एक्ट्रेस नीना गुप्ता ने खोले लाइफ के कई राज, पढ़ें इंटरव्यू 

80 के दशक में वह प्रसिद्द क्रिकेटर विवियन रिचर्ड्स के साथ प्रेम संबंधों की वजह से चर्चा में रही और बिन ब्याहे ही माँ बनकर बेटी मसाबा को जन्म देने वाली अभिनेत्री नीना गुप्ता के इस बोल्ड स्टेप की काफी आलोचना हुई, लेकिन उसने किसी बात पर बिना ध्यान दिए ही आगे बढ़ती गयी. हालाँकि विवियन ने बेटी को अपना नाम दिया, पर नीना को पत्नी का दर्जा नहीं दिया. नीना ने सिंगल मदर बनकर बेटी को पाला, जो एक प्रसिद्ध फैशन डिज़ाइनर है. इसके बाद साल 2008 में नीना ने चार्टेड एकाउंटेंट विवेक मेहरा से शादी की और अब खुश है. नीना स्पष्टभाषी है, जिसका प्रभाव उसके कैरियर पर भी पड़ा, पर वह इससे घबराती नहीं.

नीना गुप्ता हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की मशहूर अदाकारा, टीवी अभिनेत्री,निर्माता, निर्देशक के रूप में परिचित है. उन्होंने अपने हॉट फोटो शूट, प्रेम प्रसंगों और नयी सोच को लेकर हमेशा चर्चा में रही. उनकी फिल्मों की अगर बात करें तो उन्होंने हमेशा लीक से हटकर फिल्में की और कमोवेश सफल रही. वह आज भी गृहशोभा पढ़ती है और इस पत्रिका के प्रोग्रेसिव विचार से सहमत रखती है. उनकी फिल्म उंचाई की सफलता को लेकर वह बहुत खुश है और ज़ूम लिंक पर बातचीत की जिसमे उन्होंने अपने कैरियर से जुडी कई राज से पर्दा उठाया, आइये जाने उनके जीवन की कुछ ऐसी रोचक बातें. 

फिल्म की सफलता के बारें में कुछ भी कहना कम होगा, क्योंकि इस फिल्म को जिस भावना के साथ बनाई गयी है, वह उसमे पूरी तरह से उतर कर आई है. इसके अलावा इतनी बड़ी फिल्म मेकर राजश्री प्रोडक्शन और उसमे सूरज बडजात्या की सोच जुडी हुई है. फिल्म में दिखाई गयी भावना इतनी प्योर है कि उसका एहसास सभी को हो रहा है. इसलिए ये सफल हुई है, इसे युवा और वयस्क सभी खुद को जोड़ पा रहे है. मैं बहुत अधिक खुश हूँ, क्योंकि पेंडेमिक के बाद दर्शकों को हॉल तक लाना मुश्किल हो रहा था, लेकिन इस फिल्म ने वो काम कर दिखाया.

 सुनहरे दिन 

ओटीटी की वजह से आज सभी उम्र और वर्ग के कलाकारों को काम मिल रहा है, इसे नीना सबसे अच्छा समय मानती है, वह कहती है कि आज हर कोई बिजी है और काम जरुरी भी है, क्योंकि पेंडेमिक की वजह से लोगों ने 3 साल तक किसी प्रकार की काम नहीं किये है, लेकिन अब वे इसे मेहनत से कर रहे है. आर्टिस्ट्स से लेकर, निर्माता, निर्देशक, टेक्निशियन आदि सभी को आज कुछ न कुछ काम है. अच्छी-अच्छी भूमिका भी मुझे करने को मिल रही है, लेकिन अच्छाई के साथ-साथ कुछ गलत चीजे भी जीवन में आती है, मसलन कींडल, मोबाइल, लैपटॉप में कहानी लोग पढने लगे है, लेकिन किताब और बुक शॉप अभी भी है, वे बंद नहीं हुई है. वैसे ही थिएटर जाने की आदत जो लोगों में थी, जिसमे वे अपने परिवार के साथ आउटिंग पर जाना समझते है, उसकी जगह में कमी नहीं आ सकती. इसके लिए इंडस्ट्री के सभी को एक अच्छी कहानी कहने की जरुरत है.

खुद की सोच बनी जर्नी में रुकावट  

नीना के जीवन में बहुत उतार-चढ़ाव आये है, लेकिन उन्होंने उससे निकलकर आज एक मुकाम पर पहुंची है, जहां उन्हें दर्शक भी देखना पसंद करते है, लेकिन जितनी पॉपुलैरिटी उन्हें मिलनी चाहिए थी, वह नहीं मिल पाई है, इसकी वजह के बारें में नीना बताती है कि मेरी जर्नी में मैंने जितनी मेहनत की थी, उसका श्रेय नहीं मिलने की वजह, मैं खुद को दोषी मानती हूँ, क्योंकि कई बार मेरा ध्यान काम से भटक जाता था और खुद सेटल होने की इच्छा होती थी, मेरा ध्यान उस समय एक पुरुष पर था. जैसा कि जवान होने पर अधिकतर महिला एक अच्छा घर -परिवार बसाना चाहती है. इसके अलावा मेरी दूसरी गलती थी, मुझे इस इंडस्ट्री में घुसने के लिए क्या करना चाहिए ये बताने वाला कोई नहीं था. तीसरी बात मेरा शाय नेचर, जिसमे मैं किसी से काम के बारें में कह नहीं सकी, मेरे एक दोस्त जो फिल्मे बनाता था, उससे भी मैंने कभी काम मांग नहीं पाई. फिल्म इंडस्ट्री में ‘मैं अच्छी एक्टिंग करती हूँ, मुझे काम दो’ ये कहना पड़ता है, तब मुझे लगता था कि वे गुस्सा होंगे, पर ऐसा नहीं होता, काम मिलता है. यही मेरी जर्नी में रुकावट बनी है. 

आती है सहजता अनुभव से 

नेचुरल लुक की बात करें तो नीना ने हमेशा सहजता से भूमिका निभाई है, इसे कर पाने की वजह उनका अनुभव और लगातार सीखते रहने की कोशिश है. नीना कहती है कि मैंने शुरू में अपने प्रतिभा को आगे लाने में समर्थ भले ही न रही हो, पर अब मुझे हर भूमिका अलग और नयी मिल रही है. हालाँकि मैंने शुरू में अभिनेत्री की भूमिका नही निभाई, लेकिन छोटे-छोटे बहुत काम फिल्म और टीवी में किये है, जिससे मेरे पास एक अनुभव है. मेरे अंदर ‘सबसे बेस्ट हूँ’ का गुमान कभी नहीं आया, इससे मैं नीचे नहीं गिरी और आज भी सीख रही हूँ. आज भी मैं अपने काम में 10 गलतियाँ ढूंढती हूँ. समय मिलने पर मैं दिल्ली अपने पति और उनके परिवार वालों से मिलने चली जाती हूँ. रोज की दिनचर्या की बात करें, तो सुबह उठकर मैडिटेशन करना, खाना बनाना, टहलना आदि रोज करती हूँ. साथ ही महीने के 15 दिन मैं शास्त्रीय संगीत भी सीखती हूँ.

मुश्किल दौर   

नीना गुप्ता के सबसे मुश्किल दौर के बारें में पूछने पर वह बताती है कि मेरे जीवन का सबसे मुश्किल दौर तब था, जब मसाबा पैदा हुई.  सोशल, फाइनेंसियल, पर्सनल प्रेशर आदि बहुत सारे मेरे जीवन में आ गए थे. सबकुछ करने में बहुत समस्या आई है, लेकिन हर व्यक्ति के जीवन में कुछ न कुछ समस्या होती है, केवल उसका स्वरूप अलग होता है. परेशानी आने पर अगर मैं नशे की शरण में या सेल्फ पिटी करूँ, तो उसका हल निकलने वाला नहीं और उस स्थिति में आगे बढ़ना भी बहुत कठिन होता है. ऐसे में सबकुछ भूलकर आगे निकलना पड़ता है. कैसे चलू, कौन साथ होगा, पैसे का इंतजाम कैसे होगा आदि कई समस्याएं सामने खड़ी होती है, लेकिन सभी आगे बढ़ सकते है, पैसे है, तब भी पैसे न हो तब भी, केवल कुछ को एक संकल्प लेनी पड़ती है. उस वक्त मेरे पास भी पैसे नहीं थे, मैं पेइंग गेस्ट में रहती थी. मेरा एक दोस्त मुंबई के पृथ्वी थिएटर में कैफे चलाता था. उसको मेरे हाथ का बनाया बैगन का भरता बहुत पसंद था, मैं उसके लिए भरता बनाकर ले जाती थी. उस दिन मुझे फ्री में डिनर मिल जाता था. काम कोई भी छोटा नहीं होता, कल अगर मेरे पास पैसे न हो, तो मैं झाड़ू-पोछा, या खाना बनाकर भी पैसे कमा सकती हूँ. मैंने एम् फिल की पढाई की है, मैं बच्चों को पढ़कर या योगा सिखाकर भी पैसे कमा सकती हूँ. ऐसी परिस्थिति में कभी ये सोचना ठीक नहीं कि पति ने मुझे पैसे नहीं दिए, छोड़ दिया है, बच्ची है, तो मेरा क्या होगा. हर काम हमेशा काम ही होता है. 

मिला दोस्तों का सहयोग 

नीना गुप्ता को हर पढ़ाव में एक अच्छा दोस्त मिला है, जिससे उन्हें बहुत सहयोग मिला है. सबसे अधिक अच्छा दोस्त दीपक काजिर है, जिसके साथ 10 साल तक बात न भी करने पर मुझे पता है कि वह मेरा साथ हर मुसीबत में देगा. इसके अलावा मुंबई में दंगे के समय मैं आराम नगर में थी, वहां पर रहने वाले पडोसी पति-पत्नी ने भी मुझे बहुत हेल्प किया. मेरे पिता की मत्यु के बाद भी इन दोनों दम्पति ने बहुत सहयोग दिया है. अभी भी मैं सालों बाद अपने दोस्तों से मिलती हूँ और बहुत अच्छा महसूस होता है. मेरी सबसे अच्छी दोस्त मेरी बेटी मसाबा है. हम दोनों आपस में कपडे शेयर करते है, जूते की साइज़ दोनों की एक है. साथ में शौपिंग करते है, कहीं घूमने भी साथ जाते है. आज के समय में माता-पिता को बच्चों के दोस्त बनना है, उन्हें रेस्पेक्ट दें और उनकी बातें सुने. कई बार माता-पिता उन्हें छोटा समझकर उनकी बातें टाल देते है, जो ठीक नहीं.  

मैं आने वाले नए साल में सभी से ईमानदारी से काम करने का सुझाव देती हूँ, क्योंकि कई बार काम समय पर नहीं मिलता, लेकिन मेहनत जारी रखना है, ताकि एक न मिले दूसरा अवश्य मिल सकता है. 

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें