अगर परेशान करे जांघों का फैट

रूपा टेढ़ीटेढ़ी चल रही है. अपनी इस चाल पर उसे बहुत शर्मिंदगी महसूस हो रही है. यह तब और बढ़ जाती है जब सामने वालों की हंसती आंखें उसे देखती हैं. कोईकोई तो मुसकरा कर पूछ ही लेता है कि क्या हो गया? तो वह कुछ कह नहीं पाती. शेफाली चलते हुए एकांत पाते ही जांघों के बीच साड़ी व पेटीकोट दबा लेती है. कुछ देर उसे राहत मिलती है पर हर समय वह ऐसा नहीं कर पाती, तो इस राहत से वंचित रह जाती है. वह कहती है कि मैं कुछ भी काम कर रही होऊं पर मेरा ध्यान बंट जाता है और रगड़ खाती जांघों पर ही केंद्रित रहता है. मेरी कार्यक्षमता इस से बहुत प्रभावित हो रही है. मूड भी खराब रहता है.

सुभाष बाथरूम में जा कर जांघों के बीच पाउडर लगाता है. उस से पहले जांघों को सूती कपड़े से पोंछता है. वह कहता है कि इस से मैं कई बार खुद को अपनी ही नजरों में गिरा हुआ महसूस करता हूं. इस तरह की स्थितियां हमारे या हमारे आसपास के कई लोगों में दिखती हैं. उन की जांघें छिल जाती हैं. तनमन दोनों पर ऐसा असर पड़ता है कि बीमार जैसी स्थिति हो जाती है. जांघों की इस रगड़ पर ध्यान न दिया जाए, तो कभीकभी बड़ेबड़े घाव हो जाते हैं, यानी स्थिति बहुत गंभीर हो जाती है. इस का निदान हर भुक्तभोगी चाहता है.

कारण क्या है

स्किन स्पैशलिस्ट डा. प्रमिला कहती हैं कि ऐसा मोटापे के कारण होता है. मोटापा जांघों पर भी होता है. अत: फ्रिक्शन यानी आपस में जांघों के टकराव से यह स्थिति होती है. अच्छा है कि इस का स्थायी निदान किया जाए और वह है खुद को ओवरवेट न होने दिया जाए. यदि ऐसा है तो वजन कम किया जाए. इस में सही खानपान और व्यायाम जल्दी तथा अच्छी भूमिका निभा सकता है. सावित्री इतनी मोटी भी नहीं है और उस की जांघें आपस में टकराती भी नहीं हैं तो फिर उसे यह समस्या क्यों है? इस पर डा. प्रमिला कहती हैं कि कभीकभी गलत पोस्चर में सोने के कारण भी ऐसा होता है. शरीर का वजन जहां पड़ना चाहिए वहां न पड़ कर कूल्हों से जांघों पर आ जाता है. जांघें नर्म और चर्बीली होती हैं, इस वजह से टकराने लगती हैं. अपना पोस्चर सही रख कर भी इस समस्या से बचा जा सकता है.

डा. पूनम बाली इस के चिकित्सकीय पक्ष की दृष्टि से कहती हैं कि जांघों में फैट ज्यादा जमा होता है. उन के आपस में टकराने से स्किन का प्रोटैक्टिव फंक्शन खत्म हो जाता है. इस से रैशेज हो जाते हैं तथा स्किन डार्क हो जाती है. यह सब देखने या अच्छा न लगने के स्तर पर ही नहीं है, बल्कि भुक्तभोगी को अच्छाखासा दर्द भी होता है. कई लोग तो रो पड़ते हैं. कई चिंता, तनाव से घिर जाते हैं. नहाने के बाद त्वचा को अच्छी तरह पोंछ कर ऐंटीसैप्टिक पाउडर लगाने से इस समस्या से काफी हद तक राहत पाई जा सकती है. पर बेहतर इलाज जांघों का वजन कम करना ही है. वे युवा जो लुक को ले कर कांशस हैं तथा उन का जीवनसाथी उन की छिली हुई जांघें देख कर क्या महसूस करेगा, यह सोचते हैं वे इस के लिए स्किन लाइट करने का लोशन डाक्टर के परामर्श से इस्तेमाल कर सकते हैं. स्किन टाइटनिंग क्रीम भी काफी उपयोगी व मददगार है. पर यह सब किसी विशेषज्ञ की सलाह के बिना न किया जाए वरना परेशानी कम होने के बजाय बढ़ सकती है. यानी यहां ऐलर्जी हो सकती है व इन्फैक्शन और बढ़ सकता है. इंद्रप्रस्थ अपोलो हौस्पिटल के सीनियर कंसल्टैंट व डर्मैटोलौजिस्ट डा. देवेंद्र मोहन कहते हैं कि जांघों का एरिया काफी इन्फैक्शन प्रोन एरिया है. इस के आसपास यौनांग, मूत्राशय, मलद्वार आदि होने के कारण यहां संक्रमण ज्यादा तथा जल्दी होता है. जांघों के लगने की समस्या गरमी व बारिश में ज्यादा होती है. अत: उस वक्त साफसफाई का पूरा ध्यान रखना जरूरी है. इस एरिया को सूखा रखा जाए और डाक्टर की सलाह से ऐंटीफंगल का इस्तेमाल किया जाए. रुचिका कहती हैं कि मैं ने जांघों की ऐक्सरसाइज कर के डेढ़ महीने में ही इस समस्या से नजात पा ली.

मोहन कहता है कि मैं ने पैरों की ऐक्सरसाइज कर के शुरू में ही इस समस्या को काबू कर लिया. फिर वह क्रम ऐसा बढ़ा कि जांघों के साथसाथ शरीर का वजन भी नियंत्रित हो गया.

घरेलू नुसखे

कुछ घरेलू नुसखे ऐसे हैं जिन्हें अपना कर इस समस्या से काफी हद तक राहत पाई जा सकती है:

इस एरिया में रात को सोने से पहले सरसों का तेल या हलदी लगाई जा सकती है. नीबू में पानी मिला कर लगाना भी राहत देता है. संतरे व किन्नू का रस भी इस्तेमाल किया जा सकता है. फलों की क्रीम भी अप्लाई की जा सकती है. ऐलोवेरा का रस भी रामबाण नुसखा है. नायलौन की या ऐसी ही दूसरी इनरवियर से बचें जो गीलापन न सोखती हो. देवेंद्र मोहन इस समस्या का एक और कारण बताते हैं. वे कहते हैं कि कभीकभी डायबिटीज के कारण भी यह समस्या हो सकती है. ऐसी स्थिति में इसे त्वचा की बीमारी मान कर ही न बैठ जाना चाहिए. अंदरूनी जांच भी करवानी चाहिए. समय पर किसी भी स्थिति को काबू किया जा सकता है. भारी जांघें समस्या खड़ी कर सकती हैं, यह ध्यान में रखने पर उन्हें हलका रखने की अपनेआप ही तलब होने लगती है. वाकिंग में तेजी ला कर या जिन को इस की आदत नहीं है, वे वाकिंग शुरू कर के भी इस समस्या के हल की ओर बढ़ सकते हैं.

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