फंदा: भाग-2

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मुंबई के मुसलिम बहुल इलाके में शौकत अली अपनी पत्नी आयशा व 4 बच्चों सना, रूबी, हिबा व बेटे हसन के साथ हंसीखुशी रह रहे थे. हसन के बड़ा होने पर उस की मां आयशा चाहती थीं कि हसन पास के ही एक जमाल बाबा के पास जा कर ज्ञानधर्म की बातें सीखे. तंत्रमंत्र के नाम पर जमाल लोगों को गुमराह करता था और खूब धन ऐंठता था. हसन रोज शाम को उस बाबा के पास बैठने लगा. धीरेधीरे उस के व्यवहार में बदलाव आने लगा. उस ने अपनी सगी बहन तक पर कुदृष्टी रखनी शुरू कर दी थी. बहनें शादी के बाद ससुराल चली गईं तो हसन की शादी भी हो गई. अब वह नौकरी छोड़ कर बिजनैस करना चाहता था और इस के लिए उस ने अपने घर वालों के साथसाथ बहनों पर भी दबाव बनाना शुरू कर दिया और गहनों तक की डिमांड कर दी.

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उस रात सब चिंता में डूबे सोने चले गए. सना और हिबा की नींद उड़ गई थी. हिबा ने पूछ ही लिया, ‘‘बाजी, क्या सोच रही हो? हसन ने तो बड़ी मुश्किल में डाल दिया. मैं उसे अपने जेवर नहीं दे सकती… पर न दिए तो वह पहले की तरह हंगामा करेगा, क्या करें.’’

‘‘कुछ समझ नहीं आ रहा. अम्मी की शक्ल देख कर मन कररहा है कि कुछ इंतजाम कर ही दें… अब्बू ने मना तो किया है पर मैं रशीद से इस बारे में बात जरूर करूंगी.’’

अगले दिन नियमानुसार रशीद और जहांगीर आए, हसन कुछ उखड़ाउखड़ा सा था. दोनों के बारबार पूछने पर भी हसन गंभीर ही बना रहा. बस हां हूं में ही जवाब देता रहा. सना और हिबा ने उन्हें आगे कुछ न पूछने का इशारा किया तो फिर वे चुप रहे.

दोनों बहनें अपनेअपने परिवार के साथ अपनेअपने घर चली गईं तो शौकत ने हसन को बुलाया, ‘‘बेटा, यह गलती मत करो, अच्छीभली नौकरी है, बिजनैस के लिए न पैसा है न अनुभव. इस चक्कर में मत पड़ो.’’

हसन गुर्राया, ‘‘मैं फैसला कर चुका हूं और आप सब को मेरी मदद करनी ही पड़ेगी वरना…’’ कह हसन गुस्से में चला गया.

बेटे के तेवर देख कर वहां खड़ी आयशा का सिर चकरा गया.

हसन अब 35 साल का हो रहा था. बाबा के इशारे पर कुछ भी कर सकता था. अपने सब शागिर्दों में बाबा को सब से मूर्ख और हठधर्मी हसन ही लगा था.

शौकत के मना करतेकरते भी आयशा बेगम ने बेटे की ममता में बेटियों के आगे अपनी झोली फैला ही दी.

सना ने रशीद से बात की तो वह थोड़ा सोचने लगा. फिर कहा, ‘‘बहुत ज्यादा तो नहीं पर किसी तरह बिजनैस से 8-10 लाख ही निकाल कर दे पाऊंगा, तुम्हारा भाई है… कितना प्यार करता है सब को. कितनी इज्जत से बुलाता है. ऐसे भाई की जरूरत के समय पीछे हटना भी ठीक नहीं होगा. उस से बात कर के बता देना कि मैं इतनी ही मदद कर पाऊंगा.’’

शौहर की दरियादिली पर सना का दिल भर आया. भीगी आंखों से रशीद को शुक्रिया कहा तो उस ने सना का कंधा थपथपा दिया.

सना ने फोन पर हिबा को रशीद का फैसला बताया तो उस ने कहा, ‘‘मैं ने भी जहांगीर से बात की. कैश तो हम नहीं दे पाएंगे, पर अपने थोड़े गहने दे दूंगी. जहांगीर का भी यही कहना है कि अपनों का साथ तो देना ही चाहिए.’’

सना और हिबा एकसाथ मायके पहुंचीं. हसन घर पर ही था. शौकत अली औफिस में थे. जोया, शान सब दोनों को देख कर खुश हुए.

सना ने रशीद की बात दोहराई तो हसन मुसकराया, ‘‘रशीद भाई बहुत अच्छे हैं, मैं यह रकम जल्दी लौटा दूंगा.’’

हिबा ने भी गहनों का डब्बा उस के हाथ में रख दिया. हसन ने फौरन खोल कर चैक किया. बोला, ‘‘यही बहुत है,’’ फिर आयशा से बोला, ‘‘अम्मी, मैं तो अब बिजनैस की तैयारी करूंगा. सोच रहा हूं जोया को 3-4 महीनों के लिए उस के मायके भेज दूं.’’

जोया गर्भवती थी. हसन ने अब तक इस बारे में उस से बात भी नहीं की थी. वह हैरान हुई. कहने लगी, ‘‘अरे, अचानक आप ने यह कैसा प्रोग्राम बना लिया? मुझ से पूछा भी नहीं?’’

‘‘तुम से क्या पूछना, मायके चली जाओ वहां थोड़ा आराम कर लो. डिलीवरी के बाद आ जाना.’’

जोया ने आयशा की तरफ देखा तो वे बोलीं, ‘‘हां, चली जाओ. यहां तो तुम्हें आराम मिलने से रहा. फिर तुम्हें गए हुए भी बहुत दिन हो गए हैं.’’

जोया ने ‘हां’ में सिर हिला दिया. वह मन ही मन हैरान थी कि कैसा शौहर है यह. न बीवी से पूछा, न सलाह ली.

2 दिन बाद ही हसन जोया को उस के मायके छोड़ आया. अब हसन का घर आनेजाने का कोई टाइम नहीं था. दिन भर वह इधरउधर घूमता, बाबा के पास बैठता.

बहनों से उधार लेने की बात उस ने बाबा को बताई, तो बाबा ने कहा, ‘‘मैं तुम्हारे लिए बहुत कुछ करना चाहता हूं, तुम यहां से थोड़ी दूर एक कमरा किराए पर ले लो. मैं वहां अपने तंत्रमंत्र की शक्ति से तुम्हारे अच्छे भविष्य के लिए बहुत कुछ कर सकता हूं. यहां और लोगों की मौजूदगी में तुम्हारे लिए कुछ नहीं कर पाऊंगा. मैं अपनी ताकतों का इस्तेमाल तुम्हारे जैसे नेक बंदे के लिए कर सकता हूं.’’

‘‘पर मैं बहनों को यह रकम लौटाऊंगा कैसे? आप के कहने पर मैं ने नौकरी भी छोड़ दी है. मैं अब क्या काम करूंगा?’’

‘‘फिलहाल तो बहनों के पैसों से अपना खर्चा चलाते रहो. मैं अपने तंत्रमंत्र के बल पर तुम्हें जल्दी अमीर आदमी बना दूंगा.’’

हसन ने कुछ दूरी पर एक कमरे का फ्लैट किराए पर ले लिया. बाबा को इस बात

पर खुश देख कर हसन को लगा कि उस ने कोई बहुत बड़ा काम कर दिया है. अब वह बाबा के निर्देशानुसार उस खाली फ्लैट में जरूरी चीजें रखता रहा.

शौकत अली ने ठंडे दिमाग से बहुत सोचासमझा कि बेटा कहीं पैसे की कमी से परेशान तो नहीं हो रहा है. उन्होंने हसन को अपने पास बुलाया. कहा, ‘‘हसन, तुम क्या काम सोच रहे हो?’’

‘‘अभी तो कुछ नहीं… बाबा ने बताया है कि मैं बिजनैस में बहुत तरक्की करूंगा, इसलिए नौकरी मैं ने छोड़ दी थी.’’

‘‘तुम ने बाबा की बात सुन कर नौकरी छोड़ी है?’’ शौकत अली को गुस्सा आ गया.

‘‘हां, अब्बू. अब बिजनैस क्या करूं. यही सोच रहा हूं. वैसे प्रौपर्टी डीलिंग का काम मुझे अच्छा लगता है. आप तो कभी मेरी मदद ही नहीं करते.’’

शौकत ने खुद पर काबू रखते हुए शांत ढंग से कहा, ‘‘फिर कुछ सोचते हैं. आजकल हमारी जमीन के आसपास इतने कौंप्लैक्स, सोसायटी बनने लगी हैं. इस से हमारी जमीन की कीमत भी बढ़ रही है… इस सिलसिले में कोशिश कर के देख लो. किसी बिल्डर से बात कर के देख लो… पहले थोड़ी जमीन के लिए ही बात कर के देखना.’’

हसन को तो अपने कानों पर यकीन ही नहीं हुआ. उस के दिमाग में तो जमीन का खयाल ही नहीं आया था. तुरंत बोला, ‘‘सच?’’

फिर हसन ने कुछ लोगों से बात कर अपनी थोड़ी सी जमीन बेच दी. बदले में मिली मोटी रकम से उस की तबीयत खुश हो गई.

शौकत अली ने कहा, ‘‘अब इस पैसे से किसी अच्छे बिजनैस की शुरुआत कर सकते हो.’’

इतना मोटा पैसा हाथ में आएगा, यह तो हसन ने कभी सोचा भी नहीं था. फौरन जा कर बाबा को बताया तो जैसे बाबा की मुंहमांगी मुराद पूरी हो गई.

ऊपरी तौर पर उदास चेहरा बना कर बैठ गया बाबा. हसन ने पूछा, ‘‘क्या हुआ बाबा?’’

‘‘कुछ नहीं. एक बड़ी परेशानी ने आ घेरा है. खुदा भी पता नहीं अपने नेकबंदों का क्याक्या इम्तिहान लेता है.’’

‘‘क्या हुआ, बाबा?’’

‘‘हमारे गांव की एक बेवा औरत है. उस की एक जवान बेटी है. दोनों का कोई नहीं है. ससुराल वालों ने निकाल दिया है. बेचारी औरतें कहां जाएं? मेरा तो कोई ठिकाना नहीं है… और किस से कहूं उन का दुख… आजकल कौन समझता है किसी का दुखदर्द.’’

हसन चुपचाप बाबा का चेहरा देखता रहा.

बाबा फिर बोला, ‘‘आज तो वे मेरे कमरे पर आ गई हैं पर मैं उन्हें ज्यादा देर नहीं रख सकता. मैं ठहरा बैरागी, फकीर आदमी.’’

हसन को बाबा की बात पर बहुत दुख हुआ कि कितनी दया है उस के दिल में सब के लिए. फिर बोला, ‘‘बाबा, मेरे लिए कोई हुक्म?’’

‘‘बस, एक ठिकाना हो जाए तो मांबेटी जी लेंगी… तुम्हारी नजर में है कोई ऐसी जगह? किसी का कोई मकान?’’

हसन कुछ देर सोचता रहा. फिर बोला, ‘‘बाबा, अभी तो वही कमरा है जो आप ने अपने तंत्रमंत्र के कार्यों के लिए सोचा है… पर वहां तो आप को एकांत चाहिए न. और तो अभी कुछ समझ नहीं आ रहा है.’’

‘‘ठीक है, फिलहाल वहीं इंतजाम कर देते हैं मांबेटी का… थोड़े दिनों में कहीं और भेज देंगे. उस कमरे की चाबी मुझे दे दो, मैं आज ही मांबेटी को वहां ले जाता हूं.’’

हसन ने उसी समय घर से चाबी ला कर बाबा को दे दी. घर में अभी तक किसी को हसन के किराए के फ्लैट लेने की जानकारी नहीं थी.

अपने मूर्ख शागिर्द से बाबा को यही उम्मीद थी. वह औरत सायरा सचमुच बेवा थी, जिसे उस की चरित्रहीनता के कारण ससुराल वालों ने निकाल दिया था. बाबा और सायरा के सालों से प्रेमसंबंध थे. वह अब इधरउधर रिश्तेदारों के घर भटकने के बाद अचानक बाबा के पास ही आ गई थी.

बाबा ने उसी दिन सायरा और उस की बेटी अफशा को उस फ्लैट में पहुंचा दिया. अफशा थोड़ी पढ़ीलिखी थी पर मां की तरह ही पुरुषोंको रिझाने में माहिर.

अफशा को जब बाबा ने हसन से मिलवाया तो हसन खूबसूरत परी सी अफशा को देखता रह गया. सायरा पुरुषों की इस नजर से खूब वाकिफ थी. उस ने हसन की नजरों में अपने और अफशा का सुनहरा भविष्य देख लिया.

हसन जब चला गया तो दोनों मांबेटी खुल कर हंसी. सायरा ने कहा, ‘‘लो, संभालो इस हसन को अब. कुछ दिनों के लिए जिंदगी कुछ तो आसान होगी.’’

अफशा भी हंसी, ‘‘लग तो सही आदमी रहा था. बेचारा देखता ही रह गया.’’

‘‘हां, हमारे लिए तो सही आदमी ही था,’’ दोनों ने ठहाका लगाया.

बाबा अब मौका मिलते ही कमरे पर पहुंच जाते. सायरा के साथ वक्त बिताते. हसन अफशा की तरफ झुकता चला गया. उस ने उसे एक फोन भी ले दिया और कहा, ‘‘किसी भी चीज की जरूरत हो तो फोन कर देना.’’

हसन के आने की खबर होते ही सायरा घर से बाहर चली जाती. अफशा कोई भी बहाना कर देती थी, कभी काम ढूंढ़ने जाने का, तो कभी डाक्टर के पास जाने का.

एक दिन हसन ने अफशा के हाथ में अच्छीखासी मोटी रकम देते हुए कहा, ‘‘तुम्हें और तुम्हारी अम्मी को कभी परेशान होने की जरूरत नहीं है. मैं तुम लोगों का हमेशा ध्यान रखूंगा.’’

अफशा ने पूरे लटकेझटकों के साथ हसन को अपनी अदाओं का दीवाना बना लिया था.

एक बेटे का पिता, दूसरी भावी संतान के लिए मायके गई जोया को भूल वह अफशा की जुल्फों में बहकता चला गया. दोनों के बीच शारीरिक संबंध भी बन गए. घर वालों को उस की किसी हरकत की खबर नहीं थी.

एक दिन सना दोपहर में मायके आई तो आयशा घर का कुछ सामान लेने बाहर गई हुई थीं. हसन भी नहीं था. शौकत अली तो शाम तक ही आते थे. सना ने रूबी को गले से लगा कर खूब प्यार किया. हसन आ गया तो निगहत सब के लिए चाय बनाने चली गई. हसन को देख कर रूबी ने सना का हाथ जोर से पकड़ लिया. वह मुंह से अस्पष्ट आवाजें निकालते हुए सना से लिपट कर रोने लगी. रूबी बेचैन थी, डरी हुई थी. उस के हावभाव देख कर सना चौंक गई. रूबी कुछ अजीब सी आवाजें निकालती रही.

हसन ने सना को दुआसलाम किया, फिर रूबी को क्रोधित नजरों से देखा और ऊपर चला गया.

रूबी के सिर पर हाथ फेरते हुए सना ने पूछा, ‘‘क्या हुआ रूबी?’’

रूबी ने हसन की तरफ कुछ इशारे किए. सना के दिल को एक झटका सा लगा. पूछा, ‘‘हसन ने कुछ कहा?’’

रूबी ने ‘हां’ में सिर हिलाते हुए अपने शरीर पर कई जगह इशारे किए तो सना सब कुछ समझ गई और फिर गुस्से से सुलग उठी.

सना के सामने बात साफ थी कि भाई ने अपनी बीमार बहन का बलात्कार किया. सना का चेहरा गुस्से से तमतमा गया. उस ने तभी हिबा को फोन कर सब कुछ बताया और तुरंत आने को कहा.

आयशा और हिबा घर में लगभग एकसाथ ही घुसीं. हिबा का तमतमाया चेहरा देख कर आयशा हैरान हुईं, ‘‘क्या हुआ बेटा, इतने गुस्से में क्यों दिख रही हो?’’

हिबा ने उन के हाथ से सामान ले कर टेबल पर रखते हुए कहा, ‘‘आप हमारे कमरे में आएं, बाजी भी आई हैं.’’ आयशा सीधे कमरे में गईं. सना का चेहरा देख कर समझ गईं कि मामला गंभीर है. पूछा, ‘‘क्या हुआ सना? तुम लोग इतने गुस्से में क्यों हो?’’

सना ने तमतमाए चेहरे से बताना शुरू किया, ‘‘शर्म आ रही है हसन को भाई कहते हुए… आप को पता है उस ने क्या किया है?’’

आयशा चौंकी, ‘‘क्या किया उस ने?’’

‘‘उस ने अपनी बीमार, मजबूर, बड़ी बहन का बलात्कार किया है अम्मी,’’ कहते कहते क्रोध के आवेग में सना रो पड़ी.

आयशा को यह झटका इतना तेज लगा कि वे पत्थर के बुत की तरह खड़ी रह गईं. तभी तीनों को बाहर कुछ आहट सुनाई दी. तीनों ने पलट कर देखा तो हसन को बाहर जाते पाया. तीनों समझ गईं कि हसन ने पूरी बातें सुन ली हैं… वह जान गया है कि उस की पोल खुल चुकी है.

आयशा ने कहा, ‘‘शर्म आ रही है मुझे अपने ऊपर कि मैं अपनी बच्ची का ध्यान नहीं रख पाई.’’

शौकत अली औफिस से आए तो बेटियों को देख कर खिल उठे. दोनों के सिर पर हमेशा की तरह हाथ रख कर प्यार किया तो दोनों उन के गले लग कर सिसक उठीं.

वे चौंके. पूछा, ‘‘क्या हुआ बेटा, तुम लोग ठीक तो हो न? तुम्हारी ससुराल में सब ठीक तो हैं न?’’

सना ने रोते हुए कहा, ‘‘अब्बू, हम दोनों तो ठीक हैं पर रूबी…’’ और सना फिर रो पड़ी तो उन्होंने सोती हुई रूबी पर नजर डाली. फिर हिबा और आयशा को देखा तो वे दोनों भी रो रही थीं.

आयशा ने शौकत अली को इशारे से बाहर चलने के लिए कहा. बाहर आ कर आयशा बेगम ने रूबी के साथ हुए हादसे की

बात बताई. सुनते ही शौकत अली का खून खौल उठा, ‘‘कहां है वह? मैं उसे अब घर से निकाल कर ही रहूंगा… अब वह किसी भी हालत में इस घर में नहीं रहेगा.’’

आयशा ने उन्हें निगहत की मौजूदगी का एहसास करवाया तो वे अंदर बेटियों के पास गए और कहा, ‘‘तुम लोग बिलकुल परेशान न हों. उसे इस की सजा जरूर मिलेगी.’’

रशीद और जहांगीर के फोन आ रहे थे. अत: दोनों बहनें फिर आने की कह कर चली गईं.

जब से जोया गई थी, निगहत घर के काफी काम भी करने लगी थी. रूबी जब सोती

तो वह घर के कई काम निबटा देती थी. रूबी के जागने पर सिर्फ उस के साथ रहना ही उस का काम था. ‘यह हरकत हसन ने कब और कैसे करने की हिम्मत की होगी’, शौकत और आयशा सिर पकड़े यही बात सोच रहे थे.

हसन के लिए यह इतना मुश्किल भी नहीं रहा था. जब आयशा किसी काम से बाहर जाती थी, हसन किसी भी बहाने से, कुछ भी लेने के लिए निगहत को भी बाहर भेज देता था. निगहत भी बेफिक्र हो कर रूबी को भाई के पास छोड़ चली जाती थी, तब हसन रूबी के साथ बलात्कार करता था और चाकू दिखा कर उसे बहुत डरा धमका कर चुप रहने के लिए कहता था. उस के डर, उस के हावभाव देख कर आयशा चौंकती तो थीं पर इस का कारण उस की मानसिक अस्वस्थता ही समझी थीं. फिर रूबी हमेशा बहनों के ही ज्यादा करीब रही थी. अत: वह मां से अपना डर, अपना दर्द बता ही नहीं पाई.

उस रात किसी से खाना नहीं खाया गया. हसन रात 10 बजे घर वापस आया. रूबी सो रही थी. निगहत जा चुकी थी. शौकत ने उसे डांट कर बुलाया तो वह समझ गया कि उस से क्या कहा जाएगा. मांबहनों की पूरी बात सुन कर ही वह घर से निकला था. उस की करतूतों का पर्दाफाश हो चुका है, यह वह जानता था, फिर भी बेशर्मी से पिता के सामने आ डटा. पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’

शौकत अली ने कहा, ‘‘हुआ क्या है, तुम्हें पता है? तुम इस घर से अभी इसी वक्त निकल जाओ. हमें तुम्हारे जैसे बेहया बेटे की जरूरत नहीं है.’’

‘‘मैं क्यों निकलूं? यह मेरा भी घर है, मुझे इस घर से कोई नहीं निकाल सकता. समझे आप?’’

आयशा ने एक थप्पड़ उस के मुंह पर मारा, ‘‘हसन, अभी निकल जाओ घर से. इस से ज्यादा तुम्हारी बेशर्मी अब नहीं देख सकते. जबान लड़ा रहे हो अब्बू से?’’

‘‘वह आप को देखनी पड़ेगी,’’ फिर अपनी जेब से एक चाकू निकाल कर दिखा कर बोला, ‘‘मैं आप सब को मार दूंगा एक दिन… मैं आप सब से नफरत करता हूं.’’

शौकत और आयशा को बेटे की इस हरकत ने जैसे पत्थर बना दिया. उन्हें अपनी आंखों, कानों पर यकीन ही नहीं हुआ.

शौकत अली ने गंभीर आवाज में कहा, ‘‘हसन, तुम ने जो किया उस की सजा तुम्हें जरूर मिलेगी. मुझ से अब कभी कोई उम्मीद न करना.’’

‘‘वह तो आप को करनी पड़ेगी वरना जो अंजाम होगा उस का आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते.’’

‘‘होने दो, तुम अकेले ही मेरी औलाद नहीं हो. अब मैं सब कुछ बेटियों में बांट दूंगा, मेरे लिए तुम आज से मर गए हो.’’

‘‘यह तो आप भूल ही जाएं, यह नामुमकिन है.’’

‘‘तुम ने जो कर्म किया है अब उस की सजा भुगतने के लिए तैयार रहो.’’

‘‘मैं नहीं, आप तैयार रहना, अपनी बेटियों को तो आप कुछ भी नहीं दे पाएंगे, सब मेरा है, मैं बेटा हूं इस घर का, हर चीज पर सिर्फ मेरा हक है,’’ कह हसन अपने रूम में चला गया और जोर से दरवाजा बंद कर लिया.

हसन अब अपना काफी समय अफशा के साथ ही बिताने लगा. अभी जेब में पैसे काफी थे. बाबा उस के बिजनैस की कामयाबी के लिए मनचाही रकम मांगता रहता था. कई बार हसन अफशा के पास आता तो बाबा उसे वहीं कुछ तंत्रमंत्र की चीजें करता दिखता तो वह खुश हो जाता.

आयशा काफी दिन तो उस से बहुत नाराज रहीं, फिर बेटे के मोह ने जोर मारा तो उस की गलतियां भूलने की कोशिश करने लगीं.

सना और हिबा उस की गैरहाजिरी में ही सब से मिल कर चली जाती थीं. रूबी के साथ हुआ हादसा भुलाने लायक तो नहीं था, पर समय का भी अपना एक तरीका होता है, कुछ बातों को छोड़ आगे बढ़ने का तरीका.

रूबी को संभला हुआ देख सब ने राहत की सांस ली पर भाई ने किस तरह बहन की आबरू से खिलवाड़ किया है यह बात सब को बड़ी तकलीफ देती थी. दोनों अपनेअपने शौहर को भी यह बात नहीं बता पाई थीं.

आगे पढ़ें- इसी बीच जोया ने बेटी को जन्म दिया. सब खुश हुए पर…

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