फंदा: भाग-3

इसी बीच जोया ने बेटी को जन्म दिया. सब खुश हुए पर हसन से किसी ने कोई बात नहीं की. शौकत, सना और हिबा ने रूबी की बात जानने के बाद हसन से बात बिलकुल बंद कर दी थी. आयशा उस से थोड़ी बहुत बात कर लेती थीं. उस के खाने, कपड़े की देखभाल वही कर रही थीं.

एक दिन सना ने फोन पर हिबा से कहा, ‘‘मैं ऐसे भाई की कोई मदद नहीं करूंगी, मैं उस से अपना पूरा पैसा वापस मांगूंगी. बहन की आबरू से खिलवाड़ करने वाले भाई से मेरा कोई मतलब नहीं है.’’

हिबा ने कहा, ‘‘आप ठीक कह रही हैं. नफरत हो गई है हसन से, इस ने हम बहनों को हमेशा ही बुरी नजर से देखा है, जोया जैसी सुघड़ बीवी है, सब ने हमेशा उस की हर बात मानी है, मैं भी मांग लूंगी अपने गहने वापस… मुझे भी नहीं करनी उस की मदद… जोया को भी नहीं बता पाएंगे उस की करतूत, बेचारी को धक्का लगेगा.’’

‘‘कल ही हसन से बात करने चलते हैं.’’

‘‘ठीक है.’’

सना रशीद को और हिबा अपनी ननदों को बच्चों का ध्यान रखने के लिए कह कर मायके पहुंचीं. उन्होंने आयशा से हसन के बारे में पहले ही पूछ लिया था. वह घर पर ही था. 4 बज रहे थे. वह सो रहा था. उन की आवाज से हसन की नींद खुल गई. उस ने नीचे से आ रही आवाजों पर ध्यान दिया. समझ गया कुछ बात होने वाली है. सना ने जोर से हसन को आवाज दी, तो वह नीचे आ कर अक्खड़ लहजे में बोला, ‘‘क्या है, बाजी?’’

‘‘मत कहो हमें बाजी… हम नहीं हैं तुम्हारी बहनें. तुम जैसे भाई पर हमें शर्म आती है.’’

हसन दोनों को गुस्से से घूरने लगा.

सना ने कहा, ‘‘मुझे अपने पैसे वापस चाहिए, मुझे तुम्हारी कोई मदद नहीं करनी है.’’

हिबा ने भी फटकार लगाई, ‘‘मुझे भी अपने गहने अभी वापस चाहिए.’’

इस स्थिति का तो हसन ने अंदाजा ही नहीं लगाया था. उस ने सोचा था अभी चिल्लाएंगी, ताने मारेंगी और चली जाएंगी, वे अपनी रकम वापस मांग लेंगी इस का तो अंदाजा ही नहीं था. अत: उस ने अपने सुर फौरन बदले, ‘‘मुझे माफ कर दो मुझ से गलती हो गई. मैं बहुत शर्मिंदा हूं.’’

‘‘नहीं हसन, इस गुनाह की कोई माफी नहीं.’’

तभी वहीं बैठी रूबी हसन से डर कर आवाजें निकालने लगीं. सना से रूबी की हालत देखी नहीं गई. उस ने हसन को एक थप्पड़ लगा दिया, ‘‘देख रहे हो बेशर्म. क्या हालत कर दी इस की, नफरत है हमें तुम से.’’

हसन का गुस्से के मारे बुरा हाल हो गया. पर इस समय हालात उस के काबू में नहीं थे. अत: उस ने नरमी से कहा, ‘‘मैं कल जोया को लेने जा रहा हूं. आप सब की रकम बहुत जल्दी वापस कर दूंगा,’’ कह कर हसन ऊपर चला गया.

जोया के नाम का सहारा ले कर उस ने उन लोगों के गुस्से को चालाकी से ठंडा करने की कोशिश की थी… अपनी मां और बहनों को वह इतना तो जानता ही था कि वे सब जोया को बहुत प्यार करते हैं और उसे कभी दुखी नहीं देखना चाहेंगे. इसलिए रूबी के साथ की गई उस की हरकत को कोई जोया को नहीं बताएगा, इस बात की उसे पूरी गारंटी थी.

सना और हिबा चली गईं. हसन अपनी चालाकियों पर मुसकराता हुआ जोया को लेने जाने की तैयारी करने लगा. अगली सुबह जल्दी निकल गया.

शाम को वह जोया, शान और नन्ही सी बेटी जिस का नाम जोया ने हसन की इच्छा

पर ही माहिरा रखा था, ले कर आ गया. नन्ही माहिरा को शौकत अली और आयशा ने गोद में ले कर खूब प्यार किया. रूबी जोया को देखते ही हसन की तरफ कुछ इशारे कर के बताने लगी तो आयशा ने रूबी को शांत कर दिया.

जोया और बच्चों के आते ही घर में हर समय छायी रहने वाली मनहूसियत कुछ कम हुई पर जोया ने महसूस किया कि कोई हसन से बात नहीं कर रहा है, उस ने एकांत में हसन से पूछा भी, ‘‘कुछ हुआ है क्या मेरे पीछे? सब चुप से हैं.’’

हसन ने हंसते हुए कहा, ‘‘अरे, कुछ नहीं. मैं जरा नए बिजनैस में बिजी था न… काम के प्रैशर में अब्बूअम्मी से ठीक से बात नहीं की, बाहर ज्यादा रहा तो वे नाराज हो गए. अब तुम लोग आ गए हो तो सब ठीक हो जाएगा. जल्दी बाजी लोगों को फोन कर के सब की दावत का इंतजाम करो, बहुत दिन हो गए हैं न.’’

जोया ने मुसकरा कर ‘हां’ में सिर हिलाया.

हसन सीधा बाबा के पास पहुंचा और बहनों के पैसे वापस मांगने के बारे में बताया. बाबा चौंका. फिर बहुत देर तक खूब उलटीसीधी बातें कर के उस ने हसन का बहुत खतरनाक तरीके से ब्रेनवौश किया. रहीसही कसर मजहबी बातों, अफशा की तनहा जिंदगी और खुदा और जन्नत के नाम पर उस की लच्छेदार बातें सुन कर हसन जब बाबा के पास से उठा तो वह कोई और ही हसन था. अपनेआप को बिलकुल अलग महसूस करने वाला खुदा का खास बंदा जो हर अपनेपराए की बुराई खत्म कर उन्हें जन्नत भेजने के लिए आया था. शैतानी दिमाग पर एक अजीब सा सुकून था.

हसन ने बहनों को फोन जोया से ही करवाया. वह जानता था कि बहनें जोया का मन रखने जरूर आएंगी. जोया के कहने पर शनिवार को सना और हिबा अपने बच्चों के साथ आ गईं, हसन से तो सना और हिबा ने बात ही नहीं की. दोनों जोया और उन के बच्चों से ही बातें करती रहीं. नन्ही माहिरा को देख कर सब के चेहरे खिल गए थे, फूल सी माहिरा को सना और हिबा ने खूब प्यार किया, उस के लिए लाए कपड़े और खिलौने दिए.

हसन हमेशा की तरह किचन में व्यस्त जोया का हाथ बंटाने लगा. काम में और बच्चों में व्यस्त होने के कारण जोया ने भाईबहनों के बीच पसरे सन्नाटे को महसूस नहीं किया.

शौकत अली और आयशा जब बाहर से घर लौटे तो हसन ने जोया के साथ मिल कर शानदार डिनर लगवाया. सब हमेशा की तरह साथ खाने बैठे. रूबी सना और हिबा के बीच दुबकी बैठी हुई थी. वह हसन से डरने लगी थी. जोया को रूबी का यह डर महसूस न हो, यह सोच कर वह सब के बच्चों में ही खेलता रहा.

शौकत और आयशा जो हसन की हरकतों से अंदर ही अंदर टूट चुके थे, किसी तरह जोया का चेहरा देख कर अपनेआप को सामान्य दिखाने की कोशिश कर रहे थे. 10 बजे तक सब का डिनर खत्म हुआ. सना और हिबा, जोया के साथ मिल कर बरतन समेटने में मदद करने लगीं. 12 बजे तक बच्चे हंगामा करते रहे.

फिर हसन ने कहा, ‘‘आप सब बातें करें, मैं आप सब के लिए शरबत बना कर लाता हूं.’’

जोया ने शौहर को प्यार भरी नजरों से देखा. सना, हिबा और बाकी लोगों ने कोई प्रतिक्रिया नहीं की ताकि जोया को कोई बात दुख न पहुंचाए. वह बेहद अच्छी इनसान है, यह सोच कर सब ने अपना गुस्सा अपने मन में ही रख लिया था.

हसन ने बेहद सावधानी से अपनी पैंट की जेब से निकाल कर बाबा का दिया एक पाउडर शरबत में मिलाया और ट्रे में रख कर सब को 1-1 गिलास सर्व किया.

उस ने खुद नहीं पिया तो जोया ने पूछा, ‘‘आप नहीं पीएंगे?’’

‘‘अभी नहीं, पेट बहुत भरा है. थोड़ी देर बाद.’’

हसन सब के शरबत पीने के बाद सब गिलास उठा कर ले भी खुद गया, आधे घंटे के बाद सब को तेज नींद आने लगी. जिस को जहां जगह मिली, लेटता गया. शौकत, रूबी, सना के तीनों बच्चे, हिबा और उस के तीनों बच्चे, शान ड्राइंगरूम में ही लेट गए. माहिरा सना की गोद में ही थी. आयशा व सना को जोया ऊपर ले गई. सब बहुत गहरी नींद में सोते चले गए.

हसन ने धीरे से मेन गेट और घर का हर दरवाजा, खिड़की अंदर से बंद कर ली. फिर इत्मीनान से बेखौफ हो कर गहरी नींद में सोए हुए सब से पहले शौकत, फिर हिबा, फिर रूबी, फिर हिबा के तीनों बच्चों, सना के तीनों बच्चों, अपने बेटे शान, सब की गरदन की नसें एक तेज धार वाले चाकू, जो उस ने एक कसाई से खरीदा था, से काटता चला गया. जो अविश्वसनीय था, वह घट चुका था. हसन पूरी तरह शैतान बन चुका था.

फिर हसन ऊपर की तरफ बढ़ा. उस ने वहां सब से पहले जोया और फिर अपनी 2 महीने की फूल सी बेटी माहिरा की गरदन पर भी चाकू चला दिया. हसन के हाथ जरा भी न कांपे. फिर उस ने सना की गरदन की नसें भी काट दीं, पर अचानक बेहोश सना की तेज दर्द से आंख खुल गई.

हसन हंसा, ‘‘चल तू अब अपनी आंखों से सब देख ले मरने से पहले. अब तुझे सब से बाद में मारूंगा.’’

गले की कटी नस से बेइंतहा बहते खून के कारण दर्द में भी सना की तेज चीख निकल गई. वह उठने की कोशिश करते हुए हसन को रोकने की कोशिश करने लगी.

चीख की आवाज से आयशा ने भी आंखें खोल दीं. गरदन घुमा कर जोया और माहिरा के शरीर से खून बहता देखा तो चीख पड़ीं, ‘‘यह क्या किया, हसन?’’

‘‘अभी मेरा काम खत्म नहीं हुआ है, आप और आप की बेटी जिंदा है अभी.’’

आयशा ने घबरा कर हाथ जोड़े, ‘‘नहीं बेटा, मेरी बेटी को छोड़ दे.’’

‘‘नहीं, मैं सब को मार दूंगा, मैं आप सब को इस दुनिया की बुराइयों से दूर भेज रहा हूं, हम अब जन्नत में मिलेंगे.’’

‘‘बाकी सब कहां हैं?’’

‘‘मैं ने सब को मार दिया.’’

आयशा जोर से बिलख उठी. हसन के पैरों में सिर रख दिया, ‘‘नहीं बेटा, मैं तेरी मां हूं, यह गुनाह मत कर, हसन.’’

हसन ने आयशा को एक धक्का दिया. अभी तक बेहोशी की हालत में तो थी हीं. अत: वे गिर पड़ीं. हसन ने पल भर की देर किए बिना मां का गला भी काट दिया. फिर सना की तरफ मुड़ा, ‘‘तुझे भी नहीं छोड़ूंगा.’’

सना हसन को धक्का दे कर किचन की तरफ भागी और दरवाजा बंद करने की कोशिश करने लगी. हसन ने उस के पेट में चाकू घोंप दिया. पर सना आखिरी दम लगा कर किसी तरह हसन को धक्का दे कर किचन का दरवाजा अंदर से बंद करने में कामयाब हो गई. बहतेखून में, टूटती सांसों के साथ उस ने जोरजोर से एक गिलास से ग्रिल बजाई. हसन दरवाजा तोड़ने की कोशिश कर रहा था पर कामयाब नहीं हो पा रहा था.

आवाज सुन कर साथ वाले पड़ोसी अफजल की नींद खुल गई, उन्होंने झांका तो सना की बचाओबचाओ की आवाज सुनाई दी. अफजल ने भाग कर दूसरे पड़ोसी सुलतान बेग का दरवाजा खटखटाया. सब इकट्ठा हो कर किचन की तरफ भागे.

सना भयंकर दर्द से चिल्लाते हुए, कराहते हुए बता रही थी, ‘‘हसन ने सब को मार दिया है. वह मुझे भी मार देगा.’’

यह सुनते ही किसी ने पुलिस को फोन कर दिया. सना खून से लथपथ थी. 3-4 लोगों ने ग्रिल तोड़ कर सना को बाहर निकाला. भीड़ बढ़ती जा रही थी. रात के सन्नाटे में इतनी आवाजों से लोग उठते चले गए थे.

सना इतनी देर में जिंदगी की जंग हार गई. एक पड़ोसिन की गोद में ही उस ने आखिरी सांस ली. सब के रोंगटे खड़े हो गए. हसन अंदर से सब सुन रहा था. सब को सच पता चल चुका था. बाहर पुलिस की गाड़ी आने की आवाज सुनाई देने लगी.

हसन ने अफशा के साथ भागने की योजना बना रखी थी पर सना के बाहर निकलने पर पूरी योजना पर पानी फिर गया था.

पुलिस ने बाहर से दरवाजा खोलने के लिए कहा पर हसन ने दरवाजा नहीं खोला. फिर जहां से सना को बाहर निकाला गया था वहां एक पुलिसकर्मी ने घुस कर दरवाजे, खिड़की खोले. पुलिस अंदर घुसी, कुछ लोग भी हिम्मत कर के अंदर आ गए. अंदर का नजारा देख सख्त से सख्त दिल भी कांप गया. किसी ने भी कभी ऐसा मंजर नहीं देखा था.

हर तरफ खून से सनी लाशें, बच्चे, बड़े सब किसी अपने के ही हाथ अपनी जिंदगी गंवा चुके थे. ऊपर जा कर देखा तो सब की सांसें रुक गईं. ऊपर भी लाशें और मां के ही दुपट्टे से गले में फांसी का फंदा लगा झूलता हसन.

उसे फौरन नीचे उतारा गया पर अब कोई सांस बाकी नहीं थी. यह फंदा सिर्फ मां के दुपट्टे का नहीं था, यह फंदा था बचपन से ही बेटे होने के दंभ का, धार्मिक अंधविश्वासों की दिलोदिमाग पर छा जाने वाली जड़ों, दौलत के लालच का और चरित्रहीनता का.

काफी भीड़ इकट्ठी हो चुकी थी. आवाजें दरगाह तक भी पहुंचीं तो जमाल बाबा भी जिस तेजी से भीड़ के पीछे आ कर मामले को समझने की कोशिश कर रहा था उसी तेजी से पीछे हट कर गायब हो चुका था.

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