आजीविका बन सकती है Gardening

बागबानी सिर्फ शौक है. शहरों में हरियाली देखनी है तो बागबानी का सहारा लेना ही पड़ेगा. बागबानी से जुड़ी वस्तुओं के बाजार बन गए हैं. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में पहले राणा प्रताप मार्ग स्टेडियम के पीछे हजरतगंज में ही बागबानी का बाजार लगता था. अब गोमतीनगर, पीजीआई, महानगर और आलमबाग में भी इस तरह की तमाम दुकानें खुल गई हैं. यहां पौधे ही नहीं, तरहतरह के गमले, गमला स्टैंड और गमलों में डाली जाने वाली खाद बिकती है.

तेजी से हो रहे विकास के चलते शहरों के आसपास की हरियाली गायब हो गई है. ऐसे में घरों के अंदर, छत के ऊपर, बालकनी और लौन में छोटेछोटे पौधों को लगा कर हरियाली की कमी को पूरा करने का काम किया जा रहा है. यही वजह है कि बागबानी से जुड़े हुए कारोबार तेजी से बढ़ रहे हैं. एक ओर जहां सड़कों पर बागबानी को सरल बनाने वाली सामग्री की दुकानें मिल जाती हैं वहीं पौश कालोनियों में इस से जुड़े काम खूब होने लगे हैं.

बेच रहे हैं खाद और गमले

शहरों के आसपास की जगहों पर लोगों ने खाली पड़ी जमीन पर नर्सरी खोल ली है. कुछ कारोबारी नर्सरी से पौधे शहर में ला कर बेचते हैं. ये लोग कई बार गलीगली फेरी लगा कर भी पौधे, गमले और खाद बेचते मिल जाते हैं. जिन को पौधों की देखभाल करनी आती है वे समयसमय पर ऐसे पौधों की देखभाल करने भी आते हैं. इस के लिए वे तय रकम लेते हैं. ऐसे में बागबानी से जुड़ा हर काम आजीविका का साधन हो गया है. लखनऊ के डालीगंज इलाके में रहने वाला राजीव गेहार 20 साल से बागबानी के लिए गमले, खाद और दूसरे सामान बेचने का काम कर रहा है. उस का कहना है, ‘‘जुलाई से ले कर अक्तूबर तक लोग पौधे लगाने का काम करते हैं. इन 4 माह को हम बागबानी का सीजन भी कहते हैं.’’

पहले पौधों को रखने के लिए मिट्टी के गमले ही चलते थे. वे कुछ समय के बाद ही खराब हो जाते हैं. अब सिरेमिक और प्लास्टिक के गमले भी आते हैं. सिरेमिक के गमले महंगे होते हैं. ये देखने में बेहद सुंदर, रंगबिरंगे होते हैं और जल्दी खराब नहीं होते. प्लास्टिक के गमले देखने में भले ही कुछ कम अच्छे लगते हों पर यह टिकाऊ होते हैं. गमलों से गिरने वाला पानी फर्श को खराब न करे, इस के लिए गमलों के नीचे रखने की प्लेट भी आती है. झूमर की तरह पौधों को लटकाने के लिए हैंगिंग गमले भी आते हैं. इन को रस्सी या जंजीर के सहारे बालकनी, लौन या फिर दीवार पर लटकाया जा सकता है.

पौधों को मजबूत बनाने के लिए खाद देने की जरूरत पड़ती है. इस के लिए डीएपी, पोटाश, जिंक जैसी खादें बाजार में बिकती हैं. राजीव कहते हैं, ‘‘मैं खादें बेच कर ही अपने घर का खर्च चलाता हूं. बागबानी करने में मदद करने वाली चीजें, जैसे कटर, खुरपी, स्प्रे भी बेचता हूं.’’

देखभाल में है कमाई

घर के लौन में मखमली घास लगी हो तो आप की शान बढ़ जाती है. अब तो इंटीरियर में भी पेड़पौधों को पूरी जगह दी जाने लगी है. ऐसे में इन का कारोबार करना मुनाफे का काम हो गया है. शादी, बर्थडे या मैरिज ऐनिवर्सरी की पार्टी आने पर घर के किसी हिस्से को पौधे से सजाने का चलन बढ़ गया है. हर किसी के लिए पौधों को रखना और उन की देखभाल करना सरल नहीं होता. ऐसे में छोटेबड़े पौट में पौधे लगा कर बेचने का काम भी होने लगा है.

ऐसे ही पौधों का कारोबार करने वाले दिनेश यादव कहते हैं, ‘‘हम पौधे तैयार रखते हैं. खरीदने वाला जिन गमलों में चाहे उन को रखवा सकता है. इस के बाद समयसमय पर थोड़ीथोड़ी देखभाल कर के पौधों को सुरक्षित रखा जा सकता है.’’ पौधों की देखभाल करने वाले नीरज कुमार का कहना है, ‘‘मैं गांव से नौकरी करने शहर आया था. यहां 2 हजार रुपए महीने की नौकरी मिल गई. इस से काम नहीं चल रहा था. मैं समय बचा कर कुछ लोगों के पेड़पौधों की देखभाल करने लगा. इस के बदले में मुझे कुछ पैसा मिलने लगा. धीरेधीरे मेरे पास पेड़पौधों की देखभाल का काम बढ़ गया. मुझे नौकरी करने की जरूरत खत्म हो गई. आज मेरे पास 50 ग्राहक हैं. मेरा काम ठीक से चल रहा है.’’

बक्शी का तालाब (लखनऊ) इलाके में रहने वाला रामप्रसाद पहले गांव में मिट्टी के बरतन बनाने का काम करता था. उस की कमाई खत्म हो गई थी. इस के बाद उस ने मिट्टी और सीमेंट के गमले बनाने का काम शुरू किया. वह कहता है, ‘‘मैं सड़क किनारे अपनी दुकान लगाता हूं. इस से लोग राह आतेजाते मेरे यहां से गमलों की खरीदारी करने लगे हैं. मेरी आमदनी बढ़ने लगी है. कुछ लोग सीमेंट के गमले अपनी पसंद के अनुसार भी बनवाते हैं. सीमेंट के गमलों का ज्यादातर प्रयोग लौन में रखने के लिए किया जाता है.’’

इस तरह बागबानी लोगों की आजीविका का आधार बन रही है और उन की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ कर रही है.

बागबानी के ये भी हैं फायदे

एक समय था जब बहुमंजिला इमारतों में आशियाना नहीं तलाशा जाता था, खुले आंगन और छोटे से बगीचे वाले आशियाने को प्राथमिकता दी जाती थी. बगीचे पर तो खासतौर पर ध्यान दिया जाता था, क्योंकि यही उन के घर की साजसज्जा का जरीया होता था और अपनी पसंद की सब्जियां वगैरह उगाने का भी. वक्त ने करवट बदली, तो आधुनिकता ने आंगन भी निगल लिया और बगीचा भी. लेकिन एक बार फिर लोगों में अपने घर पर एक छोटा सा बगीचा तैयार करने की उत्सुकता को देखा जा रहा है. भले ही लोग गार्डन को जरूरत या शौक के नजरिए से न देख लाइफस्टाइल स्टेटस में इजाफा समझ कर अपने आशियाने में जगह दे रहे हों, लेकिन होम गार्डन के ट्रैंड पर उन्होंने अपनी सहमति की मुहर जरूर लगा दी है.

इस बाबत बागबानी विशेषज्ञा डाक्टर दीप्ति कहती हैं, ‘‘बगीचा होना अब घर की शान समझा जाता है. लोग इस में फैंसी पौधे और फूल उगाते हैं, जो घर की खूबसूरती को बढ़ाते हैं. असल में गार्डन होना और गार्डनिंग करने में बहुत अंतर है. भले गार्डन आशियाने की रौनक को बढ़ा दे, मगर उस में रहने वालों को इस का असली सुख तभी  मिलेगा जब वे इस की उपयोगिता को भी समझेंगे.’’

उपयोगिता बागबानी की

बागबानी समय का सब से अच्छा सदुपयोग है. बागबानी विशेषज्ञ डाक्टर आनंद सिंह कहते हैं, ‘‘आज की भागतीदौड़ती दिनचर्या में किसी के पास वक्त नहीं है. लोग औफिस के काम से फुरसत पाते हैं तो घरेलू कार्यों में मसरूफ हो जाते हैं. फिर अगर समय मिलता है तो वीकैंड में शौपिंग करने निकल जाते हैं. कई बार तो  फुजूलखर्ची करते हैं. ऐसे में मानसिक संतुष्टि मिलने के बजाय उलटा अवसाद घेर लेता है. अत: इस से अच्छा तो यह हो कि घर पर रह कर कुछ रचनात्मक काम किया जाए. इस में बागबानी से बेहतर और कोई विकल्प नहीं हो सकता है, क्योंकि यह आप को मानसिक सुख देने के साथसाथ अच्छी सेहत और भरपूर ज्ञान भी देगा.’’

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यहां डच (जरमनी) लोगों का उदाहरण देना  सही रहेगा, क्योंकि वहां करीबकरीब सभी लोगों के पास अपना बगीचा है, जिस में खाली समय में वे बागबानी करते हैं. उन्हें मौल्स में घूमने से ज्यादा बेहतर बागबानी करना लगता है. यहां आम लोग ही नहीं वरन सैलिब्रिटीज भी गार्डनिंग का शौक रखते हैं. एक डच पत्रिका में जरमनी के मशहूर शैफ, जौन लफर के अनुसार, यदि वे देश के मशहूर शैफ न बन पाते तो खुशी से गार्डनिंग के पेशे में आते. वैसे शैफ जौन अभी भी अपने पेशे के अलावा गार्डनिंग में खास दिलचस्पी रखते हैं. यही वजह है कि वे अपने पौटेड प्लांट्स कलैक्शन के पैशन को छिपा नहीं पाते.

वैसे जरमनी ही नहीं हमारे देश में भी बहुत से लोग बागबानी का शौक रखते हैं, लेकिन विस्तृत जानकारी के अभाव और इस की उपयोगिता से अनजान होने की वजह से अपने शौक को बढ़ावा नहीं दे पाते. फिर भी कुछ सैलिब्रिटीज की बात करें तो बौलीवुड के अभिनेता और अभिनेत्रियां, जिन का ज्यादा वक्त शूटिंग करते ही बीतता है, खाली वक्त में या तो पार्टी करना पसंद करते हैं या फिर छुट्टियां बिताने विदेश पहुंच जाते हैं. लेकिन कुछ अरसा पहले एक इंटरटेनमैंट वैबसाइट को दिए इंटरव्यू में अभिनेत्री सेलिना ने कहा कि वे अपने प्रोफैशन से वक्त मिलते ही छत पर बनाई अपनी बगिया में पहुंच जाती हैं. वहां उन्हें नए पौधे लगाना, उन में खाद डालना, पानी देना बहुत अच्छा लगता है. उन्हें गार्डनिंग का शौक इस कदर है कि इस के लिए उन्होंने विशेषतौर पर ट्रेनिंग भी ली है और वक्त मिलने पर वे बागबानी से जुड़ी किताबें भी पढ़ती रहती हैं.

लाइफ इंश्योरैंस पौलिसी है बागबानी

मगर सेलिना जैसे लोग बहुत कम हैं, जो अपने गार्डनिंग के पैशन को उभारने की जगह उसे दबा देते हैं. वजह, जानकारी का अभाव ही है. डाक्टर दीप्ति कहती हैं, ‘‘बहुत से लोग बागबानी का शौक रखते हैं. पर उस में खर्र्च करना नहीं चाहते, उन्हें बागबानी में निवेश की कोई संभावना नहीं दिखती, जबकि बागबानी एक लाइफ इंश्योरैंस पौलिसी की तरह है. आप उस में जितना समय देंगे आप की सेहत उतनी ही अच्छी रहेगी.’’

नैशनल ज्योग्राफिक औथर एवं रिसर्चर डैन बटनर के अध्ययन के अनुसार, बागबानी करने वालों का जीवन आम लोगों से 14 वर्ष अधिक होता है. कैसे, आइए जानें.

– बागबानी दिन में ही की जाती है, इसलिए जाहिर है कि बागबानी के दौरान सूर्य के संपर्क में आना पड़ता है, जिस से शरीर को विटामिन डी मिल जाता है. विटामिन डी शरीर को कैंसर और हृदय से जुड़ी बीमारियों से बचाता है.

– यह भ्रम है कि मिट्टी में हाथ सनने से बैक्टीरिया चिपक जाते हैं, जिस से संक्रमण का  खतरा रहता है. दरअसल, मिट्टी प्राकृतिक बैक्टीरिया, मिनरल्स, माइक्रोऔर्गैनिज्म का प्रमुख स्रोत होती है. रोजाना मिट्टी के स्पर्श से शरीर का इम्यून सिस्टम अच्छाहोता है.

– लोगों में भ्रांति है कि नंगे पैर जमीन पर रखने से वे मैले हो जाते हैं. लेकिन यह सोचना गलत है. त्वचा का धरती से सीधा संपर्क शरीर में इलैक्ट्रिकल ऐनर्जी द्वारा पौजिटिव इलैक्ट्रोंस जेनरेट करता है.

– आधुनिक जीवनशैली में बढ़ती प्रतिस्पर्धा ने लोगों को अवसाद के आगोश में धकेल दिया है, जिस से तमाम तरह की बीमारियां जन्म ले रही हैं. बागबानी इन बीमारियों से बचने का एक सरल उपाय है, क्योंकि इस से मिलने वाला सुख शरीर पर प्रत्यक्ष रूप से असर डालता है और दिमाग को तनावमुक्त रखता है.

– बागबानी का अर्थ केवल फूल उगाना नहीं. घरों में किचन गार्डन भी तैयार किया जा सकता है. इस से मिलने वाली सब्जियां आप के शरीर को पोषण देने के साथसाथ ऐंटीऔक्सिडैंट भी देंगी और जहरीले तत्त्वों से भी शरीर की सुरक्षा करेंगी.

– बागबानी करने वालों को जिम जाने की जरूरत भी नहीं पड़ती, क्योंकि बागवानी में काम करते हुए ही पूरी ऐक्सरसाइज हो जाती है.

कम जगह और पैसों में भी संभव

यह सच है कि बागबानी महंगा शौक है. लेकिन आप चाहें तो कम पैसों में भी यह संभव हो सकती है. जरा सोचिए, फल और सब्जियों के आसमान छूते भाव के चलते अपनी जेब ढीली करने से बेहतर यही है कि घर पर ही इन्हें उगा लिया जाए, जो आप को अच्छा स्वाद, सेहत और संतुष्टि देने के साथसाथ आप के बजट को भी बिगड़ने नहीं देंगी. डाक्टर दीप्ति कहती हैं, ‘‘आजकल बड़े शहरों में ताजा हवा के लिए औक्सीजन जोन बनाए जा रहे हैं. वहां लोग भारी कीमत चुका कर चंद घंटे गुजारने जाते हैं. लेकिन चंद घंटों में मिली ताजा हवा से क्या होता है? ऐसा आप महीने में 1 बार कर सकते हैं. रोज तो पैसे खर्च नहीं कर सकते न? इसलिए यदि आप घर पर ही बागबानी करें तो घर पर ही ताजा हवा का आनंद लिया जा सकता और वह भी फ्री में. जो कीमत आप औक्सीजन जोन की ऐंट्री की चुकाएंगे उसी में बीज, खाद और गमले आ जाएंगे. सब से बड़ी बात तो यह है कि अपने हाथों से उगाई सब्जी खाने में जिस स्वाद और संतुष्टि की अनुभूति होगी उस से बेहतर और क्या सुख हो सकता है.’’

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डाक्टर आनंद सिंह कहते हैं, ‘‘बाजार में सुंदर टमाटर, बैगन, लौकी देख कर लोग उन पर टूट पड़ते हैं. लेकिन यह ध्यान रहे कि सब्जी दिखने में जितनी सुंदर होगी उतनी ही नकली होगी. घर पर उगाई सब्जियां भले ही दिखने में उतनी खूबसूरत न हों, लेकिन स्वाद और सेहत के मामले में उन का कोई मुकाबला नहीं.’’ कभीकभी खर्चे के अलावा कुछ और परेशानियां बागबानी के शौकीनों को घर पर बगीचा तैयार करने से रोक देती हैं. छोटा घर और कम जगह इन परेशानियों में से ही हैं. लेकिन घर कितना भी छोटा क्यों न हो पौधे लगाने के लिए थोड़ी जगह मिल ही जाती है. यदि वह भी न मिले तो आजकल हैंगिंग गार्डन का फैशन चलन में है. इस विधि के अनुसार गमलों को फर्र्श पर रखने की जगह दीवारों या खूंटे के सहारे हवा में टांग दिया जाता है. इस से फर्श भी खाली रहता है और बागबानी का शौक भी पूरा हो जाता है.

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