हाइकिंग पर जाने का बना रहे हैं प्लान, तो जानें कुछ जरूरी बातें

हाईकिंग या पैदल यात्रा एक आउटडोर गतिविधि है, जिसमें प्राकृतिक वातावरण में लंबी दूरी तक पैदल यात्रा करना होता है, यह इतनी लोकप्रिय गतिविधि है कि दुनियाभर में कई हाईकिंग संगठन इस बारें में सक्रिय हैं, जो समय समय पर लोगों को कम दाम पर लंबी और रोमांचक दूरी तय करने के लिए प्रेरित करती है. हाइकिंग आजकल सभी के लिए एक ट्रैंड बन चुका है, जिसमें युवा से लेकर व्यस्क, जिन्हें प्राकृतिक परिवेश में चुनौतीपूर्ण लंबी पैदल यात्रा पसंद होता है. वे जाना पसंद करते हैं. इतना ही नहीं हाइकिंग करते वक्त वे कभीकभी दुर्लभ या लुप्तप्राय प्रजातियों को देखने का आनंद लेते हैं, जिसे आम स्थान पर देखना संभव नहीं होता.

क्या कहती है आंकड़े

हाइकिंग पर जाने वालों की आंकड़े को देखे तो पता चलता है कि आउट्डोर हाइकिंग की संख्या में पिछले कुछ वर्षों में विश्व में 70 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, इसमें इंडिया की संख्या सबसे अधिक रही. इसकी वजह बहुत हद तक कोविड के बाद से वर्क फ्रौम होम करने वालों की संख्या अधिक देखी गई, इनमें भी आईटी सेक्टर में काम करने वालों की संख्या अधिक रही.

ये अधिकतर ग्रुप में या अकेले भी जाते है, जिसमें जीपीएस यानि ग्लोबल पोज़िशनिंग सिस्टम काम करता है, जिसके द्वारा व्यक्ति आसानी से किसी ट्रैल या पगडंडी को पकड़ते हुए अपनी मंजिल तक पहुंचता है. भारत में ऐसे कई ट्रैलिंग क्षेत्र है, जहां लोग जाना पसंद करते है. आजकल देश के युवा केवल देश में ही नहीं विदेशों में भी हाइकिंग का शौक रखते है, जिसमें उत्तरी अमेरिका, दक्षिण अमेरिका, पूर्वी अफ्रीका, आस्ट्रेलिया, नेपाल आदि कई स्थान चर्चित है.

विदेश में हाइकिंग का शौक

अगर आप विदेश में हाइकिंग पर जाने का शौक रखते हैं, तो उत्तरी अमेरिका के कासकेड माउंटेन रेंज की कई ट्रैल्स में हाइकिंग का आनंद उठा सकते हैं, क्योंकि यहां की प्राकृतिक वनस्पति और सुन्दर जलवायु सभी को अपनी ओर आकर्षित करती है. हाईकर अक्सर सुंदर प्राकृतिक वातावरण की तलाश करते हैं, जहां वे हाईकिंग कर सके. पहाड़ों पर कई ऐसे खूबसूरत जगह है, जहां पर जमीनी मार्ग से होते हुए सिर्फ हाईकिंग द्वारा ही पहुंचा जा सकता है और उत्साही लोग प्रकृति को देखने के लिए हाईकिंग को सबसे अच्छा तरीका मानते हैं.  हाईकर इसे, किसी भी तरह के वाहन में बैठकर घूमना पसंद नहीं करते.

30 वर्षीय सुनीता को भी हाइकिंग का बहुत शौक है, काम से जब भी उसे समय मिलता है, हाइकिंग पर निकल जाती है. उन्होंने देश में ही नहीं विदेशों में भी हाइकिंग किया है. उनके हिसाब से हाइकिंग मानसिक तनाव को कम करने और शारीरिक फिटनेस को बनाए रखने का सबसे बेहतर तरीका है, जिसमें उस पूरे दिन सुंदर प्रकृति को नजदीक से देखने का अवसर मिलता है. उन्होंने भारत के पश्चिमी घाट के अलावा विदेशों में पूर्वी अफ्रीका और उत्तरी अमेरिका में भी हाइकिंग कर चुकी है.

हाइकिंग का इतिहास  

वर्ष 1336 में फ्रांसेस्को पेट्रार्का पहले व्यक्ति थे, जिनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने सिर्फ अनुभव के लिए पहाड़ पर चढ़ाई की थी. इसके अलावा हाइकिंग का इतिहास पुराना है, क्योंकि मनुष्य ने पूरे इतिहास में विभिन्न कारणों से लंबी दूरी पैदल चलकर तय की है. मूल अमेरिकी जनजातियों से लेकर प्राचीन पगडंडियों पर मार्च करने वाली सेनाओं तक, सभी ने पैदल चलकर रास्ता तय किया है. पैदल चलना सदियों से मानव जीवन का एक हिस्सा रहा है. मध्य युग के दौरान दक्षिणी फ्रांस के मोंट वेंटौक्स पर्वत की चोटी की कई लंबी दूरी की पैदल यात्रा का वर्णन मिलता है. सबसे पहला उदाहरण फ्रांसीसी दार्शनिक जीन बुरिदान का है, जिन्होंने मौसम संबंधी टिप्पणियों के लिए वर्ष 1334 से पहले कभी इस चोटी पर चढ़ाई की थी.

भारत में भी पहले सेना, व्यापारी नई जगह की तलाश में लंबी दूरी पैदल चलकर जाते थे, इसमें वे अपने मवेशियों और खाने की समान के साथ चल देते थे, जिसमें कई बार बीमारी, किसी प्राकृतिक दुर्घटना या बिना भोजन पानी के रास्ते में दम तोड़ देते थे. इतना ही नहीं, राजामहाराजा भी अपने ग्रुप के साथ शिकार पर लंबी दूरी का रास्ता तय करते थे. ब्रिटिश राज में भी श्रीनगर से लेह की दूरी पैदल चलकर तय करने के उदाहरण है, लेकिन समय के साथ -साथ हाइकिंग अब मनोरंजन या आनंद में बदल चुका है. आजकल हाइकिंग सबसे अधिक युवाओं के लिए आकर्षक ट्रेंड बन चुका है.

हाइकिंग के प्रकार  

हाइकिंग भी कई प्रकार के होते हैं, डे हाइक उस हाइक को कहते है, जिसे एक दिन में पूरा किया जा सकता है, इसका प्रयोग अक्सर पहाड़ी हाइक या झील अथवा शिखर के लिए किया जा सकता है. इसमें रात्रिकालीन शिविर की आवश्यकता नहीं होती है. सुबह से हाइकिंग पर निकाल कर सूरज ढलने से पहले ही व्यक्ति नीचे उतर जाता है. आस्ट्रेलियाई लोग पगडण्डी वाले और बिना पगडण्डी वाले रस्ते पर चलने के लिए बुशवाकिंग शब्द का प्रयोग करते हैं. न्यूजीलैंड के लोग ट्रैम्पिंग (विशेष रूप से रात भर चलने वाले और उससे लम्बी हाईकिंग के लिए), वाकिंग या बुशवाकिंग शब्द का प्रयोग करते हैं.  भारत, नेपाल, उत्तरी अमेरिका, दक्षिण अमेरिका और पूर्वी अफ्रीका के पहाड़ी क्षेत्रों में हाईकिंग को ट्रैकिंग कहा जाता है; डच भी ट्रेकिंग का उल्लेख करते हैं. लम्बी पगडंडियों पर एक छोर से दूसरे छोर तक लम्बी दूरी की हाईकिंग को भी ट्रेकिंग और कुछ स्थानों में थ्रूहाईकिंग के रूप में भी जाना जाता है. उदाहरण के लिए अमेरिका का अप्लेशियन ट्रैल  (AT)  2,190+ मील लंबा है. हर साल यहां हजारों हाइकर्स थ्रूहाइक का प्रयास करते हैं, जिसमें चार में से केवल एक ही इसे पूरा कर पाता है. एक सामान्य थ्रूहाइकर को पूरे अप्लेशियन ट्रैल को हाइक करने में 5 से 7 महीने लगते हैं. यह 14 राज्यों से होकर गुजरती है और अमेरिका में तीन “ट्रिपल क्राउन” ट्रेल्स में से सबसे लोकप्रिय और पुरानी पगडंडी है.

हाइकिंग या ट्रेकिंग से पहले जाने कुछ जरूरी बातें,

  • पहली बार हाइकिंग पर जाएं तो ग्रुप में जाएं और किसी गाइड को साथ में रखें तो ज्यादा अच्छा होगा. इसके अलावा अपने घर पर भी इसकी जानकारी दें.
  • हाइकिंग पर जाने के लिए सबसे जरूरी होता है सही जूते का चयन करना, ताकि जूते आरामदायक और मजबूत हो, जिसका चलने का हिस्सा अच्छा हो या कम से कम नीचे से चिकना न हो, ऐसे जूते जो ज़मीन को पकड़ सकें, पैरों को सही तरह से नीचे रखने में मदद करें. उदाहरण के लिए यदि आप गंदगी या धूल भरे पहाड़ी रास्ते पर चढ़ रहे हैं, तो किसी प्रकार की समस्या न हो, हाइकिंग बूट हल्के वजन वाले होने चाहिए, जिससे चलने में आसानी हो.
  • ट्रेल पर आरामदायक बैग पैक का होना आवश्यक होता है, जिससे आपकी पीठ पर कोई चीज़ न चुभे और न ही आपका संतुलन बिगड़े, साथ ही  अनुभव को भी मज़ेदार बनाना पड़ता है, ऐसे में जरूरी चीज़ों (स्नैक्स और पानी) को सही तरह से पैक कर लेना जरूरी होता है. चौकलेट या टौफी साथ में रखें.
  • हाइकिंग से पहले उस स्थान की पूरी जानकारी लें, जो आप औनलाइन ले सकते है. जब आप कोई रास्ता चुन रहे हों, तो आपको यह सोचना होगा कि आप कितनी दूर तक पैदल चलना चाहते हैं और ऊपर और नीचे की ओर पैदल चलने में आपकी सहजता का स्तर क्या है. अधिकांश ट्रेल मैप यह जानकारी और निर्देश प्रदान करते है, हालांकि खुद को आगे बढ़ाना फायदेमंद हो सकता है, लेकिन जब तक आपको अपनी शारीरिक फिटनेस और क्षमता के बारे में अच्छी समझ न हो जाए, तब तक छोटी दूरी की पैदल यात्राएं चुनें और फिर वहाँ से आगे बढ़ें, अचानक ही किसी बड़ी और दुर्गम ट्रैल को पहली बार न चुने. रूट की गलत जानकारी आपको रास्ते से भटका सकती है.
  • रूट की जानकारी के अलावा रूट के मौसम की जानकारी भी लें, इससे आपको पैकिंग करने में आसानी होगी.
  • हाइकिंग कभी भी टाइट कपड़े पहन कर न करें. ढीले और आरामदायक कपड़ों में भी ट्रैकिंग करें और कपड़े मौसम के मुताबिक ही पहनें.
  • किसी झील या किसी झरने के पास कैंप लगाना हो तो कम से कम 200 फीट दूरी पर ही कैंप लगाएं और कैंप को हमेशा समतल जमीन पर ही लगाएं.
  • अगर किसी जंगली इलाके में जा रहे हैं, तो जानवरों को दूर से ही देखें उनके पास जाने की कोशिश न करें. साथ ही अगर आपकी ट्रैल किसी जंगली इलाके में हो तो, साथ में ऐन्टिसेप्टिक क्रीम अवश्य ले लें, ताकि कीड़ेमकौड़े के काटने पर लगाया जा सकें.
  • अपने छोड़े हुए कूडे़ को रास्ते में न फेंके अपने साथ पैक करके ले जाएं, ऐसा करने से आप वहां के पर्यावरण को बनाए रखने में सहयोग दें सकेंगे.
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