नेताओं का राज खत्म

कोरोना ने सरकारों की ताकत को बढ़ा दिया है या यों कहें कि कोरोना के नाम पर नौकरशाही ने नेताओं को मूर्ख मान कर सत्ता फिर हाथ में ले ली है. पहले सारे फैसले मंत्री किया करते थे, जिन्हें अपने फैसलों का जनता पर क्या असर पड़ेगा, का पूरा एहसास होता था. अब सारे फैसले अफसर कर रहे हैं. प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, राज्यपाल सब उसी तरह अपने अफसरों का मुंह ताक रहे हैं जैसे औरतें घरों में फैसले लेने पर पति, पिता या पुत्र का मुंह देखती हैं.

अब ज्यादातर फैसलों पर हस्ताक्षर सचिवों और जिलाधीशों के नजर आएंगे. टैलीविजन ने मंत्रियों को छोड़ सीधे पुलिस अधीक्षकों और जिलाधीशों से बात करनी शुरू कर दी है. चूंकि सचिव व अफसर दफ्तरों में बैठे हैं, वे पत्र डिक्टेट करा सकते हैं, कानून ने उन्हें हक भी दे रखा है कि वे मंत्रियों को इग्नोर कर सकते हैं.

अब देश में न सत्तारूढ़ दल हैं न विपक्षी दल. अब तो शासक हैं जो नौकरशाही का नाम है. ये आईएएस, आईपीएस अफसर हैं. इन्हीं की चल रही है. मंत्रियों को तो दर्शन देने के लिए बुलाया जाता है. आदेश तो नौकरशाही के हैं. कौन सी सीमा खुलेगी, कौन सी रेल चलेगी, कौन सा हवाईजहाज उड़ेगा, कहां लाठी चलेगी, कहां पैसा खर्च होगा, ये सब नौकरशाह तय कर  रहे हैं.

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12 मई को प्रधानमंत्री ने राष्ट्र के नाम अपने 33 मिनट के भाषण में 3 मिनट भी काम की बात नहीं की, क्योंकि उन्हें शायद अब मालूम ही नहीं था कि क्या कहना है. 800 रूपए की बरसाती को पीपीई कह कर उसे बनाने में महारत मानने वाले नेता की कमजोरी अफसर भांप चुके हैं. सभी नेता टैलीविजन पर डरेसहमे नजर आते हैं.

इस का नुकसान क्या होगा पता नहीं. पर जैसे औरतों के हाथों में असली सत्ता न होने से घर नहीं चल सकते वैसे ही चुने नेताओं के हाथों में सत्ता न हो तो देश नहीं चल सकता. आज नहीं तो कल अनार्की- अराजकता- होगी ही. रेलवे स्टेशनों, राज्यों की सीमाओं, एअरपोर्टों, अस्पतालों में सब दिख रहा है. यह सुधरेगा नहीं, बिगड़ेगा.

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