हमारी सौंदर्य: क्यों माताश्री की पसंद की बहू उसे नही पसंद थी

शादी से पहले ही हमें पता था कि हमारी होने वाली पत्नी ने ब्यूटीशियन का कोर्स कर रखा है. फिर जब हम उन के घर उन्हें देखने गए थे तो सिर्फ हम ही नहीं बल्कि हमारा पूरा परिवार उन के सौंदर्य से प्रभावित था. हमें आज भी याद है कि वहां से लौट कर हमारी मां ने पूरे महल्ले में अपनी होने वाली बहू के सौंदर्य का जी खोल कर गुणगान किया था. उन दिनों घर आनेजाने वाले हरेक से वे अपनी होने वाली बहू की सुंदरता के विषय में बताना नहीं भूलती थीं. उन के श्रीमुख से अपनी होने वाली बहू की प्रशंसा सुन कर हमारी कई पड़ोसिनें तो उन्हें सचेत भी करती थीं कि देखिएगा बहनजी, कहीं आप के घर में बहू की सुंदरता की ऐसी आंधी न चले कि वह अपने साथसाथ सतीश को भी उड़ा कर ले जाए.

कई महिलाएं तो मां को बाकायदा सचेत भी करती थीं कि हम तो अभी से बता रहे हैं. बाद में मत कहना कि पहले नहीं चेताया था. परिचितों तथा महल्ले के कई घरों के उदाहरण दे कर वे अपने कथन को और दमदार बनाने की कोशिश करती थीं. लेकिन हमारी मां उसे महिलाओं की जलन समझ कर अपनी किस्मत पर इतराती थीं. वे उन की बातें सुनते समय अपने दोनों कानों का भरपूर उपयोग करती थीं. जहां एक कान से वे अपने उन हितैषियों की बातें सुनती थीं, वहीं दूसरे कान से अगले ही पल उन की बातें निकालने में कोई समय नहीं लगाती थीं. उन के जाने के बाद वे उन्हें जलनखोर, ईर्ष्यालु, दूसरों का अच्छा होता न देखने वाली उपाधियों से विभूषित करती थीं. हम भी मां की बातें सुन कर अपनी किस्मत पर फूले नहीं समाते थे. खैर, मां की अपनी पड़ोसिनों के साथ अपनी होने वाली बहू की प्रशंसा को ले कर खींचतान समाप्त हुई और अंत में वह दिन भी आ गया, जब मां की ब्यूटीशियन बहू का हमारी पत्नी बन कर हमारे घर में आगमन हुआ. पत्नी की सुंदरता देख कर हमें तो ऐसा लगा जैसे हमें दुनिया भर की खुशियां एकसाथ ही मिल गई हैं. पत्नी की सुंदरता से हमारी आंखें चौंधिया गई थीं.

‘‘सुनिए जी,’’ एक दिन हम दफ्तर के लिए निकल ही रहे थे कि पीछे से हमारी सौंदर्य विशेषज्ञा पत्नी की मधुर आवाज ने हमारे कानों को झंकृत किया. अपनी मोटरसाइकिल पर किक मारना छोड़ कर हम ने श्रीमतीजी की ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा.

‘‘कोई विशेष बात नहीं है. ठीक है, आप से शाम को आप के दफ्तर से आने के बाद कहूंगी,’’ कह कर श्रीमतीजी ने अपनी ओर से बात समाप्त कर दी.

अब श्रीमतीजी को तो लगा कि उन्होंने अपनी ओर से बात समाप्त कर दी है, लेकिन हमारे लिए तो यह जैसे उन की ओर से किसी चर्चा की शुरुआत मात्र थी. उस दिन दफ्तर के किसी भी काम में हमारा मन नहीं लगा. हमारा पूरा दिन यही सोचने में निकल गया कि न जाने क्या बात थी? श्रीमतीजी न जाने हम से क्या कहना चाहती थीं? दिन में 2-3 बार श्रीमतीजी ने हमारे मोबाइल पर हमें फोन भी किया, लेकिन हर बार बात कुछ और ही निकली. हमारे द्वारा पूछने पर भी श्रीमतीजी ने हमारे लौट कर आने पर बताने की बात कही.

शाम होने तक हमारी उत्सुकता अपनी चरम पर थी. हम जानना चाहते थे कि

आखिर वह क्या बात है जिसे हमारी नवविवाहिता सुबह से कहना चाहती थीं. हमारे कान उस बात को सुनने के लिए बेताब थे.

शाम की चाय पर भी जब श्रीमतीजी ने अपनी ओर से उस बात को बताने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई, कोई पहल नहीं की, तो अंत में थकहार कर हम ने श्रीमतीजी से पूछा, ‘‘सुबह दफ्तर जाते समय कुछ कहना चाहती थीं, क्या बात थी?’’

‘‘कोई विशेष नहीं… मैं तो बस इतना सोच रही हूं कि यदि आप अपने चेहरे पर से इन मूंछों को हटा दें, तो आप कहीं अधिक स्मार्ट, कहीं अधिक युवा नजर आएंगे. मेरा अनुभव बताता है कि उस के बाद आप अपनी उम्र से 10 वर्ष कम के युवा नजर आएंगे,’’ श्रीमतीजी ने जब बड़े आराम से अपनी बात रखी, तो हमें लगा जैसे किसी ने हमें एक ऊंचे पहाड़ की चोटी से धक्का दे दिया है.

‘‘मूंछों में भी तो व्यक्ति स्मार्ट लगता है. कई चेहरे ऐसे होते हैं, जिन पर मूंछें अच्छी लगती हैं. उन का संपूर्ण व्यक्तित्व मूंछों के रहने से खिल उठता है. बिना मूंछों के उन के चेहरे की कल्पना भी नहीं की जा सकती. मूंछें उन के व्यक्तित्व की शान होती हैं,’’ हम ने मूंछों और मूंछ वालों के पक्ष में अपने तर्क रखे.

‘‘हो सकता है कुछ लोगों के साथ ये बातें भी हों, लेकिन मैं ने अंदाजा लगा लिया है कि बिना मूंछों के आप का चेहरा कहीं अधिक आकर्षक, कहीं अधिक युवा नजर आएगा,’’ श्रीमतीजी ने निर्णायक स्वर में कहा.

लोग अपनी नवविवाहिता को खुश करने के लिए क्याक्या नहीं करते. फिर यहां तो श्रीमतीजी ने एक छोटी सी मांग रखी है, यह सोच कर हम ने अपनी प्यारी मूंछों को, जिन का हम से वर्षों का नाता था, एक ही झटके में स्वयं से अलग कर लिया.

लेकिन यह तो जैसे एक शुरुआत मात्र थी. एक शाम जब हम घर पहुंचे तो श्रीमतीजी को सजाधजा देख कर हमारा माथा ठनका, ‘‘क्यों कहीं चलना है क्या?’’ हम ने पूछा.

‘‘जी हां, आप के लिए कुछ शौपिंग करनी है,’’ श्रीमतीजी ने हमें सकारात्मक जवाब दिया.

कुछ ही देर में हम शहर के एक व्यस्त शौपिंग मौल में थे. वहां से श्रीमतीजी ने हमारे लिए कुछ टीशर्ट्स तथा जींस यह कहते हुए खरीदीं, ‘‘एक ही तरह के कपड़े पहनने के बदले आप को कुछ नया ट्राई करना चाहिए. इन्हें पहन कर आप अधिक चुस्तदुरुस्त, अधिक युवा नजर आएंगे.’’

फिर तो हमें समझ में ही नहीं आ रहा था कि हमारी सौंदर्य विशेषज्ञा पत्नी हम में और कितने परिवर्तन लाएंगी. कभी फेशियल तो कभी बालों को रंगना तो कभी कुछ और. हम ने तो इस स्थिति से समझौता कर स्वयं को श्रीमतीजी के हवाले कर ही दिया था. हम समझ गए थे कि अब हम चाहे जो कर लें, हमारी सौंदर्य विशेषज्ञा पत्नी हमारा कायाकल्प कर के ही मानेंगी. लेकिन बात यदि हम तक ही सीमित होती तो भी ठीक था. श्रीमतीजी ने तो जैसे ठान लिया था कि पूरे घर को बदल डालूंगी. उन्होंने घर के सभी सदस्यों के व्यक्तित्व में आमूलचूल परिवर्तन करने का दृढ़ निश्चय कर लिया था.

एक दिन जब दफ्तर से हम घर लौटे तो ड्राइंगरूम में जींसटौप पहने बैठी एक

महिला, जिन्होंने चेहरे पर फेसपैक लगा रखा था तथा दोनों आंखों पर खीरे के 2 टुकड़े, हमें कुछ जानीपहचानी सी लगीं. अभी हम पहचानने की कोशिश कर ही रहे थे कि पीछे से एक आवाज आई, ‘‘क्या अपनी जन्म देने वाली मां को भी पहचान नहीं पा रहे? क्या उन्हें पहचानने के लिए भी दिमाग पर जोर डालना पड़ रहा है? देखिए मम्मीजी, मैं कहती थी न यदि आप अपने शरीर की उचित देखभाल करें, अपने सौंदर्य के प्रति सचेत रहें तथा थोड़े ढंग के फैशन के अनुसार कपड़े पहनें, तो आप के व्यक्तित्व में आश्चर्यजनक परिवर्तन आ जाएगा. आप अपनी उम्र से बहुत कम की लगेंगी तथा पड़ोस की सारी आंटी आप को देख कर ईर्ष्या करेंगी, आप से जलेंगी,’’ यह हमारी श्रीमतीजी की आवाज थी.

‘‘अच्छा तो हमारे बाद अब मम्मीजी की बारी है?’’ हमारे पास इस के अलावा श्रीमतीजी से कहने के लिए और शब्द ही नहीं थे.

फिर जैसा हमें अंदेशा था वही हुआ, मम्मीजी के बाद श्रीमतीजी के अगले शिकार हमारे परमपूज्य पिताजी थे. आप सोचेंगे कि अपने पूज्य ससुरजी के साथ हमारी श्रीमतीजी भला क्या प्रयोग कर सकती हैं, वे उन में भला क्या बदलाव ला सकती हैं? लेकिन नहीं, ‘जहां चाह वहां राह’ वाली उक्ति को चरितार्थ करते हुए श्रीमतीजी ने यहां भी अपनी विशेषज्ञता का प्रमाण दिया. हमेशा ढीलेढाले वस्त्र पहनने वाले हमारे पिताश्री अब जींस और टीशर्ट के अलावा अन्य किसी दूसरे वस्त्र की ओर देखते तक नहीं. उन की पैरों में चप्पलों का स्थान अब स्पोर्ट्स शूज ने ले लिया है. सिर के सारे बाल एकदम काले हो गए हैं. इस के अलावा भी हमारे मातापिता सौरी मम्मीपापा में बहुत से चमत्कारिक परिवर्तन हो गए हैं. दोनों ही स्वयं के सौंदर्य प्रति बहुत सचेत बेहद सजग हो गए हैं.

श्रीमतीजी के सौंदर्य विशेषज्ञा होने की प्रसिद्धि धीरेधीरे पूरे महल्ले में फैल चुकी है. अब तो ऐसा लगने लगा है कि हमारे पूरे महल्ले में सौंदर्य के प्रति सजगता अचानक बहुत तेजी से बढ़ गई है. क्या पुरुष क्या महिलाएं क्या जवान क्या बूढ़े, सभी समय के कालचक्र को रोक देना चाहते हैं. वे समय के पहिए को उलटी दिशा में घुमाना चाहते हैं तथा अपनी इस इच्छापूर्ति का उन्हें सिर्फ और सिर्फ एक ही साधन, एक ही अंतिम उपाय नजर आता है. वे हैं हमारी श्रीमतीजी.

हमारे महल्ले में प्राय: सभी का मानना है कि श्रीमीतजी के द्वारा ही उन का जीर्णोद्धार हो सकता है. उन्हें नया रूपरंग मिल सकता है. प्रकृति प्रदत्त उन के शरीर को सिर्फ हमारी श्रीमतीजी ही एक नया व आकर्षक रूप दे सकती हैं. अत: वे श्रीमतीजी के ज्ञान का लाभ लेने एवं स्वयं को आकर्षक एवं सुंदर बनाने के लिए बिना किसी ?झिाक के हमारे घर आते हैं. प्राय: उन के आते ही शुरू हो जाता है फेशियल, कटिंग, थ्रेडिंग, ब्लीचिंग, बौडी मसाज जैसे शब्दों के साथ शरीर को सुंदर बनाने का सिलसिला. अब तो शाम को दफ्तर से लौटने पर भी हमें श्रीमतीजी के कस्टमर्स से 2-4 होना पड़ता है. कोई दिन ऐसा नहीं होता जब हम दफ्तर से थकेहारे घर लौटे हों और श्रीमतीजी के 2-3 कस्टमर्स हमारे घर पर उपस्थित न हों. हमें अपने घर में ही पराएपन का एहसास होने लगा है. सिर्फ इतना ही नहीं, ‘भाभीजी भाभीजी’ करते हुए महल्ले के नवयुवक श्रीमतीजी से सुंदरता के सुझव लेने के बहाने उन्हें घेरे रहते हैं तथा श्रीमतीजी अपने चुलबुले देवरों को उपयोगी सुझव दे कर उन्हें उपकृत करती रहती हैं. हम चुपचाप एक ओर बैठे अपनी स्थिति पर ही अफसोस करते रहते हैं.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें