इंटरसिटी एक्सप्रैस: भाग-3

आज घर में बड़ी रौनक थी. प्रेम की प्यारी बिटिया अनुभा का ब्याह जो था. पूरा घर दुलहन की तरह सजा था. प्रेम ने भव्य पंडाल लगवाया था. शहर से ही शहनाई वालों और कैटरिंग वालों की व्यवस्था की थी. बरात शाम को शहर से आने वाली थी. बरात के रास्ते पर भव्य स्वागत द्वार लगाए गए थे. फूलों की महक ने पूरे महल्ले को महका दिया था. सुबह से ही मंगल ध्वनि माहौल को सुमधुर बना रही थी. प्रेम सारी तैयारियों से संतुष्ट था. हफ्ते भर से शादी की भागदौड़ में लगा हुआ था, इसलिए थकान के मारे उस का शरीर टूट रहा था. थोड़ा दम लेने के लिए वह पंडाल के एक कोने में पड़ी कुरसी पर पसर गया, तो एक फ्लैशबैक फिर उस की आंखों के सामने घूम गया. मधु के साथ इंटरसिटी ऐक्सप्रैस में आना. फिर मधु का दूर जाना और फिर मिलना. अनुभा का बचपन, उस की किलकारियां. अनुभा की शादी होने का वक्त आया तो बिटिया की विदाई के बारे में सोचसोच कर प्रेम की रुलाई थामे न थमती थी. प्रेम ने अपना चेहरा हाथों से ढक लिया. तभी उस के कानों ने कुछ सुना. कोई किसी को बता रहा था कि अनुभा का असली पिता प्रेम न हो कर दीपक है. प्रेम तो अनुभा का सौतेला पिता है. प्रेम ने बाएं मुड़ कर देखा, तो मधु का पहला पति दीपक सजेधजे कपड़ों में लोगों से बात कर रहा था. इसे यहां किस ने बुलाया? सोचते हुए प्रेम क्रोध के कारण कांपने लगा. तभी उस ने देखा कि दीपक मधु के पास चला गया. प्रेम ने मधु के चेहरे को गौर से देखा. उसे लगा कि आज मधु के चेहरे पर अपने तलाकशुदा पति दीपक के लिए पहले जैसी घृणा नहीं थी. क्या मधु ने ही आज दीपक को यहां बुलाया है? यह सोचते हुए प्रेम का दिल बैठ गया. दीपक के साथ खड़ा आदमी शायद सभी मेहमानों को यही बता रहा होगा कि अनुभा का असली पिता दीपक है.

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प्रेम पंडाल की ओट में बैठा दुनिया का सब से गरीब आदमी हो गया. सौतेला शब्द उसे कांटों की तरह चुभ रहा था. पहली बार उसे जीवन का यथार्थ अनुभव हुआ. सही तो है, है तो वह सौतेला पिता ही… उस की आंखों में व्यथा की पीड़ा उभर आई. उस ने पंडाल के उस कोने से देखा कि शादी की तैयारियां पूरी हो चुकी हैं. सब लोग अपने में व्यस्त हैं और अब किसी को भी उस की जरूरत नहीं है. प्रेम आहिस्ता से उठा और भारी कदमों से बाहर की ओर चल दिया. कई लोगों ने उसे टोका परंतु प्रेम जैसे अपनी ही दुनिया में था. ‘कन्या के पिता को बुलाइए,’ शादी करा रहे पंडित ने कहा तो दीपक दांत निकाले आगे की ओर आ गया. अनुभा ने घूंघट की ओट से दीपक को देखा तो वह चौंक उठी. ‘‘हरगिज नहीं,’’ अनुभा गरजी, ‘‘तुम मेरे पिता नहीं हो.’’ दीपक बेशर्मी से हंसते हुए बोला, ‘‘बिटिया, मां ने बताया नहीं कि मैं ही तुम्हारा…’’ दीपक का वाक्य समाप्त होने से पहले ही अनुभा अपनी जगह पर खड़ी हो गई. ‘‘बब्बा,’’ उस ने जोर से आवाज लगाई पर कोई उत्तर न पा कर विवाह स्थल से आगे निकल आई. मधु और अन्य लोगों ने अनुभा को रोका और प्रेम की खोजखबर ली जाने लगी. एक दरबान ने बताया कि उस ने प्रेम को पंडाल से बाहर जाते हुए देखा है. मधु और अनुभा एकदूसरे को देखने लगे. मन के तारों ने एकदूसरे की व्यथा को ताड़ने में देरी नहीं की. दीपक ने कुछ कहने की कोशिश की पर अनुभा और फिर मधु ने दीपक को विवाह स्थल से बाहर जाने का आदेश दिया. दीपक ने देखा कि कुछ लोग आस्तीन चढ़ाए उस के पीछे खड़े हो गए हैं, तो उस ने रुखसत होने में ही खैरियत समझी.

अनुभा ने अपना सुर्ख लहंगा संभाला और पंडाल के बाहर दौड़ चली. मधु भी अनुभा के पीछेपीछे ‘अनुभा…अनुभा’ आवाज लगाते हुए दौड़ पड़ी. फिर तो जैसे पूरा कुनबा ही दौड़ चला. दलहन के शृंगार में सजी अनुभा तेजी से रास्ते पर दौड़ रही थी. उस के पीछे मधु और बाकी मेहमान, नौकरचाकर सब दौड़ रहे थे. अनुभा बस दौड़ी चली जा रही थी. उसे पता था कि उस के बब्बा कहां होंगे. बब्बा, उस के प्यारे बब्बा, केवल उस के बब्बा. स्टेशन करीब आया तो उस ने देखा कि प्लेटफौमर्न नंबर 1 पर इंटरसिटी ऐक्सप्रैस आने को थी. डिस्प्ले बोर्ड ने डब्बों की पोजिशन दिखाना शुरू कर दिया था और यात्रियों की भीड़ ट्रेन की प्रतीक्षा कर रही थी. इसी प्लेटफौर्म के एक कोने में एक बूढ़ा आदमी अपने घुटनों में सिर छिपाए बैठा था. अचानक उसे लगा कि उसे कोई पुकार रहा है. भला कौन है उस का जो उसे पुकारेगा? सोच कर उस ने धीरेधीरे अपना सिर ऊपर उठाया तो देखा कि सामने अनुभा व मधु थीं. बूढ़े व्यक्ति ने सपना समझ कर अपनी आंखें बंद कर लीं.

भागती हुई अनुभा बब्बा के पैरों में गिर पड़ी, ‘‘बब्बा, कहां चले गए थे मुझे अकेला छोड़ कर…?’’ अनुभा रोते हुए बोली, ‘‘आप ही मेरे पिता हैं, चाहे कोई कुछ भी कहे.’’ प्रेम अपनेआप को समेटते हुए थरथराती आवाज में बोला, ‘‘बिट्टो, मैं तेरा पिता नहीं हूं.’’ अनुभा, प्रेम के चेहरे को अपने हाथों में लेते हुए बोली, ‘‘बब्बा, मन का नाता एक दिन में नहीं मिटता. और फिर आप का और मेरा तो जन्मों का नाता है.’’ प्रेम और कुछ कहने को हुए, लेकिन अनुभा ने प्रेम के होंठों पर हाथ रख दिया. मधु भी हांफते हुए कह उठी, ‘‘भला कोई ऐसे जाता है. बेटी की शादी को बीच में छोड़ कर… आप के सिवा हमारा और है कौन इस दुनिया में?’’ प्रेम ने मधु की ओर देखा, जो उस के आंसुओं ने प्रेम के सारे शिकवों को बहा दिया. मधु के पीछेपीछे आए सारे लोग थोड़ी दूर रह कर यह नजारा देख रहे थे. तभी इंटरसिटी ऐक्सप्रैस का इंजन बिलकुल अनुभा और प्रेम के पास आ कर रुका. दुलहन के रूप में अनुभा को देख कर ट्रेन के ड्राइवर ने नीचे उतर कर अनुभा के सिर पर अपना हाथ रख दिया और बोला, ‘‘कितनी बड़ी हो गई बिटिया, अभी कल की ही बात है जब बब्बा की गोद में बैठी हम सब को टाटा किया करती थी.’’ ड्राइवर की बातों ने सब की आंखों को और भी नम कर दिया. इंजन ने हौर्न दिया तो ड्राइवर पुन: इंजन पर चढ़ गया. इंटरसिटी ऐक्सप्रैस फिर कुछ जिंदगियों में हलचल मचा कर चल दी थी. ट्रेन के अंदर से यात्री और प्लेटफौर्म पर अनुभा, मधु और प्रेम हाथ हिला रहे थे. माहौल फिर खुशगवार हो रहा था.

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