Hindi Kahaniyan : उस मुलाकात के बाद

Hindi Kahaniyan : शादी के बाद महिला मित्र रखने की कल्पना निहायत सोशल मीडियाई चीज है. मगर चाह हम सब पतियों में होती है. अनेक छिप कर ऐसा करने में कामयाब भी हो जाते हैं. अमूमन अपनी पत्नी को उस के द्वारा ही सताए जाने की पीड़ा का एहसास करा कर. खैर, यह किस्सा ऐसे ही एक हब्बी का है.

सहूलत के लिए मान लीजिए उस का नाम आनंद है. अब साहब आनंद को 4 साल की डेटिंग और शादी के 9 साल बाद जो मिली, वह न तो कुंआरी थी और न ब्याहता और न ही डाइवोर्सी उस का पति एक रात गौतम बुद्ध की तरह उसे सोता छोड़ कर चला गया था. उस समय वह सो तो नहीं रही थी और यह भी यह सोच कर उस के दर से उठा था कि वह रोक लेगी, मना लेगी उसे पर वह बेचारा फिल्मी तर्ज पर बढ़ता दूसरे शहर जा पहुंचा जहां उस ने एक नई नौकरी तलाशी, एक नया मकान किराए पर लिया.

अब जब आनंद एक दफ्तर में मुंह बनाए इस चौराहे पर देवी से मिला तो उसे एक पुरुष की तलाश थी, जो सहारा तो बने, पर कहे नहीं कि वह सहारा है. आप समझे कि नहीं. मतलब दे, पर ले नहीं. एहसान करे, जताए नहीं. जब बुलाए आए, जब कहे जा तो जाए. घूमने, पब या बार में जाने और खाना खाने के लिए वह अकेली थी, पर वैसे जमाने के लिए शादीशुदा.

खैर, आनंद भी अपनी पत्नी के भरपूर सताए जाने के बाद भी उसे छोड़ने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था. छोड़ भी दे तो दोबारा शादी करने का तो सवाल ही नहीं पैदा होता था. लिहाजा, उसे भी यह स्थिति बड़ी सहज लग रही थी. वह भी चाहता था कि कोई उसे पत्नी का सुख दे, पर उस पर पत्नी बन कर लदे नहीं. दोनों तरफ से बराबर का मुकाबला था. वे लोग आहिस्ताआहिस्ता एकदूसरे की तरफ बढ़ रहे थे. देखतेदेखते 1 साल गुजर गया. दोनों एकदूसरे के दफ्तर में बेमतलब के काम निकाल कर आतेजाते रहते.

एक दिन वह बोली, ‘‘एक काम करोगे?’’

‘‘और सालभर से क्या रह रहा हूं,’’ वह बोला.

‘‘मैं अपने उस से मिलना चाहती हूं. मुझे मिलवाने चलो.’’

‘‘कहां?’’

‘‘वहीं जहां वह रहता है.’’

‘‘मिल कर क्या करोगी?’’

‘‘दोदो हाथ.’’

‘‘और मैं?’’

‘‘तुम बस वापस ले आना,’’ वह बोली.

मतलब साफ था. वह अपने उस से समझौता करना चाहती थी और अब आनंद को स्टैपिनी की तरह इस्तेमाल कर रही थी. आनंद को ऐसी चुहलबाजी में काफी मजा आता था. बहरहाल, पिया के शहर का सफर शुरू हुआ. उस ने अपनी गाड़ी उठाई और उसे बराबर की सीट पर बैठा कर उसे ले चला.

रास्तेभर वह रिहर्सल करती रही. ‘वह यह कहेगा तो मैं यह कहूंगी. पहली बार हम कहां मिले थे. आखिरी बार क्या बातें हुई थीं?’

आनंद की तसल्ली के लिए वह उस से भी पूछती रहती थी कि तुम पहली बार अपनी वाली से कहां मिले थे? तुम उस की जगह होते तो क्या कहते, क्या करते?

बड़ी हिम्मत कर के बीच आधे सफर में आनंद ने पूछा, ‘‘तुम लोगों का मिलन हो गया तो मेरा क्या होगा?’’

‘‘होना क्या है, हम लोग ऐसे ही मिलते रहेंगे. अरे, तुम देख लेना समझौता मेरी शर्तों पर होगा… तुम उसे जानते नहीं हो. वह इतने छोटे दिल वाला नहीं है. अरे, शादी से पहले और शादी के बाद मेरे दोस्त अकसर घर आते थे,’’ वह तन कर बोली.

‘‘क्या उस की महिला दोस्त भी?’’

‘‘नहीं, वह नहीं. पर मुझे कोई एतराज

नहीं होता.’’

‘‘पर कहीं तुम्हारी शादी इस वजह से तो नहीं टूटी कि तुम्हारे मेल फ्रैंड्स थे?’’

‘‘नहीं, मुझे तो नहीं लगता.’’

ऐसी सब बातों के बीच सफर किसी तरह खत्म हुआ. अब हम दोनों एक होटल में थे. उस ने सूटकेस से बढि़या साड़ी निकाल कर पहनी. एक पार्लर से फेशियल करवाया. सैंट छिड़का और आनंद को छोड़ कर वह अपने खोए पति को फिर पाने के लिए उस के घर की ओर चल दी. मेरी गाड़ी ही चला कर.

2 घंटे का वादा कर के गई थी. मगर जब 5 घंटे बाद तक नहीं लौटी तो आनंद समझ गया कि उन का घर फिर बस गया. उसे अचानक अपने बीवीबच्चों की याद आ गई. उस ने नींद की 2 गोलियां खाईं और सो गया कि अगले दिन वापस चलने की तैयारी की जाए.

आधी रात के बाद दरवाजे पर हलकी सी दस्तक हुई. आनंद हड़बड़ा कर उठा पर ठिठका कि कहीं वह साथ में तो नहीं आया. हो सकता है भावुकता में उस ने सबकुछ मान लिया हो. पर तभी उसे याद आया कि वह ऐसी नहीं है.

वही थी. जीवन में फिर बहार थी. मुसकान लौट आई थी. बिंदी अपनी जगह से फैल गई थी. बाल बिखरे थे, होंठों की गहरी लिपस्टिक हट चुकी थी. शायद उस के मुंह में जा चुकी थी.

‘‘मुबारक हो.’’

‘‘ओह, छोड़ो यार,’’ उस ने आनंद को पहली बार यार कहा था, ‘‘हो गया.’’

‘‘होना क्या था? तुम सब आदमी सिर्फ औरत को झुकाना जानते हो,’’ वह काफी उत्तेजित थी.

मैं ने छेड़ना ठीक नहीं सम. वह कुछ देर रोती रही. फिर हंसने लगी. फिर पता नहीं कब हम दोनों सो गए.

सुबह चाय पर बात हुई. फैसला यह हुआ था कि  लड़ कर उस ने उसे निकाला था, वह पहल नहीं करेगा. अगर वह चाहे तो लड़के के जीवन में अपने लिए जगह तलाश कर सकती है.

मैं ने कहा, ‘‘हिंदी की ठोस कविता बंद करो. साफसाफ बताओ उस ने तुम्हें छुआ?’’

‘‘हां. बस बात बन गई.’’

‘‘अब घर चलें?’’ मैं ने पूछा.

‘‘नहीं, अभी मिलना है. आज भी और

कल भी.’’

‘‘तो मिलो. दिक्कत क्या है.’’

‘‘और तुम?’’

‘‘मैं भी मिल लेता हूं,’’ मैं ने हिचकते हुए कहा.

‘‘गड़गड़ मत करो. देखो, बात बड़ी साफ है. हमारे बीच जो गुजर गया वह लौट नहीं सकता. यह तो जमाने के तानों से बचने के लिए मैं ने पहल ही है वरना न मुझे उस की जरूरत है और न उसे मेरी. वह अलग शहर में रहेगा, मैं अलग. उस के पास मुझे पालने के लिए पैसे नहीं हैं. शादी से पहले के रोमानी खयाल अब पीले पड़ चुके हैं. जिंदगी की हकीकत में अब इश्क नहीं नाटक होगा,’’ वह सीरियस हो कर बोली.

‘‘मेरा क्या होगा जानेमन?’’

‘‘तुम तो शादी के लिए पहले भी तैयार नहीं थे. लिहाजा, वही होगा जो अब तक होता रहा है. हम लोग अच्छे दोस्त हैं और रहेंगे. पर अब तो तुम लोग एक मुलाकात और नजदीक आ गए हो. जब की तब देखी जाएगी,’’ उस के पास मानो जवाब तैयार था.

दोनों वापस अपने शहर लौट आए. इस बीच आनंद की बीवी को पता लग गया कि वह 2 रोज क्या करता रहा है.

शहर पहुंचने के अगले दिन आनंद दफ्तर आया तो उस के गालों और गले पर नाखूनों के गहरे निशान थे. रात को जम कर लड़ाई हुई लगता है.

अब निष्कर्ष यही है कि आनंद भी पत्नी को सोता छोड़ दूसरे शहर जा कर रहेगा.

कहानी का मोरल यही है कि किसी की सुताई हुई, छोड़ी हुई का खयाल रखना गरम रौड पर हाथ रखना होता है. छोड़ी हुई के मन को समझना आसान नहीं है.

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