास्ते में उस ने अपने मोबाइल पर कौल्स चैक कीं. औफिस से बहुत सारी कौल्स आई थीं.

फोन साइलैंट मोड में होने के कारण उसे पता ही नहीं चला.

औफिस पहुंचते ही चपरासी ने उसे बौस का हुक्म सुना दिया. उसे तुरंत ही बौस ने अपने कैबिन में बुलाया था.

नीलू को आज बौस से काफी डांट खानी पड़ी. डाटा माइनिंग के कार्य में उस से काफी त्रुटियां हुई थीं, जिन के कारण पिछले कुछ महीनो में कंपनी का काफी नुकसान हुआ था. बौस ने उसे अगली मीटिंग में रिपोर्ट पेश करने के लिए कहा. इस महीने की रिपोर्ट उस ने अभी तक तैयार नहीं की थी, इस के लिए भी उसे काफी डांट खानी पड़ी.

बौस के कैबिन से निकल कर नीलू वापस अपने सीट पर आ गई. एक तो काम का प्रैशर दूसरे उस ने पानी का एक घूंट भी नहीं पीया था. अत्यधिक तनाव एवं भूखप्यास के बीच नीलू रिपोर्ट तैयार करने में लग गई.

यह रिपोर्ट उसे आज ही होनी वाली मीटिंग से पहले तैयार करनी थी. जैसेतैसे उस ने रिपोर्ट तैयार की. मीटिंग के लिए हौल तक पहुंची ही थी कि उस की आंखों के आगे अंधेरा छा गया. गश खा कर वह जमीन पर धड़ाम से गिर पड़ी. उस की तबीयत बिगड़ने की खबर गौरव तक पहुंचा दी गई. घबराया हुआ गौरव अस्पताल पहुंचा. अस्पताल में नीलू को बैड पर लिटाया गया था. किंतु डाक्टर अभी तक नहीं पहुंची थी.

‘‘सर, प्लीज आप एक जगह बैठ जाइए,’’ बेचैनी में गौरव को यहां से वहां टहलते देख कर नर्स ने उसे एक जगह बैठे रहने का निर्देश दिया, ‘‘डाक्टर से फोन पर बात हो गई है, वे बस पहुंचने ही वाली हैं.’’

‘‘पिछले 1 घंटे से आप यही बात कह रही हैं, मजाक बना कर रखा हुआ है,’’ गौरव ने अपनी सारी बेचैनी, डर, घबराहट, सभी कुछ एकसाथ नर्स पर उतार फेंका, ‘‘आप मेरी बात डाक्टर से करवाओ इट्स इमरजैंसी.’’

‘‘प्लीज आप कोऔर्डिनेटर से बात कीजिए’’ नर्स ने एक बार फिर गौरव से शांति बनाए रखने की अपील करते हुए कहा, ‘‘डाक्टर अभी फोन नहीं उठा रही हैं. ड्राइव कर रही होंगी… शायद रास्ते में होगी.’’

कुछ ही देर में डाक्टर आ गईं. नीलू को ग्लूकोस चढ़ाया गया. कुछ समय के लिए औब्जर्वेशन में रखने के बाद डाक्टर की सख्त हिदायत एवं जरूरी दवाइयों के साथ उसे अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया. नीलू को कंप्लीट बैड रैस्ट लेने की सलाह दे कर डाक्टर ने उसे घर ले जाने की अनुमति दे दी.

घर पहुंचने के बाद नीलू को अपने मोबाइल पर एक मेल प्राप्त हुआ जोकि उस के औफिस से था.

बारबार औफिस की तरफ से दी जाने वाली चेतावनी के बाद भी अनियमितता एवं उस के काम में काफी त्रुटियां पाई गईं जिस से कंपनी को भारी नुकसान उठाना पड़ा है. अत: उसे नौकरी से बरखास्त किया जाता है.

मेल पढ़ कर नीलू काफी तनावग्रस्त हो गई. दुखी मन से गौरव भी उस के पास बैठा हुआ था. तभी सरला आंटी भी उस का हाल जानने उस के पास पहुंचीं, ‘‘बेटा पंडितजी का तुम्हें धन्यवाद कहना चाहिए, उन के बताए हुए व्रत की वजह से ही आज जच्चा और बच्चा सहीसलामत घर वापस आ गया, बच्चा खतरे से बाहर है,’’ कह आंटी लाल रंग के धागे में बंधे एक ताबीज को नीलू को बांधने लगीं.

‘‘आंटी यह धागा मुझे मत बांधिए. प्लीज, मैं आप के आगे हाथ जोड़ती हूं, अब बस कीजिए,’’ नीलू ने आंटी को धागा बांधने से मना कर दिया. उस की आवाज में थोड़ी सख्ती थी.

‘‘आंटी ताबीज ही तो बांध रही हैं. एक धागा ही तो है, बांध लेने दो उन्हें, क्या फर्क पड़ता है?’’ गौरव ने नीलू को समझने की कोशिश की.

‘‘क्या सच में गौरव अब भी तुम यही कहोगे कि क्या फर्क पड़ता है. फर्क पड़ता है गौरव, हां, फर्क पड़ता है,’’ नीलू गुस्से से चीख पड़ी. अत्यंत गुस्से में नीलू ने धागे को तोड़ कर फेंक दिया. ताबीज हवा में उछाल खाता हुआ कमरे एवं बालकनी के बीच लगे कांच के पार्टीशन से जा टकराया. कांच के पार्टीशन के दूसरी तरफ कीटपतंगे कांच से टकराटकरा कर नीचे गिर रहे थे. कमरे के अंदर जल रहे बल्ब की रोशनी के प्रति आकर्षित ये कीटपतंगे अपने एवं रोशनी के बीच खड़ी उस कांच की दीवार को देख पाने में असमर्थ थे.

नीलू खामोशी से कांच की दीवार से टकरा कर जमीन पर गिरते उन कीटपतंगों को देखने लगी.

Family Stories in Hindi : जौइंट लिविंग

Family Stories in Hindi : नूपुर बालकनी में बैठी डूबते सूरज को देख रही थी. उस के घुंघराले बाल हवा में फरफर उड़ रहे थे. उसे लग रहा था कि उस का जीवन शून्य में डूबता जा रहा है. इस सूरज की ही तरह. तभी पीछे से आरना और ओजसी आ कर खड़ी हो गई थीं. नूपुर के बालों को पोनीटेल में बांधते हुए बड़ी बेटी आरना बोली, ‘‘क्या सोच रही हो मम्मी?’’

नूपुर डूबती आवाज में बोली, ‘‘तुम्हारे पापा ने डाइवोर्स देने के लिए मना कर दिया है.’’

छोटी बेटी ओजसी मुंह फुलाते हुए बोली, ‘‘वह क्यों भला?’’

नूपुर पनीली आंखों से बोली, ‘‘बेटा, तुम्हारे पापा के हिसाब से मैं तुम लोगों की ठीक से देखभाल नहीं कर पाऊंगी.’’

आरना गुस्से में बोली, ‘‘हां वे तो हमारी बहुत अच्छे से देखभाल करते हैं न. आज तक उन्हें यह भी नहीं पता कि हम किस क्लास में पढ़ते हैं. मम्मी, नाना, नानी ने क्या देख कर आप की शादी उन के साथ कर दी थी.’’

नूपुर बिना कोई जवाब दिए रसोई की तरफ चल दी.

ओजसी, आरना से बोली, ‘‘दीदी, क्या अब मम्मी और सक्षम अंकल की शादी नहीं होगी?’’

आरना बोली, ‘‘अरे मम्मी और सक्षम अंकल की शादी हो या न हो पर हम उन के साथ ही रहेंगे.’’

तभी गाड़ी की आवाज आई. सक्षम हमेशा की तरह सीटी बजाते हुए घर में घुसा.

आरना और ओजसी को उदास बैठा देख कर बोला, ‘‘आज मेरी तोता, मैना की जोड़ी शांत कैसे बैठी है?’’

आरना बोली, ‘‘अंकल, पापा ने मम्मी को डाइवोर्स देने से मना कर दिया है.’’

सक्षम के चेहरे पर चिंता की लकीरें खिंच गईं पर उन्हें ?ाटकते हुए बोला, ‘‘तो क्या हुआ बेटा, हम लोग फिर भी साथ ही रहेंगे. तुम दोनों अपनी पढ़ाई पर ध्यान लगाओ.’’

नूपुर ने सक्षम को कौफी दी और फिर बोली, ‘‘कब तक इंतजार करते रहोगे? सक्षम मेरे और बच्चों के लिए क्यों अपनी जिंदगी के अनमोल पल बरबाद कर रहे हो?’’

सक्षम बोला, ‘‘और अगर मैं कहूं तुम्हारे और बच्चों के साथ ही मु?ो ये अनमोल पल मुहैया होते हैं तो?’’

आरना और ओजसी भी वहीं आ कर बैठ गईं.

सक्षम फिर सब को बाहर डिनर पर ले गया. जब वापस आए तो सब के चेहरे पर मुसकान थिरक रही थी. अगले दिन रविवार है यह बात उन की खुशी को दोगुना कर रहा था.

आरना अचानक बोली, ‘‘अंकल, आप और मम्मी अगर एकसाथ जा कर नाना, नानी और दादादादी से बात करो तो वे लोग शायद पापा को समझ सकें.’’

नूपुर बोली, ‘‘अरे आरना पागल हैं क्या?’’

‘‘लोग क्या कहेंगे?’’

आरना गुस्से में बोली, ‘‘लोग कुछ नहीं कहेंगे मम्मी, आप को बस अपने परिवार से डर लगता है.’’

सक्षम बोला, ‘‘अरे आरना गुस्सा मत

करो बेटा.’’

‘‘नूपुर और मैं उस युग में जन्मे और बड़े हुए हैं जहां पर अपनी खुशी से ज्यादा मम्मीपापा की खुशी का ध्यान रखते हैं.’’

‘‘पर नूपुर तुम्हें क्या लगता है, मैं तुम्हारी सुनने वाला हूं. आज रात जी भर कर बातें करेंगे और इस समस्या का हल निकालने की कोशिश करेंगे.’’

नूपुर भी अंदर से यही चाहती थी. जिंदगी का बो?ा अकेले ढोतेढोते वह थक गई थी. पर

40 वर्ष में आज तक क्या उस ने अपनी मम्मी के खिलाफ जा कर कुछ किया था जो आज कर पाती.

आरना और ओजसी कपड़े बदलने चली गईं सक्षम चुपके से रसोई में आया और नूपुर को बांहों में भरते हुए बोला, ‘‘चोरीचोरी, चुपकेचुपके जो मजा है वह शादी के बाद बीवी के साथ कहां है? अच्छा है तुम्हारा पति तुम्हें तलाक नहीं दे रहा है, हम दोनों सदा प्रेमी ही रहेंगे.’’

नूपुर चिढ़ते हुए बोली, ‘‘हां, हर मर्द जिम्मेदारी से बचना ही चाहता है.’’

‘‘फ्री सैक्स, कंपेनियनशिप, फन ऐंड जीरो रिस्पौंसिबिलिटी ये सब तुम्हें जब इस रिश्ते से मिल ही रहा है तो क्यों शादी के लिए उत्सुक होंगे?’’

सक्षम नूपुर की बात से आहत हो उठा और नूपुर को अपने बंधन से आजाद करते हुए बोला, ‘‘कभी आज तक तुम्हारी मरजी के बिना कुछ किया है जो अब करूंगा?’’

उस के बाद सक्षम बाहर कमरे में जा कर बैठ गया. देर रात तक बातें होती रहीं. अपनी दोनों बेटियों को खुश देख कर नूपुर को लगता था कि सक्षम का साथ उसे खुशी और सुरक्षा दोनों देता जो उस का अपना पति प्रतीक कभी नहीं दे पाया.

नूपुर बस 22 वर्ष की थी जब उस का विवाह प्रतीक से हुआ था. नूपुर के लिए उस उम्र में विवाह का मतलब था कपड़े, मेकअप, गहने और डिनर. विवाह के बाद उसे ये सब भरपूर मिला. 1 वर्ष के भीतर ही आरना और उस के

2 वर्ष बाद ओजसी हो गई थी. 25 वर्ष में जब नूपुर के साथ की लड़कियों की शादी भी नहीं हुई थी या वे लोग रोमांस में व्यस्त थीं, नूपुर 2 बच्चों की मां बन गई थी. कम उम्र और अधिक जिम्मेदारी के कारण नूपुर पूरी तरह से अपनी बच्चियों में डूब गई थी. उसे होश तब आया जब उस के घर पर लेनदारों की भीड़ लग गई. प्रतीक की आमदनी अट्ठन्नी थी परंतु शौक राजा के थे. नूपुर ने भी जल्द ही घर पर ट्यूशन आरंभ कर दी और जैसे ही छोटी ओजसी ने स्कूल में कदम रखा, उस ने भी एक स्कूल में नौकरी करनी शुरू कर दी. नूपुर की नौकरी के बाद प्रतीक और अधिक गैरजिम्मेदार हो गया.

भावनात्मक, आर्थिक और शारीरक रूप से नूपुर शून्य हो गई थी. माह के अंत तक नूपुर का बैंक अकाउंट खाली हो जाता था. मगर घर की छत बनी रहे और बेटियों पर पिता का साया, यह सोच कर नूपुर सम?ाता करती चली गई. मगर हद तो तब हो गई जब नूपुर के मेहनत के पैसों पर सक्षम रंगरलियां मनाने लगा. जब नूपुर ने यह बात अपनी सब से खास सहेली जयति को बताई तो उस ने नूपुर को आढ़े हाथों लिया, ‘‘कैसी औरत हो यार तुम, जिस ने अपने जिंदगी का कंट्रोल पति को दे रखा है.’’

नूपुर सकपकाते हुए बोली, ‘‘तो क्या करूं, कैसे बच्चों को ले कर अकेली रहूं?’’

जयति बोली, ‘‘हमारे  फ्लैट में एक बैडरूम खाली है, तुम और आरना, ओजसी आराम से रह लोगी.’’

नूपुर को जयति पर विश्वास था और उसे पता था कि वह उस का अहित कभी नहीं चाहेगी. इसलिए उसी शनिवार को नूपुर ने अपना और दोनों बेटियों का सामान पैक कर के जब प्रतीक को अवगत कराया तो वह लापरवाही से बोला, ‘‘यह तुम्हारी उस आजाद खयाल सहेली जयति की संगत का नतीजा है. खुद तो अपना घर बसा नहीं और दूसरों का भी तोड़ने पर आमादा है. खैर, अगर तुम्हें लगता है कि मैं एक लापरवाह पिता और पति हूं तो शौक से जा सकती हो.’’

नूपुर को महसूस हुआ जैसे प्रतीक ने राहत की सांस ली हो.

नूपुर आरना और ओजसी को ले कर तो आ गई पर शुरुआत में नूपुर का उस फ्लैट में बिलकुल मन नहीं लगा. वहां पर चारों बैडरूम में अलगअलग लोग रहते थे.एक बैडरूम में जयति, दूसरे में उर्वशी, एक में नूपुर और एक में सक्षम रहता था.

नूपुर जयति से बोली, ‘‘जयति यह अरेंजमैंट कुछ अजीब है.’’

जयति बोली, ‘‘यार तुम्हें 10 हजार ही तो देने पड़ रहे हैं और यह जगह कितनी अच्छी है.’’

‘‘सक्षम और उर्वशी बहुत समझदार और सुलझे हुए लोग हैं, तुम्हें कोई दिक्कत नहीं आएगी.’’

जयति नूपुर की बहुत अच्छी दोस्त थी परंतु उस की शामें अकसर अपने बौयफ्रैंड के साथ व्यस्त रहती थीं. उर्वशी सुबह निकल कर रात में ही आती थी. ऐसे में धीरेधीरे सक्षम नूपुर, आरना और ओजसी की जिंदगी का हिस्सा बन गया.

सक्षम 42 वर्ष का था. पहली पत्नी के साथ उस का अनुभव बेहद खराब था, इसलिए तलाक के 10 वर्ष बाद भी उस ने विवाह नहीं किया था. उसे बच्चे बेहद प्रिय थे. आरना और ओजसी में वह अपने उन अजन्मे बच्चों की छवि देखता था जो उस की बीवी ने अपनी जिद के कारण कोख में ही मार दिए थे.

सक्षम अंकल आरना और ओजसी के लिए हमेशा उन की जिद पूरा करने के लिए तत्पर रहते थे. नूपुर भी धीरेधीरे न चाहते हुए भी सक्षम की तरफ खिंचती गई. जो काम प्रतीक को उन के लिए करने होते थे उन्हें सक्षम कर देता था.

नूपुर और सक्षम के रिश्ते में एकदूसरे के लिए इतना सम्मान था कि चाह कर भी कोई उंगली नहीं उठा सकता था.

एक रात को अचानक नूपुर ने सक्षम को भरी हुई आवाज में बताया कि प्रतीक ने उसके अकाउंट से सारे पैसे निकाल लिए हैं और उस के पास बच्चों की फीस के लिए भी पैसे नहीं बचे हैं. सक्षम ने उस रात तो नूपुर के अकाउंट में पैसे डाल दिए परंतु अगले दिन उस ने नूपुर को आड़े हाथों ले लिया, ‘‘पति से अलग रहने से नहीं परंतु जिंदगी की डोर अपनी हाथों में लेने पर तुम इंडिपैंडैंट कहलाओगी.’’

सक्षम के साहस देने पर ही नूपुर ने अपना सैलरी अकाउंट अलग खाते में खोल दिया. जिंदगी में थोड़ी असुविधा थी पर सुकून था.

अब सक्षम अकसर शाम को नूपुर और बच्चों के साथ समय बिताने आने लगा था. आरना, ओजसी, नूपुर और सक्षम के वे पल बेहद खूबसूरत होते थे. अपने और नूपुर के निजी पलों में भी सक्षम हमेशा ध्यान रखता था कि उस की किसी भी प्रकार की बात से दोनों बेटियां आहत न हों.

नूपुर के परिवार और ससुराल वालों को नूपुर के अलग रहने का फैसला सम?ा नहीं आ रहा था और वह भी ऐसे अजनबियों के साथ. मगर नूपुर को अब इस जौइंट लिविंग में मजा आने लगा था. जहां पर सक्षम का प्यार, जयति का बिंदासपन और उर्वशी का अपनापन था. माह में एक बार सारे सदस्य मिल कर डिनर बनाते थे और अपनी जिंदगी के खट्टेमीठे तजरबे साझ करते थे.

मगर नूपुर की मम्मी हर रोज नूपुर को फोन कर के आगाह करती कि उस ने जल्दबाजी में गलत फैसला ले लिया है. बच्चों को मां और पिता दोनों की जरूरत होती है.

वहीं नूपुर की सास के शब्दों में नूपुर ने खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारी है. पति का घर पर होना ही काफी है. देरसवेर प्रतीक को अपनी जिम्मेदारियों का एहसास अवश्य हो जाता.

फिर एक दिन जब रविवार को नूपुर की मां आईं तो सक्षम को नूपुर के साथ हंसतेबोलते हुए देख कर उन का माथा ठनक गया और जयति के खुलेपन को देख कर उन का खून खौल उठा. वहीं उर्वशी उन्हें बेहद चालाक लगी.

नूपुर को समझते हुए मम्मी बोली, ‘‘बेटा, तुम्हें क्या लगता है तुम्हारा इस तरह से रहना क्या ठीक है?’’

‘‘तुम्हें अपनी बेटियों की कुछ फिक्र है या नहीं,’’ नूपुर ने अपनी मां के सामने जीवन में पहली बार जबान खोली, ‘‘मम्मी, मुझे यहां अपने घर से ज्यादा अपनापन लगता है.’’

अगले हफ्ते नूपुर का पूरा परिवार वहां आया था. नूपुर को सब ऊंचनीच समझ रहे थे. नूपुर जैसे ही टूट कर अपने परिवार के सामने ?ाकने वाली थी, छोटी बेटी ओजसी आगे बढ़ कर बोली, ‘‘नानी, मामा यहां पर सब लोग हमारे अपने हैं और सक्षम अंकल तो हमारे लिए वह करते हैं जो आज तक पापा ने नहीं किया.’’

नूपुर के भाई और मां के अनुसार जब उन का ही सिक्का खोटा है तो प्रतीक को क्या कह सकते हैं और किस मुंह से.

उधर जब सक्षम नाम की सुगबुगाहट प्रतीक के कानों में पड़ी तो उस का पुरुषत्व ललकार उठा. जब प्यार और भावनाओं से नूपुर को अपने काबू में नहीं कर सका तो प्रतीक ने निश्चय कर लिया कि वह अपनी बेटियों को अपने साथ ले कर जाएगा. नूपुर ने प्रतीक से साफ कह दिया था कि वह उस के साथ नहीं रह सकती है. वह बिना किसी शर्त के उसे डिवोर्स देना चाहती है. मगर प्रतीक का पतिमान इतना आहत हो गया कि उस ने डिवोर्स देने के लिए मना कर दिया था.

इसी बीच उर्वशी का ट्रांसफर नागपुर हो गया था. जयति भी अपनी पसंद के बंधन में बंध गई थी और पास ही में दूसरे फ्लैट में शिफ्ट हो गई थी. नूपुर को घरपरिवार ने बदचलन औरत करार दिया था. समाज के अनुसार नूपुर अपनी बेटियों को गलत रास्ते पर धकेल रही है.

आज ऐसी ही एक शाम थी जब नूपुर कोर्ट के कागज मिलने पर उदास बैठी थी. उन कागजों में प्रतीक के वकील ने नूपुर के चरित्र की धज्जियां उड़ा रखी थीं. साथ ही साथ यह धमकी भी थी कि वह अपने चालचलन के कारण बेटियों और उन के भविष्य के लिए खतरा है.

नूपुर की जिंदगी एक ऐसे घुमावदार मोड़ पर खड़ी हो गई थी, वहां से आगे उसे किस रास्ते पर चलना है उसे खुद नहीं मालूम था. क्या उन का अब इस तरह से सक्षम के साथ एक फ्लैट में रहना ठीक रहेगा? जबकि अब जयति और उर्वशी नहीं है. बहुत सोचविचार कर नूपुर ने दबी जबान में सक्षम से कहा, ‘‘मैं घर वापस लौटना चाहती हूं. तुम जिंदगी में कोई और साथी तलाश लो. मेरा अपना परिवार, प्रतीक का परिवार और प्रतीक भी कभी भी यह होने नहीं देंगे और बिना शादी के अकेले मेरे और तुम्हारा साथ रहने को क्या कहते हैं यह हम भलीभांति जानते हैं. फिर बात केवल मेरी नहीं मेरी बेटियों की भी है. मेरा फैसला उन के भविष्य को अंधकार के गर्त में डाल सकता है.’’

सक्षम उदास हंसी से बोला, ‘‘तुम और वे लोग ही मेरा परिवार हो. हां, परिवार के कानून की मुहर अब भी प्रतीक के पास ही है. पर मैं तुम्हारे आरना और ओजसी के साथ हमेशा खड़ा रहूंगा. अगर नया साथी ढूंढ़ना होता तो मैं बहुत पहले तुम्हारी जिंदगी से चला गया होता.’’

नूपुर ने वापस आ कर अपने निर्णय से आरना और ओजसी को अवगत कराया. दोनों बेटियों को पास बैठा कर नूपुर बोली, ‘‘बेटी, तुम्हारी मां एक कमजोर औरत है. अपनी खुशी को मैं ने कभी प्राथमिकता नहीं दी थी और इस का नतीजा यह निकला कि मैं अंदर ही अंदर खोखली हो गई हूं. तुम अपने हिसाब से और अपनी खुशी के लिए जिंदगी जीना. आप की खुशी आप को अंदर से हिम्मत प्रदान करती है.’’

आरना बोली, ‘‘यह हमारा घर है जहां पर हम सब साथ रहेंगे.’’

नूपुर बोली, ‘‘मगर पहले जयति और उर्वशी भी थे, अब हम ऐसे रहेंगे तो लोग क्या कहेंगे?’’

ओजसी बोली, ‘‘उफ मम्मी, अपनी खुशी का कभी तो सोच लिया करो.’’

तभी बगल के कमरे से सक्षम बाहर आया और बोला, ‘‘यह हमारा घर है. देरसवेर हमारे रिश्ते पर समाज और कानून की मुहर भी लग जाएगी.’’

नूपुर हकलाते हुए बोली, ‘‘यह क्या कह रहे हो सक्षम, हम बिना शादी के कैसे साथ रह सकते हैं?’’

आरना बोली, ‘‘मम्मी, क्या जौइंट फैमिली में सब लोग साथ नहीं रहते हैं?’’

‘‘और आप ही तो कहती थीं कि दूर के रिश्तेदार भी जौइंट फैमिली में आराम से खप जाते हैं. यह भी तो हमारी जौइंट लिविंग है. इस फ्लैट का किराया आधाआधा बांट लेंगे.’’

बीच मे ही सक्षम बोल उठा, ‘‘सुख दोगुना कर लेंगे और दुख आधा कर लेंगे.’’

नूपुर तब भी डरते हुए बोली, ‘‘मगर लोग क्या सोचेंगे?’’

आरना दृढ़ता से बोली, ‘‘मम्मी, लोग कुछ भी सोचे मगर यह तो हमें पता है न कि समान विचारधारा के वयस्क लोग अपनी खुशी के लिए एकसाथ रह सकते है. इस के लिए हमें किसी की इजाजत की जरूरत नहीं है. यह हमारा लिव इन नहीं बल्कि जौइंट लिविंग है.

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