रोशनी के फेस्टिवल में घोलें सपनों के रंग

आप जब भी किसी दोस्त या रिश्तेदार के घर में प्रवेश करते हैं, तो सब से पहले आप की नजर उस कमरे की दीवारों पर पड़ती है. और अगर दीवारों का रंग अच्छा लगता है तो उसे ऐप्रिशिएट भी करते हैं.

दरअसल, रंग हमारी आंखों को सब से पहले प्रभावित करते हैं, इसलिए घर में रंगरोगन करवाते वक्त सही रंगों का चुनाव बहुत जरूरी होता है. रंग न सिर्फ व्यक्तित्व को उजागर करते हैं, घर में एक सुकून भरा वातावरण भी बनाते हैं. दिन भर की भागदौड़ के बाद व्यक्ति जब घर लौटता है, तो उसे पूरी तरह से रिलैक्स होना जरूरी होता है ताकि वह अगले दिन के लिए अपनेआप को तैयार कर सके. ऐसे में अगर घर की दीवारों का रंग अच्छा और सुकून देने वाला होता है तो उस से बहुत चैन और आराम मिलता है.

सफेद रंग का क्रेज

मुंबई की नाबार प्रोजैक्ट्स की इंटीरियर डिजाइनर मंजूषा नाबार कहती हैं कि मैं पिछले 24 सालों से इस क्षेत्र में हूं. पहले 90 के दशक में अधिकतर लोग औफ व्हाइट या सफेद रंग ही पसंद करते थे, लेकिन धीरेधीरे लोगों का टेस्ट बदला. उन का ध्यान सफेद से हट कर ब्राइट कलर्स पर ध्यान गया.

रंगों के ट्रैंड में बदलाव पेंट की कंपनियों की वजह से आता है. बड़ीबड़ी कंपनियां हर बार नएनए रंग और उन्हें प्रयोग करने के तरीके बाजार में उतारती हैं, जिन्हें देख कर उपभोक्ता उत्साहित हो कर वैसे ही रंग अपने कमरों में करवाने लगते हैं. लेकिन सफेद रंग का के्रज हमेशा रहा है और रहेगा भी. समयसमय पर कुछ फेरबदल अवश्य होते हैं पर सीलिंग पर सफेद रंग हमेशा सही रहता है.

सफेद रंग से घर बड़ा और खुला दिखता है क्योंकि इस रंग से रोशनी रिफ्लैक्ट होती है. गहरे रंग से तो रोशनी के साथसाथ जगह भी कम दिखती है.

सभी रंगों का महत्त्व

आमतौर पर घरों में रंग उस के क्षेत्र के अनुसार कराए जाते हैं. अगर मुंबई और दिल्ली की हम तुलना करें तो मुंबई के मौसम में नमी अधिक होती है, इसलिए वहां थोड़ा डार्क कलर चलता है, जबकि दिल्ली का मौसम ऐसा नहीं रहता, इसलिए वहां हलके रंग अधिक पसंद किए जाते हैं. लेकिन सभी रंगों का अपना महत्त्व तो होता ही है.

आप अपने घर में रंग करवाते वक्त कुछ बातों पर अवश्य ध्यान दें:

– गहरे रंग डिप्रैशन लाते हैं, इसलिए हमेशा लाइट औरेंज, ग्रीन, सफेद आदि रंगों का प्रयोग करें.

– नई तकनीक के अंतर्गत रिफाइंडमैंट टैक्सचर, वालपेपर, फैब्रिक पेंट, ग्लौसी पेंट और मैट फिनिश आदि अधिक लगाना अच्छा होता है.

– बच्चों के कमरे में प्राइमरी रैड, ग्रीन, यलो और ब्लू कलर अच्छा लगता है, तो बुजुर्गों के कमरे के लिए लाइट पिंक, लाइट ब्लू व लाइट औरेंज कलर अच्छे होते हैं, क्योंकि ये रंग रिलैक्सेशन का एहसास कराते हैं. यंगस्टर्स और नवविवाहितों के लिए वाइब्रैंट कलर अधिक अच्छे रहते हैं. इन में रैड, ग्रीन व औरैंज कलर काफी लोकप्रिय हैं, क्योंकि वे ऐक्टिव होने का एहसास कराते हैं.

रंगों का चयन

रंगों का चयन तो व्यक्ति के व्यक्तित्व, प्रोफैशन और स्थिति वगैरह को ध्यान में रख कर करना चाहिए, क्योंकि रंगों का व्यक्ति के जीवन पर बहुत प्रभाव पड़ता है.

ये भी पढ़ें- Diwali Special: इस दीवाली करें घर को जर्म फ्री

कौरपोरेट क्षेत्र के अधिकतर लोग लाइट कलर अधिक पसंद करते हैं तो अध्यापक वर्ग अधिकतर लोग यलो व ग्रीन कलर पसंद करते हैं. व्यवसायी अपने स्टेटस के हिसाब से रंग चुनते हैं, तो अधिकतर फिल्मी लोग सफेद रंग ही पसंद करते हैं. बुद्धिजीवी लोग अधिकतर ‘अर्थ कलर’ करवाते हैं.

रंगों की पसंदनापसंद के अलावा जरूरी बात यह है कि घर को घर के जैसा ही रहने देना चाहिए. उसे आर्टिफिशियल नहीं बनाना चाहिए. घर को हमेशा वैलकमिंग होना चाहिए.

अच्छा इंटीरियर मुनाफे का सौदा

मिठाई की दुकान से ले कर परचून की दुकान तक का इंटीरियर अब पहले से काफी बेहतर होने लगा है. जिन दुकानों में पहले इंटीरियर पर बिलकुल ध्यान नहीं दिया जाता था वहां भी अब मौडर्न स्टाइल का इंटीरियर होने लगा है. कपड़ों की शौप्स पहले से बदल गई हैं. फर्श हो या छत अब हर जगह का इंटीरियर अलग दिखने लगा है. सैलून के नाम पर पहले केवल महिलाओं के ब्यूटीपार्लर ही सजेधजे नजर आते थे पर अब पुरुषों के सैलूनों में भी इंटीरियर डिजाइन होने लगा है. सोशल मीडिया के जमाने में लोग जहां जाते है वहां के फोटो अपडेट करने की कोशिश करते हैं. अच्छा इंटीरियर मुफ्त में प्रचार का भी काम करता है.

इस बदलाव के क्या कारण हैं? यह जानने के लिए हम ने लखनऊ की रहने वाली मशहूर इंटीरियर डिजाइनर और और्किटैक्ट अनीता श्रीवास्तव से बात की:

शौप्स का मैनेजमैंट अच्छा हो जाता है

अनीता श्रीवास्तव कहती हैं, ‘‘सुंदर और सुव्यवस्थित माहौल हर किसी को पसंद आता है. ऐसा माहौल मन पर सुंदर छाप छोड़ता है. पहले शौप्स में सामान इधरउधर फैला होता था, जिस की वजह से गंदगी दिखती थी, सफाई करना मुश्किल हो जाता था. चूहे और कीडे़मकोडे़ सामान को नुकसान पहुंचाते थे. लाइटिंग की सही व्यवस्था नहीं होती थी. बिजली के उल?ो तारों से दुकानों में दुर्घटना हो जाती थी.

शौर्ट सर्किट से आग लग जाती थी. काम करने वालों को सही तरह से बैठने या खडे़ होने की जगह नहीं मिलती थी. हवा और रोशनी नहीं मिलती थी. अब इंटीरियर डिजाइनर शौप्स की जरूरत और वहां आने वाले कस्टमर की सुविधा को देखते हुए शौप्स को अच्छे से डिजाइन करते हैं. इस से काम करने वाले को सुविधा और कस्टमर को देखने में अच्छा लगता है.’’

बिजली का डिजाइनर सामान

इंटीरियर डिजाइनिंग में पहले बिजली का प्रयोग जरूरत के लिए होता था. आज के दौर में बिजली का ऐसा सामान आ गया है जो जरूरत के साथसाथ सुंदर भी लगता है. जहां जिस तरह की हवा और रोशनी की जरूरत होती है वहां उस का उपयोग किया जाने लगा है. बिजली के ऐसे उपकरण आ गए हैं जो कम वोल्टेज पर चलते हैं. इस से बिजली की बचत होने लगी है. हवा के लिए पंखे के साथसाथ एसी का प्रयोग होने लगा है. पीने का साफ पानी भी बिजली के प्रयोग से मिलता है.

इस का उपाय भी सही जगह होने लगा है. कम और ज्यादा रोशनी का प्रयोग जरूरत के हिसाब से हो इंटीरियर डिजाइन करते समय इस बात का खयाल रखा जाता है. बिजली चली जाए तो इनवर्टर, सोलर ऐनर्जी या जनरेटर का प्रयोग कैसे कमज्यादा हो इस का प्रबंध भी पहले से किया जाने लगा है.

अर्श से फर्श तक सब बदल गया

अनीता श्रीवास्तव कहती हैं, ‘‘आज इंटीरियर के लिए बहुत अच्छाअच्छा मैटीरियल मिलने लगा है, जो सस्ता भी है और अच्छी तरह तैयार हो जाता है, साथ ही हलका भी होता है. भले ही यह लकड़ी जैसा मजबूत और टिकाऊ न हो पर आज इंजीनियरवुड और प्लाई का उपयोग इंटीरियर में होने लगा है. सस्ता होने के कारण इसे जल्दी बदला जा सकता है.

‘‘कैमिकल का प्रयोग होने से दीमक नहीं लगती है. इंटीरियर में पेपर कार्डबोर्ड का प्रयोग होने लगा है. महंगी टाइल्स की जगह आकर्षक फ्लोरिंग मिलने लगी है. यह मैचिंग और मनचाहे रंग व डिजाइन की होने लगी है. फर्श से ले कर छत तक को नए रंगरूप में बदला जा सकता है.’’

बजट इंटीरियर

इंटीरियर डिजाइनर पहले डिजाइन तैयार कर लेता है उस के बाद वह बजट के अनुसार मैटीरियल चुनता है. डिजाइन का अब थ्रीडी फौर्मेट बन जाता है, जिस से पूरा इंटीरियर कैसा लगेगा यह पहले ही पता चल जाता है. जो अच्छा नहीं लगता उस को बदला जा सकता है. इंटीरियर में कुछ ऐसा शामिल किया जाता है जो पूरे इंटीरियर को हाईलाइट करता है. जैसे म्यूरल आर्ट का प्रयोग बढ़ गया है. ग्रीन माहौल दिखाने का प्रयास रहता है. स्पेस रहता है तो माहौल बेहतर होता है. लोग कंफर्टेबल फील करते हैं.

कार्यक्षमता को बढ़ाता है

इंटीरियर की उपयोगिता इसलिए बढ़ रही क्योंकि यह देखने वाले का आकर्षित करती है. कस्टमर यहां आने में कंफर्टेबल फील करता है. यहां काम करने वालों को जब साफ हवा, पानी, खुशनुमा माहौल मिलता है तो उन की कार्यक्षमता बढ़ती है.

कैसा हो घर का इंटीरियर,जानें इंटीरियर डिजाइनर दर्शिनी शाह से

घर या आशियाना हर व्यक्ति के लिए एक विश्राम स्थल और सुकून के कुछ समय बिताने के लिए होता है, ऐसे में अगर इसे एक खूबसूरत पहचान बजट के आधार पर दिया जाय, तो ख़ुशी और आराम दोनों का सुख व्यक्ति को मिल सकता है. मुंबई की इंटीरियर डिजाईनर दर्शिनी शाह भी क्रिएटिव कारीगरी से घर को सुंदर लुक देती है, जो हर किसी को पसंद आता है, लेकिन ये काम आसान नहीं होता. घंटो किसी व्यक्ति के साथ बैठकर उसकी रूचि को समझकर प्लान बनाने के लिए बहुत अधिक धैर्य की जरुरत पड़ती है.

मिली प्रेरणा

दर्शिनी को इस दिशा की प्रेरणा के बारें में पूछने पर वह बताती है कि मुझे बचपन से ही पेंटिंग का शौक था. इसलिए मैंने फाउंडेशन आर्ट में पढ़ाई की, जिसमे कमर्शियल आर्ट और टेक्सटाइल डिजाईन होता है, जो मुझे हर तरह की आर्ट में मदद कर सकती है, मसलन फेब्रिक, टेक्सटाइल, कलर, मटेरियल आदि के बारें में वहां मुझे ज्ञान मिला. वही से मैंने इंटीरियर का काम शुरू किया, जिसमें पहले मैंने आसपास की जान-पहचान लोगों के लिए इंटीरियर का काम किया, सभी ने तारीफें की. मेरा काम शुरू हुआ. इस काम में क्लाइंट के साथ बहुत समय बिताना पड़ता है जैसे उस मकान में रहने वाले परिवार के सदस्य, उनकी पसंद नापसंद आदि को एक बार जान लेने के बाद काम करना आसान हो जाता है. कोई भी व्यक्ति मेरी पसंद के आधार पर अपनी लाइफस्टाइल को नहीं बदलता, इसलिए सही प्लानिंग से सब आसान हो जाता है. मटेरियल और सबकी पसंद को मैच करना थोडा चैलेंजिंग होता है.

ये भी पढ़ें- जानें क्या हैं महिलाओं के लिए कोविड-19 वैक्सीन से जुड़ी जानकारी

पसंद अपनी-अपनी

14 साल से इंटीरियर का काम करने वाली दर्शिनी ने कई बड़े-बड़े सेलेब्रिटी घरों का इंटीरियर किया है. क्या सेलेब्रिटी के लिए घर का इंटीरियर करना कठिन होता है? पूछे जाने पर दर्शिनी कहती है कि हर कलकार की चॉइस अलग-अलग होती है. वे एक्सपेरिमेंट करने में हिचकिचाते नहीं. इसके अलावा वे किसी नयी ट्रेंड को फोलो करना चाहते है और वे खुद क्रिएटिव होने की वजह से उनके साथ काम करने में मज़ा आता है. पर्सनल टेस्ट सबका अलग होता है. करीना कपूर, अलिया भट्ट, कैटरिना कैफ इन सबके घर एक दूसरे से अलग है. ये सब उनकी पर्सनालिटी के आधार पर होती है, मसलन कैटरिना अकेली रहती है, इसलिए लाइट कलर पसंद है, जिसमें वह सबकुछ सजाकर रखती है, जबकि करीना और सैफ को मॉडर्न बोहेमियन स्पेस जिसमें आर्ट, किताबे, गाँव के दृश्य बहुत पसंद है. कार्तिक आर्यन अपने परिवार के साथ रहता है, उसकी जरूरते अलग है. थोड़ी बहुत वैनिटी वैन के इंटीरियर में समस्या आती है, क्योंकि छोटी जगह में बहुत कुछ समायोजित करना पड़ता है. सेलेब्रिटी नार्मल इंसान ही होते है, इसलिए काम से घर लौटने पर उन्हें सुकून मिले, इसकी कोशिश वे करते है. जो लोग खिटपिट करते है, मैं उनका काम नहीं करती.

नहीं डर चेक बाउंस का

शुरू-शुरू में मुझे लगता था कि काम होने के बाद मेरा चेक कही बाउंस न हो जाय, पर ऐसा मेरे साथ कभी नहीं हुआ, क्योंकि चेक बाउंस पुराने जमाने में हुआ करती थी, जिसे नयी पीढ़ी फोलो नहीं करती और वे अपनी क्षमता के अनुसार इंटीरियर करवाते है. बजट तय करने के बाद समस्या नहीं होती. मैं अपने माता-पिता, भाई-भाभी, बहन के साथ रहती हूँ. माँ ने हमेशा मुझे अधिक सहयोग दिया है. समय मिलने पर मैं किताबे पढना और ट्रेवल करती हूँ.

किये स्पेशल काम

दर्शिनी आगे कहती है कि घर से अधिक मुझे अच्छा सौ साल पुरानी पटौदी पैलेस का इंटीरियर करना बहुत स्पेशल था, क्योंकि किसी भी इंटीरियर डिज़ाइनर को पैलेस के लिए काम करना बड़ी बात होती है. इसके लिए पटौदी फॅमिली की संस्कृति को ध्यान में रखते हुए वहां की वस्तुओं को सही तरह से सजाना था. आज अधिकतर पैलेस होटल बन चुके है, पर इस पैलेस में अभी भी घर है.

सही इंटीरियर है जरुरी

कोविड की वजह से अभी सबको घर में ही रहना पड़ता है और घर व्यक्ति की पसंद और व्यक्तित्व के अनुसार होने की जरुरत है. घर में महंगे फर्नीचर नहीं, कम्फ़र्टेबल सामान होनी चाहिए, जिसपर आप अपने हिसाब से उठ बैठ सकें. मैं सभी से कहना चाहती हूँ कि घर की इंटीरियर अपनी बजट और फ्लोर प्लानिंग के अनुसार करें. मुंबई जैसे शहर में लक्जरी के लिए बड़े घर नहीं होते, ऐसे में मल्टीफंक्शनल रूम बनाना पड़ता है, जो दिन में कुछ काम करने और रात में इसका उपयोग सोने के लिए किया जा सकें. घरों के इंटीरियर को आकर्षक बनाने के कुछ टिप्स निम्न है,

घर के कलर व्यक्ति सही चुन नहीं पातें है, क्योंकि उन्हें इसका ज्ञान नहीं होता. दर्शिनी कहती है कि पूरे घर की एक थीम के अनुसार रंगों का चयन करना चाहिए. हर दो तीन साल बाद घर के स्ट्रक्चर को बदलने के शौकीन लोग न्यूट्रल रंग रखें, ताकि जल्दी से उसे बदला जा सकें, सोफे, कुशन कवर, पर्दे आदि के पसंद न आने पर तुरंत बदल सकते है. रंग व्यक्ति की पसंद के अनुसार चुने, ट्रेंड या किसी दोस्त के घर के अनुसार कलर कभी न करें,

ये भी पढ़ें- खुद को दें क्वालिटी टाइम

घर को बड़ा दिखाने के लिए लाइट कलर का प्रयोग करें, मुंबई जैसे शहर में लाइट ऑफ व्हाईट, ब्लू, ग्रीन आदि नेचर से सम्बंधित रंगों का चयन करें, क्योंकि डार्क कलर से अधिक गर्मी का एहसास होता है,
शेड कार्ड को देखकर दिवार के रंग न चुने, उस रंग से दिवार के छोटे हिस्से पर पैच बनाएं और उसे दिन की रौशनी या रात में देखें,

दिल्ली में लोगों के घर बड़े होते है और उनका टेस्ट अलग होता है, वहां गर्मी में गर्मी और सर्दी में अधिक ठंडी होती है, ऐसे में रंग ऐसा होना चाहिए, जो दोनों मौसम में सही लगे,

अगर आपके घर में 4 दिवार है तो एक को डार्क करें और बाकी सभी रंग न्यूट्रल रखें, इससे गर्मी में तकलीफ नहीं होगी और सर्दी में थोड़ी गर्मी महसूस होगी,

ठण्ड में अच्छे वुलेन कारपेट और गर्मी में लाइट कलर की दरी बिछाने से भी गर्मी कम लगती है, इसके अलावा दरी को आप कभी भी धो सकते है,

सही इंटीरियर डिजाईन के लिए कागज पर बनाये गए प्लान को पहले घरों में फ्लोर पर मार्क करें, फिर काम शुरू करें.

लाइटिंग को दे महत्व

लाइट का सही प्रयोग बहुत आवश्यक है. इसमें पहले नेचुरल लाइट को देखना पड़ता है, जिसमें खिडकियों को खुला रखने की कोशिश करनी पड़ती है, जितना संभव हो, सामानों को नेचुरल लाइट के पास रखें, शाम को जनरल या मूड लाइटिंग कर सकते है और इसका प्रयोग पार्टी या किसी खास अवसर पर किया जा सकता है. इसके अलावा मेरा सभी से कहना है कि कोविड में मास्क अवश्य पहने, वैक्सीन लगायें और घर पर रहने की कोशिश करें. हम सभी ने अपनी गलती से एक साल गवांया है. कोविड पर लगाम लगाना बहुत जरुरी है. मेडिकल की समस्या जो सालों से देश में है, उस क्षेत्र में अधिक से अधिक काम करने की जरुरत है.

लॉक डाउन के बाद कैसे बनाये लाइफ फिट 

कोरोना वायरस का कहर पूरी दुनिया में लगातार बढ़ रहा है. इसका सही इलाज और वैक्सीन अभी तक नहीं निकल पाया है. लॉक डाउन ने इसे कुछ हद तक काबू अवश्य किया है, पर आकडे और मरने वालों की संख्या में कमी नहीं आ पा रही है. वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन भी इस बीमारी के बारें में अधिक जानकारी नहीं दे पा रहा है. ऐसे में सभी को इस बीमारी के साथ ही रहना और काम करना होगा, क्योंकि अधिक लॉक डाउन से अर्थव्यवस्था पूरी तरह से चरमरा रही है. लोग बीमारी से नहीं बल्कि भूख से मरने लगेंगे. ऐसे में लॉक डाउन के बाद सब शुरू करने के लिए सरकार और आम लोगों को कुछ ख़ास ध्यान इंफ्रास्ट्रक्चर पर देनी पड़ेगी, ताकि इस बीमारी से लोग कम संक्रमित हो और काम चलता रहे.

इस बारें में मुंबई की आशापुरा इंटीरियर्स के इंटीरियर डिज़ाइनर विजय पिथाडिया कहते है कि लॉक डाउन का असर आम जनजीवन पर बहुत अधिक पड़ रहा है, जिसका अंदाज लगाना संभव नहीं, ऐसे में आज हर व्यक्ति खुले घर और ऑफिस की मांग कर रहा है, जिसके लिए मुझे भी वैसी ही डिजाईन कम स्पेस में करने के बारें में सोचना पड़ रहा है. कोरोना वायरस बहुत जल्दी फैलता है, इसलिए व्यक्ति के काम करने और रहने की जगह पर हायजिन, साफ़ सफाई और सोशल डिस्टेंस को बनाये रखने पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है, ऐसे में कुछ आदतों का नियमित पालन करने से इस बीमारी से बचा जा सकता है. कुछ ख़ास बदलाव हमारे रहन सहन और ऑफिस कल्चर में होने की जरुरत होगी, ताकि लोग संक्रमित होने से बच सकें, जो निम्न है,

1. वर्क फ्रॉम होम इस समय काफी कारगर होगी, जो लोग घर से काम कर सकते है वे लॉकडाउन के बाद भी करेंगे और ये एक ट्रेंड भी बन चुका है, ऐसे में डिज़ाइनर्स को वैसे ही सेटअप बनाए की जरुरत होगी, ये सही भी है, क्योंकि इससे ऑफिस जैसे किसी भी प्रकार की सेटअप की जरुरत नहीं होगी.

2. ऑफिस में हवा, पानी और वेंटिलेशन की व्यवस्था होने से बीमारी कम होगी, जो इम्युनिटी को बढ़ाने में सहायक होगी.

3. जो लोग घर से काम कर रहे है उनके लिए वर्क प्लेस वाला कमरा अलग, कम्फ़र्टेबल, सही फर्नीचर और शांत वातावरण वाला होना चाहिए.

ये  भी पढ़ें- घर से कैसे काम करें,जब घर पर हैं आपके बच्चे

4. कमरे के बाहर अगर बालकनी हो, तो उसमें थोड़ी बागवानी करन आवश्यक होगा, ताकि फ्रेश और सुकून वातावरण मिले, साथ ही थोड़े हर्ब प्लांट लगायें, जो कम स्पेस में अच्छी तरह से उग सकें.

5. स्पेस प्लानिंग अब अधिक करनी पड़ेगी, फ्लैट की बनावट भी उसी तरह से करनी पड़ेगी, ताकि हर ग्रुप एक दूसरे से अलग रहे.

6. मुंबई जैसे शहर में हर परिवार के लिए एक छोटा कमरा लेना अब जरुरी हो चुका है, क्योंकि यहाँ अधिकतर लोग झोपड़ पट्टी में रहते है, जहां टॉयलेट की व्यवस्था भी अच्छी नहीं होती, जिसकी वजह से कोरोना का संक्रमण तेजी से फैला है और सोशल डिस्टेंस को बनाये रखना भी मुश्किल हो रहा है,

7. इसके अलावा ऑफिस की प्लानिंग में हायजिन के साथ-साथ सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन करना आवश्यक होगा, जिसमें 6 फीट कांसेप्ट यानी काम करने वाले व्यक्ति एक दूसरे से 6 फीट की दूरी पर बैठना जरुरी होगा, ऐसे में 500 स्क्वायर फीट के ऑफिस में 5 से 6 कर्मचारी का बैठना सही हो पायेगा,

8. सारे कोरोना वायरस से जुड़े सारे नियमों की सूचीं ऑफिस में लगाई जानी चाहिए, जिसे कर्मचारी ऑफिस पहुँचने के बाद पालन करें, मास्क, ग्लव्स, सेनिटाइजेशन जैसे सारे निर्देशों का सख्ती से पालन करना जरुरी होगा,

9. फेस टू फेस मीटिंग्स अभी कोई करना नहीं चाहेगा, ऐसे में रिमोट मीटिंग्स की व्यवस्था अभी अधिक होगी और उसकी व्यवस्था हर ऑफिस में होने की जरुरत होगी.

interior

कोरोना वायरस के लगातर बढ़ते केस की वजह से लोग चिंतित और डरे हुए है, लेकिन सावधानी बरतने से इस बीमारी से बचा जा सकता है. बी इंटीरियर्स की इंटीरियर डिज़ाइनर बद्रिशा शाह कहती है कि हमारे देश में परंपरा और संस्कृति को लोग पसंद करते है और उसी के अनुसार घरों और ऑफिस को सजाना चाहते है, जो कुछ बदलाव के साथ किया जाना संभव है, 5 टिप्स निम्न है, जिसे अपनाकर व्यक्ति इस संक्रमण से बच सकता है,

1. घरों में मल्टीप्ल फंक्शनल फर्नीचर का प्रयोग करन पड़ेगा, जिसके द्वारा बेडरूम को वर्क प्लेस में बदलना संभव हो सकेगा, इससे लोकल ट्रांसपोर्ट को अवॉयड किया जा सकेगा,

2. माल्स और शौपिंग काम्प्लेक्स में टेक्नोलॉजीका प्रयोग अधिक करना पड़ेगा, जिसमें बॉडी स्कैनर, थर्मल कैमरे को लगाना, सेनिटाइजेशन का इंस्टालेशन किया जाना आदि करना पड़ेगा, लिफ्ट में 4 यात्री होने के साथ-साथ वौइस् ऑपरेटेड सिस्टम की जरुरत पड़ेगी,

3. ट्रेवलिंग के दौरान सेफ्टी को पालन करने के लिए सेफ्टी सूट पहनना, बसेस और ट्रेन्स को फिर से डिजाईन करने की जरुरत है, जिसमें सोशल डिस्टेंस पर पूरा धयान रखते हुए सीमित संख्या में यात्री होने की आवश्यकता होगी.

ये  भी पढ़ें- बहुत काम के हैं ये 7 किचन टिप्स

4. ये सही है कि मुंबई जैसे घनी आबादी वाले शहरों के लिए सोशल डिस्टेंस का पालन करना मुश्किल है, ऐसे में लोगों की मूवमेंट कम करने के लिए सोशल नेटवर्क और वर्चुअल कम्युनिकेशन सिस्टम को सरकार के सहयोग से विकसित करना पड़ेगा और सबको मुफ्त में मुहैया करवानी पड़ेगी, ताकि काम करना आसान हो, साथ ही इकॉनमी भी जल्दी-जल्दी पटरी पर आने में समर्थ हो.

5. इसके अलावा सेनेटाइजिंग और वेस्ट मैनेजजमेंट का निर्धारण सावधानी पूर्वक करना होगा, ताकि बीमारी कम हो, लोगों की रोगप्रतिरोधक क्षमता बनी रहे और पर्यावरण प्रदूषण से भी बचा जा सके, ये जिम्मेदारी हर नागरिक की होगी.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें