पति अब परमेश्वर नहीं

अब यह समझ नहीं आ रहा है कि पूना की रेखा खन्ना की बुराई जीभर के की जाए, अब उसे टै्रंड सैंटर कहा जाए. दरअसल, उस ने नवंबर, 2023 के अंतिम सप्ताह में पुणे में अपने एक बिल्डर पति निखिल खन्ना से बहस के दौरान नाक पर मुक्का मारा जिस से उस के नाक की हड्डियां चटक गईं और वह गिर गया तथा बहुत खून बहने से उस की मौत हो गई.

बुराई इसलिए कि वह पति की हत्यारिन है, ट्रैंड सैंटर इसलिए कि उस ने सभी पतियों को चेतावनी दी है कि हिंसा दोनों तरफ से हो सकती है और पिटने वाली औरतें अब रिश्वत न लेने वाले गुप्त सरकारी कर्मचारी जीवों की तरह कम होने लगी हैं. अभी यह पता नहीं कि नाक पर मुक्का मारा गया था या कोई और चीज मारी गई थी.

अगर मुक्का मारा गया तो यह पतियों को ही नहीं सभी पुरुषों, लड़कों के लिए संदेश है कि औरतों को कमजोर कतई न समझें. औरतों को ताड़न का अधिकारी कहने वाले तुलसीदास के दिन लदने लगे हैं. अब न शूद्र को पीटा जा सकता है, न पशु को. ढोल ही बचा जिसे तुलसीदास प्रेमी बजाबजा कर दानदक्षिणा की महिमा गा सकते हैं जिस से रामचरितमानस भरी है.

रामचरितमानस वाली नारी अब अपनेआप में वैसे ही कम हो गई है. वह न दान की वस्तु है, न भोग की, न हिंसा की शिकार. अकेले में तो हर आदमी भी पिट लेता है पर उसे कमजोर नहीं सम?ा जाता. अब औरतों के समूह आसानी से जमा करे जा सकते हैं जो लड़कियों में हिंसा करने वाले लड़कों की छुट््टी कर सकते हैं.

राजस्थान का गुलाबी गैंग इस बारे में प्रसिद्ध हो चुका है और रेणुका खन्ना ने एक नया ट्रैंड स्थापित कर दिया है. 2017 में निखिल खन्ना से विवाहित रेणुका की नाराजगी यह बताई जाती है कि वह उसे उस के बर्थडे पर दुबई नहीं ले गया, फिर उस ने विवाह वर्षगांठ पर सही उपहार नहीं दिया और ऊपर से मर्दानगी दिखाते हुए उस की भतीजी की शादी के लिए दिल्ली जाने का टिकट नहीं बनवाया.

अब पतियों को उसी तरह होशियार रहना होगा जैसे सदियों से पत्नियां रहती आई हैं. धर्म का दिखावा औरतों पर से उतर रहा है और वे पति को परमेश्वर नहीं, साथी, बराबर का साथी मानती हैं. रेणुका के साथ कानून कुछ भी करे पर यह पक्का है कि बहुत से पति अब पत्नी पर हाथ उठाने से पहले 2 बार सोचेंगे.

जानें कैसे बदलें पति की दूरी को नजदीकी में

शायद ही ऐसी कोई पत्नी होगी जो अपनी शादी पर 2-4 आंसू न बहाती हो. शादी के कुछ साल गुजरने के बाद पति में तो अपनी भावनाएं व्यक्त करने की काबिलीयत जैसे कुम्हला सी जाती है और पत्नी अपने पति को दिन-ब-दिन नीरस बनता देखती रहती है, जिस से उस का मन व्यग्रता और हताशा से भरने लगता है. ये दूरियां एक ऐसी कशमकश पैदा करती हैं जिस की शिकायत पत्नियां बरसों से करती आई हैं, उन्हें रविवार की दोपहर को क्रिकेट मैच में, अखबार के पन्नों में या फिर चुप्पी में सिमटा या लिपटा पति मिलता है.

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार पतिपत्नी के बीच बढ़ती दूरियों के लिए उन की स्वभावगत कमियां इतनी जिम्मेदार नहीं होतीं जितनी दंपती की आपसी बातचीत में आई कमी. स्टेट यूनिवर्सिटी औफ न्यूयार्क के मैरिटल थेरैपी क्लीनिक के निदेशक व क्लीनिकल साइकोलोजिस्ट के. डेनियल ओ लैरी के अनुसार, दांपत्य में जो सब से बड़ी व आम समस्या देखने को मिलती है वह पति के द्वारा अपनेआप को दूर रखने या अपने को समेट लेने से आई दूरियोें के कारण होती है. यह सब से ज्यादा नुकसानदेह होती है. इस समस्या का समाधान भी सब से मुश्किल होता है. ये दूरियां गुजरते समय के साथ ज्यादा गंभीर बनती जाती हैं, क्योंकि पति समय के साथसाथ अपने व्यवसाय और कैरियर में अधिक उल झता जाता है.

बढ़ती दूरियां

यह कैसी विडंबना है कि जहां पुरुष ने पहले की तुलना में अपनी भावुकता को खुली छूट देते हुए भावनाओं को व्यक्त करने से जुड़ी  िझ झक त्यागी है, वहीं अपनेआप में सिमटे रहने का उस का अपना अलग ही अंदाज दांपत्य में मुश्किलें खड़ी करने लगा है. मैगी ने अपनी मशहूर पुस्तक ‘इंटीमेट पार्टनर्स : पैटर्न इन लव एंड मैरिज’ में लिखा है कि जहां तक मैं सम झती हूं, क्लीनिकल साहित्य में किसी भी प्रकार के वैवाहिक संबंध में इतना उल झाव नहीं देखा जाता जितना उल झाव तब पैदा होता है, जब पति अलगथलग रहने लगे व अपनेआप में सिमटने लगे. यही बात अगर बेबाकी से कही जाए तो हताश पत्नी के लिए पति अलभ्य और अप्राप्य बन जाता है.

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हताश पत्नी, जो कि भावनात्मक रूप से जिस पतिरूपी पुरुष में विश्वास के साथ यह आशा रखती है कि वह उसे प्यार करता है और उसे हमेशा सहारा देगा, वही उसे एकदम गैर जैसा लगने लगता है, क्योंकि पति की तरफ से उसे ऐसा कोई संकेत नहीं मिलता, जो पत्नी को यह महसूस कराए कि वह उस की भावनाओं के प्रति कैसा महसूस करता है. पति ऐसे हालात में पत्नी की बातों का जवाब सपाट तरीके से देता है. उसे बांहों में भरता भी है तो महज अपनेआप से जुड़ी सेक्स की इच्छा के लिए. वह पत्नी को यह महसूस नहीं कराता कि वह उस के करीब रहना चाहता है.

इस तरह की दूरियां किसी  झगड़े, तनाव या नाराजगी से नहीं होतीं. इन दूरियों का जिम्मेदार स्वयं पति होता है, क्योेंकि ये उस के मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक स्तर पर सिमटने के कारण होती हैं. जया गुप्ता के अनुसार, जब अचानक उन का गर्भपात हुआ तो उस के बाद उन के पति उन से दूरदूर रहने लगे. पति का शरीर उन के पास बैठा होता था और मन कहीं दूर रहता.

अभिव्यक्ति का अभाव

कई बार ग्लानि का शिकार हो कर अपने द्वारा बुनी गई शंकाओं में पति खुद ही उल झते जाते हैं और उन्हें अपने अंदर पनपती ठंडक और रूखेपन का खुद ही एहसास नहीं होता. डा. चंदन गुप्ता के अनुसार, ज्यादातर पुरुष ऐसे ही होते हैं. वे महिलाओं की तरह अपनी भावनाओं को खुल कर नहीं दर्शाते. पुरुषों को बचपन से यही सिखाया जाता है कि उन्हें अपनी भावनाओं को जाहिर नहीं करना है, जबकि महिलाओं को अपनी भावनाएं व्यक्त करने की पूरी छूट होती है. हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के मनोवैज्ञानिक सैमुअल ओशेरसन का मानना है कि अपनेआप में सिमटने की पुरुष की प्रवृत्ति के पीछे उस की किशोरावस्था के हादसों से जुड़े कुछ गहरे दुखदायी घाव होते हैं, जो समय के लंबे अंतराल के बावजूद मनोवैज्ञानिक स्तर पर नहीं भरते. मनोवैज्ञानिक स्तर पर आहत ऐसे व्यक्ति मानसिक  अकेलेपन से बहुत कम उबर पाते हैं. फ्रायड के अनुसार, पुत्र जब पिता की स्वीकृति या प्रशंसा पाने के लिए मां के प्रति अपने आकर्षण को  झटक देता है तो मां से भावनात्मक दूरी उस पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव छोड़ती है, जिस से उबरने के लिए वह सारी उम्र जू झता रहता है. वह जो खो बैठता है उसी की आदर्शमय कल्पना को थामे रहता है और दृढ़ता के साथ अपनी भावनात्मक आवश्यकताओं के लक्षणों को छिपा जाता है. फ्रायड द्वारा इसे पुरुष में उत्पन्न ईडियस अंतर्द्वंद्व का नाम दिया गया है. ऐसी स्थिति में पति जब बालसुलभ इच्छाओं और आवश्यकताओं से घिरता है तो पत्नी को उसे एक छोटे बच्चे की तरह सम झने की आवश्यकता होती है.

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कई पति, पत्नी से मिले अनुराग और उस की दिलचस्पी का गलत अर्थ निकालते हैं. उन्हें लगता है कि भावनात्मक रूप से कमजोर पलों में पत्नी उन के मन की गहराइयों में छिपे राज या अनकही अनुभूतियों तक पहुंचना चाहती है. इस तरह का पत्नी में अविश्वास उन के संबंधों की दूरियां बढ़ाता है. पत्नी के प्यार को मात्र रि झाने और मन की थाह लेने की प्रक्रिया न सम झें, क्योंकि पत्नी प्यार में राजनीति नहीं करती.

भावनाओं को जानें

जैविक रूप से भी पुरुष अपनी भावनाएं छिपाता है. कोरनेल मेडिकल सेेंटर, न्यूयार्क के मनोवैज्ञानिक विश्लेषक जौन मुंडेर रौस के कथनानुसार, महिलाओंकी अपेक्षा पुरुष ज्यादा आक्रामक प्रवृत्ति के होते हैं और पुरुष से जुड़ी यही विशेषता हर जाति और हर संस्कृति के पुरुषों में समान पाई जाती है. पुरुष जितना ज्यादा आक्रामक प्रवृत्ति का होगा उस में संवेदनशीलता और भावनात्मक रूप से जुड़ने की प्रवृत्ति की उतनी ही कमी पाई जाएगी. पुरुष बचपन से ही मां के जरिए संवेदनशीलता और भावनात्मकता का अनुभव करता है. पिता का व्यक्तित्व कठोरता, दृढ़ता और गंभीरता सिखाता है. वह यही सब देखते हुए बड़ा होता है तो उसे अपनी भावनात्मक कमजोरियां और डर छिपाने की आदत पड़ जाती है. यही कारण है कि वह अपने डर व परेशानियां पत्नी से छिपाता हुआ उस से दूर होने लगता है.

पत्नियां पति को ले कर पनपती दूरियों से परेशान हो सकती हैं. लेकिन इस समस्या का हल पहचान नहीं पातीं. पत्नी को पति के मन की गहराइयों में छिपी चिंताओं और डरों को जानना होगा. तभी वह दांपत्य में पति की चुप्पी से पनपती दूरियों को पाट पाएगी. न्यूयार्क की वैवाहिक व सेक्स संबंधों की थेरैपिस्ट शिर्ले जुसमैन के अनुसार एक तरफ तो पत्नी चाहती है कि पुरुष अपने मन की सभी बातें उस के आगे खोल कर रख दे और दूसरी तरफ जैसे ही पुरुष ऐसा करता है तो वह सहम जाती है, क्योंकि उसे बचपन से यही सिखाया जाता है कि भावनात्मक कमजोरी पुरुष के लिए अच्छी नहीं. पति कई बार पत्नी को इसी डर से बचाए रखने के लिए अपनी भावनाएं, भय और शंकाएं पत्नी से नहीं बांटता. इसलिए अगर पत्नी चाहती है कि पति अपनी चिंताएं और परेशानियां बांटे, अकेले ही चुप्पी लिए दूर न होता चला जाए तो उसे यह बात पूरी तरह सम झनी होगी कि पुरुष को भी अपने भय और चिंताएं व्यक्त करने का हक है.

पति अपनी भावनाएं व्यक्त करें, इस के लिए पत्नी को जोर देते हुए पति के पीछे नहीं पड़ जाना चाहिए. इस से संबंधों में तनाव और बढ़ जाता है. पत्नियां कई बार बेबुनियादी तर्क देते हुए कहती हैं कि जब हम अपनी भावनाओं को ले कर बात कर सकती हैं तो पुरुष ऐसा क्यों नहीं कर सकता? लेकिन वे यह बात नहीं सम झ पातीं कि अगर वे अपनी भावनाएं व्यक्त करती रहती हैं तो यह जरूरी नहीं कि पुरुष भी ऐसा ही करें. लेकिन जहां पुरुष अब यह सोचने लगे हैं कि अपनी भावनाएं दर्शाने में कोई बुराई नहीं, वहीं वे यह नहीं सीख पाए हैं कि भावनाओं को दर्शाएं कैसे.

प्यार से जानें राज

शिर्ले जुसमैन के अनुसार, दांपत्य में भावनात्मक संबंधों से जुड़ी कई परतें होती हैं, जो परतदरपरत ही खुलती हैं. संवेदनशील सेक्स द्वारा पत्नियां पति के अंदर पनपती इन दूरियों को जीत सकती हैं, क्योंकि अगर पति सेक्स के माध्यम से पत्नी से भावनात्मक रूप से जुड़ा हुआ महसूस करता है तो यह मात्र मशीनी प्रक्रिया न रह कर पति को भावनात्मक रूप से नजदीक ला सकती है. यही वे पल हैं जब वह अपना मन खोल कर पत्नी के सामने रख सकता है. मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि पुरुषों में भावनात्मक तौर पर सिमटे रहना कूटकूट कर भरा होता है.

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यह स्त्री की भी जिम्मेदारी होती है कि वह उसे खुलने में मदद करे. लेकिन स्त्री या पत्नी की सफलता तब बहुत सीमित हो जाएगी, जब वह पति की धीरेधीरे खुलने की प्रवृत्ति की आलोचना शुरू कर देगी. यही वह स्थिति है जहां उसे सावधानी के साथ पति के मन के खुलने की प्रक्रिया में उस का साथ देना है. पति को बिना रोकटोक के मन की बात कहने दें. उस समय पति द्वारा व्यक्त सभी भावनाओं को सम्मान की दृष्टि से देखते हुए तसल्ली के साथ सुनें. पत्नी द्वारा किसी भी प्रकार की गलत प्रतिक्रिया पति को वापस अपनेआप में समेट कर रख देगी, जहां से उसे वापस लाना और भी कठिन हो जाएगा. पुरुष को भावनात्मक स्तर पर दूर जाने से रोकने के लिए उस को भावनात्मक दृढ़ता, सुरक्षा और स्नेह दें व इतनी छूट दें कि वह अपने तरीके से खुल सके. पति को डंडे के जोर पर बोलने के लिए मजबूर न करते हुए उसे ऐसा माहौल दें, जहां वह अपनी भावनाओं का बो झ खुदबखुद आप के सामने हलका कर सके.6

भूलकर भी न कहें पति से ये 6 बातें

हमेशा पति को ही हर गलत बात का जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता. पत्नियां भी काफी अनुचित बातें कह कर पति का दिल दुखाती हैं. कुछ बातें पति को कभी न कहें. उन्हें बुरा लग सकता है. जानें वे बातें क्या हो सकती हैं-

1. मैं कर लूंगी

पलंबर या इलैक्ट्रिशियन को बुलाने के समय यह न कहें कि मैं कर लूंगी, भले ही इस से आप का काम जल्दी हो जाए पर पति को शायद अच्छा न लगे. मनोवैज्ञानिक ऐनी क्रोली का कहना है, ‘‘हो सकता है वह आप की हैल्प कर के आप को खुश करना चाहता हो. इस बात से पति चिढ़ते हैं, क्योंकि ‘मैं कर लूंगी’ इस बात से पति के कार्य करने पर आप का संदेह प्रतीत होता है और या यह कि आप को उस की जरूरत नहीं है.’’

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2. तुम्हें पता होना चाहिए था

क्लीनिकल मनोवैज्ञानिक रियान होव्स का कहना है, ‘‘अगर आप यह आशा करती हैं कि आप का पति हर बात या इशारा जो आप करती हैं, अपनेआप समझ जाएं तो आप खुद ही निराश होंगी. जब पति पत्नी के मन की बात नहीं समझते तो पत्नियां बहुत अपसैट हो जाती हैं. लेकिन पुरुष सच में दिमाग नहीं पढ़ पाते. अगर पत्नियां इस बात को स्वीकार कर लें तो वे बहुत दुखों से बच सकती हैं. वे साफसाफ कहें कि वे क्या चाहती हैं.’’

3. क्या तुम्हें लगता है कि वह सुंदर है

पुरुषों की काउंसलिंग के स्पैशलिस्ट एक थेरैपिस्ट कर्ट स्मिथ का कहना है, ‘‘क्या आप सचमुच किसी आकर्षक स्त्री के विषय में अपने पति के विचार जानना चाहती हैं? शायद नहीं. आप यह पूछ कर अपने पति को असहज स्थिति में डाल रही हैं. कमरे में अधिकांश पुरुष सुंदर स्त्री को पहले ही देख चुके होते हैं. यदि वह आप का सम्मान रखने के लिए वहां नहीं देख रहा है तो आप का पूछना उसे असहज कर देगा. वह तय नहीं कर पाएगा कि आप को अपसैट न करने के लिए या आप को दुख न पहुंचाने के लिए क्या करे.’’

4. पुरुष बनो

स्मिथ कहते हैं, ‘‘क्या आप सचमुच ये शब्द कहती हैं? पुरुष बन कर दिखाने का कोई सही या गलत तरीका नहीं है. आदमी बनो यह कहना उस की पहचान पर एक घातक हमला होता है, यह नफरत और शर्म से भरी बात होती है, यह आप के रिश्ते को ऐसी हानि पहुंचा सकती है, जिस की पूर्ति मुश्किल होगी.’’

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5. हमें बात करने की जरूरत है

ये शब्द विवाहित पुरुष के अंदर डर सा पैदा कर देते हैं. थेरैपिस्ट मार्सिया नेओमी बर्गर का कहना है, ‘‘अगली बार कोई इशू हो तो आसान शब्दों का प्रयोग करें. ये शब्द सिगनल देते हैं कि पत्नी को पति से शिकायत या कोई आलोचना का विषय है, फिर जो आप अकसर सोच रही होती हैं, उस के उलटा हो जाता है.’’

6. फिर दोस्तों के साथ जा रहे हो

होव्स कहते हैं, ‘‘पति का दोस्तों के साथ क्रिकेट देखने या गोल्फ खेलने से आप के विवाह को कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा, यह चीज आप के रिश्ते को अच्छा ही बनाएगी. हां, कभीकभी पति पीने के लिए कोई बहाना कर देते हैं पर अधिकतर कुछ सलाह, कुछ महत्त्वपूर्ण बातें, सहारे के लिए मिलतेजुलते हैं, जो पत्नी अपने पति को दोस्तों से मिलनेजुलने से मना करती है वह अपने पति को उस के सपोर्ट सिस्टम से दूर कर रही होती है जबकि वह अन्य पतियों और पिताओं के साथ समय बिता कर अच्छा इनसान ही बनेगा.’’ किसी पुरुष ने आप का पति बनने के बाद अपनी मरजी से जीने का अधिकार नहीं खो दिया है. उस पर विश्वास करें, उस का सम्मान करें. अपनी शिकायतें, सुखदुख उस के साथ प्यार से बांटें. वैसे भी आज के जीवन में बहुत भागदौड़ है, तनाव है. उस के साथ अपना जीवन प्यार से, सुख से, आराम से बिताएं.

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बदल रहे हैं नई पीढ़ी के पति-पत्नी

 ऋचा की सास उस के पास 1 महीने के लिए रहने आई थीं. उन के वापस जाते ही ऋचा मेरे पास आई और रोंआसे स्वर में बोली, ‘‘आज मुझे 1 महीने बाद चैन मिला है. पता नहीं ये सासें बहुओं को लोहे का बना क्यों समझती हैं, यार. हम भी इंसान हैं. खुद तो कोई काम करना नहीं चाहती और यदि उन का बेटा जरा भी मदद करे तो भी अपने जमाने की दुहाई दे कर तानों की बौछार से कलेजा छलनी कर देती हैं. वे यह नहीं समझतीं कि उन के जमाने में उन के कार्य घर तक ही सीमित थे, लेकिन अब हमें जीवन के हर क्षेत्र में पति का सहयोग करना पड़ता है. आर्थिक सहयोग करने के साथसाथ बाहर के अन्य सभी कार्यों में कंधे से कंधा मिला कर भी चलना पड़ता है. ऐसे में पति घर के कार्यों में अपनी पत्नी का सहयोग करे तो सास को क्यों बुरा लगता है? उन की सोच समय की मांग के अनुसार क्यों नहीं बदलती? बेटे भी अपनी मां के सामने मुंह नहीं खोलते.’’

उस के धाराप्रवाह बोलने के बाद मैं सोच में पड़ गई कि सच ही तो है कि पुरानी पीढ़ी की सोच में आज की पीढ़ी की महिलाओं की जीवनशैली में बदलाव के अनुसार परिवर्तन आना बहुत आवश्यक है.

1. पतिपत्नी की बदली जीवनशैली

नई टैक्नोलौजी के कारण एकल परिवार होने के कारण युवा पीढ़ी के पतिपत्नी की जीवनशैली में अत्यधिक बदलाव हो रहे हैं, लेकिन अधिकतर नई पीढ़ी की जीवनशैली के इस बदलाव को पुरानी पीढ़ी द्वारा नकारात्मक दृष्टिकोण से ही आंका जा रहा है, क्योंकि सदियों से चली आई परंपराओं के इतर उन्हें देखने की आदत ही नहीं है, इसलिए बदलाव को वे स्वीकार नहीं कर पाते, लेकिन समय के साथ हमारे शरीर में परिवर्तन आना अनिवार्य है. प्रकृति में भी बदलाव आता है, तो अपने आसपास के बदले नए परिवेश के अनुसार अपनी सोच में भी बदलाव को अनिवार्य क्यों नहीं मानते? क्यों हम पुरानी मान्यताओं का बोझ ढोते रहना ही पसंद करते हैं? जो हम देखते आए हैं, सुनते आए हैं, सहते आए हैं. वह उस समय के परिवेश के अनुकूल था, लेकिन आज के परिवेश के अनुसार बदलाव को हम क्यों पुराने चश्मे से ही धुंधला देख कर उन के क्रियाकलापों पर टिप्पणी कर रहे हैं? अफसोस है कि युवा पीढ़ी की अच्छी बातों की तारीफ करने के लिए न तो हमारे पास दृष्टि है न मन, है तो सिर्फ आलोचनाओं का भंडार.

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2. पुरानी पीढ़ी में कार्यों का विभाजन

पहले जमाने में लड़के और लड़की के कार्यों का विभाजन रहता था, क्योंकि लड़कियां घर से निकलती ही नहीं थी. इसलिए गृहकार्यों का भार पूर्णतया उन के जिम्मे रहता था और इस के लिए उन दोनों के बीच अच्छीखासी लक्ष्मण रेखा खींच दी जाती थी, लेकिन अब जब लड़कियां लड़कों के बराबर पढ़ाई के साथसाथ नौकरी भी कर रही है तो यह विभाजन समाप्त हो जाना चाहिए.

3. आधुनिक युवा पीढ़ी में कार्यविभाजन नहीं

युवा पीढ़ी की लड़कियों ने पढ़लिख कर आत्मनिर्भर हो कर जागरूकता के कारण कार्यविभाजन के लिए विद्रोह करना आरंभ किया ही था कि कब समय ने बदलाव की अंगड़ाई ली और यह सोच दबे पांव हमारे घरों में घुसपैठ करने लगी, कब पुरुष सोफे से उठ कर किचन में दखल देने पहुंच गया, पता ही नहीं चला, क्योंकि इस की चाल कछुए की चाल थी. निश्चित रूप से यह पश्चिमी सभ्यता की देन है, जहां कार्य विभाजन होता ही नहीं है.

4. स्त्रीपुरुष की बराबरी को लेकर शोध

स्त्रीपुरुष की बराबरी को ले कर शोधों में भले ही सकारात्मक नतीजे दिख रहे हों, लेकिन वास्तविकता थोड़ी अलग है. पिछले दिनों नेल्सन इंडिया द्वारा भारत के 5 अलगअलग शहरों में कराए गए एक सर्वे में लगभग दोतिहाई स्त्रियों ने माना कि उन्हें घर में असमानता का सामना करना पड़ता है. इस सर्वे में मुंबई, चेन्नई, दिल्ली, हैदराबाद और बैंगलुरु जैसे बड़े शहर शामिल हैं. सर्वे में शिल्पा शेट्टी, मंदिरा बेदी और नेहा धूपिया जैसी सैलिब्रिटीज को भी शामिल किया गया. लगभग 70% स्त्रियों ने कहा कि उन का ज्यादातर समय घर के कामों में बीत जाता है और पति के साथ वक्त नहीं बिता पातीं.

दिलचस्प बात यह है कि 76% पुरुष भी यही मानते हैं कि खाना बनाने, कपड़े धोने या बच्चों की देखभाल जैसे कार्य स्त्रियों के हैं. छोटे शहरों में तो अभी भी पुरुष यदि स्त्रियों के घरेलू कार्यों में मदद करें तो उन का मजाक उड़ाया जाता है. नौकरी करने वाली औरतें दोगुनी जिम्मेदारी निभाने के लिए मजबूर हैं. वैसे एकल परिवारों का चलन बढ़ने से थोड़ा बदलाव भी दिख रहा है. पुरुष घरेलू कार्यों में सहयोग दे रहे हैं लेकिन इसे पूरी तरह बराबरी नहीं माना जा सकता.

5. इस बदलाव की शुरुआत अच्छी है

अभी यह बदलाव कुछ प्रतिशत तक ही सीमित है, लेकिन यह शुरुआत अच्छी है और पूरा विश्वास है कि यह सुखद बदलाव की आंधी पूरे भारत को अपनी गिरफ्त में ले लेगी. यह बदलाव पतिपत्नी के रिश्तों में भी सकारात्मक परिवर्तन ला रहा है. उन के बीच स्वस्थ दोस्ती का रिश्ता कायम हो रहा है. उन में आपस में एकदूसरे के लिए समर्पण की, त्याग की भावना और सहयोग की प्रवृत्ति बढ़ने के साथसाथ स्त्री का सामाजिक स्तर भी बढ़ रहा है.

6. पतिपत्नी के रिश्ते दोस्ताना

आरंभ में इस ने उच्चवर्गीय समाज में पांव पसारे, जहां समाज का हस्तक्षेप न के बराबर होता है. उस के बाद मध्यवर्गीय परिवारों में भी इस बदलाव के लिए क्रांति सी आ गई. अब पतिपत्नी मानने लगे हैं कि उन्हें एकदूसरे के साथ सहयोग करना चाहिए. समय के साथ पुराने मूल्यों, मान्यताओं, परंपराओं को बदलना आवश्यक है.

7. युवा पीढ़ी के पिता की भूमिका बदली

पहले जमाने के विपरीत पिता की भूमिका बच्चों के बाहरी कार्यों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि विदेशों की तरह अस्पतालों में प्रसव के समय मां के साथ पिता को भी बच्चों के पालनपोषण से संबंधित हर क्रियाकलाप करने की ट्रेनिंग दी जाने लगी है. औफिस वाले भी कर्मचारी की पत्नी के प्रसव के समय बच्चे और मां की देखरेख के लिए उसे छुट्टियों से भी लाभान्वित करते हैं. अब बच्चे का पालनपोषण करना केवल मां का ही कर्तव्य नहीं रह गया, बल्कि पति भी बराबर का भागीदार हो रहा है. पहले बच्चों के डायपर बदलना पुरुषों की शान के खिलाफ था, लेकिन अब वे सार्वजनिक रूप से भी ऐसा करने में संकोच नहीं करते. शोध यह भी कहते हैं कि चाइल्ड केयर के मामले में स्त्रियों की जिम्मेदारियां हमेशा पुरुषों से अधिक रही हैं. भले ही वे होममेकर हों या नौकरीपेशा.

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8. बदलाव के परिणाम परिवार के लिए सुखद

जौर्जिया यूनिवर्सिटी के समाजशास्त्र विभाग के शोधकर्ता डेनियल कार्लसन ने अपनी रिपोर्ट में कहा है, ‘‘दृष्टिकोण को बदलना और एकदूसरे को सहयोग देना परिवार और रिश्तों की बेहतरी के लिए बहुत जरूरी है. यदि पतिपत्नी में एक खुश और दूसरा नाखुश होगा तो रिश्ते कभी बेहतर नहीं होंगे. पारिवारिक और सामाजिक रिश्तों की नींव को मजबूत बनाए रखने के लिए भी ऐसा जरूरी होता है. दोनों परिवाररूपी गाड़ी के 2 पहिए हैं. परिवार को सुचारु रूप से चलाने के लिए दोनों में संतुलन होना आवश्यक है. नए परीक्षणों, शोधों के बाद समाजशास्त्री और मनोवैज्ञानिक इस नतीजे तक पहुंच रहे हैं कि पत्नी को बराबरी का दर्जा देने वाले पुरुष ज्यादा सुखी रहते हैं. ऐसे पुरुषों का सैक्स जीवन औरों के मुकाबले बेहतर होता है.

9. पुरानी पीढ़ी भी लाभान्वित

स्त्रीपुरुष में घरेलू कार्यों को ले कर तालमेल रहे तो पुरानी पीढ़ी को भी बहुत लाभ हैं. पुरुष भी रिटायरमैंट के बाद स्त्रियों की तरह घरेलू कार्यों में व्यस्त रह कर अपने खालीपन को भर सकते हैं. परिवार के बड़ेबूढ़ों को पूर्वाग्रहों से ग्रस्त होने के कारण आरंभ में उन्हें यह बदलाव अजीब सा लगा. लेकिन धीरेधीरे उन की आंखों को सब देखने की आदत सी पड़ रही है. रिटायरमैंट के बाद बेटेबहू द्वारा सारे कार्य सुचारू रूप से करने के कारण उन की जिम्मेदारी कम हो रही है और वे अपनी उम्र के इस पड़ाव को समय दे पा रहे हैं. इसलिए इस बदलाव को हितकर समझ कर स्वीकार करना ही उचित है और इस का स्वागत किया जाने लगा है. इस बदलाव को जिस पति और उस के परिवार वालों ने स्वीकार लिया, वे ही रिश्ते स्थाई होते हैं वरन तो कोर्ट का दरवाजा खटखटाने में देर नहीं होती.

महिलाओं की कमाई पर पुरुषों का हक क्यों

आज जब महिलाएं पुरुषों के बराबर और कई बार उन से भी ज्यादा सैलरी ले रही हैं, तो यह उन का अधिकार बनता है कि वे अपने कमाए पैसों को अपनी इच्छानुसार खर्च करें.

मगर पुरुष हमेशा स्त्री पर शासन करता आया है और आज भी पत्नी पर अपना अधिकार सम झता है.

प्रोफैशनल कालेज में लैक्चरर इला चौधरी के फोन पर मैसेज आया कि उन के पति ने उन के जौइंट अकाउंट से क्व40 हजार निकाले हैं. उन का मूड खराब हो गया. वे  झल्ला उठीं.

घर आ कर अपनेआप को बहुत रोकतेरोकते कुछ तीखी आवाज में बोल ही पड़ीं, ‘‘कालेज के फंक्शन के लिए मैं ने मौल में एक ड्रैस और मैचिंग सैंडल पसंद किए थे. मेरे अकाउंट में अब केवल क्व10 हजार बचे हैं और अभी पूरा महीना पड़ा है. क्या वह ड्रैस बिकने से बची रहेगी भला?’’

फिर क्या था. पति आदेश नाराज हो कर चीखने लगे, ‘‘न जाने अपने पैसों का कितना घमंड हो गया है. ड्रैसों और सैंडलों की भरमार है, लेकिन नहीं पौलिसी ऐक्सपायर हो जाती, इसलिए मैं ने पैसे निकाल लिए.’’

इला चौधरी कहने लगी, ‘‘मेरी सैलरी क्व60 हजार है. मु झे कालेज में अच्छी तरह ड्रैसअप हो कर जाना पड़ता है. लेकिन जैसे ही मैं कुछ नया खरीदना चाहती हूं, आप गुस्सा दिखा कर मु झे मेरे मन का नहीं करने देते.’’

पति ने बनाया बेवकूफ

एक बड़े स्टोर में मैनेजर के पद पर काम कर रहीं मृदुला अवस्थी कहती हैं, ‘‘हमारे अपने स्टोर के मैनेजर ने रकम में काफी हेरफेर किया. इसलिए उसे हटा दिया. पति परेशान थे. मैं घर पर खाली रहने के कारण दिनभर ऊबती थी, इसलिए मैं ने कहा कि मैं एमबीए हूं. यदि आप कहें तो स्टोर संभाल लूं. लेकिन मेरी शर्त है कि मैं पूरी सैलरी यानी उतनी ही जितनी मैनेजर लेता था लूंगी.’’

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पति अमर खुश हो कर बोले, ‘‘हां, तुम पूरी सैलरी ले लेना… वैसे सबकुछ तुम्हारा ही तो है.’’

पहले महीने तो कई बार मांगने पर दे दी, लेकिन अगले महीने से कुछ नहीं. ‘सबकुछ तुम्हारा वाला’ डायलौग बेवकूफ बनाने के लिए काफी है.

इस के साथ ही कोई भी गलती हो जाने पर सारे स्टाफ के सामने अपमानित करने से भी नहीं चूकते.

मध्यवर्गीय परिवार की इशिता शादी से पहले से ही काम करती थीं. वे अपने भाई को अपने पैसों से पढ़ा रही थीं और फिर शादी के दौरान दहेज आदि में भी उन का पैसा काफी खर्च हुआ था.

पति आशीष ने सीधे तो नहीं, लेकिन घुमाफिरा कर पूछा कि तुम तो पिछले कई सालों से काम कर रही थीं, बैंक बैलेंस तो कुछ भी नहीं है.

पति की बात सुनते ही इशिता हैरान हो उठीं. वे ऐडवर्टाइजिंग फील्ड में थीं, साथ ही कपड़ों का भी बहुत शौक था. पार्लर जाना उन के लिए आवश्यक था पर पति के लिए फुजूलखर्ची. पत्नी का औफिस अच्छी तरह ड्रैसअप हो कर जाना पति को पसंद नहीं आता था.

इशिता की सैलरी बाद में आती उस के पहले ही खर्च और इनवैस्टमैंट की प्लानिंग तैयार रहती. यदि वे कुछ बोलतीं, तो रिश्तों में खटास. इसलिए मन मार कर रहतीं.

मुंबई की रीना जौहरी अपना दर्द सा झा करते हुए कहती हैं, ‘‘मेरी सब की उंगलियों में डायमंड रिंग देख कर खुद भी पहनने की बहुत इच्छा थी. मैं ने पति को बता कर एक रिकरिंग स्कीम से 1 लाख जोड़े. जब वह रकम मैच्योर हुई तो मैं ने जब अंगूठी की बात कही, तो पति सुधीर बोले,

‘‘क्या फर्क पड़ता है कि अंगूठी डायमंड की है या गोल्ड की?’’

मैं ने रुपए म्यूचुअल फंड में इनवैस्ट कर दिए हैं. वे रुपए तुम्हारे ही रहेंगे. तुम्हारे नाम से ही इनवैस्ट किए हैं. रीना की आंखों में आंसू आ गए. सवाल है कि पैसा पत्नी का, फैसला पति क्यों लें?

पति का फर्ज

लखनऊ की नीरजा त्रिपाठी की शादी बहुत संपन्न परिवार में हुई थी. वे बताने लगीं, ‘‘मैं ने ससुराल जा कर कुछ दिनों बाद फिर से जौब जौइन की. औफिस लगभग 10 किलोमीटर दूर था. मैं पति से स्कूटी या गाड़ी दिलवाने को कहती रही, लेकन वे अपनी आदत के अनुसार टालते रहे कि तुम कैब से जा सकती हो, टैक्सी से जा सकती हो आदि. मगर लखनऊ में ये आसानी से नहीं मिलतीं.’’

जब उन्होंने अपने पैसों से स्कूटी खरीदने की बात कही तो घर में  झगड़ा हुआ.

आवश्यकता यह है कि पति पत्नी की जरूरतों को सम झे, पत्नी की आवश्यकता, इच्छा, जरूरतों का सम्मान करे. उस की प्राथमिकताओं को सम झने की कोशिश करे.

मल्टीनैशनल कंपनी में काम करने वाली रिद्धि की बहन सिद्धि उस के घर पहली बार आई थी. वह छोटी बहन को मुंबई घुमाने के लिए रोज कहीं न कहीं जाती. उस समय पति अर्पित भी उन लोगों के साथ ही रहते. एक दिन वह औफिस गए थे. दोनों बहनें मौल में शौपिंग करने गईं. उस ने छोटी बहन को 2-3 महंगी ड्रैसेज खरीदवा दीं. पेमैंट करते ही पति के फोन पर मैसेज पहुंचा.

अर्पित ने घर आते ही गुस्से में रिद्धि से कहा, ‘‘खर्च करने की कोई लिमिट होती है. तुम तो इस तरह से पैसे उड़ा रही हो जैसे हम करोड़पति हों.’’

छोटी बहन के सामने रिद्धि से अपनी बेइज्जती सहन नहीं हुई और जरा सी बात पर अच्छाखासा  झगड़ा शुरू हो गया.

समय की जरूरत

आज समय की जरूरत है कि पतिपत्नी दोनों मिल कर अपने परिवार को आधुनिक सुखसुविधाएं प्रदान करें. आर्थिक रूप से स्वावलंबी होना महिलाओं को कामकाजी होने के लिए सब से ज्यादा प्रेरित करता है. काम करने से महिलाओं में आत्मविश्वास बढ़ता है.

वर्किंग कपल्स में अधिकतर पति अपनी पत्नी की सैलरी पर अपना पूरा हक सम झते हैं. वे चाहते हैं कि पत्नी की सैलरी भी वही अपनी मरजी के अनुसार खर्च करें.

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शुरू में कुछ महीने पत्नी भले ही संकोच में यह बरदाश्त कर ले हो सकता है कि वह मुंह से न बोले, लेकिन मन में तो सोचेगी कि जब वह पति से उस की सैलरी नहीं मांगती तो आखिर पति को क्या हक है कि वह हर महीने उस की सैलरी हथिया ले?

पतिपत्नी का रिश्ता तर्क नहीं वरन समर्पण और सम झौते से चलता है. आजकल वर्किंग कपल्स में पैसों को ले कर अकसर विवाद सुनने को मिल रहे हैं. कई बार विवाद की यह नौबत तलाक तक पहुंच जाती है.

अलग-अलग प्राथमिकताएं

आजकल मांबाप बेटियों को बेहद स्पैशल ट्रीटमैंट दे कर पालते हैं, जिस की वजह से वे ससुराल में भी स्पैशल ट्रीटमैंट चाहती हैं और जहां यह नहीं मिल पाता वहीं यह  झगड़े और असंतोष का कारण बन जाता है.

पतिपत्नी दोनों अलगअलग परिवेश, विचार एवं परिस्थितियों से गुजरे होते हैं. इसलिए दोनों की प्राथमिकताएं अलगअलग होती हैं.

पतिपत्नी में कोई भी डौमिनेटिंग नेचर का हो सकता है. ऐसी स्थिति में दूसरा हर्ट हो जाता है.

यदि पति पत्नी की किसी गलती पर नाराज होता है तो वह तुरंत चिढ़ जाती है कि आखिर उसे किसी का ऐटिट्यूड सहने की क्या जरूरत है. वह भी तो कमाती है.

कई बार कामकाजी पत्नी छोटी सी बात पर ओवररिएक्ट कर के चिढ़ कर नाराज हो बात का बतंगड़ बना देती है.

ऐसा कौन सा रिश्ता है, जिस में थोड़ाबहुत लड़ाई झगड़ा न हो. पतिपत्नी का रिश्ता तो छोटे बच्चों की दोस्ती की तरह होना चाहिए. पल में कुट्टी, पल में सुलह. खुशियां तो हमारे आसपास ही बिखरी पड़ी हैं. बस उन्हें ढूंढ़ने की जरूरत होती है. इसलिए जीवन में हर पल खुशियां ढूंढ़ें. -पद्मा अग्रवाल –

इन बातों पर ध्यान दें

पति-पत्नी का रिश्ता बहुत नाजुक होता है. इसलिए जरूरी है वे कि इन बातों पर अमल करें:

– एकदूसरे की इज्जत करें.

– एकदूसरे पर विश्वास करें.

– गुस्से को बीच में न आने दें.

– हर समय दूसरे की गलतियां, कमियां न निकालें.

– माफी मांगना सीखें.

– अपने पार्टनर को अपनी फरमाइश या इच्छा जरूर बताएं.

– परिवार के फैसले दोनों मिल कर करें.

– मुंह पर अपशब्द न लाएं.

– एकदूसरे की तारीफ जरूर करें.

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तो नहीं सताएगा उन से दूरी का एहसास

रिया और वंश इंटरनैट के जरीए एकदूसरे से मिले और दोनों के बीच प्यार हो गया. फिर दोनों ने शादी करने का फैसला किया. लेकिन इन की शादी के बीच आ रही थी इन की नौकरी. दरअसल, दोनों अलगअलग शहर में नौकरी करते थे और नौकरी चेंज करना दोनों के लिए मुश्किल था. फिर भी दोनों ने आपसी सहमति से शादी कर ली और अलगअलग शहर में रहने लगे.

रिया और वंश की तरह और भी न जाने कितने जोड़े नौकरी, बुजुर्ग मातापिता की देखरेख, पढ़ाई आदि कारणों से लौंग डिस्टैंस रिलेशनशिप में रहते हैं. इन शादियों को कंप्यूटर मैरिज कहा जाता है यानी ऐसी शादियां जिन में पतिपत्नी अस्थायी रूप से अलग रहते हैं और कंप्यूटर के माध्यम से एकदूसरे से जुड़े रहते हैं.

लौंग डिस्टैंस रिलेशन निभाना काफी मुश्किल है. छोटीछोटी बातें भी रिश्ते में दूरी लाती हैं.

शादी के कुछ महीने बाद से ही लौंग डिस्टैंस में रहने वाली दिल्ली की 26 वर्षीय अमृता कहती हैं, ‘‘हमारी शादी को 10 महीने हो चुके हैं. मैं दिल्ली में रहती हूं और मेरे पति की पोस्टिंग चंडीगढ़ में है. शादी के बाद दूरदूर रहना काफी मुश्किल होता है. एकदूसरे की बहुत कमी खलती है. अकेलापन महसूस होता है. लेकिन फिर यह सोच कर खुद को संभाल लेती हूं कि यह कदम हम ने अपने अच्छे भविष्य के लिए उठाया है. कभीकभी तो छोटीछोटी बातों को ले कर हमारे बीच इतना बड़ा झगड़ा हो जाता है कि हम 2-2, 3-3 दिन तक बातचीत नहीं करते. कई बार तो ऐसा भी होता है कि मैं कुछ पूछती हूं तो उन्हें लगता है कि मैं उन की जासूसी कर रही हूं.’’

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दरअसल, ऐसा होने की मुख्य वजह है कि हम लौंग डिस्टैंस रिलेशन में अपनी भावनाओं को जाहिर करने में विफल रहते हैं. पास रहने पर भावनाओं को आसानी से जाहिर कर लेते हैं.

इस बारे में दिल्ली के रोहिणी स्थित परफैक्ट हैल्थ इंस्टिट्यूट के मनोवैज्ञानिक डा. आर. पाराशर का कहना है, ‘‘पतिपत्नी के रिश्ते में दूरी का बहुत असर होता है, क्योंकि यह रिश्ता बेहद नाजुक और अन्य रिश्तों से अलग होता है. हम भाईबहनों, मातापिता से बड़ी आसानी से दूर रह सकते हैं, लेकिन पतिपत्नी न केवल भावनात्मक बल्कि शारीरिक रूप से भी एकदृसरे से जुड़े होते हैं और दूर रहने पर इस से वंचित रहते हैं. जिस की वजह से शरीर में पौजिटिव हारमोंस नहीं बन पाते. पौजिटिव हारमोंस की कमी होने की वजह से वे स्वभाव से चिड़चिड़े हो जाते हैं. उन की क्रिएटिविटी खत्म होने लगती है. वे डिप्रैशन में जाने लगते हैं.’’

कुछ कपल तो ऐसे भी होते हैं, जो इस दूरी की वजह से इतना अकेलापन महसूस करते हैं कि अगर कोई भी उन्हें जरा सा प्यार देता है तो वे उस के प्रति आकर्षित हो जाते हैं.

एक केस को याद करते हुए डा. पारासर आगे कहते हैं, ‘‘मेरे पास एक केस आया था, जिस में पतिपत्नी एकदूसरे से दूर रहते थे. पत्नी शारीरिक सुख न मिलने की वजह से खुद को इतना अकेला महसूस करती थी कि उस ने इस अकेलेपन को दूर करने के लिए अपने औफिस के ही एक साथी के साथ संबंध बना लिए.’’

इस तरह के कई केसेज हैं, जिन में पतिपत्नी का साथ न रहने पर पार्टनर ने किसी और के साथ संबंध बना लिए. कुछ कपल्स ऐसे भी होते हैं, जो अपनी इस दूरी का गम मनाते रहते हैं और जिंदगी को जीना भूल जाते हैं. यह ठीक है कि दूर होने पर रिश्ते में गरमाहट बनाए रखना थोड़ा मुश्किल होता है. लेकिन आज फोन, ईमेल, इंटरनैट आदि माध्यमों से जुड़ कर लौंग डिस्टैंस रिलेशनशिप में प्यार को बढ़ाया जा सकता है.

निम्न टिप्स को फौलो करें, फिर देखें दूरी कैसे प्यार बढ़ाने का काम करती है:

1. सरप्राइज दें

सरप्राइज हर किसी को पसंद आता है. खासतौर पर तब जब इसे देने वाला आप से कोसों दूर हो. चौकलेट, फ्लौवर, ड्रैस, ई कार्ड्स या फिर साथी की पसंद का गिफ्ट भेज कर आप उसे सरप्राइज दे सकते हैं. गिफ्ट के साथ एक खास नोट भी लिख कर भेजें कि आप उन के लिए कितने स्पैशल हैं. कभी खुद उन्हें बिना बताए मिलने पहुंच जाएं, इस से रिश्ते की नीरसता खत्म होगी और ऊर्जा का संचार होगा.

रोचक पलों को शेयर करें

तकनीक ने आजकल कई चीजों को आसान बना दिया है, इसलिए कोशिश करें कि आप दिन के रोचकरोमांचक पलों को फोटो और वीडियो के जरीए कैप्चर करें, जो साथी के चेहरे पर खुशी ला सकें. यकीन मानिए यह छोटी सी चीज साथी के चेहरे पर लंबी मुसकान लाएगी.

बातचीत करते रहें

मोबाइल, इंटरनैट के जरीए एकदूसरे से जुड़े रहें. थोड़ेथोड़े समय के अंतराल पर मैसेज या फोन के द्वारा साथी की खबर पूछते रहें. स्काइप पर बातें करें. वीडियो चैट करें. वीडियो चैट करते समय कभीकभी वर्बल फोरप्ले भी करें. इस से रिश्ते में मिठास बनी रहती है.

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फीलिंग्स ऐक्सप्रैस करें

जब भी आप का पार्टनर आप से दूर हो तो उसे बीचबीच में ‘आई लव यू’ कहते रहें. ये 3 शब्द आप के रिश्ते को मधुर बनाए रखेंगे. रात में सोने से पहले एक रोमांटिक मैसेज करें. जब भी वीडियो चैट करें तो अच्छी तरह तैयार हो कर करें. इसे हमेशा एक डेट के रूप में लें. आप को खुश देख कर पाटर्नर को भी अच्छा लगेगा.

ईमानदार रहें

ईमानदारी दूरी निभाने की पहली नीति है. इस का मतलब यह है कि न सिर्फ साथी, बल्कि स्वयं के प्रति भी ईमानदार रहें. अन्यत्र अफेयर्स के बजाय अपने वास्तविक प्यार के बारे में सोचें.

साथ छुट्टी लें

साथ छुट्टी ले कर कहीं घूमने जाएं. एकदूसरे को पूरा समय दें. इस से रोमांस बना रहता है. बर्थडे, मैरिज ऐनिवर्सरी जैसे खास पलों को यादगार बनाने के लिए कुछ स्पैशल प्लान करें.

क्या न करें

बात करें बहस नहीं

कपल हमेशा बात करतेकरते बहस करने लगते हैं और जब दूर होते हैं तो छोटीछोटी बातों का भी बुरामान जाते हैं. तुम ने मुझे फोन नहीं किया, तुम्हारे पास मेरे लिए टाइम नहीं है, मैं तुम्हारे पास होती या होता तो तुम ऐसा नहीं करते जैसी छोटीछोटी बातों पर वे झगड़ पड़ते हैं और एकदूसरे से बात नहीं करते. ऐसा बिलकुल न करें. ऐसा करने से प्यार नहीं, बल्कि दूरी ही बढ़ती है. जब भी बात करें तो उन पलों को खास बनाएं.

शक न करें

पतिपत्नी हमेशा शक करते हैं कि कहीं पार्टनर किसी और के क्लोज तो नहीं है. वह झूठ तो नहीं बोल रहा, सचाई तो नहीं छिपा रहा. इस तरह का बरताव बिलकुल न करें. ये बातें एकदूसरे को पास नहीं लातीं, बल्कि एकदूसरे से दूर ही करती हैं.

कम्यूनिकेशन गैप न आने दें

जब लौंग डिस्टैंस में रह रहे हों तो बात कर के ही आप एकदूसरे से जुड़े रह सकते हैं. इसलिए झगड़ा कर के बात करना बंद न करें. इस से कम्यूनिकेशन गैप आता है. वक्त निकाल कर दिन में 4-5 बार एकदूसरे से बात जरूर करें. लेकिन ध्यान रखें कि यह सिर्फ औपचारिकता न हो, बल्कि बातों में प्यार और रोमांस का तड़का हो.

पार्टनर पर गुस्सा न उतारें

जब आप दूरदूर हों तो किसी भी बात का गुस्सा अपने पार्टनर पर न उतारें. किसी एक के साथ कुछ गलत होता है तो वह अपना सारा गुस्सा दूसरे पर उतारता है.

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जासूस न बनें

बातबात पर जासूसी न करें. बारबार फोन कर के यह पता लगाने की कोशिश न करें कि साथी कहां है. किस केसाथ है और क्या कर रहा है. आपसी विश्वास बनाए रखें.

बातें न छिपाएं

कोई भी बात पार्टनर से न छिपाएं, क्योंकि बाते छिपाने पर पार्टनर के मन में तरहतरह के विचार आने लगते हैं और फिर दूरी बढ़ने लगती है.

जिद न करें

अपनी बातें मनवाने की जिद न करें. अगर आप का पार्टनर व्यस्त है और आप का फोन नहीं उठा रहा है, तो उसे बारबार फोन न करें और उस के फोन उठाते ही चिल्लाने न लगें और आप बेहतर रोमांटिक लाइफ जीना चाहते हैं, तो रिश्ते में औफिस की टैंशन कभी न लाएं.

पत्नियों की इन 7 आदतों से चिढ़ते हैं पति

पति और पत्नी का रिश्ता भी अनोखा है. यह कुछ खट्टा है, तो कुछ मीठा. पति पत्नी के बिना रह भी नहीं सकते हैं, तो उन की कई आदतों से पतियों को चिढ़न भी होती है. कभीकभी पति झगड़े के दौरान अपनी नापसंद का खुलासा कर देते हैं, तो कभी कलह के डर से चुप रह कर मन ही मन कुढ़ते रहते हैं. आइए, जानते हैं कि पत्नियों की वे कौन सी आदतें हैं, जो पतियों को पसंद नहीं होतीं और उन से वे परेशान हो उठते हैं:

1. दूसरी महिलाओं की प्रशंसा से ईर्ष्या

अकसर दूसरी किसी महिला की प्रशंसा अपने पति के मुंह से सुनते ही पत्नी के चेहरे का रंग बदल जाता है. उस के मन में ईर्ष्या उत्पन्न हो जाती है. मन में शक का बीज पनप जाता है. उसे लगने लगता है कि अवश्य ही पति उस महिला की ओर आकर्षित हो रहा है. कुछ महिलाएं भावुक हो कर पति को खरीखोटी भी सुनाने लगती हैं या फिर मुंह फुला कर बैठ जाती हैं. बहुत सी तो आंखों से आंसू बहाते हुए यह भी कहने लगती हैं कि तुम्हें तो मेरी कोई चीज अच्छी ही नहीं लगती. सारा दिन उसी के गुण गाते रहते हो. उसी के पास चले जाओ. पतियों को पत्नियों की यह आदत बिलकुल अच्छी नहीं लगती.

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2. सैक्स को हथियार बनाना

सैक्स पति और पत्नी दोनों की नैसर्गिक जरूरत होती है. लेकिन पत्नियां कई बार इस प्राकृतिक जरूरत को अपना हथियार बना लेती हैं. कोई भी ऐसी बात मनवानी हो या हलकी सी भी झड़प हो जाए तो वे पति को सब से पहले सैक्स से ही वंचित करती हैं. एक ही बिस्तर पर होने के बावजूद मुंह विपरीत दिशा में कर के सो जाती हैं. पत्नियों की यह आदत पतियों को नागवार लगती हैं.

3. बात घुमाफिरा कर कहना

कई पत्नियां किसी भी बात को साफसाफ नहीं कहतीं. हमेशा घुमाफिरा कर संकेत देने की कोशिश करती हैं. ऐसे में जब पति उन का मकसद नहीं समझ पाते, तो वे ताने कसने लगती हैं. फिर भी पति इशारे को समझ नहीं पाते तो वे चिड़चिड़ी हो कर गलत व्यवहार करने लगती हैं. अत: पति चाहते हैं कि पत्नी जो भी कहना चाहे साफसाफ कहे.

4. पर्सनल चीजों से छेड़छाड़

अपनत्व, एकाधिकार जताने के लिए जब पत्नियां औफिस बैग, पैंटशर्ट की जेब, पर्स, मोबाइल, लैपटौप जैसी चीजों से छेड़छाड़ करती हैं या उन की स्कैनिंग करती हैं, तो इस से पतियों को मन ही मन बहुत कोफ्त होती है. ज्यादा परेशानी तो तब महसूस होती है जब वे किसी महिला फिर चाहे वह कोई क्लाइंट ही क्यों न हो, का फोन एसएमएस, फोटो या कोई कागजात देख कर उस के बारे में विस्तार से जानने की कोशिश करने लगती हैं. पर्स में ज्यादा रुपए देख कर पूछने लगती हैं कि ये कहां से आए, किस ने दिए आदि.

5. लगातार बोलते रहना

कई पत्नियां एक बार बोलना शुरू हो जाए, तो नौनस्टौप बोलती रहती हैं. पता नहीं उन के पास इतनी बातों का स्टौक कहां से आता है. सहेली की शादी में जा कर आएं, डाक्टर को दिखा कर आएं, पड़ोसी के घर में नया टीवी आए, विषय कोई भी हो, वे उस की रनिंग कमैंट्री शुरू कर देती हैं. 1-1 मिनट का ब्योरा पूरे विस्तार के साथ देने लगती हैं. जबकि पति चाहते हैं कि बातचीत सीमित हो. टू द पौइंट हो.

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6. हर वक्त टोकाटाकी

कुछ पत्नियां हर वक्त टोकाटाकी करती रहती हैं. मानों उन्हें अपने पति की हर गतिविधि या आदत पर एतराज होता है. जैसे आज यह ड्रैस क्यों पहनी? आज जल्दी क्यों जा रहे हो? आज देर से क्यों आए? इतने फोन क्यों करते हो? 2-2 मोबाइल क्यों रखते हो? ऐसे सवालों की बहुत लंबी लिस्ट है, जिन्हें पूछपूछ कर पत्नियां पतियों को पका देती हैं.

7. शौपिंग की लत

शौपिंग करना पत्नियों की बड़ी कमजोरी है. कई बार तो वे टाइमपास या मन बहलाने के लिए शौपिंग करती हैं. उन की शौपिंग बड़ी बोरिंग होती है. 1-1 चीज को ध्यान से देखना और उस की कीमत पूछना, कपड़ों को अपने शरीर से लगालगा कर देखना, बिना जरूरत खानेपीने की चीजों को खरीदना, डिस्काउंट के लालच में अधिक मात्रा में खरीद लेना और फिर फेंक देना आदि सचमुच इरिटेटिंग आदतें हैं. पति इन से बहुत ज्यादा चिढ़ते हैं.

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