बिना व्हील चेयर के मैं कुछ भी नहीं कर सकता – आसिफ आलम

आसिफ आलम (हैंडीकैप्ड पर्सन) 

जिंदगी में कुछ कर गुजरने की इच्छा ही आपको मंजिल तक पहुंचाती है और ऐसा ही कुछ कर दिखाया है, बिहार के सुजालपुर गांव में रहने वाला 29 वर्षीय आसिफ आलम, जो दोनों पाँव से विकलांग है. उसने मेहनत और लगन से अब एक मल्टीनेशनल कंपनी में गूगल के लिए काम करते है. यहाँ तक पहुँचने में उन्हें बहुत संघर्ष करना पड़ा, लेकिन आज वे इस बात से खुश है कि उन्हें अपना मनपसंद काम कम्प्यूटर साइंस में मिला है. उनकी इस कामयाबी में सार्थक एजुकेशन ट्रस्ट का काफी हाथ रहा, क्योंकि जब जॉब न मिलने की वजह से उसका मनोबल टूट रहा था, तब सार्थक एजुकेशन ट्रस्ट ने उसे सहारा दिया और आगे बढ़ने के लिए प्रेरणा दी. 

आसिफ अपने बारें में बताते है कि मैं बिहार के जमालपुर के सुजालपुर गांव का रहने वाला हूँ, लेकिन अभी मैं दिल्ली में माता-पिता और भाई बहन के साथ सेटल्ड हूँ. परिवार में 6 सदस्य है. मेरे पिता मोहम्मद फ़तेह आलम एक दर्जी और माँ शकीला बानो गृहणी है. मेरे दो भाई पढाई कर रहे है. सबसे बड़ा बेटा होने की वजह से पिता चाहते थे कि मैं अच्छी पढाई करूँ, लेकिन एक साल की उम्र में मेरे दोनों पैरों में पोलियो हो गया था, जिससे मैं दोनों पैरो से हैंडीकैप्ड हो गया था. उस दौरान सभी रिश्तेदारों ने मुझे अधिक पढ़ाने से मना किया, क्योंकि मैं दिव्यांग हूँ और कभी भी कामयाब नहीं हो सकता, लेकिन मेरे पिता ने हार नहीं मानी और मुझे पढाया. इसके लिए आर्थिक समस्या भी आई, पर उन्होंने किसी प्रकार की कमी मेरे इलाज और पढाई में नहीं रखी. मेरी इलाज के लिए कभी चेन्नई तो कभी दिल्ली जाना पड़ता था. 15 से 16 बार मेरे पैरों का ऑपरेशन हो चुका है. मेरे माता-पिता ने हमेशा बहुत सहयोग दिया है.  

असल में जब आसिफ को पोलियों हुआ तो उसके पिता उसे दिल्ली और चेन्नई  इलाज के लिए ले गए, ऐसे में टेलरिंग के पैसे से घर चलाना और बेटे की इलाज करवाना काफी मुश्किल था. इसके लिए आसिफ के पिता डबल शिफ्ट में काम करते थे और कुछ दिनों बाद उसकी इलाज और पढाई के लिए दिल्ली शिफ्ट हुए. यहाँ आसिफ ने बी टेक कम्प्यूटर साइंस से की और जॉब की कोशिश करने लगे. आसिफ आगे कहता है कि मैं एक दिन हैंडीकैप्ड अस्पताल गया था, वहां डॉक्टर ने मेरी रूचि के बारें में बात की और मुझे सार्थक एजुकेशन ट्रस्ट जाने की सलाह दी, जहाँ सबकुछ फ्री में होता है. वहां जाने पर मुझे पूरी जानकारी स्किल्स के बारें में मिला. बेसिक स्किल्स, जिसमें किसी कंपनी में इंटरव्यू देने का तरीका और मोटिवेशन को बढ़ावा उन लोगों ने दिया. मुझे सबसे अधिक मोटिवेशन की ही जरुरत थी, ताकि मैं बिना घबराए इंटरव्यू दे सकूँ. इसके अलावा मैंने वहां पर इंग्लिश स्पीकिंग क्लास, कम्प्यूटर क्लासेज भी ज्वाइन किया. इससे मुझे काम मिलना आसान हो गया. अभी मैं एक मल्टनेशनल कंपनी में सीनियर डाटा एनालिस्ट की पोस्ट पर काम कर रहा हूँ. मैं व्हील चेयर के सहारे मूव करता हूँ, बिना व्हील चेयर के मैं कुछ भी नहीं कर सकता. 

हैंडीकैप्ड होना अपने आप में ही बहुत बड़ी कमजोरी होती है, साथ ही परिवार, रिश्तेदार और आसपास के सभी लोग उसे अयोग्य समझते है और मजाक उड़ाते है, ऐसे में मानसिक तनाव होना स्वाभाविक है, लेकिन आसिफ जैसा व्यक्ति सभी के लिए उदहारण है. आसिफ कहते है कि मेरे दोस्त सभी अच्छे है, लेकिन बहुत से छात्र स्कूल, कॉलेज में ऐसे भी थे, जो मेरा मजाक उड़ाया करते थे. मैंने उन्हें अधिक महत्व कभी नहीं दिया, बल्कि खुद अच्छा करने की कोशिश की, ताकि उन्हें अपने आप पर शर्मिंदगी महसूस हो और वे खुद आकर मुझसे मिले. मैं हमेशा एक खुशमिजाज स्वभाव का लड़का हूँ. जब मुझे बी टेक के बाद जॉब नहीं मिली, तब मुझे डिप्रेशन होने लगा, क्योंकि मैं हर जगह इंटरव्यू के लिए नहीं जा सकता था और जहाँ जाता भी था, तो इंटरव्यू अच्छा देने के बाद भी वे मुझे न चुनकर एक अच्छी कदकाठी वाले को चुनते थे, क्योंकि वे फ्लेक्सिबल है. फिर मैंने सार्थक एजुकेशन ट्रस्ट ज्वाइन किया और उनके सही गाइडलाइन्स से मुझे जॉब मिल गया. आगे मैं और मेहनत कर गूगल में कर्मचारी के रूप में ज्वाइन करने की इच्छा रखता हूँ. 

आसिफ शुरू से ही अपने माता-पिता के करीब रहा है. कोई तनाव होने पर वे अपने पेरेंट्स के साथ शेयर करते है. उसे घूमना पसंद है, जहाँ वे अपने दोस्तों के साथ जाते है. आसिफ को शांत जगह अधिक पसंद है. वह कहता है कि परिवार ने हमेशा मुझे इतना प्यार दिया है कि कभी नहीं लगा कि मैं विकलांग हूँ. इन दिनों मैं घर से काम करता हूँ और अपने परिवार के साथ रहता हूँ. उसे तीखा खाना बहुत पसंद है. 

आसिफ सभी हैंडीकैप्ड को मेसेज देना चाहता है कि जब तक आप खुद को नहीं पहचानोगे, दुनिया आपको कभी भी नहीं पहचानेगी. जो आप है उसे स्वीकार करें, तभी आप आगे बढ़ सकते है. 

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