न बढ़े भाई-बहनों में जलन

सगे भाईबहनों के बीच ईर्ष्या और प्रतिद्वंद्विता का भाव यानी एकदूसरे से बेहतर करने की प्रतिस्पर्धा या होड़, जिसे सिबलिंग जेलेसी कहते हैं, में कुछ भी गलत या अजीबोगरीब नहीं है. जब किन्हीं भी 2 लोगों के बीच यह सहज और स्वाभाविक भाव है, तो फिर सगे भाईबहन इस से अछूते कैसे रह सकते हैं? लेकिन जब यह प्रतिस्पर्धा उग्र रूप धारण कर ईर्ष्या में परिवर्तित होने लगती है और सगे भाईबहन एकदूसरे का काम बिगाड़ने और नीचा दिखाने के मौके तलाशने लगते हैं, तो यह निश्चित रूप से मातापिता के लिए चिंता का विषय बन जाता है. अगर हम अपने आसपास झांक कर देखें तो हमें बहुत से ऐसे उदाहरण मिल जाएंगे, जिन में सगे भाईबहनों ने ईर्ष्या के चलते एकदूसरे पर जानलेवा हमले तक किए हैं. कुछ नामीगिरामी परिवारों के झगड़े तो घर की दहलीज लांघ कर सड़कों तक पहुंच जाते हैं.

हमारे समक्ष प्रतिस्पर्धा और ईर्ष्या का ताजा उदाहरण हैं दिवंगत धीरूभाई अंबानी के पुत्र मुकेश अंबानी और अनिल अंबानी. विश्व के 10 अमीर व्यक्तियों की सूची में 5वें और छठे नंबर पर विराजमान इन भाइयों ने स्वयं को दूसरे से श्रेष्ठ साबित करने की जिद में न केवल सार्वजनिक रूप से मीडिया के सामने एकदूसरे पर आरोपप्रत्यारोप लगाए, बल्कि अपने घरेलू और व्यावसायिक झगड़ों को कोर्ट तक ले जाने में भी नहीं हिचकिचाए. अनिल अंबानी ने तो प्राकृतिक गैस विवाद के मामले में मीडिया के समक्ष भारत सरकार के पैट्रोलियम मंत्रालय पर ही सीधेसीधे आरोप लगाया था कि पैट्रोलियम मंत्रालय उन के भाई मुकेश अंबानी की तरफदारी कर उसे निजी लाभ पहुंचा रहा है. उन के इस बयान पर तत्कालीन पैट्रोलियम मंत्री मुरली देओरा ने भी तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि मुझे यह देख कर बहुत आश्चर्य हो रहा है कि ये दोनों भाई सार्वजनिक रूप से उस चीज के लिए लड़ रहे हैं, जो उन की है ही नहीं.

उन की मां कोकिलाबेन अंबानी ने शायद दोनों भाइयों के बीच बढ़ती प्रतिस्पर्धा और ईर्ष्या की भावना को भांप लिया था, इसीलिए उन्होंने पति की मृत्यु के बाद उन के व्यवसाय को दोनों भाइयों में बांट दिया था. लेकिन इस के बावजूद ये दोनों भाई आपसी झगड़ों के लिए निरंतर चर्चा में रहते हैं. एक अन्य खबर के अनुसार, अनिल अंबानी अपने नए घर को 150 मीटर ऊंचा बनाना चाहते हैं (उन के पास स्वीकृति सिर्फ 66 मीटर ऊंचा बनाने की है) क्योंकि उन के भाई मुकेश अंबानी का घर 170 मीटर ऊंचा है. जानीमानी लेखिका शोभा डे ने इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा था कि यह और कुछ नहीं सिबलिंग राइवलरी है.

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‘सिबलिंग राइवलरी: सैवन सिंपल सौल्यूशंस’ पुस्तक की लेखिका करेन दोहर्टी, जिन के अपने 4 बच्चे हैं, कहती हैं, ‘‘सिबलिंग राइवलरी यानी भाईबहनों के मन में एकदूसरे के लिए ईर्ष्या का भाव एक ऐसा जख्म है, जिस का उपचार न किया जाए तो वह नासूर बन जाता है और रिश्तों में इतनी कड़वाहट पैदा कर देता है कि हम अपने सगे भाईबहनों की तरक्की को भी सहन नहीं कर पाते हैं. उलटे उन की असफलताओं से हमें खुशी मिलती है.’’

प्रतिस्पर्धा की अहमियत

बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए उन के बीच प्रतिस्पर्धा का भाव जरूरी है. छोटे बच्चों में यह प्रतिस्पर्धा उन्हें एकदूसरे के करीब लाती है, एकदूसरे से बेहतर करने की प्रेरणा देती है, जिस से बच्चों के सर्वांगीण विकास में सहायता मिलती है. लेकिन जैसेजैसे बच्चे बड़े होते जाते हैं, यह प्रतिस्पर्धा ईर्ष्या में परिवर्तित होने लगती है और बच्चे एकदूसरे से आगे निकलने की होड़ में एकदूसरे को नीचा दिखाने का प्रयास करते हैं या फिर एकदूसरे के काम बिगाड़ते हैं. यह बहुत नाजुक समय होता है, जिस में बच्चों को कदमकदम पर मार्गदर्शन की जरूरत होती है. बच्चों की नकारात्मक सोच को नियंत्रित कर सही दिशा प्रदान करना ही हर मातापिता का कर्तव्य है.

हरकतों पर नजर रखें

मातापिता को बड़े होते बच्चों की हर छोटीबड़ी हरकतों पर नजर रखनी चाहिए. अगर बच्चों की बातों में तनिक भी ईर्ष्या का भाव झलकता है, तो प्यार से समझाबुझा कर उन के बीच पनप रही ईर्ष्या की भावना को उसी समय दबा देना चाहिए. इस के लिए सब से जरूरी है कि मातापिता बच्चों में तुलना कभी न करें, न ही एक के मुकाबले दूसरे को ज्यादा होशियार, समझदार सिद्ध करने का प्रयास करें. इस से दूसरे बच्चे का मन आहत होता है और उस के मन में हीनभावना पनपने लगती है, जो आगे चल कर ईर्ष्या का रूप धारण कर लेती है.

बच्चों को समय दें

मातापिता सभी बच्चों को अधिक से अधिक समय दें. सभी के साथ एकसाथ बैठें, अलगअलग नहीं. अगर मातापिता बच्चों को पूरा समय नहीं देते, तो वे खुद को असहाय सा पाते हैं और उन का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए अजीबोगरीब हरकतें करते हैं. अगर वे एक बच्चे के साथ अधिक समय व्यतीत करते हैं, तो दूसरा बच्चा निश्चित रूप से आहत होता है और उन का ध्यान आकर्षित करने के लिए कई बार वह खुद को नुकसान भी पहुंचाता है. अगर वे दोनों बच्चों को पूरा समय देते हैं, तो एक बच्चे को थोड़ा अधिक समय देने से दूसरे बच्चे को उतना बुरा नहीं लगता. जहां मातापिता दोनों कामकाजी हैं, उन्हें बच्चों को समय देने के लिए कुछ अधिक मेहनत करनी पड़ती है. ज्यादा नहीं, तो सोने के समय बच्चों के कमरे में उन के साथ एकाध घंटा व्यतीत करें, स्कूल में क्या हुआ, सुनें. उन के साथ बिस्तर में लेटें, किस्सेकहानियां सुनेंसुनाएं, घरपरिवार की बातें करें. इस तरह वे न केवल मातापिता से बल्कि एकदूसरे से भी तन और मन से जुड़े रहेंगे.

तुलना न करें

जब मातापिता दोनों बच्चों के बीच तुलना कर एक को दूसरे से बेहतर साबित करने की कोशिश करते हैं, तो वे नहीं जानते कि अनजाने में ही वे दूसरे बच्चे के मन में पनप रही ईर्ष्या की आग को हवा दे रहे हैं. अपने बच्चे की तुलना किसी बाहर वाले बच्चे से कर उसे छोटा दिखाने की कोशिश भी न करें. ‘जब रोहन तीसरी कक्षा में था तो वह हमेशा कक्षा में प्रथम आता था, तुम्हारी रैंक इतनी नीचे क्यों है?’ ‘तुम्हें तो बात करने की तमीज तक नहीं है, रिया ने तो कभी हमें पलट कर जवाब नहीं दिया. अपनी बहन से कुछ सीखो.’ इस तरह की बातें सुन कर बच्चों में ईर्ष्या की भावना जोर पकड़ने लगती है.

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हर बच्चे की सुनें

अगर आप के बच्चे आपस में झगड़ते हैं, एकदूसरे पर चीखतेचिल्लाते हैं, तो कभी भी एक बच्चे को दोषी ठहरा कर दूसरे को डांटें या डराएंधमकाएं नहीं. दूसरे को भी अपना पक्ष रखने का पूरा मौका दें. इस से उन्हें लगता है कि आप दोनों की बात को महत्त्व देते हैं. किस की गलती है, यह फैसला पूरी ईमानदारी से करें. मातापिता आमतौर पर छोटे बच्चे का साथ देते हैं और बड़े बच्चे को हमेशा पीछे हटने के लिए कहते हैं, जिस से उस का अहं आहत होता है. जहां बच्चों में अंतर कम होता है, वहां बड़ा बच्चा 2 साल की उम्र से ही बड़ा हो जाता है और छोटा 10 वर्ष की उम्र तक भी छोटा रहता है. इस से न केवल वह बिगड़ता है, बल्कि गलत काम करने से भी नहीं हिचकिचाता, क्योंकि वह जानता है कि उसे छोटे होने का फायदा मिलेगा. दूसरी तरफ मातापिता का स्नेह छोटे को ज्यादा मिलता है, यह देख कर बड़े भाई या बहन का मन आहत होता है और मातापिता व भाई या बहन के प्रति उस की सोच नकारात्मक होती चली जाती है. जब युवा बच्चे किसी विषय पर बहस कर रहे हों, तो बीच में न पड़ें. उन्हें अपनी बात कहने का और दूसरे की सुनने का मौका दें. किसी एक का पक्ष ले कर न बोलें. अगर बहस ज्यादा गरम हो जाए, तो विषय बदल कर बहस को खत्म करने के लिए कहें. जैसे, खाने का समय हो तो खाने के लिए बुला लें या फिर घूमने अथवा फिल्म देखने का प्रोग्राम बनाने के लिए कहें.

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