फंदा: भाग-1

पूरे कमरे में बहता खून और खून से सनी लाशें… मासूम बच्चे, बडे़, सब किसी अपने के ही हाथों अपनी जिंदगी गंवा चुके थे. ऊपर जाने वाली सीढि़यों पर भी खून से सने जूतों के निशान, दीवारों पर, सीढि़यों पर, हर तरफ खून के छींटे. कठोर से कठोर दिल वाले पुलिस वालों ने भी ऊपर जा कर देखा तो घबराहट से उन की भी कंपकंपी छूट गई. ऊपर भी लाशें और मां के ही दुपट्टे से गले में फांसी का फंदा लगा झूलता हसन.

मुंबई में ठाणे के इस मुसलिम बहुल इलाके कासारवडावली में छोटीछोटी सड़कों के दोनों तरफ दुकानें थीं. बीचबीच में लोगों के दोमंजिला तिमंजिला खुले मकान. माहौल पूरी तरह से पुराने जमाने के आम मुसलिम परिवारों के महल्ले जैसा ही था. लड़कियां, औरतें बुरके में ही बाहर आतीजाती थीं. लोग आर्थिक दृष्टि से संपन्न थे, पर उन का रहनसहन, लड़कियों की पढ़ाईलिखाई जमाने के हिसाब से आगे नहीं बढ़ पाई थी. लड़के तो पढ़लिख कर फिर भी अच्छे ओहदे पा चुके थे, पर इस इलाके की लड़कियां आज भी थोड़ाबहुत पढ़लिख कर घर तक ही सीमित थीं.

शौकत अली और आयशा बेगम की3 बेटियां थीं- सना, रूबी और हिबा. तीनों बेटियों की उम्र में 2-2 साल का अंतर था. रूबी मानसिक रूप से अस्वस्थ थी. सब से छोटी हिबा से 5 साल छोटा था हसन, आयशा उस पर दिनरात कुरबान होती थीं. अब तक नीचे 2 बैडरूम थे. आयशा ने अब हसन के लिए पहली मंजिल पर एक आरामदायक कमरा बनवा दिया था. हसन की हर सुविधा का ध्यान रखते हुए आयशा ने हर चीज का प्रबंध कर दिया था.

रूबी तो स्कूल जा नहीं पाई थी. सना और हिबा को आयशा बेगम ने 10वीं क्लास तक ही पढ़ने की छूट दी थी. शौकत अली ने बेटियों को पढ़ाना चाहा तो आयशा उन पर ही बरस पड़ी थीं, ‘‘क्या करना है इन्हें पढ़ कर? शादी हो ही जाएगी जल्दी. बस, हसन को पढ़ालिखा कर बड़ा आदमी बनाना है. हमारे बुढ़ापे का सहारा है वह.’’

हसन की हर बात आयशा हर हाल में पूरा करती थीं. हसन इस बात का खूब फायदा उठाने लगा था. शौकत एक प्राइवेट फर्म में काम करते थे. उन की तनख्वाह इतनी तो थी ही कि घर का गुजारा अच्छी तरह हो जाता.

रूबी बहुत इलाज के बाद भी ठीक नहीं हो पाई थी. वह साफ नहीं बोल पाती थी. इशारे से अपनी बात समझाती थी. समझती तो कुछकुछ थी पर उस का चलने, उठनेबैठने पर अपना नियंत्रण नहीं था. किसी को उस के आसपास रहना होता था. हसन जानबूझ कर उसे तंग करता था.

हसन जैसेजैसे बड़ा हो रहा था, उस की बातें, उस का स्वभाव, उस के हावभाव, तौरतरीके किसी अच्छे लड़के की तरह नहीं थे. उस की किसी भी गलती पर उसे टोकने पर आयशा उस की ढाल बन जाती थीं.

घर के पास एक दरगाह थी. वहीं एक कोने में दिन में एक जमाल बाबा बैठा करता था. वहीं एक कमरे में रात में रहता भी था. उन के पास झाड़फूंक करवाने वालों की भीड़ लगी रहती थी. आयशा को भी उस पर बड़ा भरोसा था. हसन जहां बीमार पड़ता, आयशा झट से उसे बाबा के पास ले जाती थीं.

एक दिन आयशा ने उस से कहा, ‘‘बाबा, हसन को कुछ दीनधर्म की बातें बताओ… आप के कदमों में इसे महजब की जानकारी की राह मिल जाए तो हम सब का भी भला हो जाएगा.’’

अब हसन अकसर बाबा के पास बैठने लगा था. उस के दोस्त कम होते जा रहे थे. वह अपनेआप में ही खोया रहने लगा था. आयशा बेटे को शांत देख कर खुश होती थीं. उन्हें जरा भी अंदाजा नहीं था कि उन के बेटे के अंदर कैसेकैसे बीज अपनी जड़ें जमा रहे हैं.

शौकत को हसन के बाबा के पास बैठ कर समय बिताने के बारे में पता चला तो उन्होंने डांटा, ‘‘उस के पास बैठ कर क्यों टाइम खराब करते हो? बैठ कर पढ़ाई करो, मेहनत करो.’’

जवाब आयशा ने दिया, ‘‘कैसे बाप हो तुम? पढ़ाई के साथसाथ तुम्हारा बेटा दीनधर्म की राह पर चल रहा है… इस बात से तुम्हें खुश होना चाहिए… बेचारे बाबा मजहब के बारे में ही तो बताते हैं.’’

बस यहीं शौकत चुप हो जाते थे, क्योंकि आम इनसान की तरह उन के दिल में भी धर्म का बड़ा खौफ था.

कुछ साल और बीत गए. सना के रिश्ते आने शुरू हुए तो आयशा को पहली बार बेटियों के निकाह की फिक्र हुई. उन्होंने हसन से इस विषय पर बात की तो उस ने जवाब दिया, ‘‘अम्मी, मेरी आप की बेटियों की जिंदगी में कोई दिलचस्पी नहीं है. अब्बू की चहेती हैं, वे ही जानें. मुझे और भी काम हैं.’’

शौकत यह सुन कर हैरान रह गए. फिर बोले, ‘‘शाबाश बेटा, यही उम्मीद थी तुम से… आयशा, सुन लिया?’’

आयशा को तो अपने कानों पर विश्वासही नहीं हुआ. बोलीं, ‘‘हसन, अपनी बहनों के बारे में ये कैसी बातें कर रहे हो? तुम्हारी कितनी देखभाल की है उन्होंने? कितना प्यार दिया है तुम्हें?’’

‘‘तो मैं क्या करूं? यह उन का फर्ज था, मुझ से यह आम सी बातें मत करो, मैं इस दुनिया में कुछ अलग करने आया हूं. मुझे इन छोटीछोटी बातों में मत खींचो,’’ कह कर वह पैर पटकते हुए चला गया.

शौकत ने अपनी बेगम को देखा. लाड़ले बेटे के बिगड़े तेवर देख कर पहली बार आयशा के चेहरे का रंग उड़ा देखा तो शौकत को तरस आ गया. फिर धीरे से बोले, ‘‘दुखी मत हो, यह सब तुम्हारे जरूरत से ज्यादा लाड़प्यार का नतीजा है.’’

आयशा गुमसुम खड़ी थीं. महसूस हो गया था कि कहीं तो कुछ गलत है. पर क्या, यह समझ नहीं आ रहा था.

कुछ ही दूर स्थित ‘भिवंडी’ से सना के लिए रशीद का रिश्ता आया. वह बैंक में कार्यरत था. शौकत को शांत, सभ्य रशीद सना के लिए बिलकुल उचित लगा. रशीद के मातापिता को भी सना पसंद आई.

निकाह की तारीख तय होते ही घर में जोरशोर से तैयारी शुरू हो गई. पर हसन को किसी बात से कोई मतलब नहीं था.

अब सना हसन में कुछ बदलाव देख रही थी. जब एक दिन सना दोपहर में आराम कर रही थी, तो हसन आ कर उस के पास लेट गया. सना ने हैरानी से पूछा, ‘‘क्या हुआ हसन? कुछ चाहिए?’’

‘‘नहीं. ऐसे भी तो अपनी बाजी के पास लेट सकता हूं न.’’

सना मुसकरा दी. सोचा अब भाई का दिल शायद यह महसूस कर रहा हो कि बड़ी बहन ससुराल चली जाएगी.

फिर अचानक हसन उठ कर बैठ गया. उस के घुटने पर हाथ रख कर इधरउधर की बातें करता रहा. पहले तो सना भाई की बातें ध्यान से सुनती रही, फिर अचानक जब हसन का घुटने पर रखा हाथ इधरउधर घूमने लगा तो सना को धक्का सा लगा. वह उठ बैठी. थी तो औरत ही और यह तो हर औरत के अंदर गजब का एहसास होता है कि वह होश संभालते ही अच्छेबुरे स्पर्श का फर्क समझने लगती है. उसे पल भर खुद को संभालने में लग गया कि छोटा भाई उसे कैसे छू रहा है, मन तो हुआ एक थप्पड़ लगा दे. वह उठ कर जाने लगी तो हसन ने कहा, ‘‘कहां जा रही हो बाजी, बैठो न.’’

‘‘नहीं, अम्मी ने कुछ जरूरी काम बताए थे, वे करने हैं.’’

हसन ने उसे अजीब नजरों से देखा तो सना को अपना वहम साफसाफ सच लगा. उस के बाद कई बार ऐसा हुआ कि सना को हसन जबतब कहीं भी छू कर बात करने लगा, जबकि पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था. सना मन ही मन बहुत परेशान रहने लगी कि किस से कहे? कहना चाहिए भी या नहीं? कहीं यह मन का वहम ही न हो… जिस भाई को गोद में खिलाया, उस के बारे में ऐसा सोचना भी दिल को बहुत तकलीफ पहुंचा रहा था.

हसन को सना के पास मंडराता देख आयशा बेगम मुसकरा कर कहतीं, ‘‘देख, भाई है न. अब तेरे ससुराल जाने की बात सोच कर परेशान होता घूम रहा है.’’

सना हर बार कुछ जवाब न दे कर कुछ परेशान सी दिखती. आखिर एक दिन हिबा ने अकेले में पूछ ही लिया, ‘‘बाजी, आजकल कुछ परेशान सी दिख रही हैं. बताओ न?’’

आयशा का सारा ध्यान हसन पर ही रहता था. मां की इस उपेक्षा को दोनों बहनों ने बराबर महसूस किया था. इन बातों ने दोनों बहनों को, बहनों के साथ, हमराज, सहेली बना दिया था. अत: सना धीरे से बोली, ‘‘हिबा, आजकल हसन की हरकतें अच्छी नहीं लग रही हैं.’’

हिबा चौंकी, ‘‘बाजी, क्या आप ने भी कुछ महसूस किया? हसन अजीब सा व्यवहार करता है न?’’

सना हैरान हुई, ‘‘तुझे भी कुछ कहा है क्या?’’

‘‘हां, बाजी, पहले तो ऐसा नहीं करता था. अब जब भी अकेली होती हूं, कभी भी, कहीं भी, इधरउधर की बातें करता हुआ यहांवहां छूता रहता है. उस की हरकतें कुछ ठीक नहीं लग रही हैं. आप के निकाह की तैयारी चल रही है, इसलिए मैं आप को यह सब बता कर परेशान नहीं करना चाह रही थी. रूबी के सामने ये बातें कर भी नहीं सकती थी… बेचारी कुछ समझ भी लेगी तो घबरा जाएगी.’’

‘‘हिबा, मुझे तो लगा मैं ही कुछ गलत तो नहीं सोच रही. चल, अम्मी से बताते हैं.’’

‘‘अम्मी यकीन करेंगी?’’

‘‘मुश्किल तो है पर बताना जरूरी है.’’

हसन कालेज गया हुआ था. आयशा बेगम उस का कमरा ठीक करने ऊपर गई हुई थीं. रूबी नीचे सो रही थी. सना और हिबा ऊपर चली गईं.

दोनों को साथ और गंभीर देख कर आयशा चौंकी. पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘आप से जरूरी बात करनी है अम्मी.’’

‘‘बोलो.’’

सना ने बात शुरू की, ‘‘अम्मी,

आजकल हसन का हमारे साथ व्यवहार ठीक नहीं है.’’

‘‘क्या कह रही हो… आजकल तो हर समय तुम लोगों के आगेपीछे घूमता है… तुम्हें तो खुश होना चाहिए.’’

‘‘नहीं अम्मी, कुछ गलत हरकतें हैं उस की… हमें यहांवहां छूने की कोशिश करता है.’’

आयशा बेगम को जैसे एक धक्का सा लगा. धम्म से वहीं बैड पर बैठ गईं. मुश्किल से आवाज निकली जैसे खुद को तसल्ली दे रही हों, ‘‘नहीं बेटा, भाई है तुम्हारा. आजकल के खराब माहौल की बातें सुन कर वहम हो गया होगा तुम्हें.’’

नीचे से रूबी की आवाज आई तो तीनों नीचे उतर आईं.

अब हसन की हरकतों पर आयशा ने ध्यान देना शुरू किया, तो उन्हें बेटियों की बात ठीक लगी. हसन जानबूझ कर कभी उन के गले में हाथ डाल देता तो कभी कमर में, तो कभी गाल छूता. पहले ऐसा नहीं था.

क्या करें, शौहर को बताएं? नहीं, वे उन से नहीं कहेंगी, शादी का घर है. आयशा बेगम सोच में पड़ गईं कि अगर शौहर को बताया तो बेकार में तनाव का माहौल हो जाएगा.

अत: चुप रहना ही मुनासिब समझा. फिर जब तक हसन घर में रहता, वे साए की तरह उस पर निगाह रखने लगीं.

कई बार हसन चिल्ला पड़ता, ‘‘क्यों मेरे पीछेपीछे घूमती रहती हैं आप… मैं क्या कोई बच्चा हूं.’’

‘‘मेरे लिए तो बच्चे ही रहोगे.’’

इसी बीच सना का रशीद से निकाह हो गया. सना के जाने के बाद हिबा अकेलेपन का शिकार होने लगी. घर के कामों में, रूबी की देखभाल में दिन तो बीत जाता पर रात को बहन की याद आंखें नम कर जाती.

हसन घर के बाहर शांत, सभ्य लड़का था पर घर के अंदर वह एक आवारा, बदतमीज लड़के की तरह हरकतें करता था. हिबा उस से बहुत दूरदूर रहने की कोशिश करने लगी थी. शौकत अली जितनी देर घर पर रहते, वह उन के आसपास ही रहती थी.

हसन के कालेज जाने पर जैसे सब चैन की सांस लेते. उस का जमाल बाबा के पास बैठना जारी था. जमाल बाबा से हसन के बारे में पूछताछ करने का मतलब था बात का बतंगड़ बनाना. हसन मजहब के बारे में खूब लंबीचौड़ी बातें करने लगा था. बाहर वालों को लगता था कि कितना अमनपसंद, मजहबी लड़का है पर सच सिर्फ घर वाले जानते थे.

सना की कोशिशों से हिबा के भी रिश्ते आने लगे थे. सना को बहुत अच्छी ससुराल मिली. रशीद और उस के अम्मीअब्बू सना के साथ बहुत ही प्यार से रहते थे. सना का जीवन अचानक बहुत खुशियों से भर उठा था पर मन ही मन उसे अपनी बहनों की बहुत चिंता रहती थी. फोन पर सब से बात भी होती रहती थी. उस का जब मन होता मिलने भी चली आती थी. रूबी तो उसे देखते ही उस से ऐसे लिपटती थी जैसे कोई छोटी बच्ची अपनी मां से लिपट जाती है.

सना ने हिबा से फोन पर ही ढकेछिपे शब्दों में पूछा, ‘‘हिबा, कोई परेशानी तो नहीं है?’’

‘‘बाजी, सब वैसा ही है जैसा आप के सामने था, कोई फर्क नहीं पड़ा है.’’

‘‘मैं जल्दी तुम्हारे लिए अच्छा लड़का ढूंढ़ूंगी, हिबा.’’

‘‘पर बाजी, हमारे बाद रूबी कैसे रहेगी?’’

‘‘देखते हैं… हिबा, कुछ तो करना पड़ेगा.’’

रशीद के ही एक रिश्तेदार जहांगीर से हिबा की शादी हो गई तो सना खुशी से चहक उठी. जहांगीर प्रोफैसर था. सना की कोशिशें रंग लाई थीं.

सना मायके आई हुई थी. उस ने आयशा से कहा, ‘‘अम्मी, रूबी के लिए मैं ने अपने यहां काम करने वाली फायजा काकी की बेटी निगहत से बात कर ली है. वह तलाकशुदा है, सुबह से शाम तक रूबी की देखभाल करेगी. रात को काकी के पास घर चली जाएगी. उस के 2 बच्चे हैं, कभीकभी जरूरत पड़ने पर वह दिन में भी बच्चों को देखने जाया करेगी. रात को आप रूबी के साथ सो जाया करो. ठीक है न अम्मी?’’

हिबा का निकाह जहांगीर से हो गया. उसे भी एक अच्छा जीवनसाथी मिल गया था. बेटियों को खुश और संतुष्ट देख कर आयशा का मन भी हलका हो गया था. शौकत अली भी खुश थे.

हसन ने किसी तरह बी.कौम. पूरा कर एक प्राइवेट फर्म में नौकरी कर ली, तो सब ने चैन की सांस ली. वह अब दिन में औफिस रहता. पर शाम को बाबा से मिलने का समय निकाल ही लेता था. जमाल बाबा ने जीवन में उसे अंधविश्वासों को पीछे छोड़ आगे बढ़ने केnबजाय अपनी बातों से इतना गुमराह कर दिया था कि वह अब अपनेआप को बहुत खास, खुदा का बंदा समझने लगा था, जो सब बुराइयों को मिटाने आया है, वह कुछ भी कर सकता है, उसे किसी से डरने की जरूरत नहीं है. आयशा ने जो अच्छी मजहबी बातें सीखने के लिए उसे बाबा के सुपुर्द किया था, इन बातों का असर भविष्य में क्या होगा, उन्हें इस का अंदाजा नहीं था.

हसन का नौकरी में मन नहीं लग रहा था. एक दिन वह बाबा के पास पहुंचा. वहां काफी लोग लाइन में लगे थे. बाबा आंखें मूंद कर कह रहा था, ‘‘दुनिया दुखों से भरी है, इनसान अपने कर्मों का फल भोगता है. दुनिया में ऐसी कोई तकलीफ नहीं जो दूर न की जा सके. तुम मेरी पनाह में आए हो तो मुझ पर भरोसा रखो. कुदरत ने हर चीज की 2 सूरतें बनाई हैं… कांटे हैं तो फूल भी हैं, धूप है तो छांव भी है… शैतान है तो खुदा भी है, उसी खुदा की इच्छा से मैं तुम्हारे पास आया हूं… ऊपर बैठा वह देख रहा है… मुझ से कुछ न छिपाओ, सब कुछ कह दो, अपने दिल में कुछ न रखो, डरो मत.’’

विश्वास के बाजार में बैठे बाबा के चेहरे के पीछे एक और चेहरा था. कहने को तो बाबा अपने हाथ में कोई पैसा नहीं पकड़ता था, पर उस के सामने एक कपड़ा बिछा रहता था, जिस की जितनी मरजी होती, उस पर उतना रख कर चला जाता था. उस के पास धीरेधीरे इतना पैसा जमा हो चुका था कि दूसरे शहर में उस का अपना घर था, पत्नी थी, 3 बच्चे थे. जब भी वह अपने शहर जाता, सब यही समझते बाबा तो सिद्धपुरुष है, अपनी किसी विद्या की खोज में गया है… उस के घर वाले समझते थे कि बाबा दूसरे शहर में कोई नौकरी कर रहा है. कुल मिला कर मूर्ख लोगों की कृपा से बाबा अच्छी जिंदगी गुजार रहा था.

हसन भी उस की चादर पर अच्छेखासे रुपए रख जाता था. बाबा के हिसाब से उस के  सभी शागिर्दों में हसन सब से मूर्ख शागिर्द था, जो भी बाबा कहता हसन के लिए वह फरमान है. यह बाबा जान चुका था.

बाबा ने आंखें खोलीं. देखा, हसन उदास, चुपचाप बैठा है. फिर जल्दीजल्दी बाकी लोगों पर झाड़फूंक का काम निबटाया. फिर पूछा, ‘‘हसन मियां, क्यों परेशान हो?’’

‘‘मेरा नौकरी में मन नहीं लग रहा है, बाबा.’’

‘‘तो छोड़ दो.’’

‘‘फिर क्या करूं?’’

‘‘अपना काम कर लो. तुम में तो हुनर ही हुनर है. तुम्हें किसी की नौकरी की क्या जरूरत है?’’

‘‘पर इतना पैसा कहां है मेरे पास?’’

‘‘तुम्हारे अब्बू हैं, बहनें हैं, बहनोई हैं, सब तुम्हारी मदद करेंगे. तुम ही तो इकलौते बेटे हो घर के.’’

बात हसन के दिमाग में बैठ गई. अब हसन ने सोचा कि पहले बहनों को खुश रखना पड़ेगा. उन के दिल से अपने लिए गुस्सा निकालना पड़ेगा. इस में समय लगेगा पर करना तो पड़ेगा ही. अत: उस ने घर पर कुछ समय देना शुरू किया. सना और हिबा से फोन पर हालचाल लेने लगा. दोनों हैरान तो होतीं पर इस बदलाव का कारण समझ नहीं पाईं. हसन रशीद और जहांगीर से भी दोस्ताना संबंध बनाने लगा. सना और हिबा ने फोन पर आपस में बात की. सना ने कहा, ‘‘हसन कुछ बदल गया है.’’

‘‘हां, बहुत ज्यादा बदल गया है, पर अचानक क्यों?’’

‘‘हो सकता है उम्र के साथसाथ अपनी हरकतों पर पछतावा हो, अब शर्मिंदा हो.’’

‘‘अगर ऐसा है तो ठीक है, देर आयद, दुरुस्त आयद.’’

कुछ साल और बीत गए. सना के 2 बेटे और 1 बेटी और हिबा के भी 2 बेटियां और

1 बेटा हो चुका था.

हसन की शादी की भी बात शुरू हो चुकी थी. सब की सलाह के बाद सुंदर जोया घर की बहू बन कर आ गई. जोया के आने से हसन की जिंदगी में कुछ बदलाव हुआ पर दिमाग से बिजनैस का भूत नहीं उतरा.

इसी खयाल को अंजाम देते हुए उस ने अपने दिमाग में एक योजना बना कर सना और हिबा को फोन कर के शनिवार को सुबह आने के लिए कहा.

जोया ने आते ही सब का दिल जीत लिया था. हसन जोया के साथ अच्छा व्यवहार रखता था. अब उस का बातबात में गुस्सा करना कम हो गया था. शौकत अली और आयशा खुश थीं कि उन के सब बच्चे जीवन में राजीखुशी आगे बढ़ रहे हैं.

हसन का बाबा के पास बैठना कम तो हुआ था पर अब भी समय मिलते ही उस के पास पहुंच जाता था.

हसन के दिमाग में जो चल रहा था उस का अंदाजा भी किसी को नहीं था. वह जो बाहर से दिखाई देता था अंदर से बिलकुल उस के उलट था. उस की सोच से अनजान दोनों बहनें शनिवार को सुबह आ गईं. सुबह से ही जोया के साथ मिल कर हसन ने सब के लिए शानदार लंच तैयार किया. सब साथ खाने बैठे तो घर में अलग ही रौनक थी. बच्चे तो मिल कर खूब मस्ती करने लगे तो हसन ने कहा, ‘‘जाओ बच्चो, सब ऊपर खेलो.’’

फिर हसन ने कहा, ‘‘मैं ने सोचा है अब हर शनिवार को हम सब लंच और डिनर साथ किया करेंगे,’’ कह हसन हंसा तो सना और हिबा भी हंस पड़ीं.

रशीद ने छेड़ा, ‘‘मतलब मुझे और जहांगीर को छोड़ कर सब यहीं रहेंगे रात भर… ठीक है भई, जैसी तुम्हारी मरजी.’’

कुछ महीने और बीते. जोया ने बेटे को जन्म दिया जिस का नाम शान रखा. शान की पैदाइश पर भी भाईबहनों ने मिल कर खूब जश्न मनाया, खूब दावतें हुईं. अब तो दोनों बहनें और उन के परिवार शनिवार की दावत का इंतजार करते थे. शनिवार, रविवार घर में भाईबहनों का प्यार देख शौकत अली और आयशा के दिल को चैन आ जाता था.

एक शनिवार और आया. हमेशा की तरह सब ने साथ बैठ कर डिनर किया. बच्चे आपस में मस्ती कर रहे थे. हसन काफी चुप और गंभीर था.

सना ने पूछा, ‘‘हसन, क्या कुछ हुआ है? परेशान हो?’’

‘‘कुछ नहीं, बाजी.’’

हिबा ने भी टोका, ‘‘कुछ बात तो है.’’

शौकत और आयशा भी वहीं बैठे थे. बहुत पूछने पर हसन ने बहुत गंभीरतापूर्वक कहा, ‘‘बाजी, मुझे कुछ रुपयों की जरूरत है. मैं अपना बिजनैस करना चाहता हूं.’’

‘‘तुम तो अच्छी भली नौकरी कर रहे हो, बिजनैस क्यों?’’

‘‘मैं नौकरी छोड़ने वाला हूं… मुझे पैसों की सख्त जरूरत है… समझ नहीं आ रहा कहां से इंतजाम करूं.’’

शौकत ने डांट दिया, ‘‘बिजनैस का आइडिया बिलकुल बेकार है. हम आम नौकरी करने वाले लोग हैं. इतना पैसा कहां से आएगा और अगर उधार लिया तो चुकाएगा कैसे?

कब? कौन देगा पैसा? बेकार की बात है यह, जितनी पढ़ाई तुम ने की है उस हिसाब से तुम्हें नौकरी ठीक ही मिली है. चुपचाप मन से इसे ही करते रहो.’’

‘‘अब्बू, मैं सब चुका दूंगा. मैं ने अच्छी तरह से सोच लिया है,’’ कह कर हसन माथे पर हाथ रख कर दुखी हो कर बैठ गया.

आयशा से बेटे के चेहरे की उदासी देखी नहीं गई. इतनी मुश्किल से तो बेटा खुश रहने लगा था, घर में उस के खुश रहने से ही कितना बदलाव आ गया था. अत: प्यार से हसन के सिर पर हाथ रख कर बोलीं, ‘‘पर बेटा, यह खयाल छोड़ ही दो, हमारे पास इतना पैसा कहां है?’’

हिबा ने पूछा, ‘‘कितना चाहिए?’’

‘‘25-30 लाख.’’

‘‘क्या?’’ सब चौंक पड़े.

‘‘इतना कहां से आएगा हसन?’’ सना ने परेशान होते हुए कहा.

जोया चुपचाप हैरान सी बैठी थी. अपने शौहर को वह आज तक समझ नहीं पाई थी. उस के दिमाग में कुछ चलता रहता था पर क्या, वह अंदाजा नहीं लगा पाती थी. कभी वह कुछ कहता था, तो कभी कुछ. कभी वह बड़ीबड़ी मजहबी बातें करता था, कभी एक लालची, मक्कार की तरह व्यवहार करता था.

हसन ने कहा, ‘‘जोया के पास जितने भी जेवर हैं, उन्हें बेच भी दूं तो काम नहीं होगा. बाजी, आप लोग मुझे कुछ रकम उधार दे दो. मैं बहुत जल्दी चुका दूंगा,’’ सना जो हैरान सी थी, बोली, ‘‘हसन, हम कहां से लाएं?’’

‘‘आप रशीद भाई से बात करो न, उन का तो अच्छा बिजनैस है. वे तो मुझे आराम से लोन दे सकते हैं.’’

हिबा ने कहा, ‘‘हसन, मेरे लिए तो यह नामुमकिन है. 2-2 ननदें हैं, जहांगीर अकेले हैं. उन्हीं पर सारी जिम्मेदारी है. उन दोनों के निकाह का भी सोचना है.’’

‘‘तो आप मुझे अपने गहने दे दो.’’

हिबा चौंकी, ‘‘यह क्या कह रहे हो हसन. गहने कैसे दे दूं?’’

‘‘बाजी, पहली बार आप के भाई ने आप से कुछ मांगा है. मैं सब वापस दे दूंगा, वादा करता हूं. आप लोग समझ नहीं रही हैं, अगर आप लोगों ने मेरी मदद नहीं की तो बहुत बुरा होगा.’’

शौकत अली ने हसन को टोका, ‘‘हसन, यह बेकार का फुतूर अपने दिमाग से इसी समय निकाल दो. बहनों से उधार ले कर बिजनैस करोगे? ऐसी क्या आफत आई है… घर की बेटियों को इस परेशानी में डालने की कोई जरूरत नहीं है.’’

हसन को गुस्सा आ गया, ‘‘आप को हमेशा बेटियों की ही चिंता रही है. आप मेरे लिए तो कुछ करना ही नहीं चाहते. बेटियां ही आप के लिए सब कुछ हैं,’’ कह कर हसन पैर पटकते हुए घर से बाहर चला गया.

 – क्रमश:

फंदा: भाग-3

इसी बीच जोया ने बेटी को जन्म दिया. सब खुश हुए पर हसन से किसी ने कोई बात नहीं की. शौकत, सना और हिबा ने रूबी की बात जानने के बाद हसन से बात बिलकुल बंद कर दी थी. आयशा उस से थोड़ी बहुत बात कर लेती थीं. उस के खाने, कपड़े की देखभाल वही कर रही थीं.

एक दिन सना ने फोन पर हिबा से कहा, ‘‘मैं ऐसे भाई की कोई मदद नहीं करूंगी, मैं उस से अपना पूरा पैसा वापस मांगूंगी. बहन की आबरू से खिलवाड़ करने वाले भाई से मेरा कोई मतलब नहीं है.’’

हिबा ने कहा, ‘‘आप ठीक कह रही हैं. नफरत हो गई है हसन से, इस ने हम बहनों को हमेशा ही बुरी नजर से देखा है, जोया जैसी सुघड़ बीवी है, सब ने हमेशा उस की हर बात मानी है, मैं भी मांग लूंगी अपने गहने वापस… मुझे भी नहीं करनी उस की मदद… जोया को भी नहीं बता पाएंगे उस की करतूत, बेचारी को धक्का लगेगा.’’

‘‘कल ही हसन से बात करने चलते हैं.’’

‘‘ठीक है.’’

सना रशीद को और हिबा अपनी ननदों को बच्चों का ध्यान रखने के लिए कह कर मायके पहुंचीं. उन्होंने आयशा से हसन के बारे में पहले ही पूछ लिया था. वह घर पर ही था. 4 बज रहे थे. वह सो रहा था. उन की आवाज से हसन की नींद खुल गई. उस ने नीचे से आ रही आवाजों पर ध्यान दिया. समझ गया कुछ बात होने वाली है. सना ने जोर से हसन को आवाज दी, तो वह नीचे आ कर अक्खड़ लहजे में बोला, ‘‘क्या है, बाजी?’’

‘‘मत कहो हमें बाजी… हम नहीं हैं तुम्हारी बहनें. तुम जैसे भाई पर हमें शर्म आती है.’’

हसन दोनों को गुस्से से घूरने लगा.

सना ने कहा, ‘‘मुझे अपने पैसे वापस चाहिए, मुझे तुम्हारी कोई मदद नहीं करनी है.’’

हिबा ने भी फटकार लगाई, ‘‘मुझे भी अपने गहने अभी वापस चाहिए.’’

इस स्थिति का तो हसन ने अंदाजा ही नहीं लगाया था. उस ने सोचा था अभी चिल्लाएंगी, ताने मारेंगी और चली जाएंगी, वे अपनी रकम वापस मांग लेंगी इस का तो अंदाजा ही नहीं था. अत: उस ने अपने सुर फौरन बदले, ‘‘मुझे माफ कर दो मुझ से गलती हो गई. मैं बहुत शर्मिंदा हूं.’’

‘‘नहीं हसन, इस गुनाह की कोई माफी नहीं.’’

तभी वहीं बैठी रूबी हसन से डर कर आवाजें निकालने लगीं. सना से रूबी की हालत देखी नहीं गई. उस ने हसन को एक थप्पड़ लगा दिया, ‘‘देख रहे हो बेशर्म. क्या हालत कर दी इस की, नफरत है हमें तुम से.’’

हसन का गुस्से के मारे बुरा हाल हो गया. पर इस समय हालात उस के काबू में नहीं थे. अत: उस ने नरमी से कहा, ‘‘मैं कल जोया को लेने जा रहा हूं. आप सब की रकम बहुत जल्दी वापस कर दूंगा,’’ कह कर हसन ऊपर चला गया.

जोया के नाम का सहारा ले कर उस ने उन लोगों के गुस्से को चालाकी से ठंडा करने की कोशिश की थी… अपनी मां और बहनों को वह इतना तो जानता ही था कि वे सब जोया को बहुत प्यार करते हैं और उसे कभी दुखी नहीं देखना चाहेंगे. इसलिए रूबी के साथ की गई उस की हरकत को कोई जोया को नहीं बताएगा, इस बात की उसे पूरी गारंटी थी.

सना और हिबा चली गईं. हसन अपनी चालाकियों पर मुसकराता हुआ जोया को लेने जाने की तैयारी करने लगा. अगली सुबह जल्दी निकल गया.

शाम को वह जोया, शान और नन्ही सी बेटी जिस का नाम जोया ने हसन की इच्छा

पर ही माहिरा रखा था, ले कर आ गया. नन्ही माहिरा को शौकत अली और आयशा ने गोद में ले कर खूब प्यार किया. रूबी जोया को देखते ही हसन की तरफ कुछ इशारे कर के बताने लगी तो आयशा ने रूबी को शांत कर दिया.

जोया और बच्चों के आते ही घर में हर समय छायी रहने वाली मनहूसियत कुछ कम हुई पर जोया ने महसूस किया कि कोई हसन से बात नहीं कर रहा है, उस ने एकांत में हसन से पूछा भी, ‘‘कुछ हुआ है क्या मेरे पीछे? सब चुप से हैं.’’

हसन ने हंसते हुए कहा, ‘‘अरे, कुछ नहीं. मैं जरा नए बिजनैस में बिजी था न… काम के प्रैशर में अब्बूअम्मी से ठीक से बात नहीं की, बाहर ज्यादा रहा तो वे नाराज हो गए. अब तुम लोग आ गए हो तो सब ठीक हो जाएगा. जल्दी बाजी लोगों को फोन कर के सब की दावत का इंतजाम करो, बहुत दिन हो गए हैं न.’’

जोया ने मुसकरा कर ‘हां’ में सिर हिलाया.

हसन सीधा बाबा के पास पहुंचा और बहनों के पैसे वापस मांगने के बारे में बताया. बाबा चौंका. फिर बहुत देर तक खूब उलटीसीधी बातें कर के उस ने हसन का बहुत खतरनाक तरीके से ब्रेनवौश किया. रहीसही कसर मजहबी बातों, अफशा की तनहा जिंदगी और खुदा और जन्नत के नाम पर उस की लच्छेदार बातें सुन कर हसन जब बाबा के पास से उठा तो वह कोई और ही हसन था. अपनेआप को बिलकुल अलग महसूस करने वाला खुदा का खास बंदा जो हर अपनेपराए की बुराई खत्म कर उन्हें जन्नत भेजने के लिए आया था. शैतानी दिमाग पर एक अजीब सा सुकून था.

हसन ने बहनों को फोन जोया से ही करवाया. वह जानता था कि बहनें जोया का मन रखने जरूर आएंगी. जोया के कहने पर शनिवार को सना और हिबा अपने बच्चों के साथ आ गईं, हसन से तो सना और हिबा ने बात ही नहीं की. दोनों जोया और उन के बच्चों से ही बातें करती रहीं. नन्ही माहिरा को देख कर सब के चेहरे खिल गए थे, फूल सी माहिरा को सना और हिबा ने खूब प्यार किया, उस के लिए लाए कपड़े और खिलौने दिए.

हसन हमेशा की तरह किचन में व्यस्त जोया का हाथ बंटाने लगा. काम में और बच्चों में व्यस्त होने के कारण जोया ने भाईबहनों के बीच पसरे सन्नाटे को महसूस नहीं किया.

शौकत अली और आयशा जब बाहर से घर लौटे तो हसन ने जोया के साथ मिल कर शानदार डिनर लगवाया. सब हमेशा की तरह साथ खाने बैठे. रूबी सना और हिबा के बीच दुबकी बैठी हुई थी. वह हसन से डरने लगी थी. जोया को रूबी का यह डर महसूस न हो, यह सोच कर वह सब के बच्चों में ही खेलता रहा.

शौकत और आयशा जो हसन की हरकतों से अंदर ही अंदर टूट चुके थे, किसी तरह जोया का चेहरा देख कर अपनेआप को सामान्य दिखाने की कोशिश कर रहे थे. 10 बजे तक सब का डिनर खत्म हुआ. सना और हिबा, जोया के साथ मिल कर बरतन समेटने में मदद करने लगीं. 12 बजे तक बच्चे हंगामा करते रहे.

फिर हसन ने कहा, ‘‘आप सब बातें करें, मैं आप सब के लिए शरबत बना कर लाता हूं.’’

जोया ने शौहर को प्यार भरी नजरों से देखा. सना, हिबा और बाकी लोगों ने कोई प्रतिक्रिया नहीं की ताकि जोया को कोई बात दुख न पहुंचाए. वह बेहद अच्छी इनसान है, यह सोच कर सब ने अपना गुस्सा अपने मन में ही रख लिया था.

हसन ने बेहद सावधानी से अपनी पैंट की जेब से निकाल कर बाबा का दिया एक पाउडर शरबत में मिलाया और ट्रे में रख कर सब को 1-1 गिलास सर्व किया.

उस ने खुद नहीं पिया तो जोया ने पूछा, ‘‘आप नहीं पीएंगे?’’

‘‘अभी नहीं, पेट बहुत भरा है. थोड़ी देर बाद.’’

हसन सब के शरबत पीने के बाद सब गिलास उठा कर ले भी खुद गया, आधे घंटे के बाद सब को तेज नींद आने लगी. जिस को जहां जगह मिली, लेटता गया. शौकत, रूबी, सना के तीनों बच्चे, हिबा और उस के तीनों बच्चे, शान ड्राइंगरूम में ही लेट गए. माहिरा सना की गोद में ही थी. आयशा व सना को जोया ऊपर ले गई. सब बहुत गहरी नींद में सोते चले गए.

हसन ने धीरे से मेन गेट और घर का हर दरवाजा, खिड़की अंदर से बंद कर ली. फिर इत्मीनान से बेखौफ हो कर गहरी नींद में सोए हुए सब से पहले शौकत, फिर हिबा, फिर रूबी, फिर हिबा के तीनों बच्चों, सना के तीनों बच्चों, अपने बेटे शान, सब की गरदन की नसें एक तेज धार वाले चाकू, जो उस ने एक कसाई से खरीदा था, से काटता चला गया. जो अविश्वसनीय था, वह घट चुका था. हसन पूरी तरह शैतान बन चुका था.

फिर हसन ऊपर की तरफ बढ़ा. उस ने वहां सब से पहले जोया और फिर अपनी 2 महीने की फूल सी बेटी माहिरा की गरदन पर भी चाकू चला दिया. हसन के हाथ जरा भी न कांपे. फिर उस ने सना की गरदन की नसें भी काट दीं, पर अचानक बेहोश सना की तेज दर्द से आंख खुल गई.

हसन हंसा, ‘‘चल तू अब अपनी आंखों से सब देख ले मरने से पहले. अब तुझे सब से बाद में मारूंगा.’’

गले की कटी नस से बेइंतहा बहते खून के कारण दर्द में भी सना की तेज चीख निकल गई. वह उठने की कोशिश करते हुए हसन को रोकने की कोशिश करने लगी.

चीख की आवाज से आयशा ने भी आंखें खोल दीं. गरदन घुमा कर जोया और माहिरा के शरीर से खून बहता देखा तो चीख पड़ीं, ‘‘यह क्या किया, हसन?’’

‘‘अभी मेरा काम खत्म नहीं हुआ है, आप और आप की बेटी जिंदा है अभी.’’

आयशा ने घबरा कर हाथ जोड़े, ‘‘नहीं बेटा, मेरी बेटी को छोड़ दे.’’

‘‘नहीं, मैं सब को मार दूंगा, मैं आप सब को इस दुनिया की बुराइयों से दूर भेज रहा हूं, हम अब जन्नत में मिलेंगे.’’

‘‘बाकी सब कहां हैं?’’

‘‘मैं ने सब को मार दिया.’’

आयशा जोर से बिलख उठी. हसन के पैरों में सिर रख दिया, ‘‘नहीं बेटा, मैं तेरी मां हूं, यह गुनाह मत कर, हसन.’’

हसन ने आयशा को एक धक्का दिया. अभी तक बेहोशी की हालत में तो थी हीं. अत: वे गिर पड़ीं. हसन ने पल भर की देर किए बिना मां का गला भी काट दिया. फिर सना की तरफ मुड़ा, ‘‘तुझे भी नहीं छोड़ूंगा.’’

सना हसन को धक्का दे कर किचन की तरफ भागी और दरवाजा बंद करने की कोशिश करने लगी. हसन ने उस के पेट में चाकू घोंप दिया. पर सना आखिरी दम लगा कर किसी तरह हसन को धक्का दे कर किचन का दरवाजा अंदर से बंद करने में कामयाब हो गई. बहतेखून में, टूटती सांसों के साथ उस ने जोरजोर से एक गिलास से ग्रिल बजाई. हसन दरवाजा तोड़ने की कोशिश कर रहा था पर कामयाब नहीं हो पा रहा था.

आवाज सुन कर साथ वाले पड़ोसी अफजल की नींद खुल गई, उन्होंने झांका तो सना की बचाओबचाओ की आवाज सुनाई दी. अफजल ने भाग कर दूसरे पड़ोसी सुलतान बेग का दरवाजा खटखटाया. सब इकट्ठा हो कर किचन की तरफ भागे.

सना भयंकर दर्द से चिल्लाते हुए, कराहते हुए बता रही थी, ‘‘हसन ने सब को मार दिया है. वह मुझे भी मार देगा.’’

यह सुनते ही किसी ने पुलिस को फोन कर दिया. सना खून से लथपथ थी. 3-4 लोगों ने ग्रिल तोड़ कर सना को बाहर निकाला. भीड़ बढ़ती जा रही थी. रात के सन्नाटे में इतनी आवाजों से लोग उठते चले गए थे.

सना इतनी देर में जिंदगी की जंग हार गई. एक पड़ोसिन की गोद में ही उस ने आखिरी सांस ली. सब के रोंगटे खड़े हो गए. हसन अंदर से सब सुन रहा था. सब को सच पता चल चुका था. बाहर पुलिस की गाड़ी आने की आवाज सुनाई देने लगी.

हसन ने अफशा के साथ भागने की योजना बना रखी थी पर सना के बाहर निकलने पर पूरी योजना पर पानी फिर गया था.

पुलिस ने बाहर से दरवाजा खोलने के लिए कहा पर हसन ने दरवाजा नहीं खोला. फिर जहां से सना को बाहर निकाला गया था वहां एक पुलिसकर्मी ने घुस कर दरवाजे, खिड़की खोले. पुलिस अंदर घुसी, कुछ लोग भी हिम्मत कर के अंदर आ गए. अंदर का नजारा देख सख्त से सख्त दिल भी कांप गया. किसी ने भी कभी ऐसा मंजर नहीं देखा था.

हर तरफ खून से सनी लाशें, बच्चे, बड़े सब किसी अपने के ही हाथ अपनी जिंदगी गंवा चुके थे. ऊपर जा कर देखा तो सब की सांसें रुक गईं. ऊपर भी लाशें और मां के ही दुपट्टे से गले में फांसी का फंदा लगा झूलता हसन.

उसे फौरन नीचे उतारा गया पर अब कोई सांस बाकी नहीं थी. यह फंदा सिर्फ मां के दुपट्टे का नहीं था, यह फंदा था बचपन से ही बेटे होने के दंभ का, धार्मिक अंधविश्वासों की दिलोदिमाग पर छा जाने वाली जड़ों, दौलत के लालच का और चरित्रहीनता का.

काफी भीड़ इकट्ठी हो चुकी थी. आवाजें दरगाह तक भी पहुंचीं तो जमाल बाबा भी जिस तेजी से भीड़ के पीछे आ कर मामले को समझने की कोशिश कर रहा था उसी तेजी से पीछे हट कर गायब हो चुका था.

फंदा: भाग-2

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मुंबई के मुसलिम बहुल इलाके में शौकत अली अपनी पत्नी आयशा व 4 बच्चों सना, रूबी, हिबा व बेटे हसन के साथ हंसीखुशी रह रहे थे. हसन के बड़ा होने पर उस की मां आयशा चाहती थीं कि हसन पास के ही एक जमाल बाबा के पास जा कर ज्ञानधर्म की बातें सीखे. तंत्रमंत्र के नाम पर जमाल लोगों को गुमराह करता था और खूब धन ऐंठता था. हसन रोज शाम को उस बाबा के पास बैठने लगा. धीरेधीरे उस के व्यवहार में बदलाव आने लगा. उस ने अपनी सगी बहन तक पर कुदृष्टी रखनी शुरू कर दी थी. बहनें शादी के बाद ससुराल चली गईं तो हसन की शादी भी हो गई. अब वह नौकरी छोड़ कर बिजनैस करना चाहता था और इस के लिए उस ने अपने घर वालों के साथसाथ बहनों पर भी दबाव बनाना शुरू कर दिया और गहनों तक की डिमांड कर दी.

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उस रात सब चिंता में डूबे सोने चले गए. सना और हिबा की नींद उड़ गई थी. हिबा ने पूछ ही लिया, ‘‘बाजी, क्या सोच रही हो? हसन ने तो बड़ी मुश्किल में डाल दिया. मैं उसे अपने जेवर नहीं दे सकती… पर न दिए तो वह पहले की तरह हंगामा करेगा, क्या करें.’’

‘‘कुछ समझ नहीं आ रहा. अम्मी की शक्ल देख कर मन कररहा है कि कुछ इंतजाम कर ही दें… अब्बू ने मना तो किया है पर मैं रशीद से इस बारे में बात जरूर करूंगी.’’

अगले दिन नियमानुसार रशीद और जहांगीर आए, हसन कुछ उखड़ाउखड़ा सा था. दोनों के बारबार पूछने पर भी हसन गंभीर ही बना रहा. बस हां हूं में ही जवाब देता रहा. सना और हिबा ने उन्हें आगे कुछ न पूछने का इशारा किया तो फिर वे चुप रहे.

दोनों बहनें अपनेअपने परिवार के साथ अपनेअपने घर चली गईं तो शौकत ने हसन को बुलाया, ‘‘बेटा, यह गलती मत करो, अच्छीभली नौकरी है, बिजनैस के लिए न पैसा है न अनुभव. इस चक्कर में मत पड़ो.’’

हसन गुर्राया, ‘‘मैं फैसला कर चुका हूं और आप सब को मेरी मदद करनी ही पड़ेगी वरना…’’ कह हसन गुस्से में चला गया.

बेटे के तेवर देख कर वहां खड़ी आयशा का सिर चकरा गया.

हसन अब 35 साल का हो रहा था. बाबा के इशारे पर कुछ भी कर सकता था. अपने सब शागिर्दों में बाबा को सब से मूर्ख और हठधर्मी हसन ही लगा था.

शौकत के मना करतेकरते भी आयशा बेगम ने बेटे की ममता में बेटियों के आगे अपनी झोली फैला ही दी.

सना ने रशीद से बात की तो वह थोड़ा सोचने लगा. फिर कहा, ‘‘बहुत ज्यादा तो नहीं पर किसी तरह बिजनैस से 8-10 लाख ही निकाल कर दे पाऊंगा, तुम्हारा भाई है… कितना प्यार करता है सब को. कितनी इज्जत से बुलाता है. ऐसे भाई की जरूरत के समय पीछे हटना भी ठीक नहीं होगा. उस से बात कर के बता देना कि मैं इतनी ही मदद कर पाऊंगा.’’

शौहर की दरियादिली पर सना का दिल भर आया. भीगी आंखों से रशीद को शुक्रिया कहा तो उस ने सना का कंधा थपथपा दिया.

सना ने फोन पर हिबा को रशीद का फैसला बताया तो उस ने कहा, ‘‘मैं ने भी जहांगीर से बात की. कैश तो हम नहीं दे पाएंगे, पर अपने थोड़े गहने दे दूंगी. जहांगीर का भी यही कहना है कि अपनों का साथ तो देना ही चाहिए.’’

सना और हिबा एकसाथ मायके पहुंचीं. हसन घर पर ही था. शौकत अली औफिस में थे. जोया, शान सब दोनों को देख कर खुश हुए.

सना ने रशीद की बात दोहराई तो हसन मुसकराया, ‘‘रशीद भाई बहुत अच्छे हैं, मैं यह रकम जल्दी लौटा दूंगा.’’

हिबा ने भी गहनों का डब्बा उस के हाथ में रख दिया. हसन ने फौरन खोल कर चैक किया. बोला, ‘‘यही बहुत है,’’ फिर आयशा से बोला, ‘‘अम्मी, मैं तो अब बिजनैस की तैयारी करूंगा. सोच रहा हूं जोया को 3-4 महीनों के लिए उस के मायके भेज दूं.’’

जोया गर्भवती थी. हसन ने अब तक इस बारे में उस से बात भी नहीं की थी. वह हैरान हुई. कहने लगी, ‘‘अरे, अचानक आप ने यह कैसा प्रोग्राम बना लिया? मुझ से पूछा भी नहीं?’’

‘‘तुम से क्या पूछना, मायके चली जाओ वहां थोड़ा आराम कर लो. डिलीवरी के बाद आ जाना.’’

जोया ने आयशा की तरफ देखा तो वे बोलीं, ‘‘हां, चली जाओ. यहां तो तुम्हें आराम मिलने से रहा. फिर तुम्हें गए हुए भी बहुत दिन हो गए हैं.’’

जोया ने ‘हां’ में सिर हिला दिया. वह मन ही मन हैरान थी कि कैसा शौहर है यह. न बीवी से पूछा, न सलाह ली.

2 दिन बाद ही हसन जोया को उस के मायके छोड़ आया. अब हसन का घर आनेजाने का कोई टाइम नहीं था. दिन भर वह इधरउधर घूमता, बाबा के पास बैठता.

बहनों से उधार लेने की बात उस ने बाबा को बताई, तो बाबा ने कहा, ‘‘मैं तुम्हारे लिए बहुत कुछ करना चाहता हूं, तुम यहां से थोड़ी दूर एक कमरा किराए पर ले लो. मैं वहां अपने तंत्रमंत्र की शक्ति से तुम्हारे अच्छे भविष्य के लिए बहुत कुछ कर सकता हूं. यहां और लोगों की मौजूदगी में तुम्हारे लिए कुछ नहीं कर पाऊंगा. मैं अपनी ताकतों का इस्तेमाल तुम्हारे जैसे नेक बंदे के लिए कर सकता हूं.’’

‘‘पर मैं बहनों को यह रकम लौटाऊंगा कैसे? आप के कहने पर मैं ने नौकरी भी छोड़ दी है. मैं अब क्या काम करूंगा?’’

‘‘फिलहाल तो बहनों के पैसों से अपना खर्चा चलाते रहो. मैं अपने तंत्रमंत्र के बल पर तुम्हें जल्दी अमीर आदमी बना दूंगा.’’

हसन ने कुछ दूरी पर एक कमरे का फ्लैट किराए पर ले लिया. बाबा को इस बात

पर खुश देख कर हसन को लगा कि उस ने कोई बहुत बड़ा काम कर दिया है. अब वह बाबा के निर्देशानुसार उस खाली फ्लैट में जरूरी चीजें रखता रहा.

शौकत अली ने ठंडे दिमाग से बहुत सोचासमझा कि बेटा कहीं पैसे की कमी से परेशान तो नहीं हो रहा है. उन्होंने हसन को अपने पास बुलाया. कहा, ‘‘हसन, तुम क्या काम सोच रहे हो?’’

‘‘अभी तो कुछ नहीं… बाबा ने बताया है कि मैं बिजनैस में बहुत तरक्की करूंगा, इसलिए नौकरी मैं ने छोड़ दी थी.’’

‘‘तुम ने बाबा की बात सुन कर नौकरी छोड़ी है?’’ शौकत अली को गुस्सा आ गया.

‘‘हां, अब्बू. अब बिजनैस क्या करूं. यही सोच रहा हूं. वैसे प्रौपर्टी डीलिंग का काम मुझे अच्छा लगता है. आप तो कभी मेरी मदद ही नहीं करते.’’

शौकत ने खुद पर काबू रखते हुए शांत ढंग से कहा, ‘‘फिर कुछ सोचते हैं. आजकल हमारी जमीन के आसपास इतने कौंप्लैक्स, सोसायटी बनने लगी हैं. इस से हमारी जमीन की कीमत भी बढ़ रही है… इस सिलसिले में कोशिश कर के देख लो. किसी बिल्डर से बात कर के देख लो… पहले थोड़ी जमीन के लिए ही बात कर के देखना.’’

हसन को तो अपने कानों पर यकीन ही नहीं हुआ. उस के दिमाग में तो जमीन का खयाल ही नहीं आया था. तुरंत बोला, ‘‘सच?’’

फिर हसन ने कुछ लोगों से बात कर अपनी थोड़ी सी जमीन बेच दी. बदले में मिली मोटी रकम से उस की तबीयत खुश हो गई.

शौकत अली ने कहा, ‘‘अब इस पैसे से किसी अच्छे बिजनैस की शुरुआत कर सकते हो.’’

इतना मोटा पैसा हाथ में आएगा, यह तो हसन ने कभी सोचा भी नहीं था. फौरन जा कर बाबा को बताया तो जैसे बाबा की मुंहमांगी मुराद पूरी हो गई.

ऊपरी तौर पर उदास चेहरा बना कर बैठ गया बाबा. हसन ने पूछा, ‘‘क्या हुआ बाबा?’’

‘‘कुछ नहीं. एक बड़ी परेशानी ने आ घेरा है. खुदा भी पता नहीं अपने नेकबंदों का क्याक्या इम्तिहान लेता है.’’

‘‘क्या हुआ, बाबा?’’

‘‘हमारे गांव की एक बेवा औरत है. उस की एक जवान बेटी है. दोनों का कोई नहीं है. ससुराल वालों ने निकाल दिया है. बेचारी औरतें कहां जाएं? मेरा तो कोई ठिकाना नहीं है… और किस से कहूं उन का दुख… आजकल कौन समझता है किसी का दुखदर्द.’’

हसन चुपचाप बाबा का चेहरा देखता रहा.

बाबा फिर बोला, ‘‘आज तो वे मेरे कमरे पर आ गई हैं पर मैं उन्हें ज्यादा देर नहीं रख सकता. मैं ठहरा बैरागी, फकीर आदमी.’’

हसन को बाबा की बात पर बहुत दुख हुआ कि कितनी दया है उस के दिल में सब के लिए. फिर बोला, ‘‘बाबा, मेरे लिए कोई हुक्म?’’

‘‘बस, एक ठिकाना हो जाए तो मांबेटी जी लेंगी… तुम्हारी नजर में है कोई ऐसी जगह? किसी का कोई मकान?’’

हसन कुछ देर सोचता रहा. फिर बोला, ‘‘बाबा, अभी तो वही कमरा है जो आप ने अपने तंत्रमंत्र के कार्यों के लिए सोचा है… पर वहां तो आप को एकांत चाहिए न. और तो अभी कुछ समझ नहीं आ रहा है.’’

‘‘ठीक है, फिलहाल वहीं इंतजाम कर देते हैं मांबेटी का… थोड़े दिनों में कहीं और भेज देंगे. उस कमरे की चाबी मुझे दे दो, मैं आज ही मांबेटी को वहां ले जाता हूं.’’

हसन ने उसी समय घर से चाबी ला कर बाबा को दे दी. घर में अभी तक किसी को हसन के किराए के फ्लैट लेने की जानकारी नहीं थी.

अपने मूर्ख शागिर्द से बाबा को यही उम्मीद थी. वह औरत सायरा सचमुच बेवा थी, जिसे उस की चरित्रहीनता के कारण ससुराल वालों ने निकाल दिया था. बाबा और सायरा के सालों से प्रेमसंबंध थे. वह अब इधरउधर रिश्तेदारों के घर भटकने के बाद अचानक बाबा के पास ही आ गई थी.

बाबा ने उसी दिन सायरा और उस की बेटी अफशा को उस फ्लैट में पहुंचा दिया. अफशा थोड़ी पढ़ीलिखी थी पर मां की तरह ही पुरुषोंको रिझाने में माहिर.

अफशा को जब बाबा ने हसन से मिलवाया तो हसन खूबसूरत परी सी अफशा को देखता रह गया. सायरा पुरुषों की इस नजर से खूब वाकिफ थी. उस ने हसन की नजरों में अपने और अफशा का सुनहरा भविष्य देख लिया.

हसन जब चला गया तो दोनों मांबेटी खुल कर हंसी. सायरा ने कहा, ‘‘लो, संभालो इस हसन को अब. कुछ दिनों के लिए जिंदगी कुछ तो आसान होगी.’’

अफशा भी हंसी, ‘‘लग तो सही आदमी रहा था. बेचारा देखता ही रह गया.’’

‘‘हां, हमारे लिए तो सही आदमी ही था,’’ दोनों ने ठहाका लगाया.

बाबा अब मौका मिलते ही कमरे पर पहुंच जाते. सायरा के साथ वक्त बिताते. हसन अफशा की तरफ झुकता चला गया. उस ने उसे एक फोन भी ले दिया और कहा, ‘‘किसी भी चीज की जरूरत हो तो फोन कर देना.’’

हसन के आने की खबर होते ही सायरा घर से बाहर चली जाती. अफशा कोई भी बहाना कर देती थी, कभी काम ढूंढ़ने जाने का, तो कभी डाक्टर के पास जाने का.

एक दिन हसन ने अफशा के हाथ में अच्छीखासी मोटी रकम देते हुए कहा, ‘‘तुम्हें और तुम्हारी अम्मी को कभी परेशान होने की जरूरत नहीं है. मैं तुम लोगों का हमेशा ध्यान रखूंगा.’’

अफशा ने पूरे लटकेझटकों के साथ हसन को अपनी अदाओं का दीवाना बना लिया था.

एक बेटे का पिता, दूसरी भावी संतान के लिए मायके गई जोया को भूल वह अफशा की जुल्फों में बहकता चला गया. दोनों के बीच शारीरिक संबंध भी बन गए. घर वालों को उस की किसी हरकत की खबर नहीं थी.

एक दिन सना दोपहर में मायके आई तो आयशा घर का कुछ सामान लेने बाहर गई हुई थीं. हसन भी नहीं था. शौकत अली तो शाम तक ही आते थे. सना ने रूबी को गले से लगा कर खूब प्यार किया. हसन आ गया तो निगहत सब के लिए चाय बनाने चली गई. हसन को देख कर रूबी ने सना का हाथ जोर से पकड़ लिया. वह मुंह से अस्पष्ट आवाजें निकालते हुए सना से लिपट कर रोने लगी. रूबी बेचैन थी, डरी हुई थी. उस के हावभाव देख कर सना चौंक गई. रूबी कुछ अजीब सी आवाजें निकालती रही.

हसन ने सना को दुआसलाम किया, फिर रूबी को क्रोधित नजरों से देखा और ऊपर चला गया.

रूबी के सिर पर हाथ फेरते हुए सना ने पूछा, ‘‘क्या हुआ रूबी?’’

रूबी ने हसन की तरफ कुछ इशारे किए. सना के दिल को एक झटका सा लगा. पूछा, ‘‘हसन ने कुछ कहा?’’

रूबी ने ‘हां’ में सिर हिलाते हुए अपने शरीर पर कई जगह इशारे किए तो सना सब कुछ समझ गई और फिर गुस्से से सुलग उठी.

सना के सामने बात साफ थी कि भाई ने अपनी बीमार बहन का बलात्कार किया. सना का चेहरा गुस्से से तमतमा गया. उस ने तभी हिबा को फोन कर सब कुछ बताया और तुरंत आने को कहा.

आयशा और हिबा घर में लगभग एकसाथ ही घुसीं. हिबा का तमतमाया चेहरा देख कर आयशा हैरान हुईं, ‘‘क्या हुआ बेटा, इतने गुस्से में क्यों दिख रही हो?’’

हिबा ने उन के हाथ से सामान ले कर टेबल पर रखते हुए कहा, ‘‘आप हमारे कमरे में आएं, बाजी भी आई हैं.’’ आयशा सीधे कमरे में गईं. सना का चेहरा देख कर समझ गईं कि मामला गंभीर है. पूछा, ‘‘क्या हुआ सना? तुम लोग इतने गुस्से में क्यों हो?’’

सना ने तमतमाए चेहरे से बताना शुरू किया, ‘‘शर्म आ रही है हसन को भाई कहते हुए… आप को पता है उस ने क्या किया है?’’

आयशा चौंकी, ‘‘क्या किया उस ने?’’

‘‘उस ने अपनी बीमार, मजबूर, बड़ी बहन का बलात्कार किया है अम्मी,’’ कहते कहते क्रोध के आवेग में सना रो पड़ी.

आयशा को यह झटका इतना तेज लगा कि वे पत्थर के बुत की तरह खड़ी रह गईं. तभी तीनों को बाहर कुछ आहट सुनाई दी. तीनों ने पलट कर देखा तो हसन को बाहर जाते पाया. तीनों समझ गईं कि हसन ने पूरी बातें सुन ली हैं… वह जान गया है कि उस की पोल खुल चुकी है.

आयशा ने कहा, ‘‘शर्म आ रही है मुझे अपने ऊपर कि मैं अपनी बच्ची का ध्यान नहीं रख पाई.’’

शौकत अली औफिस से आए तो बेटियों को देख कर खिल उठे. दोनों के सिर पर हमेशा की तरह हाथ रख कर प्यार किया तो दोनों उन के गले लग कर सिसक उठीं.

वे चौंके. पूछा, ‘‘क्या हुआ बेटा, तुम लोग ठीक तो हो न? तुम्हारी ससुराल में सब ठीक तो हैं न?’’

सना ने रोते हुए कहा, ‘‘अब्बू, हम दोनों तो ठीक हैं पर रूबी…’’ और सना फिर रो पड़ी तो उन्होंने सोती हुई रूबी पर नजर डाली. फिर हिबा और आयशा को देखा तो वे दोनों भी रो रही थीं.

आयशा ने शौकत अली को इशारे से बाहर चलने के लिए कहा. बाहर आ कर आयशा बेगम ने रूबी के साथ हुए हादसे की

बात बताई. सुनते ही शौकत अली का खून खौल उठा, ‘‘कहां है वह? मैं उसे अब घर से निकाल कर ही रहूंगा… अब वह किसी भी हालत में इस घर में नहीं रहेगा.’’

आयशा ने उन्हें निगहत की मौजूदगी का एहसास करवाया तो वे अंदर बेटियों के पास गए और कहा, ‘‘तुम लोग बिलकुल परेशान न हों. उसे इस की सजा जरूर मिलेगी.’’

रशीद और जहांगीर के फोन आ रहे थे. अत: दोनों बहनें फिर आने की कह कर चली गईं.

जब से जोया गई थी, निगहत घर के काफी काम भी करने लगी थी. रूबी जब सोती

तो वह घर के कई काम निबटा देती थी. रूबी के जागने पर सिर्फ उस के साथ रहना ही उस का काम था. ‘यह हरकत हसन ने कब और कैसे करने की हिम्मत की होगी’, शौकत और आयशा सिर पकड़े यही बात सोच रहे थे.

हसन के लिए यह इतना मुश्किल भी नहीं रहा था. जब आयशा किसी काम से बाहर जाती थी, हसन किसी भी बहाने से, कुछ भी लेने के लिए निगहत को भी बाहर भेज देता था. निगहत भी बेफिक्र हो कर रूबी को भाई के पास छोड़ चली जाती थी, तब हसन रूबी के साथ बलात्कार करता था और चाकू दिखा कर उसे बहुत डरा धमका कर चुप रहने के लिए कहता था. उस के डर, उस के हावभाव देख कर आयशा चौंकती तो थीं पर इस का कारण उस की मानसिक अस्वस्थता ही समझी थीं. फिर रूबी हमेशा बहनों के ही ज्यादा करीब रही थी. अत: वह मां से अपना डर, अपना दर्द बता ही नहीं पाई.

उस रात किसी से खाना नहीं खाया गया. हसन रात 10 बजे घर वापस आया. रूबी सो रही थी. निगहत जा चुकी थी. शौकत ने उसे डांट कर बुलाया तो वह समझ गया कि उस से क्या कहा जाएगा. मांबहनों की पूरी बात सुन कर ही वह घर से निकला था. उस की करतूतों का पर्दाफाश हो चुका है, यह वह जानता था, फिर भी बेशर्मी से पिता के सामने आ डटा. पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’

शौकत अली ने कहा, ‘‘हुआ क्या है, तुम्हें पता है? तुम इस घर से अभी इसी वक्त निकल जाओ. हमें तुम्हारे जैसे बेहया बेटे की जरूरत नहीं है.’’

‘‘मैं क्यों निकलूं? यह मेरा भी घर है, मुझे इस घर से कोई नहीं निकाल सकता. समझे आप?’’

आयशा ने एक थप्पड़ उस के मुंह पर मारा, ‘‘हसन, अभी निकल जाओ घर से. इस से ज्यादा तुम्हारी बेशर्मी अब नहीं देख सकते. जबान लड़ा रहे हो अब्बू से?’’

‘‘वह आप को देखनी पड़ेगी,’’ फिर अपनी जेब से एक चाकू निकाल कर दिखा कर बोला, ‘‘मैं आप सब को मार दूंगा एक दिन… मैं आप सब से नफरत करता हूं.’’

शौकत और आयशा को बेटे की इस हरकत ने जैसे पत्थर बना दिया. उन्हें अपनी आंखों, कानों पर यकीन ही नहीं हुआ.

शौकत अली ने गंभीर आवाज में कहा, ‘‘हसन, तुम ने जो किया उस की सजा तुम्हें जरूर मिलेगी. मुझ से अब कभी कोई उम्मीद न करना.’’

‘‘वह तो आप को करनी पड़ेगी वरना जो अंजाम होगा उस का आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते.’’

‘‘होने दो, तुम अकेले ही मेरी औलाद नहीं हो. अब मैं सब कुछ बेटियों में बांट दूंगा, मेरे लिए तुम आज से मर गए हो.’’

‘‘यह तो आप भूल ही जाएं, यह नामुमकिन है.’’

‘‘तुम ने जो कर्म किया है अब उस की सजा भुगतने के लिए तैयार रहो.’’

‘‘मैं नहीं, आप तैयार रहना, अपनी बेटियों को तो आप कुछ भी नहीं दे पाएंगे, सब मेरा है, मैं बेटा हूं इस घर का, हर चीज पर सिर्फ मेरा हक है,’’ कह हसन अपने रूम में चला गया और जोर से दरवाजा बंद कर लिया.

हसन अब अपना काफी समय अफशा के साथ ही बिताने लगा. अभी जेब में पैसे काफी थे. बाबा उस के बिजनैस की कामयाबी के लिए मनचाही रकम मांगता रहता था. कई बार हसन अफशा के पास आता तो बाबा उसे वहीं कुछ तंत्रमंत्र की चीजें करता दिखता तो वह खुश हो जाता.

आयशा काफी दिन तो उस से बहुत नाराज रहीं, फिर बेटे के मोह ने जोर मारा तो उस की गलतियां भूलने की कोशिश करने लगीं.

सना और हिबा उस की गैरहाजिरी में ही सब से मिल कर चली जाती थीं. रूबी के साथ हुआ हादसा भुलाने लायक तो नहीं था, पर समय का भी अपना एक तरीका होता है, कुछ बातों को छोड़ आगे बढ़ने का तरीका.

रूबी को संभला हुआ देख सब ने राहत की सांस ली पर भाई ने किस तरह बहन की आबरू से खिलवाड़ किया है यह बात सब को बड़ी तकलीफ देती थी. दोनों अपनेअपने शौहर को भी यह बात नहीं बता पाई थीं.

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