खतरों से भरा फिश पैडीक्योर

कुछ दिन पहले एक युवती न्यूयार्क, अमेरिका के एक डाक्टर के पास पैर के नाखूनों की शिकायत ले कर गई. उस के पैरों के नाखून पहले तो काले पड़ गए थे और फिर पूरी तरह निकल गए थे. उस के परिवार में यह रोग किसी को नहीं था. टैस्ट के बाद पता चला कि 6 माह पूर्व उस ने फिश पैडीक्योर कराया था जिस में पैरों को मछलियों के टैंक में डाल कर बैठना होता है.

मछलियों ने नाखूनों के मैट्रिक्स काट डाले थे और उसे औनिकोमाडेसिस की बीमारी हो गई थी. इस से न सिर्फ नाखूनों का बढ़ना बंद हो गया था, बल्कि वे त्वचा से अलग भी हो गए थे.

यह मामला स्किन की बीमारियों की पत्रिका जामा डर्मैटोलौजी पत्रिका में प्रकाशित हुआ था. फिश पैडीक्योर से स्टैफीलोकोकस और माइकोबैक्टिरियोसिस बीमारियां भी होती हैं. इन से त्वचा की कई बीमारियां पूरे बदन में हो सकती हैं जिन में पिंपल्स, सैल्युटाइटिस, न्यूमोनिया तक शामिल हैं.

सड़े पैरों को खाना मजबूरी

स्टैफीलोकोकस वर्षों तक शरीर में निष्क्रिय पड़ा रहता है. पर जब सक्रिय होने लगे तो जानलेवा बन जाता है. खून में घुस कर यह बैक्टीरिया शरीर के दूसरे हिस्सों और अंगों पर बीमारी फैला सकता है. अगर ऐंटीबायोटिक न दी जाए तो बचने के चांस 20% रह जाते हैं. ऐंटीबायोटिक से इलाज काफी हद तक सफल रहता है.

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फिश पैडीक्योर असल में खतरों से भरा है पर फैशन की अंधी दौड़ में देश के बहुत सारे ब्यूटीपार्लरों में दिख सकता है. थाईलैंड, कंबोडिया, सिंगापुर आदि के बाजारों में बहुत जगह टैंकों में तैरती मछलियां दिखेंगी जिस के पानी में पैर लटका कर लोग अपना फिश पैडीक्योर कराते हैं. यह प्रचार का बल है कि मछलियां कोई डाक्टर न होते हुए भी पैडीक्योर ऐक्सपर्ट मान ली गई हैं.

गारा रुफा नाम की छोटी मछलियां असल में पैरों की खाल खाती हैं क्योंकि उन्हें भूखा रखा जाता है. इन मछलियों का भारत में आयात किया जाता है. इन्हें अपना प्राकृतिक खाना नहीं मिलता और ग्राहकों के सड़े पैरों को खाना इन की मजबूरी होती है जबकि ग्राहक इन के काटने से होने वाली गुदगुदी को पैडीक्योर समझ लेते हैं.

मनोरंजन के नाम पर अनदेखी

इन मछलियों का पानी अकसर साफ नहीं किया जाता और मरी मछलियां और मछलियों का मल भी पानी में घुलता रहता है जो ग्राहकों के पैरों के पोरों में घुसता रहता है. इस में तरहतरह के बैक्टीरिया होते हैं. इन से हैपाटाइटिस सी और एचआईवी जैसी गंभीर बीमारी होने की भी पूरी संभावना होती है.

चूंकि ये मछलियां ट्रैंड या प्रशिक्षित नहीं होतीं, ये पैरों की स्किन को कहीं से भी काट सकती हैं, जिस से पैर में जगहजगह महीन घाव हो सकते हैं. इन घावों को केवल ऐंटीबायोटिक से ही ठीक किया जा सकता है पर यदि बैक्टीरिया ब्लड स्ट्रीम में चला जाए तो खतरा बड़ा हो जाता है.

कुछ देशों ने इन स्पा पर बैन लगा दिया है पर कुछ देश पर्यटकों को मनोरंजन का एक और अवसर देने के नाम पर इस की अनदेखी कर रहे हैं. भारत में अभी कोई बैन नहीं है. इन आयातित मछलियों को क्व8 से ले कर क्व30 प्रति मछली के हिसाब से होलसेल में खरीदा जा सकता है.

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