शादी में कितनी हो दखलंदाजी

शादी के लिए लड़का या लड़की पसंद करते समय उस के भाई और बहन की सलाह लेना भी जरूरी होने लगा है. शादी के बाद आपस में तालमेल बैठाना आसान हो जाए. हमउम्र होने के कारण इन के बीच दोस्ती जल्दी हो जाती है, यह सुखद जीवन के लिए बेहद जरूरी होने लगा है.

हरदोई जिले के रहने वाले प्रतीक ने एमबीए की पढ़ाई पूरी की. इस के बाद वह गुरुग्राम में नौकरी करने लगा. यहां उस के कई दोस्त बने, जिन में लड़के और लड़कियां दोनों ही थे. कई दोस्तों की लड़कियों के साथ दोस्ती प्यार और शादी में बदल गई. प्रतीक की अपने फ्रैंड सर्किल में ही  झारखंड की रहने वाले स्वाति से मुलाकात हुई. स्वाति ने खुद को मेकअप आर्टिस्ट के रूप में बताया था. देखने में वह साधारण रूपरंग की थी पर उस का स्टाइल और अंदाज ऐसा था कि उस की तारीफ करने लगता.

प्रतीक और स्वाति का परिचय दोस्तों की पार्टी में हुआ. इस के बाद मिलनेजुलने लगे. दोस्ती गहरी हो गई. कुछ माह की दोस्ती के बाद दोनों ने तय किया कि अब शादी कर लेनी चाहिए.

स्वाति और प्रतीक दोनों को ही एकदूसरे के परिवार के  लोगों का कुछ पता नहीं था. प्रतीक ने अपने परिवार के बारे में स्वाति को सारी जानकारी दी. स्वाति ने कुछकुछ बताया पर कभी किसी से परिचय कराने जैसा कोई काम नहीं किया. प्रतीक मल्टीनैशनल कंपनी में काम करता है, यह बात स्वाति को पता थी. प्रतीक के दोस्तों से स्वाति ने उस की जौब की जानकारी भी कर रखी थी. प्रतीक केवल यह जानता था कि स्वाति किसी बड़े मेकअप ब्रैंड के साथ जुड़ कर अपना बिजनैस कर रही है.

दोनों ने जब शादी करने का फैसला किया तो दोनों के परिवार के कुछ करीबी लोग शादी में मिले. तब पता चला कि स्वाति साधारण से ब्यूटीपार्लर में काम करती है. उन का परिवार  झारखंड से मजदूरी करने दिल्ली आया था. स्वाति के 2 भाई और 1 बहन और भी हैं. परिवार का स्वाति के जीवन में कोई बड़ा दखल नहीं रहता है.

बदल गया है व्यवहार

दूसरी तरफ प्रतीक  गांव का रहने वाला जरूर था पर उस ने जो भी स्वाति को बताया था वह सब सही था. गांव में उस का परिवार खेती करता था. इस के बाद भी गांव में उस के परिवार का अपना अलग सामाजिक स्तर था. बेटे की बात को मानते हुए प्रतीक के घर वाले बेटे और बहू को ले कर अपने गांव गए ताकि वह गांव के लोगों को दिखा सकें कि उन के बेटे ने शादी कर ली है. गांव में स्वाति और प्रतीक को ज्यादा दिन नहीं रुकना था. प्रतीक यह तो सम झ गया था कि उस के परिवार की सोच और स्वाति की सोच में बहुत अंतर है. बावजूद इस के वह सोच रहा था कि 1 सप्ताह किसी तरह से अच्छी तरह गुजर जाए और वे वापस दिल्ली आ जाएं.

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शादी के बाद की दावत और दूसरे आयोजनों में ही स्वाति ने अपने व्यवहार से घरपरिवार और प्रतीक को काफी परेशान कर लिया. प्रतीक की बहनों के साथ भी उस का व्यवहार ठीक नहीं था. स्वाति यह सम झने को तैयार ही नहीं थी कि उस की शादी हो चुकी है. उसे पति और पति के परिवार के साथ अच्छी तरह व्यवहार कर के तालमेल बैठाना है.

पति ‘परिवार कल्याण’ नाम से संस्था चला रहीं इंदू सुभाष कहती है, ‘‘अब लड़कियों का व्यवहार पहले से अधिकबदल गया है. शादी की जिम्मेदारी को वे सम झने को तैयार ही नहीं होतीं. ऐसे में लड़की का पति के साथसाथ उस के परिवार खासकर पति की बहन और उन की मां या दूसरे करीबी संबंधियों से अच्छा व्यवहार नहीं रहता है.’’

दामाद से मुश्किल काम है बहू तलाश करना

बात केवल स्वाति और प्रतीक की ही नहीं है. ऐसे तमाम उदाहरण हैं जो यह बताते हैं कि लड़कियों के व्यवहार में सहनशीलता पहले से कम होती जा रही है. अब वे पति के परिवार के साथ तालमेल बैठाने से बचती हैं. ऐसे में लड़कों के लिए लड़की की तलाश करना मुश्किल काम होने लगा है.

इंदू सुभाष बताती हैं, ‘‘आजकल प्रेम विवाह भी ऐसे होते हैं, जिन में मातापिता की सहमति होने लगी है. अब मातापिता भी प्रेम विवाह में अनावश्यक अड़ंगा नहीं लगाते हैं. इस बदलती सोच के बाद भी बहू घर के लोगों से तालमेल नहीं बैठाना चाहती. उसे पता होता है कि उस को पति के परिवार के साथ रहना है, तीजत्योहार मनाने हैं, बावजूद इस के तालमेल में कमी दिखती है. ऐसे मसलों से सब से खराब हालत लड़के की होती है. वह परिवार को भी नहीं  छोड़ पाता है और पत्नी को भी कुछ नहीं  कह पाता.’’

क्लीनिकल साइकोलौजिस्ट आकांक्षा जैन कहती है, ‘‘मेरे पास ऐसे कई लड़के अपनी होने वाली पत्नी को ले कर भी आते हैं कि हम शादी के बाद परिवार के साथ तालमेल कैसे बैठाएंगे? हम कई बार ऐसे लोगों को सलाह देते हैं कि शादी के पहले अपनी होने वाली पत्नी को अपने घरपरिवार खासकर अपने भाईबहन से जरूर मिलवा देना चाहिए ताकि उन के बीच एक स्वाभाविक तालमेल बन सके.

भाईबहन आपस में हमउम्र होते हैं. ऐसे में उन के बीच तालमेल बनना आसान होता है. इस से फिर लड़की को भी अनजान घर में अकेलापन नहीं लगता. वह बेहतर तरीके से तालमेल बैठाने में सफल हो जाती है. शादी से पहले केवल पति को ही नहीं उस के भाईबहनों को भी आपस में व्यवहार बना लेना चाहिए. यह सही कदम होता है.’’

प्यारदुलार में पली लड़कियां

पिछले कुछ सालों में लड़कियों को ले कर घर, परिवार और समाज दोनों काफी उदार हो गए हैं. लड़कियों के साथ घरों में प्यारदुलार बढ़ गया है. लड़कियों को मिली आजादी ने उन के स्वभाव में काफी बदलाव भी किया है, जिस की वजह से वे बेटियां बन कर तो आसानी से रह लेती हैं पर जब उन्हें बहू बन कर ससुराल जाना पड़ता है और वहां कायदेकानून और दबाव में रहना पड़ता है तो उन के सामने परेशानियां पैदा होने लगती है. ऐसे में स्वाभाविक तरह से आपस में पहले दूरियां बढ़ती हैं बाद में  झगड़े बढ़ जाते हैं.

ससुराल में होने वाले पतिपत्नी के  झगड़ों का प्रभाव पतिपत्नी के साथसाथ पति के भाईबहनों और पेरैंट्स पर भी पड़ता है.

बाराबंकी जिले के रहने वाले विकास की शादी नेहा के साथ हुई थी. शादी के कुछ दिनों के बाद विकास कानपुर में नौकरी करने चला गया. नेहा उस के साथ जाना चाहती थी पर वह जा नहीं पाई. नेहा का ससुराल में  झगड़ा होने लगा. पहले कुछ दिनों तक मामला घर के अंदर ही रहा. फिर  झगड़े की जानकारी बाहरी लोगों को भी होने लगी. एक दिन नाराज हो कर नेहा अपनी मां के घर चली गई. वहां जा कर उस ने अपने ससुराल के लोगों को जेल भिजवाने की कोशिश शुरू की. नेहा सब से अधिक नाराज अपने देवर रमेश से थी. उस ने रमेश पर बलात्कार की कोशिश करने का मुकदमा कर दिया.

‘पति परिवार कल्याण’ नाम से संस्था चला रहीं इंदू सुभाष कहती है, ‘‘शादी से पहले लड़कियों की काउंसलिंग बहुत जरूरी होती है. पहले संयुक्त परिवार होते थे तो बहुत कुछ जानकारी और शिक्षा घर के बड़ेबूढ़े लोग दे देते. अब केवल मां होती है. नातेरिश्तेदार अब शादी के ही दिन आते हैं. ऐसे में वे बहुत कुछ सम झाने की हालत में नहीं होते हैं. कई जागरूक परिवार प्रीमैरिज काउंसलिंग कराते भी हैं, जिस का कई बार असर पड़ता है.’’

मैरिज काउंसलर सिद्धार्थ दुबे कहते हैं, ‘‘हर शादी को टूटने से भले ही न बचाया जा सकता हो पर 60 से 70% टूटने वाली शादियों में दोनों को अगर सही समय पर सम झाया जाए तो इन शादियों को कोर्ट और थाने जाने से पहले ही बचाया जा सकता है.’’

शादी करने से पहले यदि लड़का और लड़की दोनों के ही पेरैंट्स और भाईबहन एकदूसरे को सही जानसम झ लें तो शादी के बाद होने वाले  झगड़ों को रोका जा सकता है.

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महत्त्वपूर्ण होता है भाईबहनों का रोल

कई ऐसे उदाहरण हैं जहां भाईबहनों ने अपनी होने वाली भाभी या जीजा के साथ दोस्ताना संबंध पहले से ही बना लिए तो किसी को भी एकदूसरे से अजनबीपन महसूस नहीं होता है.

ज्योति की शादी राजकुमार के साथ तय हुई. उस ने अपने सभी सगेसंबंधियों से अच्छा व्यवहार बना लिया. शादी होने के बाद घर में ऐसा दोस्ताना माहौल बन गया कि उसे कभी इस बात का अनुभव ही नहीं हुआ कि वह अपना घर छोड़ कर पति के घर आई है. ज्योति की अपने देवर और ननद से दोस्तों की हंसीमजाक होता है. ज्योति बताती है कि हम ने कभी अपने भाईबहनों की कमी महसूस नहीं की.

ज्योति की ही तरह का अनुभव रीता का है. रीता सरकारी नौकरी करती है. ऐसे में उस की परेशानी यह होती थी कि उस के लिए घर के काम और वहां तालमेल बैठाना मुश्किल होता था. रीता ने अपने देवर और ननद से अच्छी दोस्ती कर ली. रीता दोनों की ही पढ़ाई, कैरियर और शौपिंग में सहयोग करने लगी. ऐसे में उन की आपस में अच्छी दोस्ती हो गई.

रीता कहती है कि पति के भाईबहन जब हमउम्र होते हैं तो उन के साथ आपस में तालमेल बैठाना आसान होता है. हमउम्र लोगों की मानसिक सोच एकजैसी होती है. एकदूसरे को सम झना अच्छा रहता है. मेरा मानना है कि भाई या बहन के जीवनसाथी का चुनाव करते समय घरपरिवार के लोगों के साथ दूल्हा और दुलहन के भाई और बहन का दखल होना भी जरूरी होता है. जब लड़का या लड़की की पसंद या नापसंद में इन का दखल होता है तो आपस में तालमेल बैठाना आसान हो जाता है.

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