मैं अपनी सासूमां से परेशान हूं?

सवाल-

मैं 25 वर्षीय महिला हूं. हाल ही में शादी हुई है. पति घर की इकलौती संतान हैं और सरकारी बैंक में कार्यरत हैं. घर साधनसंपन्न है. पर सब से बड़ी दिक्कत सासूमां को ले कर है. उन्हें मेरा आधुनिक कपड़े पहनना, टीवी देखना, मोबाइल पर बातें करना और यहां तक कि सोने तक पर पाबंदियां लगाना मुझे बहुत अखरता है. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

आप घर की इकलौती बहू हैं तो जाहिर है आगे चल कर आप को बड़ी जिम्मेदारियां निभानी होंगी. यह बात आप की सासूमां समझती होंगी, इसलिए वे चाहती होंगी कि आप जल्दी अपनी जिम्मेदारी समझ कर घर संभाल लें. बेहतर होगा कि ससुराल में सब को विश्वास में लेने की कोशिश की जाए. सासूमां को मां समान समझेंगी, इज्जत देंगी तो जल्द ही वे भी आप से घुलमिल जाएंगी और तब वे खुद ही आप को आधुनिक कपड़े पहनने को प्रेरित कर सकती हैं.

घर का कामकाज निबटा कर टीवी देखने पर सासूमां को भी आपत्ति नहीं होगी. बेहतर यही होगा कि आप सासूमां के साथ अधिक से अधिक रहें, साथ शौपिंग करने जाएं, घर की जिम्मेदारियों को समझें, फिर देखिएगा आप दोनों एकदूसरे की पर्याय बन जाएंगी.

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सिर्फ 7 फेरे ले लेने से पतिपत्नी का रिश्ता नहीं बनता है. रिश्ता बनता है समझदारी से निबाहने के जज्बे से, पतिपत्नी का रिश्ता बनते ही सब से अहम रिश्ता बनता है सासबहू का. या तो सासबहू का रिश्ता बेहद मधुर बनता है या फिर दोनों ही जिद्दी और चिड़चिड़ी होती हैं. ऐसा बहुत कम पाया गया है कि दोनों में से एक ही जिद्दी और चिड़चिड़ी हो. जिद दोनों तरफ से होती है. एक तरफ से जिद हो और कहना मान लिया जाए तो झगड़ा किस बात का? एक तरफ से जिद होती है तो उस की प्रतिक्रियास्वरूप दूसरी ओर से भी और भी ज्यादा जिद का प्रयास होता है. यह संबंधों को बिगाड़ देता है. इस के नुकसान देर से पता चलते हैं. तब यह रोग लाइलाज हो जाता है.

कटुता से प्रभावित रिश्ते

सासबहू के संबंध में कटुता आना अन्य रिश्तों को भी बुरी तरह प्रभावित करता है. मनोवैज्ञानिक स्टीव कूपर का मत है कि संबंध में कटुता एक कुचक्र है. एक बार यह शुरू हो गया तो संबंध निरंतर बिगड़ते चले जाते हैं. बिगड़ते रिश्तों में आप जीवन के आनंद से वंचित रह जाते हैं. अन्य रिश्ते जो प्रभावित होते हैं वे हैं छोटे बच्चों के साथ संबंध, देवरदेवरानी, ननदननदोई, जेठजेठानी, पति के भाईभाभी आदि. ये वह रिश्ते हैं जो परिवार में वृद्धि के साथ जन्म लेते हैं. इन रिश्तों को निभाना रस्सी पर नट के बैलेंस बनाने के समान है. हर रिश्ते में अहं अपना काम करता है और अनियंत्रित तथा असंतुलित अहं के कारण घर का माहौल शीघ्रता से बिगड़ता है.

सास-बहू मजबूत बनाएं रिश्तों की डोर

सास और बहू का बेहद नजदीकी रिश्ता होते हुए भी सदियों से विवादित रहा है. तब भी जब महिलाएं अशिक्षित होती थीं खासकर सास की पीढ़ी अधिक शिक्षित नहीं होती थी और आज भी जबकि दोनों पीढि़यां शिक्षित हैं और कहींकहीं तो दोनों ही उच्चशिक्षित भी हैं. फिर क्या कारण बन जाते हैं इस प्यारे रिश्ते के बिगड़ते समीकरण के.

संयुक्त परिवारों में जहां सास और बहू दोनों साथ रह रही हैं वहां अगर सासबहू की अनबन रहती है तो पूरे घर में अशांति का माहौल रहता है. सासबहू के रिश्ते का तनाव बहूबेटे की जिंदगी की खुशियों को भी लील जाता है. कभीकभी तो बेटेबहू का रिश्ता इस तनाव के कारण तलाक के कगार तक पहुंच जाता है.

हालांकि भारत की महिलाओं का एक छोटा हिस्सा तेजी से बदला है और साथ ही बदली है उन की मानसिकता. उस हिस्से की सासें अब नई पीढ़ी की बहुओं के साथ एडजैस्टमैंट बैठाने की कोशिश करने लगी हैं. सास को बहू अब आराम देने वाली नहीं, बल्कि उस का हाथ बंटाने वाली लगने लगी है. यह बदलाव सुखद है. नई पीढ़ी की बहुओं के लिए सासों की बदलती सोच सुखद भविष्य का आगाज है. फिर भी हर वर्ग की पूरी सामाजिक सोच को बदलने में अभी वक्त लगेगा.

बहुत कुछ बदलने की जरूरत

भले ही आज की सास बहू से खाना पकाने व घर के दूसरे कामों की जिम्मेदारी निभाने की उम्मीद नहीं करती, बहू पर कोई बंधन नहीं लगाती और न ही उस के व्यक्तिगत मसलों में हस्तक्षेप करती है. पर फिर भी कुछ कारण ऐसे बन जाते हैं जो अधिकतर घरों में इस प्यारे रिश्ते को बहुत सहज नहीं होने देते. अभी भी बहुत कुछ बदलने की जरूरत है क्योंकि आज भी कहीं सास तो कहीं बहू भारी है.

वे कारण जो शिक्षित होते हुए भी इन  2 रिश्तों के समीकरण बिगाड़ते हैं:

– आज की बहू उच्चशिक्षित होने के साथ आत्मनिर्भर भी है, मायके से मजबूत भी है क्योंकि अधिकतर 1 या 2 ही बच्चे हैं. अधिकतर लड़कियां इकलौती हैं, जिस के कारण वे सास से क्या किसी से भी दब कर नहीं चलतीं.

– आज के समय में लड़की के मातापिता सास व ससुराल से क्या पति से भी बिना कारण समझता करने की पारंपरिक शिक्षा नहीं देते जो सही भी है.

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– बहुओं का आज के समय में खाना बनाना न आना एक स्वाभाविक सी बात है और बनाना आना आश्चर्य की.

– गेंद अब सास के पाले से निकल कर बहू के पाले में चली गई.

– बहू नई टैक्नोलौजी की अभ्यस्त है, इसलिए बेटा उसे अधिक तवज्जो देता है जो सास को थोड़ा उपेक्षित सा कर देता है.

– सास शिक्षित होते हुए भी और नए जमाने के अनुसार खुद को बदलने का दावा करने के बावजूद बहू के इस बदले हुए आधुनिक, आत्मविश्वासी व बिंदास रूप को सहजता से स्वीकार नहीं कर पा रही है.

– पतिपत्नी के बंधे हुए पारंपरिक रिश्ते से उतर कर बहूबेटे के दोस्ताने रिश्ते को कई सासों को स्वीकार करना मुश्किल हो रहा है.

– बहू के बजाय बेटे को घर संभालना पड़े तो सास की पारंपरिक सोच उसे कचोटती है.

ये कुछ ऐसे कारण हैं जो आज की सासबहू दोनों शिक्षित पीढ़ी के बीच अलगाव व तनाव का कारण बन रहे हैं. फलस्वरूप विचारों व भावनाओं की टकराहट दोनों तरफ से होती है.

छोटीछोटी बातें चिनगारी भड़काने का काम करती हैं जिस की परिणति कभीकभी बेटेबहू को कोर्ट की दहलीज तक पहुंचा कर होती है.

यूनिवर्सिटी औफ कैंब्रिज की सीनियर प्रोफैसर राइटर और मनोचिकित्सक डा. टेरी आप्टर ने अपनी किताब ‘व्हाट डू यू वांट फ्रौम मी’ के लिए की गई अपनी रिसर्च में पाया कि 50% मामलों में सासबहू का रिश्ता खराब होता है. 55% बुजुर्ग महिलाओं ने स्वीकार किया कि वे खुद को बहू के साथ असहज और तनावग्रस्त पाती हैं, जबकि करीब दोतिहाई महिलाओं ने महसूस किया कि उन्हें उन की बहू ने अपने ही  घर में अलगथलग कर दिया.

दुनिया के सभी रिश्तों से कहीं ज्यादा जटिल रिश्ता है सासबहू का. भारत में ही नहीं पूरी दुनिया में इसे कठिन रिश्ता माना गया है. भारत में यह समस्या ज्यादा इसलिए है क्योंकि यहां परिवार व बड़ेबुजुर्गों को अहमियत दी जाती है.

नई पीढ़ी की बहुओं की सोच:

नई पीढ़ी की लड़कियों की सोच बहुत बदल गई है. वे पारंपरिक बहू की परिधि में खुद को किसी तरह भी फिट नहीं करना चाहतीं. उन की सोच कुछकुछ पाश्चात्य हो चुकी है. उन्हें ढोंग व दिखावा पसंद नहीं है. वे विवाह बाद अपने घर को अपनी तरह से संवारना चाहती हैं. वे अपने जीवन में किसी की भी दखलांदाजी पसंद नहीं है. उन के लिए उन का परिवार उन के बच्चे व पति हैं. बेटी ही बहू बनती है.

आज बेटियों को पालनेपोषने का तरीका बहुत बदल गया है. लड़कियां आज विवाह, ससुराल, सासससुर के बारे में अधिक नहीं सोचतीं. उन के लिए उन का कैरियर, खुद के विचार व व्यक्तित्व प्राथमिकता में रहते हैं.

सास की सोच:

सास की पारंपरिक सामाजिक तसवीर बेहद नैगेटिव है. समाजशास्त्री रितु सारस्वत के अनुसार, सास की इमेज के प्रति ये ऐसे जमे हुए विचार हैं, जो इतनी आसानी से मिटाए नहीं जा सकते. आज की शिक्षित सास ने बहू के रूप में एक पारंपरिक सास को निभाया है. बहुत कुछ अच्छाबुरा ?ोला है. बड़ेबड़े परिवार निभाए हैं. नौकरी करते हुए या बिना नौकरी किए ढेर सारा काम किया है.

वहीं बहू का रूप इतना बदल गया कि खुद को बहुत बदलने के बावजूद सास के लिए बहू का यह नया रूप आत्मसात करना सरल नहीं हो रहा है जिस के कारण न चाहते हुए भी दोनों के रिश्ते तनावपूर्ण हो जाते हैं.

सास का डर:

सासबहू के तनावपूर्ण रिश्ते का सब से बड़ा कारण है सास में ‘पावर इनसिक्योरिटी’ का होना. सास बेटे की शादी होने के बाद इस चिंता में पड़ जाती है कि कहीं मेहनत से तैयार किया हुआ उन का बसाबसाया साम्राज्य छिन न जाए. जो सासें इस इनसिक्योरिटी के भाव से ग्रस्त रहती हैं, उन के अपनी बहू से रिश्ते अधिकतर खराब रहते है.

बेटेबहू का रिश्ता मजबूत बनाने में मां की अहम भूमिका: विवाह से पहले बेटा अपनी मां के ही सब से नजदीक होता है. विवाह के बाद बेटे की प्राथमिकता में बदलाव आता है. जहां सास चाहती है कि बेटा तो विवाह के बाद उस का रहे ही अपितु बहू भी उस की हो जाए. यह सुंदर भाव व अभिलाषा है. हर मां ऐसा चाहती है. लेकिन इस के लिए कुछ बातों का पहले ही दिन से बहुत ध्यान रखने की जरूरत है.

सब से पहले तो बहू को अपनी अल्हड़ सी बेटी के रूप में स्वीकार करने की जरूरत है जिस की हर उपलब्धि पर खुशियों व तारीफ के पुल बांधे जाएं व हर गलती को मुसकरा कर प्यार से टाल दिया जाए क्योंकि एक सुकुमार लाडली सी बेटी विवाह होते ही बहू की जिम्मेदारी के खोल में नहीं सिमट सकती.

बहू को बेटे की पत्नी व अपनी बहू मानने से पहले एक स्वतंत्र व्यक्तित्व के रूप में स्वीकार करे. उस के विचारों, फ्रैंड सर्कल, उस के काम को भी उतना ही महत्त्व दे जितना बेटे को देती है. युवा लड़कों में अपनी कामकाजी पत्नी को ले कर बहुत बदलाव आया है, लेकिन अकसर देखने को मिलता है कि मां बेटे के इस भाव को पोषित नहीं कर पाती.

बहू बेटे की पीढ़ी की व उसी के समकक्ष शिक्षित है, नई टैक्नोलौजी की अभ्यस्त है. बेटा और बहू की कई आपसी बातें, सलाहें उन की अपनी पीढ़ी के अनुसार हैं जो अकसर सास को समझ नहीं आतीं और वह खुद को उपेक्षित महसूस करती है. बेटेबहू के आपसी रिश्ते को सहजता से लेने की जरूरत है, जैसे बेटीदामाद का लेते हैं. क्या वे मां को सबकुछ बता देते हैं?

निजी जिंदगी में हस्तक्षेप नहीं: बेटे बहू के बीच छोटीमोटा झगड़ा होना आम बात है. वे दोनों इसे खुद ही सुलझ लेते हैं. लेकिन उन दोनों के बीच पड़ कर यह सोचना कि बहू गलती मान कर सुलह कर ले, छोटे से झगड़े को बड़ा कर देता है.

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एकदूसरे से जलन क्यों:

सास और बहू के बीच जलन यह बात थोड़ी अजीब लगती है क्योंकि दोनों का रिश्ता अच्छा हो या बुरा होता तो मांबेटी का ही है. लेकिन इन दोनों के बीच जलन कहां किस रूप में जन्म ले ले, कहा नहीं जा सकता. लड़के ने अपनी मां को ज्यादा पूछा, उन के लिए बिना पत्नी को बताए कुछ खरीद लाए, किसी मसले पर उन से सलाह मांग कर उन्हें तवज्जो दे, मां के बनाए खाने की अधिक तारीफ कर दी, पत्नी को मां से खाना बनाना व गृहस्थी चलाने के गुर सीखने की सलाह दे डाले तो बहू के दिल में सास के प्रति जिद्द व जलन के भाव आ जाते हैं. वहीं सास भी इन्हीं सब कारणों से बहू के प्रति ईष्यालु हो सकती है.

सास के जमाने में बहू के लिए अदबकायदे व जिम्मेदारियां बहुत थी. आज की लड़की के लिए अदबकायदे व जिम्मेदारियों के माने बदल गए हैं. उस के बदले हुए तरीके को सहर्ष स्वीकार करें. बेमन से स्वीकार करने पर रिश्ता हमेशा भार बना रहेगा. सासबहू के बीच की सहजता खत्म होगी तो इस का असर बेटेबहू के रिश्ते पर पड़ेगा.

बेटा तो अपना ही है. अगर कभी पक्ष लेने की जरूरत पड़े तो बहू का ले वरना तटस्थ बनी रहे.

बच्चों के रिश्ते को बचाए रखने की जिम्मेदारी दोनों परिवारों की: यह सही है कि बहू का असली घर उस के पति का ही घर माना जाता है. इसलिए उस के ससुराल वालों पर बच्चों के विवाह को मजबूत बनाने की और अलगाव की स्थिति में बचाने की जिम्मेदारी ज्यादा आती है. जो बेटा जितना अपनी मां के करीब होगा वह मां और भी इस के लिए प्रयासरत रह सकती है क्योंकि बेटा अपनी मां की सलाह सुन लेता है.

मगर आज के समय लड़की के मातापिता भी इस के लिए कम कुसूरवार नहीं हैं. वे भी छोटीछोटी बातों में बेटी को उकसा कर तिल का ताड़ बना देते हैं. बेटी पर कोई अत्याचार हो रहा है तो जरूर साथ दें, लेकिन छोटीछोटी बातों, परिस्थितियों में बेटी को समझतावादी नजरिया रखने को कहें क्योंकि एक विवाह टूट कर दूसरा इतना सरल नहीं होता.

तलाक सिर्फ एक रास्ता है, मंजिल नहीं है खास कर जब बच्चे हों, क्योंकि तलाक पतिपत्नी का होता है, मातापिता का नहीं होता. बच्चों को दोनों की जरूरत होती है.

हर छोटी सी बात को मानसम्मान का प्रश्न बना लेना कोई समझदारी नहीं है. ससुराल वालों को भी अपना नजरिया बदलने की जरूरत है.

बहू के रूप में आई लड़की के स्वतंत्र व्यक्तित्व को स्वीकार करना सीखें. ‘तारीफ करने की आदत’ व ‘स्वीकार करने’ का स्वभाव किसी भी रिश्ते को टूटने से ही नहीं बचाता, अपितु मजबूत भी बनाता है.

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ननद-भाभी: रिश्ता है प्यार का

मुंबई के ठाणे की हाइलैंड सोसाइटी में रजत और रीना ने एक बिल्डिंग में यह सोच कर फ्लैट लिए कि दोनों भाईबहनों का साथ बना रहेगा. दोनों के 2-2 बच्चे थे, सब बहुत खुश थे कि यह साथ बना रहेगा, पर जैसेजैसे समय बीत रहा था, रजत की पत्नी सीमा की रीना से कुछ खटपट होने लगी जो दिनबदिन बढ़ती गई. कुछ समय बीतने पर रीना के पति की डैथ हो गई दुख के उन पलों में सब भूल रजत और सीमा रीना के साथ खड़े थे.

कुछ दिन सामान्य ही बीते थे कि ननदभाभी का पुराना रवैया शुरू हो गया. रजत बीच में पिसता, सो अलग, बच्चे भी एकदूसरे से दूर होते रहे. दूरियां खूब बढ़ीं, इतनी कि रीना और सीमा की बातचीत ही बंद हो गई. रजत कभीकभी आता, रीना के हालचाल पूछता और चला जाता, पहले जैसी बात ही नहीं रही, फिर जब कोरोना का प्रकोप शुरू हुआ, ठाणे में केसेज का बुरा हाल था. ऐसे में एक रात सीमा के पेट में अचानक दर्द शुरू हुआ जो किसी भी दवा से ठीक नहीं हुआ. हौस्पिटल जाना खतरे से खाली नहीं था, वायरस का डर था, बच्चे छोटे, रजत बहुत परेशान हुआ, सीमा का दर्द रुक ही नहीं रहा था, रात के 1 बजे किसे फोन करें, क्या करें, कुछ सम झ नहीं आ रहा था.

बहुत प्यार है रिश्ता

सीमा ने अपनी खास फ्रैंड को फोन कर ही दिया, अपने हाल बताए. वे रहती तो उसी बिल्डिंग में थी पर महामारी का जो डर था, उस कारण सीमा की हैल्प करने में सब ने अपनी असमर्थता जताई. फिर रजत ने रीना को फोन किया, वह तुरंत उन के घर आई, रीना के बच्चे कुछ बड़े थे, रजत के बच्चों को अपने बच्चों के पास छोड़ वह तुरंत उन दोनों को ले कर हौस्पिटल गई. सीमा को फौरन एडमिट किया गया, किडनी में स्टोन का तुरंत औपरेशन जरूरी था. रीना ने घर, हौस्पिटल सब संभाल लिया.

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सीमा 3 दिन एडमिट रही, कोरोना का समय था, जरूरी निर्देश दे कर उसे जल्दी घर जाने दिया गया. सीमा को संभलने में कुछ दिन लगे, इन दिनों कोई मेड भी नहीं थी. सारा काम रीना और बच्चों ने मिल कर संभाल लिया. सीमा के ठीक होतेहोते ननदभाभी का रिश्ता इतना मजबूत हो चुका था कि कोई गिलाशिकवा रहा ही नहीं. दोनों बहनों की तरह घुलमिल गईं, बच्चे भी खुश हो गए. सीमा का पहले बहुत बड़ा फ्रैंड सर्किल था पर अब जिस तरह रीना ने साथ दिया था, वह भूल पाने वाली बात नहीं थी. रीना को भी याद था कि पति के न रहने पर दोनों उस के साथ खड़े थे, फिर ये दूरियां कैसे आ गईं, इस बात को  झटक दोनों अब वर्तमान में खुश थीं, एकदूसरे के साथ थीं. बच्चे भी जो इस समय घर से निकल नहीं पा रहे थे. अब एक जगह बैठ कर कभी कुछ खेलते तो कभी कुछ. कोरोना का टाइम सब को बहुत कुछ सिखा गया था.

ननदभाभी का रिश्ता बहुत प्यारा और

नाजुक है, दोनों को एकदूसरे के रूप में एक प्यारी सहेली मिल सकती है, लेकिन कभीकभी कुछ बातों से इस रिश्ते में खटास आ ही जाती है. यह सही है कि जहां 2 बरतन होते हैं, कभी न कभी टकराते हैं, लेकिन सम झदारी इस में है कि बरतन टकराने की आवाज घर से बाहर न जाए. मीठी नोक झोंक कब तकरार में बदल जाती है, पता ही नहीं चलता.

रिश्तों में भरें रंग

कभी आप ने सोचा कि ऐसा क्यों हो जाता है? जवाब है, ‘मैं का भाव,’ यह भाव जब तक आप में रहेगा तब तक आप किसी भी रिश्ते को ज्यादा लंबा नहीं चला पाएंगे. यह सच है कि हमें कभी न कभी अधिकारों का हस्तांतरण करना ही पड़ता है. हमारी थोड़ी सी विनम्रता व अधिकारों का विभाजन हमारे रिश्तों को मधुर बना सकता है.

कहते हैं ताली दोनों हाथों से बजती है, हमेशा एक की ही गलती नहीं होती. कभीकभी भाभी का अपने मायके वालों के प्रति अभिमान व अपने सासससुर की उपेक्षा ननद के भाभी पर क्रोध का कारण बनती है. जीवनभर आप के मातापिता साथ नहीं रह सकते, इस बात को ध्यान में रख कर यदि परिवार के सभी सदस्यों से अच्छा व्यवहार किया जाए तो यह रिश्ता नोक झोंक के बजाय हंसीठिठोली का रिश्ता बन सकता है.

कोविड-19 के समय का अपना एक अनुभव बताते हुए पायल कहती हैं, ‘‘मेरा अपनी ननद अंजू के साथ एक आम सा रिश्ता था, कभीकभी ही मिलना होता था. मैं मुंबई में, वह दिल्ली में, पर इस समय हम दोनों ने जितना फोन पर बातें कीं, गप्पें मारीं इतनी कभी नहीं मारी थीं, वह मु झ से काफी छोटी है, अब तो वह मु झ से कितनी ही रेसिपी, पूछपूछ कर बनाती रहती है. कभी जूम पर, कभी व्हाट्सऐप पर खूब मस्ती करती है. मैं ने नोट किया है कि अपने दोस्तों  से ज्यादा मु झे उस से बात करने में आजकल मजा आ रहा है, क्योंकि मेरी फ्रैंड्स के पास तो वही बातें हैं, कोरोना, लौकडाउन, मेड, घर के काम, वहीं अंजू के पास तो न जाने कितने टौपिक्स रहते हैं, मैं भी फ्रैश हो जाती हूं उस से बातें कर के. सब ठीक होते ही उसे अपने पास बुलाऊंगी.’’

कभीकभी ननदभाभी के बीच में आर्थिक स्तर का अंतर होता है. ऐसे में रिश्ते को संभाल कर रखने के लिए बहुत सी बातों का ध्यान रखना पड़ता है. सहारनपुर निवासी सुनीता शर्मा अपनी ननद आरती के बारे में बताते हुए कहती है, ‘‘आरती का विवाह बहुत समृद्ध परिवार में हुआ है. ससुराल में लंबाचौड़ा बिजनैस है, आर्थिक रूप से हम उन के आगे कुछ भी नहीं. आरती जब भी आती है, मैं उसे कुछ दिलवाने मार्केट ले जाती हूं, वह सोचसम झ कर कोई आम सी चीज अपने लिए लेती है, वह भी इतनी खुशीखुशी कि दिल भर आता है. यही बोलती रहती है कि सब तो है, मैं तो बस प्यार के लिए आती हूं. मु झे कुछ भी नहीं चाहिए. बहुत कहने पर थोड़ाबहुत ले लेती है कि हमें बुरा भी न लगे और खुद पता नहीं क्याक्या खरीद कर रख जाती है. कभी महसूस नहीं होने देती कि वह अब एक अति धनी परिवार से जुड़ी है, न खाने में कोई नखरा, न पहनने में, जो देते हैं खुशी से ले लेती है.’’

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पैसा नहीं रिश्ता जरूरी

वहीं शामली निवासी नीरा ने अपने धन के मद में चूर हो कर ऐसा किया कि 5 साल पहले की इस घटना पर अब तक लोग उसे बुराभला कहते हैं. कभीकभी ननद इतनी लालची हो जाती है कि सब रिश्तों को भूल सिर्फ अपने फायदे पर ध्यान देती है. नीरा ने अपने बेटे का विवाह किया तो मायके से अपने भाई को बुलाया ही नहीं क्योंकि भाई की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी. वह बड़े बेटे के विवाह में जो दे कर गया, वह नीरा को इतना कम लगा कि उस ने छोटे बेटे के विवाह में किसी को बुलाया ही नहीं. पड़ोस के एक आदमी को अपना भाई बना रखा था जो अमीर था, वह मुंहबोला भाई खूब लेतादेता था. राखी पर भी नीरा को उस के सगे भाई से ज्यादा ही देता था तो नीरा अपने इकलौते भाईभाभी को भूलती ही चली गई. पड़ोस के अमीर भाई से ही सारी रस्में करवाईं. 2 सगे भाईबहन का रिश्ता हमेशा के लिए टूट गया.

इस से बुरा कुछ नहीं होता जब ननद या भाभी पैसे को इतनी अहमियत दे कि आपस का रिश्ता ही खत्म हो जाए. पैसा आनीजानी चीज है. खून के रिश्ते प्यारभरे रिश्ते, इस आर्थिक स्तर के अंतर के कारण खत्म हो जाएं, दुखद है.

दुखसुख की साथी

कभीकभी यह भी देखने में आता है कि ननद और भाभी के बीच उम्र का फासला ज्यादा होता है तो उन दोनों के बीच अलग तरह की बौंडिंग हो जाती है. पुणे की अंजलि अपनी भाभी से 12 साल छोटी है. वह इस विषय पर अपना अनुभव बताते हुए कहती है, ‘‘मेरे मायके में बहुत पुरातनपंथी माहौल था. ऐसे में मैं ने जब कालेज में विजातीय सुनील को पसंद किया तो बस अपनी भाभी से सब शेयर किया. मेरी भाभी ने सबकुछ संभाला, सब को इस विवाह के लिए इतनी मुश्किल से मनाया कि आज तक मैं उन्हें थैंक्स कहती हूं. कोई भी मुश्किल हो, उन्हें कौल करती हूं और फौरन समाधान निकल आता है. मेरे बच्चों की डिलिवरी के समय सबकुछ उन्होंने ही संभाला.’’

मुंबई निवासी नेहा अपनी भाभी के अंधविश्वासी स्वभाव से बहुत परेशान रहती. कुछ हुआ नहीं कि उस की भाभी श्वेता  झट से एक मौलवी से ताबीज लेने भागती. वह जब भी उन के घर जाती, हर समय किसी न किसी अंधविश्वास से घिरी भाभी को देख कर दुख होता. नेहा की तार्किक बातों को श्वेता सिरे से नकार देती. जब नेहा किसी परेशानी में होती, श्वेता उस का श्रेय नेहा की नास्तिकता को दे कर कहती कि तुम कोई पूजापाठ नहीं करती, इसलिए तुम बीमार हुई. नेहा अपने भाई से श्वेता के अंधविश्वासी होने पर बात करती तो श्वेता को अच्छा नहीं लगता. धीरेधीरे नेहा उन से एक दूरी रखने लगी. औपचारिक रिश्तों में फिर वैसा प्यार नहीं रहा जैसा हो सकता था.

ननदभाभी के इस रिश्ते में कई तरह की ननदें होती हैं, कई तरह की भाभियां, एकदूसरे परिवार से आई होती हैं. उन का अलग स्वभाव होता है. परवरिश, सोच, विचार सब अलग होते हैं. ऐसे में 2 अलग तरह के नारी मन जब साथ रहने लगते हैं.

बहुत कुछ ऐसा होता है कि सम झ कर चलना पड़ता है. बहुत खुल कर खर्च करने की आदत थी अंजना को. इकलौती लड़की थी, पेरैंट्स ने भी कभी नहीं टोका था. ससुराल आई तो यहां सब एकदम व्यवस्थित, सोचसम झ कर खर्च करने वाले, ननद रोमा ने बड़ी सम झदारी से काम लिया. अंजना को धीरेधीरे ही यह आदत डाली कि बिना जरूरत के अलमारी में कपड़े भरभर कर रखने में कोई सम झदारी नहीं, जितनी जब जरूरत हो, खरीद लो.

शुरूशुरू में अंजना सब को कंजूस कह कर उन का मजाक उड़ाती रही, पर धीरेधीरे उस में रोमा की बातों से अच्छा बदलाव आने लगा. रोमा ने हंसीहंसी में ही उसे कितना कुछ सिखा दिया. घर के बाकी मैंबर्स को भी यही सम झाती रही कि अंजना अभी नई आई है. उस की फुजूलखर्ची की आदत पर कोई उसे ताना न मारे. कुछ बुरा न कहे, उस की यह आदत एकदम नहीं जा सकती. किसी ने उसे कुछ नहीं कहा. फुजूलखर्ची की अंजना की आदत कब छूटती गई, उसे खुद पता नहीं चला.

ताकि संबंधों में बनी रहे मिठास

ऐसे मौकों पर घर में शांति रखने में मदद का बड़ा रोल होता है. ननद चाहे तो भाभी की कितनी ही बातों को सहेज कर घर में उस का स्थान आदरपूर्ण और प्रेमपूर्ण बना सकती है.

यदि घर में ननदभाभी का रिश्ता प्यारा है तो इस का पूरे घर पर असर होता है, क्योंकि भारतीय परिवार में एकदूसरे से बंधे होते हैं, एक पार्टी का मूड भी खराब होता है तो हर रिश्ते पर असर पड़ता है.

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कोविड-19 के जाने के बाद भी एक लंबे अरसे तक एकदूसरे से, दोस्तों से, पड़ोसियों से पहले की तरह मिलनेजुलने में वक्त लगेगा. सब इतनी जल्दी नौर्मल नहीं होगा. अगर आप ने भी इतने प्यारे रिश्ते से अब तक कुछ दूरी बना कर रख रही हैं तो फौरन एकदूसरे को प्यार से अपना बनाएं, फोन करें, वीडियो पर हंसीमजाक करें, परिवार को जोड़ें. अब आने वाले समय में सहेलियां बाद में ननदभाभी एकदूसरे के काम ज्यादा और पहले आएंगी. यह रिश्ता बना कर तोड़ने की चीज नहीं है. यह तो हमेशा निभाने के लिए है. इस की मिठास का आनंद लें, एकदूसरे को प्यार व सम्मान दें.

इस प्यारे रिश्ते को निभाने के लिए बहुत सी बातों का ध्यान रखना जरूरी है जैसे:

– अगर आप दोनों का रिश्ता दोस्ताना है तो गलती से भी कभी एकदूसरी की बातों को किसी से शेयर न करें. अपने पति से भी नहीं वरना आप दोनों का रिश्ता बिगड़ सकता है.

– इस बात का भी ध्यान रखें कि घर के सारे काम की जिम्मेदारी भाभी की नहीं, घर के कामों में उस की जरूर मदद करें. यही नहीं भाभी ननद की पढ़ाई से ले कर उस के दूसरे कामों में भी मदद करें.

– अपनी ननद के सामने घर की किसी बात की बुराई करने से बचें. कोई भी लड़की अपने मातापिता या अपने भाईबहन की बुराई सुनना पसंद नहीं करती. अगर भाभी उस से कोई शिकायत करती भी हैं तो ननद भी कारण सम झे, भाभी की परेशानी को सौल्व करने की कोशिश करे.

– किसी भी नए रिश्ते में गलतफहमी हो जाना सामान्य बात है. ऐसे में छोटीछोटी गलतफहमियों का असर अपने रिश्ते पर न पड़ने दें. अगर आप को अपनी भाभी या ननद की कोई बात बुरी लगी है तो सब से पहले उस चीज को ले कर बात करें न कि गुस्सा हो कर मुंह फुला कर बैठ जाएं और एकदूसरे से बात करना बंद कर दें.

– स्वस्थ रिश्ते फायदेमंद होते हैं, लेकिन जिन रिश्तों में एकदूसरे से बहुत ज्यादा अपेक्षा होती है उन रिश्तों की डोर टूट ही जाती है. ऐसे में एकदूसरे से ज्यादा अपेक्षा न रखें.

– अगर आप से कोई गलती हो भी गई है तो उसे प्यार से उस की पसंद का गिफ्ट दे कर मना लें. बात जल्दी से जल्दी खत्म करें.

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ससुर के साथ ऐसा हो आपका व्यवहार

वैशाली, मोनिका और सोनू बचपन की सहेलियां हैं. संयोग से तीनों की शादियां भी एक ही शहर में हुईं. शादी के बाद जब तीनों पहली बार अपने मायके आईं, तो सभी ने एकदूसरे की ससुराल के बारे में पूछा खासतौर पर यह कि ससुराल में कौनकौन हैं, उन का व्यवहार कैसा है, कौन अधिक प्यारदुलार करता है और कौन नहीं?

वैशाली ने कहा, ‘‘मेरे ससुरजी बड़े मजाकिया स्वभाव के हैं. बातबात में हंसाते हैं. शादी के पहले पापा मुझे हंसाते थे और अब यहां ससुरजी. उन का व्यवहार इतना अच्छा है कि लगता ही नहीं कि मैं उन की बहू हूं, वे मुझे अपनी बेटी ही मानते हैं और मेरी हर जरूरत का ध्यान रखते हैं.’’

मोनिका ने वैशाली की हां में हां मिलाते हुए कहा, ‘‘तुम ठीक कह रही हो. मेरे ससुरजी भी हर बात में मेरा पक्ष लेते हैं. मेरी हर पसंदनापसंद का खयाल रखते हैं. यहां तक कि मेरे लिए तरहतरह के गिफ्ट और बाजार से पकवान भी लाते हैं. लगता ही नहीं कि मैं ससुराल में हूं. सच तो यह है कि उन में मैं अपने बाबूजी की छवि ही पाती हूं.’’

पिता जैसा प्यारदुलार

दोनों की बातें सुन कर सोनू उदास हो गई. बोली, ‘‘तुम दोनों के ससुर अच्छे हैं, जो तुम्हें इतना अपनापन और स्नेह देते हैं, लेकिन मेरे ससुरजी तो हैं ही नहीं. यदि वे होते तो मुझे भी उन का प्यारदुलार मिलता. ससुर के बिना ससुराल कैसी? यदि वे होते तो पिता की तरह मैं उन का सम्मान करती. अकेली सास ससुरजी की कमी तो पूरा नहीं कर सकतीं.’’

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शादी के पूर्व लड़की अपने पिता के संरक्षण में रहती है, तो शादी के बाद ससुरजी उस के पिता के समान होते हैं, जो अपनी बहू को बेटी की तरह रख कर उस पर अपना प्यारदुलार बरसाते हैं. ऐसे में लड़की को अपने पिता की कमी नहीं खलती और वह अपने ससुरजी को ही पिता मानती है और उसी रूप में उन का आदर, मानसम्मान करती है.

निश्चित तौर पर वे लड़कियां अधिक खुश होती हैं, जिन की ससुराल में सास और ससुर दोनों होते हैं और यदि वे साथ रहते हैं तो सोने में सुहागा. ससुर के होने पर वे अपनेआप को सुरक्षित पाती हैं, क्योंकि बड़ेबूढ़ों का साया होना ही अपनेआप में बहुत बड़ी बात है.

जब कभी किसी लड़की के लिए रिश्ते की बात चलती है, तो लड़की वाले इस बात पर गौर करते हैं कि ससुराल में कौनकौन हैं. जहां लड़के के पिता जीवित होते हैं, उस रिश्ते को प्राथमिकता दी जाती है.

ससुराल में ससुर के न होने का कारण उन का तलाकशुदा होना भी हो सकता है. लड़का अपनी मां के साथ रहता हो और पिता से कोई संबंध न रखता हो तो ऐसे रिश्ते को वरीयता नहीं दी जाती है. यदि लड़के के पिता शादी के पूर्व ही दिवंगत हो चुके हों तो वह ससुराल ससुर बिना ससुराल होती है.

ससुर चाहे किसी भी उम्र के हों, परिवार में उन की उपस्थिति ही माने रखती है. जब वे ही नहीं होंगे तो बच्चे दादादादा कह कर किस की गोद में उछलकूद करेंगे? वे किस की उंगली पकड़ कर चलना सीखेंगे?

ससुर अपनी बहू को कितना प्यार करते हैं या उस की सुखसुविधाओं का कितना ध्यान रखते हैं, यह वही जानती है. बहू के जरा से इशारे पर वे उस की तमाम खुशियों का इंतजाम करते हैं. वे उसे खुश देख खुश होते हैं.

समस्याओं का समाधान

ससुर सासबहू और पतिपत्नी के बीच तालमेल बैठाने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं. सास कितनी ही अच्छी या सुलझे हुए विचारों वाली क्यों न हो, वह अपना ठसका बताए बगैर नहीं मानती. सास और बहू के बीच खटपट होना नई बात नहीं है. कभी गलती बहू की होती है, तो कभी सास की, पर सास तो सास है, वह अपनी गलती कैसे स्वीकार कर सकती है? हर बार बहू को ही झुकना पड़ता है. लेकिन जब ससुर मौजूद हों तो वे एक न्यायाधीश की भूमिका निभाते हुए निष्पक्ष फैसला सुनाते हैं, जो सास को भी मानना पड़ता है.

प्राय: देखा गया है कि सास अपनी बहू को अपना प्रतिद्वंद्वी मानती है, जबकि ससुर उसे पूरक मानते हैं. ससुर और बहू के बीच कोई लड़ाईझगड़ा या मनमुटाव नहीं होता और यदि सासबहू के बीच कोई मनमुटाव है तो भी वे उसे दूर करने की कोशिश करते हैं.

एक बहू अपनी सास को अच्छी तरह जानती है कि कौन सी बात वह मानने वाली है और कौन सी नहीं. ऐसे में उसे मनवाने के लिए वह अपने ससुर का सहारा लेती है. ससुर अपने तरीके से उसे मनवा लेते हैं. ऐसे में सास के अहं को भी ठेस नहीं पहुंचती और बहू का काम भी हो जाता है.

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जिन घरपरिवारों में ससुर नहीं होते वहां उन का खालीपन बहू को खलता है. कई बार जब पतिपत्नी के बीच कोई विवाद हो जाता है तो पति को कौन समझाए? सास तो सदैव अपने बेटे का ही पक्ष लेती है, लेकिन ससुर होते तो वे अपने बेटे को भी तलब करते और उसे सुधरने को कहते. एक बेटा अपने पिता का कहना तो मान लेता है, लेकिन मां की बात को हवा में उड़ा देता है.

ससुर के होने से पतिपत्नी के बीच होने वाले मतभेद तलाक तक नहीं पहुंचते. वे एक काउंसलर की भूमिका निभाते हैं तथा अपने बहूबेटे दोनों को समझाते हैं. यदि बहू रूठ कर मायके चली जाती है या बेटा उसे वहां जाने के लिए मजबूर कर देता है तो ससुरजी उसे वापस लाने की पहल कर सकते हैं. यहां तक कि अपने समधी से चर्चा कर के दोनों पक्षों में सुलह भी करा सकते हैं.

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