Kahaniyan : ऐसे हुई पूजा

Kahaniyan :  अंशु के अच्छे अंकों से पास होने की खुशी में मां ने घर में पूजा रखवाई थी. प्रसाद के रूप में तरहतरह के फल, दूध, दही, घी, मधु, गंगाजल वगैरा काफी सारा सामान एकत्रित किया गया था. सारी तैयारियां हो चुकी थीं लेकिन अभी तक पंडितजी नहीं आए थे. मां ने अंशु को बुला कर कहा, ‘‘अंशु, एक बार फिर लखन पंडितजी के घर चले जाओ. शायद वे लौट आए हों… उन्हें जल्दी से बुला लाओ.’’

‘‘लेकिन मां, अब और कितनी बार जाऊं? 3 बार तो उन के घर के चक्कर काट आया हूं. हर बार यही जवाब मिलता है कि पंडितजी अभी तक घर नहीं आए हैं?’’

अंशु ने टका जा जवाब दिया, तो मां सहजता से बोलीं, ‘‘तो क्या हुआ… एक बार और सही. जाओ, उन्हें बुला लाओ.’’

‘‘उन्हें ही बुलाना जरूरी है क्या? किसी दूसरे पंडित को नहीं बुला सकते क्या?’’ अंशु ने खीजते हुए कहा.

‘‘ये कैसी बातें करता है तू? जानता नहीं, वे हमारे पुराने पुरोहित हैं. उन के बिना हमारे घर में कोई भी कार्य संपन्न नहीं होता?’’

‘‘क्यों, उन में क्या हीरेमोती जड़े हैं? दक्षिणा लेना तो वे कभी भूलते नहीं. 501 रुपए, धोती, कुरता और बनियान लिए बगैर तो वे टलते नहीं हैं. जब इतना कुछ दे कर ही पूजा करवानी है तो फिर किसी भी पंडित को बुला कर पूजा क्यों नहीं करवा लेते? बेवजह उन के चक्कर में इतनी देर हो रही है. इतने सारे लोग घर में आ चुके हैं और अभी तक पंडितजी का कोई अतापता ही नहीं है,’’ अंशु ने खरी बात कही.

‘‘बेटे, आजकल शादीब्याह का मौसम चल रहा है. हो सकता है वे कहीं फंस गए हों, इसी वजह से उन्हें यहां आने में देर हो रही हो.’’

‘‘वह तो ठीक है पर उन्होंने कहा था कि बेफिक्र रहो, मैं अवश्य ही समय पर चला आऊंगा, लेकिन फिर भी उन की यह धोखेबाजी. मैं तो इसे कतई बरदाश्त नहीं करूंगा. मेरी तो भूख के मारे हालत खराब हो रही है. आखिर मुझे तब तक तो भूखा ही रहना पड़ेगा न, जब तक पूजा समाप्त नहीं हो जाती. जब अभी तक पंडितजी आए ही नहीं हैं तो फिर पूजा शुरू कब होगी और फिर खत्म कब होगी पता नहीं… तब तक तो भूख के मारे मैं मर ही जाऊंगा.’’

‘‘बेटे, जब इतनी देर तक सब्र किया है तो थोड़ी देर और सही. अब पंडितजी आने ही वाले होंगे.’’

तभी पंडितजी का आगमन हुआ. मां तो उन के चरणों में ही लोट गईं.

पंडितजी मुसकराते हुए बोले, ‘‘क्या करूं, थोड़ी देर हो गई आने में. यजमानों को कितना भी समझाओ मानते ही नहीं. बिना खाए उठने ही नहीं देते. खैर, कोई बात नहीं. पूजा की सामग्री तैयार है न?’’

‘‘हां महाराज, बस आप का ही इंतजार था. सबकुछ तैयार है,’’ मां ने उल्लास भरे स्वर में कहा.

तभी अंशु का छोटा भाई सोनू भी वहां आ कर बैठ गया. पूजा की सामग्री के बीच रखे पेड़ों को देख कर उस का मन ललचा गया. वह अपनेआप को रोक नहीं पाया और 2 पेड़े उठा कर वहीं पर खाने लगा. पंडितजी की नजर पेड़े खाते हुए सोनू पर पड़ी तो वे बिजली की तरह कड़क उठे, ‘‘अरे… सत्यानाश हो गया. भगवान का भोग जूठा कर दिया इस दुष्ट बालक ने. हटाओ सारी सामग्री यहां से. क्या जूठी सामग्री से पूजा की जाएगी?’’

मां तो एकदम से परेशान हो गईं. गलती तो हो ही चुकी थी. पंडितजी अनापशनाप बोलते ही चले जा रहे थे. जैसेतैसे जल्दीजल्दी सारी सामग्री फिर से जुटाई गई और पंडितजी मिट्टी की एक हंडि़या में शीतल प्रसाद बनाने लगे.

अंशु हड़बड़ा कर बोल उठा, ‘‘अरे…अरे पंडितजी, आप यह क्या कर रहे हैं?’’

‘‘भई, शीतल प्रसाद और चरणामृत बनाने के लिए हंडि़या में दूध डाल रहा हूं.’’

‘‘मगर यह दूध तो जूठा है?’’

‘‘जूठा है. वह कैसे? यह तो मैं ने अलग से मंगवाया है.’’

‘‘लेकिन जूठा तो है ही… आप मानें चाहे न मानें, यह जिस गाय का दूध है, उसे दुहने से पहले उस के बछड़े ने तो दूध अवश्य ही पिया होगा, तो क्या आप बछड़े के जूठे दूध से प्रसाद बनाएंगे? यह तो बड़ी गलत बात है.’’

पंडितजी के चेहरे की रंगत उतर गई. वे कुछ भी बोल नहीं पाए. चुपचाप हंडि़या में दही डालने लगे.

अंशु ने फिर टोका, ‘‘पंडितजी, यह दही तो दूध से भी गयागुजरा है. मालूम है, दूध फट कर दही बनता है. दूध तो जूठा होता ही है और इस दही में तो सूक्ष्म जीव होते हैं. भगवान को भोग क्या इस जीवाणुओं वाले प्रसाद से लगाएंगे?’’ पंडितजी का चेहरा तमतमा गया. भन्नाते हुए शीतल प्रसाद में मधु डालने लगे.

‘‘पंडितजी, आप यह क्या कर रहे हैं? यह मधु तो उन मधुमक्खियों की ग्रंथियों से निकला हुआ है जो फूलों से पराग चूस कर अपने छत्तों में जमा करती हैं. भूख लगने पर सभी मधुमक्खियां मधु खाती हैं. यह तो एकदम जूठा है,’’ अंशु ने फिर बाल की खाल निकाली. पंडितजी ने हंडि़या में गंगाजल डाला ही था कि अंशु फिर बोल पड़ा, ‘‘अरे पंडितजी, गंगाजल तो और भी दूषित है. गंगा नदी में न जाने कितनी मछलियां रहती हैं, जीवजंतु रहते हैं. आखिर यह जल भी तो जूठा ही है और ये सारे फल भी तोतों, गिलहरियों, चींटियों आदि के जूठे हैं. आप व्यर्थ ही भगवान को नाराज करने पर तुले हैं. जूठे प्रसाद का भोग लगा कर आप भगवान के कोप का भाजन बन जाएंगे और हम सब को भी पाप लगेगा.‘‘

‘‘तो फिर मैं चलता हूं… मत कराओ पूजा,’’ पंडितजी नाराज हो कर अपने आसन से उठने लगे.

‘‘पंडितजी, पूजा तो आप को करवानी ही है लेकिन जूठे प्रसाद से नहीं. किसी ऐसी पवित्र चीज से पूजा करवाइए जो बिलकुल शुद्ध हो, जूठी न हो और वह है मन, जो बिलकुल पवित्र है?’’

‘‘हां बेटे, ठीक कहा तुम ने मन ही सब से पवित्र होता है. पवित्र मन से ही सच्ची पूजा हो सकती है. सचमुच, तुम ने आज मेरी आंखें खोल दीं. मेरी आंखों के सामने ढोंग और पाखंड का परदा पड़ा हुआ था. मुझ से बड़ी भूल हुई. मुझे माफ कर दो,’’ उस के बाद पंडितजी ने उसी सामग्री से पूजा करवा दी लेकिन पंडितजी के चेहरे पर पश्चात्ताप के भाव थे.

Kahaniyan : चोर बाजार – मिर्जा साहब क्यों कर रहे थे दहेज की वकालत

Kahaniyan :  मिर्जा साहब किसी सरकारी दफ्तर में नौकर थे. 800 रुपए तनख्वाह और इतनी ही ऊपर की आमदनी. खातेपीते आदमी थे. पत्नी थी, लड़का हाईस्कूल में पढ़ रहा था और लड़की जवान हो चुकी थी. बस, यही था उन का परिवार. बेटी की शादी की चिंता में घुले जाते थे. हमारे देश में मनुष्य के जीवन का सब से महत्त्वपूर्ण काम बेटी का विवाह ही होता है. बेटी का जन्म होते ही दुख और चिंता का सिलसिला शुरू हो जाता है. बेटी का जन्म मातापिता के लिए एक कड़ी सजा ही तो होता है.

बेटे के जन्म पर बधाइयां मिलती हैं, जश्न मनाया जाता है और बेटी के जन्म पर केवल रस्मी बधाइयां, ठंडी आहें और फीकी मुसकराहटें, जैसे जबरदस्ती कोई मुसीबत गले में आ पड़े. फिर भी हम छाती ठोंक कर शोर मचाते हैं कि हमारे समाज में स्त्री को आदर और सम्मान मिलता है.

बेटी के विवाह के लिए पिता रिश्वत लेता है, दूसरों का गला काटता है और लूटमार का यह धन कोई और लुटेरा बाजे बजाता हुआ आ कर ले जाता है. दिन दहाड़े सड़कों पर, बाजारों में चोरीडकैती का व्यापार जारी है. सब लुट रहे हैं और सब लूट रहे हैं. सब चलता है.

जो लुटने से इनकार कर दे उस की बेटी बिन ब्याही बूढ़ी हो जाती है. रिश्वत इसी कारण ली जाती है क्योंकि बेटी का विवाह करना है और विवाह मामूली तनख्वाह से नहीं हो सकता.

एक दिन मिर्जा साहब ने बताया कि उन की बेटी के विवाह की बातचीत चल रही है. लड़का जूनियर इंजीनियर था.

तनख्वाह तो 700 रुपए है परंतु ऊपर की आमदनी 2,000 रुपए महीने से कम नहीं. उन्होंने खुश हो कर बताया, ‘‘और आजकल तनख्वाह को कौन पूछता है? असल चीज तो ऊपर की आमदनी है.’’

अगले दिन लड़के वाले बातचीत के लिए आ गए. मैं भी मौजूद था. लड़के के बाप हबीब बेग जूते का काम करते थे और जूतों के तलों में चमड़े के स्थान पर तरबूज का छिलका भर कर अच्छा पैसा कमाया था.

चायपानी के बाद हबीब बेग बोले, ‘‘हां तो, मिर्जा साहब, अब कुछ लेनदेन की बात हो जाए.’’

‘‘जो भी मुझ से बन पड़ेगा, करूंगा,’’ मिर्जा साहब ने दबी जबान से कहा.

‘‘बात साफ अच्छी होती है,’’ हबीब बेग कहने लगे, ‘‘लड़के को पढ़ानेलिखाने पर जो भी खर्च हुआ वह तो हुआ ही, नौकरी के लिए 20 हजार रुपए गिन कर दिए हैं. बिना पैसा दिए नौकरी नहीं मिलती. देखिए जनाब, स्कूटर, टेलीविजन और फ्रिज के साथसाथ 50 हजार रुपए  नकद लूंगा.’’

मिर्जा साहब को पसीना आ गया. बोले, ‘‘मैं जैसे भी बन पड़ेगा, करूंगा.’’

जब लड़के वाले चले गए तो मिर्जा साहब फूट पड़े, ‘‘कयामत करीब है. शादीब्याह व्यापार बन गया है. लड़कों का मोलतोल हो रहा है. इनसानियत और शराफत केवल किताबी शब्द बन चुके हैं. बेटी की शादी भी बिना रिश्वत के नहीं होती. ईमानदारी से केवल दो वक्त की दालरोटी ही चल सकती है. यह लाखों का दहेज कहां से आए? दहेज के खिलाफ कानून बने, परंतु कौन सुनता है?

‘‘मुफ्त के धन को हड़पने वाले ये कठोर लुटेरे पल भर के लिए भी नहीं सोचते कि बेटी वाला इतना धन लाएगा कहां से? इन के दिलों में दया का नाम नहीं. ये सब भेडि़ए हैं. अब कोई उन से पूछे कि बेटी वाला तो अपनी बेटी दे  रहा है इन्हें, उस के गले पर छुरी क्यों रखते हैं?

‘‘क्या संसार में और कहीं लड़के बेचे जाते हैं? क्या लड़के को इसीलिए पाला और पढ़ायालिखाया था कि इस की कीमत लड़की वालों से वसूल करो? अगर लड़की वाला भी अपनी बेटी को पालने, पढ़ानेलिखाने का खर्च लड़के से मांगे तो कैसा लगे?

‘‘अब देखो न, दहेज ऐसी बुराई है जो अनेक बुराइयों को जन्म देती है. आखिर लोग रिश्वत क्यों लेते हैं? मिलावट क्यों करते हैं? नकली वस्तुएं क्यों बनाते हैं? इस का कारण यही है कि दहेज में देने के लिए लाखों चाहिए? ईमानदारी से कितना कमाया जा सकता है? एक आदमी को बेटी ब्याहनी है और उस का दहेज वह दूसरों की जेब पर डाके डाल कर एकत्र करता है.

‘‘सब को दहेज देना है, इसलिए सब ही अपनेअपने स्थान पर डाके डाल रहे हैं. सब चुप हैं. किसी को दहेज लेते हुए शरम नहीं आती. बड़ेबड़े धर्मात्मा हों, साधू या शैतान हों, दहेज सब को हजम कर जाता है. बनाती रहे सरकार कानून, कौन मानता है? हमारे नेता और मंत्री सब धड़ल्ले से दहेज लेते हैं. कोई रोकने वाला नहीं है.’’

मिर्जा साहब बहुत बिगड़े हुए थे.

मैं ने पूछा, ‘‘क्या यह संभव नहीं कि आप कोई ऐसा लड़का ढूंढ़ें जो बिना दहेज के शादी कर ले?’’

‘‘ऐसा कोई लड़का नहीं मिलता,’’ उन्होंने कहा, ‘‘जाहिलों की बात छोड़ो. कालिजों और विश्वविद्यालयों सेडिगरियां ले कर निकलने वालों का हाल तो और भी बुरा है. इन के पेट और भी बढ़े होते हैं. इन्हें लाखों चाहिए क्योंकि नौकरी बिना रिश्वत दिए नहीं मिलती और अगर मिल भी जाए तो ऊपर की आमदनी वाली नहीं होती.

‘‘हमारे युवक कालिजों से यही आदर्श सीख कर निकलते हैं कि अपने आने वाले दिनों के लिए ताजमहल लड़की वाले की हड्डियों पर बनाओ. दहेज रिश्वत के लिए और रिश्वत दहेज के लिए. क्या तमाशा है, कैसा अंधेर है, दुख तो इस बात का है कि समाज इन बुराइयों को बुरा नहीं समझता. हमारा समाज समाज नहीं, एक चोर बाजार है जहां चोरी का माल खरीदा और बेचा जाता है. बेचने वाले और खरीदने वाले सब चोर हैं.’’

‘‘चोर बाजार,’’ मैं धीरे से बड़-बड़ाया.

मिर्जा साहब कहते ही रहे, ‘‘मेरा भी क्या बिगड़ता है? अधिक से अधिक यही होगा कि मैं ऊपर की आमदनी बढ़ा लूंगा. उफ, ये लड़के वाले, ये धन के कुत्ते और दहेज के गुलाम नहीं जानते कि ये कितने बड़े अपराधी हैं और इन की दहेज की भूख समाज में कितने भयंकर अपराधों को जन्म दे रही है.’’

मिर्जा साहब की बेटी की शादी धूमधाम से हो गई. स्कूटर, टेलीविजन, फ्रिज और 50 हजार रुपए नकद. जूनियर इंजीनियर साहब की अपनी बेटी भी रिश्वत की हराम की कमाई पर पलेगी, बढ़ेगी, रिश्वत की ही कमाई से उस का दहेज दिया जाएगा. इस प्रकार यह बीमारी चलती ही रहेगी. इस का कोई अंत नहीं है.

कई वर्ष बीत गए. मैं देश से बाहर चला गया था.

इतने सालों बाद जब मैं उन के घर पहुंचा तो पता चला कि बेटे की शादी की बात पक्की करने कहीं गए हैं. अब उन के बेटे की नौकरी लग गई थी और नौकरी भी ऐसी कि ऊपर की कमाई इतनी थी कि वारेन्यारे थे.

मैं उन के घर थोड़ी देर बैठा रहा. इतने में मिर्जा साहब आ गए लड़की वाले के घर से. मुझे देख कर वह बड़े खुश हुए.

‘‘कहिए,’’ मैं ने पूछा, ‘‘शादी पक्की कर आए न?’’

वह भरे बैठे थे. एकदम फट पड़े, ‘‘हद हो गई शराफत की. जानते हो लड़की वाले कौन हैं? अरे भई, वही हाजी फजल बेग. हर वर्ष हज को जाते हैं और लाखों का हेरफेर करते हैं. पिछले वर्ष 3 लाख का केवल सोना ही लाए थे. कमाई के और भी साधन हैं, नंबर दो के. इतना कुछ होते हुए भी बेटी को डेढ़ लाख का दहेज देते हुए दम निकल रहा है.

‘‘कोई मजाक है लड़के को पालना, पढ़ानालिखाना, नौकरी दिलाना? मैं ने साफ कह दिया है, 1 लाख नकद और 50 हजार का सामान दो तो बात करो. मेरा बेटा कोई भिखारी नहीं है. जिस घर चला जाऊंगा, इतनी रकम तो हाथोंहाथ मिलेगी.

‘‘इतनी सी बात लोगों को समझ में नहीं आती कि जितना गुड़ डालेंगे, उतना ही मीठा होगा. जितना दहेज दोगे, उतना ही अच्छा वर मिलेगा. बिना लिएदिए भले लोगों में कहीं शादियां होती हैं? भई, पास में धन है तो बेटी को दो दिल खोल कर. अपनी ही बेटी को दोगे. न जाने कैसा जमाना आ गया है? यह दुनिया क्या बनती जा रही है?’’

मैं आश्चर्य से आंखें फाड़े मिर्जा साहब का भाषण सुन रहा था चुपचाप, परंतु उन का आखिरी प्रश्न सुन

कर मेरे मुंह से निकल ही गया,

‘‘चोर बाजार.’’

Kahaniyan : औरत का दर्द

Kahaniyan :  ‘‘मैडम, मेरा क्या कुसूर है जो मैं सजा भुगत रही हूं?’’ रूपा ने मुझ से पूछा. रूपा के पति ने तलाक का केस दायर कर दिया था. उसी का नोटिस ले कर वह मेरे पास केस की पैरवी करवाने आई थी.

उस के पति ने उस पर चरित्रहीनता का आरोप लगाया था. रूपा की मां उस के साथ आई थी. उस ने कहा कि रूपा के ससुराल वालों ने बिना दहेज लिए विवाह किया था. उन्हें सुंदर बहू चाहिए थी.

रूपा नाम के अनुरूप सुंदर थी. जब रूपा छोटी थी तब उस की मां की एक सहेली ने रूपा के गोरे रंग को देख कर शर्त लगाई थी कि यदि तुम्हें इस से गोरा दामाद मिला तो मैं तुम्हें 1 हजार रुपए दूंगी. उस ने जब पांव पखराई के समय रूपेश के गुलाबी पांव देखे तो चुपचाप 1 हजार रुपए का नोट रूपा की मां को पकड़ा दिया.

रूपेश का परिवार संपन्न था. वे ढेर सारे कपड़े और गहने लाए थे. नेग भी बढ़चढ़ कर दिए थे. रूपा के घर से उन्होंने किसी भी तरह का सामान नहीं लिया था. रूपा के मायके वाले इस विवाह की भूरिभूरि प्र्रशंसा कर रहे थे. रूपा की सहेलियां रूपा के भाग्य की सराहना तो कर रही थीं पर अंदर ही अंदर जली जा रही थीं.

हंसीखुशी के वातावरण में रूपा ससुराल चली गई. रूपा अपने सुंदर पति को देखदेख कर उस से बात करने को आकुल हुई जा रही थी, पर रूपेश उस की ओर देख ही नहीं रहा था. ससुराल पहुंच कर ढेर सारे रीतिरिवाजों को निबटातेनिबटाते 2 दिन लग गए. रूपा अपनी सास, ननद व जिठानियों से घिरी रही. उस के खानेपीने का खूब ध्यान रखा गया. फिर सब ने घूमने का कार्यक्रम बनाया. 10-12 दिन इसी में लग गए. इस बीच रूपेश ने भी रूपा से बात करने की कोई उत्सुकता नहीं दिखाई.

घूमफिर कर पूरा काफिला लौट आया. रूपा की सास ने वहीं से रूपा के पिता को फोन कर दिया था कि चौथी की रस्म के अनुसार रूपा को मायके ले जाएं. जैसे ही ये लोग लौटे, रूपा के पिता आ कर रूपा को ले गए. रूपा कोरी की कोरी मायके लौट आई. सास ने उस के पिता को कह दिया था कि वे लोग पुरानी परंपरा में विश्वास रखते हैं, दूसरे ही दिन शुक्र अस्त हो रहा है इसलिए रूपा शुक्रास्त काल में मायके में ही रहेगी.

रूपा 4 माह मायके रही. उस की सास और ननद के लंबेलंबे फोन आते. उन्हीं के साथ रूपेश एकाध बात कर लेता.

4 महीने बाद रूपेश के साथ सासननद आईं और खूब लाड़ जता कर रूपा को बिदा करा कर ले गईं. ननद ने अपना घर छोड़ दिया था और उस का तलाक का केस चल रहा था. वह मायके में ही रहती थी. इस बार रूपेश के कमरे में एक और पलंग लग गया था. डबल बेड पर रूपा अपनी ननद के साथ सोती थी व रूपेश अलग पलंग पर सोता था. रूपेश को उस की मां व बहन अकेला छोड़ती ही नहीं थीं जो रूपा उस से बात कर सके.

1-2 माह तक तो ऐसा ही चला. फिर ननद के दोस्त प्रमोद का घर आनाजाना बढ़ने लगा. धीरेधीरे सासननद ने रूपा को प्रमोद के पास अकेला छोड़ना शुरू कर दिया. रूपेश का तो पहले जैसा ही हाल था.

एक दिन जब रूपा प्रमोद के लिए चाय लाई तो उस ने रूपा का हाथ पकड़ कर अपने पास यह कह कर बिठा लिया, ‘‘अरे, भाभी, देवर का तो भाभी पर अधिकार होता है. मेरे साथ बैठो. जो तुम्हें रूपेश नहीं दे सकता वह मैं तुम्हें दूंगा.’’

रूपा किसी प्रकार हाथ छुड़ा कर भागी और उस ने सास से शिकायत की. सास ने प्रमोद को तो कुछ नहीं कहा, रूपा से ही बोलीं, ‘‘तो इस में हर्ज ही क्या है. देवरभाभी का रिश्ता ही मजाक का होता है.’’

रूपा सन्न रह गई. वह आधुनिक जरूर थी पर उस का परिवार संस्कारी था. और यहां तो संस्कार नाम की कोई चीज ही नहीं थी. प्रमोद की छेड़खानी बढ़ने लगी. उसे सास व ननद का प्रोत्साहन जो था. एक दिन रूपा ने चुपके से पिता को फोन कर दिया. मां की बीमारी का बहाना बना कर वे रूपा को मायके ले आए. रूपा ने रोरो कर अपनी मां जैसी भाभी को सबकुछ बता दिया तो परिवार वालों को संपन्न परिवार के ‘सुदर्शन सुपुत्र’ की नपुंसकता का ज्ञान हुआ. चूंकि यह ऐसी बात थी जिस से दोनों परिवारों की बदनामी थी, इसलिए वे चुप रहे. 1 माह बाद सासननद रूपेश को ले कर रूपा को लेने आईं तो रूपा की मां व भाभी ने उन्हें आड़े हाथों लिया. सास तमतमा कर बोलीं, ‘‘तुम्हारी लड़की का ही चालचलन ठीक नहीं है, हमारे लड़के को दोष देती है.’’

रूपा की मां बोलीं, ‘‘यदि ऐसा ही है तो अपने लड़के की यहीं डाक्टरी जांच करवाओ.’’

इस पर सासननद ने अपना सामान उठाया और गाड़ी में बैठ कर चली गईं. इस बात को लगभग 8-10 माह गुजर गए. रूपा के विवाह को लगभग 2 वर्ष हो चुके थे कि रूपेश की ओर से तलाक का केस दायर कर दिया गया था. रूपा के प्रमोद के साथ संबंधों को आधार बनाया गया था और प्रमोद को भी पक्षकार बनाया था, ताकि प्रमोद रूपा के साथ अपने संबंधों को स्वीकार कर रूपा को बदचलन सिद्घ कर सके.

मेरे लिए रूपा का केस नया नहीं था. इस प्रकार के प्रकरण मैं ने अपने साथी वकीलों से सुने थे और कई मामले सामाजिक संगठनों के माध्यम से सुलझाए भी थे. इस प्रकार के मामलों में 2 ही हल हुआ करते हैं या तो चुपचाप एकपक्षीय तलाक ले लो या विरोध करो. दूसरी स्थिति में औरत को अदालत में विरोधी पक्ष के बेहूदा प्रश्नों को झेलना पड़ता है. मैं ने रूपा से नोटिस ले लिया और उसे दूसरे दिन आने को कहा.

मैं ने प्रत्येक कोण से रूपा के केस पर सोचविचार किया. रूपा का अब ससुराल में रहना संभव नहीं था. वह जाए भी तो कैसे जाए. पति से ही ससुराल होती है और पति का आकर्षण दैहिक सुख होता है. इसी से वह नई लड़की के प्रति आकृष्ट होता है. जब यह आकर्षण ही नहीं तो वह रूपा में क्यों दिलचस्पी दिखाएगा. इसलिए रूपा को तलाक तो दिलवाना है किंतु उस के दुराचरण के आधार पर नहीं. औरत हूं न इसीलिए औरत के दर्द को पहचानती हूं.

सोचविचार कर मैं इस निष्कर्ष पर पहुंची कि अलग से नपुंसकता के आधार पर केस लगाने के बजाय मैं इसी में प्रतिदावा लगा दूं. हिंदू विवाह अधिनियम में इस का प्रावधान भी है. दोनों पक्षकार हिंदू हैं और विवाह भी हिंदू रीतिरिवाजों के अनुसार संपन्न हुआ है.

दूसरे दिन रूपा, उस की मां व भाभी आईं तो मैं ने उन्हें समझा दिया कि हम लोग उन के प्रकरण का विरोध करेंगे. साथ ही उसी प्रकरण में रूपेश की नपुंसकता के आधार पर तलाक लेंगे. इसलिए पहले रूपा की जांच करा कर डाक्टरी प्रमाणपत्र ले लिया जाए.

पूरी तैयारी के साथ मैं ने पेशी के दिन रूपा का प्रतिदावा न्यायालय में प्रस्तुत कर दिया. साथ ही एक आवेदन कैमरा प्रोसिडिंग का भी लगा दिया, जिस में सुनवाई के समय मात्र जज और पक्षकार ही रहें और इस प्रक्रिया का निर्णय कहीं प्रकाशित न हो.

जब प्रतिदावा रूपा की सासननद को मिला तो वे बहुत बौखलाईं. उन्हें अपने लड़के की कमजोरी मालूम थी. प्रमोद को इसीलिए परिचित कराया गया था ताकि रूपा उस से गर्भवती हो जाए तो रूपेश की कमजोरी छिप जाए और परिवार को वारिस मिल जाए.

मैं ने न्यायालय से यह भी आदेश ले लिया कि रूपेश की जांच मेडिकल बोर्ड से कराई जाए. इधरउधर बहुत हाथपैर मारने पर जब रूपा की सासननद थक गईं तो समझौते की बात ले कर मेरे पास आईं. रूपा के पिता भी बदनामी नहीं चाहते थे इसलिए मैं ने विवाह का पूरा खर्च व अदालत का खर्च उन से रूपा को दिलवा कर राजीनामा से तलाक का आवेदन लगवा दिया. विवाह होने से मुकदमा चलने तक लगभग ढाई वर्ष हो गए थे. रूपा को भी मायके आए लगभग डेढ़ वर्ष हो गए थे. इसलिए राजीनामे से तलाक का आवेदन स्वीकार हो गया. दोनों पक्षों की मानमर्यादा भी कायम रही.

इस निर्णय के लगभग 5-6 माह बाद मैं कार्यालय में बैठी थी. तभी रूपा एक सांवले से युवक के साथ आई. उस ने बताया कि वह उस का पति है, स्थानीय कालिज में पढ़ाता है. 2 माह पूर्व उस ने कोर्ट मैरिज की है. उस की मां ने कहा कि हिंदू संस्कार में स्त्री एक बार ही लग्न वेदी के सामने बैठती है इसलिए दोनों परिवारों की सहमति से उन की कोर्ट मैरिज हो गई. रूपा मुझे रात्रि भोज का निमंत्रण देने आई थी.

उस के जाने के बाद मैं सोचने लगी कि यदि मैं ने औरत के दर्द को महसूस कर यह कानूनी रास्ता न अपनाया होता तो बेचारी रूपा की क्या हालत होती. अदालत में दूसरे पक्ष का वकील उस से गंदेगंदे प्रश्न पूछता. वह उत्तर न दे पाती तो रूपेश को उस के दुराचारिणी होने के आधार पर तलाक मिल जाता. फिर उसे जीवन भर के लिए बदनामी की चादर ओढ़नी पड़ती. सासननद की करनी का फल उसे जीवन भर भुगतना पड़ता. जब तक औरत अबला बनी रहेगी उसे दूसरों की करनी का फल भुगतना ही पड़ेगा. समाज में उसे जीना है तो सिर उठा कर जीना होगा.

कहानी- सुधारानी श्रीवास्तव

Kahaniyan : अपाहिज – आखिर कौन था स्वाति की पूरी दुनिया?

Kahaniyan : एअरइंडिया का विमान मुंबई एअरपोर्ट पर था. यह मुंबई से दिल्ली की उड़ान थी. वर्किंग डे होने की वजह से अधिकांश सीटें फुल थीं. विमान की रवानगी के कुछ समय पूर्व ही स्वाति ने गौरव के साथ विमान में प्रवेश किया. विमान परिचारिका व्हीलचेयर धकेल रही थी, स्वाति उस का साथ दे रही थी. गौरव व्हीलचेयर पर बैठा था. हैंडसम, गोरेचिट्टे गौरव के चेहरे पर परेशानी के भाव थे. साफ लग रहा था कि वह तनाव में है.

स्वाति ने परिचारिका की सहायता से गौरव को विमान की सीट पर बैठाया और धन्यवाद दिया. उस ने अपने हाथ में थमा सामान रैक में रखा. जैसे ही उस की नजरें अपने से 2 सीट पीछे गई, वह चौंक पड़ी.

उस सीट पर अनंत बैठा था. अकेला नहीं बैठा था. उस की बगल में एक नवविवाहित लगने वाली युवती भी थी. वह अनंत से बातें कर रही थी. उसे देख अवाक रह गई स्वाति.

यह कैसे हुआ? अनंत की बगल में युवती यानी अनंत की शादी हो गई? अनेक सवाल कौंध गए उस के मनमस्तिष्क में. वह धम्म से अपनी सीट पर बैठ गई. माथा चकरा गया उस का.

‘‘क्या हुआ स्वाति?’’ गौरव ने परेशान भाव से पूछा, ‘‘तुम्हारी तबीयत तो ठीक है?’’ स्वाति की अचानक ऐसी हालत देख गौरव ने पूछा.

वह कुछ नहीं बोली, तो गौरव ने उसे झकझोरा, ‘‘क्या हुआ, ठीक तो हो?’’

‘‘हांहां ठीक हूं. बस थोड़ा सिर चकरा गया था,’’ स्वाति ने सामान्य होते हुए कहा.

स्वाति की अनंत से शादी हुई थी. यह उन दिनों की बात है, जब उस ने कालेज से बीए किया ही था. गजब की खूबसूरत स्वाति न केवल आकर्षक तीखे नैननक्श वाली थी, बल्कि कुशाग्रबुद्धि भी थी.

मध्यवर्गीय परिवार में जन्मी स्वाति 5 बहनों में सब से छोटी थी. चंचल स्वभाव की स्वाति परिवार में सब की लाड़ली थी. बीए अंतिम वर्ष में थी कि उस के पापा का देहांत हो गया. उस की उम्र यही कोई 21 वर्ष के करीब थी. 4 बेटियों की शादी करतेकरते स्वाति के पापा वक्त से पहले ही बूढ़े हो गए थे. इधरउधर से कर्ज ले कर बेटियों को ब्याहा तो स्वाति की शादी से पहले ही चल बसे.

पति का साथ देती आ रही स्वाति की मां ने अपने पति की मौत के बाद चारपाई पकड़ ली. अब चारों बहनों को इस बात की चिंता हुई कि मां भी साथ छोड़ गईं तो स्वाति का क्या होगा? उसे कौन संभालेगा? अत: बहनों ने मिल कर तय किया कि मां के रहते हुए स्वाति के हाथ पीले कर दिए जाएं. पर अच्छे घरपरिवार का लड़का मिले तब न.

कई रिश्ते आए, लेकिन भाई कितने हैं, बाप…? के सवाल पर लड़के वाले खिसक जाते. अगर कोई इन सब हालात से भी समझौता कर लेता तो सवाल आता कि शादी में कितना पैसा खर्च करोगे?

खर्च के नाम पर तो कुछ था ही नहीं, उन के पास.

बहनों की ससुराल में भी ऐसा कुछ नहीं था कि सब मिल कर शादी में खर्च लायक मदद कर सकें.

स्वाति कहती, ‘‘दीदी, आप लोग मेरी टैंशन न लो. अभी मेरी उम्र ही क्या हुई है?’’

एक दिन स्वाति के लिए मुंबई से बहुत बड़े उद्योगपति घराने से रिश्ता आया. स्वाति के रिश्ते की मौसी का लड़का सुशांत मुंबई से यह रिश्ता ले कर दिल्ली आया.

‘‘मौसी, बहुत बड़ा घराना है. यों समझो राज करेगी स्वाति. घर में कितने नौकरचाकर, रुपया, धनदौलत, ऐशोआराम है कि आप सोच भी नहीं सकतीं,’’ सुशांत ने स्वाति की मां से कहा तो उन की आंखों में चमक आ गई.

‘‘हां, मौसी, बिलकुल सच.’’

‘‘तो बेटा इतने बड़े घर का रिश्ता… हमारे घर…’’ मां ने सुशांत से पूछा.

‘‘सब बहुत अच्छा है मौसी, बस एक छोटी सी कमी है…’’

सुशांत अपनी बात पूरी करता उस से पहले ही स्वाति की मां ने उत्सुकतापूर्वक पूछा, ‘‘वह क्या बेटा? कोई बीमारी है लड़के को या कोई ऐब…’’ मां ने पूछा.

‘‘नहीं मौसी, ऐसी कोई खास बीमारी नहीं. बचपन में लड़के के एक पांव में तकलीफ हो गई थी. पर मौसी इस का इलाज जल्दी होने लगेगा अमेरिका में,’’ सुशांत ने एक स्वर में अपनी बात कही.

‘‘पर बेटा अगर ठीक नहीं हुआ तो?’’ मां ने पूछा.

‘‘अरे मौसी, अरबों रुपए हैं उन के पास. कोई छोटामोटा घर नहीं है. इलाज पर पानी की तरह पैसा बहा देंगे. उन की अमेरिका के किसी बड़े डाक्टर से बात चल रही है,’’ सुशांत ने कहा.

‘‘वह तो ठीक है बेटा पर…’’

‘‘मौसी आप बिलकुल चिंता न करें. स्वाति मेरी बहन है. मैं इस का रिश्ता गलत घर या गलत लड़के से कराऊंगा क्या? मेरी नाक नहीं कट जाएगी?’’ सुशांत ने अपनापन दिखाते हुए कहा, तो मां के मन में बात जमती नजर आई.

आखिर सुशांत ने अपने तर्क दे कर मां और बड़ी बहनों को स्वाति की शादी के लिए राजी कर लिया.

स्वाति ने कुछ दिन विरोध किया. लेकिन सब बहनों और मां ने अपनी गरीबी और हालात का वास्ता दे कर उसे मना लिया और फिर एक दिन स्वाति की अनंत से शादी हो गई.

स्वाति मुंबई आ गई. जैसे सुशांत ने बताया था वैसे ही सब शाही ठाटबाट थे अनंत के घर. पता नहीं कितने नौकरचाकर, गाडि़यां, बहुत बड़ा महल सा घर, सासससुर. बस, अनंत इकलौता था अपने मांबाप का. सब का दुलार और प्यार मिला स्वाति को.

अनंत का एक पैर बचपन में पोलियोग्रस्त हो गया था. वह बेसाखी के सहारे चलता. बड़ा अजीब लगता जब वह स्वाति जैसी नवयौवना के साथ चलता. स्वाति को शुरू में बड़ी शर्म महसूस होती जब लोग उन्हें देखते. किसी प्रोग्राम में जाते या मार्केट, लोग घूरने वाले अंदाज से दोनों को देखने. लेकिन स्वाति ने खुद को समझाया. अनंत का प्यार देख कर उस ने निर्णय लिया कि वह अनंत का सहारा बनेगी. उस को दुनिया दिखाएगी और सच में स्वाति ने यही किया. अनंत के कारोबार को समझा और संभाल लिया. देश भर में अनंत को ले कर घूमी स्वाति. वह मुंबई में होने वाले हर कार्यक्रम में जाती. स्वाति हाथ थाम कर चलती अनंत का. खूब ऐंजौय करती.

एक दिन एक क्लब के बहुत बड़े प्रोग्राम के बाद स्वाति अपने पति अनंत का हाथ थामे बाहर आ रही थी कि उसे सामने से गौरव आता नजर आया. वही गौरव जिस ने स्वाति के साथ बीए की थी. बहुत ही स्मार्ट और आकर्षक युवक था वह.

‘‘हैलो गौरव,’’ स्वाति की नजर जैसे ही गौरव पर पड़ी तो उस ने कहा.

‘‘हाय स्वाति, कैसी हो भई? कहां हो आजकल?’’ गौरव ने करीब आते हुए उस से पूछा.

‘‘यहीं हूं मुंबई में. शादी हो गई मेरी…

2 साल हो गए,’’ स्वाति ने चहकते हुए कहा.

‘‘अच्छा 2 साल भी हो गए,’’ गौरव ने आंखें फाड़ कर आश्चर्य से कहा.

‘‘हां, 2 साल और ये हैं मेरे पति अनंत,’’ स्वाति ने परिचय कराया.

‘‘हैलो, माई सैल्फ गौरव.’’

गौरव ने अनंत की ओर मुखातिब होते हुए कहा और अपना हाथ अनंत की ओर बढ़ा दिया.

‘‘अनंत, ये मेरे कालेज का फ्रैंड है गौरव,’’ स्वाति ने कहा.

जब अनंत लंगड़ाते हुए आगे बढ़ा और अपना हाथ आगे बढ़ाया, तो गौरव कुछ समझ नहीं पाया.

‘‘हैलो, गौरव मैं अनंत शर्मा.’’

गौरव प्रश्नवाचक नजरों से स्वाति की ओर देख रहा था. गौरव ने बताया कि वह दिल्ली से मुंबई शिफ्ट हो गया है. यहां एक कंपनी में उच्च पद पर है और अभी तक शादी नहीं की है. स्वाति और गौरव ने फिर मिलने और एकदूसरे को घर आने का न्योता दिया. दोनों ने अपनेअपने मोबाइल नंबर भी दिए और विदा हो गए.

गौरव उस रात सो नहीं पाया. वह कालेज टाइम से ही स्वाति से प्यार करता था. लेकिन कभी अपने प्यार का इजहार नहीं कर पाया. उस के दिमाग में कई सवाल चल रहे थे. स्वाति ने एक अपाहिज से शादी क्यों की? सोचतेसोचते वह सो गया.

गौरव ने फैसला किया कि वह कभी स्वाति से पूरी बात पूछेगा. उस ने एक दिन स्वाति को फोन किया. स्वाति ने कहा कि वह शाम को जरूरी काम से मार्केट जाएगी तब मिलते हैं. दोनों ने एक कौफी शौप पर मिलना तय किया.

स्वाति ने गौरव को सब बातें बताईं. शादी से पूर्व और शादी के बाद से अब तक की. 1-1 बात उस से सांझा की. उस ने यह भी कहा कि वह अनंत और उस के परिवार के साथ खुश है. अनंत के करोड़ों रुपए के टर्नओवर वाला कारोबार भी संभाल रही है.

गौरव को बहुत बड़ा आश्चर्य हुआ कि किस तरह की मजबूरियों में स्वाति ने सब स्वीकार किया और अब इन हालात में भी खुश है.

गौरव ने अपनी बातें भी बताईं. उस शाम स्वाति को घर पहुंचने में थोड़ी देर हो गई. अकेली ही थी और गाड़ी खुद ड्राइव कर के लाई थी, तो अनंत को काफी चिंता हुई.

घर आने पर उस ने अनंत से कहा, ‘‘आप मेरी टैंशन मत लिया कीजिए. आप की स्वाति अब मुंबई में नई नहीं है.’’

गौरव से स्वाति का मेलमिलाप बढ़ने लगा. गौरव कई बार स्वाति के घर भी आया. गौरव और अनंत भी मित्रवत मिलते. स्वाति और गौरव की निकटता बढ़ती जा रही थी.

दोनों ने एकसाथ कई बार मूवी देखी. गौरव को अच्छा लगा. स्वाति को गौरव में एक नई दुनिया नजर आने लगी. स्वाति गौरव की तरफ आकर्षित होती जा रही थी, तो अनंत से दूर.

स्वाति और अनंत की शादी को करीब 5 साल होने जा रहे थे. लेकिन दोनों के अभी तक कोई संतान नहीं हुई. अब उसे गौरव में अपनी दुनिया और सुनहरा भविष्य नजर आने लगा था. धनदौलत, ऐशोआराम और नर्म बिछौने उस के लिए कांटों की सेज लगने लगे.

अनंत भले ही अपाहिज था, लेकिन वह पूरी कोशिश करता कि वह स्वाति को खुश रखे. उसे किसी प्रकार की कमी महसूस नहीं होने  देता. अनंत अकसर स्वाति से कहता, ‘‘स्वाति  तुम ने जितना मेरा साथ दिया है, उस का कर्ज मैं कभी नहीं चुका पाऊंगा. शीघ्र ही मेरे पैर  का इलाज होगा तो तुम्हें अपने बूते पर दुनिया की सैर कराऊंगा.’’

गौरव से मिलने के बाद स्वाति का बदला रुख अनंत महसूस करने लगा था. लेकिन वह स्वाति से कुछ बोल नहीं पाता. बस बच्चों की तरह बिलख कर रह जाता. उसे एहसास होने लगा था कि स्वाति और गौरव की निकटता कुछ नया गुल खिलाएगी. स्वाति का देरसवेर घर आना, औफिस से भी गायब रहना शक पैदा करता था.

अनंत के मम्मीपापा तक भी ये बातें पहुंचने लगीं कि स्वाति का ध्यान अनंत और कारोबार में न हो कर कहीं और है. उन्होंने स्वाति से बात की. लेकिन बड़ी सफाई से स्वाति बहाना बना कर टाल गई. कभी कारोबार तो कभी किट्टी फ्रैंड्स के साथ जाने की बात वह कहती.

अनंत के पापा ने एक दिन तय किया कि वह स्वाति पर नजर रखेंगे. उन्होंने एक प्राइवेट डिटैक्टिव एजेंसी से संपर्क कर स्वाति पर नजर रखने का अनुबंध किया. एजेंसी ने जो रिपोर्ट दी, चौंकाने वाली थी. स्वाति का समय गौरव के साथ व्यतीत हो रहा था. उस ने पांचसितारा होटल में रूम भी बुक करा रखा था, जिस में गौरव और स्वाति मिलते.

एक दिन डिटैक्टिव एजेंसी ने सूचना दी कि स्वाति और गौरव होटल में हैं. अनंत के मम्मीपापा बिना वक्त गंवाए होटल जा पहुंचे.

अनंत के पापा ने होटल के रूम की डोरबैल बजाई. स्वाति और गौरव रूम में ही थे. उन्होंने सोचा वेटर होगा. गौरव ने दरवाजा खोला. सामने अनंत के मम्मीपापा को देख उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. मानो पैरों तले की जमीन खिसक गई हो.

‘‘अ… अ… आप…’’ उस के मुंह से निकला.

‘‘हां…हम… बेशर्म इनसान…’’ अनंत के पापा ने गौरव को अंदर धकेलते हुए कहा. स्वाति बैड पर लेटी हुई थी. उस के वस्त्र अस्तव्यस्त हो रहे थे. रूम के अंदर का दृश्य सारी प्रेमलीला को बयान कर रहा था. स्वाति अपने गुस्से से भरे सासससुर को यों अचानक सामने देख बैड से उठी.

‘‘स्वाति, क्या है यह सब..?’’ सास ने चीखते हुए पूछा.

नजरें गड़ाए खड़ी रही स्वाति.

‘‘हमारी छूट और लाड़प्यार का यह सिला दिया तुम ने?’’ ससुर भी चीख पड़े.

‘‘हां, यही सच है… आप क्या समझते हैं सारी उम्र मैं यों ही गुजार दूं? एक अपाहिज के साथ? मेरे भी अरमान हैं. आखिर कब तक…’’ स्वाति अचानक घायल शेरनी की तरह चीख पड़ी.

‘‘तो रहो इस के साथ ही. हमारे घर के रास्ते अब बंद हैं तुम्हारे लिए,’’ सास ने स्वाति की बात का जवाब देते हुए कहा.

ज्यादा बहस करने का मतलब था गौरव और स्वाति से झगड़ा करना. ज्यादा उचित यही था. दोनों को वहीं छोड़ सासससुर गुस्से में भरे होटल से चले आए.

उस दिन शाम को स्वाति घर आई… वह चुपचाप अपने रूम में चली गई. अनंत को मम्मीपापा से होटल में जो कुछ हुआ उस की जानकारी मिल चुकी थी. रात को दोनों का झगड़ा भी हुआ.

‘‘अब मेरी लाइफ में तुम्हारा कोई काम नहीं स्वाति,’’ अनंत ने दोटूक बात कही.

और एक दिन गौरव के मोहपाश में बंधी स्वाति चुपचाप घर से चली गई. बस एक खत लिखा अनंत के नाम.

‘गौरव के साथ जा रही हूं. आप ने मुझे बहुत अपनापन दिया. आप की आभारी हूं. मुझे खोजने की कोशिश मत करना.’

स्वाति घर छोड़ कर जा चुकी थी. वह जो कामकाज देख रही थी, अनंत के पापा ने उसे फिर से संभाला. उन्होंने बैंक, लेनदारों और समस्त लेनदेन की जानकारी ली. उन के सामने चौंकाने वाले तथ्य सामने आए. होटल के लाखों रुपए के बिलों का भुगतान किया गया था. 1 करोड़ रुपए से ज्यादा की नक्दी और 50 लाख के जेवर गायब थे. अनंत के परिवार के लिए यह बहुत बड़ा विश्वासघात था. परिवार की ही बहू घर से करोड़ों की नक्दी व जेवर ले कर अपने प्रेमी के साथ चली गई. किसी सदमे से कम न था ये सब.

वक्त धीरेधीरे बड़ेबड़े जख्म भर देता है. 1 साल गुजर चुका था. अनंत का परिवार बहू से मिले जख्म को नियति मान कर सामान्य हो रहा था कि एक दिन वकील का नोटिस मिला. स्वाति ने तलाक का नोटिस भेजा. अनंत के परिवार वाले अवाक रह गए. अब भी कोई कसर बाकी थी. ऐसी कौन सी दुश्मनी थी, जो स्वाति निकाल रही थी. उस ने 10 करोड़ के भरणपोषण राशि की मांग भी की. स्वाति का यह नया रूप किसी वज्रपात से कम न था. आखिर परिवार की इज्जत का सवाल था. फजीहत होते नहीं देख सकते थे. अनंत के मम्मीपापा ने तय किया कि आपसी सहमति से तलाक और भरणपोषण की राशि दे कर स्वाति से छुटकारा पा लिया जाए.

अनंत और स्वाति का तलाक हो गया. 8 करोड़ स्वाति को बतौर भरणपोषण दिए गए.

स्वाति ने गौरव से शादी कर ली. वह खुश थी. नई दुनिया में आ कर, अनापशनाप खर्च, स्वाति को तलाक में मिले करोड़ों रुपए पा कर गौरव भी ऐय्याश हो चला था. उस ने पांचसितारा होटलों में पार्टियों, क्रिकेट सट्टे में रुपए फूंक डाले. गौरव इस कदर ऐय्याश और शराब का आदी हो चुका था कि पैसे के लिए स्वाति से मारपीट करने लगा.

एक दिन अचानक घटना घटी. गौरव बाइक पर जा रहा था कि बस ने उस की बाइक में टक्कर मार दी. वह सड़क पर जा गिरा. पीछे से आ रही दूसरी बस से गौरव के पैर बुरी तरह कुचल गए.

स्वाति को जैसे ही सूचना मिली, वह बदहवास दौड़ी चली आई हौस्पिटल. गौरव को औपरेशन थिएटर ले जाया जा चुका था. गौरव के कुछ अन्य मित्र भी आ चुके थे.

डाक्टर्स की टीम ने स्वाति को बताया कि गौरव की टांगें बुरी तरह कुचली जा चुकी हैं. उन्हें काटना पड़ेगा, क्योंकि वह अब ठीक होने योग्य नहीं है.

स्वाति की आंखों के सामने अंधेरा छा गया. उसे अपनी दुनिया लुटती नजर आई. गौरव के दोनों पैर घुटने के ऊपर तक काटे जा चुके थे.

दुर्घटना में टांगें खो चुके गौरव के लिए यह संभव नहीं था कि मुंबई जैसे महानगर में रह पाए. अपाहिज हो चुका गौरव चिड़चिड़ा हो गया. वह चाहता था कि 24 घंटे स्वाति उस की सेवा में लगी रहे. 1 पल भी दूर न हो. उसे अपनी गुजरी जिंदगी के दिन याद हो जाते. जब स्वाति अनंत को छोड़ कर उस के पास चोरीछिपे दौड़ी चली आती थी. उसे लगने लगा कि स्वाति ने जैसे अनंत के साथ बेवफाई की वैसे उस के साथ भी कर सकती है. वह जरा भी इधरउधर होती, तो झल्ला पड़ता गौरव, ‘‘कहां गई थी? किस से मिलने गई थी? कौन है वह?’’

स्वाति को लगता उस के कानों में किसी ने पिघलता शीशा डाल दिया है. ऐसे शब्दभेदी बाणों से चीत्कार उठता उस का मन. पर करती भी क्या? उस का अतीत ही उस की सजा बन रहा था. उसे अनंत की बड़ी याद आती, पर अब कर भी क्या सकती थी?

धीरेधीरे उन के समक्ष आर्थिक संकट भी खड़ा हो रहा था. गौरव के इलाज पर काफी पैसा खर्च हो चुका था. आखिर दोनों ने तय किया कि दिल्ली लौट जाएंगे. वहीं अपने शहर में कोई कामकाज करेंगे.

गौरव और स्वाति ने दिल्ली जाने का फैसला किया. मुंबई एअरपोर्ट पर दिल्ली के लिए एअर इंडिया की फ्लाइट में  गौरव को व्हीलचेयर पर ले कर आई थी.

वह अपने अतीत को तो खो चुकी थी, अब जो उस के हाथ में था, उस को नहीं खोना चाहती थी.

‘‘ऐक्सक्यूज मी मैडम, आप शायद अपनी बैल्ट बांधना भूल गईं,’’ एअर होस्टेस ने स्वाति से कहा.

‘‘थैंक्स,’’ स्वाति ने इतना ही कहा. उस ने पीछ मुड़ कर देखा अनंत अभी भी बड़े शांत भाव से बैठा था. बगल में बैठी युवती उस के कंधे पर सिर टिका सो रही थी.

स्वाति महसूस कर रही थी जैसे वह आज अपाहिज हो गई है.

Kahaniyan : कंगन – जब सालों बाद बेटे के सामने खुला वसुधा का राज

Kahaniyan : ‘‘अरे,यह कमरे का क्या हाल बना रखा है रुचिता?’’ कमरे के फर्श पर फैले सामान को देख कर वसुधा ने पूछा.

‘‘मां, राघव ने जो हीरे का कंगन दिया था शादी की वर्षगांठ पर नहीं मिल रहा. सारा सामान निकाल कर देख लिया, पता नहीं कहां है. मैं बहुत परेशान हो रही हूं कहीं खो तो नहीं गया. यहीं अलमारी में रखा रहता था… बाकी सब चीजें हैं बस वही नहीं है. राघव को बहुत बुरा लगेगा और नुकसान हो जाएगा सो अलग,’’ रुचिता ने परेशानी भरे स्वर में कहा.

‘‘जाएगा कहां घर में ही होगा तुम ज्यादा परेशान न हो, कहीं रख कर भूल गई होगी, मिल जाएगा,’’ वसुधा ने रुचिता की परेशानी कम करने को बात टाल दी. लेकिन वह भी सोच में पड़ गई कि रुचिता के कमरे में कभी कोई बाहर वाला नहीं जाता, कोरोना की वजह से आजकल सफाईवाली भी नहीं आ रही और रुचिता इतनी लापरवाह भी नहीं कि इतनी कीमती चीज कहीं भी रख दे. फिर कंगन जा कहां सकता है.

यों तो वसुधा और रुचिता दोनों सासबहू थीं, लेकिन आपस में बंधन बिलकुल मांबेटी जैसा था. वसुधा के एक ही बेटा था, राघव, जो आईआईटी से बीटैक कर के अब एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में सीईओ था. जब राघव 5 साल का था तभी उस के मातापिता का तलाक हो गया था, क्योंकि उस के पिता के अपने ही कार्यालय की एक महिला से संबंध थे. वसुधा ने तब से अकेले ही राघव की परवरिश की थी. उस ने राघव को कभी किसी चीज की कमी नहीं होने दी. उसे अच्छे स्कूल में पढ़ाया. राघव पढ़ाई में होशियार था सो उस का चयन आईआईटी में हो गया. वहीं कैंपस प्लेसमैंट भी हो गया और अब 15 साल बाद वह सीईओ बन गया था. इसी बीच वसुधा ने उस के लिए रुचिता को पसंद कर 2 साल पहले दोनों की शादी करवा दी थी. उस ने सोचा अब एक बेटी की कमी पूरी हो जाएगी. रुचिता भी वसुधा को मां की तरह मानती थी. दोनों को देख कर लोग अकसर उन्हें मांबेटी समझते थे.

शाम को जब राघव अपने दफ्तर से लौटा तो रुचिता ने उस से पूछा कि कहीं उस ने वह कंगन कहीं रख तो नहीं दिया. लेकिन राघव ने भी कहा कि उसे कंगन के बारे में कुछ नहीं पता. अब तो रुचिता की सब्र का बांध टूट गया और वह फूटफूट कर रोने लगी.

उसे इस तरह रोता हुआ देख कर राघव ने उसे गले लगा कर कहा, ‘‘अरे क्यों परेशान हो रही हो मिल जाएगा और नहीं मिला तो कोई बात नहीं तुम पर ऐसे कई कंगन कुरबान. चलो रोना बंद करो और अपने हाथ की बढि़या चाय पिलाओ.’’

रुचिता मुंह धो कर चाय बना तो लाई, लेकिन उस का मन ठीक नहीं था. राघव ने उसे बताया कि उस के औफिस के कुछ साथी अगले दिन रात के खाने पर आने वाले हैं. उस ने कहा, ‘‘तुम मां के साथ मिल कर सारी तैयारी कर लेना. रोज तुम्हारे हाथ के बने टिफिन की तारीफ करते हैं सो मैं ने उन्हें घर पर बुला लिया. तुम्हें कोई तकलीफ तो नहीं होगी?’’

‘‘बिलकुल नहीं,’’ रुचिता ने कहा? ‘‘तुम्हारे लिए क्या मैं इतना भी नहीं कर सकती.’’

रुचिता को वैसे भी खाना बनाने का बहुत शौक था और राघव को खाने का. वह रोज नईनई रैसिपी बना कर राघव को खिलाती, वह भी उस के खाने की खूब तारीफ करता.

अगले दिन रुचिता ने सारा घर साफ किया और बढि़या सजावट कर के रसोई में जुट गई. वह जानती थी क्योंकि राघव के दफ्तर के साथ आ रहे थे सो यह उस के मानसम्मान का प्रश्न था. उस ने शाम तक बढि़या स्नैक्स, सूप, मेन कोर्स के लिए दाल मखनी, कड़ाही पनीर, स्टफ्ड टमाटर और दही भिंडी और मीठे में फ्रूट क्रीम बनाई और फिर वह खुद तैयार होने चली गई, आखिर उसे भी तो सीईओ की पत्नी जैसा लगना था.

अभी वह कपड़ों की अलमारी खोल कर सोच ही रही थी कि क्या पहने तभी वसुधा ने आ कर कहा, ‘‘सूट या साड़ी मत पहन लेना कोई राघव की पसंद की ड्रैस निकाल कर पहन लो उसे अच्छा लगेगा.’’

रुचिता खुश हो गई और फिर जल्दीजल्दी तैयार होने लगी. थोड़ी ही देर में राघव के साथ उस की मित्र कनिका और उस के 4 दोस्त आ गए. रुचिता ने सभी का स्वागत किया और सब को बैठा कर सूप और स्नैक्स लेने रसोई में चली गई. इसी बीच वसुधा एक बार सब से मिल कर अपने कमरे में चली गई.

राघव मां को बुलाने गया तो वसुधा ने कहा, ‘‘तुम बच्चे मौज करो मैं यहीं आराम करूंगी. मेरा खाना यहीं भिजवा देना.’’

घर की साजसज्जा देख कर और रुचिता के हाथ का खाना खा कर सब उस की खूब तारीफ कर रहे थे.

राघव भी खुशी से फूला नहीं समा रहा था कि तभी रुचिता की निगाह कनिका के कंगन पर गई अब उस के पैरों तले की जैसे जमीन खिसक गई. वह पहचान गई कि यह वही कंगन है जिसे वह ढूंढ़ रही थी. लेकिन यह कनिका के पास कैसे? तभी उस के दिमाग ने कहा राघव के अलावा कौन दे सकता है पर फिर उस के दिल ने कहा नहीं राघव मु झे धोखा नहीं दे सकता. एक बार फिर उस के दिमाग ने कहा तुम बेवकूफ हो, सुबूत तुम्हारे सामने है और तुम नकारा रही हो. फिर भी रुचिता ने सोचा कि बिना पूरी छानबीन के वह राघव से इस बारे में कोई बात नहीं करेगी. उसे गुस्सा तो बहुत आ रहा था, उस का मन कर रहा था कि इसी समय घर छोड़ कर चली जाए, लेकिन उस ने खुद को संभाला और कनिका के साथ बैठ कर उस से बातें करने लगी. उस ने उस से कई बातें पूछीं जिन से उसे पता चला कि वह एक गरीब घर की महत्त्वाकांक्षी लड़की है. अब वह कनिका को कुछकुछ सम झ रही थी.

इसी बीच मौका पा कर वह सारी बातें अपनी सास को बता आई. वसुधा एक बार फिर अंदर से आ कर सब के साथ बैठ गईं और कनिका को देखती रहीं. वे मान रही थीं कि पूरी गलती उन के बेटे की है, लेकिन उन का अनुभव कह रहा था कि लड़की भी कुछ ठीक नहीं है. उन्होंने सोचा जब अपना ही सिक्का खोटा हो तो दूसरे को क्या दोष देना. वे ये सब सोच ही रही थीं कि सब लोग जाने लगे.

रुचिता राघव से सब को दरवाजे तक छोड़ने के लिए कह कर वसुधा को एक कोने में ले गई और उन से बोली, ‘‘मांजी अभी आप राघव से कुछ मत कहना. मैं इस लड़की के बारे में कुछ और भी पता करना चाहती हूं तब तक हम घर में हमेशा की तरह शांत रहेंगे.’’

वसुधा ने रुचिता के सिर पर हाथ रख कर कहा, ‘‘बेटा तुम जैसा चाहो वैसा करो मैं पूरी तरह तुम्हारे साथ हूं. मेरे बेटे की गलती है और मैं ने इस बात को स्वीकार कर लिया है,’’ कह कर वसुधा सोने अपने कमरे में चली गईं.

मगर उन की आंखों में नींद कहां. उन्हें लगा जैसे एक बार फिर इतिहास अपनेआप को दोहरा रहा है, जो राघव के पिता ने उन के साथ किया वही राघव रुचिता के साथ कर रहा है… आखिर यह अपने बाप की ही औलाद निकला. उन का मन लगातार राघव के प्रति गुस्से से भर रहा था. दूसरी तरफ डर भी लग रहा था कि रुचिता क्या करेगी, इतनी अच्छी लड़की राघव को और इस घर को कभी नहीं मिलेगी. इसी ऊहापोह में उस की आंख लग गई.

सुबह राघव नाश्ता करते हुए रुचिता से कह रहा था, ‘‘कल तो तुम ने मेरी इज्जत में चार चांद लगा दिए. सब मेरी बीवी को देख कर जलफुक गए. मैं बहुत खुश हूं कि मां ने मेरी शादी तुम से करवाई.’’

ये सब सुन कर वसुधा का पारा 7तें आसमान पर था. उन्होंने एक नजर रुचिता की तरफ देखा तो उस ने उसे चुप रहने का इशारा किया. वसुधा चुप बैठी नाश्ता करती रहीं और फिर सिरदर्द का बहाना बना कर अपने कमरे में चली गईं. थोड़ी देर में राघव भी दफ्तर चला गया. अब रुचिता जा कर अपनी सास के पास बैठ गई और उन की गोद में सिर रख कर खूब रोई. रात से सुबह तक का वक्त उस ने कैसे काटा यह वही जानती थी. बारबार उस की इच्छा हो रही थी कि राघव का कौलर पकड़ कर उस से पूछे कि उस ने उस के साथ ऐसा क्यों किया. लेकिन कुछ न कह कर चुप रहने का फैसला उस का अपना था. वसुधा भी रोती हुईं बहू को कोई दिलासा न दे सकीं. बस उस के सिर पर प्यार से हाथ फेरती रहीं और बोलीं कि बेटा मैं तेरे साथ हूं.

जब रो कर रुचिता का मन हलका हो गया तब वसुधा ने उस से पूछा, ‘‘अब तुम क्या करने की सोच रही हो? तुम ने राघव से कुछ कहा क्यों नहीं?’’

इस पर रुचिता बोली, ‘‘मेरी मां हमेशा कहती हैं कि एक औरत घर बिगाड़ भी सकती है और बना भी सकती है, मैं उन की बात को आजमा कर देखना चाहती हूं. मैं कोई भी फैसला सोचसम झ कर ठंडे दिमाग से करना चाहती हूं. इसीलिए मैं ने एक जासूस से बात की है. मैं पहले राघव और कनिका के बीच के संबंधों की गंभीरता जानना चाहती हूं और ये भी कि यह कनिका कैसी लड़की है, जो एक शादीशुदा आदमी से चक्कर चला रही है. अगर राघव को वापस लाने का कोई भी रास्ता है तो मैं उस पर चलना चाहती हूं, क्योंकि मैं ने आज तक सिर्फ उसी से प्यार किया है.’’

उस की बातें सुन कर वसुधा का दिल उस के लिए असीम स्नेह और सम्मान से भर गया और उस ने फिर रुचिता को गले लगा कर कहा, ‘‘बेवकूफ है मेरा बेटा जो हीरे जैसी पत्नी को छोड़ कर किसी और लड़की के पीछे भाग रहा है. एक बात हमेशा याद रखना मैं ने तुम्हें बहू नहीं बेटी माना है और मैं हमेशा ठीक उसी तरह तुम्हारा साथ दूंगी जैसे मुसीबत में अपनी बेटी का देती.’’

2-3 दिन यों ही निकल गए. वसुधा रुचिता के साथ एक मजबूत स्तंभ की तरह खड़ी रहीं ठीक वैसे ही जैसे उस की अपनी मां उस के साथ रहतीं. चौथे दिन राघव के औफिस जाने के बाद वह जासूस रुचिता से मिलने आया और उसे कुछ चित्रों के साथ कनिका के बारे में सारी जानकारी दे गया. उस ने ध्यान से वे सारे कागज देखे और एक प्लान बना कर वसुधा को उस में शामिल कर लिया.

रुचिता जानती थी कि राघव की कंपनी में सब की तनख्वाह के खाते ऐक्सिस बैंक में हैं सो उस ने एक नए नंबर से ऐक्सिस बैंक कर्मचारी बन कर कनिका को फोन लगाया और उस से कहा कि लकी ड्रा में उस का एक लंच कूपन निकला है. 2 महिलाओं के लिए और अगर वह आना चाहती है तो बैंक ताज होटल में उस के लिए जगह आरक्षित करेगा.

ताज का नाम सुन कर कनिका फंस गई और उस ने हां कह दिया. रुचिता ने अगले

दिन के लिए दो टेबल बुक करवाईं और सब से पहले ताज पहुंच गई. कनिका भी शर्त के अनुसार अपनी एक सहेली को ले कर पहुंची. इधर वसुधाजी राघव को लंच ताज में करने के लिए यह कह कर ले गईं कि रुचिता बाहर गई है सहेलियों के साथ और वे बोर हो रही है.

राघव को उन की बात अजीब तो लगी थी, लेकिन मां ने कहा है, यह सोच कर उस ने ज्यादा दिमाग नहीं लगाया. जैसे ही रुचिता ने देखा कि सब आ गए हैं उस ने वसुधा को फोन मिलाया और खुद जा कर कनिका के बराबर बैठ गई. उस ने वसुधा को पहले ही सम झा दिया था कि फोन का स्पीकर चला कर सारी बातें राघव को सुनवा दें.

यों अचानक रुचिता को देख कनिका बुरी तरह चौंक गई, वह कुछ बोलने को ही थी कि चित्र उस के सामने रख दिए. उन्हें देख कर तो कनिका जड़ हो गई. अब उस ने कुछ बोलते नहीं बन रहा था. बड़ी मुश्किल से बस इतना बोली कि ये आप के पास कैसे? रुचिता ने जवाब में कहा कि तुम ने मेरे पति को मु झ से छीनने की कोशिश की है, कुछ तो मु झे भी करना ही था सो मैं ने तुम्हारा पूरा कच्चा चिट्ठा निकलवा लिया, यही नहीं तुम्हारे घर का पता भी. सोच रही हूं ये सभी तसवीरें तुम्हारे मातापिता को भेज दूं. आखिर उन्हें भी तो पता चले शहर में उन की लड़की कितनी मेहनत कर रही है. कितनी मेहनत से राघव को फंसा कर उन के पैसे से अपने महंगेमहंगे शौक पूरे कर रही है.

अब तो कनिका की हालत खराब हो गई. उस ने लड़खड़ाती जबान से कहा, ‘‘नहीं, ऐसा मत कीजिएगा मेरे मांबाप शर्र्म से मर जाएंगे. मैं यह नौकरी छोड़ दूंगी और आप लोगों को कभी अपनी शक्ल नहीं दिखाऊंगी. मैं आप के पति से बिलकुल प्यार नहीं करती. वह तो मेरे महंगे शौक पूरे कर रहा था इसलिए…’’

इस से ज्यादा राघव सुन नहीं सका और उठ कर उन की मेज पर आ कर खड़ा हो गया. उस की निगाह उन तसवीरों पर पड़ी तो उस की आंखों में गुस्सा और पश्चात्ताप दोनों साथ दिखाई दिए. उस ने देखा रेस्तरां लोगों से भरा हुआ है तो उस ने कनिका को सिर्फ वहां से चले जाने का इशारा किया- लेकिन रुचिता ने हाथ पकड़ कर उसे रोक लिया और उस से कहा कि मेरी एक और चीज तुम्हारे पास है, अब रुचिता की निगाह उस के हाथ के कंगन पर थी. कनिका ने जल्दी से वो कंगन उसे वापस किया और वहां से निकल गई.

राघव ने कुछ कहना चाहा ही था कि रुचिता ने उस से कहा, ‘‘आशा करती हूं तुम्हें सम झ आ गया होगा कि कोई जब विश्वासघात करता है तब कैसा लगता है. चलो बाकी बातें घर जा कर करेंगे, सब देख रहे हैं.’’

घर पहुंचे तो वसुधा बेटे पर टूट पड़ीं. बोलीं, ‘‘तूने मु झे बहू को मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा. मु झे तु झ पर कितना नाज था, लेकिन तू भी अपने बाप जैसा निकला. बचपन से ले कर आज तक तू अपने बाप से नाराज है, लेकिन तु झ में और उन में क्या फर्क है? उन्होंने भी अपनी पत्नी और बच्चे के साथ धोखा किया और तूने भी अपनी पत्नी के साथ धोखा किया. आखिर तू है तो उन्हीं की औलाद.’’

सुन कर राघव फूटफूट कर रोने लगा और अपने घुटनों पर बैठ कर वसुधा से बोला, ‘‘ऐसा न कहो मां मैं तुम्हारा बेटा हूं उन का नहीं. मु झ से बहुत बड़ा गुनाह हो गया मां मु झे माफ कर दो… मु झे माफ कर दो.’’

‘‘माफी मांगनी है तो बहू से मांग… तू उस का गुनहगार है. अगर उस ने तु झे माफ कर दिया तो मैं भी कर दूंगी और अगर वह घर छोड़ कर गई तो मैं भी अपनी बेटी के पास चली जाऊंगी,’’ वसुधा ने कठोर स्वर में कहा.

राघव रुचिता की ओर बढ़ा और उस का हाथ पकड़ कर बोला, ‘‘रुचिता, वैसे तो मैं माफी मांगने लायक नहीं हूं पर फिर भी क्या तुम मु झे माफ कर पाओगी? मैं वादा करता हूं भविष्य में कभी तुम्हें शिकायत का मौका नहीं दूंगा. क्या तुम एक बार इसे मेरी पहली और आखिरी गलती सम झ कर माफ नहीं कर सकतीं?’’

रुचिता ने कुछ रुक कर कहा, ‘‘मैं तुम से प्यार करती हूं और यह भी सच है कि इस शादी को एक और मौका देना चाहती हूं, लेकिन ये सब भूल कर एक नई शुरुआत करने के लिए और तुम्हें माफ करने के लिए मु झे कुछ वक्त चाहिए. आशा करती हूं तुम समझोगे.’’

‘‘हां रुचि तुम्हें जितना वक्त चाहिए ले लो, लेकिन मु झे छोड़ कर मत जाना. मु झे तुम्हारी जरूरत है. मैं इंतजार करूंगा उस दिन का जब तुम मु झे माफ कर दोगी,’’ राघव ने राहत की सांस लेते हुए कहा.

रुचिता ने अपनी सास की तरफ देख कर कहा, ‘‘मां सास होने के बावजूद आप ने अपने बेटे का नहीं मेरा साथ दिया… मैं किन शब्दों में आप का धन्यवाद दूं.’’

वसुधा उस के माथे को चूमते हुए बोलीं, ‘‘तुम बहुत सम झदार हो बेटा. अपनी सू झबू झ से तुम ने यह घर टूटने से बचा लिया… मैं ने वही किया जो मैं अपनी बेटी के लिए करती. हम अकसर कहते हैं बहू कभी बेटी नहीं बन सकती, जबकि सच यह है कि अधिकतर सासें ही कभी मां नहीं बन पातीं, अगर सासें मां बन जाएं तो बहुएं अपनेआप बेटियां बन जाएंगी.

Kahaniyan : एक बेटी तीन मांएं – कैसे हो गई तूलिका और आशुतोष की जिंदगी बेहतर

Kahaniyan : 90 के दशक के बीच का दौर था. वरुण आईआईटी से कंप्यूटर साइंस में बीटैक कर चुका था. उसे कैंपस से सालभर पहले ही नौकरी मिल चुकी थी. उसे इंडिया की टौप आईटी कंपनी के अतिरिक्त अमेरिका की एक स्टार्टअप कंपनी से नौकरी का औफर था.

वरुण के मातापिता चाहते थे कि उन का बेटा इंडिया में ही नौकरी करे, पर वरुण अमेरिका जाना चाहता था. अमेरिकी कंपनी उसे बेहतर वेतन औफर कर रही थी. इकलौते बेटे की खुशी के लिए मातापिता ने उस के अमेरिका जाने के लिए हामी भर दी.

वरुण के अमेरिका जाने के एक हफ्ते पहले उस के घर पर पार्टी थी. वरुण के मित्रों के अलावा मातापिता के मित्र और कुछ करीबी रिश्तेदार भी थे. उन दिनों अमेरिका में आईटी की स्टार्टअप कंपनियों का बोलबाला था. पार्टी में उस के पिता के एक करीबी मित्र की बेटी तूलिका भी आई हुई थी. इत्तफाक से उस ने भी इसी वर्ष इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की थी. वह भी अमेरिका जा रही थी.

तूलिका देखने में सुंदर और स्मार्ट थी. उसे एक भारतीय आईटी कंपनी ने अपने अमेरिका औफिस में पोस्ट किया था. दोनों का उसी पार्टी में परिचय हुआ. दोनों अपने अमेरिकन ड्रीम्स की बातें करने लगे. वहां डौटकौम बूम चल रहा था. नैसडैक दुनिया का दूसरा सब से बड़ा शेयर ऐक्सचेंज है. उस समय आईटी शेयरों की कीमत में भारी उछाल आया था. भारत से हजारों इंजीनियर अमेरिका जा रहे थे.

वरुण और तूलिका दोनों 2 हफ्ते के भीतर अमेरिका में थे. वरुण अमेरिका के पश्चिमी छोर कैलिफोर्निया में था जबकि तूलिका पूर्वी छोर पर न्यूयौर्क में. दोनों के राज्य अलगअलग टाइमजोन में थे. न्यूयौर्क कैलिफोर्निया की तुलना में 3 घंटे आगे था. मतलब जब कैलिफोर्निया में सुबह के 7 बजते तो न्यूयौर्क में 10 बजते. पर दोनों हमेशा कौंटैक्ट में रहे. लंबी छुट्टियों में दोनों एकदूसरे से मिलते भी थे. धीरेधीरे दोनों एकदूसरे को पसंद करने लगे.

इधर भारत में वरुण और तूलिका दोनों के मातापिता उन की शादी की बात कर रहे थे. हालांकि दोनों अलग जातियों के थे पर दोनों पक्षों के लिए यह कोई माने नहीं रखता था. दोनों परिवार उदारवादी, आधुनिक विचार वाले थे. उन्होंने अपने बच्चों की राय भी ली थी. वरुण और तूलिका को तो बिन मांगे मनचाहा मिल रहा था. वरुण और तूलिका की शादी पक्की हो गई. वे 3 हफ्ते की छुट्टी ले कर भारत आए और शादी के बाद दोनों अमेरिका लौट गए.

अमेरिका में वरुण और तूलिका को कुछ समय के लिए अलगअलग रहना पड़ा था. उस के बाद तूलिका को भी उस की कंपनी ने कैलिफोर्निया औफिस में पोस्ट कर दिया. फिर दोनों एकसाथ खुशीखुशी रह रहे थे. दोनों का वेतन भी अच्छा था. 2 साल के भीतर तूलिका ने एक पुत्र को जन्म दिया. दोनों ने मिल कर बड़ा डुप्लैक्स घर खरीद लिया. महंगी गाडि़यां, फर्नीचर आदि से घर को अच्छी तरह सजा लिया. घर, गाडि़यां और कुछ अन्य कीमती सामान सभी किस्तों पर खरीदे गए थे. सबकुछ मजे में चल रहा था.

देखतेदेखते 4 साल बीत गए. अचानक डौटकौम का बुलबुला फटना शुरू हुआ. छोटीछोटी स्टार्टअप कंपनियां बंद होने लगीं. कुछ अच्छी कंपनियों को बड़ी कंपनियों ने खरीद लिया. हजारों सौफ्टवेयर इंजीनियरों की छंटनी होने लगी थी. बड़ी कंपनियों ने भी काफी इंजीनीयर्स की छंटनी की. इसी दौरान तूलिका को कंपनी ने ले औफ (छंटनी) कर दिया. पर चूंकि वरुण अभी नौकरी में था, इसलिए किसी तरह खींचतान कर घर चल रहा था. बड़ी मुश्किल से वह घर और गाड़ी की ईएमआई दे पा रहा था, पर घर के अन्य खर्चों में कटौती करनी पड़ती थी.

अंगरेजी में एक कहावत है- ‘मिसफौरचून नेवर कम्स अलोन.’ चंद महीनों के अंदर वरुण का भी ले औफ हो गया. अब दोनों मियांबीवी बेरोजगार हो गए थे. गनीमत थी कि दोनों को छंटनी के समय कुछ मुआवजा मिला. सो, कुछ महीने तक गुजारा हो सका था. यह अच्छा रहा कि उस समय तक दोनों को अमेरिका का ग्रीनकार्ड मिल चुका था. वरना सबकुछ औनीपौनी कीमत पर बेच कर भारत वापस आना पड़ता. वरुण कुछ बच्चों को होम ट्यूशन पढ़ाता था जिस से कुछ आमदनी हो जाती थी. फिर भी उन को पैसों की काफी कमी रहती थी.

इस बीच, तूलिका जिस कंपनी में काम करती थी उस का मालिक एक अमेरिकन था- हडसन. उस की उम्र 40 वर्ष से कुछ कम रही होगी. उस की शादी के 10 वर्षों बाद भी कोई बच्चा नहीं था. दोनों मियांबीवी एक बच्चा चाहते थे, पर मिसेज हडसन इस में सक्षम नहीं थीं. उन्हें एक सैरोगेट मदर की तलाश थी. एक दिन उन्होंने तूलिका और वरुण दोनों को डिनर पर घर बुलाया.

वरुण और तूलिका अपने बेटे आशुतोष के साथ हडसन के घर गए. हडसन दंपती ने उन का गर्मजोशी से स्वागत किया. आशुतोष उन की पालतू बिल्ली के साथ खेलने लगा. हडसन ने प्यार से उसे कहा,‘‘हाउ क्यूट बौय.’’

मिसेज हडसन बोलीं, ‘‘तुम लोगों को बहुत जरूरी काम से याद किया है हम ने. तुम लोग बुरा न मानना, एक रिक्वैस्ट है हमारी. हम दोनों पतिपत्नी संतानहीन हैं और एक सैरोगेट मदर की तलाश में हैं. तूलिका, तुम अगर चाहो तो हमें बच्चा दे सकती हो.’’

तूलिका बोली, ‘‘भला मैं इस में क्या मदद कर सकती हूं?’’

हडसन बोला, ‘‘मेरी पत्नी मां नहीं बन सकती. पर तूलिका, अगर तुम चाहो तो यह कार्य कर सकती हो सैरोगेट मदर बन कर. यह सिर्फ हमारा विनम्र निवेदन है. तुम इस पर विचार कर के बता देना बाद में.’’

तूलिका और वरुण एकदूसरे का मुंह देखने लगे. मिसेज हडसन बोलीं, ‘‘तुम को शायद पता है कि नहीं, कैलिफोर्निया एक सैरोगेसी फ्रैंडली राज्य है. यहां कमर्शियल सैरोगेसी वैध है.’’

तूलिका बोली, ‘‘मिसेज हडसन, आप को शायद पता हो, हम भारतीय मातृत्व का सौदा नहीं करते.’’

‘‘मैं जानती हूं तूलिका. इसीलिए शुरू में ही हडसन ने कहा था कि यह हमारी विनम्र प्रार्थना है. पर हम यह भी जानते हैं कि तुम लोग दिल से बहुत उदार होते हो. मैं तुम्हें पैसों का लालच नहीं दे रही हूं, पर मातृसुख प्रदान करने की भिक्षा मांग रही हूं. निर्णय तुम लोगों का होगा और तुम्हारा इनकार भी हमें खुशीखुशी स्वीकार होगा, क्योंकि ऐसा फैसला लेना नामुमकिन तो नहीं मगर बहुत मुश्किल जरूर है. तुम लोग एक बार ठीक से सोच कर अपना फैसला बता देना.’’

वरुण और तूलिका अपने घर आ गए. तूलिका ने वरुण से कहा, ‘‘मिसेज हडसन अमीर होंगी, पर उन्होंने कैसे सोच लिया कि मैं अपनी कोख बेच सकती हूं?’’

वरुण बोला, ‘‘उन्होंने सिर्फ हम से मदद मांगी है, फैसला तो हमें लेना है.’’

इधर वरुण और तूलिका की आर्थिक कठिनाइयां कम होने का नाम नहीं ले रही थीं. लगभग एक साल से दोनों बेकार थे. अभी तक नौकरी की कोई उम्मीद नहीं थी. वरुण ने तूलिका से कहा, ‘‘अगर एकाध महीने में जौब नहीं मिलती है तो इंडिया लौटना होगा. यहां की सारी प्रौपर्टी बेच कर भी शायद लोन पूरा न चुका सकें.’’

‘‘स्लोडाउन का असर तो अभी इंडिया में भी होगा. वहां भी ले औफ हुए हैं और काफी लोग बैंच पर हैं. हो सकता है नौकरी मिल भी जाए तो सैलरी बहुत कम ही मिलेगी,’’ तूलिका ने कहा.

वरुण डरतेडरते बोला, ‘‘क्यों न एक बार हडसन दंपती के प्रस्ताव पर गौर करें. अब तो आशुतोष को भी स्कूल भेजना है. मुझे सब से ज्यादा चिंता बेटे के भविष्य को ले कर हो रही है. सैरोगेसी से यहां 40 हजार डौलर तो मिल ही सकते हैं.’’

तूलिका ने बिगड़ कर कहा, ‘‘तो तुम मेरी कोख बेचना चाहते हो? मुझे यह पसंद नहीं.’’

‘‘इसे तुम उन की मदद करना समझो, खरीदबिक्री तो मुझे भी पसंद नहीं है. हां, इस के बदले हो सकता है वे हमारी भी मदद करना चाहते हों. और हम दोनों को जो बनना था, बन गए हैं. अब हमें बेटे को पढ़ालिखा कर अच्छा बनाना है. उस के लिए पैसा तो चाहिए ही.’’

उस रात को दोनों ने करवटें बदल कर काटा. एकतरफ  सैरोगेसी का प्रश्न तो दूसरी ओर बेरोजगारी और आर्थिक तंगी तथा अमेरिका छोड़ने का संकट. बहुत गौर करने के बाद दोनों हडसन दंपती का प्रस्ताव स्वीकार करने पर तैयार हुए. तूलिका ने कहा कि वह अपना अंडाणु नहीं देगी. उस का इंतजाम हडसन को करना होगा.

हडसन दंपती को जब यह फैसला बताया गया तो 10 मिनट तक वे फोन पर उन्हें धन्यवाद देते रहे. उन की आंखों के आंसू को तूलिका और वरुण देख तो नहीं सकते थे पर उन की आवाज से ऐसा महसूस किया तूलिका ने कि हडसन दंपती जैसे रो पड़े हों. उस दिन शाम को हडसन दंपती वरुण के घर आए. वे साथ में पूरे परिवार के लिए काफी उपहार भी लाए थे.

मिसेज हडसन बोलीं, ‘‘तुम्हारा शुक्रिया अदा करने के लिए हमारे पास शब्द नहीं हैं. पर बुरा न मानना, इस के बदले में तुम जो रकम उचित समझो, मांग सकती हो. हमारे यहां औरतें अपने फिगर पर ज्यादा ध्यान देती हैं, इसलिए जल्द सैरोगेट मदर के लिए तैयार नहीं होतीं.’’

तूलिका बोली, ‘‘देखिए मिसेज हडसन, मैं ने पहले दिन ही कहा था कि मैं कोई खरीदफरोख्त नहीं चाहती हूं.’’

‘‘यह लीगल है, तुम्हारा हक है.’’

तब बीच में वरुण बोला, ‘‘हडसन, हम लोग इसे सौदा न कह कर एकदूसरे की मदद का रूप देना चाहते हैं.’’

हडसन बोला, ‘‘वह कैसे?’’

‘‘जब तक हमें नौकरी नहीं मिलती है, आप हमारे घर और कार की ईएमआई व बच्चे की फीस देते रहेंगे और कुछ नहीं. जिस दिन मुझे नौकरी मिल जाएगी, उस के बाद हम अपनी किस्त खुद जमा करेंगे.’’

‘‘नहीं, यह तो कुछ भी नहीं हुआ. मैं ऐसा करता हूं फौरन एक साल की सारी ईएमआई और तुम्हारे परिवार का मैडिकल इंश्योरैंस का प्रीमियम जमा कर देता हूं. वैसे भी डिलिवरी तक तूलिका का सारा खर्च हमें ही उठाना है.’’

अब हडसन दंपती को एक ऐसी महिला की खोज थी जो अपना एग्स (अंडाणु) डोनेट करे. उन्होंने एक सैरोगेसी क्लिनिक से संपर्क किया. कुछ ही दिनों में एक अमेरिकी युवती इस के लिए मिल गई. एक सैरोगेसी का अनुबंध तैयार किया गया जिस पर एग डोनर, सैरोगेट मदर और भावी मातापिता सब ने हस्ताक्षर किए. प्रसव के बाद हडसन दंपती ही बच्चे के कानूनी मातापिता होंगे. हडसन के शुक्राणु और उस युवती के एग्स को आईवीएफ तकनीक के जरिए क्लिनिक में फर्टिलाइज कर भ्रूण को तूलिका के गर्भ में प्रत्यार्पित किया गया. सैरोगेसी की बात गुप्त रखी गई थी.

तूलिका और वरुण का बेटा आशुतोष अब स्कूल जाने लगा था. तूलिका के गर्भ में बच्चे का समुचित विकास हो रहा था. 3 महीने के बाद अल्ट्रासाउंड में पता चला कि तूलिका के गर्भ में एक बच्ची पल रही है. हडसन दंपती को बेटा या बेटी से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला था.

इधर मां में आए बदलाव को देख कर आशुतोष पूछता तो तूलिका ने आशुतोष को बता दिया कि उस की एक छोटी बहन घर में आने वाली है. आशुतोष ने अपने स्कूल में अपने दोस्तों को बता दिया था कि जल्द ही उस के साथ खेलने वाली उस की बहन होगी.

जैसेजैसे प्रसव का समय नजदीक आ रहा था, तूलिका के मन में ममत्व जागृत होने लगा. यह सोच कर कि 9 महीने तक जिसे अपनी कोख में रखा उसे प्रसव के बाद हडसन दंपती को सौंपना होगा, वह उदास हो जाती थी.

आखिर वह दिन भी आ गया. तूलिका ने एक सुंदर, स्वस्थ कन्या को जन्म दिया. पर तूलिका ने उसे अपना दूध पिलाने से मना कर दिया. ऐसा उस ने सिर्फ यह सोच कर किया कि अपना दूध पिलाने के बाद वह बच्ची को अपने से जुदा नहीं कर पाएगी. वैसे भी बच्ची को छोड़ कर खाली गोद लौटना काफी दुखभरा था तूलिका के लिए. उधर उस का बेटा आशुतोष घर पर बहन की उम्मीद लगाए बैठा था. बहुत मुश्किल से उस को वरुण ने किसी तरह चुप कराया कि बहन को डाक्टर नहीं बचा पाए.

बच्ची को ले जाते समय मिसेज हडसन ने पूछा, ‘‘तूलिका, अगर यह बेबी तुम्हारे पास होती तो तुम इस का क्या नाम रखती?’’

तूलिका ने बिना देर किए कहा, ‘‘मैं इस का नाम सीता रखती.’’

‘‘ठीक है, मैं भी बेबी का नाम सीता ही रखूंगी.’’

मिसेज हडसन सीता को गोद में उठा कर चूमने लगीं. वरुण और तूलिका को धन्यवाद देते हुए हडसन दंपती सीता को ले कर अपने घर आए.

तूलिका अस्पताल से डिस्चार्ज हो कर घर आई. उसे सीता से बिछुड़ने का दुख तो था पर साथ में सीता के जन्म के समय ही वरुण को अच्छी सौफ्टवेयर कंपनी में औफर मिलने की खुशी भी थी. इधर, कुछ दिनों से सौफ्टवेयर कंपनियों के अच्छे दिन लौटने लगे थे.

तूलिका घर पर कुछ दिनों तक उदास रही. उस ने एक दिन वरुण से कहा, ‘‘एक तरह से तो सीता की 3 मांएं हुईं. एक मां जिस ने अपना अंडाणु दिया उस की बायोलौजिकल मां, दूसरी उस की सैरोगेट मां यानी मैं और तीसरी मां मिसेज हडसन जो कानूनन असली मां कहलाएंगी. पर सच कहो तो मैं ही उस की असली मां हूं. मैं ने 9 महीने तक उस को हर पल कोख में महसूस किया है.’’

वरुण ने स्वीकार करते हुए सिर हिलाया था. ठीक उसी समय हडसन का फोन आया, ‘‘मैं ने नई सौफ्टवेयर कंपनी खोली है. सीता टैक्नोलौजी नाम रखा है कंपनी का. तूलिका का उस में 5 प्रतिशत हिस्सा रहेगा और वह जब स्वस्थ महसूस करे, कंपनी जौइन कर सकती है.’’

वरुण बोला, ‘‘लो, अब खुश हो जाओ, सीता नाम के साथ तुम जुड़ी रहोगी.’’

तूलिका अपने दुपट्टे से आंसू पोंछते हुए हंसने लगी.

Kahaniyan : जय हो खाने वाले बाबा की

Kahaniyan :  घरपहुंचते ही हम ने देखा कि हमारी श्रीमतीजी अपने सामने छप्पन भोग की थाली लिए गपागप खाए जा रही थीं.

हम उन्हें देख कर खुशी से गुब्बारे की तरह फूल गए. हमारी श्रीमतीजी इतनी दुबलीपतली हैं कि एक बार उन्हें ले कर हम रेलवे स्टेशन पर गए तो वहां कमाल हो गया. वहां तोलने वाली मशीन पर उन्होंने अपना वजन जानने की जिद की तो हम ने मशीन में 1 रुपए का सिक्का डाला और उन को मशीन पर खड़ा कर दिया. थोड़ी देर में मशीन से टर्रटर्र की आवाज आई और एक टिकट निकल कर बाहर आया. उस पर लिखा था कि मुझ से मजाक मत करो. पहले मशीन पर खड़े तो हो जाओ. हम ने माथा ठोंक लिया.

श्रीमतीजी कहने लगीं, ‘‘यह मशीन झूठ बोलती है. आप खड़े हो जाइए, फिर देखते हैं कि मशीन क्या बोलती है.’’

हम ने 1 रुपए का सिक्का पुन: डाला. टर्रटर्र की आवाज के साथ एक टिकट निकला, जिस पर लिखा था कि 2 व्यक्ति एकसाथ खड़े न हों.

गुस्से में हम ने सोचा कि एक लात मशीन को मार दें, लेकिन हम जानते थे कि चोट हमारे ही पांव में लगेगी. इसलिए हम अपनी श्रीमतीजी को प्लेटफार्म घुमा कर लौट आए.

घर आ कर हम ने उन से खूब कहा कि आप खाना खाया करो, टौनिक पीया करो, लेकिन उन्होंने मुंह फेरते हुए कहा, ‘‘मेरी बिलकुल भी इच्छा नहीं होती है खाना खाने की.’’

हम उन के इस तरह दुबले होने से बेहद चिंतित थे लेकिन एक दिन जब हम शाम को घर आए और अपने सामने छप्पन भोग लगाए उन्हें गपागप खाते देखा तो हमारी बड़ी इच्छा हुई कि नाचने लगें, लेकिन शांति बनाए रहे.

प्रसन्न मुद्रा में हम ने श्रीमतीजी को देखा तो उन्होंने हमें भी छप्पन भोग खाने के लिए इशारा किया. हम ने शरीफ पति की तरह मना कर दिया. तभी परदे की ओट से किसी की हंसी की आवाज आई. हम तो डर ही गए. फिर देखा तो सामने सासूमां खड़ी थीं.

‘‘अरे, आप कब आईं?’’

‘‘आप जब सुबह औफिस गए थे, तब आई थी.’’

‘‘आप ने आने की खबर क्यों नहीं दी?’’

‘‘सोचा सरप्राइज दूंगी,’’ कह कर वे पुन: जोर से हंस पड़ीं.

‘‘अचानक कैसे आना हुआ?’’

‘‘अपने भाई के घर जा रही थी, सोचा सरला से भी मिलती चलूं… यह तो बहुत ही दुबली हो गई है.’’

‘‘फिर आप ने ऐसा क्या किया कि छप्पन भोग बनाते ही इन्हें भूख लग आई?’’ हम ने आगे बात को जोड़ते हुए कहा.

‘‘आप की यही बहुत बुरी बात है कि आप किसी की सुनते नहीं. हमारी बात खत्म तो हो जाने देते,’’ उन्होंने तनिक नाराजगी के साथ कहा.

‘‘आप ही बात पूरी कर लीजिए,’’ कहते हुए हम सोफे पर पसर गए.

सासूमां ने बात आगे बढ़ाई, ‘‘मैं सुबह आई तो सरला को इतना दुबला देख कर

चकित रह गई. मैं ने इस से पूछा भी कि आखिर बात क्या है? तो इस ने कहा कि कुछ भी नहीं. मैं बड़ी परेशान थी. अचानक मुझे ध्यान आया कि आप के शहर में खाने वाले बाबा का बड़ा नाम है.’’

‘‘खाने वाले बाबा?’’ हम ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘जी हां, खाने वाले बाबा. उन का बड़ा प्रताप है. उन के पास सभी प्रकार की समस्याओं के लिए एक ही इलाज होता है.

यदि किसी की ग्रहदशा खराब हो तो वे कुत्ते से ले कर सूअर तक को खाना खिलाने को कहते हैं…’’

वे कुछ और कहतीं कि हम ने बीच में बात काट दी, ‘‘सासूमां, कुत्ता तो गले से उतर रहा है, लेकिन सूअर वाली बात…’’

‘‘आप भी क्या दामादजी बाल की खाल निकालते हैं,’’ कह कर वे झेंप गईं. फिर कहने लगीं, ‘‘बस मैं सरला को ले कर बाबाजी के दरबार में गई. पूरे 2,100 रुपए की 2 रसीदें कटवाईं और उन के सामने हाजिर हो गई. उन्होंने हमें 3 मिनट का समय दिया. वाह, क्या दरबार भरा था. होंगे हजार लोग, सब हाथ जोड़े खाने वाले बाबा की महिमा का गुणगान कर रहे थे.

‘‘एक ने बताया कि बाबाजी आप ने कहा था कि कौओं को हलवा खिलाओ, इसलिए 1 दर्जन कौओं को खोज कर 3 किलोग्राम असली घी का हलवा खिला दिया. लेकिन बाबाजी सुबह वे सब मर गए.

‘‘बाबाजी जोर से हंस दिए और कहने लगे कि बेटा, तेरे दुखदरिद्र खत्म हो गए. अब तेरी विजय ही विजय है. वह भक्त वहीं खड़ाखड़ा कांपते हुए नाचने लगा.

‘‘अगले भक्त ने बताया कि बाबाजी आप ने मुझे पड़ोसी को भोजन कराने की सलाह दी थी. कहा था पकौड़े खिलाना.

‘‘‘खिलाए या नहीं?’

‘‘‘खिलाए बाबाजी.’

‘‘‘फिर क्या हुआ?’

‘‘‘बाबाजी उस ने सुबह आ कर खूब जूते मारे.’

‘‘‘क्यों?’

‘‘‘पूरे घर वालों को दस्त लग गए थे.

वह बहुत गुस्से में था. मैं ने चुपचाप जूते खा लिए बाबाजी.’

‘‘‘ठीक किया. बेटा, ये जूते तुझे नहीं उस प्रेत आत्मा को पड़े जो तुझे आगे बढ़ने से रोक रही थी. अब वह चली गई है. तेरा भाग्य उदय होने को है, समझा? वह भक्त भी तक धिना तक कह के नाचने लगा.

‘‘जब हमारी बारी आई तो मैं ने बताया कि मेरी बेटी सरला के पास सब कुछ है, फिर भी इसे भूख नहीं लगती. यह ठीक से कुछ खाती नहीं है.

‘‘बाबाजी ने मुझ से कहा कि माताजी पूरे छप्पन मीठे भोग बना कर 2 दिनों तक खिलाओ, उस के बाद प्रताप देखना.

‘‘बाबाजी की जय हो, कह कर हम मांबेटी ने 1 मिनट तक वहां भरतनाट्यम किया और फिर घर आ गईं.

‘‘घर आ कर मैं ने छप्पन भोग बनाए और बाबाजी का चमत्कार देखिए कि बेटी कैसे गपागप चट कर रही है. जय हो खाने वाले बाबाजी की,’’ कह कर सासूमां ने आंखें बंद कीं और हाथ जोड़ लिए.

‘‘तो 1 सप्ताह तक छप्पन भोग बनेंगे?’’

‘‘1 सप्ताह नहीं, मात्र 2 दिनों तक,’’ हमारी सासूमां ने कहा.

छप्पन भोग का सेवन करती हुई श्रीमतीजी को देख कर हमारी खुशी का ठिकाना न रहा. हमारा मन बारबार खाने वाले बाबा की जय करने को हो रहा था. वास्तव में देश में, परिवार में ऐसे चमत्कार बाबा और सिर्फ बाबा ही कर सकते हैं.

रात में सासूमां ने हमें नींद से जगाया और घबराए स्वर में कहने लगीं, ‘‘सरला बेटी अजीबोगरीब हरकतें कर रही है.’’

नागिन की तरह फर्श पर बलखाती श्रीमतीजी को देख कर हम दंग रह गए.

‘‘क्या हो गया प्रिय?’’ हम चीखे.

उन्होंने हमें फटीफटी आंखों से ऐसे देखा जैसे कोई इच्छाधारी नागिन हो. अचानक हमें ध्यान आया कि यही इच्छाधारी नागिन हमारी श्रीमतीजी के पेट में थी, जो खानेपीने नहीं दे रही थी. सासूमां अगरबत्ती जला लाई थीं. श्रीमतीजी अभी भी ऐंठ रही थीं.

हमें कुछ शक हुआ कि मामला कुछ उलटा है. हम ने अपने घर के फैमिली डाक्टर को फोन लगाया तो वे बेचारे तुरंत आ गए. श्रीमतीजी को अस्पताल में भरती कर जांच की गई. पता चला कि इतना खाने की आदत नहीं थी.

बाबाजी के आदेश के चलते जबरदस्ती खा लिया इसलिए बदहजमी हो गई. शुगर टैस्ट किया तो श्रीमतीजी डायबिटीज की मरीज भी निकलीं. मीठा खाने से शुगर लैवल अत्यधिक बढ़ गया था.

वह तो भला हो डाक्टर झटका का, जिन्होंने सही समय पर चिकित्सा कर दी. सब से बुरी स्थिति तो हमारी सासूमां की थी, जो एक ओर मुंह पर पल्ला किए खाने वाले बाबा को कोस रही थीं.

यदि उन की बेटी को कुछ हो जाता तो बाबा यही कहते कि प्रेत उसे ले गया. लेकिन हमारी श्रीमतीजी और एक मां की इतनी बड़ी, पलीपलाई बेटी खो जाती.

श्रीमतीजी पूरे 1 सप्ताह अस्पताल में रह कर लौटीं. अब हम ने कान पकड़ लिए हैं कि हमें कभी उन्हें ऐसे बाबाओं के चक्कर में हम उन्हें नहीं पड़ने देंगे.

कल टीवी पर देखा था कि ऐसे 1 दर्जन डायबिटीज के मरीजों ने थाने में खाने वाले बाबा के नाम शिकायतें दर्ज करवाई हैं. अब आएगा मजा जब बाबाजी थाने और जेल में अपनी ग्रहदशा को सुधारेंगे. सही कहा न हम ने?

Kahaniyan : अजनबी – आखिर कौन था उस दरवाजे के बाहर

Kahaniyan : ‘‘नाहिद जल्दी उठो, कालेज नहीं जाना क्या, 7 बज गए हैं,’’ मां ने चिल्ला कर कहा. ‘‘7 बज गए, आज तो मैं लेट हो जाऊंगी. 9 बजे मेरी क्लास है. मम्मी पहले नहीं उठा सकती थीं आप?’’ नाहिद ने कहा.

‘‘अपना खयाल खुद रखना चाहिए, कब तक मम्मी उठाती रहेंगी. दुनिया की लड़कियां तो सुबह उठ कर काम भी करती हैं और कालेज भी चली जाती हैं. यहां तो 8-8 बजे तक सोने से फुरसत नहीं मिलती,’’ मां ने गुस्से से कहा. ‘‘अच्छा, ठीक है, मैं तैयार हो रही हूं. तब तक नाश्ता बना दो,’’ नाहिद ने कहा.

नाहिद जल्दी से तैयार हो कर आई और नाश्ता कर के जाने के लिए दरवाजा खोलने ही वाली थी कि किसी ने घंटी बजाई. दरवाजे में शीशा लगा था. उस में से देखने पर कुछ दिखाई नहीं दे रहा था क्योंकि लाइट नहीं होने की वजह से अंधेरा हो रहा था. इन का घर जिस बिल्ंि?डग में था वह थी ही कुछ इस किस्म की कि अगर लाइट नहीं हो, तो अंधेरा हो जाता था. लेकिन एक मिनट, नाहिद के घर में तो इन्वर्टर है और उस का कनैक्शन बाहर सीढि़यों पर लगी लाइट से भी है, फिर अंधेरा क्यों है? ‘‘कौन है, कौन,’’ नाहिद ने पूछा. पर बाहर से कोई जवाब नहीं आया.

‘‘कोई नहीं है, ऐसे ही किसी ने घंटी बजा दी होगी,’’ नाहिद ने अपनी मां से कहा. इतने में फिर घंटी बजी, 3 बार लगातार घंटी बजाई गई अब.

?‘‘कौन है? कोई अगर है तो दरवाजे के पास लाइट का बटन है उस को औन कर दो. वरना दरवाजा भी नहीं खुलेगा,’’ नाहिद ने आराम से मगर थोड़ा डरते हुए कहा. बाहर से न किसी ने लाइट खोली न ही अपना नाम बताया. नाहिद की मम्मी ने भी दरवाजा खोलने के लिए मना कर दिया. उन्हें लगा एकदो बार घंटी बजा कर जो भी है चला जाएगा. पर घंटी लगातार बजती रही. फिर नाहिद की मां दरवाजे के पास गई और बोली, ‘‘देखो, जो भी हो चले जाओ और परेशान मत करो, वरना पुलिस को बुला लेंगे.’’

मां के इतना कहते ही बाहर से रोने की सी आवाज आने लगी. मां शीशे से बाहर देख ही रही थी कि लाइट आ गई पर जो बाहर था उस ने पहले ही लाइट बंद कर दी थी. ‘‘अब क्या करें तेरे पापा भी नहीं हैं, फोन किया तो परेशान हो जाएंगे, शहर से बाहर वैसे ही हैं,’’ नाहिद की मां ने कहा. थोड़ी देर बाद घंटी फिर बजी. नाहिद की मां ने शीशे से देखा तो अखबार वाला सीढि़यों से जा रहा था. मां ने जल्दी से खिड़की में जा कर अखबार वाले से पूछा कि अखबार किसे दिया और कौनकौन था. वह थोड़ा डरा हुआ लग रहा था, कहने लगा, ‘‘कोई औरत है, उस ने अखबार ले लिया.’’ इस से पहले कि नाहिद की मां कुछ और कहती वह जल्दी से अपनी साइकिल पर सवार हो कर चला गया.

अब मां ने नाहिद से कहा बालकनी से पड़ोस वाली आंटी को बुलाने के लिए. आंटी ने कहा कि वह तो घर में अकेली है, पति दफ्तर जा चुके हैं पर वह आ रही हैं देखने के लिए कि कौन है. आंटी भी थोड़ा डरती हुई सीढि़यां चढ़ रही थी, पर देखते ही कि कौन खड़ा है, वह हंसने लगी और जोर से बोली, ‘‘देखो तो कितना बड़ा चोर है दरवाजे पर, आप की बेटी है शाजिया.’’ शाजिया नाहिद की बड़ी बहन है. वह सुबह में अपनी ससुराल से घर आई थी अपनी मां और बहन से मिलने. अब दोनों नाहिद और मां की जान में जान आई.

मां ने कहा कि सुबहसुबह सब को परेशान कर दिया, यह अच्छी बात नहीं है.

शाजिया ने कहा कि इस वजह से पता तो चल गया कि कौन कितना बहादुर है. नाहिद ने पूछा, ‘‘वह अखबार वाला क्यों डर गया था?’’ शाजिया बोली, ‘‘अंधेरा था तो मैं ने बिना कुछ बोले अपना हाथ आगे कर दिया अखबार लेने के लिए और वह बेचारा डर गया और आप को जो लग रहा था कि मैं रो रही थी, दरअसल मैं हंस रही थी. अंधेरे के चलते आप को लगा कि कोई औरत रो रही है.’’

फिर हंसते हुए बोली, ‘‘पर इस लाइट का स्विच अंदर होना चाहिए, बाहर से कोई भी बंद कर देगा तो पता ही नहीं चलेगा.’’ शाजिया अभी भी हंस रही थी. आंटी ने बताया कि उन की बिल्ंिडग में तो चोर ही आ गया था रात में. जिन के डबल दरवाजे नहीं थे, मतलब एक लकड़ी का और एक लोहे वाला तो लकड़ी वाले में से सब के पीतल के हैंडल गायब थे.

थोड़ी देर बाद आंटी चाय पी कर जाने लगी, तभी गेट पर देखा उन के दूसरे दरवाजे, जिस में लोहे का गेट नहीं था, से पीतल का हैंडल गायब था. तब आंटी ने कहा, ‘‘जो चोर आया था उस का आप को पता नहीं चला और अपनी बेटी को अजनबी समझ कर डर गईं.’’ सब जोर से हंसने लगे.

Kahaniyan : इशी- आर्यन ने कौन सी गलती कर दी थी

Kahaniyan : ‘‘आर्यन, मैं पढ़तेपढ़ते बोर हो गई हूं, चलो न थोड़ी देर के लिए बाहर घूम कर आते हैं.’’ ‘‘नो डियर, कल मेरा एग्जाम है, इसलिए पढ़ाई करनी जरूरी है. परेशान तो मैं भी बहुत हूं, गरमी के कारण पसीने से भीगा हुआ हूं लेकिन कल के टैस्ट में पूरे नंबर लाने हैं. इसलिए ऐक्सक्यूज मी यार. कल टैस्ट हो जाने दे. अब मैं मोबाइल औफ कर रहा हूं.’’

‘‘प्लीज औनलाइन रहो. थोड़ी देर चैटिंग कर के मूड फ्रैश हो जाएगा,’’ इशिता का प्यारा सा चेहरा उस की आंखों के सामने तैर गया था.

‘‘इशी, डिस्टर्ब मत करो. कल शाम को टैस्ट के बाद मिलते हैं?’’

‘‘कहां?’’ इशिता बोली.

‘‘वहीं, सैंटर के गेट पर,’’ आर्यन ने कहा. लिखने के बाद उस ने फोन बंद किया और पढ़ाई में मशगूल हो गया.

आर्यन और इशिता दोनों कोचिंग कर रहे थे. आर्यन आईआईटी में ऐडमिशन ले कर इंजीनियर बनना चाहता था, तो इशिता पीएमटी की तैयारी कर रही थी. उसे डाक्टर बनना था. उस के मम्मीपापा दोनों डाक्टर थे और शहर में उन का अपना नर्सिंगहोम भी था. वे अपनी बेटी को डाक्टर बना कर नर्सिंगहोम उस के हवाले कर देना चाहते थे.

आर्यन साधारण परिवार से था, उस के पिता बैंक में क्लर्क थे तो मां प्राइवेट ट्यूशन पढ़ा कर घरखर्च चला रही थीं? दोनों ने बेटे को इंजीनियर बनाने का सपना देखा था, उस के लिए दोनों रातदिन मेहनत करते थे.

आर्यन समझदार लड़का था. वह ईमानदारी से पढ़ाई कर रहा था. उस की एक छोटी बहन भी थी, जिसे वह बहुत प्यार करता था. उस ने भी पिछले वर्ष एंट्रैंस पास कर लिया था, लेकिन प्राइवेट कालेज की महंगी फीस देना उस के मांबाप के लिए संभव नहीं है. इसलिए इस वर्ष उसे हर हाल में आईआईटी में ऐडमिशन के लिए जेईई का टैस्ट पास करना था.

उस को इस बात का अच्छी तरह एहसास था कि उस के मातापिता कितनी परेशानियों में उस की कोचिंग का खर्च वहन कर पा रहे हैं. कोचिंग वाले इस डर से कि बच्चे बीच में ही न छोड़ जाएं, सालभर की फीस जो लाखों में होती है, जमा करवा कर निश्चिंत हो जाते हैं. और तो और पीजी वाली आंटीजी भी कंसेशन का लालच दे कर पूरे साल के लिए बच्चों को अपने पिंजरे में कैद कर अत्याचार करने का लाइसैंस ले लेती हैं.

अगली शाम आर्यन टैस्ट अच्छा होने से रिलैक्स हो कर अपने दोस्तों के साथ पेपर डिस्कस कर रहा था कि उसे इशिता आती दिखी. उस का दूध सा गोरा रंग, गोल चेहरे पर खुशी से चमकती बड़ीबड़ी कजरारी आंखें, काले घुंघराले बाल उस की पेशानी को चूम रहे थे. जींस और टौप उस की खूबसूरती में चारचांद लगा रहे थे.

उस के ब्रैंडेड कपड़े और खूबसूरत चेहरे की रौनक देख आर्यन भी खुश हुआ था, लेकिन अपनी आर्थिक स्थिति के बारे में सोच कर वह तुरंत ही मायूस भी हो गया.

वह स्कूटी से उतर कर बोली, ‘‘आओ, तुम पीछे बैठोगे?’’

‘‘नहीं इशी, स्कूटी मैं ड्राइव करूंगा, तुम पीछे बैठोगी. पीछे बैठ कर मुझे अच्छा नहीं लगता,’’ आर्यन ने कहा.

‘‘इस में अच्छा न लगने की भला क्या बात है?’’ इशी बोली.

‘‘तुम मेरी फीलिंग को नहीं समझ सकती इशी. खैर छोड़ो, चलो, कहां चलना है?’’

‘‘मेरा मन तो कैफे डे में कोल्ड कौफी पीने का था,’’ इशी बोली.

‘‘मेरे पास बिल देने के लिए पैसे नहीं हैं.’’

‘‘मैं दूंगी बिल न, यार तू क्यों परेशान हो रहा है.’’

‘‘तुम्हीं तो हमेशा बिल देती हो और यही मुझे अच्छा नहीं लगता,’’ आर्यन ने कहा.

‘‘इस से क्या फर्क पड़ता है, बिल मैं दूं या तुम दो?’’

‘‘तुम मेरे मन की बात को नहीं समझ सकती इशी. मौल ही चलो, अपनी उसी फेवरेट जगह सन्नाटे में बैठेंगे, जहां से हम लोग सब को देखेंगे लेकिन लोग हमें नहीं देख पाएंगे,’’ आर्यन बोला.

दोनों उस जगह पहुंच कर खाली बैंच पर बैठ गए. आर्यन स्वीटकौर्न का एक कप ले कर आया और दोनों खाने लगे.

‘‘क्या आर्यन, क्या चल रहा है तुम्हारे और आन्या के बीच में? मैं ने कई बार देखा है आजकल उस से काफी देर तक बातें करते रहते हो. अगर वह तुम्हें अच्छी लगती है, तो उस के पास जाओ और उस से आई लव यू कह दो.’’

‘‘ओफ इशी, वह तो एक प्रश्न मुझ से पूछ रही थी. लेकिन मुझे उस की स्माइल बहुत अच्छी लगती है.’’

आर्यन का यह जवाब सुन कर इशिता नाराज हो गई उस की आंखें डबडबा उठीं.

‘‘अरे, मैं तो तुम्हें चिढ़ाने के लिए ऐसा कह रहा था, बस, इसी पर रो पड़ीं. चलो, व्हाट्सऐप वाली बड़ी सी स्माइली दो.’’

‘‘आर्यन, मैं तुम्हें न किसी दिन बहुत पीटूंगी,’’ उस की पीठ पर एक हलकी सी धौल जमाती हुई इशिता बोली. आर्यन गंभीर सा चेहरा बना कर एकदम से चुप हो गया था.

‘‘एकदम चुप हो और चेहरा भी उदास है, क्या हुआ? मेरी बात का बुरा मान गए क्या, मेरी तरफ से बड़ी वाली सौरी,’’ इशिता मजाकिया अंदाज में बोली.

‘‘इशी,? मैं तुम्हारी बात पर नाराज नहीं हूं. मुझे जेईई का टैस्ट क्लीयर करने का टैंशन है. यदि मेरी अच्छी रैंक नहीं आई तो क्या होगा? पापा ने तो मेरी कोचिंग के लिए अपने प्रौविडैंट फंड का पैसा भी खर्च कर दिया है. पीजी और कोचिंग की फीस वे कैसे देते हैं, यह तो मैं ही समझता हूं.

‘‘पापा जबतब मुझ से मिलने आ जाते हैं और मेरी मुट्ठी में रुपए रखते हुए आशाभरी निगाहों से मेरी ओर देखते हैं. मैं उन का सामना करने से घबराता हूं. मुझे लगता है कि कहीं मैं उन के सपने पर पानी तो नहीं फेर दूंगा. टीचर हर समय कहते हैं, थोड़ी मेहनत और करो.’’

‘‘तुम्हीं बताओ इशी, सुबह सूरज निकलने से पहले ही घर से कोचिंग के लिए निकल जाता हूं. कोई लाइफ है मेरी, मशीन बन कर रह गई है जिंदगी. सुबह से रात तक बस कोचिंग, नोट्स, रिवीजन, पेपर सौल्व करना, टैस्ट देना. लाइफ एकदम बोर हो चुकी है.

‘‘मां के दुलारभरे स्पर्श की मुझे इतनी याद आती है कि लगता है कि सबकुछ छोड़छाड़ कर घर मां के पास चला जाऊं, लेकिन फिर पापा की उम्मीदभरी आंखें मेरे सामने घूमने लगती हैं. अपना छोटा शहर, वहां की मस्ती, अपने दोस्त सब बहुत याद आते हैं.

‘‘इशी, मैं यहां बिलकुल अकेला हूं, यदि मुझे तुम जैसी दोस्त यहां न मिलती तो मेरा न जाने क्या होता?’’

‘‘आर्यन, इतने सैंटिमैंटल मत हो यार, इस साल तुम जेईई का ऐंट्रैंस जरूर क्लीयर कर लोगे. इतनी मेहनत कर रहे हो, भला क्यों नहीं क्लीयर होगा.

‘‘मुझे देखो, मम्मीपापा शहर के जानेमाने डाक्टर हैं. यदि मैं ऐंट्रैंस पास कर नहीं कर पाई तो उन के लिए कितनी शर्म की बात होगी. कैमेस्ट्री है कि मेरे सिर के ऊपर से निकल जाती है. यदि तुम मेरी मदद न करते तो शायद मेरा फेल होना निश्चित था. तुम्हारे कारण ही कैमेस्ट्री अब मेरा फेवरेट सब्जैक्ट बन गया है और साथ ही तुम्हारी दोस्ती की वजह से मुझे अब दुनिया बहुत प्यारी लगने लगी है. मुझे तो इन मोटीमोटी किताबों के बीच बारबार तुम्हारा मुसकराता चेहरा नजर आता है.’’

‘‘इशी, पिछले साल मनचाहा कालेज और स्ट्रीम न मिलने का कारण मेरा मैथ का पेपर था. मैं ने पापा से कौपी रीचैक करवाने को कहा था, लेकिन उन्होंने कहा कि इस से कोई फायदा नहीं है. इस साल फिर से तैयारी कर लो.

‘‘मुझे खुद काफी कोफ्त होती है कि लाखों की फीस और पीजी का खर्च, यदि पास हो गया होता तो आईआईटी के फर्स्ट ईयर में होता.’’

‘‘आर्यन, इतना परेशान मत हो डियर, तुम्हें इस साल जरूर सरकारी कालेज और मनचाही स्ट्रीम मिल जाएगी. मुझे देखो, पढ़ाई करती हूं, मेहनत कर रही हूं और ये तो सभी जानते हैं कि मेहनत का फल मीठा होता है.’’

‘‘देखो इशी, तुम्हारी बात अलग है. यदि तुम्हें अच्छी रैंक न भी मिली तो तुम्हारे पापा डोनेशन दे कर किसी भी अच्छे कालेज में तुम्हारा ऐडमिशन करवा देंगे, फिर तुम बन जाओगी डा. इशिता, और तुम्हारे नर्सिंगहोम में एक नेमप्लेट बढ़ जाएगी.’’

‘‘नहीं आर्यन, मुझे गरीबी के कारण बच्चों को मरते देख बड़ा दुख होता है. मैं उन के मुफ्त इलाज के लिए अपना जीवन समर्पित करना चाहती हूं.

‘‘आर्यन, तुम तो आईआईटी से इंजीनियरिंग पूरी करते ही विदेश चले जाओगे. पूरी दुनिया की सैर करोगे, फिर भला मुझे तुम क्या पहचानोगे कि कोई इशिता नाम की लड़की थी.’’

आर्यन ने उस के मुंह पर अपना हाथ रख दिया था, ‘‘इशी, तुम गलत सोच रही हो और मुझे बड़ेबड़े सपने दिखा रही हो. मैं भले ही सारी दुनिया घूम लूं, लेकिन रहूंगा अपने प्यारे देश भारत में ही, जहां मेरे मांपापा और गुडि़या जैसी प्यारी सी बहन है.’’

इशी बोल पड़ी, ‘‘और मैं कहीं नहीं हूं, तुम्हारे जीवन में?’’

‘‘इशी, मेरा तुम्हारा भला क्या मेल. तुम्हारे पापा को तो अपनी लाडली बेटी के लिए डाक्टर दामाद चाहिए.’’ आर्यन उदास स्वर में सिहर कर बोला, ‘‘यदि मैं जेईई नहीं क्लीयर कर पाया तो तुम मुझे भूल जाओगी.’’

‘‘आर्यन, मैं मम्मीपापा का आदर अवश्य करती हूं, लेकिन अपनी जिंदगी का फैसला तो मैं स्वयं करूंगी.’’

स्वीटकौर्न का कप खाली हो चुका था. इशिता उसे डस्टबिन में डालने गई और थोड़ी देर में एक आइसक्रीम ले कर आ गई. फिर दोनों बारीबारी से उसे खाने लगे.

‘‘इशी, मुझे देर हो गई है, जल्दी चलो, नहीं तो आंटी गेट बंद कर देंगी. फिर शुरू हो जाएगी उन की लंबी पूछताछ, जिस से मैं बचना चाहता हूं.’’

‘‘हां आर्यन, तुम्हारी आंटी तो पूरी विलेन लगती हैं, उस दिन हमें देर हो गई थी न, स्कूटी से तुम्हें उतार कर बाय कर रही थी, और उन्होंने देख लिया बस, शुरू हो गईं, ‘तुम लोग रोज मिलते हो, कहां मिलते हो, कब से एकदूसरे को जानते हो?

‘‘मैं तो किसी तरह वहां से जान बचा कर भागी थी. हां, परेशान तो करती हैं, लेकिन अच्छी भी हैं. उन्हें भी तो बच्चों के पेरैंट्स को जवाब देना पड़ता है. कोई लफड़ा होता है तो सब से पहले उन्हीं को दोष दिया जाता है.’’

‘‘परेशानी तो मुझे भी होती है, वे प्रैस नहीं करने देतीं, इमर्शन रौड नहीं लगाने देती हैं, जिस दिन जरा देर से आंख खुलती है, उस दिन ठंडे पानी से नहाना पड़ता है. दूध में पानी मिला देती हैं. सुबह नाश्ता देर से बनाती हैं, इसलिए अकसर घर से खाली पेट निकलना पड़ता है. कभी खाना इतना स्पाइसी बनाती हैं कि आंखनाक से पानी टपकने लगता है.’’

‘‘फिर क्या ऐसे ही भूखे रह कर दिन बिताते हो?’’

‘‘नहीं यार, कभी आलू के परांठे, कभी सैंडविच तो कभी समोसे से काम चला लेता हूं.

‘‘आंटी, एकसाथ पूरे साल का पैसा जमा करवा लेती हैं, ताकि बीच में कोई छोड़ न सके.’’

‘‘तुम से कितनी बार तो कहती हूं कि मैं तुम्हारे लिए टिफिन ले आया करूंगी, लेकिन तुम तो राजी ही नहीं होते.’’

‘‘हां डियर, मुझे इंजीनियर बन जाने दो और तुम डाक्टर बन जाओ, फिर हम दोनों रोज साथ खाना खाया करेंगे.’’ उस ने अपनी हथेलियों से उस के होंठों को छू कर चूम लिया था.

‘‘मेरी इशी, तुम बहुत प्यारी, भावुक और समझदार हो. मैं खुद को धनी समझता हूं. जो मुझे तुम जैसी फ्रैंड मिली है.’’

मौल की भीड़ छंट चुकी थी. रात्रि की नीरवता एवं रंगबिरंगी रोशनी की मादकता के कारण आर्यन भावनाओं में बहक कर भूल गया कि इशी और वह केवल अच्छे दोस्त हैं.

उस ने जवानी के आवेश में इशी को अपनी बांहों में जकड़ लिया था. अपने अंगारे जैसे होंठों को इशी के होंठों से लगा कर इशी को अपनी बांहों में जकड़ लिया था. इशी इस का विरोध करती रही पर आर्यन की पकड़ मजबूत हो चुकी थी. थोड़ी देर के लिए इशी भी बहक चुकी थी पर समय रहते वह संभल गई.

आर्यन को अपनी गलती का एहसास होते ही वह सहम उठा था.

‘‘इशी, मुझे माफ कर दो, मैं अपना होश खो बैठा था.’’

‘‘आर्यन, आज तुम ने मेरे विश्वास को धोखा दिया है,’’ इशी ने संभलते हुए गुस्से में कहा.

‘‘इशी, आई एम सौरी. फ्यूचर में अब ऐसी गलती नहीं करूंगा. पता नहीं यह सब कैसे हो गया. हम दोनों को अपने पेरैंट्स के सपने को साकार करना है,’’ आर्यन विनती करते हुए बोला.

इशी आर्यन की बातों को अनसुना कर स्कूटी स्टार्ट कर चुकी थी. मन में कुछ सोचती हुई वह धीरेधीरे आगे बढ़ती जा रही थी. आर्यन उस को जाते हुए देख रहा था. उस के चेहरे से ऐसा लग रहा था कि मानो उस की दुनिया ही उजड़ गई हो.

‘‘इशी, इतनी बड़ी सजा मुझे मत दो,’’ वह रो पड़ा था.

लेकिन यह क्या?

इशी लौट कर आ गई थी. वह स्कूटी से उतर कर उस के सामने खड़ी हो गई थी.

‘‘आर्यन, तुम्हें आगे बैठ कर ड्राइव करना पसंद हैं न… ‘‘ मैं पीछे बैठूंगी.’’

सबकुछ भूल कर आर्यन खुश हो कर सपने बुनने में लग गया था. जब वह अपनी गाड़ी में अपनी इशी को बैठा कर लौंग ड्राइव पर जाया करेगा.

Kahaniyan : वह चालाक लड़की – क्या अंजुल को मिल पाया उसका लाइफ पार्टनर

Kahaniyan : रोज की तुलना में अंजुल आज जल्दी उठ गई. आज उस का औफिस में पहला दिन है. मास मीडिया स्नातकोत्तर करने के बाद आज अपनी पहली नौकरी पर जाते हुए उस ने थोड़ा अधिक परिश्रम किया. अनुपम देहयष्टि में वह किसी से उन्नीस नहीं.

सभी उस की खूबसूरती के दीवाने थे. अपनी प्रखर बुद्धि पर भी पूर्ण विश्वास है. अपने काम में तीव्र तथा चतुर. स्वभाव भी मनमोहक, सब से जल्दी घुलमिल जाना, अपनी बात को कुशलतापूर्वक कहना और श्रोताओं से अपनी बात मनवा लेना उस की खूबियों में शामिल है. फिर भी उस ने यह सुन रखा है कि फर्स्ट इंप्रैशन इज द लास्ट इंप्रैशन. तो फिर रिस्क क्यों लिया जाए भले?

मचल ऐडवर्टाइजिंग ऐजेंसी का माहौल उसे मनमुताबिक लगा. आबोहवा में तनाव था भी और नहीं भी. टीम्स आपस में काम को ले कर खींचातानी में लगी थीं किंतु साथ ही हंसीठिठोली भी चल रही थी. वातावरण में संगीत की धुन तैर रही थी और औफिस की दीवारों पर लोगों ने बेखौफ ग्राफिटी की हुई थी.

अंजुल एकबारगी प्रसन्नचित्त हो उठी. उन्मुक्त वातावरण उस के बिंदास व्यक्तित्व को भा गया. उस की भी यही इच्छा थी कि जो चाहे कर सकने की स्वतंत्रता मिले. आज तक  अपने जीवन को अपने हिसाब से जीती आई थी और आगे भी ऐसा ही करने की चाह मन में लिए जीवन के अगले सोपान की ओर बढ़ने लगी.

बौस रणदीप के कैबिन में कदम रखते हुए अंजुल बोली, ‘‘हैलो रणदीप, आई एम अंजुल, योर न्यू इंप्लोई.’’ उस की फिगर हगिंग यलो ड्रैस ने रणदीप को क्लीन बोल्ड कर दिया. फिर ‘‘वैलकम,’’ कहते हुए रणदीप का मुंह खुला का खुला रह गया.

अंजुल को ऐसी प्रतिक्रियाओं की आदत थी. अच्छा लगता था उसे सामने वाले की ऐसी मनोस्थिति देख कर. एक जीत का एहसास होता था और फिर रणदीप तो इस कंपनी का बौस है. यदि यह प्रभावित हो जाए तो ‘पांचों उंगलियां घी में और सिर कड़ाही में’ वाली कहावत को चिरतार्थ होते देर नहीं लगेगी. वैसे रणदीप करीब 40 पार का पुरुष था, जिस की हलकी सी तोंद, अधपके बाल और आंखों के नीचे काले घेरे उसे आकर्षक की परिभाषा से कुछ दूर ही रख रहे थे.

अंजुल अपना इतना होमवर्क कर के आई थी कि उस का बौस शादीशुदा है. 1 बच्चे का बाप है, पर जिंदगी में तरक्की करनी है तो कुछ बातों को नजरअंदाज करना ही होता है, ऐसी अंजुल की सोच थी.

अपने चेहरे पर एक हलकी स्मित रेखा लिए अंजुल रणदीप के समक्ष बैठ गई. उस का मुखड़ा जितना भोला था उस के नयन उतने ही चपल दिल मोहने की तरकीबें खूब आती थीं.

रणदीप लोलुप दृष्टि से उसे ताकते हुए कहने लगा, ‘‘तुम्हारे आने से इस ऐजेंसी में और भी बेहतर काम होगा, इस बात का मुझे विश्वास है. मुझे लगता है तुम्हारे लिए मीडिया प्लानिंग डिपार्टमैंट सही रहेगा. अपने ए वन ग्रेड्स और पर्सनैलिटी से तुम जल्दी तरक्की कर जाओगी.’’

‘‘मैं भी यही चाहती हूं. अपनी सफलता के लिए आप जैसा कहेंगे, मैं वैसा करती जाऊंगी,’’ द्विअर्थी संवाद करने में अंजुल माहिर थी. उस की आंखों के इशारे को समझाते हुए रणदीप ने उसे एक सरल लड़के के साथ नियुक्त करने का मन बनाया. फिर अपने कैबिन में अर्पित को बुला कर बोला, ‘‘सीमेंट कंपनी के नए प्रोजैक्ट में अंजुल तुम्हें असिस्ट करेंगी. आज से ये तुम्हारी टीम में होंगी.’’

‘‘इस ऐजेंसी में तुम्हें कितना समय हो गया?’’ अंजुल ने पहला प्रश्न दागा.

अर्पित एक सीधा सा लड़का था. बोला, ‘‘1 साल. अच्छी जगह है काम सीखने के लिए. काफी अच्छे प्रोजैक्ट्स आते रहते हैं. तुम इस से पहले कहां काम करती थीं?’’

अर्पित की बात का उत्तर न देते हुए अंजुल ने सीधा काम की ओर रुख किया, ‘‘मुझे क्या करना होगा? वैसे मैं क्लाइंट सर्विसिंग में माहिर हूं. मैं चाहती हूं कि मुझे इस सीमेंट कंपनी और अपनी क्रिएटिव टीम के बीच कोऔर्डिनेशन का काम संभालने दिया जाए.’’

अगले दिन अंजुल ने फिर सब से पहले रणदीप के कैबिन से शुरुआत की, ‘‘हाय रणदीप, गुड मौर्निंग,’’ कर उस ने पहले दिन सीखे सारे काम का ब्योरा देते हुए रणदीप से कुछ टिप्स लेने का अभिनय किया और बदले में रणदीप को अपने जलवों का भरपूर रसास्वादन करने दिया. रणदीप की मधुसिक्त नजरें अंजुल के सुडौल बदन पर इधरउधर फिसलती रहीं और वह बेफिक्री से मुसकराती हुई रणदीप की आसक्ति को हवा देती रही.

जल्द ही अंजुल ने रणदीप के निकट अपनी जगह स्थापित कर ली. अब यह रोज का क्रम था कि वह अपने दिन की शुरुआत रणदीप के कैबिन से करती. रणदीप भी उस के यौवन की खुमारी में डुबकी लगाता रहता.

उस सुबह कौफी देने के बहाने रणदीप ने अंजुल के हाथ को हौले से छुआ. अंजुल ने इस की प्रतिक्रिया में अपने नयनों को झाका कर ही रखा. वह नहीं चाहती थी कि रणदीप की हिम्मत कुछ ढीली पड़े. फिर काम दिखाने के बहाने वह उठी और रणदीप के निकट जा कर ऐसे खड़ी हो गई कि उस के बाल रणदीप के कंधे पर झालने लगे. इशारों की भाषा दोनों तरफ से बोली जा रही थी.

तभी अर्पित बौस के कैबिन में प्रविष्ट हुआ तो दोनों संभल गए. उफनते दूध में पानी के छींटे लग गए. किंतु अर्पित के शांत प्रतीत होने वाले नयनों ने अपनी चतुराई दर्शाते हुए वातावरण को भांप लिया.

इस प्रकरण के बाद अर्पित का अंजुल के प्रति रवैया बदल गया. अब तक अंजुल को नई

सीखने वाली मान कर अर्पित उस की हर मुमकिन मदद कर रहा था, परंतु आज के दृश्य के बाद वह समझा गया कि इस मासूम दिखने वाली सूरत के पीछे एक मौकापरस्त लड़की छिपी है. कौरपोरेट वर्ल्ड एक माट्स्करेड पार्टी की तरह हो सकता है जहां हरकोई अपने चेहरे पर एक मास्क लगाए अपनी असली सचाई को ढकते हुए दूसरों के सामने अपनी एक छवि बनाने को आतुर है.

आज लंच में अर्पित ने अंजुल को टालते हुए कहा, ‘‘आज मुझे कुछ काम है. तुम लंच कर लो,’’ वह अब अंजुल से बहुत निकटता नहीं चाह रहा था. उस की देखादेखी टीम के अन्य लोगों ने भी अंजुल को टालना आरंभ कर दिया. इस से अंजुल को काम समझाने और करने में दिक्कत आने लगी.

‘‘जो नई पिच आई है, उस में मैं तुम्हारे साथ चलूं? मुझे पिच प्रेजैंटेशन करना आ जाएगा,’’ अंजुल ने अपनी पूरी कमनीयता का पुट लगा कर अर्पित से कहा. अपने कार्य में दक्ष होते हुए भी उस ने अर्पित की ईगो मसाज की.

‘‘उस का सारा काम हो चुका है. तुम्हें अगली पिच पर ले चलूंगा. आज तुम औफिस में दूसरी प्रेजैंटेशन पर काम कर लो,’’ अर्पित ने हर प्रयास करना शुरू कर दिया कि अंजुल केवल औफिस में ही व्यस्त रहे.

अपने हाथ से 2 पिच के अवसर निकलते ही अंजुल भी अर्पित की चाल समझाने लगी, ‘उफ, बेवकूफ है अर्पित जो मुझे इतना सरलमति समझा रहा है. क्या सोचता है कि यदि यह मुझे अवसर नहीं प्रदान करेगा तो मैं अनुभवहीन रह जाऊंगी,’ सोचते हुए अंजुल ने सीधा रणदीप के कैबिन में धावा बोल दिया.

‘‘रणदीप, क्या मैं आप के साथ आज लंच कर सकती हूं? आप के साथ मेरे इंडक्शन की फीडबैक बाकी है,’’ अंजुल ने अपने प्रस्ताव को इस तरह रखा कि वह आवश्यक कार्य प्रतीत हुआ. अत: रणदीप ने सहर्ष स्वीकारोक्ति दे दी.

लंच के दौरान अंजुल ने अपने काम का ब्योरा दिया और साथ ही दबेढके शब्दों में एक स्वतंत्र क्लाइंट लेने की पेशकश कर डाली, ‘‘टीम में सभी इतने व्यस्त रहते हैं कि किसी से काम सीखना मुझे उन के काम में रुकावट बनना लगता है और फिर अपनी शिक्षा, प्रशिक्षण व अनुभव के बल पर मुझे पूर्ण विश्वास है कि एक क्लाइंट मैं हैंडल कर सकती हूं, यदि आप अनुमति दें तो?’’

बातचीत के दौरान अंजुल के नयनों का मटकना, उस के भावों का अर्थपूर्ण चलन उस के अधरों पर आतीजाती स्मितरेखा, कभी पलकें उठाना तो कभी झाकाना, सबकुछ इतना मनमोहक था कि रणदीप के पुरुषमन ने उसे एक अवसर देने का निश्चय कर डाला, ‘‘ठीक है, सोचता हूं कि तुम्हें किस अकाउंट में डाल सकता हूं.’’

उस शाम अंजुल ने आर्ट गैलरी में कुछ समय व्यतीत करने का सोची. जब से जौब लगी तब से उस ने कोई तफरी नहीं की. दिल्ली आर्ट गैलरी शहर की नामचीन जगहों में से एक है सो वहीं का रुख कर लिया. मंथर गति से चलते हुए अंजुल वहां सजी मनोरम चित्रकारियां देख रही थी कि अगली पेंटिंग पर प्रचलित लौंजरी ब्रैंड ‘औसम’ के मालिक महीप दत्त को खड़ा देखा. ऐजेंसी में उस ने सुना था कि पहले महीप दत्त का अकाउंट उन्हीं के पास था, किंतु पिछले साल से उन्होंने कौंट्रैक्ट रद्द कर दिया, जिस के कारण ऐजेंसी को काफी नुकसान हुआ. स्वयं को सिद्ध करने का यह स्वर्णिम अवसर वह जाने कैसे देती. उस ने तुरंत महीप दत्त की ओर रुख किया.

‘‘आप महीप दत्त हैं न ‘औसम’ ब्रैंड के मालिक?’’ अपने मुख पर उत्साह के सैकड़ों दीपक जला कर उस ने बात की शुरुआत की.

‘‘यस. आप हमारी क्लाइंट हैं क्या?’’ महीप अपने ब्रैंड को प्रमोट करने का कोई मौका नहीं चूकते थे.

‘‘मैं आप की क्लाइंट हूं और आप मेरे.’’

‘‘मैं कुछ समझा नहीं?’’

‘‘दरअसल, मैं आप के ब्रैंड की लौंजरी इस्तेमाल करती हूं और एक हैप्पी क्लाइंट हूं. मेरा नाम अंजुल है और मैं मचल ऐडवर्टाइजिंग ऐजेंसी में कार्यरत हूं, जिस के आप एक हैप्पी क्लाइंट नहीं हैं. सही कहा न मैं ने?’’ वह अपना हाथ आगे बढ़ाते हुए बोली.

‘‘तो आप यहां मचल की तरफ से आई हैं?’’ महीप ने हैंड शेक करते हुए कहा, परंतु उन के चेहरे पर तनाव की रेखाएं सर्वविदित थीं, ‘‘मैं काम की बात केवल अपने औफिस में करता हूं,’’ कहते हुए वे आगे बढ़ गए.

‘‘काम की बात तो यह है महीप दत्तजी कि मैं आप को वह फीडबैक दे सकती हूं, जो आप के लिए सुननी जरूरी है और वह भी फ्री में. मैं यहां आप से मचल की कार्यकर्ता बन कर नहीं, बल्कि आप की क्लाइंट के रूप में मिल रही हूं. विश्वास मानिए, मुझे आइडिया भी नहीं था कि मैं यहां आप से मिल जाऊंगी,’’ अंजुल के चेहरे पर मासूमियत के साथ ईमानदारी के भाव खेलने लगे. वह अपने चेहरे की अभिव्यक्ति को स्थिति के अनुकूल मोड़ना भली प्रकार जानती थी.

बोली, ‘‘मैं जानती हूं कि अब आप अपने विज्ञापन किसी एजेंसी के द्वारा नहीं, बल्कि सोशल मीडिया पर इन्फ्लुऐंसर के जरीए करते हैं. किंतु एक इन्फ्लुऐंसर की पहुंच केवल उस के फौलोअर्स तक सीमित होती है. मेरा एक सुझाव है आप को- आप का प्रोडक्ट प्रयोग करने वाली महिलाएं आम गृहिणियां या कामकाजी महिलाएं अधिक होती हैं, उन की फिगर मौडल की दृष्टि से बिलकुल अलग होती है.

‘‘मौडल का शरीर एक आदर्श फिगर होता है, जबकि आम महिला की जरूरत भिन्न होती है. तो क्यों न आप अपने विज्ञापन में मौडल की जगह आम महिलाओं से अपनी बात कहलवाएं. यदि वे कहेंगी तो यकीनन अधिक प्रभाव पड़ेगा,’’ अपनी बात कह कर अंजुल महीप दत्त की प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा करने लगी.

कुछ क्षण मौन रह कर महीप ने अंजुल के सुझाव को पचाया. फिर अपनी कलाई पर

बंधी घड़ी देख कहने लगे, ‘‘तुम से मिल कर अच्छा लगा, अंजुल. आल द बैस्ट,’’ और महीप चले गए.

उन के चेहरे पर कोई भाव न पढ़ने के कारण अंजुल असमंजस में वहीं खड़ी रह गई.

अगले दिन अंजुल औफिस में अपने कंप्यूटर पर कुछ काम कर रही थी कि रणदीप का फोन आया, ‘‘क्या मेरे कैबिन में आ सकती हो?’’

अंजुल तुरंत रणदीप के कैबिन में पहुंची. वहां उन के साथ महीप दत्त को बैठा देख कर उस के आश्चर्य का ठिकाना न रहा. सिर हिला कर हैलो किया. रणदीप ने उसे बैठने का इशारा किया.

‘‘महीप हमारे साथ दोबारा जुड़ना चाहते हैं और साथ ही यह भी कि उन का अकाउंट तुम हैंडल करो,’’ कहते हुए रणदीप के मुख पर कौंटै्रक्ट वापस मिलने की प्रसन्नता थी तो अंजुल के चेहरे पर अपनी जीत की दमक. अब उस के रास्ते में कोई रोड़ा न था. उस ने साधिकार अपना स्वतंत्र अकाउंट प्राप्त किया था.

‘‘इस कौंट्रैक्ट की खुशी में क्या मैं आप को एक डिनर के लिए इन्वाइट कर सकती हूं?’’ अचानक अंजुल ने पूछा.

यह सुन कर रणदीप चौंक गया. फिर बोला, ‘‘कल चलते हैं. आज मुझे अपनी पत्नी के साथ बाहर जाना है,’’ रणदीप ने जानबूझा कर अपनी पत्नी का जिक्र छेड़ा ताकि अंजुल भविष्य की कोई कल्पना न करने लगे और फिर फ्लर्ट किसे बुरा लगता है खासकर तब जब सबकुछ सेफजोन में हो.

‘औसम’ के औफिस में जब अंजुल मीडिया प्लानिंग डिपार्टमैंट की तरफ से क्रिएटिव दिखाने पहुंची तो वहां उसे करण मिला. करण ‘औसम’ की ओर से अंजुल को काम समझाने के लिए नियुक्त किया गया था. आज एक लौंजरी ब्रैंड के साथ मीटिंग के लिए अंजुल बेहद सैक्सी ड्रैस पहन कर गई. उसे देखते ही करण, जोकि लगभग उसी की उम्र का अविवाहित लड़का था, अंजुल पर आकृष्ट हो उठा. जब उसे ज्ञात हुआ कि अंजुल के यहां आने का उपलक्ष्य क्या है, तो उस के हर्ष ने सीमा में बंधने से इन्कार कर दिया.

‘‘हाय अंजुल,’’ करण की विस्फारित आंखें उस के मन का हाल जगजाहिर कर रही थीं, ‘‘मैं तुम्हारा मार्केटिंग क्लाइंट हूं.’’

होंठों को अदा से भींचती हुई अंजुल ने जानबूझा कर अपना हाथ बढ़ा कर मिलाते हुए कहा, ‘‘और मैं तुम्हें सर्विस दूंगी, पर कोई ऐसीवैसी सर्विस न मांग लेना वरना…’’ कहते हुए अंजुल ने उस के कंधे पर आहिस्ता से अपना हाथ रखा और हंस पड़ी.

उस के शरारती नयन करण के अंदर एक सुरसुरी पैदा करने लगे. मन ही मन वह बल्लियों उछलने लगा. आज से पहले उस ने कभी इतनी हौट लड़की के साथ काम नहीं किया था. बहुत जल्दी दोनों में दोस्ती हो गई. करण ने अंजुल को अगले हफ्ते अपने औफिस की पार्टी का न्योता दे डाला.

‘‘इतनी जल्दी पार्टी इन्वाइट? हम आज ही मिले हैं,’’ अंजुल ने करण की गति को थामने का नाटक करते हुए कहा.

‘‘मैं टाइम वेस्ट करने में विश्वास नहीं करता,’’ वह अपने पूरे वेग से दौड़ना चाह रहा था.

‘‘दिन में सपने देख रहे हो…’’

‘‘दिन में सपने देखने को प्लानिंग कहते हैं, मैडम,’’ अंजुल की खुमारी पहले ही दिन से करण के सिर चढ़ कर बोलने लगी.

पार्टी में अंजुल काली चमकदार ड्रैस में कहर ढा रही थी. करण तो उस के पास से हटने का नाम ही नहीं ले रहा था. कभी दौड़ कर स्नैक्स लाता तो कभी ड्रिंक.

‘‘क्या कर रहे हो करण. मैं खुद ले लूंगी जो मुझे चाहिए होगा,’’ उस की इन हरकतों से मन की तहों में पुलकित होती अंजुल ने ऊपरी आवरण ओढ़ते हुए कहा.

‘‘ये सब मैं तुम्हारे लिए नहीं, अपने लिए कर रहा हूं. मुझे पता है किस को खुश करने से मैं खुश रहूंगा,’’ करण फ्लर्ट करने का कोई अवसर नहीं गंवाना चाहता था.

पार्टी में सब ने बहुत आनंद उठाया. खायापीया, थिरकेनाचे. पार्टी खत्म होने

को थी कि अंजुल के पास अचानक महीप आ पहुंचे. इसी बात की राह वह न जाने कब से देख रही थी.

औसम की पार्टी में आने का एक कारण यह भी था.

‘‘तुम्हें यहां देख कर अच्छा लगा,’’ संक्षिप्त सा वाक्य महीप के मुख से निकला.

‘‘तुम महीप दत्त को कैसे जानती हो?’’ उन की मुलाकात से करण अवश्य अचरज में पड़ गया, ‘‘बहुत ऊंची चीज लगती हो.’’

‘‘हैलो, चीज किसे बोल रहे हो?’’ अंजुल ने अपनी कोमल उंगलियों से एक हलकी सी चपत करण के गाल पर लगाते हुए कहा, ‘‘आफ्टर औल, महीप दत्त हमारे क्लाइंट हैं,’’ उस ने इस से अधिक कुछ बताने की आवश्यकता नहीं समझा.

अंजुल हर दूसरे दिन औसम के औफिस पहुंच जाती. करण से फ्लर्ट करने से उस के कई काम बन जाते, यहां तक कि जब उस की ऐड कैंपेन डिजाइन में कुछ कमी रह जाती तब भी उसे काम करवाने के लिए फालतू समय मिल जाता. ‘औसम’ के फाइनैंस सैक्सशन से भी अंजुल एकदम समय पर पेमैंट निकलवाने में कारगर सिद्ध होती.

‘‘हमारे यहां एक फाइनैंस डिपार्टमैंट पेमैंट को ले कर बहुत बदनाम है, पर देखता हूं कि तुम्हारी हर पेमैंट टाइम से हो जाती है. वहां भी अपना जादू चलाती हो क्या?’’ एक दिन करण के पूछने पर अंजुल खीसें निपोरने लगी. अब उसे क्या बताती कि अपनी सैक्सी बौडी पर मर्दों की लोलुप्त नजरों को झेलना उस की कोई मजबूरी नहीं, अपितु कई नफे हैं. जरा अदा से हंस दिए, एकाध बार हाथ से हाथ छुआ दिया, आंखों की गुस्ताखियों वाला खेल खेल लिया और बन गया अपना मन चाहा काम.

कुछ माह बीतने के बाद इतने दिनों की जानपहचान, हर मुलाकात में फ्लर्ट, दोनों का लगभग एक ही उम्र का होना, ऐसे कारणों की वजह से अंजुल को आशा थी कि संभवतया करण उस के साथ लिवइन में रहने की पेशकश कर सकता है. तभी तो वह हर बार अपने मकानमालिक के खड़ूस होने, अधिक किराया होने, कमरा अच्छा न होने जैसी बातें किया करती, ‘‘काश, मैं किसी के साथ अपना किराया आधा बांट सकती.’’

‘‘तुम अपना रूम शेयर करने को तैयार हो? मैं तो कभी भी शेयर न करूं. मुझे अपनी प्राइवेसी बहुत प्यारी है,’’ करण की ऐसी फुजूल की बातों से अंजुल का मनोबल गिर जाता.

‘‘जरा मेरे कैबिन में आना, अंजुल,’’ रणदीप ने इंटरकौम पर कहा.

अंजुल ने उस के कैबिन में प्रवेश किया तो हर ओर से ‘हैप्पी बर्थडे टु यू’ के सुर गुंजायमान होने लगे.

रणदीप आज उस का जन्मदिन खास अपने कैबिन में औफिस के सभी लोगों को बुला कर मना रहा था, ‘‘अंजुल, हमारे औफिस में जब से आईं हैं तब से इन की मेहनत और लगन ने हमारी ऐजेंसी को कहां से कहां पहुंचा दिया…’’, रणदीप सब को संबोधित करते हुए कहने लगा.

‘‘ऐसा लग रहा है जैसे हम तो यहां काम करने नहीं तफरी करने आते हैं,’’ लोगों में सुगबुगाहट होने लगी.

‘‘हमारा तो कभी जन्मदिन नहीं मनाया गया,’’ अर्पित फुंका बैठा था. आखिर उस के नीचे आई अंजुल आज औफिस में उस से अधिक धूम मचा रही थी.

‘‘आप अंजुल हैं क्या जो रणदीप आप की तरफ यों मेहरबान हों?’’ दबेढके ठहाकों के स्वर अंजुल के कानों में चुभने लगे.

औफिस में शानदार पार्टी फिर कभी रणदीप तो कभी करण तो कभी फाइनैंस डिपार्टमैंट के अनिल साहब… अंजुल ने कहां नहीं अपने तिलिस्म का जादू बिखेरने का प्रयास किया. किंतु हाथ क्या लगा. केवल दफ्तर के लोगों की खुसपुसाहट. पुरुष सहकर्मियों की लार टपकाती निगाहें या फिर महिला सहकर्मियों की घृणास्पद हेय दृष्टि.

आज अंजुल पूरे 32 वर्ष की हो गई थी, परंतु इतनी खूबसूरती और इतनी हौट फिगर होते हुए भी कोई उस का हाथ थामने को तैयार नहीं था. सब को केवल उस की कमर में अपनी बांह की चाहत थी. व्यग्र मन और निद्राहीन नयन लिए अंजुल कई घंटे बिस्तर पर लेटी अपने कमरे की छत ताकती रही.

जब पिछले महीने वह अपना रूटीन चैकअप करवाने डाक्टर के पास गई थी तब उस लेडी डाक्टर ने भलमनसाहत में सलाह दी थी कि देखिए अंजुल, स्त्रियों का शरीर एक जैविक घड़ी के हिसाब से चलता है. मां और बच्चे की अच्छी सेहत के लिए 30 वर्ष की आयु से पहले बच्चा हो जाए तो सर्वोत्तम रहता है किंतु 35 वर्ष से देर करना श्रेयस्कर नहीं रहता. आप की बायोलौजिकल क्लौक चल रही है. आप को सैटल होने के बारे में सोचना चाहिए. इन विचारों में घिरी अंजुल के कानों में घड़ी की टिकटिक का शोर बजने लगा. व्याकुलता से उस ने तकिए से अपने कान ढक लिए.

अगले दिन अंजुल ने औफिस में एक नए प्रोजैक्ट की पिच के बारे में सुना तो रणदीप से उसे मांगने पहुंच गई.

‘‘परंतु यह प्रोजैक्ट मुंबई में है और तुम दिल्ली का ‘औसम’ अकाउंट हैंडल कर रही हो,’’ रणदीप के सुरों में हिचकिचाहट थी.

‘‘सो वाट, रणदीप, मैं दोनों को हैंडल कर सकती हूं. मुंबई में भी तो हमारा एक औफिस है. मैं वहां विजिट करती रहूंगी और ‘औसम’ तो जाती ही रहती हूं,’’ अंजुल ने रणदीप को अपनी बात मानने हेतु राजी कर लिया.

मुंबई पहुंच कर अंजुल औफिस के गैस्ट हाउस में ठहरी. कमरा एकदम साधारण

था, किंतु उस के यहां आने का लक्ष्य कुछ और था. अंजुल डरने लगी थी कि कहीं ऐसा न हो जाए कि उस के हाथों से उस की उम्र तेजी से रेत की मानिंद फिसल जाए और वह खाली हथेलियों को मलती रह जाए. अपनी सैक्सी बौडी की बदौलत उस ने कई अवसर पाए थे, जिन्हें उस ने अपनी बुद्धि व चपलता के बलबूते बखूबी भुनाया था.

उस का अनुमान रहा था कि इसी आकर्षण के कारण उसे अपना जीवनसाथी मिल जाएगा, परंतु अब बढ़ती उम्र ने उसे डरा दिया था. हो सकता है करण बात आगे बढ़ाए, मगर अभी तक उस ने ऐसा कोई इशारा नहीं दिया, केवल फ्लर्ट करता रहता है.

इसलिए समय रहते उसे अपने लिए एक जीवनसाथी तो खोजना ही पड़ेगा. मुंबई में 2 दफ्तरों में जा कर हो सकता है उसे अपने औफिस या फिर क्लाइंट औफिस में कोई मिल जाए…

जब अंजुल मुंबई में क्लाइंट के औफिस पहुंची तो उसे एक लड़के से मिलवाया गया. लड़का बेहद खूबसूरत लगा. उसे देख कर अंजुल के मन में सुनहरे ख्वाब सजने लगे.

‘‘माई नेम इस ऋषि. मैं इस औफिस की तरफ से आप का कौंटैक्ट पौइंट रहूंगा,’’ ऋषि ने अपना परिचय दिया.

‘‘आप का नाम, आप का व्यक्तित्व, सबकुछ शानदार है. आप से मिल कर बेहद प्रसन्नता हुई,’’ अंजुल ने अपने दिल में उठ रही हिलोरों को बाहर बहने से बिलकुल नहीं रोका.

उस की बात सुन कर ऋषि हौले से हंस पड़ा. काम पर अपनी पकड़ से अंजुल ने उसे पहली ही मीटिंग में प्रभावित कर दिया. फिर लंच के समय ऋषि ने अंजुल से पूछा कि औफिस की तरफ से उस के लिए क्या मंगवाया जाए?

‘‘कुछ भी चलेगा बस साथ में आप की कंपनी जरूर चाहिए,’’ अंजुल अब समय बरबाद नहीं करना चाहती थी.

पहले ही दिन से दोनों में अच्छी मित्रता हो गई. अपने बचपन, शिक्षा, कैरियर, परिवार संबंधी काफी बातें साझा करने के बाद दोनों ने शाम को एकदूसरे से विदा ली. गैस्ट हाउस लौट कर अंजुल ने कपड़े बदले और निकल गई गेटवे औफ इंडिया की सैर करने. ‘कल ऋषि से कहूंगी कि मुंबई की सैर करवाए,’ वह सोचने लगी. आज इसलिए नहीं कहा कि कहीं वह डैसपरेट न लगे. सुबह जो कमरा उसे बहुत साधारण लगा था, अब वहीं उसे उजले सपनों ने घेर लिया.

अगले दिन क्लाइंट औफिस जाते हुए रास्ते में करण का फोन आया, ‘‘हाय जानेमन, कैसा लग रहा है मुंबई?’’

‘‘फर्स्ट क्लास, शहर भी और यहां के लोग भी,’’ अंजुल ने चहक कर उत्तर दिया.

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