मां बनने पर समय से जाए डाक्टर के पास

डाक्टर मालविका मिश्रा, महिला रोग विषेषज्ञ

मां बनना किसी भी महिला के लिये जिदंगी का सबसे सुखद अहसास होता है. इसको और सुखद बनाने के लिये जरूरी है कि मां की सेहत की देखभाल बहुत ध्यान पूर्वक की जायें. मां बनने पर सबसे पहले डाक्टर के पास जाये. यह ना सोचे कि जब कोई दिक्कत होगी तब जायेगे. पहले के समय में जब कोई दिक्कत होती थी तभी महिलाओं को डाक्टर के पास ले जाया जाता था. अब गर्भ के ठहरते ही होने वाली मां को डाक्टर के पास जाना चाहिये. पहले यह काम सास या घर की कोई दूसरी महिला करती थी. अब ज्यादातर मामलों में पति खुद डाक्टर के पास ले जाता है. कई बार महिला खुद भी डाक्टर के पास संपर्क करने चली जाती है. यह बदलाव बहुत अच्छा है. समय पर डाक्टर के पास जाने से बहुत सारी उन बीमारियों से बचाव होने लगा है जिनकी जानकारी पहले नहीं हो पाती थी.

मां बनने वाली महिला को भी अपने बारें में सबकुछ पता होना चाहिये. उसे यह जानना भी जरूरी होता है कि किस तरह के लक्षण दिखाई देने पर डाक्टर के पास जाना चाहिये. मां बनने के बाद कुछ रेगुलर जांच भी कराते रहना चाहिये. इससे होने वाली परेशानी का हाल पहले पता चल जाता है. गर्भवती महिला और उसकी देखभाल में लगे लोगों को इन बातों की जानकारी होनी जरूरी होती है. इस संबंध में महिलारोग विषेषज्ञ डाक्टर मालविका मिश्रा से बातचीत हुई. डाक्टर मालविका ने कुछ बातें बताई. जिनसे मां बनने वाली महिला की जानकारियां बढ जाती है. वह कहती है कि समय से डाक्टर के पास जाने से भविष्य में होने वाली दिक्कते कम हो सकती है.

गर्भधारण के लिये पहले से ही तैयारी करना ठीक होता है. गर्भधारण की तैयारी करने पर ही महिला को फ्लोरिक एसिड लेना शुरू कर देना चाहिये. जैसे ही माहवारी रूके डाक्टर के पास जाना चाहिये. ड़ाक्टर की सलाह पर ब्लड टेस्ट कराना चाहिये. इसमें हीमाग्लोबिन, ब्लड ग्रुप, वीडीआरएल, आरबीएस और एचआईवी जैसी जांचे प्रमुख होती है.

जरूरत पडने पर पेशाब की जांच और अल्ट्रासंाउड भी करा लेना चाहिये. ब्लड टेस्ट के जरीये होने वाली मां के शरीर में हीमोग्लोबिन, शुगर और थायरायड का पता लगा लेना चाहिये. इससे अगर कोई परेशानी हो तो उसके हिसाब से इलाज समय पर होने लगता है.

गर्भावस्था के शुरूआती महीने से 6 माह तक हर माह डाक्टर से चेकअप कराना जरूरी होता है. चेकअप में मां का वजन, ब्लड प्रेशर, बच्चे का विकास, उसके दिल की धडकन को देखा जाता है. अगर कोई परेशानी दिखती है तो डाक्टर उसका इलाज शुरू कर देता है.

चैथे माह में गर्भवती महिला को ताकत की दवायें आयरन और कैल्शियम दी जाती है. ताकत का पाउडर भी दिया जाता है. आयरन महिला के हीमोग्लोबिन बढाने का काम करता है. कैल्शियम की गोली हडिडयों में आने वाली कमजोरी को दूर करती है. यह दवायें बच्चा पैदा होने के बाद तक चलती रहती है.

गर्भवती को टेटवेक के 2 इंजेक्शन दिये जाते है. पहला इंजेक्शन 5 वें महीने और दूसरा 6 महीने में लगाया जाता है.

गर्भावस्था के 7 वें माह से हर 15 दिन में रेगुलर चेकअप कराना चाहिये. ब्लड की कुछ जांचें हर माह कराई जाती है. जिससे शरीर में होने वाले नुकसानदायक बदलाव का पता पहले से चल जाये.

गर्भावस्था के दौरान 2 अल्ट्रासाउंड कराये जाते है. पहला अल्ट्रासांउड 5 वें माह में यह देखने के लिये कराया जाता है कि बच्चे के सभी अंग ठीक से बन गयें है. दूसरा अल्ट्रासाउंड 8 वें माह में कराया जाता है. इससे बच्चे का विकास, बच्चेदानी में पानी और गर्भ की स्थित का पता चल जाता है जरूरत पडने पर अल्ट्रासांउड ज्यादा भी हो सकते है.

7 वें माह में बच्चे की जांच करानी चाहिये. अगर कोई परेशानी होने वाली हो तो प्रसव पहले करा लिया जाता है. इस समय बच्चे को बाहर भी पाला जा सकता है. 7 वें माह में बच्चे के पेट में घूमने का ध्यान रखना चाहिये. अगर उसके घूमने का अहसास न हो तो डाक्टर के पास जाना चाहिये.

8 वें माह में 4 बातों का खास ख्याल रखना चाहिये. पहला: बच्चे का कम या न घूमना, दूसरा: रूकरूक कर दर्द आना, तीसरा: अंदर के अंग से खून आना, चार: अंदर के अंग से पानी आना. इनमें से कुछ भी हो तो तुरंत डाक्टर के पास जाना चाहिये.

खांसी और कब्ज नहीं होने चाहिये. अगर यह परेशानी हो तो डाक्टर से पास जाये. जिससे यह बढने न पायें. गर्भावस्था के दौरान मां को अच्छी डाइट लेनी चाहिये. अच्छी डाइट से मां स्वस्थ्य रहती है और एक स्वस्थ्य बच्चे को जन्म देती है. शुरू के 3-4 महीनों में बच्चे के अंग बनते है. इस समय मां को अपनी डाइट का खास ख्याल रखना चाहिये.

कोई ऐसी दवा नहीं लेनी चाहिये जिसके खाने का खराब प्रभाव होने वाले बच्चे पर पडे. इसलिये गर्भावस्था में कोई भी दवा बिना डाक्टर से पूछे नहीं लेना चाहिये खाना एक साथ न खाकर थोडी थोडी देर में खाते रहना चाहिये. ताजे फल हरी सब्जी का सेवन करना चाहिये.

चाय काफी कोल्ड ड्रिंक का सेवन कम करना चाहिये. चाइनीज और मैदे से बनी चीजे भी नहीं खानी चाहिये. दूध और उससे बनी चीजों का सेवन ज्यादा करना चाहिये. इन बातों का ख्याल करके गर्भावस्था को सुखद बनाया जा सकता है.

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जब बनें पहली बार मां तो शरीर में आयरन की मात्रा हो सही

डा. बसब मुखर्जी, औब्सटेट्रिशियन एंड गायनेकोलौजिस्ट, एमआरसीओजी, कोलकाता

वैसे तो उम्र के हर पड़ाव पर चुस्तदुरुस्त रहना व्यक्ति की प्राथमिकता होनी चाहिए, पर पहली बार मां बनने वाली महिलाओं को अपनी सेहत का ध्यान रखने के लिए खासतौर पर सावधानी बरतनी चाहिए. उन्हें उन बीमारियों या कमियों के बारे में पता होना चाहिए, जो गर्भवती महिलाओं पर असर डाल सकती हैं.

एनीमिया को एक ऐसी स्थिति के रूप में पारिभाषित किया जाता है, जब आप के शरीर में ऊतकों तक पर्याप्त मात्रा में आक्सीजन पहुंचाने के लिए लाल रक्त कोशिकाओं की कमी रहती है. एनीमिया गर्भवती महिलाओं में पाई जाने वाली सामान्य स्थिति है, जिस से उन के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है. सभी गर्भवती महिलाओं में से 42 फीसदी महिलाएं अपनी गर्भावस्था की किसी न किसी स्टेज पर एनीमिया की शिकार होती हैं.

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आयरन और फोलेट से भरपूर संतुलित भोजन करें

एनीमिया से बचने और शरीर में खून या लौह तत्वों की कमी को दूर करने के लिए आयरन या फोलिक एसिड से भरपूर संतुलित भोजन करना पहला कदम है. कई शाकाहारी और मांसाहारी पदार्थों में आयरन प्रचुर मात्रा में पाया जाता है. रेड मीट, चिकन, मछली, अंडों, अंकुरित अनाज, सूखी बीन्स और हरी पत्तेदार सब्जियां आयरन का सब से बेहतरीन स्रोत है. यह फूड आइटम्स सभी जगह आसानी से मिल जाते हैं.

डाक्टरों की सलाह से सप्लिमेंट्स लें, डाइट की पोषक क्षमता बढ़ाएं

हालांकि गर्भावस्था में पोषक तत्वों से भरपूर और संपूर्ण भोजन भी कई बार शरीर की पोषण संबंधी जरूरतों को पूरा नहीं कर पाता, इसलिए गर्भवती महिलाओं को अपनी डाइट में बड़ी मात्रा में आयरन से भरपूर पदार्थों को शामिल करने की जरूरत होती है.

गर्भवती महिलाएं डाक्टर की सिफारिश के अनुसार आयरन सप्लिमेंट्स को अपने आहार में शामिल करें. इस के साथ ही पहली बार मां बनने वाली महिलाओं को कैल्शियम और आयरन सप्लिमेंट्स भी देने की अकसर सिफारिश की जाती है.

समयसमय पर अपने हीमोग्लोबिन लेवल की जांच करें

समयसमय पर जांच कराते रहने से हमेशा ही किसी समस्या के उभरने का समय से पता चलता है. विशेषज्ञों की सिफारिश के अनुसार गर्भवती महिलाओं को कम से कम 3 बार अपने हीमोग्लोबिन लेवल की जांच करानी चाहिए. जांच में हीमोग्लोबिन का 12 से कम पाया जाना आयरन की कमी का सूचक है, जबकि अगर जांच में किसी का हीमोग्लोबिन लेवल 10.5 से कम निकलता है तो व्यक्ति शरीर में खून की कमी या एनीमिया का शिकार होता है. इसलिए समयसमय पर हीमोग्लोबिन की जांच कराना जरूरी है.

मानसिक स्वास्थ्य भी शारीरिक सेहत जितना महत्वपूर्ण है

हालांकि इस में कोई शक नहीं है कि एनीमिया का प्रारंभिक कारण शरीर को ताकत देने वाले लौह तत्वों से युक्त पदार्थों का भोजन में पर्याप्त रूप से न शामिल होना माना जाता है. कई बार एनीमिया के रोगियों में सोचनेसमझने की क्षमता गड़बड़ हो सकती है और डिप्रेशन के शिकार हो सकते हैं. यह स्थिति एनीमिया को और गंभीर बना देती है.

इस के अलावा पहली बार मां बनने में मानसिक स्वास्थ्य की काफी चुनौतियां आती हैं, जो काफी हानिकारक होती हैं और काफी हद तक नुकसान पहुंचाती हैं. इसीलिए यह महत्वपूर्ण है कि महिला तनाव न ले और अपने जीवन के सब से यादगार और सब से खुशनुमा पलों का आनंद उठाए.

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जागरूक रहें, छोटीछोटी चीजों को ठीक करें

सेहतमंद बने रहने के लिए जागरूक रहना और छोटेछोटे कदम उठाना काफी लाभदायक हो सकता है, जैसे खाना खाने के साथ चाय या कौफी नहीं पीनी चाहिए, क्योंकि यह सब जानते हैं कि इस से भोजन में शामिल आयरन को अपनाने या अवशोषित करने में शरीर को काफी बाधाओं का सामना करना पड़ता है. कास्ट आयरन के बरतनों में पका हुआ खाना अन्य बरतनों में पके हुए खाने की अपेक्षा आयरन की मात्रा 80 प्रतिशत तक बढ़ा देता है.

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