बच्चों को गैजेट्स दें, मगर कंट्रोल भी जरूरी

हाईटेक होते ज़माने में जहां हर चीज़ मोबाइल एप्स पर उपलब्ध होती जा रही है तो वहीँ कोविड 19 में बच्चों का स्क्रीन टाइम भी बढ़ गया है. बच्चों की एक्टीविटीज और पढ़ाई भी अब ऑनलाइन हो रही है. ऐसे में बच्चों को मोबाइल या दूसरे गैजेट्स से दूर रखना संभव नहीं.

आज के समय में देखा जाए तो 2 साल के बच्चे भी टच स्क्रीन फोन चलाना, स्वाइप करना, लॉक खोलना और कैमरे पर फोटो खींचना जानते हैं. एक नए रिसर्च (82 सवालों के आधार पर) के अनुसार, 87% अभिभावक प्रतिदिन औसतन 15 मिनट अपने बच्चों को स्मार्टफोन खेलने के लिए देते हैं.
62% अभिभावकों ने बताया कि वे अपने बच्चों के लिए ऐप्स डाउनलोड करते हैं. हर 10 में से 9 अभिभावकों के मुताबिक़ उन के छोटी उम्र के बच्चे भी फोन स्वाइप करना जानते हैं. 10 में से 5 ने बताया कि उन के बच्चे फोन को अनलॉक कर सकते हैं जबकि कुछ अभिभावकों ने माना कि उन के बच्चे फोन के अन्य फीचर भी ढूंढ़ते हैं.

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गैजेट के अधिक इस्तेमाल से सेहत पर असर

माइकल कोहेन ग्रुप द्वारा किए गए रिसर्च से पता चलता है कि टीनएजर्स गैजेट्स से खेलना ज़्यादा पसंद करते हैं. गैजेट्स ले कर दिन भर बैठे रहने के कारण उन में मोटापे की समस्या बढ़ रही है. साथ ही आईपैड, लैपटॉप, मोबाइल आदि पर बिज़ी रहने के कारण वे समय पर सो भी नहीं पाते जिस से उन्हें शारीरिक यानी स्वास्थ्य समस्याओं से दोचार होना पड़ता है. शारीरिक के साथ मानसिक रूप से भी गैजेट्स उन्हें नुक्सान पहुंचा सकते हैं. मोबाइल हो या कंप्यूटर, इन में जिस तरह के कंटेंट वे देखते हैं उस का सीधा असर उन के दिमाग और सोच पर पड़ता है.

सिर्फ शारीरिक मानसिक परेशानियां ही नहीं बल्कि गैजेट्स के अधिक इस्तेमाल की आदत उन्हें किसी संभावित खतरे की तरफ भी धकेल सकती है. ऐसा ही एक खतरा है साइबर बुलिंग. चाइल्ड राइट्स एंड यू (CRY ) द्वारा दिल्ली एनसीआर के 630 किशोरों पर किये गए सर्वे में पाया गया कि करीब 9. 2 % ने साइबर बुलिंग का अनुभव किया और उन में आधे से ज्यादा ने यह बात अपने पेरेंट्स या टीचर से भी शेयर नहीं की.

फरवरी 2020 में ऑनलाइन स्टडी और इंटरनेट एडिक्शन नाम से किये गए अध्ययन में पाया गया कि बच्चा जितना ज्यादा इंटरनेट और गैजेट्स का प्रयोग करता है इस तरह की संभावनाएं उतनी ही ज्यादा बढ़ जाती हैं. 2. 2 % किशोर (13 -18 साल) जिन्होंने 3 घंटे से ज्यादा समय तक इंटरनेट का प्रयोग किया वे ऑनलाइन बुलिंग के शिकार बने तो वहीँ 28 % किशोर जिन्होंने 4 घंटे से अधिक का समय इंटरनेट पर बिताया उन्हें साइबर बुलिंग सहना पड़ा.

गैजेट्स का अधिक इस्तेमाल करने वाले किशोर कई बार साइबर अपराधों में खुद भी लिप्त हो जाते हैं. उन्हें दूसरों से बदला लेने का यह सहज और आसान जरिया नजर आता है जहाँ उन की पहचान भी छिपी रह सकती है.

मुंबई में रहने वाले दिव्य को अपने क्लास की एक लड़की सुधि ने कभी झगड़े में उल्टासीधा कह दिया था. इस का बदला लेने के लिए दिव्य ने साइबर वर्ल्ड का सहारा लिया. उस ने सुधि के नाम पर एक फर्जी फेसबुक पेज बनाया और उस पर सुधि की तसवीरें लगाते हुए कुछ ऐसे खतरनाक और वल्गर पोस्ट डालने शुरू किए कि कमेंट बॉक्स में गंदेगंदे मैसेज आने लगे. सुधि को इस बारे में कुछ पता नहीं था. स्कूल के बच्चे सुधि को ले कर कानाफूसी करने लगे और उस से कतराने लगे. सुधि समझ ही नहीं पाई कि क्या हुआ है. यहाँ तक कि उस की पक्की सहेली ने भी उस से बातें करनी बंद कर दीं. सुधि द्वारा बारबार पूछे जाने पर सहेली ने एक दिन उसे सारे पोस्ट दिखाए. सुधि दंग रह गई. उसे समझ नहीं आया कि उसे इस तरह कौन बदनाम कर सकता है. दरअसल वह साइबर बुलिंग का शिकार हो गई थी. उस का फ्रेंड सर्कल ख़त्म हो गया. अब वह गुमसुम रहने लगी. उस ने बाहर जाना छोड़ दिया और तनाव का शिकार हो गयी. हालत इतनी खराब हो गई कि उस के पेरेंट्स ने उसे नए स्कूल में डाला और महीनों काउंसिलिंग भी कराई. तब जा कर वह नार्मल हो सकी. इस तरह दिव्य ने अपनी नासमझी और बदले की भावना में सुधि का बहुत बड़ा नुकसान कर दिया था.

इप्सोस के साल 2014 के एक सर्वे के मुताबिक़ भारत साइबर बुलिंग के मामले में 254 देशों की सूची में सब से ऊपर था. सर्वे में शामिल देश के 32 फीसदी पैरेंट्स ने कहा कि उन के बच्चे साइबर बुलिंग का शिकार हुए हैं. समय के साथ अब हालात और खराब हो चुके हैं.

साइबर बुलिंग के तहत किसी के बारे में अफवाह उड़ाना, धमकी देना, सेक्सुअल कमेंट, व्यक्तिगत जानकारी सार्वजनिक करना या हेट स्पीच आदि आते हैं. जो लोग इस के शिकार होते हैं उन में आत्मविश्वास कम हो जाता है और कई बार वे आत्महत्या भी कर लेते हैं.

जाहिर है बच्चों के लिए चुनौतियां सिर्फ ब्लू ह्वेल जैसे खेल ही नहीं है. चैट रूम के जरिये कई बार बच्चों के लिए ज्यादा खतरे आते हैं. टीनएजर दोस्त बनाने के लिए चैट रूम में आते हैं और अनजान लोगों से दोस्ती करते हैं. इस तरीके में सब से बड़ा खतरा यह है कि सामने वाला अगर बुलिंग पर उतर आये तो वेबसाइट पर पहचान जाहिर न करने जैसे क्लॉज का सहारा ले कर बच्चे को परेशान करना शुरू कर देता है.

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बच्चे दूसरों की देखादेखी अपनी स्टाइलिश तसवीरें सोशल मीडिया पर पोस्ट करना शुरू कर देते हैं. इस से कई बार उन के मन में कम्पटीशन या इन्फीरियरिटी कॉम्प्लेक्स की भावना भी घर कर जाती है.

बच्चे के सामने ऑनलाइन स्कैम भी एक बड़ा खतरा है. मेल और पोस्ट द्वारा करोड़ों के ईनाम जीतने का लालच बच्चों को आकर्षित कर सकता है. इस में वे बैंक एकाउंट या व्यक्तिगत जानकारी शेयर कर देते हैं जो बाद में मुसीबत का कारण बन सकता है.

आज कल 18 साल से कम के किशोर खुद की पहचान बनाने के लिए सोशल मीडिया को चुनते हैं. उन के मन के अंदर का घमंड, अहम का भाव सोशल मीडिया के जरिए दूसरे पर निकालते हैं. वहां कोई रोकटोक नहीं होता. ऐसे में वह स्वतंत्र हो कर जो करना है वह करते हैं. इस वजह से कई बार उन की जिंदगी बर्बाद भी हो जाती है.

इसलिए बेहतर है कि जितना हो सके बच्चे की ऑनलाइन गतिविधियों पर हर वक्त नजर रखें. साथ ही पहले से ही बच्चे से इस बारे में चर्चा करें और उसे समझाएं कि किस तरह के खतरे हो सकते हैं. आज के समय में बच्चों को गैजेट्स से दूर रखना संभव नहीं, मगर इन के इस्तेमाल की समय सीमा ज़रूर तय कर सकते हैं.

क्या हो समय सीमा

अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स की स्टडी के मुताबिक़ 2 वर्ष से कम आयु के बच्चों को किसी भी तरह के स्क्रीन से दूर रखना चाहिए. 3 से 5 वर्ष के बच्चे एक घंटा और टीनएजर बच्चों को पढ़ाई के अलावा केवल 30 मिनट प्रतिदिन तक गैजेट इस्तेमाल की अनुमति दी जानी चाहिए.

अभिभावक की जिम्मेदारी

बच्चों को ख़ुश करने की बजाय उन की भलाई के बारे में सोचें. उन्हें अनुशासन में रख कर ही गैजेट की लत से बचाया जा सकता है.

अपने बच्चों को टीवी, कंप्यूटर या फोन का उपयोग ऑनलाइन स्टडी के अलावा 30 मिनट से अधिक न करने दें. दूसरी बातों में उन का ध्यान उलझाएं.

जब बात इनाम देने की हो तो हमेशा कोशिश करें कि उन्हें गैजेट की बजाय कुछ और उपयोगी वस्तु दें.
बच्चों को किताबें पढ़ने को प्रेरित करें. थोड़ा समय लाइब्रेरी में बिताने को कहें. नईनई ज्ञानवर्धक, रोचक और शिक्षप्रद कहानियों की पुस्तकें ला कर दें.

कोशिश करें कि बच्चा जब टीवी, कंप्यूटर पर व्यस्त हो तो आप उस के साथ रहें ताकि यह देख सकें कि वह स्क्रीन पर क्या देख रहा है.

बच्चों को शांत रखने के लिए उन्हें मोबाइल गेम खेलने को प्रोत्साहित करने के बजाय उसे बाहर जा कर दोस्तों के साथ खेलने के लिए प्रेरित करें. बाहर खुले मैदान में दौड़नेभागने वाले खेल खेलने से वे शारीरिक रूप से भी फिट रहेंगे.

टच-पैड की बजाय बच्चे को कोई पेट (पालतू जानवर) ला कर दें.

उन्हें समाज और प्रकृति से जोड़े.

हफ्ते में 5 दिन क्लास के बाद शनिवार और रविवार को बच्चों को आर्ट्स एंड क्राफ्ट में इन्वॉल्व कर सकते हैं.

बच्चों को अन्य खेलों के प्रति प्रेरित कर सकते हैं, जैसे साइकिल चलाना, कैरम बोर्ड खेलना, चेस खेलना आदि.

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बच्चों को कभी भी उन का पर्सनल फोन न दें.

उन्हें समझाएं कि एक घंटे मोबाइल या लैपटॉप इस्तेमाल करने के बाद ब्रेक ले.

बच्चों को अंधेरे में फोन नहीं चलाना चाहिए. इस से उन की आंखों पर सीधा असर पड़ता है. खास तौर पर बच्चे लेट कर फोन का इस्तेमाल करते हैं. ऐसा करने से मना करें.

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