ब्लडग्रुप के अनुसार ले डाइट और वजन घटने से रोकें

वजन आज हर उम्र की एक बड़ी समस्या बन गया है. इसी का फायदा उठा कर वजन घटाने का दावा करने वाली हर तरह की आयुर्वेदिक और ऐलोपैथिक दवाओं का बाजार गरम हो गया है. लेकिन क्या आप ने कभी सोचा है कि ब्लड ग्रुप आधारित डाइट भी आप का वजन घटाने में मदद कर सकती है?

चौंक गए न? दरअसल, यह मामला ब्लड ग्रुप के हिसाब से डाइटिंग के जरीए अपनी काया को छरहरा बनाने का है. यह खास तरह की डाइट ‘ब्लड ग्रुप डाइट’ कहलाती है. क्या है यह ब्लड ग्रुप डाइट? आइए, जानते हैं कोलकाता, यादवपुर स्थित केपीसी मैडिकल कालेज व हौस्पिटल की  न्यूट्रिशनिस्ट और डाइटिशियन, रंजिनी दत्त से.

रंजिनी दत्त का इस संबंध में कहना है कि मैडिकल साइंस में ब्लड ग्रुप डाइट एक अवधारणा है. हालांकि अभी इस अवधारणा को पुख्ता वैज्ञानिक आधार नहीं मिला है, लेकिन ब्लड ग्रुप आधारित डाइट से बहुतों को फायदा भी हुआ है, यह भी सच है. पश्चिमी देशों में इस अवधारणा को मान कर डाइट चार्ट बहुत चलन में है.

रंजिनी दत्त का यह भी कहना है कि वजन कम करने के इस नुसखे को ‘टेलर मेड ट्रीटमैंट’ कहा जाता है. अब सवाल यह उठता है कि यह काम तो पर्सनलाइज्ड डाईट चार्ट या रूटीन कर ही सकता है. फिर ब्लड ग्रुप डाइट क्यों?

 हर व्यक्ति की पाचन और रोगप्रतिरोधक क्षमता उस के ब्लड ग्रुप पर निर्भर करती है. बाकायदा जांच में यह पाया गया है कि ‘ओ’ ब्लड ग्रुप के व्यक्ति आमतौर पर एग्जिमा, ऐलर्जी, बुखार आदि से ज्यादा पीडि़त होते हैं.

 ‘बी’ ब्लड गु्रप वालों में रोगप्रतिरोधक क्षमता कम होती है. इस ब्लड ग्रुप वाले ज्यादातर थकेथके से रहते हैं. कोई गलत फूड खाने से इन्हें ऐलर्जी हो जाती है, तो ‘एबी’ ब्लड ग्रुप वालों की समस्या अलग किस्म की होती है. इन्हें छोटीछोटी बीमारियां लगभग नहीं के बराबर होती हैं. लेकिन इस ब्लड ग्रुप के लोगों को कैंसर, ऐनीमिया या फिर दिल की बीमारी होने की संभावना अधिक रहती है.

रंजिनी दत्त के अनुसार, डाइट थियोरी कहती है कि हम जब खाना खाते हैं तब हमारे खून में एक खास तरह की मैटाबोलिक प्रतिक्रिया या रिएक्शन होता है. दरअसल, हमारे खाए भोजन में मौजूद प्रोटीन और विभिन्न तरह के ब्लड ग्रुप में मौजूद ऐंटीजन में परस्पर प्रतिक्रिया होती है. गौरतलब है कि हर ब्लड ग्रुप का अपना ऐंटीजन तैयार होता है. गलत खाना खाने पर ऐंटीजन में जबरदस्त प्रतिक्रिया होती है. इसलिए अगर हम ब्लड ग्रुप के हिसाब से अपना डाइट चार्ट तैयार करें तो बेहतर होगा. यह डाइट हमें स्लिमट्रिम भी बना सकती है.

ब्लड ग्रुप ‘ओ’

रंजिनी दत्त कहती हैं कि ब्लड ग्रुप की थियोरी के हिसाब से यह ब्लड ग्रुप सब से पुराना माना जाता है. पुराना ब्लड ग्रुप कहने का तात्पर्य यह है कि यह ब्लड ग्रुप प्रागैतिहासिक मानव का ब्लड ग्रुप है. इस ब्लड ग्रुप वालों की पाचन क्षमता बहुत अच्छी होती है. इस ब्लड ग्रुप में हाई स्टमक ऐसिड (आमाशय में मौजूद अम्ल) होने के कारण हाई प्रोटीन को हजम कर पाना आसान होता है.

आमतौर पर जिन का ब्लड ग्रुप ‘ओ’ है उन्हें प्रोटीन से भरपूर आहार लेना चाहिए. वे मांसमछली और किसी भी तरह का सी फूड खा सकते हैं. लेकिन मांसमछली का कैमिकलफ्री होना जरूरी है. हाई प्रोटीन फूड में भी कुछ चीजें वर्जित हैं. अगर इस ब्लड ग्रुप वाले छरहरी काया की चाह रखते हैं, तो उन्हें आटे और मैदा से बनी चीजें कम से कम खानी चाहिए. सब्जी और फल ज्यादा से ज्यादा खाने चाहिए. लेकिन पत्तागोभी, फूलगोभी, सरसों जितना कम खाएं उतना ही अच्छा है. इस के अलावा ड्राईफू्रट, दूध, मक्खन, चीज जैसे डेयरी प्रोडक्ट्स से भी दूर रहना इन के लिए बेहतर होगा. ब्रोकली, पालक, रैड मीट, सी फूड वजन कम करने में सहायक होते हैं. इस ब्लड ग्रुप के लिए ऐक्सरसाइज बहुत ही जरूरी है.

ब्लड ग्रुप ‘ए’

ब्लड ग्रुप ‘ओ’ की ही तरह ब्लड ग्रुप ‘ए’ का वजूद भी हजारों साल पुराना है, लेकिन प्रागैतिहासकाल जितना नहीं. गुफाओं से निकल कर जब इंसानों ने खेती और पशुपालन का काम शुरू किया, तब से यह ब्लड ग्रुप वजूद में है.

इस ब्लड ग्रुप वालों के लिए ऐनिमल प्रोटीन आमतौर पर अनुकूल नहीं होता है. इसलिए मांसमछली, चिकन और मिल्क प्रोडक्ट्स इन के लिए सही डाइट नहीं है. वह इसलिए कि इन का हाजमा आमतौर पर बहुत अच्छा नहीं होता है. इन्हें खानपान बहुत सोचसमझ कर करना चाहिए. इन्हें अपने डाइट चार्ट में बादाम, टोफू, बींस की सब्जी, फल जरूर रखने चाहिए. अपने ब्लड ग्रुप के अनुरूप भोजन के साथसाथ कुछ हलकाफुलका व्यायाम भी जरूर करना चाहिए.

ब्लड ग्रुप ‘बी’

ब्लड ग्रुप ‘ओ’ की तरह ही ब्लड गु्रप ‘बी’ के लोगों को भी संतुलित खानपान व व्यायाम की आवश्यकता होती है. गाय व बकरी का दूध लेना इस गु्रप के लोगों के लिए बेहतर माना गया है. मांसाहारी लोगों के लिए मटन, मछली आदि सर्वोत्तम रहता है. पर चिकन का अध्यधिक सेवन नुसानदायक हो सकता है. हरी सब्जियों को आहार में शामिल करते हुए नियमित व्यायाम अच्छा रहता है.

ब्लड ग्रुप ‘एबी’

उपरोक्त ब्लड ग्रुपों की तुलना में यह ‘एबी’ ब्लड ग्रुप काफी आधुनिक किस्म का ब्लड ग्रुप है. इस ग्रुप की अच्छी बात यह है कि इस गु्रप वाले लोग हर तरह का खाना खा सकते हैं. दरअसल, ब्लड ग्रुप ‘ए’ और ‘बी’ दोनों ही ग्रुप का खाना ‘एबी’ ब्लड गु्रप के लिए अनुकूल होता है. मांस, सी फूड, डेयरी प्रोडक्ट्स, फल, सागसब्जी, टोफू वे खा सकते हैं. जिन खाद्यपदार्थों को खाने से बचना चाहिए, वे हैं- रैड मीट, बींस की और कौर्न. इन चीजों में अनन्नास, सागसब्जी, सी फूड, टोफू वजन कम करने में सहायक होते हैं. डाइट के साथ इन्हें थोड़ा पैदल चलने, टहलने के साथ नियमित रूप से तैरना भी चाहिए.

 

Summer Special: 5 समर ड्रिंक -टेस्ट और एनर्जी से भरपूर, बच्चों को करेंगे गर्मी से दूर

क्या आपके बच्चों की गर्मी की छुट्टी चल रही है और आप उनके हाइड्रेशन के लिए परेशान हैं?बिल्कुल भी चिंता न करें, हमारे पास आपके लिए बिल्कुल सही समाधान है. इन गर्मियों की छुट्टियों के दौरान क्यों न अपने बच्चों को ताज़ा पेय पदार्थों से खुश करें जो उन्हें हाइड्रेटेड तो रखेंगे ही साथ ही उन्हें स्वस्थ भी बनाएंगे.

मनप्रीत कालरा – आहार विशेषज्ञ और संस्थापक निदेशक, न्यूट्रीएप्ट हेल्थकेयर प्राइवेट लिमिटेड की बता रही हैं 5 स्वस्थ और ताज़ा गर्मियों के पेय जो इस गर्मी में बच्चों के लिए अवश्य आजमाए जाने चाहिए-

  1. पुदीने की छाछ

1 छोटी कटोरी दही, 5-6 पुदीने के पत्ते, 1 छोटा चम्मच जीरा पाउडर, चुटकी भर काली मिर्च और स्वादानुसार काला नमक मिलाएं. इसे ग्राइंडर में अच्छी तरह मिलाएं और 3-4 बर्फ के टुकड़े डालकर ठंडा-ठंडा सर्व करें. आप इस आसान समर ड्रिंक को अपने ऑफिस या कॉलेजों में ले जा सकते हैं और अपने पेट को ठंडा और तरोताजा रखने के लिए इसे अपने मिड स्नैक के दौरान ले सकते हैं.

2. तरबूज पंच

तरबूज गर्मियों के लिए सबसे आदर्श फल है क्योंकि यह गर्मियों में बाहर खेलते समय आपके बच्चों को लंबे समय तक हाइड्रेटेड रखता है. बीज निकाल कर शुरू करें और तरबूज का पंप बनाएं. अब आपका जूस बनकर तैयार है, इसमें स्वादानुसार नमक, नींबू का रस और पुदीने के पत्ते डालें. इसे कुछ समय के लिए ठंडा करें और अपने बच्चों को इस स्वादिष्ट गर्मियों के पेय का आनंद लेने दें.

3. गुलकंद मिल्कशेक

गुलकंद में उच्च हाइड्रेटिंग गुण होते हैं जो गुलाब की पंखुड़ियों को चीनी में मिला कर बनाया जाता है और हीटस्टोक्स को रोक सकता है. अगर आपके बच्चे सादा दूध पीकर बोर हो गए हैं तो इस रेसिपी को जरूर ट्राई करें. आपको बस 1 कप ठंडा दूध, 1 बड़ा चम्मच गुलकंद, 1 बड़ा चम्मच गुलाब का शरबत और कुछ बर्फ के टुकड़े चाहिए। सभी सामग्री को एक साथ ब्लेंडर में मिलाकर तुरंत परोसें.

4. तुलसी नींबू पानी

तुलसी नींबू पानी आपके बच्चों के लिए गर्मियों में कूलर के रूप में पूरी तरह से अनुकूल होगा क्योंकि यह शरीर की गर्मी को दूर रखेगा. आपको केवल स्वाद के लिए तुलसी के कुछ पत्ते, नींबू और शहद चाहिए. इन सभी सामग्रियों को एक साथ मिलाएं और लगभग 30 मिनट से 1 घंटे के लिए रख दें. सबसे समृद्ध तुलसी स्वाद के साथ छानें और परोसें.

5. मैंगो पंच

इस समर ड्रिंक को बनाने के लिए 1/2 आम, 1 टीस्पून गोंद कतीरा, 1/2 टीस्पून तुलसी के बीज, 1 टीस्पून गुड़ पाउडर और 1/2 गिलास नारियल पानी मिलाएं. यह बच्चों के लिए गर्मियों के लिए उत्तम पेय है क्योंकि गोंद कतीरा, नारियल पानी और तुलसी के बीजों में ठंडक देने वाले गुण होते हैं जो आपके बच्चों के शरीर को ठंडा रखेंगे.

आप तैयारी के हिस्से में अपने बच्चों को भी शामिल कर सकते हैं क्योंकि यह एक मजेदार गतिविधि हो सकती है और वे सामग्री के बारे में अधिक सीख सकते हैं. अब, अपने बच्चों के मिड मील में ऊपर बताए गए समर ड्रिंक्स को शामिल करना शुरू करें और उन्हें अच्छी तरह से हाइड्रेटेड रखें और गर्मी से होने वाली थकावट से बचाएं.

World Hearing Day 2024: कान बहने की समस्या को न लें हल्के में, जानें एक्सपर्ट की राय

World Hearing Day 2024: कान और उसकी हेल्थ के बारे में सीके बिरला हॉस्पिटल गुरुग्राम में लीड ईएनटी कंसल्टेंट डॉक्टर अनिष गुप्ता ने विस्तार से जानकारी दी है. उन्होंने बताया कि पिछले कुछ समय में मिडल ईयर में बहाव के साथ ओटिटिस मीडिया का प्रसार काफी तेजी से बढ़ा है. इस परेशानी को अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है लेकिन अगर इसका इलाज न कराया जाए तो गंभीर परिणाम हो सकते हैं. 3 मार्च को मनाए जाने वाले वर्ल्ड हियरिंग डे के अवसर को देखते हुए ये जरूरी है कि सुनने की क्षमता वाली इस परेशानी के बारे में चर्चा की जाए और इसके खतरे के बारे में समझा जाए.

बहाव के साथ ओटिटिस मीडिया (ओएमई) होने के कई कारण हो सकते हैं जिसमें लगातार कोल्ड होना, एलर्जी, वायरल इंफेक्शन, एडेनोओडाइटिस और एडेनोइड हाइपरट्रॉफी शामिल है. इससे मिडल ईयर यानी मध्य कान का इंफेक्शन हो सकता है या मिडिल ईयर में धीरे-धीरे वेंटिलेशन की समस्या हो सकती है.

ओएमई की घटनाएं खासकर कोविड काल के बाद ज्यादा बढ़ी हैं और इसकी वजह एडेनोइड संक्रमण और हाइपरट्रॉफी को माना जाता है. हालांकि, कोविड वायरस से इसका डायरेक्ट रिलेशन स्थापित होना अभी बाकी है, लेकिन हाल के वक्त में ओएमई के मामलों में 25 से 30 फीसदी का इजाफा हुआ है. 3 से 6 साल के बच्चों को इस समस्या की गिरफ्त में आने का ज्यादा खतरा है, ऐसे में उनकी लगातार स्क्रीनिंग और चेकअप कराने की जरूरत है. जिन बच्चों को एडोनोइड हाइपरट्रॉफी, बार-बार सर्दी, खांसी और एलर्जी होती है, उनके लिए ये जरूरी है.

अगर ओएमई की समस्या की पहचान वक्त पर न हो पाए या फिर इलाज में देरी हो जाए तो इसके गंभीर नतीजे हो सकते हैं. ईयरड्रम को डैमेज हो सकता है, और फिर कान की बीमारी हो सकती है. इस सबके कारण सुनने की क्षमता कम हो सकती है, कान बहने लगते हैं और दूसरी अन्य समस्याएं भी हो जाती हैं. ऐसे में ओएमई के नकारात्मक प्रभाव से बचाव के लिए इससे बचाव और शुरुआती इंटरवेंशन बेहद जरूरी है. समय पर इलाज से ओएमई की समस्या को बढ़ने से रोका जा सकता है और सुनने की क्षमता को बचाया जा सकता है.

जिन लोगों को ये समस्या होने का खतरा है उनकी लगातार स्क्रीनिंग कराने की जरूरत है. मां-बाप, केयर टेकर और मेडिकल प्रोफेशन से जुड़े लोगों के बीच अवेयरनेस फैलाने के साथ ही ओएमई के शुरुआती लक्षणों के बारे में सबको बताने की जरूरत है ताकि समय पर इलाज किया जा सके.

शैक्षिक अभियान और सामुदायिक आउटरीच प्रोग्राम ओएमई की रोकथाम और मैनेजमेंट में अहम भूमिका निभा सकते हैं. कान की हेल्थ के बारे में लोगों को सचेत करके, इसके अर्ली डिटेक्शन की जानकारी देकर हम संयुक्त रूप से ओएमई से संबंधित परेशानियों से बचाव कर सकते हैं.

इस वर्ल्ड हियरिंग डे के अवसर पर सब लोग मिलकर कान और सुनने की क्षमता पर ध्यान दें, ओएमई से संबंधित रिस्क के बचाव के बारे में जागरूकता फैलाएं. हम सब मिलकर ये सुनिश्चित कर सकते हैं कि हर व्यक्ति की समय पर जांच हो, समय पर इलाज मिले और उनकी सुनने की शक्ति प्रभावित न हो. आइए मिलकर ऐसे समाज की कल्पना करें जहां हर शख्स को कान की सेहत से जुड़े मामलों में बेहतर से बेहतर ट्रीटमेंट मिल सके और वो मिडिल ईयर की समस्याओं से निजात पा सकें.

डिलीवरी से पहले कराएं Prenatal Testing ताकि ले सकें समय रहते महत्वपूर्ण फैसला

35 वर्षीय स्नेहा को जैसे ही पता लगा कि वो गर्भवती है उसे सैकड़ो चिताओं ने घेर लिया.वो ये सोच सोच कर परेशान रहती थी ,” लेट प्रेगनेंसी के साइड इफेक्ट्स बहुत ज्यादा होते है.उसका आने वाला बच्चा स्वस्थ होगा कि नहीं?”

एक दिन चेकअप के दौरान स्नेहा ने अपने मन का डर डॉक्टर से साझा किया तो उन्होंने स्नेहा को प्रीनेटल जेनेटिक टेस्ट सजेस्ट किये.क्या होता है प्रीनेटल जेनेटिक टेस्ट आप भी जान लीजिए.

प्रीनेटल जेनेटिक टेस्टिंग के तहत् कुछ ऐसी जांच शामिल होती हैं जो अजन्मे शिशु में संभावित आनुवांशिक विकारों (जेनेटिक डिसऑडर्र) की पुष्टि करती हैं.आनुवांशिक विकार किसी व्यक्ति की जीन्स में होने वाले बदलावों के कारण पैदा होते हैं.इन परीक्षणों से क्रोमोसोम में कम/अतिरिक्त क्रोमोसोम (डाउन्स सिंड्रोम) या जीन्स में होने वाले बदलावों, यानि म्युटेशंस (थैलसीमिया) का पता लगाया जाता है.जरूरी नहीं कि जेनेटिक डिसॉर्डर का कारण हमेशा आनुवांशिक ही हो.

डॉ तलत खान, डॉक्टर इंचार्ज, मेडिकल जेनेटिक्स, मैट्रोपोलिस हैल्थकेयर लिमिटेड के मुताबिक सभी गर्भवती महिलाओं को ये जांच जरूर करवानी चाहिए.दरअसल आंकड़ों के मुताबिक मैट्रोपॉलिस हैल्थकेयर लैबोरेट्री में 1 साल में प्रीनेटल जेनेटिक टेस्टिंग करवाने वाली 50,000 महिलाओं में से करीब 4 फीसदी की रिपोर्ट पॉजिटिव आयी.जो कि चिंताजनक है.लेकिन परेशानी ये है कि भारत में इस विषय पर अभी भी खुलकर बातचीत नहीं होती और यही कारण है कि जागरूकता स्तर को बेहतर बनाए जाने की जरूरत है.

अमेरिकल कॉलेज ऑफ ऑब्सटैट्रिशियन्स एंड गाइनीकोलॉजिस्ट्स (ACOG) की नवीनतम गाइडलाइंस और फेडेरेशन ऑफ ऑब्सटैट्रिक्स एंड गाइनीकोलॉजिकल सोसायटीज़ ऑफ इंडिया (FOGSI) के मुताबिक, सभी गर्भवती महिलाओं की एन्यूप्लोइडी (aneuploidy) के लिए प्रीनेटल जेनेटिक टेस्टिंग की जानी चाहिए और यह गर्भवती की उम्र या अन्य किसी भी रिस्क फैक्टर्स के संदर्भ के बगैर होनी चाहिए.
प्रेग्नेंसी की शुरुआत होते ही जल्द से जल्द जेनेटिक टेस्टिंग पर डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए यानी पहले ट्राइमेस्टर के दौरान क्योंकि 10 से 18 हफ्ते की प्रेग्नेंसी के समय ही जांच करवाने की सलाह दी जाती है.
सभी गर्भवती महिलाओं की जांच उनकी गेस्टेशनल एज के मुताबिक डुअल मार्कर टेस्ट (11 से 13.6 हफ्ते), क्वाड्रपल मार्कर टेस्ट (14 से 17 हफ्ते) और नॉन-इन्वेसिव प्रीनेटल टेस्टिंग (एनआईपीटी – 10 हफ्ते के बाद) होना चाहिए.ये टैस्ट नॉन-फास्टिंग ब्लड सैंपल पर किए जा सकते हैं.

यदि स्क्रीनिंग से संभावित समस्या का संकेत मिलता है, तो 30 साल से अधिक उम्र की गर्भवती, फैमिली हिस्ट्री या जेनेटिक डिसऑर्डर के रिस्क को बढ़ाने वाली मेडिकल कंडीशंस वाली महिलाओं को इन्वेसिव प्रीनेटल डायग्नॉस्टिक टेस्ट करवाने चाहिए.

ये डायग्नॉस्टिक टेस्ट, कोरियॉनिक विलस सैंपलिंग और एम्नियोटिक फ्लूइड अनॅलिसिस के आधार पर किए जाते हैं और किसी भी अनुवांशिक या जेनेटिक बीमारी की पुष्टि करने के एकमात्र साधन भी हैं.लेकिन यह जानना भी महत्वपूर्ण है कि इनके साथ गर्भपात का 0.1% खतरा भी जुड़ा होता है.

महिलाओं के मन में उठने वाले सवाल

टैस्ट रिजल्ट मिलने के बाद क्या होता है?

यदि जांच के नतीजे सामान्य रेंज में होते हैं तो इनसे चिंता काफी हद तक दूर हो जाती है और प्रेग्नेंसी पर नज़र रखने के लिए रूटीन एंटीनेटल चेक-अप तथा फॉलो-अप यूएसजी की मदद ली जाती है.

क्या हाइ-रिस्क सूचना से प्रीनेटल केयर पर असर पड़ता?

प्रीनेटल टेस्टिंग से हैल्थकेयर प्रोवाइडर को उन तमाम स्थतियों की जानकारी मिल जाती है जो प्रसव के बाद इलाज के लिए आवश्यक हो सकती हैं, और इस प्रकार वे संभावित कॉम्प्लीकेशन्स के लिए पहले से तैयारी कर पाते हैं.

स्क्रीनिंग टेस्ट कितने सही होते हैं?

सामान्य ट्राइसॉमी के लिए सभी स्क्रीनिंग टेस्ट 90% संवेदी होते हैं.

क्या एम्नयोसेंटेसिस से गर्भपात (एबॉर्शन) का खतरा होता है?

एम्नियोसेंटेसिस 99.9% सुरक्षित होती है और इसमें गर्भपात का खतरा केवल 0.1% होता है.

क्या इन परीक्षणों से गर्भ में पल रहे भ्रूण के लिंग का भी पता लगाया जा सकता?

नहीं, PCPNDT गाइडलाइंस के मुताबिक, प्रसव पूर्व शिशु के लिंग की जानकारी देना गैर-कानूनी होता है.

क्या प्रीनेटल जेनेटिक टेस्ट के साथ फौलो-अप सोनोग्राफी की आवश्यकता होती है?

हां, अल्ट्रासाउंड का समय और फ्रीक्वेंसी का निर्धारण ऑब्सटैट्रिशयन द्वारा किया जाता है और यह हर मरीज के मामले में फर्क हो सकता है.

निष्कर्षः

जेनेटिक टेस्टिंग की सलाह दी जाती है ताकि आप पहली बार प्रीनेटल विजिट के दौरान ही चर्चा कर सकें.
ज्यादातर महिलाओं के मामले में दोनों जेनेटिक स्क्रीनिंग और डायग्नॉस्टिक टेस्ट नेगेटिव आ सकते हैं.
स्क्रीनिंग पर पॉजिटिव रिजल्ट आए तो दोबारा डायग्नोस्टिक टेस्ट करवाएं ताकि पुष्टि की जा सके.
यह जानकारी आगे टेस्टिंग के लिए, अतिरिक्त मेडिकल केयर, प्रेग्नेंसी के विकल्पों या प्रसव के बाद रिसोर्स/सपोर्ट की तलाश में मददगार हो सकती है.

सर्दियों में करें शिशु की देखभाल

सर्दी का मौसम शिशुओं के लिए एक नाजुक मौसम होता है. सर्दी की शुरुआत शिशुओं के लिए विशेषतौर पर बहुत संवेदनशील होती है क्योंकि शिशुओं के तापमान में व्यस्कों की अपेक्षा जल्दी गिरावट आती है. जितना छोटा शिशु होता है, उतनी ही आसानी से वह रोग से ग्रस्त हो सकता है क्योंकि उस के अंदर कंपकंपा कर अपने शरीर में गरमी उत्पन्न करने की क्षमता नहीं होती है तथा उस के शरीर में इतनी वसा भी नहीं होती है जिस का प्रयोग कर वह अपने शरीर के अंदर गरमी पैदा कर सके.

इसलिए स्वाभाविक है कि शिशु को गरम एवं सुरक्षित रखने हेतु उचित व्यवस्था की जाए.

शिशु को आवश्यकतानुसार ऊनी कपड़े पहनाएं बच्चों को मौसम के अनुसार ऊनी कपड़े पहनाना बेहद आवश्यक होता है. उन की त्वचा अत्यंत नाजुक होती है इसलिए उन्हें सर्वप्रथम कोई सूती वस्त्र पहना कर उस के ऊपर ऊनी वस्त्र, स्वैटर अथवा जैकेट आदि पहननी चाहिए क्योंकि ज्यादा गरम कपड़े पहनने पर यदि शिशु को पसीना आता है तो सूती वस्त्र उसे सोख लेता है और शिशु को आराम पहुचाता है. साथ ही ऊनी वस्त्र सीधे शिशु के संपर्क में नहीं आता है जिस से ऊनी रेशों के कारण उस की त्वचा पर किसी भी प्रकार का संक्रमण नहीं होता है और चकत्ते भी नहीं पड़ते हैं.

माताओं को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि शिशु को एक मोटा ऊनी कपड़ा पहनाने की अपेक्षा 2 कम गरम ऊनी कपड़े पहनाएं. इस से यदि सर्दी में कमी होने लगे तो वे कपड़े को उतार भी सकती हैं. इस से बच्चे की सर्दी से बचाच भी रहेगा और साथ ही उसे अनावश्यक रूप से पसीना व उल?ान का शिकार भी नहीं होना पड़ेगा. शिशु के पैर में भी उचित रूप से गरम वस्त्र जैसे पाजामा, मोजे आदि पहनाने चाहिए. सिर व हाथों को भी उचित वस्त्रों से ढकना चाहिए ताकि शिशु का शरीर गरम रह सके.

शिशु को घर के अंदर रखें

सर्दी के मौसम में अकसर तापमान में अचानक गिरावट आ जाती है और कई बार तेज हवाएं और बारिश स्थिति को और भी गंभीर बना देती है. ऐसे में शिशु को घर के अंदर रखना उचित होता है. घर का तापमान उचित रखें जिस से शिशु को अत्याधिक वस्त्र न पहनाने पड़ें. कमरे का उचित तापमान 68 डिगरी फारेनहाइट से 72 डिगरी फारेनहाइट माना गया है. रात को सोते समय कमरे का तापमान 65 डिगरी फारेनहाइट से 68 डिगरी फारेनहाइट होना चाहिए. इस से शिशु सुरक्षित रहता है और कमरे के वातावरण में नमी की कमी भी नहीं होती है.

कमरे का तापमान यदि ज्यादा गरम हुआ तो वातावरण में नमी तथा औक्सीजन की कमी हो सकती है जिस से बच्चे के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है. अत: माताओं को ध्यान देना चाहिए कि कमरे का तापमान सामान्य रूप से गरम रहे. यदि कमरे को गरम करने के लिए

हीटर या आग का प्रयोग करते हैं, तो सोने से पूर्व उसे बंद कर दे. वायु के संचार का ध्यान रखें अन्यथा औक्सीजन की कमी से शिशु की मृत्यु हो सकती है.

शिशु को बाहर ले जाते समय सावधानियां

यदि किसी कारणवश शिशु को बाहर ले जाना आवश्यक है तो उसे उचित वस्त्र पहना कर ले जाएं. समयसमय पर यह जांच करती रहें कि शिशु को कोई परेशानी तो नहीं हो रही है. घर से बाहर शिशु को अपने शरीर के पास ही रखें. मानव शरीर की गरमी से शिशु सुरक्षित रहता है. उस के सिर और पैर हमेशा ढक कर रखें. शिशु को ढक कर रखते समय या उस के शरीर को गरमाहट देते समय ध्यान रखें कि उस को सांस लेने में तकलीफ न होने पाए. यह सावधानी शिशु को वस्त्र पहनाते समय भी रखनी चाहिए.

शिशु के खानपान का ध्यान रखें

नवजात का पहला भोजन मां का दूध ही है. उसे पहले 6 माह तक मां का दूध ही देना चाहिए क्योंकि मां के दूध में शिशु के लिए सभी आवश्यक पोषक तत्त्व उचित मात्रा में उपलब्ध होते हैं. इस के उपरांत शिशु को मां के दूध के साथ ऊपरी आहार देना शुरू कर देना चाहिए. शुरुआत में शिशु को दिया जाने वाला भोजन सौम्य, तरल व कुनकुना होना चाहिए. उस के बाद शिशु को अर्ध ठोस आहार देना चाहिए जैसे हलवा, खिचड़ी, मसला हुआ केला, उबला सेब आदि.

8वें माह के पश्चात जब शिशु के दांत निकलना प्रारंभ होने लगें तो उसे ठोस आहार देना चाहिए. शिशु का आहार अधिक तीखा, मिर्चमसाले वाला नहीं होना चाहिए. भोजन में समयसमय पर 1/2 से 1 छोटा चम्मच घी भी दिया जाना चाहिए. ध्यान रहे कि प्यारदुलार में ज्यादा घी न खिलाएं क्योंकि अधिक घी शिशु के लिवर के लिए हानिकारक होता है. शिशु को दिन में कई बार भोजन देना चाहिए. खाली पेट या प्रयाप्त भोजन न देने से शिशु को ठंड जल्दी लग जाएगी और आप का शिशु कुपोषित भी हो सकता है.

शिशु की त्वचा की देखभाल

सर्दी के मौसम में तापमान गिरने तथा वातावरण में हवा के संचार की कमी होने के कारण शिशु की त्वचा में रूखापन हो जाता है तथा कभीकभी उस पर चकत्ते भी पड़ जाते हैं. इस के निवारण के लिए शिशु की त्वचा को साफ रखने के लिए उसे साफ कुनकुने पानी से नहलाना चाहिए. यदि सर्दी अधिक हो तो शिशु को गरम पानी में तौलिया भिगो कर पोंछ देना (स्पंज करना) चाहिए. स्पंज ऐसे स्थान पर करें जहां गरमी हो एवं हवा शांत हो. शिशु की त्वचा रूखी न होने पाए, इस के लिए लोशन लगाएं अथवा तेल से उस की मालिश भी अवश्य करें. इस से शिशु की त्वचा मुलायम, शरीर में रक्तसंचार सही रहता है और उस के शरीर में गरमाहट भी उत्पन्न होती है. मालिश के लिए जैतून, सरसों अथवा नारियल का तेल प्रयोग कर सकते हैं.

मातापिता आलस न करें

ठंड के कारण मातापिता शिशु की देखभाल में बिलकुल लापरवाही न बरतें. यदि उन्हें या परिवारजनों में से किसी को सर्दीजुखाम हुआ है तो शिशु को उस से दूर ही रखना चाहिए क्योंकि शिशु को किसी भी बीमारी का संक्रमण जल्दी होता है. शिशु को उचित समय पर रोगप्रतिरोधक टीके अवश्य लगवाएं क्योंकि टीकाकरण बच्चों को विभिन्न जानलेवा बीमारियों से बचाता है. सर्दी के मौसम के कारण मातापिता इस में जरा भी लापरवाही न बरतें क्योंकि शिशु संवेदनशील होता है और समय से टीकाकरण उसे कई गंभीर बीमारियों से बचाता है.

शिशु को प्राय: सर्दीजुकाम होता रहता है. यदि सही से देखभाल व इलाज न किया जाए तो उसे निमोनिया हो जाने का खतरा भी हो सकता है. शिशु की नाजुक त्वचा की भी उचित देखभाल करना आवश्यक है. उसे कुछ समय तक सूर्य की रोशनी में रखना बेहद आवश्यक है क्योंकि इस से विटामिन डी मिलता है जिस से शिशु की हड्डियां मजबूत होती हैं और साथ ही शरीर में खून का सही प्रवाह शिशु को हृष्टपुष्ट बनाता है और उस की वृद्धि एवं विकास में सहयोग करता है. उस की त्वचा भी स्वस्थ रहती है.

खांस-खांसकर बुरा हाल है तो इसे हल्के में न लें, हो सकते हैं कैंसर के संकेत

शिवानी हर समय गले में दर्द और खांसी रहने की समस्या से परेशान रहती थी. उसने पहले घरेलू नुस्खे अपनाये. फिर आराम न मिलने पर डाक्टर से मिली और बोला,” डॉक्टर साब इतनी दवाइयां कर लीं पर आराम नहीं.”

इस पर डॉक्टर ने कहा,”थ्रोट कैंसर यानी गले के कैंसर में कई तरह के कैंसर शामिल होते हैं जिसमें लैरिनिक्स, फैरिनिक्स और टॉन्सिल्स के कैंसर होते हैं. इनके अलग-अलग लक्षण होते हैं जिनसे कैंसर का पता चलता है. इन लक्षणों पर ध्यान देकर तुरंत इलाज की जरूरत होती है. मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, साकेत , हेड व नेक कैंसर के सर्जन डॉक्टर अक्षत मलिक का मानना है कि इन लक्षणों को पहचानकर इसका इलाज कराना बेहद महत्वपूर्ण है.

गले के कैंसर के जो लक्षण होते हैं हालांकि दूसरी अन्य बीमारियों के कारण भी सामने आते हैं, लेकिन अगर ये लक्षण लगातार 2-3 हफ्तों तक दिखाई दे और वक्त के साथ-साथ हालात बिगड़ते जाएं तो इन्हें दरकिनार नहीं करना चाहिए.

लक्षण

लगातार आवाज बैठना या आवाज में बदलाव: अगर किसी का गला लगातार बैठा रहता है या आवाज दबी रहती है तो इस पर ध्यान देने की जरूरत है.

गला सूखा: अगर गला सूखा रहने की परेशानी पुरानी है या फिर लगातार ऐसा रहता है और सामान्य इलाज से भी ठीक नहीं होता तो इसे इग्नोर न करें.

निगलने में समस्या: अगर खाना निगलने में दिक्कत हो रही है तो ये ट्यूमर के लक्षण हो सकते हैं.

लगातार खांसी: आमतौर पर लोग खांसी बहुत हल्के में लेते हैं लेकिन अगर सांस की दिक्कत आदि न हो और फिर भी लगातार खांसी रहती है तो दिखाने की जरूरत है.

एस्पिरेशन: कुछ निगलने पर खांसी आती है तो समस्या है. ऐसा हवा के पाइप में खाना जाने के कारण भी हो सकता है.

कान में दर्द: एक या दोनों कानों में बिना किसी खास वजह के दर्द होना भी गले में समस्या के कारण हो सकता है.

वजन कम होना: अचानक यूं ही वजन कम हो जाना, खाना निगलने में परेशानी और खाने की आदतों में बदलाव भी कैंसर के लक्षण हो सकते हैं.

गर्दन में गांठ: अगर गर्दन में गांठ हो या सूजन हो तो ये बढ़े हुए लिम्फ नोड्स के कारण हो सकता है और इससे कैंसर फैलने के संकेत मिलते हैं.

सांस लेने में कठिनाई: अगर गले का कैंसर एडवांस स्टेज में हो तो इससे सांस की समस्या भी हो सकती है.

लगातार सांस में बदबू: अगर आप टूथब्रश करते हैं और मुंह साफ करने के अन्य तरीके भी अपनाते हैं और फिर सांसों में बदबू रहती है तो ये चिंता का कारण हो सकता है.

डॉक्टर के मुताबिक ये सभी लक्षण किसी कम गंभीर बीमारी के कारण भी हो सकते हैं. लेकिन अगर ऐसा होता है तो डॉक्टर को जरूर दिखाएं. ऐसा करने से ट्यूमर होने की स्थिति में जल्दी डायग्नोज हो जाएगा और इलाज से इसे ठीक करना संभव रहेगा. वहीं, जो लोग स्मोकिंग करते हैं, तंबाकू का सेवन करते हैं, शराब पीते हैं वैसे लोग रेगुलर चेकअप कराएं और अपनी सेहत की मॉनिटरिंग रखें.

अपनी सेहत को सबसे ऊपर रखें, अवेयरनेस बढ़ाएं, समय पर डॉक्टर से सलाह लें और बेहतर इलाज लें ताकि गले के कैंसर के खिलाफ लड़ाई को जीता जा सके.

पोषक तत्वों का खजाना है मिलेट्स, जाने इसे कैसे करें खाने में शामिल

अच्छी सेहत के लिए सब से महत्त्वपूर्ण होता है कि आप क्या खा रहे हैं. यदि आप भी खाने में किसी हैल्दी औप्शन की तलाश कर रहे हैं तो nएक खाद्य अनाज जिसे आप को अपने आहार में शामिल करने की आवश्यकता है तो वह है मिलेट्स. मिलेट्स एक प्रकार का मोटा अनाज होता है जोकि गेहूं, चावल के समान होता है लेकिन उस में दूसरे अनाजों के मुकाबले अधिक पोषण और स्वास्थ्य लाभ होते हैं. मिलेट्स के कई प्रकार होते हैं जैसेकि ज्वार, बाजरा, रागी और प्रोसो मिलेट्स आदि.

मिलेट्स के बारे में सब से अच्छी बात यह है कि आप इसे खाने से कभी बोर नहीं हो सकते क्योंकि यह कई रूपों में उपलब्ध है और आसानी से पकाया जा सकता है. सभी तरह के मिलेट्स अलगअलग गुणों से भरपूर होते हैं. ये सब स्वास्थ्य के लिए समान रूप से अच्छे हैं और बेहद पौष्टिक हैं. तभी तो इसे ‘सुपर ग्रेन्स’ के रूप में जाना जाता है. अपने आहार में मिलेट्स का उपयोग कर के आप अपने स्वास्थ्य को बेहतर
बना सकते हैं.

मिलेट्स के प्रकार

ज्वार: ज्वार भारत में एक पौपुलर मिलेट्स है और इसे अकसर रोटी, डोसा और चावल के रूप में खाया जाता है. यह फाइबर और प्रोटीन का अच्छा स्रोत होता है और यह ग्लूटेन फ्री होता है जिस से ग्लूटेन ऐलर्जी वाले लोग भी इस का सेवन कर सकते हैं.

बाजरा: बाजरा विटामिन बी, फौलेट और ऐंटीऔक्सीडैंट्स का अच्छा स्रोत होता है. बाजरे को रोटी और खिचड़ी के रूप में खाया जाता है.

रागी: रागी उच्च प्रोटीन और कैल्सियम का स्रोत होता है. यह खासतौर पर साउथ इंडिया में पसंद किया जाता है और डोसा, इडली और रोटी के रूप में बना कर खाया जाता है.

कोरा: यह फाइबर और विटामिन का अच्छा स्रोत होता है. यह स्वादिष्ठ पुलाव और उपमा के रूप में खाया जा सकता है.

प्रोसो: यह विटामिंस, मिनरल्स और प्रोटीन का अच्छा स्रोत होता है.

मिलेट्स के हैल्थ बैनिफिट्स: मिलेट्स कई तरह से हमारी हैल्थ के लिए फायदेमंद है:

पौष्टिकता: मिलेट्स विटामिन ए, विटामिन बी, मिनरल्स, फास्फोरस, पोटैशियम, ऐंटीऔक्सीडैंट, नियासिन, कैल्सियम और आयरन, प्रोटीन और फाइबर का अच्छा स्रोत होता है. यह हमारे शरीर को सभी महत्त्वपूर्ण पोषक तत्त्व देता है और स्वास्थ्य को बेहतर बनाए रखने में मदद करता है. बाजरा में कई पोषक तत्त्वों का भंडार होता है.

वजन नियंत्रण: मिलेट्स का सेवन करने से वजन को नियंत्रित किया जा सकता है क्योंकि इस में फाइबर होता है जो भूख को कम करता है.

दिल का स्वास्थ्य: मिलेट्स खराब कोलैस्ट्रौल को कम करने में भी मदद करता है जो हृदयरोग के लिए एक जोखिम कारक है. इस में ऐंटीऔक्सीडैंट्स होते हैं जो दिल के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद करते हैं. इसे खाने से दिल की बीमारियों का रिस्क कम होता है.

मधुमेह में फायदेमंद: मिलेट्स में ग्लाइसेमिक इंडैक्स कम होता है जिस का अर्थ है कि उस का रक्त शर्करा के स्तर पर कम प्रभाव पड़ता है. यह मधुमेह वाले व्यक्तियों के लिए फायदेमंद हो सकता है.
कैंसर प्रतिरोधक: मिलेट्स में पाए जाने वाले ऐंटीऔक्सीडैंट्स कैंसर के खिलाफ लड़ाई में मदद कर सकते हैं.

पेट के लिए अच्छा: मिलेट्स में मौजूद अघुलनशील फाइबर प्रीबायोटिक के रूप में कार्य करता है जो आंत में अच्छे बैक्टीरिया का प्रवेश कराता है. मिलेट्स में फाइबर की प्रचुर मात्रा पाई जाती है. साबूत अनाज के रूप में सेवन करने पर फाइबर की मात्रा अधिक होती है और इस प्रकार यह पुरानी कब्ज के रोगियों के लिए फायदेमंद हो सकता है.

ग्लूटेन मुक्त विकल्प: यदि आप को सीलिएक रोग या ग्लूटेन संवेदनशीलता है तो बाजरा गेहूं और जौ जैसे ग्लूटेन युक्त अनाज का एक उत्कृष्ट विकल्प हो सकता है.

ऐंटीऔक्सीडैंट: मिलेट्स ऐंटीऔक्सीडैंट से भरपूर होता है जिस से इसे खाने से संभावित रूप से पुरानी बीमारियों का खतरा कम हो जाता है.

हड्डियों का स्वास्थ्य: मिलेट्स कैल्सियम और फास्फोरस जैसे आवश्यक खनिजों का एक स्रोत है जो स्वस्थ हड्डियों को बनाए रखने के लिए महत्त्वपूर्ण है.

कैसे खाएं मिलेट्स

मिलेट्स से तैयार किए जाने वाले विभिन्न पदार्थ खाने में स्वादिष्ठ होते हैं और स्वास्थ्यपूर्ण भी होते हैं. ये अपेक्षाकृत जल्दी पक जाते हैं और बिना किसी परेशानी के आप के दैनिक भोजन का हिस्सा बन सकते
हैं. आप इसे कई तरह से अपने आहार में शामिल कर सकते हैं.

मिलेट्स की रोटी, मिलेट्स की खिचड़ी, पुलाव, मिलेट्स की इडली, डोसा, उपमा और पोहे, मिलेट्स की ब्रैड, डैजर्ट्स, मिलेट्स का सूप आदि. सभी प्रकार के मिलेट्स को आप उपलब्धता के आधार पर अपने आहार में शामिल कर सकते हैं. यह पूरे साल बाजार में उपलब्ध रहता है. वैसे कुछ खास मिलेट्स खास मौसम में ज्यादा उपयोगी होता है मसलन:

सर्दी: सर्दी के लिए सब से अच्छा मक्का है. यह विशेष रूप से इसी समय उगाया जाता है. यह तासीर में भी गरम होता है.

गर्मी: पूरी गरमी में ज्वार और रागी का उपयोग करें. चिलचिलाती गरमी के दिनों में ये आप को हाइड्रेटेड रहने और आप के शरीर के तापमान को कम करने में मदद कर सकते हैं.

मिलेट्स खाने में कुछ सावधानियां भी जरूर रखें:

मिलेट्स अपने कई फायदों के कारण भोजन के लिए हैल्दी औप्शन है. लेकिन इसे खाने में कुछ सावधानियां रखनी भी जरूरी हैं तभी आप को इस का पूरा लाभ मिलेगा.

इस में मौजूद फाइटिक ऐसिड अन्य पोषक तत्त्वों के अवशोषण को कम कर सकता है. साथ ही यह कुछ लोगों के पेट के स्वास्थ्य के लिए भी परेशानी भरा हो सकता है. इसलिए इस को अपने आहार में शामिल करने से पहले उसे भिगोना चाहिए. भिगोने से उस में मौजूद फाइटिक ऐसिड की कमी होती है. मिलेट्स को भिगो कर, अंकुरित कर के खाने से इस के हानिकारक प्रभाव कम हो जाते हैं.

ज्वार और बाजरा वाले मिश्रण पर स्विच करने से पहले हलके अनाज जैसे रागी और फौक्सटेल बाजरा से शुरुआत करना बेहतर है. मिलेट्स में गोइट्रोजन भी होते हैं जो आयोडीन के अवशोषण में हस्तक्षेप कर सकते हैं जिसे खाना पकाने की प्रक्रिया में कम किया जा सकता है. इसलिए हाइपोथायरायडिज्म वाले लोगों को मिलेट्स से दूर रहना चाहिए.

मिलेट्स का सेवन करते समय भरपूर मात्रा में पानी पीना सुनिश्चित करें क्योंकि इस में फाइबर की मात्रा अधिक होती है. अगर आप मिलेट्स खाने के साथसाथ पानी नहीं पीते हैं तो इस से आप को पाचन संबंधी समस्या हो सकती है और निर्जलीकरण भी हो सकता है.

इम्यूनिटी बूस्ट करें

हमेशा फ्रैश मिलेट्स खाएं. कुछ लोगों की आदत होती है कि कई दिन पुराना मिलेट्स भी खा लेते हैं. ऐसा करना बिलकुल सही नहीं है. हमेशा ताजा मिलेट्स का सेवन करें. बिलकुल उसी तरह जैसे आप ताजा फल या सब्जियों का सेवन करते हैं.

मात्रा संतुलित रखें. मिलेट्स भले ही कई पोषक तत्त्वों का अच्छा स्रोत है, इस की मदद से इम्यूनिटी को बूस्ट किया जा सकता है, इस के बावजूद आप को यह सलाह दी जाती है कि अपनी डाइट में दूसरी तरहतरह की चीजों को भी शामिल करें जैसे दलिया, सलाद, फल आदि. इस से शरीर में पोषक तत्त्वों का बैलेंस बना रहेगा. डाइट में मिलेट्स के साथसाथ प्रोटीन, फैट और बैलेंस्ड डाइट का भी संतुलन बनाए रखें.
अधिक मात्रा में सेवन न करें जैसाकि किसी भी चीज की अति सही नहीं होती है. इसी तरह मिलेट्स का भी ज्यादा मात्रा में सेवन करना सही नहीं है.

स्वस्थ रहने के लिए जरूरी है कि आप ज्यादा मात्रा में रिफाइंड मिलेट्स का सेवन न करें. इस से स्वास्थ्य को नुकसान हो सकता है. ज्यादा मसाले से न पकाएं. अकसर लोग मोटा अनाज को काफी मसालों के साथ पकाते हैं. ऐसा करना सही नहीं है. मसालों की वजह से भले यह खाने में स्वादिष्ठ हो जाए लेकिन पोषक तत्त्वों में कमी होने लगती है. इसे हलकेफुलके मसालों के साथ पकाया जा
सकता है.

मैंस्ट्रुअल कप्स उन दिनों की चिंता से आजादी

मैंस्ट्रुअल कप्स का प्रचलन यों तो भारत में आम नहीं हुआ है, मगर महिलाओं के लिए यह कितना उपयोगी है, जरूर जानिए… समाचारपत्रों ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि 75% सैनिटरी पैड्स तयशुदा मानकों पर खरे नहीं उतरे हैं और इन से मूत्र संक्रमण एवं गर्भाशय संक्रमण से ले कर गर्भाशय कैंसर तक का खतरा है. जो सुरक्षित हैं, वे बहुत महंगे हैं और कोई फुल डे तो कोई फुल नाइट प्रोटैक्शन की बात करता है इसलिए भी 5-6 घंटे में बदले नहीं जाते.

अभी केवल 12% भारतीय महिलाएं इस विकल्प को वहन कर सकती हैं फिर भी औसतन किसी महिला के अपने जीवनकाल में 125-150 किलोग्राम टैंपन, पैड और ऐप्लिकेटर प्रयुक्त करने का अनुमान है. प्रतिमाह भारत में 43.3 करोड़ ऐसे पदार्थ कूड़े में जाते हैं, जिन में से अधिकांश रिवर बैड, लैंडफिल या सीवेज सिस्टम में भरे मिलते हैं क्योंकि एक तो ठीक से डिस्पोज करने की व्यवस्था नहीं होती और दूसरा अपशिष्ट बीनने वाले सफाईकर्मी हाथों से सैनिटरी पैड्स और डायपर्स को अलग करने के प्रति अनिच्छुक होते हैं, जबकि उन को अलग कर के उन्हें जलाने के लिए तैयार करना भारत सरकार की नगरपालिका ठोस अपशिष्ट प्रबंधन और हैंडलिंग नियमों के तहत आवश्यक है.

मैंस्ट्रुअल कप्स का प्रचलन भारत में अभी आम नहीं हुआ है. छोटे ही नहीं, बड़े शहरों में भी बहुत कम महिलाएं इन का उपयोग करती हैं.

मैंस्ट्रुअल कप्स के कम प्रचलन के कारण

सब से पहला और सब से बड़ा तो यही कि अभी तक कई लोगों ने इस के बारे में सुना भी नहीं है.
हमारे शरीर की रचना के प्रति ही इतनी अनभिज्ञता है कि इसके सही प्रयोग का तरीका नहीं पता होता.
द्य आज भी समाज में दाग लगने का हौआ इतना है कि मासिकस्राव शुरू होने से पहले ही इस का ट्रायल करने के बारे में सोचा जाता है जबकि सर्विक्स माहवारी के दौरान ही इतना नर्म और लचीला होता है कि इसे आसानी से लगाया जा सके. बाकी दिनों में बहुत मुश्किल और कष्टप्रद होता है.

सही आकार का चुनाव भी समस्या है. यह उम्र और प्रसव के प्रकार पर निर्भर है.
शुरुआती 1-2 या 3 साइकिल तक जब तक ठीक से अनुभव न हो, इस का प्रयोग मुश्किल लगता है और अधिकांश महिलाएं इसी दौरान इस के प्रयोग का विचार त्याग देती हैं, जबकि ठीक से इस्तेमाल करने पर जरूरी नहीं कि दिक्कत हो ही.

गलत तरीके, हाइजीन का खयाल न रखने, बड़े नाखून, बलपूर्वक लगाने की कोशिश या
फिर अनुपयुक्त साइज के कप के चलते कभीकभी योनि में जलन, खुजली, सूजन या लगाने के बाद पैल्विक पार्ट में दर्द हो सकता है. इस वजह से भी कई लड़कियां इसे छोड़ देती हैं.

मैंस्ट्रुअल कप्स के फायदे

सब से पहला फायदा बचत तो है ही, साथ ही यह विभिन्न प्रकार के संक्रमणों से भी बचाव करता है. सैनिटरी पैड्स या टैंपोन की तरह हाई अब्जार्बेंट मैटीरियल न होने से यह योनि के स्वाभाविक पीएच से कोई छेड़छाड़ नहीं करता, न ही टौक्सिक शौक सिंड्रोम का खतरा होता है, न ही आसपास की त्वचा में रैशेज कटनेछिलने और इन्फैक्शन का डर.

ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी 89% आबादी के लिए मैंस्ट्रुअल हाइजीन एक चुनौती है. गांवों में ही नहीं शहरों में भी निम्नवर्ग की महिलाएं, मजदूरिनें, भिखारिनें आदि राख, मिट्टी और प्लास्टिक की पन्नियों का इस्तेमाल करती हैं. साफ सूखे सूती कपड़े भी मिलना मुश्किल है. उन के लिए मैंस्ट्रुअल कप बहुत बड़ी राहत है.
इस के अलावा जिन का फ्लो बहुत ज्यादा होता है या जो महंगे सैनिटरी पैड्स और टैंपोन पर खर्च नहीं कर सकतीं उन के लिए भी यह बहुत काम का है.

खर्च बचाने के अलावा भी यह बहुत सुविधाजनक है. एक बार लगाने के बाद आप फ्लो की चिंता से लगभग मुक्त हो जाती हैं. शौच और स्नान के समय इसे निकालने की आवश्यकता नहीं पड़ती. तैराकी, राइडिंग, कूदना, दौड़भाग सब आसानी से कर सकती हैं. ये कप्स लीकेज प्रूफ होते हैं.

सब से बड़ी बात आसानी से खाली कर के साफ पानी से धो कर पुन: इस्तेमाल किए जा सकते हैं. पीरियड्स समाप्त होने के बाद 5 मिनट उबलते पानी में स्टरलाइज कर अच्छी तरह सुखा कर वापस रखे जा सकते हैं.

कौन-सा कप उचित रहेगा

आप के कपड़ों या फुटवियर्स की तरह कप्स का भी कोई स्टैंडर्ड फिक्स साइज नहीं है. स्मौल, मीडियम और लार्ज साइज हर कंपनी के अलगअलग आते हैं. सामान्य नियम है कि: हार्ड रिम वाला कप चुनें. साइज फ्लो से ज्यादा फिटिंग पर निर्भर है. हार्ड रिम वाले कप आसानी से लीक नहीं होते. अंदर जा कर खुलने और बाहर निकालने में भी सरल होते हैं. पर लड़कियां सौफ्ट रिम वाले स्मौल कप से शुरुआत कर सकती हैं.

25 वर्ष से कम आयु और वे महिलाएं जिन का सामान्य प्रसव नहीं हुआ है सिजेरियन हुआ है स्मौल साइज से शुरुआत करें.

30 से अधिक आयु या सामान्य प्रसव वाली या फिर अत्यधिक फ्लो वाली महिलाएं मीडियम या लार्ज लें.
द्य यदि किसी किस्म की ऐलर्जी या मैडिकल कंडीशन नहीं है तो पहले कम कीमत के कप्स से शुरुआत की जा सकती है. ये क्व200 से क्व500 में उपलब्ध हैं. एक बार आदत हो जाने पर अच्छे ब्रैंड के कप ले सकती हैं, जब ये 10-15 साल चल सकते हैं तो क्व1,000 से क्व1,200 की इनवैस्टमैंट भी महंगी नहीं है.

प्रयोग का तरीका

अगर आप ने टैंपून इस्तेमाल किया है तो यह भी बिलकुल वैसा ही है. पैल्विक मसल्स को बिलकुल ढीला छोड़ दें. कप की रिम (ऊपर का गोल सख्त हिस्सा) को पानी या वाटर बेस्ड लूब्रिकैंट लगा कर शेप में मोड़ लें और धीरेधीरे प्रविष्ट करें. अंदर जाते ही यह खुल जाएगा. ठीक तरह से प्रविष्ट किए जाने पर यह बाहर से नहीं दिखता और अंदर वैक्यूम बनने से लीक भी नहीं होता.

हालांकि 8 से 12 घंटे में निकालने को कहा जाता है पर बेहतर है 7-8 घंटे में खाली कर लिया जाए. इस के लिए सब से पहले कप के बेस को चुटकी से पकड़ कर सक्शन प्रैशर तोडि़ए और धीरे से नीचे की ओर बाहर खींच लीजिए. बहुत जल्दी या तेजी नहीं दिखानी है. शुरुआत में स्कूल, कालेज, औफिस या पब्लिक टौयलेट्स का इस्तेमाल करने से बचें. घर पर ही कोशिश करें.

खाली करने के बाद साफ पानी से धोना पर्याप्त है. किसी डिसइनफैक्टैंट का सीधा प्रयोग कप या प्राइवेट पार्ट पर न करें. इंटरनैट पर बहुत से वीडियोज मौजूद हैं जिन से प्रयोग विधि समझी जा सकती है.

मैंस्ट्रुअल कप्स बहुत सुविधाजनक हैं और इन का प्रयोग भी मुश्किल नहीं है. बस थोड़ी सी प्रैक्टिस की जरूरत है. कम से कम 3 महीने दें. इस तरह आप माहवारी के समय होने वाली असुविधा, दाग की चिंता, रैशेज, पैड्स के दुष्प्रभाव और खर्च से भी बचेंगी और यह ईको फ्रैंडली विकल्प पर्यावरण के लिए भी मुफीद है.

Foods For Hair Growth: तेजी से बढ़ाना चाहती हैं बाल, तो रोजाना खाएं ये फूड्स

Foods For Hair Growth: आज के समय में बालों की समस्या आम है. बाल झड़ने के कई कारण हो सकते हैं. गलत खानपान तनाव आदि के कारण हेयर फॉल की समस्या होती है. इसके अलावा केमिकल युक्त हेयर प्रोडक्ट इस्तेमाल करने के कारण भी बालों की जड़ें कमजोर होती हैं. ऐसे में आज हम आपको कुछ ऐसे फूड्स के बारे में बताएंगे, जिन्हें खाने से आपके बाल तेजी से बढ़ सकते हैं.

हरी पत्तेदार सब्जियां

हरी पत्तेदार सब्जियां पोषक तत्वों से भरपूर होती है, जो बालों के विकास में मददगार हैं. अगर आप रोजाना अपनी डाइट में हरी सब्जियां खाती हैं, तो इससे आपके बाल मजबूत होंगे.

इनमें विटामिन-ए, विटामिन- सी, कैरोटीन आदि पोषक तत्व पाए जाते हैं, जो बालों की जड़ों को मजबूत करते हैं. जिससे आपके बाल नहीं टूटेंगे.

गाजर

विटामिन-ए से भरपूर गाजर सेहत के साथ बालों के लिए भी काफी फायदेमंद है। इसे नियमित रूप से खाने से आपके बाल तेजी से बढ़ सकते हैं. आप इसे अपनी डेली डाइट में सलाद के रूप में भी खा सकते हैं.

शकरकंद

सर्दियों में शकरकंद खाना भला किसे पसंद नहीं. यह स्वाद के साथ कई गुणों से भी भरपूर है. इसमें विटामिन-ए की मात्रा अधिक होती है, जो बालों की ग्रोथ में सहायक है. अगर आप कमजोर बालों से परेशान है, तो शकरकंद खा सकते हैं.

एवोकाडो

एवोकाडो बायोटिन से भरपूर फल है. इसमें विटामिन-ई और एंटीऑक्सीडेंट की मात्रा अधिक होती है, जो बालों को पोषण देता है. यह स्कैल्प से जुड़ी समस्याओं कम करता है, जिससे आपके बाल मजबूत होंगे.

केला 

केला पोटैशियम से भरपूर होता है. इसे खाने से बाल स्वस्थ रहते हैं. अगर आपको भी टूटते, झड़ते बालों की समस्या है, तो इस फल को अपनी डाइट का हिस्सा जरूर बनाएं.

Disclaimer: लेख में लेख में दी गई सलाह केवल  सामान्य जानकारी के लिए है. अधिक जानकारी के लिए आप हमेशा डॉक्टर से परामर्श लें.

अच्छी सेहत के लिए जरूरी है हर दिन बस एक कप ग्रीन टी

बदलती लाइफस्टाइल और काम के बढ़ते दवाब के बीच अगर एक कप ग्रीन टी ग्रीन टी ली जाए तो आपके स्वास्थ्य पर सकारात्मक असर पड़ेगा. एक नियत मात्रा में प्रतिदिन ग्रीन टी का सेवन आपकी सेहत के लिए कई तरह से फायदेमंद साबित हो सकता है. कई शोध में भी ग्रीन टी सेहत के लिए फायदेमंद बताया गया है, लेकिन ध्यान रखें कि जरूरत से ज्यादा ग्रीन टी आपके शरीर को नुकसान भी पहुंचा सकती है, इसलिए जरूरी है कि आप अधिक मात्रा में ग्रीन टी का सेवन न करें.

क्या आपको पता है कि ग्रीन टी पीने के अनेक फायदे हैं, आइये जानते हैं इसके असली फायदों के बारे में.

मानसिक शांति

यदि आप पर घर और आफिस मे काम का दबाव होता है और आप कुछ काम करने के बाद ही मानसिक रूप से थकान महसूस करने लगती हैं तो ग्रीन टी आपके इस मानसिक थकान को भगाने के लिए अच्छा रहेगा. ग्रीन टी में थेनाइन तत्व होता है, जिसमें एमिनो एसिड बनता है. एमिनो एसिड शरीर में ताजगी बनाए रखता है और आपको थकावट महसूस नहीं होने देता. जिससे आपको हमेशा ताजगी का एहसास होता है और मानसिक शांति भी मिलती है.

वजन कम करें

वजन कम करने में भी ग्रीन टी काफी हद तक सहायक है. ग्रीन टी पीने से आपके शरीर का मेटाबालिज्म बढ़ता है, जिससे पाचन क्रिया संतुलित रहती है. ऐसा होने से व्यक्ति का अतिरिक्त वजन कम होता है

नार्मल ब्लडप्रेशर

भागदौड़ भरी जिंदगी और आफिस की बढ़ती टेंशन के बीच उच्च रक्तचाप की अक्सर ही लोगों को उच्च रक्तचाप की समस्या का सामना करना पड़ता है. उच्च रक्तचाप आपके शरीर में अन्य कई बीमारियों का कारण भी हो सकता है. इसलिए यदि आपको ब्लड प्रेशर की समस्या है तो रोजाना ग्रीन टी पिए. इसे पीने से आपकी यह परेशानी नार्मल रहेगी. रक्तचाप सामान्य रहने से आपको गुस्सा भी नहीं आएगा.

कोलेस्ट्राल घटाएं

दिल के रोगियों के लिए ग्रीनटी का सेवन बहुत फायदेमंद है. ये शरीर में बेड कोलेस्ट्राल को कम करके गुड कोलेस्ट्राल को बढ़ाने में मददगार होती है. यदि आप आयली भोजन करती हैं तो आपको नियमित रूप से ग्रीन टी का सेवन करना चाहिए.

डायबिटीज में फायदेमंद

यदि आपके शरीर में शुगर लेवल बढ़ रहा है तो ग्रीन टी का सेवन आपको बहुत फायदा पहुंचाता है. इसके अलावा जिन रोगियों को डायबिटीज की दिक्कत हैं तो उन्हें प्रतिदिन सुबह उठकर एक कप ग्रीन टी पीनी चाहिए. यह आपके शरीर में मौजूद शुगर लेवल को कंट्रोल करने में आपकी मदद करता है. मधुमेह रोग से पीड़ित व्यक्ति को भोजन के बाद ग्रीन टी का सेवन करना चाहिए.

त्वचा में चमक

ग्रीन टी में एंटी एजिंग तत्व पाया जाता है जो आपकी त्वचा के लिए काफी फायदेमंद हैं. इसका सेवन करने से आपके चेहरे पर हमेशा चमक और ताजगी बनी रहती है साथ ही चेहरे की झुर्रियां भी कम होती है, इसके अलावा इसे पीने से आप चुस्त-दुरुस्त रहती हैं.

दांतों के लिए वरदान

आजकल युवा और बुजुर्गों में दांतों में पायरिया और केविटी की समस्या तेजी से बढ़ रही है. ग्रीन टी में पाया जाने वाले कैफीन दांतों में लगे कीटाणुओं को मारने में सक्षम होता है. बैक्टीरिया कम होने से आपके दांत लंबे समय तक सुरक्षित रहते हैं. इसलिए अगर आपको दांतो की समस्या है तो रोजाना एक कप ग्रीन टी का सेवन करना न भुलें, इससे आपके मसूड़ो में भी मजबूती आती है.

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