मिथ की सच्चाई: मोटा बच्चा हमेशा स्वस्थ्य नहीं होता

अमुमन सभी माताओं की एक ही चिंता रहती है कि उनके बच्चे का सही तरीके से विकास नहीं हो रहा, क्यों कि वह काफी दुबला है. गोलमटोल चेहरे और उभरी हुई जांघों वाले बच्चे उच्च ‘‘कडल कोटेटिव‘‘ के कारण आपके रिश्तेदारों के बीच पसंदीदा हो सकते हैं, लेकिन वे सभी तंदुरूस्त नहीं हो सकते हैं. वास्तव में, एक बच्चा स्वस्थ है या नहीं यह उसके शारीरिक स्वास्थ्य द्वारा निर्धारित नहीं किया जा सकता है. नवजात शिशु की औसत ऊंचाई 50 सेमी और औसत वजन करीब 3.25 किलो होना चाहिए.

अब यदि आपके शिशु की लम्बाई में 55 सेमी है और उसका वजन 3.3 किलो है उसे दुबला कहा जा सकता है. लेकिन वह सामान्य व स्वस्थ बच्चा है. कुछ शिशु एक आनुवंशिक है जिसकी वजह से दुबले रहते हैं जबकि कुछ का मॉडरेशन के बावजूद वजन बढ़ सकता है.

इसलिए, जब तक आपके बच्चे की उचित ऊंचाई और वजन का अनुपात नहीं होता, तब तक चिंता करने की आवश्यकता नहीं है.

क्या फैट एक चिंता का विषय है?

हां, क्योंकि कुछ शोधों से पता चला है कि एक मोटे बच्चे को भविष्य में मोटापा बढ़ने की संभावना अधिक हो सकती है. एक ऐसे युग में जहां गैर-संचारी रोग (एनसीडी) मोटापे, जीवन शैली विकल्पों और जंक फूड से शुरू हुआ, महामारी के अनुपात तक पहुंच गया है, शुरुआत से ही वजन बनाए रखना एक अच्छी शुरुआत है. बच्चों में जल्द से जल्द वजन की समस्याओं और मोटापे को खत्म करना, गंभीर चिकित्सा स्थितियों को पैदा करने वाले कारणों को कम कर सकता है. क्योंकि वे बड़े हो जाते हैं और पूरे परिवार को शामिल करके, आप वजन की समस्याओं और मोटापे के घेरे को तोड़ सकते हैं. साथ ही अपने बच्चों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा दे सकते हैं और उन्हें अच्छी डाइट सजेस्ट कर सकते हैं. यहां माता-पिता के लिए कुछ सरल मापदण्ड बताए जा रहे हैं ताकि वे अपने बच्चे को स्वस्थ्य वयस्कों के रूप में बड़ा कर सकें.

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1. स्तनपान:

कम से कम 6 महीने तक बच्चे को स्तनपान कराने से न चूकें. अध्ययनों से पता चला है कि इस अवधि के लिए स्तनपान करने वाले बच्चे दुबले हो सकते है लेकिन उनकी प्रतिरक्षा शक्ति अधिक होती है और संक्रमण और एलर्जीस होने की संभावना कम रहती है. भोजन पूरी तरह से बच्चे की पोषण सम्बन्धी जरूरतों के लिए बनाया गया है और हमेशा विकास की मांगों को पूरा करता है. इसके अलावा, स्तनपान करते समय आवश्यकता से अधिक खिलाना लगभग असंभव है, हालांकि, फार्मूला मिल्क फीडिंग के कारण  आमतौर पर अत्यधिक वजन बढ़ सकता  है.

2. बच्चे के रोते ही उसे फीड न कराए:

शिशु रो रहा है इसके मायने यह नहीं की उसे भूख ही लगी होगी. आमतौर पर ऐसा होता है कि माताएं बच्चे के रोते ही उसे फीड कराती हैं ताकि वह चुप हो जाए. बच्चे का वजन बढ़ने का एक प्रमुख कारण यह भी है. बच्चा क्यों रोता है कभी शायद भूख के कारण, लेकिन वे थके होने, असहज होने पर भी रो सकता हैं. यदि यह एक फीड के बाद से केवल कुछ समय के लिए है, तो आपको कुछ अन्य चीजों की कोशिश करनी चाहिए जैसे डायपर बदलने, पकड़ने , बात करने और खेलने की कोशिश करें. यह महत्वपूर्ण है कि बच्चे को दूध पिलाने के बारे में सोचने की बजाय बच्चे के लिए क्या सही है क्या गलत जानने की कोशिश करें.  खाने के साथ एक अस्वास्थ्यकर सम्बन्ध बनाते है तो उसे पूर्ववत करना आपके लिए कठिन होगा.

3. ओवरफीड न करें:

जब तक कि डॉक्टर यह न बता दें कि शिशु को अधिक पोषण की आवश्यकता है, हर कीमत पर ऐसा करने से बचें. बच्चे को खाना ख़त्म करना है जरूरी है पर  जैसे ही बच्चा इसे खाना बंद कर देता है, आपको रोकना चाहिए.

4. स्वस्थ ठोस भोजन दें:

जब तैयार हों (लगभग 6 महीने तक), अपने बच्चे को फल और सब्जियां, फलियां, साबुत अनाज दें, और यदि आप मांसाहारी हैं, तो अंडे, मछली और थोडा सा मीट उसे दे सकती हैं. इससे पहले कि वे चूजी हो जाए इस समय का उपयोग करें. आयरन-फोर्टिफाइड बेबी सीरियल्स अधिक मात्रा में नहीं दें.

5. परिवार का भोजन जल्दी शुरू करें

जो बच्चे अपने माता-पिता के साथ भोजन करते हैं, उनका वजन अधिक होने की संभावना कम होती है, इसलिए उन्हें खाने की मेज पर एक साथ बैठायें.   परिवार के साथ भोजन करना मजबूत रिश्ते बनाते हंै और बच्चों को स्कूल में सफल होने में मदद करते हैं.

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6. सुनिश्चित करें कि बच्चा सक्रिय रहे

अपने बच्चे को घुमाने ले जाएँ और  उसे व्यायाम की सलाह दें. चलना और दौड़ना सिखाएं, ‘टमी टाइम‘ करें, उसके चलने-फिरने या दौड़ने को प्रोत्साहित करें. उन्हें सैर के लिए बाहर ले जाएं और तय करें कि वे खुले स्थानों में चलते और दौड़ते हों.

7. अत्याधिक टीवी या गैजेट्स से दूर रखें:

अधिक समय तक टीवी या मोबाइल पर चिपके रहने से बच्चे की शारीरिक गतिविधिया कम हो जाती नतीजतन उसे भूख नहीं लगती, और इससे मोटापा बढ़ने की संभावना रहती है. इसके साथ ही उसके विकसित होते दिमाग पर भी इसका विपरीत असर पड़ता है.

हम अपने बच्चों को जो भोजन खिलाते हैं, वह उनके जीवन के पोषण का आधार बनता है. माता-पिता बच्चों को स्वस्थ पौष्टिक खाने के ट्रैक पर लाने के लिए जिम्मेदार हैं. डॉक्टरों को निश्चित रूप से माता-पिता (और देखभाल करने वालों) को सरल शिक्षा के माध्यम से ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए.

डॉ. रोहित अरोड़ा, हेड नियोनेटोलॉजी एवं पीडियाट्रिक, मिराकेल मेडिक्लीनिक एण्ड  अपोलो क्रेडल हौस्पिटल, गुरूग्राम से बातचीत पर आधारित.

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