FILM REVIEW: जानिए कैसी है इरफान खान की ‘अंग्रेजी मीडियम’

रेटिंगः ढाई स्टार

निर्माताः दिनेश वीजन व ज्योति देशपांडे

निर्देशकः होमी अडजानिया

कलाकारः इरफान खान,राधिका मदान,दीपक डोबरियाल.

अवधिः दो घंटे 25 मिनट

लगभग दो वर्ष के बाद इरफान खान (Irrfan Khan) फिल्म‘‘अंग्रेजी मीडियम’’ (Angrezi Medium) से वापसी कर रहे हैं.  दर्शकों को भी उनकी वापसी का बेसब्री से इंतजार था. कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी का इलाज कराने के बाद इरफान ने जबसे इस फिल्म की शूटिंग शुरू की थी, तभी से उनके प्रशंसक इस फिल्म की राह देख रहे थे. फिल्मकार होमी अडजानिया की यह फिल्म पिता पुत्री के रिश्तों के साथ ही भारत व लंदन की सभ्यता व संस्कृति पर भी कटाक्ष करती है.

कहानीः

फिल्म की कहानी उदयपुर में रहने वाले चंपक बंसल (इरफान खान) और उनकी बेटी तारिका(राधिका मदान)तथा चंपक के चचेरे भाई गोपी(दीपक डोबरियाल)के इर्दगिर्द घूमती है. चंपक बचपन से ही कन्फ्यूज्ड रहे हैं. पर पत्नी के चयन में उन्हे कोई कन्फ्यूजन नहीं हुआ था. शादी के समय जब उनकी पत्नी ने आगे पढ़ाई जारी रखने की बात कही,तो चंपक ने यह कह कर उसका मुंह बंद करा दिया कि वह उसे ‘गृहशोभा’ पत्रिका लाकर देंगे,जिसे वह पढ़ सकेगी. बेटी तारिका को जन्म देने के बाद चंपक की पत्नी का देहांत हो गया. अब चंपक की जिंदगी अपनी बेटी तारिका और घसीटाराम मिठाईवाले के पोते के रूप में मिठाई की दुकान चलाते हुए गुजर रही है.

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चंपक की बेटी राधिका का बचपन से सपना है कि वह लंदन पढ़ने जाए. बेटी को पालने-पोसने और मिठाई की दुकान चलाने के साथ-साथ उसे अपने दूसरे घसीटाराम भाई-बंधुओं के साथ अदालत में नाम और संपत्ति के मुकदमे भी लड़ने पड़ते हैं.  इन मुकदमों में उसका चचेरा भाई गोपी (दीपक डोबरियाल)उसके लिए जी का जंजाल बना हुआ है. गोपी जज छेड़ा को नौ लाख रूपए की रोलेक्स घड़ी उपहार में देकर अपने पक्ष में फैसला करवा लेता है,मगर गोपी व चंपक के बीच भाई का प्रेम खत्म नही होता. तारिका ग्रैजुएट होने के साथ लंदन जाने के अपने सपने को पूरा करने के लिए कॉलेज की टॉपर बनने के लिए कमर कस लेती है.

आखिरकार वह दिन भी आ जाता है,जब तारिका को आगे की पढ़ाई के लिए लंदन जाने का मौका मिल जाता है. मगर चंपक स्कूल के कार्यक्रम में मुख्य अतिथि बनकर आए जज छेड़ा के बेइमान होने की पोल खोल देता है. इससे मामला बिगड़ जाता है,क्योंकि चंपक को यह नही पता होता कि स्कूल की प्रिंसिपल के पति हैं जज छेड़ा. पर चंपक अपनी बेटी को लंदन में पढ़ाने के सपने को पूरा करने के लिए उसे लेकर लंदन रवाना होता है,गोपी भी उसके साथ है. उसके बाद क्या क्या होता है,इसके लिए फिल्म देखना ही ठीक रहेगा.

 

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लेखनः

भावेश मडालिया,गौरव शुक्ला,विनय छावल और सारा बोडिनार की कमजोर पटकथा ने फिल्म का बंटाधार कर दिया. फिल्म का ट्रेलर देखकर इस बात का अहसास हुआ था कि इस फिल्म में लंदन या किसी भी विदेशी युनिविर्सिटी में पढ़ाई करने के दौरान किन समस्याओं से जूझना पड़ता है, उसका चित्रण होगा,मगर यह फिल्म इस मूल मकसद से इतर भटकती है. लेखकों ने इस मुद्दे की गहराई को समझे बगैर कुछ भी परोस दिया है. यहां तक कि फिल्म में पिता पुत्री के बीच के इमोशंस भी ठीक से नहीं उभर पाए. इंटरवल से पहले तो फिल्म पिता पुत्री के रिश्ते, घसीटाराम के नाम पर हक की  लड़ाई और बेटी के लंदन पढ़ने जाने का मुद्दा था,मगर इंटरवल के बाद इतने सारे किरदार व इतने सारे ेमुद्दे भर दिए गए कि दर्शक भी कन्फ्यूज्ड हो जाता है.

निर्देशनः

होमी अडजानिया का निर्देशन भी इस फिल्म की कमजोर कड़ी है. वह अंत तक दर्शकों को बांधकर रखने में बुरी तरह से असफल रहे हैं. फिल्म का क्लायमेक्स तो एकदम घटिया है. होमी अडजानिया ने फिल्म में कई मुद्दे एक साथ उठाने की कोशिश में किसी के साथ भी न्याय नही कर पाए. डिंपल कापड़िया और उनकी बेटी करीना के बीच अनबन की वजह साफ नही है? लंदन पहुंचने के बाद तारिका में जो बदलाव आता है,रिश्तों को लेकर  उसकी सोच बदलने व उसके बागी होने को भी सही ढंग से चित्रित नहीं किया गया है. फिल्म को एडीटिंग टेबल पर कसे जाने की भी जरुरत थी.

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अभिनयः

अति कमजोर कहानी व पटकथा के बावजूद चंपक के किरदार में इरफान खान ने शानदार अभिनय किया है. जितने समय तक इरफान परदे पर रहते हैं,वह अपनी बॉडी लैंग्वेज, कमाल की कॉमिक टाइमिंग,अपने उदयपुरी बोलचाल की भाषा और जज्बाती दृश्यों से दर्शकों को बांधकर रखते हैं. परदे पर उन्हे देखकर दर्शक यह भूल जाता है कि वह गंभीर बीमारी से मुक्त होने के बाद अभिनय कर रहे हैं. हर इमोशन को जिस तरह से इरफान ने परदे पर अपने अभिनय से उकेरा है,उससे यह साबित हो जाता है कि उन्हे एक समर्थ कलाकार क्यों कहा जाता है. मासूम,सपने देखने वाली,पिता को प्यार करने वाली,बागी,लंदन पहुंचते ही वहां के रंग ढंग में ढल जाने वाली तारिका के किरदार के साथ पूरी तरह से न्याय करने में राधिका मदान सफल नही रहीं. पिता व पुत्री के बीच जो इमोश्ंास उभर कर आने चाहिए थे,वह इरफान व तारिका के बीच नही उभर पाते. गोपी के किरदार में भाई के रूप में दीपक डोबरियाल ने इरफान के साथ दमदार जुगलबंदी पेश की है. वह कई जगह लोगों को हंसाते भी हैं. छोटे किरदार में करीना कपूर अपनी छाप छोड़ जाती हैं. पंकज त्रिपाठी की प्रतिभा को जाया किया गया है. पंकज त्रिपाठी ने यह फिल्म क्यों की,यह समझ से परे है. अन्य कलाकारो में डिंपल कपाड़िया,रणवीर शोरी,किकू शारदा, जाकिर हुसेन ने ठीक ठाक अभिनय किया है. फिल्म का गीत संगीत निराश करता है. महज इरफान खान का उत्कृष्ट अभिनय  देखने के लिए यह फिल्म देखी जा सकती.

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