रिश्ते: क्या बोलें क्या नहीं

कई बार हम हंसी-मजाक में अपनी शालीनता को भूल जाते है और कुछ गलत बोल जाते हैं और जिन से हम मजाक कर रहे हैं उन को नागवारा गुजरता है और वे हम से रूठ जाते हैं. इस से हमारे संबंधों में दरार पड़ जाती है. अत: मजाक हमेशा शालीनता और अच्छी मानसिकता से किया जाए तो ही अच्छा रहता है.

कई बार देखा गया है कि जो शब्द हम बारबार बोलते हैं वही हमारे मुंह पर आते हैं फिर चाहे वे अच्छे हों या बुरे, इसलिए शब्दों का ध्यान रखें. फिर चाहे वे मजाक में ही क्यों न बोले हों क्योंकि हमारे मुंह से निकला 1-1 शब्द हमारे चरित्र और व्यवहार का परिचय देता है. यदि हम कोई गलत शब्द बोल देते हैं तो लोगों के दिल में घृणा के पात्र बन जाते हैं और यदि हम अच्छे शब्द और प्यार से बोलते हैं तो सब का दिल जीत लेते हैं. इसलिए किसी से भी बातचीत करते समय शब्दों का ध्यान रखें.

जब कर रहे हों आलोचना

यदि हमें किसी की आलोचना करनी हो तो कोशिश करें कि तीखे शब्दों का उपयोग न करें. आलोचना हम सकारात्मक भी कर सकते हैं. इस के लिए कुछ सु झाव प्रस्तुत हैं:

रवि पार्टी में बहुत शराब पी कर आया था और सब से लड़ाई झगड़ा कर रहा था. तभी उस के दोस्त उस को बहुत भलाबुरा कहने लगे, लेकिन दोस्त आलोचना करते समय यह भूल गए कि यहां सभी अपने परिवार के संग आए हैं. तब क्या रवि के साथ ऐसा व्यवहार ठीक है? इस समय आप आलोचना करते समय अपने शब्दों का ध्यान रखें. उस को प्यार से सम झाने की कोशिश करें कि उस की वजह से पार्टी का मजा खराब हो गया क्योंकि आज सभी दोस्त परिवार संग मौजमस्ती करना चाहते थे, लेकिन उस की वजह से ऐसा नहीं कर पाए.

उसे आगे से किसी भी पार्टी में बिना शराब पीए आने को कहें ताकि वह भी अपने दोस्तों के संग पार्टी का मजा ले सके और कुछ यादगार पल बिता सकें. इस से उस की सोच सकारात्मक होगी और अगली बार वह पार्टी में ऐसा व्यवहार नहीं करेगा. इस तरह आलोचना सकारात्मक भी कर सकते हैं.

जब कर रहे हों बच्चों से बात

माता-पिता के द्वारा बच्चों से की गई बातचीत के ढंग का प्रभाव भी उन के ऊपर पड़ता है. कई मातापिता उन को डांटतेमारते समय अपशब्दों और कुछ गालियों का भी उपयोग करते हैं जिन्हें बच्चे भी सीख जाते हैं जिस का उन की मानसिकता पर गहरा असर पड़ता है. कई बार जब बच्चों को गुस्सा आता है तो वे भी इन्हीं शब्दों का उपयोग करते हैं. तब मातापिता को उन का यह व्यवहार नागवारा गुजरता है.

इस के साथ ही इस का प्रभाव हमारी छवि पर भी पड़ता है, इसलिए मातापिता घर से ले कर बाहर तक कुछ भी कहने में सावधानी बरतें क्योंकि बारबार अपशब्दों का उपयोग हमारी आदत में शामिल हो जाता है और फिर ये शब्द हमारे मुंह से अपने आप ही निकल आते हैं. बात कुछ दिनों पहले की है. उस दिन हमारे पड़ोस में रहने वाल 4 साल का रोहन अपने मातापिता से नाराज हो कर हमारे घर आया. पूछने पर उस ने अपनी बात को बताने के लिए कई बार कुछ अपशब्दों और गालियों का उपयोग किया. शायद वह उन शब्दों का मतलब ही नहीं जानता था. वे शब्द उस की रोज की बोलचाल में शामिल हो गए थे, इसलिए उस ने उन्हें बोलने से पहले जरा भी नहीं सोचा. इसलिए हमें बच्चों के सामने इस तरह के शब्दों से परहेज करना चाहिए.

अपमानजनक भाषा का प्रयोग

बड़े अकसर बातोंबातों में या फिर फोन पर किसी व्यक्ति के लिए गलत भाषा का उपयोग कर जाते हैं. उन्हें लगता है कि बच्चों ने नहीं सुना होगा या कई बार हम ध्यान ही नहीं देते कि आसपास बच्चे हैं और वे कुछ भी कह जाते हैं. कई बार बच्चे बड़ों की हर बात को बड़े गौर से सुनते हैं. इसलिए अगर घर में छोटे बच्चे हैं तो बेहद संभल कर बातचीत करें. बच्चों के सामने किसी के लिए अपशब्द या अभद्र भाषा का प्रयोग न करें.

कमियां निकालना

घर से मेहमान के जाने के बाद अकसर परिवार के सदस्य उस व्यक्तिको ले कर बातें करते हुए उस की कमियां निकालते हैं. यही सब बच्चे भी देखते हैं और वे भी उस व्यक्ति के बारे में वैसी ही धारणा बना लेते हैं. बच्चों के मन पर इन सब बातों का गहरा असर पड़ता है और वे भी बड़े हो कर लोगों में कमियां ढूंढ़ने लगते हैं. कई बार तो घर के सदस्य भी एकदूसरे की पीठपीछे बुराई करते नजर आते हैं. अत: मातापिता बच्चों के सामने किसी की पीठपीछे उस की कमियां न निकालें और न ही उस की बुराई करें.

एक-दूसरे का अपमान करना

हर घर में और हर पतिपत्नी के बीच  झगड़ा और नाराजगी आम बात होती है. ऐसे में एकदूसरे का अपमान करना या नीचा दिखाना सही नहीं होता. जब बच्चा ये सब देखता है तो वह उसी के आधार पर आप की इज्जत, आदर और सम्मान करता है. इसलिए जैसी इज्जत, आदर और सम्मान आप बच्चों से चाहते हैं वैसा ही सम्मान दूसरे को दें. अगर किसी बात पर नाराजगी हो तो उसे बंद कमरे में सुल झाएं न कि बच्चों के सामने. इस के अलावा बाकी सदस्य भी बच्चों के सामने एकदूसरे से अच्छी तरह से बातचीत करें. इस से बच्चों में परिवार के प्रति प्रेम बढ़ता है और वे सभी का आदर करते हैं.

जब कर रहे हों दोस्तों से या औफिस में बात

आज रवि बहुत दिनों बाद अपने बचपन के दोस्त श्याम से मिलने उस के औफिस गया और वह अपने उसी अंदाज में मिला जैसे वह बचपन में मिला करता था. कंधे पर हाथ रखे बात करना, बातबात पर मजाक करना, तेजतेज हंसना, टेबल पर रखे सामान को हाथ लगाना, फोन पर तेज आवाज में बात करना आदि. ये सब श्याम और उस के आसपास के सहकर्मियों को बिलकुल नहीं भा रहा था, लेकिन श्याम के पास कोई उपाय भी नहीं था. आखिर वह अपने बचपन के दोस्त को कैसे सब के सामने कुछ कह सकता था, यही बात दोस्तों के साथ होने वाली बातचीत में भी लागू होती है.

तानेबाजी से बचें

कई बार हम मजाक के बहाने दोस्तों से अपने मन में दबी कड़वाहट को कहने की कोशिश करते हैं और अपनी कड़वाहट  को सार्वजनिक रूप से उजागर करते हैं और यदि सामने वाले को बुरा लग जाए तो कह देते हैं कि मैं ने तो मजाक किया था.

कई बार ऐसा होता है कि पार्टी या शादीविवाह के प्रोग्राम में हम अपने उन दोस्तों संग जोकि प्रोफैशनल लाइफ में आप से आगे निकल गए होते हैं और आप वहीं हैं जहां पहले थे तो कई बार मन में जलन और कड़वाहट के भाव आते हैं और तब हम उन के साथ फनी और कूल माहौल बनाने के लिए तानेबाजी भरा मजाक करने लगते हैं. जैसे और भाई बहुतबहुत बधाई. सुना है तुम्हारी प्रमोशन हो गई है, बड़ी गाड़ी ले ली है तो आजकल बहुत बड़े आदमी हो गए हो.

फोन उठाने की भी फुरसत नहीं है, हां अब क्यों मेरा फोन उठाओगे वैगरहवैगरह कह कर दोस्तों के सामने मजाक बनाने लगते हैं. ऐसा करने से हमेशा बचें क्योंकि संभव है कि दोस्त इस चीज से आहत हो कर आप से नाराज हो जाए या संबंध खराब हो जाएं.

स्वभाव, स्थान व समय का ध्यान रखें

दरअसल, समय और जरूरत का ध्यान रख कर कही गई बात से हमारी अहमियत अपनेआप बढ़ जाती है. बोलने की कला और व्यवहारकुशलता के बगैर प्रतिभा काम नहीं आ सकती. शब्दों से हमारा नजरिया  झलकता है. कई बार हमारी बिना सोचेसम झे बोली गई बात सामने वाले को बुरी लग सकती है. तब हो सकता है जब तक आप को अपनी गलती का एहसास हो तब तक बहुत देर हो चुकी हो क्योंकि यह तो हम सभी जानते हैं कि मुंह से निकली बात, आखों से निकले आंसू एवं बाण से निकला तीर वापस नहीं आता है इसलिए हमेशा सोचसम झ कर बोलें.

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