नाश्ते से शांत होती है ब्रेन की भूख

अमृतसर से अमेरिका तक का सफर कुछ कर गुजरने का जनून लिए तय करने वाले शैफ विकास खन्ना आज सैलिब्रिटी शैफ के रूप में दुनियाभर में जाने जाते हैं. खानपान पर कई किताबें लिखने के अलावा कई टीवी शोज में भी वे अपनी प्रतिभा का जादू दिखा चुके हैं. इतनी शोहरत और कामयाबी के बाद भी अपनी विनम्रता से वे मिलने वालों को अपना कायल बना लेते हैं. क्विकर ओट्स इवेंट पर उन से हैल्दी ब्रेकफास्ट और उन के जीवन से जुड़ी घटनाओं पर चर्चा हुई. पेश हैं, उसी चर्चा के कुछ खास अंश:

फिटनैस के लिए ब्रेकफास्ट कितना अहम है?

फिटनैस के 2 पहलू हैं- पहला फूड और दूसरा डिसिप्लिन, पहले घर के बड़ेबुजुर्ग कभी सूर्य डूबने के बाद खाना नहीं खाते थे. लेकिन अब सब बदल गया है. लोगों की दिनचर्या बदली है, खाने का अंदाज बदला है. आज खाने का कोई समय नहीं है. पहले हर घर में यह नियम होता था कि घर से सुबह कोई बिना नाश्ता किए नहीं निकलता था. घर पर बनने वाला ब्रेकफास्ट भी देशी होता था. दलिया, पोहा, रागी, मल्टीग्रेन, स्प्राउट का नाश्ता हर घर में बनता था. लेकिन अब नाश्ते के माने ही बदल गए हैं. आज जरूरत ऐसे फूड को अपने ब्रेकफास्ट में शामिल करने की है जो इंस्टैंट कुकिंग के साथसाथ हैल्दी भी हो. ओट्स और कौर्नफ्लैक्स इस के लिए अच्छे औप्शन हैं जिन्हें कई तरह से बना सकते हैं. आज ओट्स टिक्की से ले कर ओट्स ठंडाई, पोहा, खीर सभी बना सकते हैं. मतलब आप 30 दिन रोज बदलबदल कर हैल्दी ब्रेकफास्ट का स्वाद ले सकते हैं.

क्यों जरूरी है ब्रेकफास्ट?

इस का भूख से तो संबंध है ही साइंटिफिक कारण भी है. जब हम बिना नाश्ता किए काम पर जाते हैं तो पूरा समय हमारे दिमाग में एक ही बात रहती है कि पेट में कुछ नहीं हैं. यही सोचसोच कर काम में मन नहीं लगा पाते, क्योंकि रिसर्च बताती है कि नाश्ता करने से पेट से ज्यादा ब्रेन की भूख शांत होती है या कह सकते हैं पेट नहीं हमारा ब्रेन फूड खाता है. मेरे दादाजी बिना किसी बीमारी के 93 साल तक जिंदा रहे. इस का राज उन का ब्रेकफास्ट था जिसे उन्होंने कभी मिस नहीं किया.

लोग आजकल मोटे अनाज का उपयोग जम कर कर रहे हैं, यह कितना फायदेमंद है?

पहले ज्वार, बाजरा, ओट्स हर मोटे अनाज को गरीबों का खाना माना जाता था. इस में फाइबर और प्रोटीन भरा होता है. मेहनत करने वाले किसानों और मजदूरों को इस से ताकत मिलती है. मोटा होने के कारण यह स्वाद में अच्छा नहीं होता और फिर पीसने में भी ज्यादा मेहनत लगती, इसलिए बड़े आदमी गेहूं, चावल को अपनी डाइट में शामिल करते थे. लेकिन अब ट्रैंड बदल गया है. मीडिया की वजह से लोगों में जागरूकता आई है. लोग जानने लगे हैं कि जिस अनाज को वे गरीबों का खाना मानते थे वह कितना पौष्टिक और रोगों से बचाने वाला है.

पापा के साथ कैसी बौंडिंग थी?

पापा पापा तो थे ही, साथ में एक बड़े भाई भी थे. मैं जो भी करता उन से पूछ कर ही करता था. वे मुझे शैफ नहीं आर्टिस्ट मानते थे. वे हर समय मेरे पीछे खड़े रहते थे. इस का एहसास मुझे तब हुआ जब वे हम लोगों को छोड़ कर चले गए. मैं पापा से हर तरह की बातचीत कर लिया करता था. जब मैं ने शैफ बनने की बात पापा को बताई तब वे बहुत खुश हुए.

शुरुआत कैसे हुई?

मैं जब 14 साल का था तब किटी पार्टी से काम शुरू किया था. पहली पार्टी के वे क्षण मुझे आज भी याद हैं. जब आंटियों ने मेरे खाने की खूब तारीफ की थी और मैं ने इसी उत्साह में उन से पैसे नहीं लिए. इस पर मेरे पापा ने गुस्से में पूछा था कि यह कौन सा बिजनैस है, जिस में तू पैसे नहीं लेता? मैं ने शुरुआती संघर्ष में सप्लाई करने से ले कर स्वैटर बनाने और बरतन धोने तक का काम किया.

अमेरिका में कैसे पहचान बनाई?

एक वक्त था जब यूएस में इंडियन ऐक्सैंट का मजाक उड़ाया जाता था. मैं एक होटल में काम करता था.उस का मालिक मुझे हर तरह से नीचा दिखाता था. वह कहता था कि मैं किसी काम का नहीं हूं. वह मुझे हमेशा डराता था और मेरे बोलने के लहजे का मजाक उड़ाता था. तब मैं वहां से भाग निकला और जान गया कि मेरा संघर्ष इतना आसान नहीं है.

-विकास खन्ना, सैलिब्रिटी शैफ ऐंड राइटर

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