इस असंतुलन का जिम्मेदार कौन

जब भी ‘हम दो हमारे दो’ या ‘हम दो हमारा एक’ का नारा लगता है और लोग इस सिद्धांत को अपनाने लगते हैं, लड़कियों की कमी होने लगती है. दुनिया के कई देशों में ऐसा हुआ है और भारत में तो यह समस्या गंभीर होने लगी है. गुजरात के पाटीदार समुदाय में 1000 लड़कों की तुलना में 700 लड़कियां हैं और अब जवान लड़कों को लड़कियां नहीं मिल रही हैं. जैसे चीनी लड़के लड़कियों की खोज में वर्मा, थाईलैंड, कंबोडिया, वियतनाम जा रहे हैं वैसे ही पाटीदार मध्य प्रदेश, उड़ीसा और छत्तीसगढ़ की कुर्मियों की बिरादरियों में लड़कियां ढूंढ़ने लगे हैं.

इस तरह की मांग पर निश्चित है बिचौलियों की बन आएगी. दूसरी भाषा, दूसरा राज्य, दूसरे तरह का रंगरूप होने की वजह से लड़के खुद तो लड़कियां ढूंढ़ नहीं सकेंगे और उन्हें लड़कियों के व्यापार जिस में तस्करी, अपहरण तक शामिल होगा में फंसना पड़ेगा. पत्नी से सुरक्षित माहौल की अपेक्षा की जाती है पर इस तरह दूसरे राज्यों से आने वाली लड़कियां आफत होती हैं यह हरियाणा में दिख चुका है, जहां मणिपुर और मिजोरम तक की लड़कियों को अपनाया गया है.

इस तरह लाई गई लड़कियां आमतौर पर अपनेआप को गुलाम से ज्यादा नहीं मानतीं. घर में थीं तो भूख से भी मरती थीं और बलात्कारों से भी. वहां भी इन की कदर नहीं होती थीं. मांबाप के लिए बोझ ही होती थी. वे लाचारी में आती हैं. कुछ पति के साथ बंध जाती हैं और कुछ जगहजगह मुंह मारने लगती हैं और बेचारा पति कुछ नहीं कर पाता. हां, अगर बच्चे हो जाते हैं तो मां का दिल पसीज जाता है और वह नए माहौल में रचबस जाती है.

एक तरह से यह बुरा भी नहीं है क्योंकि उस देश में जाति, धर्म, भाषा, प्रदेश की दीवारें तोड़ना बहुत जरूरी है. औरतों को आजादी तब मिलेगी जब उन्हें अपने पैदा हुए माहौल से निकलने की छूट मिलेगी. वेश्यालयों में काम करने वाली औरतें अकसर सुखी रहती हैं क्योंकि उन्हें रीतिरिवाजों से तो छुटकारा मिलता है और अपने से लोगों के बीच रहने का मौका मिलता है. हजारों औरतें खुदबखुद वेश्याएं बनती हैं क्योंकि यह प्रोफैशन दूसरे प्रोफैशनों से बेहतर है.

यही हाल खरीदी हुई हमजोलियों के साथ होगा. कुंआरे रह रहे अकेलों को कैसी भी लड़की नियामत लगेगी. वह उस का भरपूर ध्यान रखेगा. पैसे दे कर लाई गई पत्नी उस पत्नी से ज्यादा कीमती होगी जो दहेज के साथ थोपी गई हो और जिस के मातापिता हर समय चौकीदार की तरह सामने खड़े हों.

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