Short Story: गंध मादन

हम लोग राजधानी एक्सप्रेस से दिल्ली लगभग 10 बजे सुबह पहुंचे. हम ने सुबह ट्रेन में ही नाश्ता कर लिया था. हम 3 थे, मैं, मेरा दोस्त केयूर और अर्चिता. तीनों को दिल्ली में अलगअलग काम थे. मुझे इंगलैंड जाने के लिए वीजा बनवाना था, केयूर को एक मल्टीनेशनल कंपनी में इंटरव्यू देना था और अर्चिता को जे.एन.यू. में एडमिशन के लिए आवेदन करना था.

अर्चिता के चाचा डाक्टर थे और सफदरजंग इनक्लेव में रहते थे, इसलिए उस का वहीं ठहरने का कार्यक्रम था.

कर्नल के.के. सिंह की पत्नी वहीं एक कालिज में लेक्चरर थीं. कर्नल सिंह मेरे चाचा ब्रिगेडियर सिन्हा के जिगरी दोस्त थे. दोनों ने एकसाथ कालिज की पढ़ाई की थी. मेरे चाचा इस समय लद्दाख में तैनात थे.

मैं कर्नल के.के. सिंह को बचपन से जानता हूं. पटना मेरे चाचा के यहां वह अकसर आते थे और कई दिनों तक ठहरते थे. मैं जब मेडिकल कालिज में पढ़ता था तो अपने चाचा के यहां अकसर जाता था. मेरी छुट्टियां लगभग वहीं बीतती थीं. इसलिए मैं कर्नल साहब को बहुत नजदीक से जानता था. पहले भी दिल्ली आने पर कई बार उन के यहां ठहरा था.

स्टेशन पर उतर कर हम ने प्लान बनाया कि अर्चिता को प्रीपेड टैक्सी में बिठा कर सफदरजंग भेज देंगे और फिर आटोरिकशा पकड़ कर हम कर्नल साहब के यहां चले जाएंगे. उन से फोन पर बात हो चुकी थी.

लेकिन जब हम अपना सामान ले कर गाड़ी से प्लेटफार्म पर उतरे तो देखा कि कर्नल साहब हाथ हिलाते हुए हम लोगों की ओर आ रहे हैं.

हम लोगों ने उन्हें नमस्कार किया फिर मैं ने केयूर और अर्चिता का उन से परिचय कराया और कहा, ‘‘अंकल, हम लोग तो आ ही जाते. आप इतनी दूर क्यों आए?’’

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‘‘वौट नानसेंस, आज संडे है, कोई काम नहीं है. केवल दोपहर को क्लब जाना है, मीटिंग है. तब तक एकदम फ्री हूं. इसी बहाने सैर हो गई.’’

कर्नल के.के. सिंह ने केयूर और अर्चिता को गंभीर हो कर गौर से देखा, फिर मुसकराए और बोले, ‘‘एक्सिलेंट, स्मार्ट हैंडसम बौय, ब्यूटीफुल गर्ल.’’

उस के बाद कर्नल सिंह ने आगे बढ़ कर सब इंतजाम टेकओवर कर लिया. तुरंत कुली बुलवाया, अपनी कार में सामान रखवाया, कुली को भुगतान किया. हम लोगों ने जब इस का विरोध किया तो हमें डांटते हुए बोले, ‘‘कम आन, गेट इन. मेरा भतीजा है, पेमेंट करेगा?’’ कौन कहां बैठेगा? इस पर वह बोले, ‘‘शमीक, तुम शादीशुदा हो इसलिए आगे बैठोगे, और तुम दोनों पीछे.’’

जब अर्चिता ने कहा कि उसे नजदीक ही तो जाना है, टैक्सी ले लेगी तो उन्होंने चेहरे पर गंभीर भाव लाते हुए उसे कार के अंदर बैठा कर कार स्टार्ट करते हुए कहा, ‘‘नो, मैं कभी अलाउ नहीं कर सकता, मेरी जिंदगी का सिद्धांत है और मैं उसे कभी तोड़ नहीं सकता.’’

अर्चिता ने पूछा, ‘‘कैसा सिद्धांत सर?’’

कर्नल साहब गाड़ी निकालते हुए हंस कर बोले, ‘‘मैं कभी भी खूबसूरत, स्मार्ट लड़की को अकेले नहीं जाने देता.’’

अर्चिता के चाचा के घर पहुंच कर हम ने बाहर से ही विदा मांगी तो उस ने औपचारिकतावश कहा, ‘‘आइए, चाय पी कर जाइए, चाचाचाची से भी मिल लीजिएगा.’’

मैं ने कहा, ‘‘फिर कभी, अब देर हो गई है.’’

लेकिन तब तक कर्नल साहब गाड़ी से उतर कर, शीशा चढ़ा कर गाड़ी लाक कर के तैयार हो गए थे, ‘‘हांहां, चलो, एक कप चाय हो जाए और तुम्हारे चाचाचाची से भी मिल लेंगे. उन्हें भी तसल्ली हो जाएगी कि हम जैसे भले आदमियों ने उन की इतनी खूबसूरत भतीजी को सही- सलामत घर तक पहुंचा दिया है.’’

मैं तो उन को मुंहबाए खड़ा देखता रह गया. तब तक वे अर्चिता के साथ आगे बढ़ गए. कर्नल साहब, अर्चिता के चाचाचाची से बेहद गरमजोशी से मिले. चाय पीतेपीते उन्होंने उन दोनों पर भी पूरी तरह कब्जा कर लिया था. तरहतरह के किस्से सुनाते रहे और केयूर की तारीफ करते रहे. मैं आश्चर्य से सबकुछ सुनता रहा. जिस शख्स से वह आज पहली बार मिले हैं उस के बारे में यों बात कर रहे थे मानो बचपन से जानते हों. फिर अर्चिता की तारीफ करते हुए उन्होंने चाचाचाची को समझा दिया कि वह उन की भतीजी के लिए एवन लड़का लाएंगे, नो तिलक, नो दहेज, सबकुछ मुझ पर छोड़ दीजिए.

‘‘लेकिन अर्चिता के पिता फौजी से इस की शादी नहीं करना चाहते.’’

‘‘डोंट वरी सर, सिविल में भी फौजी किस्म के बहुत लड़के हैं. मैं सब ठीक कर दूंगा.’’

लगभग 12 बजे हम लोग वहां से निकले तो उन्होंने रास्ते में केयूर से पूछा, ‘‘यार, क्या नाम है तुम्हारा? भूल गया.’’

‘‘केयूर.’’

‘‘हां, केयूर, कहो तो बात करूं? लड़की के बारे में क्या खयाल है?’’

‘‘नहीं अंकल, ऐसी कोई बात नहीं है?’’

‘‘अरे, बेवकूफ, हाथ पकड़ ले, नहीं तो जिंदगी भर मेरी तरह पछताएगा.’’

‘‘आप की तरह?’’

‘‘हां, ऐसी परी जिंदगी में दोबारा नहीं मिलती.’’

केयूर शरमा गया, ‘‘ऐसी कोई बात नहीं है अंकल, केवल मामूली सी जानपहचान है.’’

‘‘मैं आंखें देख कर दिल की आवाज सुन लेता हूं बरखुरदार. जिंदगी भर फौज में लेफ्टराइट किया है और इश्क किया है, इस के अलावा कुछ नहीं,’’ फिर कर्नल सिंह गुनगुनाने लगे, ‘चांदी जैसा रंग है तेरा, सोने जैसे बाल. इक तू ही धनवान है गोरी, बाकी सब कंगाल.’

कर्नल सिंह की बातों और शायरी के बीच रास्ता कैसे कट गया पता ही नहीं चला. पता तो तब चला जब कार अपनी मंजिल पर पहुंच कर रुकी.

कर्नल साहब का घर छोटा था लेकिन बहुत ही आरामदेह और साफ- सुथरा था. घर के आगेपीछे 2 छोटेछोटे लौन थे. अंदर 2 बड़ेबड़े बेडरूम थे. ऊपरी मंजिल में भी कुछ निर्माण हुआ था जो अधूरा पड़ा था. कर्नल साहब की पत्नी बरामदे में बैठी अखबार पढ़ रही थीं. हम लोग भी वहीं बैठ गए.

आंटी चाय ले आईं. चाय पी कर कर्नल साहब ने अपना मकान और लौन हमें दिखाया. आंटी किचन में चली गईं. उन के लौन में मैं ने एक खास बात मार्क की कि वहां फूल का एक भी पौधा नहीं था. सामने वाले छोटे लौन के बीच में गोल्फ के लिए एक ‘होल’ था जिस में वह ‘पट’ की प्रैक्टिस करते थे.

मैं ने उत्सुकतावश पूछा, ‘‘अंकल, जाड़े की शुरुआत है, लेकिन आप के लौन में फूल का एक भी पौधा नहीं है. क्या आप को फूलों का शौक नहीं है?’’

कर्नल साहब ने संक्षिप्त जवाब दिया, ‘‘पहले था, अब नहीं है.’’

मैं ने उत्सुकतावश पूछा कि अंकल, आप ने आर्मी क्यों छोड़ दी? आप तो मेजर जनरल या लेफ्टिनेंट जनरल हो जाते.

कर्नल साहब ने कहा, ‘‘क्या करता? घर के बहुत सारे झंझट थे. मातापिता की मौत हो गई. 2 बेटियों की शादी करनी थी. वाइफ यहां अकेली पड़ गई,’’ फिर उन्होंने सरगोशी के अंदाज से कहा, ‘‘थोड़ा चेस्ट पेन भी होने लगा था. आर्मी में हर साल मेडिकल चेकअप होता है न? वेरी थारो.’’

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‘‘अब फ्री हैं. दोनों बेटियों की शादी कर दी. दोनों अमेरिका में हैं. हम दोनों यहां अकेले हैं. नौकरचाकर का भी झंझट नहीं है. केवल सुबह एक पार्टटाइम सरर्वेंट आती है.’’

केयूर ने अचानक पूछा, ‘‘अंकल, फौजी अफसर हो कर आप को शायरी में इतना शौक कैसे है?’’

कर्नल साहब ने जोरदार ठहाका लगाया, ‘‘तुम सिविलियंस को गलतफहमी है कि फौजी केवल लेफ्टराइट करते हैं और दारू पीते हैं. फौजी शेरओशायरी, साहित्य के बहुत शौकीन होते हैं. मैं जब 5वीं बटालियन में तैनात था तो हमारी ब्रिगेड के मेजर पंजाबी थे, जिन्हें शायरी का बहुत शौक था. मेस में शाम को एकदो पैग व्हिस्की अंदर गई नहीं कि उन्होंने शायरी शुरू कर दी. 3-4 पेग पीने के बाद तो वह घंटों, शेर, गजल, नज्म सुनाते रहते थे और अंत में वह एक ही नज्म पढ़ते थे, ‘फिर कब आओगे बीमार हो कर?’

आंटी आईं तो अचानक कर्नल साहब ने कहा, ‘‘जानती हो केतकी, इस की जो गर्लफैं्रड है, शी इज वंडरफुल. इन की शादी करा दो, वरना जे.एन.यू. में एडमिशन हो जाने के बाद उस के पीछे लड़कों की लाइन लग जाएगी. बाद में पछताओगे बरखुरदार,’’ उन्होंने केयूर की ओर इशारा किया.

केयूर शरमा कर बोला, ‘‘नहीं आंटी, ऐसी कोई बात नहीं है, अंकल तो यों ही…’’

आंटी ने मुसकरा कर कर्नल साहब की पीठ पर एक चपत लगाई, ‘‘ये तो रोज पछताते हैं.’’

‘‘अरे, केतकी, तुम अर्चिता को देखना. शी विल बीट आल द फिल्म स्टार्स. अगर 30 साल पहले मुझे मिली होती तो मैं दौड़ कर उस से शादी कर लेता.’’

‘‘30 साल पहले तो वह पैदा ही नहीं हुई थी जनाब,’’ आंटी ने हंसते हुए कहा.

कर्नल साहब ने लंबी सांस ली, ‘‘न जाने खूबसूरत लड़कियां हमेशा देर से क्यों पैदा होती हैं.’’

‘‘अरे, बाबा, तुम लोगों को खाना नहीं खाना है? मैं तो चली, मुझे महिला क्लब की मीटिंग में जाना है. खाना खा कर थोड़ा आराम करूंगी फिर 3 बजे जाऊंगी. 5 बजे तक वापस आ जाऊंगी.’’

‘‘चलिए, हम लोग भी नहा लेते हैं,’’ और आंटी के साथ हम अंदर आ गए.

कर्नल साहब लौन में बैठ कर अखबार पढ़ने लगे. मैं उन के बाथरूम में चला गया. केयूर ड्राइंगरूम से लगे गेस्ट बाथरूम में चला गया. नहा कर हम निकले तो आंटी ने डाइनिंग स्पेस की ओर इशारा किया, ‘‘तुम दोनों बैठो, मैं तुरंत लंच लगाती हूं.’’

लंच खाते समय आंटी ने कर्नल साहब से कहा, ‘‘तुम अपनी चाभी ले लो. हो सकता है मुझे आने में देर हो जाए. तुम्हें भी तो क्लब जाना है न?’’

आंटी ने हम से कहा, ‘‘तुम दोनों बगल वाले मेरे रूम में आराम करो. सब ठीकठाक कर दिया है. कहीं बाहर जाना है तो मैं अपनी ‘स्पेयर की’ दे देती हूं.’’

केयूर ने उठते हुए कहा, ‘‘आंटी, मुझे कनाट प्लेस जाना है. सोचता हूं इंटरव्यू की जगह देख आऊं. दिल्ली दूसरी बार आया हूं, 1-2 परिचितों से मिलना भी है. मैं 7 बजे तक आऊंगा.’’

कर्नल साहब ने ठहाका लगाया, ‘‘अरे, मैडम, अपनी जवानी भूल गई. क्या नाम है उस का? अ…… हां, अर्चिता, उस से भी तो मिलने जाना है. साफसाफ कैसे कहे बेचारा?’’

मैं भी उठते हुए बोला, ‘‘आंटी मैं भी एम्स तक जाऊंगा. कुछ दोस्तों से मिलना है. मैं भी 7 बजे तक आ जाऊंगा.’’

‘‘ओ.के. ब्यौज इंज्वाय योर सेल्फ. लेकिन 7 बजे तक जरूर आ जाना. वी विल हैव ड्रिंक्स टूगेदर, सेलीबे्रट करना है.’’

कर्नल साहब जल्दी लौटने की बात कहते हुए गेट तक आए. मैं ने फिर उत्सुकतावश कैक्टस और क्रोटन के पौधों को देखते हुए पूछा, ‘‘अंकल, क्या आंटी को भी फूलों का शौक नहीं है.’’

कर्नल साहब ने कहा, ‘‘उसे तो फूलों से बहुत प्यार है, लेकिन मैं लगाने नहीं देता.’’

‘‘क्यों अंकल?’’

कर्नल साहब ने आंखों से गोपनीयता का इशारा किया और फिर उन के मुंह से यह शेर फूटा, ‘‘मैं वो गुलशन गजिदा हूं कि तनहाई के मौसम में, नहीं होते अगर कांटे तो डंसती है कली मुझ को.’’

शाम को वापस आतेआते मुझे साढ़े 7 बज गए थे. केयूर भी कुछ देर पहले ही आया था. कर्नल साहब तैयार हो कर ड्राइंगरूम में बैठे थे. उन के सामने मेज पर 3 कट ग्लास, डिकैंटर में व्हिस्की और प्लेट में स्नैक्स थे. केयूर एक ओर बैठा टीवी देख रहा था.

मेरे आते ही उन्होंने केयूर को अपने पास बुलाया और हम दोनों को बैठने को कहा, ‘‘आओ भाई, जल्दी करो. मैं क्लब से कबाब, फिश और चिप्स लाया हूं. मेरे क्लब जैसा कबाब पूरी दिल्ली में कहीं नहीं मिलेगा.’’

आंटी किचेन में एप्रन पहने खाना बना रही थीं, आकर बोलीं, ‘‘चिकन बना रही हूं, 1 घंटे में खाना तैयार हो जाएगा.’’

कर्नल साहब ने इतनी तैयारी की थी, इतना उत्साहित थे और इतना अपनापन था कि मैं उन्हें निराश नहीं कर सका.

आंटी ने प्लेट में कुछ और खाने का सामान ला कर दिया. केयूर ने कहा, ‘‘सर, कल 10 बजे मुझे इंटरव्यू में भी जाना है.’’

कर्नल साहब ने कबाब का एक टुकड़ा उठाते हुए कहा, ‘‘कोई बात नहीं, मैं 5 बजे उठा दूंगा.’’

हमारे खानेपीने के दौरान आंटी हाथ में कोल्ड ड्रिंक ले कर आईं और कुरसी खींच कर बैठ गईं. पसीना पोंछते हुए बोलीं, ‘‘इसीलिए तो हम ने अपनाअपना बेड अलग कर लिया है. मैं गेस्टरूम में शिफ्ट कर गई हूं.’’

कर्नल साहब ने कृत्रिम गंभीर मुद्रा बना कर कहा, ‘‘देखा यारों, बुढ़ापे में बीवी भी साथ छोड़ देती है.’’

आंटी हंस कर बोलीं, ‘‘बात यह है कि ये रोज शाम को 9 बजे तक खाना खा कर कुछ देर टेलीविजन देखते हैं फिर 10 बजतेबजते खर्राटा मारने लगते हैं. मेरा काम 10 बजे के बाद शुरू होता है, क्लास की तैयारी, पेपर्स करेक्ट करना, सवाल सेट करना और इन कामों में ही मुझे 12 बज जाते हैं. फिर यह उठते हैं 5 बजे सुबह. जौगिंग के लिए कपड़े बदलते हैं, खटरपटर करते हैं, बाथरूम जाते हैं, मेरी नींद में खलल पड़ता है.’’

कर्नल साहब बोले, ‘‘कितना कहता हूं कि तुम भी जौगिंग पर चलो, नहीं तो कम से कम सुबह की सैर ही किया करो स्लिमट्रिम हो जाओगी. लेकिन यह मानने वाली नहीं हैं. देखते हो, इन का पेट कितना निकल आया है.’’

आंटी उठ कर बोलीं, ‘‘बेटा, 12 बजे रात तक काम करने के बाद सुबह 5 बजे उठ कर सैर पर जाना क्या संभव है. फिर घुटने में दर्द रहता है इसलिए भी ज्यादा चल नहीं सकती.’’

कर्नल साहब ने कहा, ‘‘मेरे साथ गोल्फ खेलो, सब ठीक हो जाएगा.’’

आंटी बोलीं, ‘‘तुम्हारी तरह फुरसत कहां कि बनठन कर, सेंट लगा कर क्लब जाओ, मौज करो.’’

आंटी कर्नल साहब के बालों में उंगलियां फंसा कर उन्हें बिखराते हुए किचेन की ओर चली गईं.

कर्नल साहब ने कहा, ‘‘देखा, मेरे जैसे ब्रिलियंट हार्ड वर्किंग आफिसर को यह कहती हैं मैं कुछ नहीं करता? अब सेंट कहां यारों, नो सेंट, नो फ्लावर.’’

हमें याद आया, ‘‘हां अंकल, ये फूलों का राज क्या है?’’

‘‘ओह,’’ कर्नल साहब मुसकराए और बोले, ‘‘कम आन यंग मैन, बाटम्स. अब याद आने से बहुत तकलीफ होती है. इसीलिए कहता हूं कि…क्या नाम है उस का?’’

‘‘अर्चिता.’’

‘‘हां, अर्चिता को छोड़ना मत. बिलकुल उसी की तरह, फूलों की सुगंध वाली परी. जवानी याद आ जाती है… इसीलिए अब फूल के पौधे नहीं लगाता हूं, न घर में फूलों के गुलदस्ते रखता हूं.’’

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कर्नल साहब कुछ देर अतीत में खोए रहे फिर उन्होंने मुसकरा कर कहा, ‘‘जानते हो, मैं हाकी बहुत अच्छी खेलता था. मैं ने नेशनल टीम रिप्रेजेंट की है. उन दिनों हाकी बहुत लोकप्रिय खेल था और हाकी के खिलाड़ी नेशनल स्टार होते थे, आजकल के क्रिकेटर्स की तरह. लड़कियां फिदा रहती थीं. जहां जाता था लड़कियां, एक से एक खूबसूरत, दौड़ी आती थीं. 3 साल की पीस पोस्टिंग थी. क्या दिन थे. देखो, ये मेरी ट्राफियां हैं और वह मेरी फोटो.’’

उन्होंने मेटल पीस और उस की बगल में शीशे की अलमारी की ओर इशारा किया. उस पर उन की यूनिफार्म में फोटो रखी थी. वाकई कर्नल साहब बहुत ही स्मार्ट और खूबसूरत थे.

‘‘जब भी मेरा मैच होता था, वह जरूर देखने आती थी. वह हसीनों में सब से हसीन थी, बिलकुल किसी परी जैसी चलती थी तो लगता था हवा में तैरती हुई आ रही है. देखती थी तो लगता था बोलने की जरूरत नहीं, आंखें ही सबकुछ कह देंगी. गालिब का वह शेर है न :

‘‘क्या हुस्न का अफसाना महफूज हो लफ्जों में,

आंखें ही कहें उस को, आंखों ने जो देखा है.’’

‘‘उस की पर्सनाल्टी को कोई बयान नहीं कर सकता. देख लिया तो समझो दिमाग पर नकशा बन गया. मरते दम तक याद रहा. वह क्या नाम है, अर्चिता? वह भी कुछ उसी की तरह है. लंबी गरदन के ऊपर चेहरा हमेशा लगता था मानो एक गुलाब है, जो अभीअभी खिला है, ओस की बूंदों के साथ. जब भी उसे देखता था मुझे 2 ही फूल याद आते थे, एक गुलाब और दूसरा सूरजमुखी. हमेशा ताजा गुलाब सा चेहरा और जब किसी की ओर मुड़ कर देखती थी तो लगता था सूरजमुखी का फूल झुक गया है. उसे देखने के बाद दिल में यही खयाल आता था, ‘‘अब तो यह तमन्ना है किसी को भी न देखूं, सूरत जो दिखा दी है तो ले जाओ नजर भी.’’

आंटी हलके से लंगड़ाती हुई आईं और कुरसी खींच कर बैठ गईं.

कर्नल साहब ने कहा, ‘‘मैं इन दोनों को अपनी जवानी के किस्से सुना रहा था, जब मैं हाकी खेलता था.’’

आंटी के चेहरे पर खुशी की आभा फैल गई. वह हंस कर बोलीं, ‘‘जवानी में तो इन्हें हर महीने एक लड़की से इश्क होता था. वह तो मैं ने पकड़ कर इन्हें बांध लिया तब बंद हुआ.’’

तभी किचेन के अंदर से कुकर की सीटी की आवाज आई. आंटी ने कहा, ‘‘खाना लगाती हूं. बस, 15 मिनट.’’

कर्नल साहब ने कहा, ‘‘प्रोफेसर की बेटी थी, पढ़ने में तेज थी. मैं तो हमेशा एवरेज स्टूडेंट रहा. जानते हो, उस की सब से बड़ी खूबी थी कि उस के बदन से हमेशा फूलों की सुगंध आती थी. वह न सेंट लगाती थी न इत्र, हलकी लिपस्टिक के अलावा कोई मेकअप भी नहीं करती थी. पाउडर से उसे नफरत थी, फिर भी हमेशा उस के बदन से सुगंध आती थी.’’

‘‘कैसी सुगंध अंकल?’’

‘‘कौन सा फूल है जो सब से अधिक सुगंध वाला है? हां, याद आया, चंपा.’’

‘‘हांहां, मेरे घर में एक पेड़ है. पूरा कंपाउंड उस के फूलों की सुगंध से भर जाता है, अगलबगल के लोग शाम को आते हैं, उस की महक लेने.’’

‘‘हां, चंपा का फूल पूरी दुनिया में सब से अधिक सुगंध वाला फूल है. उस के बदन से हमेशा चंपा के फूलों की महक आती थी.’’

इतना कह कर कर्नल सिंह खामोश हो गए. हम अपनेअपने खयालों में डूबे रहे. फिर मैं ने पूछा, ‘‘फिर क्या हुआ अंकल?’’

आंटी बगल से प्लेट, ग्लास ले कर गुजरीं. चिकन, प्याज और सब्जी की सुगंध आई. कर्नल साहब बोले, ‘‘बस, खो दिया, पर केयूर, तुम मत खोना. पूरी जिंदगी याद आती रहेगी.’’ वह उठ गए, ‘‘चलो, आंटी की मदद करो, किचेन से खाना ले आओ.’’

खाना खाने के बाद आंटी हम दोनों को अपने बेडरूम में ले गईं. हम लोगों का सामान वहां रखा था. दोनों बेडों पर साफसुथरी चादरें बिछी थीं. हलकी ठंड थी इसलिए खिड़कियां बंद थीं. आंटी ने मुझे बाथरूम दिखाया. सुबह 7 बजे चाय, ओ.के. गुडनाइट.

आंटी चली गईं. हम लोग हाथमुंह धो कर कपड़े बदलने लगे. बगल की मेज पर 1 फोटो रखा था, अति सुंदर तन्वंगी. गौर से देखा, तब पहचाना, वही नाकनक्श और आंखें, आंटी का ही फोटो था, उन की जवानी के दिनों का. हम दोनों ने एकदूसरे को देखा, ‘‘आंटी का फोटो है, विश्वास नहीं होता. इतनी स्मार्ट, खूबसूरत. इनसान उम्र के साथ कितना बदल जाता है?’’

दिन भर के थके हुए हम दोनों अपने बिस्तर में जा कर चादर ओढ़ कर लेटे ही थे कि तकिए पर सिर रखते ही दोनों झटके से उठ कर बैठ गए और आश्चर्य से एकदूसरे की ओर देखने लगे. अरे, यह क्या? अचानक एहसास हुआ कि पूरे कमरे में चंपा के फूलों की सुगंध फैली थी. हम दोनों को ही कर्नल अंकल की चंपा के फूलों की खुशबू वाली लड़की का खयाल आ गया. पर उन्होंने तो अभी कहा था कि बस…खो दिया. नहीं…उन्होंने उसे पा लिया था.

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