Family Hindi Story : अभी सरला आंटी सीढि़यों से उतर कर नीचे आएंगी, आते ही पूछेंगी, ‘‘चिडि़यों को प्रसाद खिलाया?’’
कभीकभी नीलू का दिल करता कि झूठ कह दे हां खिला दिया… 2 घंटे के पूजापाठ एवं मंत्र जाप के बाद प्रसाद खिलाने के लिए चिडि़यों की प्रतीक्षा में उस का काफी समय नष्ट हो जाता था. अकसर वह काफी विलंब से औफिस पहुंचती. परंतु नीलू चाह कर भी सरला आंटी से झूठ नहीं कह सकती थी. आंटी तुरंत उस का झूठ ताड़ लेंगी. उन की तेज नजर फौरन उस के झूठ को पकड़ लेगी. सरला आंटी किसी सीबीआई के जांच अधिकारी की तरह उस से पूछताछ करेंगी और झूठ पकड़ने में उन्हें जरा सी भी देर नहीं लगेगी.
आते ही सरला आंटी पूछेंगी, ‘‘आज चिडि़यों की चहचहाट सुनाई क्यों नहीं पड़ी? चिडि़यों को प्रसाद में क्या खिलाया? आज कितनी चिडि़यां थीं?’’ अब भला, चिडि़यों की गिनती कौन करे. इतने सारे सवाल पूछ लेने के बाद भी वह सीधे पूजा के स्थान पर जाएंगी, आरती के थाल को छू कर देखेंगी, अगरबत्ती एवं कपूर की गंध को सूंघ कर ही वे सारी सचाई पता कर लेंगी.
चिडि़यों को प्रसाद खिलाने का सिलसिला पिछले कुछ महीनों से प्रतिदिन नियमपूर्वक चलता आ रहा है, जब से नीलू की प्रैगनैंसी की खबर सरला आंटी के कानों तक पहुंची थी तभी से.
आंटी को नीलू की प्रैगनैंसी की खबर जैसे ही मिली, उन्होंने अपने घरेलू पंडितजी को बुलाया. पंडितजी ने नीलू की जन्मपत्री मंगवाई और मन में ही कुछ गुणाभाग कर के नीलू एवं उस के गर्भ में पल रहे बच्चे के ऊपर राहु की बुरी दृष्टि के होने का पता लगा लिया एवं साथ के साथ ही इस से बचने का उपाय भी सुझा दिया.
पंडितजी के बताए गए उपाय के अनुसार, नीलू को प्रतिदिन सुबह अपने इष्ट देव की प्रतिमा के आगे दीप, अगरबत्ती, कपूर आदि जला कर बताए गए मंत्र का जाप करना था एवं चढ़ाए गए प्रसाद को कम से कम 5 या 7 चिडि़यों को खिलाना था. इतने सारे टोटके अथवा मंत्र जाप से राहु की बुरी दृष्टि का तो पता नहीं लेकिन इन सभी विधिविधान को नियम एवं निष्ठापूर्वक करने के बाद जब नीलू औफिस देरी से पहुंचती तो बौस की कोप दृष्टि का शिकार अवश्य होती.
जिस प्रैगनैंसी की खबर को पा कर उस का मन आह्लादित हो उठा था, उस हर्षोल्लास की जगह अब डर एवं चिंता ने ले ली थी. नीलू एवं उस के पति गौरव के पहली बार मांबाप बनने की खुशी पर राहु नाम के इस अज्ञात दुश्मन ने अपने खौफ एवं आतंक का चाबुक लगा दिया था.
बैंगलुरु के शोभा डुप्लैक्स अपार्टमैंट की निचली मंजिल पर नीलू अपने पति गौरव के साथ पिछले साल ही रहने आई थी. अपार्टमैंट की ऊपरी मंजिल पर अपार्टमैंट की अकेली मालकिन सरला आंटी अकेली रहती है.
मकानमालकिन सरला आंटी, नीलू एवं उस के पति गौरव पर अपनी सगी संतान की तरह प्यार और अधिकार रखती हैं क्योंकि सरला आंटी का अपनी कोई संतान नहीं है. नीलू एवं गौरव भी सरला आंटी को पूरी इज्जत और सम्मान देते हैं एवं बदले में सरला आंटी भी उन पर अपने बच्चों जैसा प्यार लुटाती हैं.
आज नीलू की थोड़ी सी भी इच्छा मंत्र जाप करने की नहीं थी, फिर भी जैसेतैसे उस ने मंत्र जाप तो कर लिए लेकिन नियम अनुसार उस ने जैसे ही आरती के लिए कपूर एवं अगरबत्ती जलाई, उस के गंध एवं धुएं से उस का जी मिचलाने लगा. वह कुछ देर के लिए कमरे से निकल कर बाहर बालकनी में आ गई है ताकि वहां की फ्रैश हवा में उसे कुछ बेहतर महसूस हो. बाहर आ कर उस ने अपने चारों ओर दृष्टि दौड़ाई. आज उसे एक भी चिडि़या नजर नहीं आ रही थी. कुछ देर तक उस की दृष्टि यहांवहां दौड़ती रही फिर वह आकाश की ओर देखने लगी. आकाश में इस वक्त छोटेछोटे बादल के टुकड़े आपस में अठखेलियां कर रहे थे. बादल के ये टुकड़े कभी एक जगह एकत्रित हो जाते तो कभी अलगअलग हो कर नीले आकाश में कहीं गुम हो जाते. बादलों के इसी क्रीडा को देखती हुई नीलू कुछ पलों के लिए खो सी गई.
तभी उस के कानों में गौरव की आवाज गूंजी, ‘‘पूजा अधूरी ही छोड़ दी.’’
‘‘नहीं, वह बस. आरती करनी रह गई है. मु?ा से कपूर की गंध बरदाश्त नहीं हो रही थी. इसीलिए बाहर आ गई,’’ नीलू ने बालकनी से ही उत्तर दिया.
‘‘इतने दिनों से तुम्हें इस तरह की कोई समस्या नहीं थी. अब अचानक तुम्हें कपूर के गंध अच्छे नहीं लग रही.’’
‘‘कपूर ही नहीं अगरबत्ती की गंध से भी मेरा जी मिचल रहा है,’’ नीलू ने अपनी परेशानी सम?ाने की कोशिश की.
‘‘कपूर ही तो है, थोड़ी देर के लिए बरदाश्त कर लो, कुछ दिन की ही तो बात है. आंटी की बात मान कर अब तक जैसे करती आई हो, थोड़े दिन और कर लेने से क्या फर्क पड़ता है?’’
गौरव की जिद करने पर नीलू बालकनी से अंदर आ गई. बालकनी के खुलने के साथ ही हवा का एक तेज ?ांका पूजा के पास रखे दीपक से टकराया और वह बुझ गया.
‘‘अपशगुन, अमंगल,’’ पीछे से सरला आंटी की तेज आवाज कमरे में गूंज गई.
नीलू विस्मित सी सरला आंटी की ओर देखने लगी.
एक पल के लिए नीलू की इच्छा हुई कि वह आंटी से कह दे, ‘‘अब उस से यह सब नहीं होता. ये सब टोनेटोटके कर पाना अब उस के वश की बात नहीं… लेकिन वह कुछ भी न कह पाने की विवशता में खुद को जकड़ा हुआ महसूस करती रही. आने वाले बच्चे के शुभअशुभ का डर अब उस के दिमाग पर भी हावी हो गया था.
आंटी की बातें सुन कर गौरव का चेहरा भी सहमा सा दयनीय हो गया, ‘‘पूजा खंडित हो गई. दीए का इस तरह बुझ जाना अशुभ का संकेत है, पूजा खंडित हो गई. इस के काफी बुरे परिणाम हो सकते हैं,’’ सरला आंटी बारबार एक ही वाक्य दोहराए जा रही थी.
नीलू को कुछ भी सम?ा में नहीं आ रहा था. दिग्भ्रांत सी खड़ी नीलू सरला आंटी का चेहरा देखे जा रही थी.
घबराई हुई आंटी ने पंडितजी को फोन लगा दिया, ‘‘हूं. हां… हां… अच्छा ठीक है’’ आदि शब्दों के साथसाथ आंटी के चेहरे का भाव बनता और बिगड़ जाता, ‘‘जी.. हां ठीक… करने के लिए समझा देंगे. ठीक है, आज ही यह उपाय करवा देंगे… जी, धन्यवाद रखती हूं,’’ और आंटी ने एक ?ाटके में फोन कट कर दिया.
पंडितजी से बात हो जाने के बाद आंटी की आंखें जुगनू सी चमक उठी, ‘‘नीलू, तुम चिंता मत करो, जो कुछ भी तुम से भूलचूक हो गई है उस का प्रायश्चित्त एवं ग्रहों की दशा सुधारने के लिए पंडितजी ने बहुत ही अच्छा उपाय बता दिया है. यह उपाय तुम्हें आज ही करना होगा…’’ कहती हुई आंटी नीलू को अपने साथ ले कर अपार्टमैंट के बाहर आ खड़ी हुईं.
आंटी के साथ चलती हुई नीलू ने अपनी कलाई घड़ी पर नजर दौड़ाई. सुबह के 8:30 बज चुके थे. कहां तो उस ने सोचा था आज औफिस जल्दी पहुंच कर इस महीने की रिपोर्ट तैयार करने का काम पूरा कर लेगी. ग्रहों को सुधारने के चक्कर में उस के औफिस के कामों में गड़बडि़यां होने लगी हैं. डाटा माइनिंग का कार्य भी वह ठीक से नहीं कर पा रही है.
अपार्टमैंट के बाहर सड़क की दूसरी ओर एक छोटा सा पार्क था, आंटी चारों तरफ नजरें घुमाघुमा कर कुछ ढूंढती रहीं. फिर अचानक बोल पड़ीं,’’ अरे वह रहा.’’
नीलू की दृष्टि भी आंटी के निगाहों का पीछा करती हुई एक पीपल के पेड़ पर जा टिकी.
यही वह पेड़ है, जहां तुम्हें यह उपाय करना है. सब से पहले बेलपत्र के पत्तों पर तुम्हें चंदन से कुछ मंत्र लिखने हैं और पंचमुखी दीपक इस पेड़ के नीचे जलाने हैं,’’ आंटी पंडितजी द्वारा बताई गई सारी विधि एकएक कर नीलू को समझती जा रही थीं और नीलू औफिस में होने वाली एक इंपौर्टैंट मीटिंग के लिए सोचसोच कर परेशान हो रहे थी कि आज अगर वह देर से पहुंची तो बौस की डांट तो लगेगी ही, समय पर मीटिंग में शामिल भी नहीं हो सकेगी.
‘‘अरे हां ,एक और बात, आज तुम्हें निर्जला रहना है 24 घंटे के लिए.’’
आंटी की बात पर नीलू जैसे सोते से जागी. अभी तक वह इसे जितना सरल समझ रही थी उतना था नहीं. बहुत ही कठीन पूजा करने के लिए आंटी उस से कह रही थीं. लेकिन सरला आंटी बड़ी ही सरलता से पंडितजी द्वारा बताए गए एकएक विधिविधान को समझ रही थीं.
‘‘बेटा, यह उपाय तुम्हें थोड़ा से कठीन लग रहा होगा. पर तुम्हें ही करना है, तभी इस का लाभ होगा. अपनी संतान की रक्षा आखिर एक मां को ही तो करनी होती है,’’ आंटी ने नीलू के माथे को प्यार से सहलाया.
निर्जला व्रत की बात को सुन कर गौरव भी थोड़ा परेशान हो उठा. उस ने नीलू से कहा, ‘‘यदि मैं तुम्हारी जगह निर्जला रह लूं तो कोई दिक्कत तो नहीं होगी?’’
‘‘नहीं गौरव, तुम नहीं कर सकते. यह व्रत आंटी ने सिर्फ मुझे ही रखने के लिए कहा है. छोड़ो, जाने दो, तुम चिंता मत करो, एक दिन की ही तो बात है, क्या फर्क पड़ता है. थोड़ी सी भूख और प्यास ही तो बरदाश्त करनी है, मैं कर लूंगी,’’ नीलू ने जब दृढ़ता से कहा तो गौरव ने भी चैन की सांस ली.
‘‘फिर तुम औफिस से आज के लिए छुट्टी क्यों नहीं ले लेती?’’ गौरव ने सुझाव दिया.
‘‘छुट्टी नहीं ले सकती. आज ही रिपोर्ट सबमिट करनी है, एक इंपौर्टैंट मीटिंग भी है. नहीं, मैं छुट्टी लेने का सोच भी नहीं सकती,’’ नीलू ने अपनी विवशता दिखाने की कोशिश की.
आंटी के द्वारा बताए गए विधिविधान को पूरा करने में नीलू को काफी समय लग गया. आज पहले से भी अधिक देर से औफिस पहुंची, रास्ते में उस ने अपने मोबाइल पर कौल्स चैक कीं. औफिस से बहुत सारी कौल्स आई थीं.
फोन साइलैंट मोड में होने के कारण उसे पता ही नहीं चला.
औफिस पहुंचते ही चपरासी ने उसे बौस का हुक्म सुना दिया. उसे तुरंत ही बौस ने अपने कैबिन में बुलाया था.
नीलू को आज बौस से काफी डांट खानी पड़ी. डाटा माइनिंग के कार्य में उस से काफी त्रुटियां हुई थीं, जिन के कारण पिछले कुछ महीनो में कंपनी का काफी नुकसान हुआ था. बौस ने उसे अगली मीटिंग में रिपोर्ट पेश करने के लिए कहा. इस महीने की रिपोर्ट उस ने अभी तक तैयार नहीं की थी, इस के लिए भी उसे काफी डांट खानी पड़ी.
बौस के कैबिन से निकल कर नीलू वापस अपने सीट पर आ गई. एक तो काम का प्रैशर दूसरे उस ने पानी का एक घूंट भी नहीं पीया था. अत्यधिक तनाव एवं भूखप्यास के बीच नीलू रिपोर्ट तैयार करने में लग गई.
यह रिपोर्ट उसे आज ही होनी वाली मीटिंग से पहले तैयार करनी थी. जैसेतैसे उस ने रिपोर्ट तैयार की. मीटिंग के लिए हौल तक पहुंची ही थी कि उस की आंखों के आगे अंधेरा छा गया. गश खा कर वह जमीन पर धड़ाम से गिर पड़ी. उस की तबीयत बिगड़ने की खबर गौरव तक पहुंचा दी गई. घबराया हुआ गौरव अस्पताल पहुंचा. अस्पताल में नीलू को बैड पर लिटाया गया था. किंतु डाक्टर अभी तक नहीं पहुंची थी.
‘‘सर, प्लीज आप एक जगह बैठ जाइए,’’ बेचैनी में गौरव को यहां से वहां टहलते देख कर नर्स ने उसे एक जगह बैठे रहने का निर्देश दिया, ‘‘डाक्टर से फोन पर बात हो गई है, वे बस पहुंचने ही वाली हैं.’’
‘‘पिछले 1 घंटे से आप यही बात कह रही हैं, मजाक बना कर रखा हुआ है,’’ गौरव ने अपनी सारी बेचैनी, डर, घबराहट, सभी कुछ एकसाथ नर्स पर उतार फेंका, ‘‘आप मेरी बात डाक्टर से करवाओ इट्स इमरजैंसी.’’
‘‘प्लीज आप कोऔर्डिनेटर से बात कीजिए’’ नर्स ने एक बार फिर गौरव से शांति बनाए रखने की अपील करते हुए कहा, ‘‘डाक्टर अभी फोन नहीं उठा रही हैं. ड्राइव कर रही होंगी… शायद रास्ते में होगी.’’
कुछ ही देर में डाक्टर आ गईं. नीलू को ग्लूकोस चढ़ाया गया. कुछ समय के लिए औब्जर्वेशन में रखने के बाद डाक्टर की सख्त हिदायत एवं जरूरी दवाइयों के साथ उसे अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया. नीलू को कंप्लीट बैड रैस्ट लेने की सलाह दे कर डाक्टर ने उसे घर ले जाने की अनुमति दे दी.
घर पहुंचने के बाद नीलू को अपने मोबाइल पर एक मेल प्राप्त हुआ जोकि उस के औफिस से था.
बारबार औफिस की तरफ से दी जाने वाली चेतावनी के बाद भी अनियमितता एवं उस के काम में काफी त्रुटियां पाई गईं जिस से कंपनी को भारी नुकसान उठाना पड़ा है. अत: उसे नौकरी से बरखास्त किया जाता है.
मेल पढ़ कर नीलू काफी तनावग्रस्त हो गई. दुखी मन से गौरव भी उस के पास बैठा हुआ था. तभी सरला आंटी भी उस का हाल जानने उस के पास पहुंचीं, ‘‘बेटा पंडितजी का तुम्हें धन्यवाद कहना चाहिए, उन के बताए हुए व्रत की वजह से ही आज जच्चा और बच्चा सहीसलामत घर वापस आ गया, बच्चा खतरे से बाहर है,’’ कह आंटी लाल रंग के धागे में बंधे एक ताबीज को नीलू को बांधने लगीं.
‘‘आंटी यह धागा मुझे मत बांधिए. प्लीज, मैं आप के आगे हाथ जोड़ती हूं, अब बस कीजिए,’’ नीलू ने आंटी को धागा बांधने से मना कर दिया. उस की आवाज में थोड़ी सख्ती थी.
‘‘आंटी ताबीज ही तो बांध रही हैं. एक धागा ही तो है, बांध लेने दो उन्हें, क्या फर्क पड़ता है?’’ गौरव ने नीलू को समझने की कोशिश की.
‘‘क्या सच में गौरव अब भी तुम यही कहोगे कि क्या फर्क पड़ता है. फर्क पड़ता है गौरव, हां, फर्क पड़ता है,’’ नीलू गुस्से से चीख पड़ी. अत्यंत गुस्से में नीलू ने धागे को तोड़ कर फेंक दिया. ताबीज हवा में उछाल खाता हुआ कमरे एवं बालकनी के बीच लगे कांच के पार्टीशन से जा टकराया. कांच के पार्टीशन के दूसरी तरफ कीटपतंगे कांच से टकराटकरा कर नीचे गिर रहे थे. कमरे के अंदर जल रहे बल्ब की रोशनी के प्रति आकर्षित ये कीटपतंगे अपने एवं रोशनी के बीच खड़ी उस कांच की दीवार को देख पाने में असमर्थ थे.
नीलू खामोशी से कांच की दीवार से टकरा कर जमीन पर गिरते उन कीटपतंगों को देखने लगी.