युद्ध में औरतें होतीं हैं जीत का पुरुस्कार

आज हर जगह अफगानिस्तान पर तालिबानी कब्जे की कहानियाँ हैं. सोशल मीडिया पर लगातार ख़ौफ़नाक वीडियो वायरल हो रहे हैं. खून खराबे से लबरेज़ ये सच बेहद डरावना सा लगता है. इसी बीच जब महिलाओं की बोली लगने वाले या घरों से खींचकर ले जाने वाले वीडियो सामने आए तो मन दहशत से भर उठता है. इस बार तालिबानियों ने महिलाओं की सुरक्षा करने का दावा भले ही किया हो पर महज़ बीस साल पुराना तालिबानी शासन का जो इतिहास रहा है उस से इन दावों पर विश्वास किया जाना बहुत ही मुश्किल है.

सच तो ये है कि चाहे किसी भी देश पर किसी सेना का कब्ज़ा हो या कोई भी छोटा बड़ा युद्ध औरत हमेशा या तो जीत का ईनाम होती है या फिर एक हार की टूटी फूटी अपमानित तस्वीर. किसी भी युद्ध में अगर धरती के बाद किसी को पैरों तले रौंदा जाता है तो वो औरत ही होती है. युद्ध की विभीषिका हो या दंगों का दौर उसके सबसे बुरे परिणाम हमेशा से औरत ही भोगती आई है. अगर किसी तरह औरत की जान बच भी जाये तो उसकी आत्मा सदियों के लिए छलनी हो जाती है.

जब 1996 से 2001 तक अफगानिस्तान में तालिबानी शासन था तब वहाँ के किस्से सुनकर कमज़ोर दिल वाले अपने कानों को कसकर बंद कर लिया करते थे. शरिया कानून लागू होने के कारण वहाँ कोई औरत काम पर नही जा सकती थी बिना किसी मर्द के साथ कोई बाहर नहीं निकल सकती थी. मोटी चादर में लिपटी औरतें ही घर से बाहर निकल सकती थीं वो भी किसी मर्द के साथ. एक लड़की को सिर्फ इसलिए गोली मार दी गयी कि उसने इत्र लगाया था. एक औरत को खचाखच भरे स्टेडियम में सबके सामने गोली मार दी जाती है. आज अफगानिस्तान में औरतों की हालत पर रोष जताने वाले अमेरिका की दास्तान भी कुछ अलग नहीं है वियतनाम से युद्ध के दौरान अमेरिकी सेना ने भी वहाँ की औरतों पर कम कहर नहीं ढाया था. घर के पुरुषों को मारकर उस घर की लड़कियाँ और औरतें उठा ली जाती थीं. कम उम्र की कई वियतनामी लड़कियों को हार्मोन्स के इंजेक्शन्स लगाए गए जिस से उनका बदन भर जाए और वो अमेरिकी सैनिकों का मन अच्छे से बहला सकें.

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खूबसूरत वियतनामी लड़कियों के पास दो ही विकल्प थे या तो खुद को अमेरिकी सैनिकों के हवाले कर दें या फिर बलात्कार के लिए तैयार रहें. अमेरिकी सैनिकों के लिए यहाँ एक पूरी सेक्स इंडस्ट्री खड़ी हो गयी थी.  यही नहीं इस युद्ध के समाप्त होने के कुछ महीनों बाद लगभग 50000 अमेरिकन वियतनामी बच्चे पैदा हुए जो युद्ध के दौरान हुए बलात्कार का परिणाम थे.  इनकी माएँ भी इन बच्चों की आँखों में आंसू देखकर रोती थीं पर इन बच्चों के लिए नहीं बल्कि उस बलात्कार को याद करके जिसका परिणाम ये बच्चे थे. इन बच्चों को बुई दोई कहकर पुकारा जाता था जिसका मतलब होता है जीवन की गंदगी.  इसी तरह सन 1919 में हुआ आयरिश युद्ध भी इन अत्याचारों की एक कड़ी था. ये लगभग ढाई साल चला था. यहाँ सैनिकों ने एक नया तरीका खोज लिया था वो ये कि दुश्मन औरत को गंजी कर दिया जाता था और सिर ढँकने की मनाही होने के कारण जब भी कोई सिर मुढाई औरत कही से भी निकलती तो उसे देखकर अश्लील फब्तियाँ कसी जाती उसे न जाने कितने लोग दबोचते.

कई बार तो उसे पकड़कर अपने साथ ले जाया जाता. कई बार घर की जरूरत का सामान खरीदने निकली औरत घर ही नहीं लौटती थी. पुरुष लेबर केम्प में होते थे घर मे बच्चे अपनी माँ और दीदी का इंतजार ही करते रह जाते पर वो नहीं लौटती. द्वितीय विश्व युद्ध का इतिहास पलट के देखें तो जर्मनों द्वारा गर्भवतीं औरतों तक को इतनी क्रूरता से मारा कि अच्छे अच्छे मजबूत दिल वाले का भी दिल दहल जाए. वैसे इतिहास में नाजियों को सबसे क्रूर माना जाता है पर जर्मन औरतें भी सुरक्षित नहीं रह पाई. द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान सोवियत की सेना ने पूर्वी प्रूशिया पर अपना कब्जा कर लिया. घरों के अंदर से जर्मन लड़कियाँ बाहर निकाली गईं और एक एक जर्मन लड़की से दस दस सैनिकों ने बलात्कार किया. इस बलात्कार का यौन संतुष्टि से कोई लेना देना नहीं होता ये केवल पुरुष के गर्व को तोड़ने का एक तरीका मात्र है. किसी पुरुष का दम्भ तोड़ने का इस से बेहतर कोई तरीका नही होता कि उसकी औरत से बलात्कार कर लिया जाए. इस तरह के बलात्कार बहुत ही बर्बर होते हैं.

सोवियत सेना के युवा कैप्टन की लिखी एक किताब में उसने ये स्वीकार किया कि जर्मन पर फतेह के बाद जर्मन औरतें रूस के लिए किसी बड़े ईनाम से कम नहीं थीं. युद्ध के बहुत बाद तक हजारों जर्मन औरतें साइबेरिया में कैद रहीं. वहाँ थके रूसी सैनिक आते और इन जर्मन औरतों की नग्न परेड करवाते. अगर इनमें से कोई औरत किसी सैनिक को पसन्द आ जाती तो वो उसे अपने साथ ले जाता और मन भरने के बाद फिर वहीं छोड़ जाता. कुछ ही महीनों में वहाँ की सारी औरतें खत्म हो गईं. इसी तरह कट्टरपन की मिसाल इस्लामिक स्टेट के लड़ाके यजीदी लड़कियों के नाम लिखकर एक कटोरदान में डाल देते फिर जिस लड़ाके के पास जिस के नाम की पर्ची आती वो लड़की उसे तोहफे के रूप में दी जाती चाहे वो उस से यौन सुख भोगे या हल में उसे जोते. पूर्वी बोस्निया में एक रिसोर्ट है जो घने जंगलों में है यहाँ एक समय चीड़ के पत्तों के साये में प्रेमी जोड़े विहार करते थे. इसे हेल्थ रिसोर्ट भी कहा जाता था लेकिन वोल्कन युद्ध के बाद इस जगह का रूप ही बदल गया.

ये एक तरह से बलात्कार का केम्प बन गया. यहाँ बोस्निया की औरतों का सर्बियन सैनिकों ने महीनों तक सामूहिक बलात्कार किया जिसके बाद कुछ तो संक्रमित होकर मर गईं कुछ बलात्कार के सदमे से ही मर गईं और कुछ ने छत के कूद कर आत्महत्या कर ली. बाद में संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में ये सच सामने आया लेकिन तब तक बलात्कारी भीड़ में गुम हो चुके थे और मरी हुई औरतें गवाही नहीं दे सकीं सो न्याय का कोई रास्ता न था. इस से भी क्रूरतम सच ये है कि जिंदा औरतें तो युद्ध के दौरान बलात्कार की शिकार होती ही हैं उनके शव भी सुरक्षित नहीं रहते.  कई लड़ाके नेक्रोफीलिया नामक बीमारी से ग्रसित होते हैं जो शव के साथ भी बलात्कार करने से बाज़ नहीं आते. आखिर क्या कारण था कि इजिप्ट की राजकुमारी क्लियोपेट्रा ने शत्रु से लड़ने के बजाय नग्न अवस्था में एक जहरीले साँप से खुद को डसवाना और मर जाना बेहतर समझा इसका सीधा सा जवाब है कि उसको ये अंदेशा था कि दुश्मन उसकी मृत देह के साथ कुछ भी कर सकता है पर संक्रमण के डर से ऐसा कुछ नहीं होगा परंतु ऐसा कहा जाता है कि इस सबके बावज़ूद उसकी मृत देह के साथ 3000 बार बलात्कार किया गया इसमें कुछ अतिशयोक्ति हो सकती है पर फिर भी औरतों की स्थिति बताने के लिए इतना काफी है.

युद्ध के दौरान यौन हिंसा एक कड़वा सच है. आप ये कल्पना कीजिये कि आपके घर मे हथियारबंद लोग घुसकर आपके घर के सदस्यों को उठा कर ले जाते हैं बच्चों और औरतों को सेक्स गुलाम बना लिया जाता है आप ये सब झेलने के लिए विवश हैं. या आप के आस पास कई औरतों को वैश्यावृत्ति में धकेल दिया जाता है आप बंदूकों की नोक के बीच जीवन जी रहे हैं और इस मानसिक त्रास में जीवन जी रहे हैं. ये सोचकर भी आपकी रूह कांप जाएगी कि बलात्कारी आपके आस पास खुले घूम रहे हैं परंतु युद्ध क्षेत्र में रहने वाले यौन हिंसा झेलने वालों का यही सच है. बार बार हर बार हर बड़े छोटे युद्ध मे बलात्कार को युद्ध मे एक हथियार की तरह प्रयोग किया गया जिसका एकमात्र उद्देश्य मानसिक आघात पहुँचाना और दुश्मन को नीचा दिखाना होता है. इसके लिए औरतें और कम उम्र की बच्चियाँ सबसे सरल निशाना होती हैं.  ये इस तरह का अपराध होता है कि इसे झेलने वाला शारीरिक और मानसिक तौर  पर खत्म हो जाता है. इस से पीड़ित जीवन भर बहिष्कार का अपमान झेलने को अभिशप्त होती हैं. इसका दंश एक पूरी पीढ़ी को भुगतना होता है. कुछ देशों में तो ऐसे बलात्कार पीड़ितों को वैश्या की तरह देखा जाता है इनसे पैदा हुए बच्चे भी जीवन भर अपमान झेलते हैं.

इन बच्चों का भविष्य पूरी तरह खराब हो जाता है. आप सोचिए कि हमने युद्ध मे शहीद होने वालों के या लड़ने वालों के तो बड़े बड़े स्मारक बनाये हैं फिर इन पीड़ितों के लिए यदि कोई स्मारक बनाया जाए तो जगह कम पड़ जाएगी. लेकिन इनके साथ अलग तरह का व्यवहार किया जाता है. अपने इस दुख से उबरने के लिए इन्हें कोई मदद नहीं मिलती है. इसके लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रयास होने चाहिए कि युद्ध के दौरान होने वाली यौन हिंसा रोकी जा सके. कोई भी राष्ट्र जो ये दावा करता है कि वो मानवाधिकारों के लिए जागरूक है और इसमें उसका विश्वास है वो कभी भी युद्ध के दौरान होने वाली यौन हिंसा पर चुप नही रह सकता. जब इन अपराधियों को कोई दंड नहीं मिलता तो स्वतः ही ये धारणा बन जाती है कि इसके लिए कोई सज़ा नही है चाहे वो यौन हिंसा नाइजीरिया की स्कूली छात्राओं पर हो या सीरिया के शरणार्थियों पर. इस के लिए विलियम हेग और एंजेलिना जोली ने काफी काम किया है.

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उन्होंने युद्ध के दौरान यौन हिंसा की जाँच और डॉक्यूमेंशन के लिए पहला अंतर्राष्ट्रीय प्रोटोकॉल शुरू किया. सैकड़ों विशेषज्ञों की साल भर की मेहनत और कार्य से तैयार ये प्रोटोकॉल युद्ध के बाद जाँचकर्ताओं को सूचना और साक्ष्य संरक्षित करने में मदद करता है. उन्होंने अपील की कि बलात्कार और यौन हिंसा सबंधी अपने कानूनों को अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों के अनुसार बनाएँ. सैनिकों और शांतिरक्षकों को उचित प्रशिक्षण दिया जाए कि वो युद्धक्षेत्र में इस तरह के कृत्यों की रोकथाम कर सकें. यौन हिंसा के अपराधियों को खुला न छोड़ा जाए उन्हें दंडित किया जाना चाहिए. आखिर कब तक औरतें युद्ध के भयावह परिणाम झेलने को अभिशप्त रहेंगी.

बहरहाल अभी तो खूबसूरत अफगानी लड़कियों को किसी खजाने की तरह घरों में छुपाया जा रहा है कि कहीं कोई तालिबानी उन्हें उठा कर न ले जाये. जब से तालिबानियों ने 14 से 40 साल तक कि औरतों की फेहरिस्त माँगी है तब से अफगानी ख़ौफ़ज़दा हैं खासकर औरतें दहशत में हैं. अफगानिस्तान एक बार फिर बीस साल पीछे चला गया है. ये दौर भी ख़त्म होगा कुछ इस सबके बाद बच भी निकलेंगी पर उनकी आँखों में एक सवाल होगा होठों पर चुप्पी होगी. सुनाने को उनके पास परियों की कहानियाँ नहीं होंगी होगा बस एक भयावह सच जो दुनिया के बड़े से बड़े खून खराबे को भी शर्मसार कर देगा. कभी तो ये परिदृश्य बदलेगा कभी तो औरत को अपने औरत होने की कीमत नहीं चुकानी होगी. इनके साथ साहसी सैनिकों जैसा बर्ताव किया जाएगा. वो सुबह कभी तो आएगी.

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