तकदीर में लिखा था ‘व्हाय चीट इंडिया’ मेरी पहली फिल्म होगी : श्रेया धनवंतरी

बहुमुखी प्रतिभा की धनी श्रेया धनवंतरी बीटेक की डिग्रीधरी इंजीनियर होने के साथ साथ कवि, लेखक, निर्देशक व अभिनेत्री हैं. उनका प्रारंभिक जीवन भारत से बाहर ही बीता. पर उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए वह दिल्ली यानी कि भारत आ गयी थीं. 2010 में जब वह बीटेक की पढ़ाई कर रही थीं, तभी उन्हें तेलगू भाषा की फिल्म ‘‘स्नेह गीतम’’ में अभिनय करने का अवसर मिला था. पर अब वह 18 जनवरी को प्रदर्शित हो रही फिल्म ‘‘व्हाय चीट इंडिया’’ को लेकर चर्चा में हैं, जिसमें उनके हीरो इमरान हाशमी हैं. मजेदार बात यह है कि श्रेया धनवंतरी अपने करियर की पहली फिल्म ‘‘व्हाय चीट इंडिया’’को ही बताती हैं.

2010 में आपने पहली बार तेलगू भाषा की फिल्म ‘‘स्नेह गीतम’’ की थी. अब पूरे आठ वर्ष बाद आपने फिल्म ‘‘व्हाय चीट इंडिया’’ की है? इतना लंबा अंतराल क्यों?

सच यह है कि ‘‘व्हाय चीट इंडिया’’ मेरे अभिनय करियर की पहली फीचर फिल्म है. जब मैं बीटेक की पढ़ाई कर रही थी, उसी वक्त मुझे तेलगू फिल्म ‘‘स्नेह गीतम’’ में तो छोटा सा किरदार निभाने का अवसर मिला था. मुझे अचानक किसी फिल्म से जुड़ने का मौका मिला, तो मैंने कर लिया था. पर उस फिल्म को लेकर कहने जैसा मेरे लिए कुछ नहीं है. उसके बाद मैं भूल ही गयी थी. उस वक्त मैं दिल्ली में रहती थी. दिल्ली में फिल्मों में अभिनय करने के अवसर नहीं हैं. यदि वास्तव में आपको फिल्मों में अभिनय करना है, तो मुंबई आना ही पड़ेगा. तो मैंने अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद मुंबई आने का निर्णय लिया. मुंबई में मेरी शुरुआत एड फिल्मों से हुई. मेरी कई एड फिल्में सुपर हिट हुईं. उसके बाद ‘यशराज फिल्मस’ ने मुझे वेबसीरीज ‘‘लेडीज रूम’’ करने का मौका दिया. उसके बाद मैंने दूसरी वेबसीरीज ‘‘द रीयुनियन’ और फिर ‘‘द फैमिली मैन’’ की. अब फिल्म ‘‘व्हाय चीट इंडिया’’ में अभिनय किया है, जो कि 18 जनवरी को सिनेमा घरो में आएगी. मुंबई आने के बाद से मैंने लगातार फिल्मों के लिए औडीशन दिया. पर अब सफलता मिली है. इससे मैं बहुत खुश हूं.

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मेरा सवाल यह है कि तेलगू फिल्म ‘‘स्नेह गीतम’’ में अभिनय करने के बाद आपने अभिनय को करियर बनाने के लिए क्या प्रयास किए? यदि नहीं किए तो उसकी वजह?

देखिए, जैसा कि मैंने पहले ही कहा कि उस वक्त मैं दिल्ली में रह रही थी, जहां फिल्मों से जुड़ने के मौके नहीं थे. मुझे भी ज्यादा जानकारी नहीं थी. तो मैं वहां पर फैशन शो और रैम्प शो कर रही थी. फिर एक दिन मैं मुंबई चली आयी. अब मेरा कद देख रहे हैं, तो मेरे कद के अनुसार मुझे दिल्ली में फैशन शो और रैम्प शो के औफर बहुत मिल रहे थे. मैं कई फैशन वीक का हिस्सा भी रही. मैंने कई पत्रिकाओं के लिए मौडलिंग की. मैं कई प्रोडक्ट के लिए होर्डिग्स का चेहरा बनी. पर मेरी इच्छा थी कि मैं फिल्मों में काम करूं, इसलिए मुंबई आ गयी.

क्या आपने मुंबई आने से पहले अभिनय की कुछ ट्रेनिंग ली?

अभिनय की मेरी ट्रेनिंग तो चार साल की उम्र में ही शुरू हो गयी थी. मेरी पढ़ाई ‘ब्रिटिश एजूकेशन सिस्टम’में हुई है. इनका मानना है कि बच्चे को औल राउंडर होना चाहिए, सिर्फ किताबी ज्ञान नही होना चाहिए. वहां बच्चे को सिर्फ पढ़ाई पर ध्यान देने के लिए नहीं कहा जाता. तो मेरी बहन ने स्पोर्ट्स में फोकस किया. मैंने कला के क्षेत्र में. मैंने साइंस और मैथ्स के साथ साथ डांस, ड्रामा व संगीत पढ़ा. बाकायदा उसकी शिक्षा ली है. स्कूल में यह सारे मेरे विषय थे. मैं स्पष्ट कर दूं कि भारतीय स्कूलों में जिस तरह से एक्स्ट्रा सर्कुलर एक्टीविटीज होती हैं, वह नहीं था. बल्कि हमारे सिलेबस में डांस संगीत नाटक यह विषय थे. मैंने स्कूल के दिनों में नाटक करते हुए पेड़ पक्षियों से लेकर लड़कों तक के किरदार निभाए हैं. मैं हाथी भी बनी. शेर भी बनी. शेक्सपियर नाटक में मैंने ज्यूलिएट का किरदार निभाया. मैंने मैकबेथ भी किया है. कम से कम बीस नाटक के तो वीडियो होंगें.

अभिनय को करियर बनाने की बात आपके दिमाग में सबसे पहले कब आयी?

हां!! सच यह है कि तेलगू फिल्म ‘‘स्नेह गीतम’’ में अभिनय करते हुए मेरे दिमाग में अभिनय को करियर बनाने की बात आयी थी. इस फिल्म में अभिनय करने से पहले मैंने अभिनय के बारे में बिलकुल नही सोचा था. अचानक एक दिन मुझे तेलगू फिल्म करने का आफर मिला, तो मैंने बिना कुछ सोचे समझे हामी भर दी. जब सेट पर डायरेक्टर ने एक्शन बोला, तो मेरे लिए यह एक नयी अनुभूति थी. उससे पहले मैंने थिएटर किया था. पर कैमरे के सामने कभी अभिनय नहीं किया था. मैं आपको बता दूं कि जिस वक्त मैंने तेलगू फिल्म ‘‘स्नेह गीतम’’ में अभिनय किया, उस वक्त मैं इंजीनियरिंग के सेकेंड ईअर की पढ़ाई कर रही थी. इस फिल्म के लिए शूटिंग करना मेरे लिए सपना रहा. मेरे अंर्तमन ने कहा कि मुझे यही करना चाहिए. इंजीनियरींग की पढ़ाई में बेकार में फंस गयी. पहली बार मुझे तेलगू फिल्म की शूटिंग के वक्त अहसास हुआ कि जितनी खुशी मुझे यहां मिल रही है, उतनी इससे पहले कभी कहीं नही मिली.

मैं वही तो पूछ रहा हूं कि तेलगू फिल्म में अभिनय करते समय जब आपको लगा कि आपको अभिनय करना चाहिए, तो आपने फिल्मों में अभिनय क्यों नहीं किया? आठ साल बाद आपने ‘‘व्हाय चीट इंडिया’’ की है?

पहली बात मैं तेलगू फिल्म कभी देखती नही थी. तो मुझे तेलगू फिल्मों के बारे में जानकारी भी नहीं थी. इसके अलावा मैं दिल्ली में रह रही थी. मेरे पिता एवीएशन में थे. मां घरेलू महिला हैं. अपने पिता के ही कारण मैं सात देश घूम चुकी हूं. मेरे बचपन में मेरे पिता आबू धाबी, शारजाह, बहरीन में थे. तो मैं वहां जा चुकी थी. उन दिनों मेरी बहन ने टेबल टेनिस में मिडल इस्ट को रिप्रजेंट किया था. अभी तीन दिन पहले वह मास्टर की डिग्री की पढ़ाई करने के लिए सिंगापुर गयी है.

तेलगू फिल्म की शूटिंग करने के बाद अभिनय को करियर बनाने की बात मेरे दिमाग में आयी थी, मगर मैं पढ़ाई बीच में नहीं छोड़ सकती थी. मेरा स्वभाव रहा है कि जिस काम को शुरू करती हूं, उसे पूरा करती हूं, उसे अधूरा नहीं छोड़ती. मैंने अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की, वह भी मेरिट में.

अभिनय को करियर बनाने के आपके निर्णय पर आपके माता पिता की क्या प्रतिक्रिया हुई थी?

जब मैंने उनसे कहा कि मैं अभिनय के क्षेत्र में करियर बनाना चाहती हूं, तो मेरे पापा ने बहुत शोक व्यक्त किया. उन्होंने कहा कि, ‘तुमने इतनी मेहनत से इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की है. अब सब कुछ छोड़कर ऐसी दुनिया में जाना चाहती हो, जिसके बारे में हमें कुछ पता ही नही है. फिल्मी दुनिया के बारे में तो बहुत अनाप शनाप लिखा जाता है. फिल्म इंडस्ट्री में बहुत उतार चढ़ाव होते है. हमेशा अनिश्चय का माहौल बना रहता है. पैसे भी अच्छे नहीं मिलते हैं.’ यानी कि उनके तमाम तरह के सवाल थे. उनके मन में कई तरह की शंकाएं थीं. पर जब उन्होंने मेरी पहली एड फिल्म देखी, तो उन्हें एहसास हुआ कि उनकी बेटी कुछ कर सकती है. क्योंकि एड फिल्म में मैं दूसरे मौडलों की तरह सिर्फ खड़ी नहीं थी, मैंने किरदार निभाया था.

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मुंबई आने के बाद जब आपने यशराज फिल्मसकी वेबसीरीज की. तो फिल्मों के औफर नहीं मिले?

यदि उस वक्त मुझे फिल्म करने का मौका मिल जाता, तो इतना समय क्यों लगता? पर आफर ही नहीं मिले. जबकि मैं लगातार औडीशन दे रही थी. मैंने औडीशन देते समय कभी यह नही सोचा कि यह एड फिल्म है या वेबसीरीज है या फीचर फिल्म है. मैं अपने काम को पूरी ईमानदारी के साथ कर रही थी. पर शायद उस वक्त तकदीर में फिल्म मिलना नही लिखा था. मेरी तकदीर में लिखा था कि ‘व्हाय चीट इंडिया’ मेरी पहली फिल्म होगी.

व्हाय चीट इंडियाका औफर जब मिला, तो इस फिल्म को करने के लिए किस बात ने इंस्पायर किया?

ईमानदारी की बात यह है कि जैसे ही मुझे इस फिल्म का औफर मिला, मैं खुशी से झूम उठी. मैं इस कल्पना से ही खुश हो गयी थी कि ‘व्हाय चीट इंडिया’के परदे पर आने के साथ परदे पर मेरा भी नाम आएगा. लोग श्रेया धनवंतरी को एक हीरोइन के तौर पर देखेंगे. इसके अलावा यह महज संयोग है कि यह फिल्म एजुकेशन सिस्टम के बारे में हैं और फिल्म का एक हिस्सा इंजीनियरिंग के बारे में है. मैं निजी जिंदगी में इंजीनियर हूं. तो मुझे लगा यह तो बहुत अनूठी बात हो गयी. मुझे लगा इससे परफेक्ट क्या मिलेगा.

फिल्म के अपने किरदार को लेकर क्या कहेंगी?

फिल्म ‘‘व्हाय चीट इंडिया’’ में मैंने लखनउ में रहने वाली निम्न मध्यम वर्गीय परिवार की लड़की नुपूर का किरदार निभाया है. नुपुर साधारण सी लड़की है. वह आर्ट्स कौलेज में पढ़ती है. इससे अधिक बताना मेरे लिए फिलहाल बताना संभव नही है. फिल्म में मेरी मुलाकातें इमरान हाशमी से होती है और एक रिश्ता बनता है, यह रिश्ता उसके चीटिंग के बिजनेस से परे है.

आप ब्रिटिश एजुकेशन सिस्टम से जो पढ़ाई कर रही थीं, उसमें और जो कुछ फिल्म में दिखाया गया उसमें कितना फर्क है?

ब्रिटिश एजुकेशन सिस्टम में भी कमियां है. पर भारतीय एजुकेशन सिस्टम में उससे कही अधिक कमी है. लेकिन हमारी फिल्म ‘व्हाय चीट इंडिया’उससे अलग बात कर रही है. फिल्म एजुकेशन सिस्टम में व्याप्त भ्रष्टाचार पर है. इस फिल्म में जितनी घटनाएं हैं, जो कुछ दिखाया गया है, सब कुछ सच है. हम सब ने कई बार अखबारों में पढ़ा है कि मेडिकल हो या इंजीनियरिंग की परीक्षा हो, नाम किसी का था और परीक्षा देने कोई दूसरा इंसान गया था. तो इस तरह के स्कैम/ घोटाले हमारे देश में बहुत हुए हैं और आए दिन होते रहते हैं. यहां फर्जी युनिवर्सिटी खुल जाती है, जो कि लाखों विद्याथियों को लूट कर गायब हो जाती हैं. फर्जी डिग्रियां बिकती हैं. इसकी मूल वजह यह है कि हमारी भारत सरकार एज्यूकेशन के लिए सबसे कम बजट देती है. एजुकेशन के लिए कम से कम 6 प्रतिशत बजट रखा जाना चाहिए, जबकि इस वर्ष 3.4 का ही बजट है. यह बजट हर वर्ष घटता जा रहा है.

शिक्षा, जिससे देश का हर नागरिक तैयार होता है, उसी का बजट कम किया जा रहा है. देखिए, मेरी तो पढ़ाई पूरी हो गयी. अब मेरा तो कुछ होना नही, पर वर्तमान समय के बच्चों के भविष्य के साथ तो खिलवाड़ नहीं होना चाहिए. मगर हमारी सरकार कल के भविष्य पर ध्यान ही नही देती. आज के जो बच्चे हैं, यही कल हमारे देश की रीढ़ की हड्डी बनेंगे, पर उसे समुचित विकास व शिक्षा मोहैया नहीं करायी, तो क्या होगा? देश कहां जाएगा? इस पर हमारी सरकार गंभीर नही है. इस विषय पर अब तक कोई फिल्म नही बनी है. तो मैं अपने आपको इस बात के लिए गर्वांवित महसूस कर रही हूं कि मैं एक ऐसे विषय वाली फिल्म का हिस्सा बनी हूं, जो कि हमारे देश के लिए बहुत जरूरी है.

जैसा कि आपने कहा कि फिल्म ‘‘व्हाय चीट इंडिया’’ में शिक्षा विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार और चीटिंग का मुद्दा उठाया गया है. तो चीटिंग व भ्रष्टाचार की वजह से देश में जो डाक्टर व इंजीनियर बन रहे हैं, उनसे देश को किस तरह के खतरे हैं?

डाक्टर हो या इंजीनियर यह दोनों ऐसे लोग होते हैं, जहां महज फर्जी डिग्री लेकर आप जिंदगी या अपने करियर को आगे नहीं बढ़ा सकते हैं. आपके अंदर स्किल/हूनर का होना बहुत जरुरी है. डाक्टर की जरा सी गलती से इंसान की जान जा सकती है. वहीं इंजीनियर के बलबूते पर ही बड़े बड़े पुल व इमारतें बनती है. इंजीनियर क्रिएट करते हैं. यदि आप फर्जी डिग्री लेकर इंजीनियर बन जाएंगे, तो आप कैसे मजबूत पुल बनाकर देश को दे सकते हैं? यानीकि यदि आपने नाम के लिए चिटिंग करके डिग्री ले लिया, तो भविष्य में आप कुछ कर नही पाएंगे. पर हमारा समाज और माता पिता बच्चों पर इतना दबाव डालते हैं कि बच्चा रट्टा मारकर या किसी भी तरह से परीक्षा में अच्छे नंबर लाना चाहता है, तो मेरी राय में शिक्षा ऐसी होनी चाहिए, जिसमें बच्चे के अंदर पढ़ने की रूचि पैदा हो.

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आपको भारतीय एजुकेशन सिस्टम में किस तरह के बदलाव की जरूरत महसूस होती है?

बहुत कुछ बदलने की जरूरत है. हमें पढ़ाया जाता है कि इस राजा ने इतनी लड़ाई जीती, इस राजा ने यह बनवाया. पानी का फार्मुला ‘एच  टू ओ’ है. पर इस तरह की तथ्यपरक जानकारी का फायदा क्या है? इस ज्ञान से फायदा क्या? यदि हमें कोई प्रैक्टिकल नौलेज नही है. तो हर बच्चे को व्यावहारिक ज्ञान दिया जाना बहुत जरुरी है. हर इंसान पैसा कमाना चाहता है. पर लोगों को फाइनेंस का प्रैक्टिकल नौलेज नही है. हमारे देश का एजुकेशन सिस्टम बच्चों को यह नहीं सिखाता कि घर का इलेक्ट्रिक फ्यूज उड़ जाए, तो आप कैसे ठीक कर सकते हैं? हमारा एजुकेशन सिस्टम यह नही सिखाता कि शेयर बाजार में किस तरह से इंवेस्ट करें कि फायदा हो. म्यूच्युअल फंड, एसआईपी इन सारी चीजों की जानकारी बिलकुल नहीं दी जाती.

शिक्षा जगत मे चीटिंग माफिया से कैसे निपटा जा सकता है?

जब तक हर इंसान खुद जागरूक होकर इसका विरोध नही करेगा, तब तक कुछ नहीं होगा. सरकार चाहे जितने कड़क कानून व नियम बना दे, उससे कुछ नहीं होगा. बच्चे तो नकल करने के लिए कोई न कोई रास्ता ढूंढ़ ही लेते हैं. इसकी एक वजह यह है कि तमाम बच्चे आलसी हैं. वह पढ़ना नहीं चाहते. बच्चे साल भर पढ़ाई करते नही हैं. अंतिम समय में उन्हें अपने नंबर बढ़वाने होते हैं, तो वह नकल करते हैं. जिनके पास अनाप शनाप पैसा होता है, वह चीटिंग माफिया की मदद लेते हैं. यदि सब कुछ प्रेक्टिकल हो जाए, सिर्फ साल में एक बार एग्जाम देकर पास होने वाला सिस्टम ना हो तो बदलाव लाया जा सकता है. यहां लोग यह मान कर चलते हैं कि परीक्षा में आपके नंबर बहुत अच्छे हैं तो आप बहुत बड़े ज्ञानी हैं. यही सोच गलत है. यह सिस्टम खत्म होना चाहिए. मैं बहुत से ऐसे बच्चों को जानती हूं जिनके पास ज्ञान बहुत होता है, पर परीक्षा में गलती कर जाते हैं या आलस्य के चलते लिखते नही हैं. यदि सालना परीक्षा वाला सिस्टम खत्म हो जाएं, तो चीटिंग खत्म हो जाएगी.

आपके शौक क्या हैं?

फुटबौल खेलना, संगीत सुनना, फिल्में देखना, लिखना व पढ़ना. मैंने एक उपन्यास ‘‘फेड टू व्हाइट’’लिखा है. जिसे अमेजन ने प्रकाशित किया है.

आपको उपन्यास लिखने की प्रेरणा कहां से मिली?

यूं तो कई घटनाओं ने मुझे इस उपन्यास को लिखने के लिए प्रेरित किया. मगर जब मेरी मामी की मौत हुई, तो यह मेरे लिए बहुत बियर्ड स्थिति थी, उससे उभरने के लिए मैंने उपन्यास लिखना शुरू किया था. इस उपन्यास में हर किरदार के अपने अलग अलग विचार, सोच के साथ उनकी यात्राएं हैं.

अब आप फिल्म स्क्रिप्ट भी लिखना चाहेंगी?

मैंने फिल्म स्क्रिप्ट लिख रखी है. एक दो निर्माताओं को पसंद भी आयी है. पर सभी का मानना है कि यह बहुत खर्चीले बजट वाली होगी. एक निर्माता ने सलाह दी कि मैं इसमें कुछ ऐसे बदलाव करूं, जिससे यह कम बजट में बन सके.

भविष्य में अभिनय, निर्देशन व लेखन में किसे प्राथमिकता देना चाहेंगी?

फिलहाल सारा ध्यान अभिनय पर है.

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