गलतफहमी: क्या था रिया का जवाब

आज नौकरी का पहला दिन था. रिया ने सुबह उठ कर तैयारी की और औफिस के लिए निकल पड़ी. पिताजी के गुजरने के बाद घर की सारी जिम्मेदारी उस पर ही थी. इंजीनियरिंग कालेज में अकसर अव्वल रहने वाली रिया के बड़ेबड़े सपने थे. लेकिन परिस्थितिवश उसे इस राह पर चलना पड़ा था. इस के पहले छोटी नौकरी में घर की जिम्मेदारियां पूरी न हो पाती थीं. ऐसे में एक दिन औनलाइन इंटरव्यू के इश्तिहार पर उस का ध्यान गया. उस ने फौर्म भर दिया और उस कंपनी में उसे चुन लिया गया.

रिया जब औफिस में पहुंची तो औफिस के कुछ कर्मी थोड़े समय से थोड़ा पहले ही आ गए थे. वहीं, रिसैप्शन पर बैठी अंजली ने रिया से पूछा, ‘‘गुडमौर्निंग मैडम, आप को किस से मिलना है?’’

‘‘मैं इस कंपनी में औनलाइन इंटरव्यू से चुनी गईर् हूं. आज से मु झे औफिस जौइन करने लिए कहा गया था, यह लैटर…’’

‘‘ओके, कौंग्रेट्स. आप का इस कंपनी में स्वागत है. थोड़ी देर बैठिए. मैं मैनेजर साहब से पूछ कर आप को बताती हूं.’’

रिया वहीं बैठ कर कंपनी का निरीक्षण करने लगी. उसी वक्त कंपनी में काफी जगह लगा हुआ आर जे का लोगो उस का बारबार ध्यान खींच रहा था. उतने में अंजली आई, ‘‘आप को मैनेजर साहब ने बुलाया है. वे आप को आगे का प्रोसीजर बताएंगे.’’

‘‘अंजली मैडम, एक सवाल पूछूं? कंपनी में जगहजगह आर जे लोगो क्यों लगाया गया है?’’

‘‘आर जे लोगो कंपनी के सर्वेसर्वा मजूमदार साहब के एकलौते सुपुत्र के नाम के अक्षर हैं. औनलाइन इंटरव्यू उन का ही आइडिया था. आज उन का भी कंपनी में पहला दिन है. चलो, अब हम अपने काम की ओर ध्यान दें.’’

‘‘हां, बिलकुल, चलो.’’

कंपनी के मैनेजर, सुलझे हुए इंसान थे. उन की बातों से और काम सम झाने के तरीके से रिया के मन का तनाव काफी कम हुआ. उस ने सबकुछ समझ लिया और काम शुरू कर लिया. शुरू के कुछ दिनों में ही रिया ने अपने हंसमुख स्वभाव से और काम के प्रति ईमानदारी से सब को अपना बना लिया. लेकिन अभी तक उस की कंपनी के मालिक आर जे सर से मुलाकात नहीं हुई थी. कंपनी की मीटिंग हो या और कोई अवसर, जहां पर उस की आर जे सर के साथ मुलाकात होने की गुंजाइश थी, वहां उसे जानबू झ कर इग्नोर किया जा रहा था. ऐसा क्यों, यह बात उस के लिए पहेली थी.

एक दिन रोज की फाइल्स देखते समय चपरासी ने संदेश दिया, ‘‘मैनेजर साहब, आप को बुला रहे हैं.’’

‘‘आइए, रिया मैडम, आप से काम के बारे में बात करनी थी. आज आप को इस कंपनी में आए कितने दिन हुए?’’

‘‘क्यों, क्या हुआ सर? मैं ने कुछ गलत किया क्या?’’

‘‘गलत हुआ, ऐसा मैं नहीं कह सकता, मगर अपने काम की गति बढ़ाइए और हां, इस जगह हम काम करने की तनख्वाह देते हैं, गपशप की नहीं. यह ध्यान में रखिए. जाइए आप.’’

रिया के मन को यह बात बहुत बुरी लगी. वैसे तो मैनेजर साहब ने कभी भी उस के साथ इस तरीके से बात नहीं की थी लेकिन वह कुछ नहीं बोल सकी. अपनी जगह पर वापस आ गई.

थोड़ी देर में चपरासी ने उस के विभाग की सारी फाइलें उस की टेबल पर रख दीं. ‘‘इस में जो सुधार करने के लिए कहे हैं वे आज ही पूरे करने हैं, ऐसा साहब ने कहा है.’’

‘‘लेकिन यह काम एक दिन में कैसे पूरा होगा?’’

‘‘बड़े साहब ने यही कहा है.’’

‘‘बड़े साहब…?’’

‘‘हां मैडम, बड़े साहब यानी अपने आर जे साहब, आप को नहीं मालूम?’’

अब रिया को सारी बातें ध्यान में आईं. उस के किए हुए काम में आर जे सर ने गलतियां निकाली थीं, हालांकि वह अब तक उन से मिली भी नहीं थी. फिर वे ऐसा बरताव क्यों कर रहे थे, यह सवाल रिया को परेशान कर रहा था.

उस ने मन के सारे विचारों को  झटक दिया और काम शुरू किया. औफिस का वक्त खत्म होने को था, फिर भी रिया का काम खत्म नहीं हुआ था. उस ने एक बार मैनेजर साहब से पूछा, मगर उन्होंने आज ही काम पूरा करने की कड़ी चेतावनी दी. बाकी सारा स्टाफ चला गया. अब औफिस में रिया, चपरासी और आर जे सर के केबिन की लाइट जल रही थी यानी वे भी औफिस में ही थे. काम पूरा करतेकरते रिया को काफी वक्त लगा.

उस दिन के बाद रिया को तकरीबन हर दिन ज्यादा काम करना पड़ता था. उस की बरदाश्त करने की ताकत अब खत्म हो रही थी. एक दिन उस ने तय किया कि आज अगर उसे हमेशा की तरह ज्यादा काम मिला तो सीधे जा कर आर जे सर से मिलेगी. हुआ भी वैसा ही. उसे आज भी काम के लिए रुकना था. उस ने काम बंद किया और आर जे सर के केबिन की ओर जाने लगी. चपरासी ने उसे रोका, मगर वह सीधे केबिन में घुस गई.

‘‘सौरी सर, मैं बिना पूछे आप से मिलने चली आई. क्या आप मु झे बता सकेंगे कि निश्चितरूप से मेरा कौन सा काम आप को गलत लगता है? मैं कहां गलत कर रही हूं? एक बार बता दीजिए. मैं उस के मुताबिक काम करूंगी, मगर बारबार ऐसा…’’

रिया के आगे के लफ्ज मुंह में ही रह गए क्योंकि रिया केबिन में आई थी तब आर जे सर कुरसी पर उस की ओर पीठ कर के बैठे थे. उन्होंने रिया के शुरुआती लफ्ज सुन लिए थे. बाद में उन की कुरसी रिया की ओर मुड़ी ‘‘सर…आप…तुम…राज…कैसे मुमकिन है? तुम यहां कैसे?’’ रिया हैरान रह गई. उस का अतीत अचानक उस के सामने आएगा, ऐसी कल्पना भी उस ने नहीं की थी. उसे लगने लगा कि वह चक्कर खा कर वहीं गिर जाएगी.

‘‘हां, बोलिए रिया मैडम, क्या तकलीफ है आप को?’’

राज के इस सवाल से वह अतीत से बाहर आई और चुपचाप केबिन के बाहर चली गई. उस का अतीत ऐसे अचानक उस के सामने आएगा, यह उस ने सोचा भी नहीं था.

आर जे सर कोई और नहीं उस का नजदीकी दोस्त राज था. उस दोस्ती में प्यार के धागे कब बुन गए, यह दोनों सम झे नहीं थे. रिया को वह कालेज का पहला दिन याद आया. कालेज के गेट के पास ही सीनियर लड़कों के एक गैंग ने उसे रोका था.

‘आइए मैडम, कहां जा रही हो? कालेज के नए छात्र को अपनी पहचान देनी होती है. उस के बाद आगे बढि़ए.’

रिया पहली बार गांव से पढ़ाई के लिए शहर आई थी और आते ही इस सामने आए संकट से वह घबरा गई.

‘अरे हीरो, तू कहां जा रहा है? तु झे दिख नहीं रहा यहां पहचान परेड चल रही है. चल, ऐसा कर ये मैडम जरा ज्यादा ही घबरा गई हैं. तू इन्हें प्रपोज कर. उन का डर भी चला जाएगा.’

अभीअभी आया राज जरा भी घबराया नहीं. उस ने तुरंत रिया की ओर देखा. एक स्माइल दे कर बोला. ‘हाय, मैं राज. घबराओ मत. बड़ेबड़े शहरों में ऐसी छोटीछोटी बातें होती रहती हैं.’

रिया उसे देखती ही रह गई.

‘आज हमारे कालेज का पहला दिन है. इस वर्षा ऋतु के साक्षी से मेरी दोस्ती को स्वीकार करोगी.’ रिया के मुंह से अनजाने में कब ‘हां’ निकल गई यह वह सम झ ही नहीं पाई. उस के हामी भरने से सीनियर गैंग  झूम उठा.

‘वाह, क्या बात है. यह है रियल हीरो. तुम से मोहब्बत के लैसंस लेने पड़ेंगे.’

‘बिलकुल… कभी भी…’

रिया की ओर एक नजर डाल कर राज कालेज की भीड़ में कब गुम हुआ, यह उसे मालूम ही नहीं हुआ. एक ही कालेज में, एक ही कक्षा में होने की वजह से वे बारबार मिलते थे. राज अपने स्वभाव के कारण सब को अच्छा लगता था. कालेज की हर लड़की उस से बात करने के लिए बेताब रहती थी. मगर राज किसी दूसरे ही रिश्ते में उल झ रहा था.

यह रिश्ता रिया के साथ जुड़ा था. एक अव्यक्त रिश्ता. उस का शांत स्वभाव, उस का मनमोहता रूप जिसे शहर की हवा छू भी नहीं पाई थी. उस का यही निरालापन राज को उस की ओर खींचता था.

एक दिन दोनों कालेज कैंटीन में बैठे थे. तब राज ने कहा, ‘रिया, तुम कितनी अलग हो. हमारा कालेज का तीसरा साल शुरू है. लेकिन तुम्हें यहां के लटके झटके अभी भी नहीं आते…’

‘मैं ऐसी ही ठीक हूं. वैसे भी मैं कालेज में पढ़ने आई हूं. पढ़ाई पूरी करने के बाद मु झे नौकरी कर के अपने पिताजी का सपना पूरा करना है. उन्होंने मेरे लिए काफी कष्ट उठाए हैं.’

रिया की बातें सुन कर राज को रिया के प्रति प्रेम के साथ आदर भी महसूस हुआ. तीसरे साल के आखिरी पेपर के समय राज ने रिया को बताया, ‘मु झे तुम्हें कुछ बताना है. शाम को मिलते हैं.’ हालांकि उस की आंखें ही सब बोल रही थीं. रिया भी इसी पल का बेसब्री से इंतजार कर रही थी. इसी खुशी में वह होस्टल आई. मगर तभी मैट्रन ने बताया, ‘तुम्हारे घर से फोन था. तुम्हें तुरंत घर बुलाया है.’

रिया ने सामान बांधा और गांव की ओर निकल पड़ी. घर में क्या हुआ होगा, इस सोच में वह परेशान थी. इन सब बातों में वह राज को भूल गई. घर पहुंची तो सामने पिताजी का शव, उस सदमे से बेहोश पड़ी मां और रोता हुआ छोटा भाई. अब किसे संभाले, खुद की भावनाओं पर कैसे काबू पाए, यह उस की सम झ में नहीं आ रहा था. एक ऐक्सिडैंट में उस के पिताजी का देहांत हो गया था. घर में सब से बड़ी होने की वजह से उस ने अपनी भावनाओं पर बहुत ही मुश्किल से काबू पाया.

इस घटना के बाद उस ने पढ़ाई आधी ही छोड़ दी और एक छोटी नौकरी कर घर की जिम्मेदारी संभाली.

इधर राज बेचैन हो गया. सारी रात रिया का इंतजार करता रहा. मगर वह आई नहीं. उस ने कालेज, होस्टल सब जगह ढूंढ़ा मगर उस का कुछ पता नहीं चला. रिया ने ही ऐसी व्यवस्था कर रखी थी. वह राज पर बो झ नहीं बनना चाहती थी. पर राज इस सब से अनजान था. उस के दिल को ठेस पहुंची थी. इसलिए उस ने भी कालेज छोड़ दिया और आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका चला गया.

‘‘मैडम, आप का काम हो गया क्या? मु झे औफिस बंद करना है. बड़े साहब कब के चले गए.’’

चपरासी की आवाज से रिया यादों की दुनिया से बाहर आई. उस ने सब सामान इकट्ठा किया और घर के लिए निकल पड़ी. उस के मन में एक ही खयाल था कि राज की गलतफहमी कैसे दूर करे. उसे उस का कहना रास आएगा या नहीं? वह नौकरी भी छोड़ नहीं सकती. क्या करे. इन खयालों में वह पूरी रात जागती रही.

दूसरे दिन औफिस में अंजली ने रिसैप्शन पर ही रिया से पूछा, ‘‘अरे रिया, क्या हुआ? तुम्हारी आंखें ऐसी क्यों लग रही हैं? खैरियत तो है न?’’

‘‘अरे कुछ नहीं, थोड़ी थकान महसूस कर रही हूं, बस. आज का शैड्यूल क्या है?’’

‘‘आज अपनी कंपनी को एक बड़ा प्रोजैक्ट मिला है. इसलिए कल पूरे स्टाफ के लिए आर जे सर ने पार्टी रखी है. हरेक को पार्टी में आना ही है.’’

‘‘हां, आऊंगी.’’

दू सरे दिन शाम को पार्टी शुरू हुई. रिया बस केवल हाजिरी लगा कर निकलने की सोच रही थी. राज का पूरा ध्यान उसी पर था. अचानक उसे एक परिचित  आवाज आई.

‘‘हाय राज, तुम यहां कैसे? कितने दिनों बाद मिल रहे हो. मगर तुम्हारी हमेशा की मुसकराहट किधर गई?’’

‘‘ओ मेरी मां, हांहां, कितने सवाल पूछोगी. स्नेहल तुम तो बिलकुल नहीं बदलीं. कालेज में जैसी थीं वैसी ही हो, सवालों की खदान. अच्छा, तुम यहां कैसे…?’’

‘‘अरे, मैं अपने पति के साथ आई हूं. आज उन के आर जे सर ने पूरे स्टाफ को परिवार सहित बुलाया है. इसलिए मैं आई. तुम किस के साथ आए हो?’’

‘‘मैं अकेला ही आया हूं. मैं ही तुम्हारे पति का आर जे सर हूं.’’

‘‘सच, क्या कह रहे हो. तुम ने तो मु झे हैरान कर दिया. अरे हां, रिया भी इसी कंपनी में है न. तुम लोगों की सब गलतफहमियां दूर हो गईं न.’’

‘‘गलतफहमी? कौन सी गलतफहमी?’’

‘‘अरे, रिया अचानक कालेज छोड़ कर क्यों गई, उस के पिताजी का ऐक्सिडैंट में देहांत हो गया था, ये सब…’’

‘‘क्या, मैं तो ये सब जानता ही नहीं.’’

स्नेहल रिया और राज की कालेज की सहेली थी. उन दोनों की दोस्ती, प्यार, दूरी इन सब घटनाओं की साक्षी थी. उसे रिया के बारे में सब मालूम हुआ था. उस ने ये सब राज को बताया.

राज को यह सब सुन कर बहुत दुख हुआ. उस ने रिया के बारे में कितना गलत सोचा था. हालांकि, उस की इस में कुछ भी गलती नहीं थी. अब उस की नजर पार्टी में रिया को ढूंढ़ने लगी. मगर तब तक रिया वहां से निकल चुकी थी.

वह उसे ढूंढ़ने बसस्टौप की ओर भागा.

बारिश के दिन थे. रिया एक पेड़ के नीचे खड़ी थी. उस ने दूर से ही रिया को आवाज लगाई.

‘‘रिया…रिया…’’

‘‘क्या हुआ सर? आप यहां क्यों आए? आप को कुछ काम था क्या?’’

‘‘नहीं, सर मत पुकारो, मैं तुम्हारा पहले का राज ही हूं. अभीअभी मु झे स्नेहल ने सबकुछ बताया. मु झे माफ कर दो, रिया.’’

‘‘नहीं राज, इस में तुम्हारी कोई गलती नहीं है. उस समय हालात ही ऐसे थे.’’

‘‘रिया, आज मैं तुम से पूछता हूं, क्या मेरे प्यार को स्वीकार करोगी?’’

रिया की आंसूभरी आंखों से राज को जवाब मिल गया.

राज ने उसे अपनी बांहों में भर लिया. उन के इस मिलन में बारिश भी उन का साथ दे रही थी. इस बारिश की  झड़ी में उन के बीच की दूरियां, गलतफहमियां पूरी तरह बह गई थीं.

गलतफहमी: क्यों रीमा को बाहर भेजने से डरती थी मिसेज चंद्रा

मैंएक मल्टीनैशनल कंपनी में सीनियर एक्जीक्यूटिव हूं. कंपनी द्वारा दिए 2-3 बैडरूम के फ्लैट में अपने परिवार के साथ रहता हूं. परिवार में मेरी पत्नी व एक 10 वर्ष का बेटा है जो कौन्वैंट स्कूल में छठी क्लास में पढ़ रहा है. मेरी पत्नी खूबसूरत, पढ़ीलिखी है. मैं इस फ्लैट में पिछले

2 साल से रह रहा हूं. चूंकि हम लोगों को कंपनी मोटी तनख्वाह देती है तो उसी हिसाब से काम भी करना पड़ता है. मैं रोज 9 बजे अपनी गाड़ी से औफिस जाता व शाम को 6-7 बजे लौटता. कभीकभी तो इस से भी ज्यादा देर हो जाती थी. इसलिए कालोनी या बिल्ंिडग में क्या हो रहा है, यहां कौन लोग रहते हैं और क्या करते हैं, इस की मुझे बहुत कम जानकारी है. थोड़ाबहुत जो मेरी पत्नी मुझे खाना खाते वक्त या किसी अन्य बातचीत में बता देती थी उतना ही मैं जान पाता था.

एक दिन छुट्टी के दिन मैं अपनी बालकनी में बैठा सुबहसुबह पेपर पढ़ते हुए चाय पी रहा था कि मेरी नजर मेरे सामने की बिल्ंिडग में रहने वाली लड़की पर पड़ी, जो यही कोई 17-18 वर्ष की रही होगी. वह मेरी तरफ देखे जा रही थी. पहले तो मैं ने उसे यों ही अपना भ्रम समझा कि हो सकता है उसे कुछ कौतूहल हो, इस कारण वह मेरे फ्लैट की तरफ देख रही हो.

वैसे सुबहशाम टहलने का मेरा एक रूटीन था. सुबह उठ कर आधापौना घंटा कालोनी की सड़कों पर टहलता था व रात को खाना खा कर हम तीनों, मैं, मेरी पत्नी व मेरा बेटा कालोनी में टहलते अवश्य थे. अगर मेरे बेटे को रात को आइसक्रीम खाने की तलब लग जाती थी तो उसे आइसक्रीम भी खिलाने जाना पड़ता था.

मैं ने कई बार इस बात पर ध्यान दिया कि वह लड़की मेरे ऊपर व मेरी गतिविधियों पर नजर रखती है. मैं बालकनी में बैठा पेपर पढ़ रहा होता तो वह बालकनी की तरफ देखती और मुझ पर नजर रखती थी. जब हम रात को टहल रहे होते तो वह भी अपने कुत्ते के साथ टहलने निकल आती थी. कभीकभी उस का छोटा भाई भी उस के साथ आ जाता था, जोकि सिर्फ 5-6 साल का था, मगर दोनों भाईबहनों में बहुत फर्क था. वह बहुत खूबसूरत थी पर उस का छोटा भाई देखने में बहुत साधारण था.

एक दिन रात को मैं ने उस के पूरे परिवार को देखा. उस लड़की को छोड़ कर बाकी सभी देखने में बहुत साधारण थे. मुझे ताज्जुब भी हुआ मगर चूंकि आज के जमाने में कुछ भी हो सकता है इसलिए मैं ने इस बारे में ज्यादा नहीं सोचा किंतु जब उस लड़की की मेरे में दिलचस्पी बढ़ती जा रही थी तो मुझे थोड़ी परेशानी होने लगी कि मेरी बीवी देखेगी तो क्या कहेगी, मेरे बच्चे पर इस का क्या असर पड़ेगा.

कुछकुछ अच्छा भी लग रहा था. इस उम्र में कोई नौजवान लड़की अगर आप को प्यार करने लगे, चाहने लगे तो बड़ा अच्छा लगता है. अपने पुरुषार्थ पर विश्वास और बढ़ जाता है. इसलिए मैं भी कभीकभी पेपर पढ़ते समय उस की तरफ देख लेता था. हालांकि मेरी बालकनी और उस की बालकनी में करीब 50 फुट का फासला था, फिर भी हम एकदूसरे पर नजर रख सकते थे.

कुछ दिनों बाद उस ने भी सुबहसुबह टहलना शुरू कर दिया. कभी मेरे आगे, कभी मेरे पीछे. मैं यह सोच कर थोड़ा रोमांचित हुआ कि वह अब मेरी निकटता चाहने लगी है. शायद उसे मुझ से वास्तव में प्यार हो गया है. मैं भी उस के मोह में गिरफ्तार हो चुका था. अब मैं खाली समय में उस के बारे में सोचता रहता था. 40 से ऊपर की उम्र में जब पतिपत्नी  के संबंधों में एक ठहराव सा, एक स्थायित्च, एक बासीपन सा आ जाता है उस दौर में इस प्रकार के संबंध नई ऊर्जा प्रदान करते हैं.

लगभग हर व्यक्ति एक नवयौवना के प्यार की कामना करता है. कुछ पा लेते हैं, कुछ सिर्फ खयालों में ही अपनी इच्छा की पूर्ति करते हैं. कुछ लोग कहानियां, सस्ते उपन्यासों द्वारा अपनी इस चाहत को पूरा करते हैं, क्योंकि इस दौर में व्यक्ति इतना बड़ा भी नहीं होता कि वह हर लड़की को बेटी समान माने, बेटी का दरजा दे. वह अपने को जवान ही समझता है व जवानी की ही कामना करता है. मैं भी इस दौर से गुजर रहा था.

मगर एक दिन गड़बड़ हो गई. उसे कहीं जाना था जो शायद मेरे औफिस जाने के रास्ते में ही पड़ता था. मैं औफिस जाने के लिए तैयार हो कर निकला. अपनी गाड़ी मैं ने बाहर निकाली तो देखा वह मेरी तरफ ही चली आ रही है. उस ने मुझे इशारे  से रुकने को कहा और नजदीक आ  कर बोली, ‘‘अंकल, क्या आप मुझे कालीदास मार्ग पर छोड़ देंगे? मुझे देर हो गई है और मुझे वहां 10 बजे तक पहुंचना बहुत जरूरी है.’’

कार से कालीदास मार्ग पहुंचने में लगभग 45 मिनट लगते हैं. हालांकि अपने लिए अंकल संबोधन सुन कर मुझे कुछ झटका सा लगा था मगर शराफत के नाते मैं ने कहा, ‘‘बैठो, छोड़ दूंगा.’’

वह चुपचाप कार में बैठ गई.‘‘वहां के स्कूल में आज आईआईटी प्रवेश की परीक्षा है,’’ उस ने संक्षिप्त जवाब दिया.रास्तेभर हम खामोश रहे. वह अपने नोट्स पढ़ती रही. मैं ने उसे उस के स्कूल छोड़ दिया.

हालांकि मेरा मन बड़ा अनमना सा हो गया था अपने लिए अंकल संबोधन सुन कर. मैं तो क्याक्या खयाली पुलाव पका रहा था और वह मेरे बारे में क्या सोचती थी? मगर उस के बाद भी उस की गतिविधियों में कोई बदलाव नहीं आया. उसी प्रकार सुबहशाम टहलना, बालकनी में खड़े हो कर मुझे देखना. चूंकि दूरी काफी थी इसलिए मैं यह नहीं समझ पा रहा था कि उस के देखने में अनुराग है, आसक्ति है या कुछ  और है.

मैं ने सोचा, हो सकता है उसे मुझ से बात शुरू करने के लिए कोई और शब्द न मिला हो इसलिए उस ने मुझे ‘अंकल’ कहा हो. चूंकि मुझ को उस में रुचि थी अत: मैं ने उस के और उस के घरपरिवार के बारे में लोगों से पूछा, पता लगाया, पत्नी के द्वारा थोड़ीबहुत जानकारी ली. मुझे पता लगा उस के पिताजी भी एक दूसरी फर्म में इंजीनियर हैं मगर उन की यह

दूसरी पत्नी हैं. पहली पत्नी की मौत हो चुकी है.एक दिन छुट्टी के दिन वह सुबहसुबह मेरे फ्लैट में आई. मैं पेपर पढ़ रहा था. पत्नी ने दरवाजा खोल कर मुझे बुलाया, ‘‘आप से मिलने कोई रीमा आई है.’’

‘‘कौन रीमा?’’‘‘वही जो सामने रहती है.’‘‘ओह, मगर उसे मुझ से क्या काम?’’‘‘आप खुद ही उस से मिल कर पूछ लो.’’

मैं बालकनी से उठ कर ड्राइंगरूम में आया. उस ने मुझे नमस्ते की.मैं ने सिर हिला कर उस की नमस्ते का जवाब दिया.‘‘बोलो?’’ मैं ने पूछा.‘‘अंकल, मैं आप की थोड़ी मदद चाहती हूं.’’‘‘किस प्रकार की मदद?’’

वह थोड़ी देर खामोश रही, फिर बोली, ‘‘मेरा सलैक्शन आईआईटी में हो गया है मगर मेरे मम्मीपापा मुझे जाने नहीं देना चाहते. मैं चाहती हूं कि आप उन्हें समझाएं.’’

‘‘मगर मैं उन्हें कैसे समझाऊं, मेरा उन से कोई परिचय नहीं. कोई बातचीत नहीं. मेरी बात क्यों मानेंगे?’ ‘‘अंकल, प्लीज, मेरी खातिर, मेरी मम्मी की खातिर आप उन्हें समझाइए.’‘‘न ही मैं तुम्हें अच्छी तरह जानता हूं और न ही तुम्हारी मम्मी को, फिर मैं तुम्हारी खातिर कैसे तुम्हारे पापा से बात करूं?’’

‘‘मैं प्रभा की बेटी हूं.’’‘‘कौन प्रभा?’’ ‘‘वही जो आप की दूर के एक रिश्तेदार की बेटी थीं.’’मैं चौंका, ‘‘क्या तुम्हारी मम्मी बाबू जगदंबा प्रसाद की बेटी थीं?’’‘‘जी.’’ ‘‘ओह, तो यह बात है, तो क्या तुम मुझे जानती हो?’’

‘‘जी, मम्मी ने आप के बारे में बताया था. नाना के पास आप की फोटो थी. मम्मी ने बताया था कि आप चाहते थे कि आप की शादी उन से हो जाए मगर नाना नहीं माने. क्योंकि तब आप की पढ़ाई पूरी नहीं हो पाई थी और आप लोग उम्र में भी लगभग बराबर के थे.’’

प्रभा बहुत खूबसूरत और मेरे एक दूर के रिश्तेदार की बेटी थी. वे लोग पैसे वाले थे. उस के पिताजी पीडब्ल्यूडी में इंजीनियर थे जबकि मेरे पिताजी बैंक में अफसर. तब पैसे के मामले में एक बैंक अफसर से पीडब्ल्यूडी के एक इंजीनियर से क्या मुकाबला?

मैं अभी पढ़ रहा था, तभी सुना कि प्रभा की शादी की बात चल रही है. मैं ने अपनी मां से कहलवाया मगर उन लोगों ने मना कर दिया, क्योंकि मैं अभी एमकौम कर रहा था और उन को प्रभा के लिए इंजीनियर लड़का मिल रहा था. फिर प्रभा की शादी हो गई. मैं ने एमकौम, फिर सीए किया तब नौकरी मिली. इसीलिए मेरी शादी भी काफी देर से हुई.

तो रीमा उसी प्रभा की बेटी है. मुझे प्रभा से शादी न हो पाने का मलाल अवश्य था मगर मुझे उस के मरने की खबर नहीं थी. असल में हमारा उन के यहां आनाजाना बहुत कम था. कभीकभार किसी समारोह में या शादीविवाह में मुलाकात हो जाती थी. मगर इधर 8-10 साल से मेरी उस के परिवार के किसी व्यक्ति से मुलाकात नहीं हुई थी. इसीलिए मुझे उस की मौत की खबर नहीं थी.

‘‘तुम्हारी मम्मी कब और कैसे गुजरीं?’’ मैं ने पूछा. ‘‘दूसरी डिलीवरी के समय 7 साल पहले मेरी मम्मी की मृत्यु हो गई.’’‘‘और आजकल जो हैं वह?’’‘‘एक साल बाद पापा ने दूसरी शादी कर ली. राहुल उन से पैदा हुआ है.’’

अब मुझे दोनों भाईबहनों की असमानता का रहस्य समझ में आया कि क्यों रीमा इतनी खूबसूरत थी और उस का भाई इतना साधारण. और क्यों दोनों में उम्र का भी काफी अंतर था.

‘‘तो तुम मुझ से क्या चाहती हो?’‘‘अंकल, मैं आप को पिता के समान मानती हूं. जब आप शाम को बच्चे के साथ बाहर घूमने निकलते हैं तो मुझे बड़ा अच्छा लगता है. मैं भी चाहती हूं कि मेरे पापा भी ऐसा करें मगर उन के पास तो मेरे लिए फुरसत ही नहीं है. मम्मी लगता है मुझ से जलती हैं कि मैं इतनी खूबसूरत क्यों हूं. अब इस में हमारा क्या दोष? इसीलिए वह मेरी हर बात में कमी निकालती हैं, हर बात का विरोध करती हैं. वह नहीं चाहतीं कि मैं ज्यादा पढ़लिख कर आगे बढ़ूं.’’

अब मुझे उस की नजरों का अर्थ समझ में आने लगा था. वह मुझ में उस आदर्श पिता की तलाश कर रही थी जो उस के आदर्शों के अनुरूप हो. जो उस के पापा की कमियों को, उस की इच्छाओं को पूरा कर सके. मुझे अपनी सोच पर आत्मग्लानि भी हुई कि मैं उस के बारे में कितना गलत सोच रहा था. लगता था वह घर से झगड़ा कर के आई थी.

‘‘तुम ने नाश्ता किया है कि नहीं?’’ मैं ने पूछा तो वह खामोश रही.मैं समझ गया. झगड़े के कारण उस ने नाश्ता भी नहीं किया होगा.‘‘ठीक है, तुम पहले नाश्ता करो. शांत हो जाओ. फिर मैं चलता हूं तुम्हारे घर.’’

मैं ने उसे आश्वस्त किया. फिर हम सब ने बैठ कर नाश्ता किया. मैं ने अपनी पत्नी को बताया कि मैं रीमा के मम्मीपापा से मिलने जा रहा हूं.

‘‘मैं भी साथ चलूंगी,’’ मेरी पत्नी ने कहा.‘‘तुम क्या करोगी वहां जा कर?’’

‘‘आप नहीं जानते, यह लड़की का मामला है. अगर उन्होंने आप पर कोई उलटासीधा इलजाम लगाया या आप से पूछा कि आप को उन की बेटी में इतनी रुचि क्यों है तो आप क्या जवाब देंगे? और अगर उन्होंने कहा कि आप को उस से इतना ही लगाव है तो उसे अपने पास ही रख लीजिए. तो क्या आप इतना बड़ा फैसला अकेले कर सकेंगे?’’

मैं ने इस पहलू पर गौर ही नहीं किया था. मेरी पत्नी का कहना सही था.हम सब एकसाथ रीमा के घर गए.

मैं ने उन के घर पहुंच कर घंटी बजाई. उस की मम्मी ने दरवाजा खोला तो हम लोगों को देख कर वह नाराजगी से अंदर चली गईं फिर उस के पापा दरवाजे पर आए.

वहां का माहौल काफी तनावपूर्ण थारीमा के पिता नरेशचंद्र और मां माया रीमा से बहुत नाराज थे कि वह घर का झगड़ा बाहर क्यों ले गई, वह मेरे पास क्यों आई?

‘‘कहिए, क्या बात है?’’ वह बोले.हम दोनों ने उन को नमस्कार किया. मैं ने कहा, ‘‘क्या अंदर आने को नहीं कहेंगे?’’ उन्होंने बड़े अनमने मन से कहा, ‘‘आइए.’’

हम सब उन के ‘ड्राइंग कम डाइनिंग रूम’ में बैठ गए. थोड़ी देर खामोशी छाई रही, फिर मैं ने ही बात शुरू की.‘‘आप शायद मुझे नहीं जानते.’’‘‘जी, बिलकुल नहीं,’’ उन्होंने रूखे स्वर में कहा.

‘‘आप की पहली पत्नी मेरी बहुत दूर की रिश्तेदार थीं.’’‘‘तो?’’

‘‘इसीलिए रीमा बेटी से हम लोगों को थोड़ा लगाव सा है,’’ मैं कह तो गया मगर बाद में मुझे स्वयं अपने ऊपर ताज्जुब हुआ कि मैं इतनी बड़ी बात कैसे कह गया.

‘‘तो?’’ उन्होंने उसी बेरुखी से पूछा.मैं ने बड़ी मुश्किल से अपना धैर्य बनाए रखा. मुझे उन के इस व्यवहार से बड़ी खीज सी हो रही थी. कुछ देर खामोश रह कर मैं फिर बोला, ‘‘वह आईआईटी से पढ़ाई करना चाहती है…’’

‘‘मगर हम लोग उस को नहीं भेजना चाहते,’’ मिस्टर चंद्रा ने कहा.‘‘कोई खास बात…?’’‘‘यों ही.’’

‘‘यों ही तो नहीं हो सकता, जरूर कोई खास बात होगी. जब आप की बेटी पढ़ने में तेज है और फिर उस ने परीक्षा में सफलता प्राप्त कर ली है तो फिर आप को एतराज किस बात का है?’’

अब मिसेज चंद्रा भी बाहर आ कर अपने पति के पास बैठ गईं.‘‘देखिए भाई साहब, रीमा हमारी बेटी है. उस का भलाबुरा सोचना हमारा काम है, किसी बाहरी व्यक्ति या दूर के रिश्तेदार का नहीं,’’ मिसेज चंद्रा बोलीं.

मैं ने खामोशी से उन की बात सुनी. उन की बातों से मुझे इस बात का एहसास हो गया कि मिसेज चंद्र्रा का ही घर में काफी दबदबा है और नरेश चंद्रा उन के ही दबाव में हैं शायद इसीलिए रीमा को आगे पढ़ने नहीं देना चाहते.

मैं ने अपना धैर्य बनाए हुए संयत स्वर में कहा, ‘‘आप की बात बिलकुल सही है मगर क्या आप नहीं चाहतीं कि आप की बेटी उच्च शिक्षा प्राप्त करे, इंजीनियर बने. लोग आप का उदाहरण दें कि वह देखो वह मिसेज चंद्रा की बेटी है जो इंजीनियर बन गई है,’’ मैं ने थोड़ा मनोवैज्ञानिक दबाव बनाया.

मेरी बातों से वे थोड़ा शांत हुईं.  उन का अब तक का अंदाज बड़ा आक्रामक था.‘‘मगर हम चाहते हैं कि उस की जल्दी से शादी कर दें. वह अपने पति के घर जाए फिर उस का पति जैसा चाहे, करे.’’

‘‘मतलब आप शीघ्र ही अपनी जिम्मेदारियों से छुटकारा पाना चाहती हैं.’’‘‘जी हां,’’ मिसेज चंद्रा बोलीं.

‘‘मगर क्या रीमा एक बोझ है? मेरे विचार से तो वह बोझ नहीं है, और आजकल तो लड़के वाले भी चाहते हैं कि लड़की ज्यादा से ज्यादा पढ़ी हो. और जब वह इंजीनियर बन जाएगी, खुद अच्छा कमाएगी तो आप को भी इतनी परेशानी नहीं होगी उस की शादी में,’’ मैं ने अपनी बात कही.

‘‘आप की बात तो सही है, मगर…’’ मिसेज चंद्रा सोचते हुए बोलीं.

मैं उन के इस मगर का अर्थ समझ रहा था किंतु मैं रीमा के सामने नहीं कह सकता था. वह हम लोगों के साथ ही बैठी थी. मैं ने उसे अपने बेटे व उस के भाई के साथ मेरे घर जाने को कहा. वह थोड़ा झिझकी. मैं ने उसे इशारों से आश्वस्त किया तो वह चली गई.

‘‘देखिए, जहां तक मैं समझता हूं आप का और रीमा का सहज संबंध नहीं है. आप लोगों के बीच कुछ तनाव है.’’

मिसेज चंद्रा का चेहरा गुस्से से तमतमा गया.

‘‘देखिए, मेरी बात को आप अन्यथा न लीजिए. यह बहुत सहज बात है. असल में आप दोनों के बीच किसी ने सहज संबंध बनाने का प्रयास ही नहीं किया. आप को उस की खूबसूरती के कारण हमेशा हीनता महसूस होती है. इसीलिए आप उसे हमेशा नीचा दिखाना चाहती हैं, उस की उन्नति नहीं चाहती हैं, मगर क्या यह अच्छा नहीं होता कि आप बजाय उस से जलने के गर्व महसूस करतीं कि आप की एक बहुत ही सुंदर बेटी भी है. उसे एक खूबसूरत तोहफा मानतीं नरेश की पहली पत्नी का. उसे इतना प्यार देतीं, उस की हर बात का खयाल रखतीं कि वह आप को अपनी सगी मां से ज्यादा प्यार, सम्मान देती. अगर आप को कोई परेशानी न हो तो मैं उस की जिम्मेदारी उठाने को तैयार हूं,’’ मैं ने अपनी पत्नी की तरफ देखा तो उस ने भी आंखों ही आंखों में अपनी रजामंदी दे दी.

मेरी बात का उन पर लगता है सही असर हुआ था क्योंकि जो बात मैं ने कही थी कभीकभी इन बातों का कुछ लोग उलटा अर्थ लगा लड़ने लग जाते हैं. मगर गनीमत कि उन्होंने मेरी बातों का बुरा नहीं माना.

‘‘ठीक है, जैसी आप की मरजी. आप उस से कह दीजिए कि हम लोग उसे इंजीनियरिंग पढ़ने भेज देंगे,’’ मिसेज चंद्रा ने बड़े ही शांत स्वर में कहा.

‘‘मैं नहीं, यह बात उस से आप ही कहेंगी और आप खुद देखेंगी कि इस बात का कैसा असर होगा.’’

थोड़ी देर में वह चाय और नाश्ता लाईं जिस के लिए अभी तक उन्होंने हम लोगों से पूछा नहीं था.

फिर मैं ने अपने घर टैलीफोन कर रीमा को बुलवाया. रीमा आई तो मिसेज चंद्रा ने उसे अपने पास बिठाया. उस का हाथ अपने हाथों में ले कर थोड़ी देर तक उसे देखती रहीं, फिर उन्होंने उस का माथा चूम लिया, ‘‘तुम जो कहोगी मैं वही करूंगी,’’ उन्होंने रुंधे गले से कहा तो रीमा उन से गले लग कर रोने लगी. मिस्टर चंद्रा की आंखों में भी आंसू आ गए थे. आंसू तो हमारी भी आंखों में थे मगर वह खुशी के आंसू थे.

ये भी पढ़ें- चिंता की कोई बात नहीं: क्या सुकांता लौटेगी ससुराल

Valentine’s Special: गलतफहमी- क्या टूट गया रिया का रिश्ता

 कहानी- सुवर्णा पाटिल

आ ज नौकरी का पहला दिन था. रिया ने सुबह उठ कर तैयारी की और औफिस के लिए निकल पड़ी. पिताजी के गुजरने के बाद घर की सारी जिम्मेदारी उस पर ही थी. इंजीनियरिंग कालेज में अकसर अव्वल रहने वाली रिया के बड़ेबड़े सपने थे. लेकिन परिस्थितिवश उसे इस राह पर चलना पड़ा था. इस के पहले छोटी नौकरी में घर की जिम्मेदारियां पूरी न हो पाती थीं. ऐसे में एक दिन औनलाइन इंटरव्यू के इश्तिहार पर उस का ध्यान गया. उस ने फौर्म भर दिया और उस कंपनी में उसे चुन लिया गया.

रिया जब औफिस में पहुंची तो औफिस के कुछ कर्मी थोड़े समय से थोड़ा पहले ही आ गए थे. वहीं, रिसैप्शन पर बैठी अंजली ने रिया से पूछा, ‘‘गुडमौर्निंग मैडम, आप को किस से मिलना है?’’

‘‘मैं इस कंपनी में औनलाइन इंटरव्यू से चुनी गईर् हूं. आज से मु झे औफिस जौइन करने लिए कहा गया था, यह लैटर…’’

‘‘ओके, कौंग्रेट्स. आप का इस कंपनी में स्वागत है. थोड़ी देर बैठिए. मैं मैनेजर साहब से पूछ कर आप को बताती हूं.’’

रिया वहीं बैठ कर कंपनी का निरीक्षण करने लगी. उसी वक्त कंपनी में काफी जगह लगा हुआ आर जे का लोगो उस का बारबार ध्यान खींच रहा था. उतने में अंजली आई, ‘‘आप को मैनेजर साहब ने बुलाया है. वे आप को आगे का प्रोसीजर बताएंगे.’’

‘‘अंजली मैडम, एक सवाल पूछूं? कंपनी में जगहजगह आर जे लोगो क्यों लगाया गया है?’’

‘‘आर जे लोगो कंपनी के सर्वेसर्वा मजूमदार साहब के एकलौते सुपुत्र के नाम के अक्षर हैं. औनलाइन इंटरव्यू उन का ही आइडिया था. आज उन का भी कंपनी में पहला दिन है. चलो, अब हम अपने काम की ओर ध्यान दें.’’

‘‘हां, बिलकुल, चलो.’’

कंपनी के मैनेजर, सुलझे हुए इंसान थे. उन की बातों से और काम सम झाने के तरीके से रिया के मन का तनाव काफी कम हुआ. उस ने सबकुछ समझ लिया और काम शुरू कर लिया. शुरू के कुछ दिनों में ही रिया ने अपने हंसमुख स्वभाव से और काम के प्रति ईमानदारी से सब को अपना बना लिया. लेकिन अभी तक उस की कंपनी के मालिक आर जे सर से मुलाकात नहीं हुई थी. कंपनी की मीटिंग हो या और कोई अवसर, जहां पर उस की आर जे सर के साथ मुलाकात होने की गुंजाइश थी, वहां उसे जानबू झ कर इग्नोर किया जा रहा था. ऐसा क्यों, यह बात उस के लिए पहेली थी.

एक दिन रोज की फाइल्स देखते समय चपरासी ने संदेश दिया, ‘‘मैनेजर साहब, आप को बुला रहे हैं.’’

‘‘आइए, रिया मैडम, आप से काम के बारे में बात करनी थी. आज आप को इस कंपनी में आए कितने दिन हुए?’’

‘‘क्यों, क्या हुआ सर? मैं ने कुछ गलत किया क्या?’’

‘‘गलत हुआ, ऐसा मैं नहीं कह सकता, मगर अपने काम की गति बढ़ाइए और हां, इस जगह हम काम करने की तनख्वाह देते हैं, गपशप की नहीं. यह ध्यान में रखिए. जाइए आप.’’

रिया के मन को यह बात बहुत बुरी लगी. वैसे तो मैनेजर साहब ने कभी भी उस के साथ इस तरीके से बात नहीं की थी लेकिन वह कुछ नहीं बोल सकी. अपनी जगह पर वापस आ गई.

थोड़ी देर में चपरासी ने उस के विभाग की सारी फाइलें उस की टेबल पर रख दीं. ‘‘इस में जो सुधार करने के लिए कहे हैं वे आज ही पूरे करने हैं, ऐसा साहब ने कहा है.’’

‘‘लेकिन यह काम एक दिन में कैसे पूरा होगा?’’

‘‘बड़े साहब ने यही कहा है.’’

‘‘बड़े साहब…?’’

‘‘हां मैडम, बड़े साहब यानी अपने आर जे साहब, आप को नहीं मालूम?’’

अब रिया को सारी बातें ध्यान में आईं. उस के किए हुए काम में आर जे सर ने गलतियां निकाली थीं, हालांकि वह अब तक उन से मिली भी नहीं थी. फिर वे ऐसा बरताव क्यों कर रहे थे, यह सवाल रिया को परेशान कर रहा था.

उस ने मन के सारे विचारों को  झटक दिया और काम शुरू किया. औफिस का वक्त खत्म होने को था, फिर भी रिया का काम खत्म नहीं हुआ था. उस ने एक बार मैनेजर साहब से पूछा, मगर उन्होंने आज ही काम पूरा करने की कड़ी चेतावनी दी. बाकी सारा स्टाफ चला गया. अब औफिस में रिया, चपरासी और आर जे सर के केबिन की लाइट जल रही थी यानी वे भी औफिस में ही थे. काम पूरा करतेकरते रिया को काफी वक्त लगा.

उस दिन के बाद रिया को तकरीबन हर दिन ज्यादा काम करना पड़ता था. उस की बरदाश्त करने की ताकत अब खत्म हो रही थी. एक दिन उस ने तय किया कि आज अगर उसे हमेशा की तरह ज्यादा काम मिला तो सीधे जा कर आर जे सर से मिलेगी. हुआ भी वैसा ही. उसे आज भी काम के लिए रुकना था. उस ने काम बंद किया और आर जे सर के केबिन की ओर जाने लगी. चपरासी ने उसे रोका, मगर वह सीधे केबिन में घुस गई.

‘‘सौरी सर, मैं बिना पूछे आप से मिलने चली आई. क्या आप मु झे बता सकेंगे कि निश्चितरूप से मेरा कौन सा काम आप को गलत लगता है? मैं कहां गलत कर रही हूं? एक बार बता दीजिए. मैं उस के मुताबिक काम करूंगी, मगर बारबार ऐसा…’’

रिया के आगे के लफ्ज मुंह में ही रह गए क्योंकि रिया केबिन में आई थी तब आर जे सर कुरसी पर उस की ओर पीठ कर के बैठे थे. उन्होंने रिया के शुरुआती लफ्ज सुन लिए थे. बाद में उन की कुरसी रिया की ओर मुड़ी ‘‘सर…आप…तुम…राज…कैसे मुमकिन है? तुम यहां कैसे?’’ रिया हैरान रह गई. उस का अतीत अचानक उस के सामने आएगा, ऐसी कल्पना भी उस ने नहीं की थी. उसे लगने लगा कि वह चक्कर खा कर वहीं गिर जाएगी.

‘‘हां, बोलिए रिया मैडम, क्या तकलीफ है आप को?’’

राज के इस सवाल से वह अतीत से बाहर आई और चुपचाप केबिन के बाहर चली गई. उस का अतीत ऐसे अचानक उस के सामने आएगा, यह उस ने सोचा भी नहीं था.

आर जे सर कोई और नहीं उस का नजदीकी दोस्त राज था. उस दोस्ती में प्यार के धागे कब बुन गए, यह दोनों सम झे नहीं थे. रिया को वह कालेज का पहला दिन याद आया. कालेज के गेट के पास ही सीनियर लड़कों के एक गैंग ने उसे रोका था.

‘आइए मैडम, कहां जा रही हो? कालेज के नए छात्र को अपनी पहचान देनी होती है. उस के बाद आगे बढि़ए.’

रिया पहली बार गांव से पढ़ाई के लिए शहर आई थी और आते ही इस सामने आए संकट से वह घबरा गई.

‘अरे हीरो, तू कहां जा रहा है? तु झे दिख नहीं रहा यहां पहचान परेड चल रही है. चल, ऐसा कर ये मैडम जरा ज्यादा ही घबरा गई हैं. तू इन्हें प्रपोज कर. उन का डर भी चला जाएगा.’

अभीअभी आया राज जरा भी घबराया नहीं. उस ने तुरंत रिया की ओर देखा. एक स्माइल दे कर बोला. ‘हाय, मैं राज. घबराओ मत. बड़ेबड़े शहरों में ऐसी छोटीछोटी बातें होती रहती हैं.’

रिया उसे देखती ही रह गई.

‘आज हमारे कालेज का पहला दिन है. इस वर्षा ऋतु के साक्षी से मेरी दोस्ती को स्वीकार करोगी.’ रिया के मुंह से अनजाने में कब ‘हां’ निकल गई यह वह सम झ ही नहीं पाई. उस के हामी भरने से सीनियर गैंग  झूम उठा.

‘वाह, क्या बात है. यह है रियल हीरो. तुम से मोहब्बत के लैसंस लेने पड़ेंगे.’

‘बिलकुल… कभी भी…’

रिया की ओर एक नजर डाल कर राज कालेज की भीड़ में कब गुम हुआ, यह उसे मालूम ही नहीं हुआ. एक ही कालेज में, एक ही कक्षा में होने की वजह से वे बारबार मिलते थे. राज अपने स्वभाव के कारण सब को अच्छा लगता था. कालेज की हर लड़की उस से बात करने के लिए बेताब रहती थी. मगर राज किसी दूसरे ही रिश्ते में उल झ रहा था.

यह रिश्ता रिया के साथ जुड़ा था. एक अव्यक्त रिश्ता. उस का शांत स्वभाव, उस का मनमोहता रूप जिसे शहर की हवा छू भी नहीं पाई थी. उस का यही निरालापन राज को उस की ओर खींचता था.

एक दिन दोनों कालेज कैंटीन में बैठे थे. तब राज ने कहा, ‘रिया, तुम कितनी अलग हो. हमारा कालेज का तीसरा साल शुरू है. लेकिन तुम्हें यहां के लटके झटके अभी भी नहीं आते…’

‘मैं ऐसी ही ठीक हूं. वैसे भी मैं कालेज में पढ़ने आई हूं. पढ़ाई पूरी करने के बाद मु झे नौकरी कर के अपने पिताजी का सपना पूरा करना है. उन्होंने मेरे लिए काफी कष्ट उठाए हैं.’

रिया की बातें सुन कर राज को रिया के प्रति प्रेम के साथ आदर भी महसूस हुआ. तीसरे साल के आखिरी पेपर के समय राज ने रिया को बताया, ‘मु झे तुम्हें कुछ बताना है. शाम को मिलते हैं.’ हालांकि उस की आंखें ही सब बोल रही थीं. रिया भी इसी पल का बेसब्री से इंतजार कर रही थी. इसी खुशी में वह होस्टल आई. मगर तभी मैट्रन ने बताया, ‘तुम्हारे घर से फोन था. तुम्हें तुरंत घर बुलाया है.’

रिया ने सामान बांधा और गांव की ओर निकल पड़ी. घर में क्या हुआ होगा, इस सोच में वह परेशान थी. इन सब बातों में वह राज को भूल गई. घर पहुंची तो सामने पिताजी का शव, उस सदमे से बेहोश पड़ी मां और रोता हुआ छोटा भाई. अब किसे संभाले, खुद की भावनाओं पर कैसे काबू पाए, यह उस की सम झ में नहीं आ रहा था. एक ऐक्सिडैंट में उस के पिताजी का देहांत हो गया था. घर में सब से बड़ी होने की वजह से उस ने अपनी भावनाओं पर बहुत ही मुश्किल से काबू पाया.

इस घटना के बाद उस ने पढ़ाई आधी ही छोड़ दी और एक छोटी नौकरी कर घर की जिम्मेदारी संभाली.

इधर राज बेचैन हो गया. सारी रात रिया का इंतजार करता रहा. मगर वह आई नहीं. उस ने कालेज, होस्टल सब जगह ढूंढ़ा मगर उस का कुछ पता नहीं चला. रिया ने ही ऐसी व्यवस्था कर रखी थी. वह राज पर बो झ नहीं बनना चाहती थी. पर राज इस सब से अनजान था. उस के दिल को ठेस पहुंची थी. इसलिए उस ने भी कालेज छोड़ दिया और आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका चला गया.

‘‘मैडम, आप का काम हो गया क्या? मु झे औफिस बंद करना है. बड़े साहब कब के चले गए.’’

चपरासी की आवाज से रिया यादों की दुनिया से बाहर आई. उस ने सब सामान इकट्ठा किया और घर के लिए निकल पड़ी. उस के मन में एक ही खयाल था कि राज की गलतफहमी कैसे दूर करे. उसे उस का कहना रास आएगा या नहीं? वह नौकरी भी छोड़ नहीं सकती. क्या करे. इन खयालों में वह पूरी रात जागती रही.

दूसरे दिन औफिस में अंजली ने रिसैप्शन पर ही रिया से पूछा, ‘‘अरे रिया, क्या हुआ? तुम्हारी आंखें ऐसी क्यों लग रही हैं? खैरियत तो है न?’’

‘‘अरे कुछ नहीं, थोड़ी थकान महसूस कर रही हूं, बस. आज का शैड्यूल क्या है?’’

‘‘आज अपनी कंपनी को एक बड़ा प्रोजैक्ट मिला है. इसलिए कल पूरे स्टाफ के लिए आर जे सर ने पार्टी रखी है. हरेक को पार्टी में आना ही है.’’

‘‘हां, आऊंगी.’’

दू सरे दिन शाम को पार्टी शुरू हुई. रिया बस केवल हाजिरी लगा कर निकलने की सोच रही थी. राज का पूरा ध्यान उसी पर था. अचानक उसे एक परिचित  आवाज आई.

‘‘हाय राज, तुम यहां कैसे? कितने दिनों बाद मिल रहे हो. मगर तुम्हारी हमेशा की मुसकराहट किधर गई?’’

‘‘ओ मेरी मां, हांहां, कितने सवाल पूछोगी. स्नेहल तुम तो बिलकुल नहीं बदलीं. कालेज में जैसी थीं वैसी ही हो, सवालों की खदान. अच्छा, तुम यहां कैसे…?’’

‘‘अरे, मैं अपने पति के साथ आई हूं. आज उन के आर जे सर ने पूरे स्टाफ को परिवार सहित बुलाया है. इसलिए मैं आई. तुम किस के साथ आए हो?’’

‘‘मैं अकेला ही आया हूं. मैं ही तुम्हारे पति का आर जे सर हूं.’’

‘‘सच, क्या कह रहे हो. तुम ने तो मु झे हैरान कर दिया. अरे हां, रिया भी इसी कंपनी में है न. तुम लोगों की सब गलतफहमियां दूर हो गईं न.’’

‘‘गलतफहमी? कौन सी गलतफहमी?’’

‘‘अरे, रिया अचानक कालेज छोड़ कर क्यों गई, उस के पिताजी का ऐक्सिडैंट में देहांत हो गया था, ये सब…’’

‘‘क्या, मैं तो ये सब जानता ही नहीं.’’

स्नेहल रिया और राज की कालेज की सहेली थी. उन दोनों की दोस्ती, प्यार, दूरी इन सब घटनाओं की साक्षी थी. उसे रिया के बारे में सब मालूम हुआ था. उस ने ये सब राज को बताया.

राज को यह सब सुन कर बहुत दुख हुआ. उस ने रिया के बारे में कितना गलत सोचा था. हालांकि, उस की इस में कुछ भी गलती नहीं थी. अब उस की नजर पार्टी में रिया को ढूंढ़ने लगी. मगर तब तक रिया वहां से निकल चुकी थी.

वह उसे ढूंढ़ने बसस्टौप की ओर भागा.

बारिश के दिन थे. रिया एक पेड़ के नीचे खड़ी थी. उस ने दूर से ही रिया को आवाज लगाई.

‘‘रिया…रिया…’’

‘‘क्या हुआ सर? आप यहां क्यों आए? आप को कुछ काम था क्या?’’

‘‘नहीं, सर मत पुकारो, मैं तुम्हारा पहले का राज ही हूं. अभीअभी मु झे स्नेहल ने सबकुछ बताया. मु झे माफ कर दो, रिया.’’

‘‘नहीं राज, इस में तुम्हारी कोई गलती नहीं है. उस समय हालात ही ऐसे थे.’’

‘‘रिया, आज मैं तुम से पूछता हूं, क्या मेरे प्यार को स्वीकार करोगी?’’

रिया की आंसूभरी आंखों से राज को जवाब मिल गया.

राज ने उसे अपनी बांहों में भर लिया. उन के इस मिलन में बारिश भी उन का साथ दे रही थी. इस बारिश की  झड़ी में उन के बीच की दूरियां, गलतफहमियां पूरी तरह बह गई थीं.

गलतफहमी: नेहा को पति आर्यन की अर्पिता से दोस्ती क्यों बर्दाश्त न हुई?

Serial Story: गलतफहमी (भाग-3)

नरेश ने बेटी को एकाध बार समझाने की कोशिश की थी पर वह ध्यान ही नहीं देती थी.

‘‘देखा नेहा, आर्यन को तुम्हारी कोई फिक्र नहीं. उसे तो बस अर्पिता से ही मतलब है. सचमुच उन दोनों में संबंध न होता तो वह तुम्हें इस तरह इग्नोर न करता. इतने दिनों से तुम्हारी खोजखबर लेने की भी जरूरत न समझी उस ने,’’ सीमा उसे और भड़कातीं.

‘‘मम्मी, मैं क्या करूं, मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा,’’ नेहा बोली.

‘‘बेटी, उस ने तुम्हें बहुत दुख पहुंचाया है. आर्यन को इस का मजा जरूर चखाना चाहिए. मैं किसी अच्छे वकील से बात करती हूं. तलाक का नोटिस पहुंचेगा तो उस का दिमाग ठिकाने आ जाएगा. उस पर दहेज के लिए तुम्हें प्रताडि़त करने और दूसरी स्त्री से संबंध रखने का आरोप लगेगा तब पता चलेगा.’’

‘‘मम्मी, यह सब करने की क्या जरूरत है? कोई आसान सी तरकीब निकालो न, जिस में ज्यादा परेशानी न हो. कोर्टकचहरी का चक्कर बहुत खराब होता है,’’ नेहा ने घबरा कर कहा.

‘‘नेहा, तुम बहुत भोली हो, जब तक वह खूब परेशान नहीं होगा तब तक सुधरेगा नहीं. देखना तुम कैसे मजबूर हो जाएगा तुम्हारे सामने गिड़गिड़ा कर माफी मांगने के लिए… फिर कभी जिंदगी भर किसी दूसरी लड़की की तरफ आंख उठा कर देखने की हिम्मत नहीं करेगा.’’

‘‘हां, आप ठीक कहती हैं मम्मी,’’ नेहा ने इस सब का परिणाम सोचे बिना कहा.

कुरियर वाले ने औफिस में आर्यन के पर्सनल नाम का लिफाफा पकड़ाया तो सोचने लगा क्या है इस में? उतावलेपन से पैकेट खोला, पर उस में से निकले पेपर को पढ़ते ही होश उड़ गए. तलाक के पेपर्स थे. उस पर ऐसे इलजाम लगाए गए थे वह उन के बारे में सपने में भी नहीं सोच सकता था. उस ने तुरंत नेहा का नंबर डायल किया, पर उधर से फोन काट दिया गया. आर्यन ने फिर लैंडलाइन पर मिलाया. रिसीवर सीमा ने ही उठाया.

‘‘मम्मीजी, नेहा कहां है मुझे उस से जरूरी बात करनी है,’’ आर्यन ने कहा.

‘‘वह घर में नहीं है,’’ सीमा ने झूठ बोल कर फोन काट दिया.

‘‘आर्यन परेशान हो उठा. जरा सी बात का इतना बड़ा बखेड़ा हो जाएगा, उस ने कभी सोचा भी न था. और नेहा को क्या हो गया, जो उस से बात भी नहीं कर रही. जाने किस के बहकावे में आ कर इतना बड़ा कदम उठा लिया. जरूर मम्मी के इशारे पर चल रही है, जो बददिमाग हैं. आर्यन शुरू से जानता था उन्हें. तभी तो नरेश अंकल हमेशा उन के सामने चुप रहते थे. किंतु यह नहीं पता था कि पूरी बात जाने बिना ही अपनी बेटी का घर उजाड़ने को तैयार हो जाएंगी.’’

‘‘क्या हुआ आर्यन, बहुत परेशान हो?’’ उस के सहयोगी व मित्र निशांत ने पूछा.

‘‘कुछ नहीं यार,’’ आर्यन ने कहा.

‘‘कुछ तो जरूर है, पर मुझे नहीं बताना चाहते हो तो मत बताओ. बता देते तो हो सकता है मैं तुम्हारी कुछ मदद कर पाता,’’ निशांत ने कहा तो आर्यन ने चुपचाप पेपर्स उसे थमा दिए.

‘‘अरे यार, यह तो सरासर अन्याय है तुम्हारे प्रति. बिना कुछ किए इतना बड़ा इलजाम लगाया गया है तुम पर. लेकिन एक बात बताओ यह अर्पिता का चक्कर क्या है… वह तो केवल तुम्हारी दोस्त है न?’’ निशांत बोला.

‘‘है कहां, थी. उस से तो उसी दिन से मुलाकात या फोन पर बात नहीं हुई जिस दिन से नेहा मायके गई है,’’ आर्यन ने बताया.

‘‘खैर, तुम परेशान मत हो कोई न कोई रास्ता निकल ही आएगा,’’ निशांत ने उसे आश्वासन दिया.

शाम को आर्यन औफिस से जल्दी निकल आया. सोचा किसी अच्छे वकील से मिल कर इस समस्या का समाधान निकाला जाए. वह मानसिक रूप से बहुत परेशान था, उसे तो उस गुनाह की सजा मिल रही थी, जो उस ने किया ही नहीं था. विचारों का ज्वारभाटा उठ रहा था. मन में इतनी उथलपुथल मची थी कि सामने से आती कार भी न दिखाई दी और उस की बाइक उस से टकरा गई.

लंचटाइम में अर्पिता सहयोगियों के साथ बैठी लंच कर रही थी. तभी उस के फोन की घंटी बजी. स्क्रीन पर नंबर देखा तो आर्यन का फोन था.

इतने दिनों बाद आर्यन उसे क्यों फोन कर रहा है? अब उन के बीच कोई संबंध नहीं रहा. फिर उसे फोन करने का मतलब?

अर्पिता ने फोन रिसीव न किया, पर जब लगातार घंटी बजती रही तो अटैंड कर ही लिया.

‘‘हैलो?’’ वह धीरे से बोली.

‘‘अर्पिता, मैं यहां नवजीवन हौस्पिटल में हूं. औफिस से लौटते वक्त मेरा ऐक्सीडैंट हो गया. यदि तुम आ सको तो आ जाओ,’’ आर्यन ने कहा.

‘‘ठीक है, मैं आती हूं,’’ अर्पिता बोली व फोन बंद कर दिया. ऐक्सीडैंट की खबर सुन कर वह स्तब्ध रह गई. भले ही आर्यन से उस ने संबंध खत्म कर लिया था, किंतु इस दुर्घटना की सूचना ने उसे असहज कर दिया. बौस को बता वह तुरंत औफिस से निकल अस्पताल पहुंच गई. आर्यन बैड पर लेटा था. उस के पैर में फ्रैक्चर हो गया था. हाथों व सिर में भी चोटें आई थीं.

‘‘नेहा कहां है आर्यन?’’ अर्पिता ने आर्यन के आसपास किसी को न देख कर पूछा तो आर्यन ने उसे सब कुछ सचसच बता दिया.

अर्पिता सारी बातें जान आश्चर्यचकित रह गई. आर्यन और नेहा के बीच आज तलाक की बातें शुरू हो गईं और वे भी उस की वजह से और तब जब ऐसा कुछ है भी नहीं. फिलहाल उस ने आर्यन की देखभाल शुरू कर दी.

‘‘अर्पिता, अगर मैं जानता कि नेहा इतने संकीर्ण विचारों की है तो मैं उसे तुम्हारे बारे में बताता ही नहीं,’’ आर्यन ने कहा.

आर्यन दवा ले कर सो गया तो अर्पिता बाहर निकल आई. उस ने कुछ सोचा फिर आर्यन के फोन से नेहा का नंबर ले कर उसे फोन किया व आर्यन के दुर्घटना की सूचना दी. कुछ भी हो नेहा पत्नी थी आर्यन की. अत: घटना की सूचना ने उसे भी दुखी कर दिया. मम्मी किसी रिश्तेदार के घर थीं. अत: वह तनु को ले कर तुरंत दिल्ली रवाना हो गई.

सुबह 9 बजे वह अस्पताल पहुंच गई. अर्पिता को देख उस के तनबदन में आग लग गई. पर फिर आर्यन की स्थिति देख कर परेशान हो उठी.

नेहा के आ जाने पर अर्पिता चली गई. 2 दिन अस्पताल में रहने व सो न पाने के कारण वह बुरी तरह थक गई थी. अत: बिस्तर पर पड़ते ही नींद के आगोश में समा गई. उस दिन संडे था. अर्पिता घर में ही थी कि मोबाइल की घंटी बजी.

‘‘अर्पिता, मैं नेहा, क्या आज घर आ सकती हो?’’ उधर से आवाज आई तो अर्पिता हैरान रह गई कि नेहा ने उसे क्यों बुलाया? शायद आर्यन और उसे ले कर कोई बातचीत करना चाहती हो? कहीं बेवजह लड़ाईझगड़ा तो नहीं करने वाली… कई विचार मस्तिष्क में आनेजाने लगे. फिर भी संयत स्वर में पूछा, ‘‘नेहाजी, क्या मुझ से कोई काम है आप को?’’

‘‘हां, मैं शाम को तुम्हारा इंतजार करूंगी,’’ नेहा ने कहा व फोन काट दिया.

शाम को अर्पिता आर्यन के घर पहुंची.

‘‘अर्पिता, आर्यन अंदर हैं, तुम वहीं चलो मैं आती हूं,’’ नेहा ने कहा.

‘‘कैसे हैं आप?’’ अर्पिता ने अंदर आ कर आर्यन से पूछा.

‘‘अब ठीक हूं,’’ आर्यन ने मुसकरा कर कहा.

‘‘अर्पिता, तुम सोच रही होगी कि मैं ने तुम्हें यहां क्यों बुलाया है?’’ नेहा नाश्ते की ट्रे ले कर अंदर आते हुए बोली.

अर्पिता ने पहले आर्यन, फिर नेहा की तरफ प्रश्नवाचक निगाहों से देखा. उस की कुछ समझ में नहीं आ रहा था.

‘‘अर्पिता, मैं ने तुम्हें व आर्यन को गलत समझा था, तुम्हें उन लड़कियों की तरह समझा था, जो अपने स्वार्थ व मौजमस्ती के लिए युवकों को अपने जाल में फंसाती हैं. फिर वे युवक चाहे शादीशुदा ही क्यों न हों, पर बुरे वक्त में तुम ने इतनी मदद की अस्पताल में आर्यन की देखभाल की, मैं उस से जान गई हूं कि तुम वैसी नहीं हो. तुम तो आर्यन की सच्ची दोस्त हो क्योंकि वे स्वार्थी लड़कियां तुम्हारी तरह बिना स्वार्थ किसी की मदद कर ही नहीं सकतीं.

‘‘मैं ने तुम्हारी डायरी भी पढ़ ली है, जो तुम अस्पताल में भूल आई थीं. उस में लिखी बातें पढ़ कर मैं जान गई हूं कि तुम्हारे और आर्यन के बीच सिर्फ दोस्ती का रिश्ता था और कुछ नहीं और वह भी तुम ने इस वजह से खत्म कर लिया ताकि मुझे बुरा न लगे और मैं बेवकूफ गलतफहमी में तलाक ले कर अपना बसाबसाया घर उजाड़ने की तैयारी कर बैठी थी,’’ कहतेकहते फफक पड़ी नेहा.

‘‘नेहाजी, आप की जगह कोई भी होता तो शायद यही करता,’’ अर्पिता बोली.

‘‘अर्पिता, यदि तुम्हारी डायरी न पढ़ी होती तो जाने क्या होता…’’ नेहा ने सुबकते हुए कहा.

‘‘वक्त रहते सब ठीक हो गया नेहाजी अब तो आप को खुश होना चाहिए.’’

‘‘ठीक कहती हो अर्पिता तुम. आज इतने दिनों बाद मन का बोझ खत्म हुआ है,’’ नेहा ने अर्पिता का हाथ पकड़ते हुए कहा.

‘‘आर्यन की आंखों में खुशी के भाव साफ नजर आ रहे थे. पत्नी के मन से गलतफहमी जो दूर हो गई थी. महीनों से सूने पड़े घर में नन्ही तनु की चहचहाहट फिर से गूंजने लगी थी. उस का टूटने के कगार पर पहुंच चुका वैवाहिक जीवन बच गया था. साथ ही फिर मिल गई थी उसे अपनी दोस्त अर्पिता.’’

 

Serial Story: गलतफहमी (भाग-2)

आर्यन से नेहा की ये बातें बरदाश्त न हुईं तो उस ने गुस्से में आ कर एक चांटा नेहा के गाल पर जड़ दिया.

‘‘कब से समझाने की कोशिश कर रहा हूं, पर तुम हो कि मानने को तैयार ही नहीं हो,’’ उस ने कहा.

‘‘देखा, एक सड़कछाप आवारा लड़की के लिए अपनी पत्नी को मारने में भी शर्म नहीं आई,’’ नेहा रोते हुए चीखी.

‘‘नेहा, तुम ने बदतमीजी की हद कर दी.’’

‘‘हद मैं ने नहीं तुम ने की है,’’ नेहा बोली और फिर बैग उठा कर तनु को खींचते हुए बाहर निकल गई.

आर्यन जानता था कि इस वक्त नेहा उस की कोई बात नहीं मानेगी, इसलिए फिर कुछ न बोला. सोचा 1-2 दिन में गुस्सा ठंडा हो जाएगा तो खुद ही लौट आएगी.

लेकिन 1 हफ्ता गुजर गया, मगर नेहा न तो लौट कर आई और न ही उस ने फोन किया.

इधर अर्पिता ने आर्यन से फोन पर बात करना भी बंद कर दिया था. बसस्टौप पर बस की प्रतीक्षा करते समय भीड़ के पीछे कोने में जा कर खड़ी हो जाती थी ताकि आर्यन उसे देख न सके. जब से आर्यन से उस की फ्रैंडशिप हुई थी तब से अर्पिता उस से सारी बातें शेयर करती थी. कोई प्रौब्लम होती तो वह उस का हल भी सुझा देता. पर अब वह फिर से अकेली हो गई थी, इसलिए फिर से डायरी को अपना दोस्त बना लिया था.

धीरेधीरे नेहा को गए हुए 15 बीत गए तो आर्यन को फिक्र होने लगी. वह सोचता था कि नेहा स्वयं गुस्सा हो कर गई है, उसे स्वयं आना चाहिए. पर अब अपनी ही बातें उसे बेतुकी लगने लगी थीं. नेहा की जगह स्वयं को रख कर देखा तो सोचा शायद वह भी वही करता जो नेहा ने किया. नेहा उसे सचमुच बहुत प्यार करती है. तभी तो अर्पिता की दोस्ती सहन न हुई. खैर, जो हो गया वह हो गया. वह स्वयं नेहा को फोन करेगा और जा कर उसे ले आएगा. मन ही मन निश्चय कर आर्यन उठा और अपने फोन से नेहा का नंबर डायल करने लगा.

नेहा के फोन की रिंग जाती रही, पर फोन रिसीव न हुआ. फिर आर्यन ने नेहा के घर का लैंडलाइन नंबर मिलाया.

टैलीफोन की घंटी बजी तो फोन नेहा की मम्मी सीमा ने उठाया बोलीं, ‘‘हैलो.’’

‘‘हैलो, मम्मीजी नमस्ते. नेहा से बात करनी है… कहां है वह?’’ आर्यन ने बेहद आदर से कहा.

‘‘नेहा को तुम से कोई बात नहीं करनी है और बेहतर होगा कि तुम दोबारा फोन न करो,’’ सीमा ने कहा.

‘‘मम्मीजी, पर क्यों? मेरी बात तो सुनिए पहले प्लीज…’’ आर्यन की बात पूरी नहीं हुई थी कि सीमा ने रिसीवर रख दिया.

‘‘किस का फोन था सीमा?’’ नेहा के पापा नरेश ने पूछा.

‘‘आर्यन का. नेहा से बात करना चाहता था,’’ सीमा ने बताया.

‘‘तो फिर फोन काट क्यों दिया तुम ने?’’ नरेश ने पूछा.

‘‘मैं ने मना कर दिया,’’ सीमा ने गर्व से कहा.

‘‘मना कर दिया पर क्यों? नेहा को आए 15 दिन हो गए हैं… अब उसे जाना चाहिए,’’ नरेश ने कहा.

‘‘नेहा के रहते हुए आर्यन ने दूसरी लड़की से संबंध बना रखा है. फिर नेहा वहां क्यों जाए?’’ सीमा ने रोष में भर कर कहा.

‘‘देखो आर्यन को मैं अच्छी तरह जानता हूं. मेरे बचपन के दोस्त का बेटा है. वह ऐसी हरकत कभी नहीं कर सकता. जरूर नेहा को कोई गलतफहमी हुई है,’’ नरेश ने कहा.

‘‘वह लड़की नेहा के रहते हुए घर आती है,’’ सीमा ने कहा.

‘‘देखो, इस संबंध में हमें आर्यन से बात करनी चाहिए. यदि वह सचमुच गलत होगा तो हम उसे समझाएंगे,’’ नरेश ने कहा.

‘‘आर्यन कोई छोटा बच्चा नहीं है, जो उसे समझाया जाए. उस के पास अपना दिमाग नहीं है क्या?’’

‘‘सीमा, ऐसे तो मामला और बिगड़ जाएगा. तुम सोचो दोनों के बीच की दूरी इस तरह तो और बढ़ जाएगी. कहीं आर्यन तलाक के बारे में न सोचने लगे,’’ नरेश ने आशंका व्यक्त की.

‘‘बात बिगड़ती है तो बिगड़ने दो. नेहा अनाथ नहीं है. हम सब उस के साथ हैं. वह कहीं नहीं जाएगी. उसे और उस की बेटी को जिंदगी भर रख सकती हूं मैं,’’ सीमा ने कहा.

‘‘बात को समझने की कोशिश करो. इस सब से क्या फायदा? क्यों अपनी जिद के कारण नेहा का घर उजाड़ने पर तुली हो? तुम्हें तो उसे समझाबुझा कर पति के घर भेजना चाहिए,’’ नरेश ने कहा.

‘‘मैं उन मांओं में से नहीं हूं, जो बेटियों को बोझ समझती हैं. मैं ने नेहा को बहुत नाजों से पाला है. उस के ही घर में उस की सौतन आए यह मुझ से कभी बरदाश्त नहीं होगा.’

‘‘तुम हर बात में जिद क्यों करती हो? नेहा से भी तो पूछ लो वह क्या चाहती है?’’ नरेश ने कहा.

‘‘नेहा इतनी समझदार होती तो उसे ये दिन न देखने पड़ते. वह तो आंख मूंद कर पति पर भरोसा किए बैठी रही. उस के सीधेपन का फायदा उठा कर ही तो आर्यन मटरगश्ती करने लगा.’’

‘‘जैसी तुम्हारी मरजी,’’ पत्नी के सामने हमेशा की तरह चुप हो जाने वाले नरेश ने कहा. वे जानते थे कि सीमा से बातों में कोई नहीं जीत सकता. दूसरों की बातों को कुतर्कों से काट कर अपनी बात ही सही साबित करना उन की आदत है.

बात न बढ़े, लड़ाईझगड़ा न हो, घर में अशांति न फैले इसलिए वे हमेशा चुप हो जाते थे, किंतु बेटी का बसाबसाया घर सीमा की जिद व नेहा की बेवकूफी से उजड़ जाने की आशंका से डर कर बोल उठे थे. किंतु इस बार भी पत्नी के कुतर्कों ने उन्हें परास्त कर दिया.

नेहा कमरे में बैठी मम्मीपापा की बातें सुन रही थी. उसे लगा मम्मी सही कह रही हैं. न आर्यन को फोन करेगी न खुद जाएगी. तब उसे पता चलेगा. उस की इस अकड़बाजी से उस का विवाहित जीवन टूट भी सकता है, इस की उसे कोई चिंता न थी.

धीरेधीरे 7 महीने गुजर गए. आर्यन ने भी अब फोन करना छोड़ दिया था. महल्ले से ले कर परिचितों, रिश्तेदारों में यह खबर फैल गई कि पता नहीं क्यों नेहा मायके में पड़ी है. पति के पास नहीं जा रही है. लोग मिलने पर उस से सवाल भी पूछने लगे थे कि क्यों वह मायके में रह रही है? अत: धीरेधीरे नेहा लोगों से कतराने लगी थी. उस ने कहीं निकलना व परिचितों, रिश्तेदारों से मिलना छोड़ दिया था.

अब नेहा को आर्यन की याद सताने लगी थी. उसे लगता कि उसे आर्यन को इस तरह छोड़ कर नहीं आना चाहिए था. कम से कम उसे एक बार अपनी गलती सुधारने का मौका तो देना चाहिए था.

नेहा, आर्यन व अर्पिता के संबंधों के बारे में सोचती. अब तो वह घर पर नहीं है. उन दोनों को तो और छूट मिल गई… दोनों को ही रोकनेटोकने वाला कोई नहीं. कहीं ऐसा न हो कि सचमुच आर्यन उस से तलाक ले कर अर्पिता से शादी कर ले. आखिर इतने दिनों से न उस ने फोन किया न लेने आया. जरूर अर्पिता से उस की घनिष्ठता और बढ़ गई होगी. तभी तो अब फोन तक नहीं करता.

यह सब सोच मन ही मन कुढ़ती रहती नेहा. पर स्वयं अपनी तरफ से ईगो के कारण आर्यन को फोन नहीं करती. गलती आर्यन ने की और झुके वह. इस में उसे अपना अपमान लगता. उस का अभिमान जिसे वह अपना स्वाभिमान समझ रही थी वही उस का सब से बड़ा दुश्मन बन बैठा था.

आगे पढ़ें- नरेश ने बेटी को एकाध बार समझाने की कोशिश की थी पर,…

Serial Story: गलतफहमी (भाग-1)

घंटी बजी तो आर्यन ने उठ कर दरवाजा खोला.

‘‘अरे अर्पिता तुम?’’ उस ने हैरानी से पूछा.

‘‘आर्यन, मैं तुम्हें सरप्राइज देना चाहती थी. इसीलिए बिना बताए चली आई.’’

‘‘अच्छा किया जो आ गईं. आओ अंदर आओ,’’ आर्यन ने कहा और फिर अर्पिता को ड्राइंगरूम में बैठा कर पत्नी नेहा को बुलाने अंदर चला गया.

अर्पिता दिल्ली में अकेली रहती थी. करीब 3 महीने पहले उस की औफिस जाते समय बस में आर्यन से मुलाकात हुई थी. फिर एक दिन शाम को इत्तफाक से उन की मुलाकात बसस्टौप पर हो गई. अर्पिता काफी देर से बस की प्रतीक्षा कर रही थी. आर्यन उधर से अपनी बाइक से गुजर रहा था. उसे देख कर रुक गया. आर्यन के आग्रह पर वह उस के साथ चलने को तैयार हो गई.

‘‘अर्पिता, तुम्हारा यहां कोई रिश्तेदार या परिचित तो होगा न?’’ आर्यन ने यों ही बातोंबातों में पूछ लिया.

‘‘नहीं, मेरा यहां कोई रिश्तेदार या परिचित नहीं है.’’

‘‘कोई बात नहीं, तुम मुझे अपना दोस्त समझ कोई भी जरूरत पड़ने पर बेहिचक कह सकती हो.’’

‘‘हां, जरूर,’’ अर्पिता बोली.

फिर आर्यन ने उसे अपनी फैमिली के बारे में बता दिया.

रात को वह बिस्तर पर लेटी तो आर्यन के बारे में देर तक सोचती रही. उस के साथ उसे मेलजोल बढ़ाना चाहिए या नहीं? हालांकि उसे आर्यन की स्पष्टवादिता पसंद आई थी. ऐसे तमाम पुरुष होते हैं, जो शादीशुदा होते हुए भी लड़कियों से यह कह कर दोस्ती करते हैं कि वे अनमैरिड हैं या फिर ऐसे लोग लड़कियों से दोस्ती करने को उत्सुक रहते हैं जिन की बीवी से अनबन होती है. पर आर्यन के साथ ऐसा कुछ नहीं है. फिर उस के लिए तो अच्छा ही होगा कि यहां कोई परिचित तो रहेगा. फिर दोनों अच्छे दोस्त बन गए थे. कभीकभार फोन पर बात कर लेते या कभी साथ बैठ कर चायकौफी पी लेते.

आर्यन थोड़ी देर में लौटा. साथ में नेहा भी थी, बोला, ‘‘अर्पिता, ये है मेरी पत्नी नेहा और नेहा ये है अर्पिता मेरी दोस्त.’’

‘‘हाय नेहा,’’ अर्पिता ने मुसकरा कर कहा.

‘‘हैलो,’’ नेहा ने सामने सोफे पर बैठते हुए कहा.

आर्यन भी उस की बगल में बैठ गया. ‘‘ऐक्सक्यूज मी, जरा तनु को देख लूं. कल उस का टैस्ट है,’’ 5 मिनट बाद ही उठते हुए नेहा बोली.

आर्यन अर्पिता से इधरउधर की बातें करने लगा. फिर वह नेहा से चायनाश्ता लाने के लिए बोलने अंदर आया, ‘‘नेहा, ये क्या मैनर्स हैं, तनु को पढ़ाने के बहाने तुम अंदर चली आईं और यहां आ कर मैगजीन पढ़ रही हो. खैर, अब कम से कम चायनाश्ता तो बना ही सकती हो,’’ आर्यन धीरे बोल रहा था, पर अर्पिता तक आवाज स्पष्ट जा रही थी.

‘‘आर्यन, तुम ने पहले तो मुझे नहीं बताया था कि कोई लड़की तुम्हारी दोस्त है?’’ नेहा कह रही थी.

‘‘नेहा, मैं ने तुम्हें अर्पिता के बारे में बताया तो था.’’

‘‘आर्यन, मैं नहीं जानती थी कि तुम दोनों के बीच इतना गहरा रिश्ता है कि वह घर तक आ जाएगी और वह भी मेरे रहते हुए,’’ नेहा ने गुस्से से कहा.

‘‘नेहा, मैं तो तुम्हें समझदार समझता था, पर तुम तो मुझ पर शक कर रही हो,’’ आर्यन ने कहा.

‘‘अब कोई लड़की तुम से घर पर मिलने आए तो मैं क्या सोचूं?’’

‘‘अर्पिता सिर्फ मेरी अच्छी दोस्त है.’’

‘‘दोस्त… हुंह, कोई भी रिश्ता बनाने के लिए यह नाम काफी अच्छा होता है,’’ नेहा ने कहा.

‘‘शटअप, शर्म नहीं आती तुम्हें ऐसी बकवास करते हुए? तुम इतने संकीर्ण विचारों की हो मैं सोच भी नहीं सकता था,’’ आर्यन ने कहा.

‘‘तुम्हें भी तो शर्म नहीं आई पत्नी और बेटी के होते हुए दूसरी लड़की से संबंध…’’ नेहा गुस्से से बोली.

‘‘नेहा बंद करो यह बकवास… जाओ चाय बना दो,’’ आर्यन उस की बात काटते हुए बोला.

‘‘मैं, तुम्हारी प्रेमिका के लिए चाय बनाऊं. कभी नहीं,’’ नेहा ने साफ मना कर दिया.

नेहा को इस वक्त समझाना या उस से रिक्वैस्ट करना बेकार समझ आर्यन स्वयं किचन में चला गया. थोड़ी ही देर में चाय की ट्रे ले कर वह ड्राइंगरूम में आया.

‘‘आर्यन, तुम क्यों परेशान हुए?’’ अर्पिता बोली. आर्यन व नेहा की बातें सुन उस का मन कसैला हो उठा था, पर अपने हावभाव से वह प्रकट नहीं होने देना चाहती थी कि उस ने उन की बातें सुन ली हैं. वह आर्यन को अपने सामने शर्मिंदा नहीं होने देना चाहती थी.

‘‘अर्पिता, तनु को 1-2 लैसन समझ में नहीं आ रहे थे. नेहा उसे उन्हें समझा रही है. कल उस का टैस्ट है इसलिए मैं ने ही चाय बना ली,’’ आर्यन ने होंठों पर मुसकान लाते हुए कहा.

‘‘चलो, आज तुम्हारे हाथ की चाय पी जाए,’’ अर्पिता कप उठाते हुए बोली.

चाय पी कर वह जरूरी काम याद आ जाने का बहाना कर लौट आई. अर्पिता रास्ते भर नेहा के बारे में सोचती रही. आर्यन कहता था कि बहुत समझदार है नेहा. लगता है अभी तक उसे नहीं समझ पाया… आज नेहा ने जैसा व्यवहार किया उस से तो यही लगता है कि कितने संकीर्ण विचारों की है वह… खैर, चाहे जैसी भी हो आर्यन की पत्नी है. यदि उसे पसंद नहीं तो आर्यन से कोई संबंध नहीं रखेगी वह. उस की वजह से उन के रिश्ते में कोई दरार पड़े यह ठीक नहीं.

अर्पिता को गेट तक छोड़ आर्यन अंदर आया तो अंदर का दृश्य देख कर दंग रह गया. नेहा, जल्दीजल्दी वार्डरोब से अपने कपड़े निकाल कर बैग में रखती जा रही थी. उस का चेहरा गुस्से से लाल हो रहा था.

‘‘नेहा, यह क्या कर रही हो तुम?’’ उस ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘मैं अब आप के साथ नहीं रह सकती. अच्छा होगा हम अपने रास्ते अलग कर लें.’’

‘‘नेहा, यह क्या बेवकूफी भरी हरकत कर रही हो?’’ आर्यन ने कहा.

‘‘बेवकूफी मैं नहीं कर रही आप ने की है, जो पत्नी के रहते हुए दूसरी लड़की से संबंध बनाया.’’

‘‘चुप रहो जो मन में आ रहा है बोलती जा रही हो,’’ आर्यन चिढ़ कर बोला.

‘‘सचाई कड़वी ही लगती है. मैं बहुत शरीफ समझती थी आप को, पर आप की असलियत क्या है, अब जान गई हूं,’’ नेहा भी तेज स्वर में बोली.

‘‘नेहा, क्यों बेवजह बात का बतंगड़ बना रही हो?’’ आर्यन ने उसे समझाना चाहा.

‘‘मैं बात का बतंगड़ नहीं बना रही हूं सच कह रही हूं.’’

‘‘नेहा, मेरी बात समझने की कोशिश करो. अर्पिता केवल…’’ आर्यन ने बात पूरी भी नहीं की थी कि नेहा बीच में ही बोल उठी, ‘‘मुझे सफाई देने की कोशिश मत करो प्लीज.’’ फिर नेहा बैग की जिप बंद करते हुए बोली, ‘‘चलो तनु,’’ और उस ने तनु की कलाई पकड़ ली.

‘‘नेहा, तुम्हें जाना है तो जाओ. तनु को मत ले जाओ. वैसे भी उस के टैस्ट चल रहे हैं,’’ आर्यन ने कहा.

‘‘अच्छा मैं यहां अपनी बेटी को आप दोनों की रंगरलियां देखने के लिए छोड़ दूं,’’ नेहा आंखें तरेर कर बोली.

आगे पढ़ें- आर्यन से नेहा की ये बातें बरदाश्त न हुईं तो उस ने…

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें