‘नूरजहां’,‘कुटुंब’,‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’,‘मेरी आषिकी तुमसे’ और ‘तू आषिकी’ जैसे सीरियलों की चर्चित अदाकारा गौरी प्रधान अपने 25 वर्ष के अभिनय कैरियर के बाद अब पहली बार फिल्म ‘‘ ए विंटर टेल एट शिमला’’ में अभिनय करते हुए नजर आने वाली हैं,जो कि मैच्योर प्रेम कहानी के साथ ही नारी अस्मिता,नारी के सपनों,पति की पितृसत्तात्मक सोच से लेकर नारी उत्थान की बात करती है.
आर्मी बैकग्राउंड में पली बढ़ी और 2000 में सीरियल ‘नूरजहां’ से अभिनय कैरियर की शुरूआत करने वाली गौरी प्रधान की दूसरे सीरियल ‘कुटुंब’ की शूटिंग के दौरान अभिनेता हितेन तेजवानी से मुलाकात हुई. और दोनो ने 2004 में शादी कर ली. यह गौरी प्रधान की पहली शादी थी,जबकि हितेन तेजवानी की यह दूसरी शादी थी. लेकिन गौरी को हितेन की यह बात पसंद आयी थी कि हितेन ने पहली मुलाकात में ही स्पष्ट कर दिया था कि उनका अपनी पत्नी से ग्यारह माह बाद ही तलाक हो गया था.
बहरहाल,गौरी प्रधान व हितेन तेजवानी की शादी के 19 वर्ष हो चुके हैं. दोनों के जुड़वा बच्चे हैं. गौरी व हितेन दोनों के बीच बराबरी का संबंध है. मगर फिल्म ‘ए विंटर टेल एट शिमला’ में पति पत्नी के बीच बहुत अलग रिश्ता है.
प्रस्तुत है गौरी प्रधान से हुई एक्सक्लूसिब बातचीत के अंश.
हर इंसान पर उसकी परवरिश का असर होता है. आपकी परवरिश आर्मी पृष्ठभूमि में हुई. तो फिर कला से नाता कैसे बना? –
मैं बचपन से ही बहुत ही ज्यादा कलात्मक व रचनात्मक रही हॅूं. मेरी रूचि पेंटिंग, ड्ाइंग, स्कैचिंग आदि में रही है. इसके अलावा मेरे माता पिता ने मुझे हमेषा छूट दी. मैने जो करना चाहा,उसमें कभी रोक टोक नहीं की. उनकी एक ही शर्त थी कि मुझे अपनी पढ़ाई पूरी करनी है. इसलिए मैंने पढ़ाई पूरी करने के बाद ‘मिस इंडिया’ मंे हिस्सा लिया. उसके बाद मुंबई आकर में माॅडलिंग कर रही थी. माॅडलिंग से बोर होकर मैं पुनः पुणे वापस जाकर उच्च षिक्षा हासिल करना चाहती थी. उससे दो दिन पहले ही एक पार्टी में किसी ने मुझे देखा और उन्होने मुझसे कहा कि दूरदर्षन के लिए ‘नूरजहां’ नामक सीरियल बन रहा है.
निर्माता अब तक दो सौ लड़कियों का आॅडीशन ले चुके हैं,पर नूरजहां के लिए सही लड़की नही मिली. उस इंसान की सलाह पर मैने आॅडीशन दिया और मेरा चयन हो गया. यह दूरदर्षन और बीबीसी का कोलेब्रेशन था. इसे उर्दू और अंग्रेजी में बनाया गया था. इसके लिए हमें उर्दू भाषा की ट्ेनिंग भी दी गयी. हम हर सीन की षूटिंग पहले उर्दू में और फिर अंग्रेजी में करते थे. इस सीरियल में अभिनय करना बहुत अच्छा अनुभव था. इस तरह मेरे अभिनय कैरियर की षुरूआत हुई.
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आपके कैरियर के टर्निंग प्वाइंट्स क्या रहे?
पहला टर्निंग प्वाइंट तो सीरियल ‘‘नूरजहां’’ ही था,जिससे मेरे अभिनय कैरियर की षुरूआत हुई थी. उसके बाद जब मैने ‘बालाजी’ के लिए सीरियल ‘कुटुंब’ किया,तो यह भी बहुत बड़ा टर्निंग प्वाइंट्स था. इसके बाद टर्निंग प्वाइंट रहा-‘‘क्यांेकि सास भी कभी बहू थी’’,जो कि आठ वर्ष से भी अधिक लंबे समय तक चला था. उसके बाद तो कई सीरियल किए. लेकिन अब मेरे कैरियर में सबसे बड़ा और अहम टर्निंग प्वाइंट फिल्म ‘‘ए विंटर टेल एट षिमला’ है. यह मेरे कैरियर की पहली फिल्म है,जो कि 12 मई को सिनेमाघरों में पहुॅचने वाली है.
आपने 25 वर्ष के अभिनय कैरियर में हमेशा छोटे परदे से जुडी रहीं,तो अब फिल्म ‘ए विंटर टेल एट षिमला’ करने की क्या खास वजह रही?
-सच तो यही है कि मुझे टीवी पर इतना काम मिल रहा था कि मेरे पास कुछ और सोचने का वक्त ही नहंी था. ऐसा नही है कि मुझे फिल्मों के आफर नही मिल रहे थे,मिल रहे थे,पर मेरेे पास वक्त नही था. 11 नवंबर 2009 को जब मै एक बेटे व एक बेटी की जुड़वा मां बनी,तो मैने चार वर्ष का ब्रेक लिया था. क्योंकि मुझे अपने बच्चों पर ध्यान देना था. 2019 तक टीवी में व्यस्त रही. फिर कोविड के कारण सभी को ब्रेक लेना पड़ा. उसी दौरान मेरे पास योगेश वर्मा जी अपनी फिल्म ‘‘ए विंटर टेल एट षिमला’’ का आफर लेकर आ गए. अमूमन हर फिल्म पुरूष प्रधान होती हैं. मगर यह फिल्म नारी प्रधान फिल्म है. पूरी फिल्म के केंद्र में नारी व उसकी सोच है.
जब मैने पटकथा व किरदार सुना,तो मुझे लगा कि यह फिल्म मेरे लिए ही लिखी गयी है. इसलिए मंैने इस फिल्म को करने का फैसला लिया. यह फिल्म वैदेही के बारे में है.
अपने किरदार को लेकर क्या कहना चाहेंगी?
-मैने इसमें वैदेही का किरदार निभाया है,जो कि डीआईजी यानी कि पुलिस अफसर की पत्नी है. उसकी अपनी बेटी है. कभी उसे चिंतन नामक युवक से प्यार हुआ था,पर कुछ कारणों से चिंतन के संग विवाह नहीं हो पाया था. वैदेही अपनी पारिवारिक जिंदगी में मस्त है. लेकिन बीस वर्षों बाद जब फिर से चिंतन की उसकी मुलाकात होती है,तो उसे अहसास होता है कि वास्तव में उसकी जिंदगी क्या बनकर रह गयी है. वह तो अपने पति के लिए महज ‘सेक्स गुलाम’ ही है. तो फिल्म की षुरूआत से अंत तक वैदेही की ही कहानी चलती है.
फिल्म में दो अलग अलग वैदेही हैं. एक युवा वैदेही है,जिसका किरदार एक अन्य लड़की ने निभाया है. यह फुल आफ लाइफ व फन लविंग है. मगर दूसरी वैदेही षादी के बाद की है,जिसे मैंने निभाया है. इस वैदेही को परिस्थितियों ने गढ़ा है. उसकी आदतें बदलती हैं, उसका व्यक्तित्व बदलता है. उसके पति की वजह से उसकी जिंदगी से ‘फन लिविंग’ जा चुका है. अब वह समझौतावादी और त्याग करने वाली नारी बन चुकी है. अब उसके लिए पति की खुशी ही उसकी खुशी बन चुकी है.
युवावस्था में वह बहुत रचनात्मक हुआ करती थी, जो कि अब उसकी जिंदगी से गायब हो चुकी है. अब उसे भी अहसास है कि उसका व्यक्तित्व बहुत बोरिंग हो गया है. पर जब फिर से चिंतन मिलता है,तो वैदेही को अहसास दिलाता है कि उसने क्या खो दिया है. तब वह कैसे अपने आपको पुनः बदलती है और जकड़न से खुद को छुड़ाती है.
हर लड़की शादी के बाद अपने परिवार को संभालने के लिए समझौते करते हुए खुद को बदलती है. ऐसा ही वैदेही के साथ हो रहा था या कोई अन्य वजह रही?
-वैदेही को अपनी बेटी की खतिर समझौते करने पड़ते हैं. उसका पति नामचीन इंसान है. डीआईजी है. लेकिन इंसान के तौर पर वह बेहतर इंसान नही है. वैदेही ने अपनी जिंदगी के जो सपने देखे थे,उससे उसके पति का दूर दूर तक कोई नाता नही है. इसलिए वह अपनी जिंदगी में बहुत मायूस हो गयी है. अब उसकी जिंदगी पति की सुविधाओं का ध्यान रखना,घर को संवारने,पेड़ पौधों की देखभाल करने में ही गुजरने लगी है. इसके अलावा अब उसकी जिंदगी में कुछ बचा नही है. यह सब वह सिर्फ अपनी बेटी के लिए कर रही है. वह चाहती है कि पति की रिप्युटेशन खराब न हो और बेटी को हर सुविधा व अच्छी षिक्षा मिल सके,यही अब उसका मकसद है.लेकिन चिंतन उसे अहसास दिलाता ैहै कि वह अपनी जिंदगी मंे क्या ‘मिस’ कर ही है,तब वह बदलती है.
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फिल्म के ट्रेलर में एक संवाद है जहां वैदेही अपने पति से कहती है कि उसने उसे ‘सेक्स स्लेव’ बना रखा है. यह क्या है?
-इस बारे में सब कुछ बताना उचित नही है,फिल्म देखें तो समझ में आएगा. सेक्स स्लेव वह अपने पति को कहती है. उसके पति के लिए वह रात में महज ‘सेक्स’ के लिए यानी कि ‘भोग्या’ है. कहने का अर्थ यह कि वैदेही का पति उसे ‘सेक्स स्लेव्स’ की ही तरह उपयोग करता है. उसके पति ने उसे एक ‘ट्ाफी वाइफ’ बनाकर रख दिया है. वह डीआईजी है,इसलिए अपने अफसरों के सामने या पार्टीयों में अपनी पत्नी को ट्राफी की तरह लेकर जाए,लोगों को दिखाए. इसके अलावा वैदेही की उसके पति की जिंदगी में कोई महत्व नही है. उसके पति ने उससे महज इसीलिए शादी की है और बेटी पैदा की है. यही उसका काम है.
तो फिल्म ‘‘ए विंटर टेल एट शिमला’’ में पितृसत्तात्मक सोच व नारी स्वतंत्रता की बात की गयी है?
-मेरी समझ से पितृसत्तात्मक सोच बहुत पुराना ख्याल हो गया. अब यह बात सभी की समझ में आ गयी है कि पुरूष जो काम कर सकता है, वह काम नारी नही कर सकती. अब तो औरतें हर क्षेत्र में बढ़चढ़कर हिस्सा ले रही हैं. महिलाएं एथलिट भी हैं,घर की जिम्मेदारी भी संभालती हैं. सेना में भी नौकरी करते हुए दुष्मनों के दांत खट्टे कर रही हैं. क्या आप वायुसेना की जांबाज सिपाही गुंजन सक्सेना की दिलेरी को किसी पुरूष से कम आंक सकते हैं? सिक्किम की पुलिस अफसर इक्षा केरूंग को कौन नही जानता. मेरी कॉम को कम आंक सकते हैं.
अब औरतें उद्योगपति हैं,राजनेता हैं. सब कुछ हैं. कुछ मौकों पर आप शारीरिक ताकत के मामले में भले ही कम आंक सकते हैं,पर इसकी मूल वजह यह है कि औरतें हमेशा भावुक होती हैं. आज की औरतें ज्यादा आत्मनिर्भर हैं. वह जो हासिल करना चाहती हैं,उसे हासिल कर लेती हैं.
हमारी इस फिल्म में मूल मुद्दा यह है कि पति महज अपनी अकड़ व अपने स्वाभिमान के चलते अपनी पत्नी की भावनाओं, उसकी इच्छा,उसके सपनों की कद्र करने की बजाय उन्हे दबाता है. यह सब आज भी हमारे समाज में महज छोटे परिवारों,छोटे शहरों या गांवो की ही नहीं,बल्कि बड़े घरानों व उच्च पदस्थ पुरूषों की वस्तुस्थिति है. अपने साथ ‘शो पीस’ की तरह अपनी पत्नी को पार्टी में ले जाना किसी भी पुरूष की महानता नहीं हो सकती. मैं नारी उत्थान की बात करने की बजाय पुरूष और नारी दोनों को समान रूप से देखने की बात करती हूं.
वुमन इम्पावरमेंट तभी आता है. जिस दिन हर पुरूष, औरत के साथ बराबरी का व्यवहार करने लगेगा, उस दिन वुमन इम्पावरमेंट की जरुरत ही नहीं पड़ेगी. जहा तक हमारी फिल्म ‘‘ए विंटर टेल एट शिमला’’ में ओमन इम्पावरमेंट का मुद्दा बहुत अलग तरीके से उठाया गया है. फिल्म में जब वैदेही को अहसास होता है कि वह अपनी जिंदगी से समझौता क्यों कर रही है? उसे समझौते करने की जरुरत नही है. जब उसे पुनः अहसास होता है कि वह खुद भी रचनात्मक व प्रतिभाशाली नारी है.
वह स्वतंत्र तरीके से जिंदगी जी सकती है. वह महज अपनी बेटी के कारण एक रिश्ते में बंधी हुई है,तो बेटी के सेटल होने के बाद वह अपनी जिंदगी जीने के लिए स्वतंत्र है. यदि कोई औरत स्वतंत्र है,आत्म निर्भर है,तो उसे पुरूष की जरुरत नही होती. वह अपनी जिंदगी अपने तरीके से जीते हुए खुश रह सकती है. फिल्म में जब वैदेही की बेटी खुद अपनी मां के लिए खड़ी होती है,तो वहां भी वुमन इम्पावरमेंट’ की बात सशक्त तरीके से कही गयी है. इस पूरे वाकिए को फिल्म में देखेंगें, तो ही बेहतर होगा.
हाल ही में मैने एक दिग्गज अभिनेत्री से बात की थी,उनका मानना है कि हर नारी को जिंदगी में किसी न किसी मोड़ पर पुरूष की जरुरत पड़ती ही है?
-सभी का अपना नजरिया होता है. मैं ऐसा नही मानती. मैने पहले ही कहा कि आज की तारीख में जो काम पुरूष कर सकता है,वह सारे काम औरत भी कर रही है. ऐसे में किसी औरत को पुरूष की कहीं जरुरत नजर नहीं आती. इमोशनल सपोर्ट के लिए भले ही पुरूष की जरुरत हो सकती है,पर वह पर्सन टू पर्सन निर्भर करता है. लेकिन अन्य किसी भी बात के लिए नारी को पुरूष की जरुरत नही होना चाहिए.
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निजी जिंदगी में क्या आपके पति और आपके बीच बराबरी का मसला है?
–जी हां!देखिए,मैने पहले ही बताया कि मुझे टीवी इंडस्ट्री से ही मेरा पति मिला. मेरे पति हितेन तेजवानी अभिनेता है. हम देानों ने एक साथ टीवी सीरियल ‘कुटुंब’ में अभिनय किया था और एक दूसरे के करीब आए थे. 2004 में हमने विवाह किया. पर मैने अभिनय करना जारी रखा. 2009 में मैं एक बेटे व एक बेटी यानी कि जुड़वा बच्चों की मां बनी. तब मैने स्वयं चार वर्ष केवल अपने बच्चों को देने का निर्णय लिया था. अन्यथा लगातार अभिनय कर रही हॅूं. मैं अपने शौक को पूरा करते हुए ‘पोर्सलीन पेंटिंग’ भी करती हॅूं. मेरे पति मुझे अपनी जिंदगी अपने तरीके से जीने के लिए पूरी छूट देते हैं. हम दोनों मिलकर एक दूसरे की जिंदगी आदि को लेकर निर्णय लेते हैं. हर निर्णय हम दोनों मिलकर ही लेते हैं.
निजी जिंदगी में आप एक बेटे व एक बेटी की मां है. फिल्म में भी आप एक बेटी की मंा वैदेही के किरदार में हैं. किसी दृष्य के फिल्मांकन के दौरान आपको अपनी निजी जिंदगी की कोई घटना याद आयी थी?
-ऐसा नही हुआ. इसकी वजह यह है कि निजी जिंदगी में मेरी बेटी बहुत छोटी है. जबकि फिल्म में बेटी किषोरावस्था में पहुच चुकी है. उसका अपना प्रेमी है. मतलब वह ज्यादा उम्र की है. तो फिल्म के अंदर मां बेटी के बीच जिस तरह की बातें होती हैं,वैसी बाते अभी तक निजी जिंदगी में मेरी बेटी के साथ मेरी नही हुई हैं. लेकिन जब मेरी बेटी उस उम्र की हो जाएगी,तो मैं उसके साथ उस तरह की बाते जरुर करना चाहूंगी. हमारी इस फिल्म में वैदेही और उाकी बेटी के बीच जिस तरह के रिष्ते का चित्रण है,वैसा रिष्ता अभी तक किसी भी फिल्म में मां बेटी के बीच नहीं दिखाया गया है. बहुत ही मीठा रिष्ता है. दोनों एक दूसरे को समझते हैं. फिल्म में बेटी को जब अपनी मां की जिंदगी में कुछ गलत लगता है,तो वह अपनी मां से कहती है. उसी तरह मां भी अपन बेटी से हर बात कहती है. मैं खुद निजी जीवन में अपनी बेटी के साथ उसी तरह का रिष्ता रखना चाहूंगी.
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आप लोग दावा कर रहे हैं कि इस फिल्म में क्लासिक प्यार की बात की गयी है. पर जिस तरह से समाज बदला है, उसमें तो अब प्यार काफी डे से षुरू होता है और काफी डे पर ही जाकर खत्म हो जाता है?
-जी हां! समाज में ऐसा ही हो रहा है. पर हम लोगों को बताना चाहते है कि ‘काफी डे से शुरू और काफी डे पर खत्म होने वाला प्यार’ हकीकत मे प्यार नही है. वह तो महज एक आकर्षण का नतीजा है. यह आकर्षण अलग अलग लड़की व लड़के के बीच उनकी अपनी सोच के चलते अलग अलग हो सकता है. वर्तमान में जो कुछ हो रहा है, उसकी एक वजह यह भी है कि आज औरतें आत्मनिर्भर हो गयी हैं, उन्हें पुरूषों की जरुरत नही है. आज हर लड़की व औरत को उनके हिसाब से, उनकी शर्तों पर प्यार मिलता है, तो उन्हे चाहिए, अन्यथा नही चाहिए.
सोशल मीडिया पर आप कितना सक्रिय हैं?
–पहले मुझे सोशल मीडिया पसंद नहीं था,पर अब थोड़ा बहुत सक्रिय हो गयी हूं. आज की तारीख में कलाकार के लिए सोशल मीडिया पर रहना अनिवार्य सा हो गया है.