मांबनने का एहसास दुनिया का सब से खूबसूरत एहसास होता है लेकिन 9 महीने की गर्भावस्था का यह समय काफी कठिन और नाजुक भी होता है. जरा सी लापरवाही से प्रैगनैंसी में कौंप्लिकेशंस आ सकते हैं. बच्चे के स्वास्थ्य पर असर पड़ सकता है. पहली और तीसरी तिमाही काफी नाजुक होती है. इसलिए इस समय मां को अपना भरपूर ख्याल रखना चाहिए. अपनी डाइट, लाइफस्टाइल, ऐक्सरसाइज के साथसाथ मैंटल हैल्थ को ले कर भी पूरी सतर्कता बरतनी चाहिए ताकि वह स्वस्थ बच्चे को जन्म दे सके.
हैल्दी प्रैगनैंसी के लिए इन बातों का खयाल जरूर रखें:
1- सही और पौष्टिक खानपान
गर्भावस्था के पूरे 9 महीने खानपान में कोई भी लापरवाही न बरतें. आप जो भी खाएंगी वह आप के शिशु को भी लगेगा. प्रैगनैंसी के दौरान ही नहीं बल्कि कंसीव करने से पहले और डिलीवरी के बाद भी महिलाओं को अपनी डाइट का ध्यान रखना चाहिए. प्रेगनेंसी में पौष्टिक आहार लेने से उस के मस्तिष्क का सही विकास होने में मदद मिलती है और जन्म के समय शिशु का वजन भी ठीक रहता है.
संतुलित आहार से शिशु में जन्मजात विकार से भी बचाव होता है. अकसर प्रैगनैंसी के पहले महीने में कुछ महिलाओं को उलटी, मितली, भूख न लगना, थकान जैसी परेशानियां होती हैं जिस से उन्हें खाने में परेशानी आती है. मगर इस समय भी अपनी डाइट में फाइबर से भरपूर सब्जियां, फल, नट्स, दूध आदि जरूर लें.
प्रैगनैंसी के 9 महीनों में शरीर शिशु के पोषण और विकास के लिए जी तोड़ मेहनत कर रहा होता है. इस समय में शरीर को पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन की जरूरत होती है जिसे उबले अंडे, मछली, कम वसा वाला मांस, बींस जैसे राजमा, लोबिया, मूंग और साबूत मूंग, मेवे, सोया और दाल आदि से पूरा किया जा सकता है. अंडा काफी पौष्टिक होता है. उस में प्रोटीन, बायोटिन, कोलैस्ट्रौल, विटामिन डी, ऐंटीऔक्सीडैंट आदि भरपूर मात्रा में होते हैं इसलिए ये भी प्रैगनैंट महिलाओं के लिए काफी फायदेमंद होते हैं.
प्रैगनैंसी के दौरान महिलाओं को अपने आहार में हरी पत्तेदार सब्जियां जैसे पालक, पत्तागोभी और ब्रोकली को शामिल करना चाहिए. इन के अलावा फलियां जैसे बींस और सहजन भी खाना चाहिए. इन में फाइबर, प्रोटीन, आयरन और कैल्सियम की अधिक मात्रा होती है जिन की जरूरत प्रैगनैंट महिलाओं को होती है.
2- सही और संयुक्त खानपान
ज्यादा फाइबर वाली चीजों का सेवन करें. प्रैगनैंसी के दौरान कब्ज की शिकायत बढ़ जाती है, इसलिए पाचनक्रिया का ठीक होना बहुत जरूरी है. कोशिश करें कि अपने फूड्स में ज्यादा से ज्यादा फाइबर लें. इस से कब्ज होने का खतरा नहीं रहता है.
सूखा मेवा भी प्रैगनैंसी में काफी सही आहार है. आप बादाम, अखरोट और काजू अपने आहार में शामिल कर सकती हैं. इन में कई तरह के विटामिन, कैलोरी, फाइबर और ओमेगा-3 फैटी ऐसिड होता है जिस की जरूरत मां और गर्भस्थ शिशु दोनों को होती है.
आप जो भी खाती हैं उस में एकतिहाई से थोड़ा ज्यादा हिस्सा कार्बोहाइड्रेट्स का होना चाहिए. सफेद के बजाय संपूर्ण अनाज वाली वैरायटी चुनें ताकि आप को पर्याप्त फाइबर मिल सके. प्रतिदिन दूध और डेयरी उत्पादों का सेवन करें जैसे दूध, दही, चीज, छाछ व पनीर लें. अगर आप को दूध नहीं पचता है तो कैल्सियम युक्त अन्य विकल्प जैसे छोले, राजमा, ओट्स, बादाम, सोया दूध, सोया पनीर आदि का चयन कर सकती हैं.
3- ध्यान रखें
सप्ताह में 2 दिन मछली लें. मछली में प्रोटीन, विटामिन डी, खनिज, ओमेगा-3 फैटी ऐसिड आदि होते हैं जो आप के शिशु के तंत्रिकातंत्र के विकास के लिए जरूरी होते हैं. यदि आप को मछली पसंद नहीं है या आप शाकाहारी हैं तो ओमेगा-3 फैटी ऐसिड अन्य खाद्यपदार्थों से पा सकती हैं जैसे मेवे, बीज, सोया उत्पाद और हरी पत्तेदार सब्जियों से.
आप को गर्भावस्था में 2 लोगों के लिए खाने की जरूरत नहीं है. भारत में अधिकांश डाक्टर दूसरी और तीसरी तिमाही में 300 अतिरिक्त कैलोरी के सेवन की सलाह देते हैं. फिर भी यह ध्यान रखें कि गर्भ में नन्हा शिशु पल रहा है और उस के लिए आप को खाना है न कि किसी बड़े व्यक्ति के लिए. प्रैगनैंसी के दौरान बहुत अधिक चाय, कौफी पीने से बचें. कौफी में मौजूद कैफीन सेहत को नुकसान पहुंचा सकती है. बेहतर है कि आप नीबू वाली चाय, हर्बल टी या कैफीन रहित ड्रिंक्स का सेवन करें.
बीचबीच में हैल्दी स्नैक्स का सेवन करें. इस के लिए आप रोस्टेड बादाम, काजू, मखाने, चने आदि खाएं. प्रैगनैंसी के दौरान कुछ चीजों के सेवन से बचना चाहिए जैसे कच्चा या अधपका मांस, कच्चा अंडा, पपीता आदि. आप उबला अंडा खा सकती हैं पर ध्यान रखें कि पीले वाला भाग अच्छी तरह से पक गया हो.
4- आयरन
शरीर में हीमोग्लोबिन बनाने के लिए आयरन की जरूरत होती है. हीमोग्लोबिन लाल रक्त कोशिकाओं में पाया जाने वाला प्रोटीन है जो शरीर के विभिन्न अंगों तथा ऊतकों में औक्सीजन पहुंचाने का काम करता है. डाक्टर द्वारा बताए गए सप्लिमैंट्स के अलावा पर्याप्त मात्रा में आयरन से भरपूर भोजन खाएं ताकि आप का आयरन का स्तर ऊंचा रहे. अपने भोजन में आयरन से भरपूर फूड्स जैसे अनार, चुकंदर आदि को शामिल करें. फौलिक ऐसिड का सेवन भी प्रैगनैंसी के दिनों में बहुत जरूरी होता है.
सीडीसी (सैंटर्स फौर डिजीज कंट्रोल ऐंड प्रिवैंशन) के अनुसार गर्भावस्था की योजना बना रही महिलाओं को कम से कम 1 महीना पहले और गर्भावस्था के दौरान प्रतिदिन 400 मिलीग्राम फौलिक ऐसिड का सेवन करना चाहिए. फौलिक ऐसिड विटामिन बी का एक रूप है जो शिशु की मस्तिष्क व रीढ़ से जुड़े जन्मदोष से बचाव कर सकता है. इसे आप हरी पत्तेदार सब्जियों, दालों, फोर्टिफाइड अनाज के सेवन से पा सकती हैं. प्रैगनैंसी के पहले 3 महीनों में आप को फौलिक ऐसिड सप्लिमैंट्स लेने की जरूरत होगी क्योंकि यह भू्रण को हैल्दी रखने में मदद कर सकता है.
5- खुद को हाइड्रेटेड रखें
खुद को हाइड्रेटेड रखने की कोशिश करें. अपने साथ हमेशा एक बोतल पानी रखें और बीचबीच में पानी पीती रहें. साथ ही नारियल पानी, स्मूदी, फलों से तैयार जूस और शेक्स भी पी सकती हैं ताकि शरीर में पानी की कमी न हो. डाइट में उन फलों को शामिल करें जिन में पानी की मात्रा अधिक होती है. खीरा, खरबूज, लौकी, तरबूज आदि खाएं. दिनभर में कम से कम 3 से 4 लिटर पानी और 1 से 2 गिलास जूस पीएं. ऐसा करने से शरीर में मौजूद विषैले पदार्थ शरीर से बाहर निकल जाते हैं. पानी आप के यूरिनरी ट्रैक के संक्रमण को रोकने में मदद करता है जिस का खतरा गर्भवती महिलाओं में अधिक होता है. शरीर में पर्याप्त पानी होने से गर्भावस्था के दौरान निर्जलीकरण और सूजन से भी बचाव होता है.
6- शारीरिक रूप से ऐक्टिव रहें
प्रतिदिन रात डिनर करने के बाद 15 से 30 मिनट टहलें. इस से शरीर में ब्लडसर्कुलेशन सही बना रहेगा. इस से डिलिवरी के समय अधिक समस्या नहीं होगी. सप्ताह में कम से कम 5 दिन 30 मिनट के लिए ब्रिक्स वाक करें. इस से शरीर को गर्भावस्था और प्रसव के दौरान होने वाले सभी परिवर्तनों से निबटने में मदद मिल सकती है. आप फिजिकली और इमोशनली फिट महसूस करेंगी. ब्रीदिंग ऐक्सरसाइज से भी फायदा होगा. लेकिन भारी वजन उठाने वाली और कठिन व्यायाम करने से बचें. रोजाना अपनी क्षमतानुसार कुछ हलके ऐक्सरसाइज करें. नियमित रूप से हलके व्यायाम करने के बहुत फायदे हैं. आप के जरीए शिशु को भी इन का लाभ मिलेगा.
7- तनाव से दूरी
किसी बात को ले कर चिंतित या तनाव में न रहें. इस से मानसिक और शारीरिक सेहत को नुकसान पहुंच सकता है. स्ट्रैस के कारण कंसीव करने में भी दिक्कत आ सकती है. यहां तक कि प्रीमैच्योर लेबर भी हो सकता है. यही वजह है कि प्रैगनैंट महिलाओं को खुश रहने की सलाह दी जाती है.
8- आराम
शरीर को पर्याप्त आराम दें. गर्भावस्था के शुरुआती महीनों में महिलाएं थकान महसूस करती हैं. ऐसा उन के शरीर में स्रावित हो रहे गर्भावस्था हारमोन के उच्च स्तर की वजह से होता है. बाद में यह थकान रात में बारबार पेशाब के लिए उठने या फिर बढ़े पेट की वजह से आराम से न सो पाने का कारण बन सकती है.
करवट ले कर सोने की आदत डालें. तीसरी तिमाही में करवट ले कर सोने से शिशु तक रक्त का प्रवाह बेहतर रहता है. करवट ले कर सोने से मृत शिशु के जन्म का खतरा पीठ के बल सोने की तुलना में कम होता है.
जब तक शिशु सुरक्षित तरीके से जन्म नहीं ले लेता तब तक अपने डाक्टर के संपर्क में बनी रहें. जब भी आप को शरीर में किसी तरह की परेशानी या बेचैनी अथवा कोई और समस्या नजर आए तो तुरंत डाक्टर से संपर्क करें. डाक्टर आप के घर के करीब का हो तो ज्यादा अच्छा है क्योंकि जरूरत पड़ने पर आप तुरंत उन के पास पहुंच जाएंगी.