विज्ञान और अनुसंधान के मामलों में क्यों पीछे हैं भारतीय महिलाएं

भारत समेत पूरी दुनिया के लिए 2020 बेहद डरावने वर्ष के रूप में गुजर रहा है. अर्थव्यवस्थाएं चरमराई हुई हैं. कोरोना कहर के बीच मौत के आंकड़े बढ़ते जा रहे हैं और इस के साथ ही अपनों के लिए लोगों की चिंता भी बढ़ रही है. वस्तुतः कोविड-19 संकट ने समाज में विज्ञान और शोध की महत्ता साबित की है. विज्ञान हमें इस महामारी से निकलने का एग्जिट प्लान बताएगा जब दुनिया में कोरोना वायरस की वैक्सीन विकसित कर ली जाएगी. मगर तब तक वैज्ञानिक और शोधकर्ता यह पता लगाने में जुटे हुए हैं कि वायरस कहां से आया, कैसे फैला और किस तरह का इलाज इस पर असरदार साबित हो सकता है.

जब भी दुनिया में इस तरह के खतरे आते हैं भले ही वह महामारी हो, भूकंप हो, पर्यावरणीय संकट हो या कुछ और इंसान को विज्ञान का आसरा होता है. दुनिया विज्ञान की राह जाती है पर ज्यादातर भारतीय ऐसे संकट के समय में भी अंधविश्वास की राह पकड़ते हैं. धार्मिक रीतिरिवाजों, अनुष्ठानों और व्रतउपवासों के जरिए संकट दूर करने के उपाय ढूंढते हैं.

वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम ने 2008 में यंग साइंटिस्ट्स कम्युनिटी की शुरुआत की थी. अब 2020 में दुनिया के 14 देशों के कुल 25 यंग वैंज्ञानिकों के चेहरे सामने लाए गए हैं जो अनुसंधानों और खोजों के जरिए विश्व परिदृश्य बदलने का काम करेंगे. आप को यह जान कर आश्चर्य होगा कि इन 25 युवा वैज्ञानिकों में 14 महिलाएं हैं. यानी दुनिया में महिलाएं तेजी से विज्ञान और अनुसंधान के फील्ड में आगे बढ़ रही हैं मगर भारतीय महिलाएं इस दृष्टि से काफी पीछे हैं.

अंधविश्वास और भारतीय महिलाएं

बात करें भारतीय महिलाओं की तो यह जगजाहिर है कि भारतीय महिलाओं को हमेशा से धर्म, पाखंड और अंधविश्वास के लपेटे में बांध कर रखा गया है. उन के बढ़ते कदमों पर हमेशा ही धर्म की पाबंदियां रही हैं. इस सन्दर्भ में क्रिमिनल साइकोलोजिस्ट और सोशल वर्कर अनुजा कपूर कहती हैं कि जरा सोचिए इन पाबंदियों की वजह से क्या महिलाओं ने खुद का अस्तित्व नहीं खोया है ? खुद को रेप, किडनैपिंग या मर्डर का विक्टिम नहीं बनाया है ? शारीरिक, मानसिक और आर्थिक नुकसान नहीं उठाया है ? अंधविश्वास की वजह से ही राम रहीम, चिन्मयानन्द और आसाराम जैसे लोग आगे आए. जिन्होंने महिलाओं के अंधविश्वास की प्रवृत्ति का फायदा उठा कर अपने बैंकबैलेंस बढ़ाए और उन की जिंदगी के साथ खेला.

भारतीय महिलाएं अधिक पढ़ीलिखी नहीं होतीं इसलिए उन का दिमाग ज्यादा खुला हुआ नहीं है. यदि महिला पढ़ीलिखी है तो भी वह जिस समाज में रह रही है वहां उसे अपने दिमाग और ज्ञान का पूरा उपयोग करने की अनुमति नहीं दी जाती. घर में सासससुर हैं, आसपास अड़ोसीपड़ोसी भी हैं. सब उस से अंधविश्वास मानने की बातें करेंगे. उस के पास न तो इतना वक्त होता है और न पेशेंस कि सब से लड़े और अपनी बात रखे. नतीजा उसे सब की बात माननी पड़ती है.

वैसे भी महिलाएं जल्दी झांसे में आ जाती हैं और इस की वजह उन का इमोशनल होना है. उन्हें बेवकूफ बनाना आसान होता है. भले ही वे पढ़ीलिखी हों तो भी पाखंडबाजी में जल्दी आ जाती हैं. आप देखिए मार्केट महिलाओं के कपड़ों और गहनों से सजा मिलेगा. पुरुषों के सामान काफी कम बिकते हैं. महिलाएं मोस्ट कंपल्सिव बायर्स हैं. इस की वजह है उन के अंदर बड़ी मात्रा में एक्सेप्टैंस की चाह का होना. कहीं न कहीं गहने, जेवर जैसी चीजें खरीद कर और मेकअप करवा कर वे अच्छा दिखना चाहती हैं. उन्हें लगता है कि इस तरह उन्हें एक्सेप्टैंस मिलेगा. वे यह भूल जाती हैं कि यह एक्सेप्टैंस अपने अंदर से आती है. कपड़े, पढ़ाई या फैशन से नहीं. इसी तरह कस्टम और रिचुअल्स निभा कर भी वे समाज में अपनी एक्सेप्टैंस बढ़ाना चाहती हैं. मगर इस का नतीजा बहुत बुरा निकलता है.

भय पैदा करता है अंधविश्वास

हमें समझना होगा कि जिंदगी को बेहतर ढंग से कैसे जीया जाए. अंधविश्वास और उस से उपजे भय से आजादी कैसे पाई जाए. अंधविश्वास ने हमारे समाज में रीतिरिवाजों के तौर पर अपनी जड़ें गहरी जमा रखी हैं. स्त्री बीमार है, उस के शरीर में जान नहीं है, फिर भी उसे भूखा रहना है. उपवास करना पड़ता है. क्योंकि करवाचौथ एक ऐसा रिवाज है जिस के मुताबिक़ महिला अपने मुंह में दिन भर अन्न का एक दाना नहीं डाल सकती. इस रिवाज के पीछे छिपे अंधविश्वास ने लोगों के मन में यह भय भर रखा है कि यदि स्त्री ने उपवास तोड़ा तो उस का सुहाग उजड़ जाएगा. अंधविश्वास का यह भय अक्सर औरतों की जिंदगी पर भारी पड़ता है. जरूरी है कि हम किसी भी रिवाज को दिमाग से समझें. अपनी पढ़ाईलिखाई से प्राप्त किए ज्ञान का भी मनन करें. तभी दिमाग खुलेगा और हमें इस भय से मुक्ति मिलेगी.

इसी तरह किसी भी समस्या का प्रैक्टिकल सॉल्यूशन खोजा जाए. परिवार की खुशी के लिए कुछ कल्चरल कस्टम निभाएं. मगर इन से जुड़े भय को मन में बैठने मत दीजिये. खुद पर विश्वास पैदा करने के लिए प्रयास करें. नए रास्ते तलाशें. ऐसी कोई समस्या नहीं जिस का समाधान उपलब्ध न हो. दिल के झांसे में न आएं. दिल हमें अंधविश्वास मानने को प्रेरित करता है. जबकि दिमाग सही रास्ता दिखाता है. खोज करने और रास्ता ढूंढने का मार्ग बताता है. दिमाग ही दिल को हरा सकता है. जो सही लगे समाज की उन्हीं बातों को मानें. उदाहरण के लिए कोविड-19 को ही लें. जरुरी है कि इस समय सकारात्मक सोच रखी जाए. एहतियात बरती जाए. मगर इस के पीछे पागल न हो जाएं. विल पावर से रिकवरी आसान हो जाती है. खुद पर विश्वास होना चाहिए अंधविश्वास नहीं.

भेड़चाल है अंधविश्वास

अनुजा कपूर कहती हैं कि हम डेमोक्रेटिक समाज में रहते हैं और हर किसी को अपने मन की बात बोलने का हक है. लोग अपने इस हक का फायदा उठाते हैं और बोलते हैं. मगर यह नहीं सोचते कि यह बात रिसर्च बेस्ड है भी या नहीं. हम अपनी बात स्टीरियोटाइप कर देते हैं. यह कहना भूल जाते हैं कि यह साइंटिफिक बातें नहीं वरन हमारी सोच है या दूसरे लोगों से सुनीसुनाई बात है. हम चाहते हैं कि लोग हमें सुनें और ज्ञानी समझें. यही हाल हमारे समाज और राजनीति का भी है. आज आधे से ज्यादा वैसे लोग देश चला रहे हैं जो पढ़ेलिखे नहीं हैं.

वैसे सोचने वाली बात यह भी है कि आखिर पढ़ाई हमें कितना समझदार बना पाती है. हम पढ़ कर ज्ञान ले तो लेते हैं पर तब तक उस की कोई अहमियत नहीं जब तक हम उसे सही अर्थों में ग्रहण न कर लें. उसे दिल से स्वीकार न कर लें. ज्ञान हमारी आँखें न खोल दें और जीवन में विकट परिस्थितियां आने पर हम उस ज्ञान का प्रयोग न करें. जबकि होता यह है कि हम ज्ञान इसलिए लेते हैं ताकि समाज हमें स्वीकार करे. हम 10 लोगों के बीच खुद को अलगथलग महसूस न करें. इसलिए अपना दिमाग बंद कर हम भी भेड़चाल में चलने लगते हैं.

रिस्क उठाना नहीं चाहते

लोग रिस्क फैक्टर्स उठाना नहीं चाहते. वे खतरा मोल लेने से डरते हैं. जाहिर है कि जहां आशंका है वहां अंधविश्वास होता है. पढ़ेलिखे होने पर भी आप अंधविश्वासी हो सकते हैं क्योंकि आप ऐसे समाज में रहते हैं जहाँ लोग अंधविश्वासी हैं. वे आप को भी अंधविश्वासी बनाने के प्रयास में रहते हैं. आप बीमार हैं, बच्चा नहीं हो रहा है या पति के साथ झगड़े चल रहे हैं तो लोगों की सलाहें मिलनी शुरू हो जाती है,’ उस बाबा के पास जाओ और झाड़फूंक करवाओ.’ ‘सोलह सोमवार का व्रत करो.’ ‘मंदिर में 51,000 का चढ़ावा चढ़ाओ, अनुष्ठान करवाओ.’ आदि. लोगों के पास हजारों कहानियां होती हैं सुनाने के लिए कि कहां और कैसे समस्या का समाधान हुआ या कृपा बरसी.

जरूरी है कि हम यह समझें कि शिक्षित हों तो अपने लिए हों. केवल बिजनेस चलाने या पैसे कमाने के लिए नहीं. शिक्षा का असर हमारी सोच और व्यवहार में भी दिखे. महिलाएं खुद को एमपावर करें पर केवल दिखावे के लिए नहीं. अंधविश्वासी होना आप के व्यक्तित्व को या परिवार को नुकसान पहुंचा रहा है तो यह गलत है. अपने ज्ञान का उपयोग करें. आंखें बंद कर पाखंडबाजी और झाड़फूंक पर विश्वास करना निंदनीय है. अंधविश्वासी व्यक्ति वास्तव में पैरानॉइड पर्सनैलिटी हो जाता है जो सिर्फ एक ही चीज पर विश्वास करने लगता है. ऐसा बनने से बचें.

बाबाओं के पाखंडों की असलियत पहचानें. लोगों से बातें करें. गूगल का सहयोग ले. नई खोज करें और अपनी समस्या से बचने का उपाय निकालें. हमारे पास कोविड जैसी समस्याओं से निबटने को बहुत से रास्ते हैं. आज भारत में भी कुछ महिलाएं हैं जो इस दिशा में हमारा मार्गदर्शन कर रही हैं.

भारत की ये 5 महिलाएं (डॉक्टर, आईएएस, वैज्ञानिक) जो कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई का नेतृत्व कर रही हैं और सप्ताह के सातों दिन चौबीसों घंटे काम कर रही हैं ताकि हम इस लड़ाई में जीत सकें ———

प्रीति सुदान

आंध्र प्रदेश कैडर के 1983 बैच की आईएएस अधिकारी सुदान को आमतौर पर देर रात को अपने कार्यालय से बाहर निकलते देखा जाता है. वह स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की सचिव हैं जो बीमारी के प्रसार को रोकने के लिए सरकार की नीतियों को लागू करने के लिए सभी विभागों के साथ समन्वय करने का काम कर रही हैं. वह राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के साथ तैयारियों की नियमित समीक्षा में भी शामिल है.

डॉ निवेदिता गुप्ता

इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) की वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ निवेदिता गुप्ता देश के लिए उपचार और परीक्षण प्रोटोकॉल तैयार करने में व्यस्त हैं.

रेणु स्वरूप

स्वरूप पिछले 30 वर्षों से विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) में काम कर रही हैं. अप्रैल 2018 तक उन को वैज्ञानिक ’एच’ का पद मिला हुआ था जो एक अच्छे वैज्ञानिक को दर्शाता है. उस के बाद उन्हें सेक्रेटरी के रूप में नियुक्त किया गया था. वह अब कोरोनोवायरस वैक्सीन विकसित करने के शोध में शामिल है.

प्रिया अब्राहम

प्रिया अब्राहम अभी नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (एनआईवी) पुणे का नेतृत्व रही हैं – जो कि आईसीएमआर से संबद्ध है. एनआईवी शुरुआत में कोविड-19 के लिए देश का एकमात्र परीक्षण केंद्र था.

बीला राजेश

तमिलनाडु के स्वास्थ्य सचिव के रूप में राजेश अपने राज्य में चुनौती से निपटने में सब से आगे रहीं. उन्होंने हाल ही में पोस्ट किया था कि वायरस किसी को भी प्रभावित कर सकता है, चलो एक दूसरे के प्रति संवेदनशील रहें और कोविड-19 के खिलाफ एक समन्वित लड़ाई छेड़ें. वैसे तमिलनाडु सरकार ने हाल ही में डॉ. बीला राजेश को राज्य के स्वास्थ्य सचिव के पद से हटा कर वाणिज्य कर और पंजीकर विभाग का सचिव बना दिया है.

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