REVIEW: जानें कैसी है तापसी पन्नू की फिल्म ‘हसीन दिलरूबा’

रेटिंगः डेढ़ स्टार

निर्माताः भूषण कुमार,किशन कुमार, आनंद एल राय और हिमांशु शर्मा

निर्देशकः विनील मैथ्यू

लेखकः कनिका ढिल्लों

कलाकारः तापसी पन्नू, विक्रात मैसे, हर्षवर्धन राणे, आदित्य श्रीवास्तव, दया शंकर पांडे, अलका कौशल, अमित ठाकुर, पूजा सरुप, अशीष वर्मा व अन्य.

अवधिः दो घंटे 12 मिनट

ओटीटी प्लेटफार्मः नेटफ्लिक्स

‘‘पति,पत्नी और वह’’के इर्द गिर्द घूमने वाली कहानियों पर सैकड़ों फिल्में बन चुकी हैं. अब इसी तरह की एक प्रेम त्रिकोण के साथ प्रेम, वासना,विश्वासघात की रोमांचक मर्डर मिस्ट्री युक्त फिल्म ‘‘हसीन दिलरूबा’’ लेकर आए हैं निर्देशक विनील मैथ्यू,जो कि इससे पहले तमाम विज्ञापन फिल्मों के अतिरिक्त फिल्म ‘‘हंसी तो फंंसी’’ का निर्देशन कर चुके हैं.

कहानीः

यह कहानी दक्षिण दिल्ली में पली बढ़ी रानी (तापसी पन्नू )से शुरू होती है. रानी एक ब्यूटीशियन है. वह बिंदास व कामेच्छुक लड़की है. जिसे उच्श्रृंखल पति की चाहती है. उसके अपने सपने हैं कि घर से दस कदम की दूरी पर राफ्टिंग हो,बालकनी से पहाड़ दिखे.

रानी की पसंद के अनुरूप उत्तराखंड में गंगा नदी के तट पर बसे ज्वालापुर में रहने वाले सीधे,शिष्ट व सुशील तथा पेशे से इंजीनियर रिषभ कश्यप उर्फ रिशु (विक्रात मैसे) के साथ शादी हो जाती है. उनके मकान से नदी व पहाड़ सब कुछ नजर आता है. रानी हमेशा दिनेश पंडित लिखित अपराधिक उपन्यासों की दुनिया में रहती है और अक्सर दिनेश पंडित के उपन्यासों के संवादों को गुनगुनाती रहती हैं.

ज्वालापुर पहुंचने के बाद रानी के सास (अलका कौशल) व ससुर (अमित ठाकुर) को पता चलता है कि रानी को खाना बनाना तो दूर चाय बनानी भी नहीं आती. पर रानी अपने ससुर के बाल काले कर,उनके चेहरे पर फेशवाश वगैरह लगाकर खुश कर देती है.

उधर रानी को दिल से प्यार करने वाले मगर होम्योपैथिक दवाओ में अपनी मर्दांनगी को तलाशते रिषभ कश्यप,रानी के साथ पति पत्नी के रिश्ते नही बना पाते,पर वह हमेशा रानी का दिल जीतने के प्रयास में लगे रहते हैं.

मगर शादी के बाद पत्नी को जिस सुख की चाहत है,उसे वह नही दे पा रहे हैं. इस बात की शिकायत रानी अपनी मॉं लता (यामिनी दास) व बीना मौसी (पूजा सरुप) से करती है, जो कि रिषभ को बुरा लगता है. रिषभ सारी बात अपने दोस्त अफजर ( ) को बताता रहता है.

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इसी बीच रिषभ का मौसेरा भाई नील त्रिपाठी (हर्षवर्धन राणे) उनके यहां एक माह के लिए सैलानियों को नाव में बैठाकर नदी की सैर कराने का काम करता है. नील को अहसास हो जाता है कि उसकी भाभी रानी को किस सुख की तलाश है. दोनों के बीच शारीरिक संबंध बनते हैं. और अब रानी चाय से लेकर मटन वगैरह सब कुछ बनाना सीखकर नील सहित पूरे परिवार को बनाकर खिलाती है.

इधर रानी व रिषभ के बीच दूरियां बढ़ती जाती हैं. एक दिन नील से रानी कहती है कि वह रिषभ को सच बताकर नील के साथ दिल्ली जाएगी. लेकिन एक दिन नील बिना किसी को बताए वहां से चला जाता है. उसके बाद रिषभ,रानी से कहता है कि जो अब तक हुआ उसे भूल कर नई शुरूआत करते हैं.

तब रानी, रिषभ को सच बता देती है कि वह तो अब नील से प्यार करती है और नील से उसने शारीरिक संबंध भी बनाए हैं. इस पर नील दिल्ली जाकर रिषभ को मारने का प्रयास करता है,पर खुद मारकर वापस आ जाता है. इससे रानी को अपनी गलती का अहसास होता है और वह रिषभ से माफी मांग कर नई शुरूआत करने की बात कहती है.

रिषभ उसे माफ करने को तैयार नही. लेकिन हालात ऐसे बनते हैं कि रानी व रिषभ के बीच प्यार परवान चढ़ता है. दोनो के बीच पति पत्नी जैसे शारीरिक संबंध भी बनते हैं. मगर एक दिन पता चलता है कि घर में आग लगी और एक कटा हुआ हाथ मिला,जिस पर रानी लिखा हुआ है. इससे पुलिस इंस्पेक्टर किशोर रावत (आदित्य श्रीवास्तव) को अहसास होता है कि रिषभ की हत्या हुई है. वह जांच शुरू करते हैं. शक की सुई रानी पर है.

लेखन व निर्देशनः

पिछले कुछ दिनों से मीडिया में इस बात को प्रचारित किया जाता रहा है कि पहली बार किसी लेखक को सम्मान मिला है. क्योंकि फिल्म ‘हसीन दिलरूबा’के ट्रेलर व पोस्टर में लेखक कनिका ढिल्लों का नाम दिया गया. जबकि अब तक ऐसा नही होता था. यदि यह बदलाव फिल्म इंडस्ट्री में आता है,तो वह स्वागत योग्य है. हम चाहेंगे कि इसी तरह हर फिल्म में लेखक का नाम प्राथमिकता के साथ दिया जाए.

मगर हमें इस बात को नजरंदाज नही करना चाहिए कि फिल्म ‘हसीन दिलरूबा’ के निर्माताओं में से एक हिमांशु शर्मा,लेखक कनिका ढिल्लों के निजी जीवन के पति हैं.

फिल्म ‘‘हसीन दिलरुबा’’ की सबसे बड़ी कमजोर कड़ी इस फिल्म की कहानी,पटकथा व संवाद लेखक कनिका ढिल्लों ही हैं. इस फिल्म को देखते हुए कनिका ढिल्लों की कुछ वर्ष पहले की ‘पति पत्नी और वह’ के इर्द गिर्द घूमने वाली फिल्म ‘‘मनमर्जियां’’ की याद आ जाती है, जिसमें तापसी पन्नू के साथ अभिषेक बच्चन और विक्की कौशल थे.

फर्क सिर्फ इतना है कि ‘हसीन दिलरूबा’में मर्डर मिस्ट्री व रहस्य का तत्व जोड़ दिया गया है. अन्यथा फिल्म ‘मनमर्जिया’ में पति,पत्नी व प्रेमी का चरित्र जिस तरह का था, ठीक उसी तरह से ‘हसीन दिलरूबा’ में भी है. ‘मनमर्जियां’की ही तरह ‘हसीन दिलरुबा’ में पत्नी अपने पति से स्वीकार करती है कि प्रेमी संग उसके शारीरिक संबंध रहे हैं. ‘मनमर्जियां’की ही तरह ‘हसीन दिलरूबा’में टूट कर प्यार करने वाला पति,कामेच्छुक पत्नी व उच्श्रृंखल व हमबिस्तर होने को आमादा प्रेमी है. लेकिन ‘हसीन दिलरूबा’ में कसावट नही है.

फिल्म में रोमांच है,मगर बीच में फिल्म बोझिल हो जाती है. यह लेखक व निर्देशक दोनो की मात है. कई घटनाक्रम विश्वसनीयता व तार्किकता से कई गुना परे हैं. क्लायमेक्स भी गड़बड़ है. बतौर निर्देशक विनील मैथ्यू बुरी तरह से मात खा गए.

फिल्म के कुछ संवाद ठीक ठाक हैं. मसलन-‘अमर प्रेम वही है जिस पर खून के हल्के हल्के-से छींटे हों, ताकि उसे बुरी नजर न लगे. ’ अथवा ‘होश में तो रिश्ते निभाए जाते हैं. ’

कैमरामैन का काम भी औसत दर्जे का है.

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अभिनयः

तापसी पन्नू के अंदर अभिनय क्षमता की कमी नही है. आत्मग्लानि से भर कर अपराध को स्वीकार करने वाली गृहिणी के रूप में तापसी जरुर प्रभावित करती हैं. मगर कई दृश्यों में वह वह खुद को दोहराते हुए ही नजर आती हैं. इससे बचने के लिए तापसी को मुंबइया फिल्म मेंकिंग से दूरी बनाने की जरुरत है.

विक्रांत मैसे 2008 से टीवी व फिल्मों में अभिनय करते आ रहे हैं,पर पता नहीं क्यों वह बार बार किरदार व फिल्मों का चयन गलत करते जा रहे हैं.

इस फिल्म में नील के छोटे किरदार में भी हर्षवर्धन राणे अपने अभिनय का जलवा दिखाकर दर्शकों पर अपनी अमिट छाप छोड़ जाते हैं. आदित्य श्रीवास्तव,दयाशंकर पांडे आदि कलाकार ठीक ठाक हैं.

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