आज के वैज्ञानिक युग में जहां साधन बढ़े हैं, जिंदगी सुखसुविधाओं से लैस हो गई है, वहीं कुछ लाइफस्टाइल सिंड्रोम भी जन्मे हैं. किसी को कामकाज की व्यस्तता के कारण स्लीप सिंड्रोम यानी नींद न आने की समस्या है, तो किसी को खानपान की वजह से बावैल सिंड्रोम यानी कब्ज की.
एक दिन मैं ने देखा कि मेरे साथ रोज सुबह सैर करने वाली मिसेज वडैच ने सैर के बाद घर लौटते ही 3-4 गिलास कुनकुना पानी पिया और 1 गिलास मुझे भी दिया. फिर मेरे साथ बिना दूध की ग्रीन पत्ती वाली चाय ली. मैं उठने लगी तो वे बोलीं कि नहींनहीं नाश्ता कर के जाना. मैं ने मना किया लेकिन उन के साथ बैठ गई. उन्होंने रात की चोकर वाली बासी रोटी मंगवाई, उस पर घर का बना सफेद मक्खन लगाया, कालीमिर्च, कालानमक और भुना हुआ जीरा डाला और चबाचबा कर खाने लगीं.
मेरे मन में सवाल उठा कि ये इतनी अमीर औरत, बहुत बड़ी जमीन की मालकिन, गेहूं के खेत हैं इन के और नाश्ते में रात की बासी रोटी खा रही हैं? चेहरा दमक रहा है, शरीर गठा हुआ है. 60 से ऊपर हैं पर उम्र का असर कहीं दिखता ही नहीं.
वे मेरी ओर देखते हुए कहने लगीं कि खाओ न. देखो, पानी जीरो कैलोरी ड्रिंक है, इसलिए मेरा शरीर कहीं से फूला नहीं है. हमारे गुरदे पानी को फ्लश इन/फ्लश आउट का काम नियमित रूप से करते रहते हैं. इस से टौक्सिंस निकल जाते हैं, जिस से कब्ज नहीं रहता. पेट साफ हो जाता है. यह व्हीट ब्रान की बासी रोटी जिसे तुम घूर रही थीं, इसे न्यूट्रिशनल पावर हाउस यानी पौष्टिकता का पावर हाउस कहते हैं. आजकल जहां देखो व्हीट ब्रान का चलन है. ऐसा इस में होने वाले स्टार्च, प्रोटीन, विटामिन, खनिज, फौलिक ऐसिड और फाइबर की गुणवत्ता के कारण हुआ है. चोकर की ब्रैड, चोकर के बिस्कुट और न जाने क्याक्या बाजार में पेट साफ रखने के लिए मिलते हैं.
वडैच कहने लगीं कि जानती हो, ये जो आजकल लाइफस्टाइल डिजीज, बावैल सिंड्रोम पैदा हो गई है, उस का निदान इस व्हीट ब्रान की रोटी यानी चोकर वाली रोटी के पास है. दरअसल, यह ब्रान/चोकर की रोटी पेट की अंतडि़यों में ल्यूब्रीकैंट का कार्य करते हुए कब्ज को दूर करती है. यह फाइबरयुक्त है इसलिए पेट साफ रहता है.
आज के दौर में व्हीट ब्रान का प्रयोग बहुत जरूरी है, क्योंकि दादीनानी के नुसखे तो यह कहते ही हैं. आज की आधुनिक चिकित्सा पद्धति के डाक्टरों का भी यही मानना है कि कब्ज आधी बीमारियों की जनक है. इस में मौजूद ग्लूटेन पेट में अफारा, गैस व अपच जैसे रोगों को भी बायबाय कहता है.
चोकरयुक्त आटे के फायदे
चंडीगढ़ की डायबिटिक डाइटीशियन ऐंड न्यूट्रिशियनिस्ट डा. हरलीन बख्शी कहती हैं कि यदि 3 मुट्ठी आटे में एक मुट्ठी चोकर डाल कर गूंधा जाए तो इस आटे से बनी चपाती अधिक संतुष्टि देती है. चोकरयुक्त आटे का इस्तेमाल किया जाए, तो यकीनन रोटियां पौष्टिकता देने के साथसाथ वजन भी कम करेंगी और पेट भी साफ रहेगा.
डा. बख्शी आगे कहती हैं कि आजकल बाजार में विज्ञापनों ने भ्रांतियां फैला रखी हैं. यह कोलैस्ट्रौलफ्री फूड है, यह शुगरफ्री चावल है, जैसी बातों से प्रभावित हो कर हम ऐसे फूड को कोलैस्ट्रौलफ्री फूड समझ कर शान से खाते और खिलाते हैं. पर क्या आप ने कभी सोचा है कि हो सकता है कि अमुक फूड कोलैस्ट्रौलफ्री फूड हो, परंतु उस में अन्य सैचुरेटेड फैट हों, जो ब्लड कोलैस्ट्रौल को बढ़ाते हैं. कई बार सैचुरेटेड फैट नहीं होता, परंतु उस में अनसैचुरेटेड औयल्स, फैट्स और शुगर होने के कारण वजन भी बढ़ने लगता है, साथ ही पेट साफ न रहने के लक्षण भी?
जरूरत है तो यह जानने कि कब खाएं, कितना खाएं? यदि डाइबिटिक पेशैंट हैं तो थोड़ेथोड़े अंतराल पर जरूर कुछ खाएं. ऐसा कर के बिना किसी डाइटीशियन की सलाह के भी खुद को फिट रखा जा सकता है. किसी भी चीज की अति हो जाने पर शरीर को नुकसान पहुंचता है. शुरुआत पेट से होती है.
ओट्स से लाभ
डाइटीशियन डा. नीती मुंजाल कहती हैं कि केवल डाइटीशियन ही खानपान की आदतों में सुधार व नियंत्रित जीवनशैली के लिए सलाह नहीं देते आए हैं, कई फूड कंपनियां भी इसी बात को अपने तरीके से कहती आ रही हैं. नतीजा, कई बार तो ग्राहकों के मन में खाद्यपदार्थों के बारे में मिथक पैदा हो जाते हैं. ऐसा ही कुछ ओट्स के बारे में है.
ओट्स गेहूं की ही एक किस्म है, वैज्ञानिक तथ्य इस बात की पुष्टि करते हैं. ओट्स के सेवन से एलडीएल (खराब) कोलैस्ट्रौल को कम करने में मदद मिलती है, जिस से हृदयरोग की आशंका कम हो जाती है परंतु यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम ओट्स किस रूप में खाते हैं. ओट्स में मौजूद घुलनशील डाइटरी फाइबर पाचनक्रिया को सुचारु रखता है, जिस से भोजन आसानी से पच जाता है. इस से कब्ज की शिकायत नहीं रहती. लेकिन कई लोग केवल यह सोच कर ही ओट्स खाते हैं कि यह संपूर्ण आहार है, जबकि ऐसा नहीं है.
ओट्स में अन्य कोई भी पौष्टिक तत्त्व और खनिजलवण नहीं होता, जो इसे संपूर्ण आहार बना सके. इसलिए यदि नाश्ते में सुबह केवल ओट्स लेती हैं, तो साथ में सूखे फल और ताजा मौसमी फल जैसे, सेब, नाशपाती, आम, स्ट्राबैरी, केला, ब्ल्यूबैरी
इत्यादि अवश्य लें. ऐसा करना पौष्टिकता देने के साथ पेट भी साफ रखेगा.
बावैल मूवमैंट हर व्यक्ति में अलग रहता है. किसी के दिन में 1 बार तो किसी के 2 बार टौयलेट जाने से पेट साफ रहता है. कई बार अधिक तनाव, अनिद्रा, कसरत न करने, दवाओं के सेवन, आर्टिफिशल स्वीटनर के सेवन और फाइबरयुक्त भोजन न खाने से मधुमेह या फिर बढ़ती उम्र के कारण बावैल सिंड्रोम हो सकता है.
अन्य उपाय
किसी भी दवा का सेवन शुरू करने से पहले यदि आप चाहें तो प्रतिदिन सुबह 1 गिलास गरम पानी सेंधा नमक या साधारण नमक डाल कर पिएं. पेट साफ होगा. ऐसा करने से हो सकता है कि कब्ज तो दूर होगी ही, कुछ हैल्पफुल बैक्टीरिया भी बाहर निकल जाएं. इस की पूर्ति के लिए थोड़ी देर बाद 1 कटोरी सादा दही का सेवन अवश्य कर लें.
पानी की कमी के कारण भी कई बार ऐसा होता है. इसलिए यदि अच्छा गरम वैज सूप पिया जाए तो बावैल सिंड्रोम में काफी राहत मिलती है. किसी ऐक्युपै्रशर स्पैशलिस्ट से भी संपर्क किया जा सकता है, जो सही प्रैशर पौइंट्स पर आप को प्रैशर डालने की तकनीक सिखा सकता है.
‘‘यदि आप के पास समय हो तो सुबह उठते ही सीधी लेट जाएं. फिर एक तौलिया ठंडे पानी में भिगो कर पेट पर रखें. उस के ऊपर गरम शौल लपेट लें. 10 मिनट के बाद ठंडा तौलिया हटा कर उस के स्थान पर गरम पानी में भीगा निचोड़ा तौलिया पेट पर रख कर उस के ऊपर शौल लपेट कर 10-15 मिनट लेटें. यह प्रक्रिया हो सके तो 2-3 बार शुरूशुरू में करें. आप देखेंगे बहुत जल्द ही आप के बावैल सिंड्रोम व बावैल मूवमैंट में फर्क पड़ेगा,’’ कहती हैं डा. आशा महेश्वरी. उन के अनुसार सर्दगरम पेट की पट्टी, हलकीफुलकी कसरत और धनियापुदीना चटनी के सेवन से भी इस समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है.
डा. आशा महेश्वरी कहती हैं कि सुनीसुनाई बातों पर न जा कर तथ्यों को जानें. सब से अहम बात है अपनेआप को, अपनी शारीरिक जरूरतों को पहचानें. आप को इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि जिस प्राकृतिक रूप से तैयार अनाज व सब्जी को आप अपने भोजन में शामिल करने वाली हैं क्या उस में जिंक, आयरन, मैग्नीशियम, थियामाइन, राइबोफ्लेविन फोलेट, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और फाइबर मौजूद है? आप स्वस्थ व प्रसन्न रह सकें, इस के लिए यह जानना बेहद जरूरी है.