‘श्यामली बुटीक’ लखनऊ शहर में किसी परिचय का मुहताज नहीं था. होता भी क्यों, क्योंकि श्यामलीजी के जीवन का मोटो था कि अपने काम में परफैक्शन. इसी लक्ष्य के कारण कुछ वर्षों में ही उन का बुटीक शहर का सब से अच्छा बुटीक बन गया.
श्यामलीजी की मीठी, मधुर आवाज और चेहरे पर खिली मुसकान के साथ कस्टमर की पसंद को समझते हुए समय पर काम पूरा कर के वे उन्हें खुश कर देती थीं.
अब तो उन की बेटी राशि भी फैशन डिजाइनिंग का कोर्स कर के आ गई थी और बुटीक में उन का हाथ बंटा रही थी. बेटा शुभ अमेरिका पढ़ने गया तो वहीं का हो कर रह गया.
सोम उन के बुटीक के मैनेजर बन गए थे. उन के बालों की चांदनी, आंखों में चश्मा और थकती काया उन से रिटायरमैंट का इशारा करती दिखाई देती थी.
रात के 8 बजने वाले थे. श्यामलजी बुटीक बंद करवाने की सोच ही रही थीं कि दौड़तीहांफती वन्या उन के सामने आ कर खड़ी हो गई. फिर बोली, ‘‘मैम, मेरा लहंगा रैडी है?’’
‘हां…हां… आप ट्रायल कर लो, तो मैं फिनिशिंग करवा दूं.’
वन्या ट्रायलरूम में लहंगा पहन कर बाहर आते ही उन से लिपट कर बोली, ‘‘थैंक्यू मैम, आप के हाथ में जादू है.’’
वन्या की मां प्रज्ञा ने अपने बैग से कार्ड निकाला और फिर उन्हें देती हुए बोलीं, ‘‘दी, आप को शादी में जरूर आना है.’’
श्यामलीजी ने कार्ड को खोल कर देखते हुए कहा, ‘‘वैरी नाइस कार्ड.’’
‘‘7 दिसंबर… वाह जरूरी आऊंगी.’’
7 दिसंबर तारीख देखते ही श्यामलीजी अपने अतीत में खो गईं. पुरानी यादें चलचित्र की तरह उन की आंखों के सामने सजीव हो उठीं…
लखनऊ के पास सुलतानपुर एक छोटा सा शहर है. वे वहां रहती थीं. 3 बहनों और 2 भाइयों में वे सब से बड़ी थीं. पढ़ाई से अधिक सिलाईकढ़ाई में रुचि थी. जब वे छोटी थीं, तभी मां के दुपट्टे या साड़ी से अपनी गुडि़या के लिए तरहतरह के डिजाइनर लहंगे और दूसरी पोशाकें बनाया करती थीं.
ये सब देख कर मां कहतीं कि तुम्हें फैशन डिजाइनिंग का कोर्स करवा देंगे. बीए पास करने के बाद फैशन डिजाइनिंग का कोर्स कर लिया. पापा को शादी की फिक्र होने लगी थी. उन के पास दहेज देने के लिए बड़ी रकम तो थी नहीं. वे नैट पर लड़कों का प्रोफाइल देखने में लगे रहते थे.
श्यामली का चेहरा गोल था, रंग गेहुंआ, लेकिन कटीले नैननक्श की वे नाजुक सी आकर्षक लड़की थीं. चचंल चितवन और प्यारी सी मुसकराहट सब को आकर्षित कर लेती. वे खाना बहुत अच्छा बनातीं इसलिए अपने पापा की अन्नपूर्णा थीं.
पापा को सोम का प्रोफाइल पसंद आया था. उन्होंने उन का बायोडाटा और छोटा सा फोटो उन के पिता के पास भेज दिया. सोम के पिता का लखनऊ के अमीनाबाद में खूब चलता हुआ बड़ा सा मैडिकल स्टोर था. अच्छाखासा संपन्न परिवार और साथ में इकलौता बेटा तो सोने में सुहागा जैसा था.
सोम के पिता केशवजी के फोन ने उन के घर में खुशियों की हलचल मचा दी. उन्होंने मेल आईडी मांगी. बस फिर शुरू हो गई थी सोम के साथ चैटिंग. सोम की प्यारभरी मीठीमीठी बातों ने श्यामलीजी के दिल के तार झंकृत कर दिए.
जल्दी ही शादी की शहनाइयां बज उठीं. वे अपने मन में सुनहरे भविष्य के रंगबिरंगे सपने संजो कर सोम का हाथ पकड़ कर उन की बड़ी सी कोठी में प्रवेश कर गईं. वे खुशी से फूली नहीं समा रही थीं.
सोम की बांहों के घेरे में सिमट कर वे विश्वास ही नहीं कर पा रहीं थीं कि उन की दुनिया इतनी हसीन भी हो सकती है.
श्यामली सोम के प्यार में डूबी थीं, लेकिन उन का रवैया कुछ समझ नहीं आ रहा था. 1-2 महीनों में उन्हें थोड़ा बहुत इशारा मिल गया कि सोम दुकान पर केवल पैसा लेने जाते और फिर दोस्तों के साथ सिगरेट, शराब और लड़कियों की संगत में ऐश की लाइफ जीने के शौकीन हैं.
सोम बातबात पर उन्हें डांट देते थे, इसलिए वे उन से डरने लगी थीं. एक शाम सोम ने उन से क्लब चलने के लिए तैयार होने को कहा. वे अपने कमरे में तैयार हो रही थीं. तभी उन्हें सोम की पापा के साथ जोरजोर की कहासुनी की आवाजें सुनाई देने लगीं.
सोम के चेहरे पर तनाव देख कर उन्होंने उन से पूछा भी था कि क्या बात है? पापा क्यों नाराज हो रहे थे? इस पर सोम का जवाब था कि अपने काम से काम रखा करो.
उस दिन श्यामलीजी बड़े मन से तैयार हुई थीं. ब्लैक साड़ी में बहुत खूबसूरत लग रही थीं.
ट्रैफिक में फंस जाने के कारण वे लोग क्लब काफी देर से पहुंचे. वहां कौकटेल पार्टी चल रही थी. सैक्सी ड्रैसेज पहनी महिलाओं के हाथ में डिं्रक के गिलास थे. श्यामली घबरा कर सोम के पीछे छिपने लगी थीं. उन के लिए वहां का माहौल एकदम से नया और अजीब सा था.
सोम के मित्र अतुल ने उन्हें ड्रिंक का गिलास औफर किया. श्यामलीजी ने घबरा कर कहा, ‘‘मैं ड्रिंक नहीं करती.’’
सोम ने गिलास ले कर जबरदस्ती उन के मुंह में लगा दिया, ‘‘छोड़ो भी यह बी ग्रेड देहाती मैंटेलिटी. अब तुम रईसों वाले शौक करो और ऐश की जिंदगी जीयो.’’
श्यामलीजी की आंखों से अश्रुधारा बहने लगी. वे कोने में जा कर बैठ गईं. नौनवैज खाना देख खाने के पास भी नहीं गईं.
उस दिन उन के कारण सोम को अपनी बेइजती महसूस हुई थी. वे सारे रास्ते उन्हें भलाबुरा कहने के साथसाथ गालियां भी देते रहे थे.
इतनी गालीगलौज के बाद भी वे श्यामलीजी के तन को रौंदना नहीं भूले थे. वे रातभर सिसकती रही थीं. समझ नहीं पा रही थीं कि उन्हें ऐसी स्थिति में क्या करना चाहिए. अगली सुबह सब कुछ उलटपुलट कर उन के जीवन में अघटित घट गया. पापाजी रात में सोए तो उन्होंने सुबह आंखें ही नहीं खोलीं. सब कुछ बदल चुका था. मम्मीजी श्यामलीजी को अपशगुनी कहकह कर रो रही थीं. उन की शादी को अभी मात्र 2 महीने ही हुए थे.
नातेरिश्तेदारों की भीड़ के सामने मम्मीजी का एक ही प्रलाप जारी रहता कि बिना दानदहेज की तो बहू लाए और वह भी ऐसी आई कि मेरी जड़ ही खोद दी. इस ने तो हमें बरबाद कर दिया.
यह ठीक था कि सोम दुखी थे, लेकिन वे मम्मीजी को चुप भी तो करा सकते थे, परंतु नहीं. वे उन से खिंचेखिंचे से रहते, लेकिन रात में उन के शरीर पर उन का पूरा अधिकार होता. उन की इच्छाअनिच्छा की परवाह किए बिना वे अपनी भूख मिटा कर करवट बदल कर खर्राटे भरने लगते.
श्यामलीजी उदास और परेशान रहतीं, क्योंकि वहां उन का अपना कोई न था, जिस से वे अपने मन का दर्द कह सकें.
उन्हीं दिनों उन के शरीर के अंदर नवजीवन का स्फुरण होने लगा. वे समझ नहीं पा रही थीं कि हंसे या फूटफूट कर रोए. विद्रोह करने की न ही प्रवृत्ति थी और न ही हिम्मत. वे अपनी शादी को टूटने नहीं देना चाहती थीं. वे रिश्तों को निभाने में विश्वास रखती थीं. दोनों की इज्जत का समाज में मजाक नहीं बनने देना चाहती थीं. सोम मैडिकल स्टोर में बिजी हो गए थे. वे कभी नहीं सोच पाए कि श्यामलीजी का भी कोई अरमान या इच्छा होगी. वे भी प्यार और सम्मान की चाहत रखती होंगी. वे तो स्वचालित मशीन बन गई थीं, जिस का काम था- मम्मीजी और सोम को हर हाल में खुश रखना. कोई आएजाए जो उस का आदरसम्मान और सेवा करना.
उन्होंने सुबह से शाम तक अपने को घर के कामों में झोंक दिया था. जो भी खाना बनातीं सोम को पसंद नहीं आता. कहते कि यह क्या खाना बनाया है? मुझे तो मटरपनीर की सब्जी खानी है. फिर वे थके कदमों से रात के 11 बजे सब्जी बनाने में जुट जातीं.
जब भी मम्मीपापा उन से मिलने को आए या घर ले जाने की बात की तो मम्मीजी ने ऐसा लाड़प्यार और उन की अनिवार्यता दिखाई कि उन लोगों को यह महसूस हुआ कि वे लोग धन्य हैं, जिन की बेटी को इतना संपन्न और प्यार करने वाला पति और परिवार मिला है.
वे अपनी मां के कंधे पर अपना सिर रख कर अपना मन हलका करना चाहती थीं, लेकिन मम्मीजी और सोम ने ऐसा जाल बिछाया कि एक पल को भी उन्हें मां के साथ अकेले नहीं बैठने दिया.
गोद में राशि के आने के सालभर बाद ही शुभ आ गया. उन की व्यस्तता जिम्मेदारियों के कारण बढ़ गई थी. वे घरगृहस्थी और बच्चों में उलझती गई थीं.
जब कभी सोम उन का अपमान करते या भलाबुरा कहते तो उन्हें अपने पर बहुत क्रोध आता कि क्यों वे ये सब सह रही हैं. क्या बच्चे केवल उन के हैं? आखिर बीज तो सोम का ही है.
सोम के लिए तो अब वे मात्र तन की भूख मिटाने की जरूरत बन कर रह गई थीं. सोम ने स्टोर पर कुछ काम बढ़ा लिया था. मैन काउंटर की डिस्ट्रीब्यूटरशिप ले ली थी. इसलिए और ज्यादा बिजी रहने लगे थे.
स्टोर पर कंप्यूटर का काम करने के लिए एक लड़की, जिस का नाम नइमा था, उसे रख लिया था. वह काफी खूबसूरत और फैशनेबल थी. जल्दी ही सोम उस के प्यार में पड़ गए. वे नइमा को साथ ले कर क्लब जाने लगे. वहां पौप म्यूजिक की धुन पर डांस और ड्रिंक के गिलास खनकते. वहां वह सोम का बखूबी साथ देती. जल्द ही नइमा सोम की जरूरत और जिंदगी बन गई.
एक दिन स्टोर के मैनेजर महेश ने मम्मीजी को अपना नाम न बताने की शर्त पर बताया कि सोम बहक गए हैं. नकली दवा बेचने लगे हैं. वे कई बार ऐक्सपायरी दवा भी ग्राहकों को दे देते हैं. ड्रग्स सप्लाई का काम भी करना शुरू कर दिया है. किसी भी समय मुसीबत में पड़ सकते हैं.
अब मम्मीजी को श्यामलीजी की याद आई कि श्यामली, सोम को कंट्रोल करो. वह तो अपनी तो अपनी, हम सब की बरबादी के रास्ते पर भी चल निकला है.
मम्मीजी की हिम्मत ही नहीं थी कि वे सोम से दुकान के विषय में बात कर सकें. उन्होंने जब भी कुछ पूछताछ या टोकाटाकी की तो सोम गालीगलौच पर उतर आते.
सोम के साथ उन का औपचारिक सा रिश्ता रह गया था. अब वे बच्चों के लिए महंगेमहंगे खिलौने लाते. उन के और मम्मीजी के लिए भी कीमती तोहफे ले कर आते. वे देर रात लौटते. उन के मुंह से रोज शराब की दुर्गंध आती. लेकिन श्यामलीजी लड़ाई से बचने के लिए चुप रहतीं.
उन्हें महंगे तोहफे, कीमती साडि़यों की चाह नहीं थी. वे तो पति के प्यार की भूखी थीं. वे उन की बांहों में झूलती हुईं प्यार भरी बातें करना चाहती थीं.
नियति ने स्त्री को इतना कमजोर क्यों बना दिया है कि वह घर न टूटने के डर से अपने वजूद की कुरबानी देती रहती है?
अब तो सोम के लाए हुए तोहफों को वे खोल कर भी नहीं देखती थीं.
एक दिन सोम चिढ़ कर बोले कि इतनी महंगी साडि़यां ला कर देता हूं, लेकिन तुम्हारा उदास और मायूस चेहरा मेरा मूड खराब कर देता है.
मैं तुम्हें मार रहा हूं? गाली दे रहा हूं? क्या कमी है?
श्यामलीजी हिम्मत कर के प्यार से, बच्चों का वास्ता दे कर उन से शराब पीने और क्लब जाने को मना करने लगीं तो सोम बेशर्मी से बोले कि मैं ये सब न करूं तो क्या करूं? मैं तुम से संतुष्ट नहीं हूं, न तो शारीरिक रूप से न ही मानसिक रूप से. मेरा और तुम्हारा मानसिक स्तर बिलकुल अलग है. हम दोनों कभी एक नहीं हो सकते.
मैं तुम्हारा खर्च उठा रहा हूं, तुम्हारे बच्चों को अच्छे स्कूलों में पढ़ा रहा हूं. तुम्हें महंगेमहंगे गिफ्ट, जेवर, कपड़े ला कर देता हूं. गाड़ी है, ड्राइवर है. बड़ी कोठी में रह रही हो. इस से अधिक तुम्हें और क्या चाहिए?
पत्नी हो, पत्नी बन कर रहो. यदि यहां नहीं रहना है तो चली जाओ अपने गांव. लेकिन एक बात अच्छी तरह समझ लो कि मेरे बच्चे यहीं रहेंगे.
इतनी बातें कहसुन कर सोम क्लब या न जाने कहां चले गए. वे सहम कर चुप हो गई थीं. बच्चे तो उन की जान थे. वही तो उन के जीवन का संबल और आधार थे. उन्हीं के लिए तो वे जी रही थीं. उन की चुप्पी और सहनशीलता को देख सोम का हौसला बढ़ता गया. अब एक लड़की नइमा के साथ वे खुल्लमखुल्ला घूमने लगे थे. कई बार उसे वे घर भी ले कर आ जाते. कई बार वे रात में भी घर न आते.
श्यामलीजी चुप रहतीं, उन की पीड़ा आंसू बन कर आंखों से बहती. एकांत उन के हर दुख का साक्षी रहता. विद्रोह करना उन का स्वभाव नहीं था. वे समझ रही थीं कि यदि वे कुछ भी बोलेंगी तो उन का घरौंदा टूट जाएगा. उन के बच्चे अनाथ हो जाएंगे. अपनी बेचारगी पर वे कई बार स्वयं को धिक्कारती भी थीं, परंतु घर टूट जाने के डर से वह हिम्मत नहीं जुटा पाती थीं. नन्हीं राशि जब उन के आंसू पोंछती और उन्हें चुप हो जाने को कहती, तो उन को अपने आंसू रोकने मुश्किल हो जाते.
बुजुर्ग मैनेजर ने उन के पास भी 2-3 बार फोन कर के कहा कि सोम नकली दवाइयों का कारोबार बढ़ाते जा रहे हैं, साथ ही ड्रग्स का धंधा भी.
यदि इसी तरह से चलता रहा तो जल्द ही किसी मामले में फंस जाएंगे. वे चिंतित हो उठी थीं. उन के अपने प्यारे बच्चों और स्वयं का भविष्य दांव पर लगा था. उन्होंने दूसरे सेल्समैन लड़कों से बात कर के पता किया तो मालूम हुआ कि सच में सोम रास्ता भटक गए हैं.
आखिर एक दिन एक हादसा हो ही गया. उन के स्टोर से खरीदी नकली दवा से एक बच्चे की मौत हो गई. मामले ने तूल पकड़ा. वे लोग लाठियां ले कर आ गए और फिर दुकान में तोड़फोड़ कर दी. सोम की भी खूब पिटाई की. पुलिस आ गई. पुलिस को कुछ लेदे कर किसी तरह मामला शांत करवाया. पर इसी बीच बच्चे के पिता ने ‘ड्रग्स कंट्रोल डिपार्टमैंट’ में मेल कर दिया था. और वहां की टीम रेड करने आ गई. इस अचानक हमले का किसी को कोई अनुमान या तैयारी नहीं थी. नकली और ऐक्सपायरी दवा के साथसाथ ड्रग्स का भी स्टौक पकड़ा गया.
मामला संगीन था. लोगों के जीवन से खिलवाड़ करने के आरोप में सोम गिरफ्तार हो गए और मैडिकल स्टोर को सील कर दिया गया. वकीलों पर पैसा पानी की तरह बहाया गया.
बेल होने में लगभग 3 महीने लग गए. घर खर्चे की दिक्कत होने लगी. एकएक कर सारे नौकर हटा दिए गए. यहां तक कि बच्चों के लिए दूध की भी परेशानी होने लगी थी. सामान बेच कर कुछ दिन काम चला.
इतनी विषम परिस्थिति कभी होगी, इस का उन्हें कतई अनुमान भी नहीं था. जब सोम जमानत के बाद घर आए, तो उन को पहचानना मुश्किल था. रंग काला पड़ गया था और शरीर कृषकाय हो चुका था. वे किसी का सामना नहीं करना चाहते थे. यहां तक कि बच्चों से भी बात नहीं करते थे. चुपचाप अपने कमरे में लेट कर छत को निहारते रहते.
सोम नया रास्ता तलाशने के बजाय निराशा के गर्त में डूब कर डिप्रैशन का शिकार बन गए. जख्मों को कुरेदने के लिए सांत्वना के नाम पर रिश्तेदारों और परिचितों के ताने और उलटेसीधे व्यंग्य वाणों के कारण सब का जीना दूभर हो गया था.
अब यह श्यामलीजी के लिए परीक्षा की घड़ी थी. अब आवश्यक हो चुका था कि वे स्वयं आगे बढ़ कर घर के हालात को सुधारने के लिए कुछ करें.
एक ओर नैराश्य में जकड़ा हुआ सोम दूसरी ओर 12 वर्ष की राशि तो 11 वर्ष का शुभ, ऐसे कठिन समय में घर का मोरचा संभाला. वे सोम का हौसलाअफजाई करतीं. बच्चों का भी उन्होंने पूरा ध्यान रखा.
मित्रों के सहयोग से एक नामी बुटीक में ड्रैस डिजाइनर की नौकरी मिल गई. जल्द ही बुटीक की मालकिन कल्पनाजी ने उन की प्रतिभा को पहचान लिया, उन के डिजाइन किए हुए कपड़े कस्टमर को पसंद आने लगे. 1 साल में ही बुटीक का बिजनैस काफी बढ़ गया, साथ में उन की सैलरी भी बढ़ गई.
जीवन पटरी पर लौटने लगा था. उन्हें नौकरी करते हुए लगभग 2 वर्ष हो चुके थे. अब वे अपना बुटीक खोलना चाह रही थीं. लेकिन पैसे की कमी बाधा बनी हुई थी.
उन्होंने ‘महिला गृह उद्योग’ योजना के अंतर्गत बैंक से लोन के लिए आवेदन किया और जल्दी ही घर के एक कमरे में अपना बुटीक शुरू कर दिया. 4 सिलाई मशीनें और कुछ कारीगर लड़कियों को रख कर काम शुरू कर दिया. देखते ही देखते उन की मेहनत और क्रिएटिविटी की क्षमता ने अपने रंग दिखाने शुरू कर दिए.
आज उन के बुटीक की शहर में 2 ब्रांच और खुल गई हैं. करीब 40 लोगों को उन्होंने रोजगार दे रखा है.
राशि की आवाज ने उन की तंद्रा भंग कर दी, ‘‘मां, आज कहां खो गई हैं? घर नहीं चलना है क्या?’’
वे वर्तमान में लौटी ही थीं कि उन का मोबाइल बज उठा, ‘‘मैडम श्यामली?’’
‘‘यस.’’
‘‘महिला दिवस पर ‘विषम परिस्थितियों में स्वयं को सिद्ध करने के लिए’ आप को ‘विजय नगरम् हाल’ में मेयर के द्वारा सम्मानित किया जाएगा. कल हम लोग निमंत्रणपत्र ले कर आप के पास आएंगे.’’
‘‘धन्यवाद,’’ कहते हुए श्यामलीजी भावुक हो उठी थीं. चूंकि फोन स्पीकर पर था, इसलिए सभी ने इस खबर को सुन लिया था.
सोम भी भावुक हो उठे थे. उन्होंने प्यार से बांहों के घेरे में उन्हें ले लिया, ‘‘श्यामली, तुम्हें मैं वह प्यार और सम्मान नहीं दे पाया, जिस के योग्य तुम थीं. इसलिए अब पूरा लखनऊ शहर तुम्हें सम्मानित करेगा.’’
आज बरसों बाद सोम के प्यार भरे आलिंगन से वे अभिभूत हो उठी थीं. उन्होंने भी प्यार से सोम को अपनी बांहों में कैद कर लिया. बेटी राशि पर निगाह पड़ते ही उन का मुखमंडल शर्म से लाल हो उठा.
सोम फोन पर श्यामलीजी के मम्मीपापा को निमंत्रण दे रहे थे. आज उन के सारे विषाद धुल गए थे.