डाइट के नए फंडे

वजन घटाने और स्लिमट्रिम बने रहने के लिए न सिर्फ महिलाएं बल्कि पुरुष भी इन दिनों तरहतरह के प्रयोग कर रहे हैं. दुनिया भर के पोषण विशेषज्ञ एवं डाइटिशियन इस के लिए तरहतरह के डाइट फौर्मूलों का प्रयोग कर रहे हैं. यहां हम आप को कुछ ऐसी ही डाइट्स के बारे में बता रहे हैं.

अल्कलाइन डाइट

अल्कलाइन डाइट में वेट लौस प्रोग्राम के तहत मुख्य रूप से क्षारीय प्रकृति के भोज्यपदार्थ खाने पर जोर दिया जाता है. इस से बौडी का पीएच बैलेंस 7.35 से 7.45 के बीच बरकरार रखने की कोशिश की जाती है.

फायदे: अल्कलाइन डाइट के पैरोकारों का कहना है कि इस से न सिर्फ वजन घटाने में मदद मिलती है, बल्कि आर्थ्राइटिस, डायबिटीज और कैंसर सरीखी कई बीमारियों में भी राहत मिलती है. इतना ही नहीं यह डाइट ऐजिंग की प्रक्रिया को धीमा रखने में मददगार होती है.

थ्योरी क्या है: अल्कलाइन डाइट के समर्थकों के मुताबिक हमारा रक्त कुछ हद तक क्षारीय प्रकृति का होता है, जिस का पीएच लैवल 7.35 से 7.45 के बीच होता है. हमारी डाइट भी इसी पीएच लैवल को मैंटेन करने वाली होनी चाहिए. अम्ल उत्पादक भोजन जैसे अनाज, मछली, मांस, डेयरी प्रोडक्ट्स आदि खाने से यह संतुलन गड़बड़ा जाता है जिस से जरूरी खनिज जैसे पोटैशियम, मैग्नीशियम, सोडियम आदि का नुकसान हो जाता है. इस असंतुलन से शरीर में बीमारियों का रिस्क बढ़ जाता है और वजन बढ़ने लगता है. इसलिए जरूरी है कि 70% अल्कलाइन फूड खाया जाए और 30% ऐसिड फूड.

सैकंड ओपिनियन: ब्रिटिश डाईटेटिक ऐसोसिएशन के रिक मिलर कहते हैं, ‘‘अल्कलाइन डाइट का सिद्धांत है कि खास भोज्यपदार्थ खाने से शरीर का पीएच बैलेंस मैंटेन रहेगा, लेकिन सही यह है कि शरीर अपना पीएच बैलेंस मैंटेन रखने के लिए डाइट पर निर्भर नहीं है.’’

माना कि अल्कलाइन डाइट से कैल्सियम, किडनी स्टोन, औस्टियोपोरोसिस एवं ऐजिंग की समस्याओं में काफी राहत मिलती है, लेकिन ऐसा कोई प्रमाण नहीं है कि ऐसिड प्रोड्यूसिंग डाइट क्रोनिक बीमारी की वजह है.

मोनो मील डाइट

इस के तहत सुबह या शाम के भोजन में सिर्फ एक खाद्यसामग्री (वह भी फल या सब्जी) रहती है. हमारे प्रचलित भोजन की तरह इस में दालचावल या रोटीसब्जी का तालमेल नहीं रहता. जब कोई मोनो मील पर अमल कर रहा हो, तो वह लंच में सिर्फ केले और डिनर में सिर्फ गाजर या सेब ही खाएगा, दूसरी कोई भी खाद्यसामग्री नहीं. इस डाइट को कोई हफ्ता भर तो कोई 6 महीने तक भी आजमाता है.

फायदे: इस डाइट को अपनाना बेहद आसान है. इस में किसी प्रकार की कृत्रिम खाद्यसामग्री का इस्तेमाल न होने की वजह से इसे हैल्दी भी माना जाता है. एक ही प्रकार का भोजन और वह भी कुदरती होने की वजह से शरीर की पाचन प्रणाली को ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती.

नुकसान: भोजन में महीने भर से ज्यादा समय तक सिर्फ एक फल या सब्जी पर निर्भर रहना सेहत पर प्रतिकूल असर डाल सकता है. इस से शरीर में ऊर्जा का स्तर भी गिरने लगता है.

ग्लूटेन फ्री डाइट

डाइट की दुनिया में इन दिनों एक ताजा ट्रैंड आया है- ग्लूटेन फ्री डाइट का. इस के पक्षधर अपनी थाली से गेहूं से बने उत्पाद दूर रखते हैं. उन के मुताबिक गेहूंरहित भोजन उन्हें कई बीमारियां से बचाने के साथसाथ उन का ऐनर्जी लैवल भी इंपू्रव करता है.

ग्लूटेन फ्री डाइट के पैरोकारों का मानना है कि ग्लूटेन पोषक तत्त्वों के शरीर में अवशोषण की प्रक्रिया में बाधक होता है. आजकल कई लोग सैलिएक डिजीज से परेशान हैं. यह ग्लूटेन की वजह से होने वाला औटोइम्यून डिसऔर्डर है, जिस की वजह से डायरिया, वजन घटने और औस्टियोपोरोसिस जैसी समस्याएं हो सकती हैं.

जेन डाइट

वेट मैनेजमैंट और गुड हैल्थ के लिए आप ने कई तरह की डाइट्स का नाम सुना होगा, लेकिन जापानी सिद्धांत काइजेन पर आधारित जेन डाइट के बारे में नहीं जानते होंगे. काइजेन का अर्थ है, इंप्रूवमैंट. यह वेट लौस प्लान लाइफस्टाइल की लौंग टर्म ओवरहौलिंग है, जिस में आप अपना भोजन बहुत समझदारी से चुनते और खाते हैं.

अपनी खानपान की आदतों में महत्त्वपूर्ण और स्थायी बदलाव ला कर जैसे, चीनी, प्रोसैस्ड फूड और तैलीय भोजन के त्याग या न्यूनतम सेवन से आप न सिर्फ अपना वजन घटाने में कामयाब हो सकते हैं, बल्कि स्वस्थ जीवन की नीव भी डाल सकते हैं.

शरीर का आदर करें: जेन डाइट में धीरेधीरे अपने भोजन को आनंदपूर्वक खाने की सलाह दी जाती है. आप को प्रेरित किया जाता है कि आप क्या खा रहे हैं उसे देखें, अच्छी नींद लें और आराम भी करें.

धीमी मगर प्रभावशाली: अपनी हैल्थ इंपू्रव करने की चाहत रखने वालों के लिए यह डाइट काफी प्रभावशाली है. इसे अपनाने से वेट लौस स्थायी होता है, लेकिन इस की गति धीमी होती है.

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