जानें क्या है न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर, जिससे लड़े थे इरफान खान

साल 2018 में न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर बीमारी से एक्टर इरफान खान इस बीमारी से पीड़ित हुए थे, जिसके साल भर बाद लंदन में पूरी तरह इलाज करवाने के बाद इरफान ठीक हो गए थे, लेकिन आज यानी 29 अप्रैल को उनका पेट में इंफेक्शन के चलते निधन हो गया. The Lunchbox और Piku जैसी फिल्मों से फैंस का दिल जीत चुके एक्टर इरफान खान की न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर बीमारी के बारे में आज हम आपको पूरी जानकारी देंगे. साथ ही इसका इलाज किस तरीके से होता है इसके बारे में बताएंगे….

न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर उस अवस्था को कहते हैं, जिस में शरीर में हार्मोंन पैदा करने वाले ‘न्यूरोएंडोक्राइन सेल्स’ सामान्य से बहुत ज्यादा हार्मोन बनाने लगते हैं. एक तरह से यह शरीर में हार्मोंस बनने की अधिकता की बीमारी है. इसलिए इस ट्यूमर को कारसिनौयड्स भी कहते हैं.

हालांकि जिन कुछ खास लोगों में यह बीमारी सामने आई है, उन में से ज्यादातर के पेनक्रियाज में ये ट्यूमर पाए गए हैं.

लेकिन पेनक्रियाज शरीर की अकेली जगह नहीं है, जहां यह ट्यूमर हो सकता है. यह ट्यूमर शरीर के कई हिस्सों में हो सकता है, जैसे कि लंग्स, गेस्ट्रोइंटेस्टाइनल टै्रक्स, थायरौयड या एड्रिनल ग्लैंड.

असल में यह शरीर में अपनी मौजूदगी के विशेष स्थान के आधार पर ही अपना आकार, प्रकार तय करता है. इस का इलाज संभव है, बशर्ते समय रहते या इस ट्यूमर के एडवांस स्टेज में पहुंचने के पहले इस का पता चल जाए.

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बहरहाल ये ट्यूमर एक नहीं 3 प्रकार के होते हैं.

  1. गेस्ट्रोइंटेस्टाइनल न्यूरोजएंडोक्राइन टयूमर- यह गेस्ट्रोइंटेस्टाइनल टै्रक्ट के किसी भी हिस्से में हो सकता है, जिस में बड़ी आंत और एपेंडिक्स शामिल हैं.
  2. लंग न्यूरोजएंडोक्राइन ट्यूमर- यह फेफड़ों में होने वाला ट्यूमर है, जिस में खांसी के दौरान ब्लड आना और सांस लेने में दिक्कत होती है.
  3. पेंक्रियाटिक न्यूरोजएंडोक्राइन ट्यूमर – यह पेनक्रियाज में होने वाला ट्यूमर है. हार्मोन से जुड़ाव के कारण न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर ब्लड शुगर को काफी प्रभावित करता है.

सवाल है, आखिर यह ट्यूमर होता क्यों है? इस की कई वजह हैं, मसलन इस की एक सब से बड़ी वजह मातापिता में इस बीमारी के होने को माना जाता है. माता या पिता में से किसी एक को भी अगर यह बीमारी है तो बच्चों में भी इस के होने की आशंका बढ़ जाती है.

इस के होने का दूसरा बड़ा कारण स्मोकिंग और ढलती उम्र के साथ शरीर का कमजोर प्रतिरक्षातंत्र भी होता है. असल में जब हमारे अंदर किसी भी किस्म की बीमारी से लड़ने की स्वाभाविक ताकत नहीं रहती तो कोई भी बीमारी परेशान कर सकती है.

इस के अलावा अल्ट्रावायोलेट किरणें भी न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर होने के खतरे को बढ़ाती हैं. लेकिन इतना खतरनाक होने के बावजूद भी यह कई दूसरी बीमारियों की तरह बहुत चुपचाप वार करने वाली बीमारी है या कहें साइलैंट किरण है.

इस बीमारी की पहचान

आखिर हम कैसे जानें कि वे कौन सी चीजें हैं, जिन की शरीर में मौजूदगी से पता चल सके कि हम न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर का शिकार हो चुके हैं. इस की मौजूदगी के सामान्य लक्षण इस तरह है-ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है, थकान या कमजोरी लगातार महसूस होती है. पेट में अकसर दर्द बना रहता है और वजन गिरने लगता है.

कई बार इस के चलते टखनों में सूजन भी आ जाती है और त्वचा में बहुत चमकीले धब्बे निकलने लगते हैं. जब यह बीमारी काफी ऊंची स्टेज में पहुंच गई हो और लोग इस का पता न लगा पा रहे हों तो भी इस का पता लगाया जा सकता है. मसलन अगर शरीर से सामान्य से ज्यादा पसीना आ रहा है और रह रह कर बेहोशी छा रही है. बहुत डलनेस महसूस हो रही है तो फिर इसे होने से कोई नहीं रोक सकता.

इस बीमारी में खासतौर पर शरीर में ग्लूकोज का लेबल तेजी से बढ़ने या गिरने लगता है. जिन लोगों को इस के बारे में ज्यादा कुछ मालूम न हो और इसे जानना चाहते हों तो इसे कुछ इस प्रकार समझना चाहिए.

— सीबीसी, बायोकैमेस्ट्री टेस्ट, सीटी स्केन, एमआरआई और बायोप्सी कर के इस बीमारी की पुष्टि की जाती है.

— इस के अलावा बेरियम टेस्ट, पैट स्केन, एंडोस्कोपी व बोन स्कैन भी इस का पता लगाने में सहायता करते हैं.

— आखिर ट्यूमर किस स्टेज में है यह भी कुछ जांचों से पता चल जाता है.

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जहां तक इस के इलाज का सवाल है तो इस का इलाज इस बात पर निर्भर करता है कि वह शरीर के किस हिस्से में है. साथ ही वह किस स्टेज में है.

इलाज के जो कई तरीके हैं, उन में से एक तरीका सर्जरी की मदद से इस ट्यूमर को हटाया जाना भी है. कुछ मामलों में रिजल्ट के आधार पर दोबारा सर्जरी भी की जाती है, ड्रग थैरेपी भी देते हैं. इस में कीमोथैरेपी, टारगेटेड थैरेपी और दवाएं ली जाती हैं.

साथ ही रेडिएशन और लिवर डायरेक्टटेड थैरेपी भी दी जाती है. इस बीमारी को शायद आज पूरी दुनिया इतनी गहराई से नहीं जान पाती, यदि यह खास बीमारी स्टीव जौब्स को न हुई होती. इस बीमारी से पीडि़त स्टीव जौब्स वास्तव में अमेरिकी मल्टीनेशनल कंपनी एप्पल के पूर्व फाउंडर थे, जो अब इस दुनिया में नहीं रहे. स्टीव जौब्स की मौत का कारण पेनक्रियाटिक न्यूरोजएंडोक्राइन ट्यूमर था, जिस का खुलासा उन्होंने 2009 में एक ओपन लैटर में दिया था.

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बौलीवुड से लेकर हौलीवुड तक अपनी एक्टिंग से सभी का दिल जीतने वाले एक्टर इरफान खान (Irrfan Khan) का 54 साल की उम्र में निधन हो गया. पेट में इंफेक्शन की परेशानी से जूझ रहे इरफान खान (Irrfan Khan) की आज यानी बुधवार 29 अप्रैल को निधन हो गया है.

‘न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर’ नामक दुर्लभ बीमारी से पीड़ित रह चुके इरफान खान का मानना था कि ‘अनिश्चितता में ही निश्चितता है’. लंदन में इलाज के दौरान इरफान ने अपने चाहनेवालों के लिए एक खत लिखा था. आप भी पढ़िए इस खत की कुछ खास बातें.

लंदन से एक खत

एक वक्त गुजर चुका है जब पता चला था कि मैं हाई-ग्रेड न्यूरोएंडोक्राइन कैंसर से जूझ रहा हूं. यह मेरे शब्दकोश में एक नया नाम है, जिसके बारे में मुझे बताया गया कि यह एक असाधारण बीमारी है, जिसके कम मामले सामने आते हैं और जिसके बारे में अपेक्षाकृत कम जानकारी है और इसलिए इसके ट्रीटमेंट में अनिश्चितता की संभावना ज्यादा थी. मैं अब एक प्रयोग का हिस्सा बन चुका था.

मैं एक अलग गेम में फंस चुका था. तब मैं एक तेज ट्रेन राइड का लुत्फ उठा रहा था, जहां मेरे सपने थे, प्लान थे, महत्वकांक्षाएं थीं, उद्देश्य था और इन सबमें मैं पूरी तरह से अस्त-व्यस्त था. …और अचानक किसी ने मेरे कंधे को थपथपाया और मैंने मुड़कर देखा. वह टीसी था, जिसने कहा, ‘आपकी मंजिल आ गई है, कृपया उतर जाइए.’ मैं हक्का-बक्का सा था और सोच रहा था, ‘नहीं नहीं, मेरी मंजिल अभी नहीं आई है. उसने कहा, नहीं, यही है. जिंदगी कभी-कभी ऐसी ही होती है.’

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इस आकस्मिकता ने मुझे एहसास कराया कि कैसे आप समंदर के तेज तरंगों में तैरते हुए एक छोटे से कॉर्क की तरह हो! और आप इसे कंट्रोल करने के लिए बेचैन होते हैं.

इस उथल-पुथल, हैरानी, भय और घबराहट में अपने बेटे से कह रहा था, ‘केवल एक ही चीज जो मुझे अपने आप से चाहिए वह यह है कि मुझे इस मौजूदा परिस्थिति का सामना नहीं करना. मुझे मजबूत बने रहकर अपने पैरों पर खड़े रहने की जरूरत है, डर और घबराहट मुझ पर हावी नहीं होने चाहिए वरना मेरी लाइफ तकलीफदेह हो जाएगी.’

और तभी मुझे बहुत तेज दर्द हुआ, ऐसा लगा मानो अब तक तो मैं सिर्फ दर्द को जानने की कोशिश कर रहा था और अब मुझे उसकी असली फितरत और तीव्रता का पता चला. उस वक्त कुछ काम नहीं कर रहा था, न किसी तरह की सांत्वना, कोई प्रेरणा…कुछ भी नहीं. पूरी कायनात उस वक्त आपको एक सी नजर आती है- सिर्फ दर्द और दर्द का एहसास जो ईश्वर से भी ज्यादा बड़ा लगने लगता है.

जैसे ही मैं हॉस्पिल के अंदर जा रहा था मैं खत्म हो रहा था, कमजोर पड़ रहा था, उदासीन हो चुका था और मुझे इस चीज तक का एहसास नहीं था कि मेरा हॉस्पिटल लॉर्ड्स स्टेडियम के ठीक ऑपोजिट था. मक्का मेरे बचपन का ख्वाब था. इस दर्द के बीच मैंने विवियन रिचर्डस का पोस्टर देखा. कुछ भी महसूस नहीं हुआ, क्योंकि अब इस दुनिया से मैं साफ अलग था.

हॉस्पिटल में मेरे ठीक ऊपर कोमा वाला वॉर्ड था. एक बार हॉस्पिटल रूम की बालकनी में खड़ा इस अजीब सी स्थिति ने मुझे झकझोर दिया. जिंदगी और मौत के खेल के बीच बस एक सड़क है, जिसके एक तरफ हॉस्पिटल है और दूसरी तरफ स्टेडियम. न तो हॉस्पिटल किसी निश्चित नतीजे का दावा कर सकता है और ना स्टेडियम. इससे मुझे बहुत कष्ट होता है.

मेरे पास केवल बहुत सारी भगवान की शक्ति और समझ है. मेरे हॉस्पिटल की लोकेशन भी मुझे प्रभावित करती है. दुनिया में केवल एक चीज निश्चित है और वह है अनिश्चितता. मैं केवल इतना कर सकता हूं कि अपनी पूरी ताकत को महसूस करूं और अपनी लड़ाई पूरी ताकत से लड़ूं.

इस वास्तविकता को जानने के बाद मैंने नतीजे की चिंता किए बगैर भरोसा करते हुए अपने हथियार डाल दिए हैं. मुझे नहीं पता कि अब 8 महीने या 4 महीने या 2 साल बाद जिंदगी मुझे कहां ले जाएगी. मेरे दिमाग में अब किसी चीज के लिए कोई चिंता नहीं है और उन्हें पीछे छोड़ने लगा हूं.

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पहली बार मैंने सही अर्थों में ‘आजादी’ को महसूस किया है. यह एक उपलब्धि जैसा लगता है. ऐसा लगता है जैसे मैंने पहली बार जिंदगी का स्वाद चखा है और इसके जादुई पक्ष को जाना है. भगवान पर मेरा भरोसा और मजबूत हुआ है. मुझे ऐसा लगता है कि वह मेरे शरीर के रोम-रोम में बस गया है. यह वक्त ही बताएगा कि आगे क्या होता है लेकिन अभी मैं ऐसा ही महसूस करता हूं.

मेरी पूरी जिंदगी में दुनियाभर के लोगों ने मेरा भला ही चाहा है, उन्होंने मेरे लिए दुआ की, चाहे मैं उन लोगों को जानता हूं या ना जानता हूं. वे सभी अलग-अलग जगहों पर दुआ कर रहे थे और मुझे लगा कि ये सभी दुआएं एक बन गईं. इसमें वैसी ही ताकत थी जैसी पानी की तेज धारा में होती है और यह पूरी जिंदगी मेरे अंदर बसी रहेगी. यह मेरे भीतर एक नया जीवन उगते हुए देख रहा हूं जो हर एक दुआ से पैदा हुआ है. इन दुआओं से मेरे भीतर बहुत खुशी और उत्सुकता पैदा हो गई. वास्तव में आप अपनी जिंदगी को कंट्रोल नहीं कर सकते. आप धीरे-धीरे प्रकृति के पालने में झूल रहे हैं.

इरफान खान (Irrfan Khan) के अचानक चले जाने से उनके फैंस और पूरा बॉलीवुड सदमे में हैं. सबकी संवेदनाए उनके परिवार के साथ है.

अलविदा: 54 साल की उम्र में इरफान खान का निधन, इस वजह से हुई मौत

बौलीवुड से लेकर हौलीवुड तक अपनी एक्टिंग से सभी का दिल जीतने वाले एक्टर इरफान खान (Irrfan Khan) का 54 साल की उम्र में निधन हो गया है. बीती रात इरफान खान (Irrfan Khan) मुंबई के कोकिलाबेन अस्पताल में भर्ती हुए थे, जिसके बाद उनकी हालत गंभीर बताई जा रही थी. खबर है कि पेट में इंफेक्शन की परेशानी से जूझ रहे इरफान खान (Irrfan Khan) की आज यानी बुधवार 29 अप्रैल को निधन हो गया है, जिसकी खबर उनके दोस्त ने दी है.

शूजीत सरकार ने दी फैंस को दुखद खबर   

एक्टर इरफान खान (Irrfan Khan) के निधन की खबर उनके दोस्त और बौलीवुड डायरेक्टर शूजीत सरकार ने ट्वीट के जरिए देते हुए लिखा- मेरा प्यारा दोस्त इरफान. तुम लड़े और लड़े और लड़े. मुझे तुम पर हमेशा गर्व रहेगा. हम दोबारा मिलेंगे. सुतापा और बाबिल को मेरी संवेदनाएं. तुमने भी लड़ाई लड़ी. सुतापा इस लड़ाई में जो तुम दे सकती थीं तुमने सब दिया. ओम शांति. इरफान खान को सलाम.

2018 से बीमारी से जूझ रहे थे इरफान

दरअसल, दो साल पहले मार्च 2018 में इरफान (Irrfan Khan) को न्यूरो इंडोक्राइन ट्यूमर नामक बीमारी का पता चला था, जिसके बाद उन्होंने विदेश में इस बीमारी का इलाज कराया था और वह ठीक हो गए थे. बॉलीवुड के टैलेंटेड एक्टर्स में से एक इरफान खान (Irrfan Khan) के अचानक चले जाने से उनके फैंस और बॉलीवुड सेलेब्स सदमे में हैं.

बता दें, बीमारी से ठीक होने के बाद इरफान खान(Irrfan Khan) भारत लौट आए थे, जिसके बाद उन्होंने अंग्रेजी मीडियम में काम किया था, जो उनकी आखिरी फिल्म साबित हुई. वहीं अब पूरा बौलीवुड उन्हें श्रद्धांजलि दे रहा है.

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