अकेले हैं तो क्या गम है

आजकल अधिकांश लोग अकेले रहते हैं. आप भी उन में से एक हैं तो कहीं आप को यह तो नहीं लगता कि अकेले रहना बहुत बुरी और मुश्किल चीज है. आप अपने अकेले रहने वाले समय को ऐंजौय करने, रिलैक्स करने के बजाय घर में इधर से उधर भटकते हुए यह सोचने में तो नहीं बिता देतीं कि आप इस समय क्या करें?

अगर ऐसा है, तो आप इन लोगों के बारे में जरूर जानिए:

65 वर्षीय श्यामला आंटी अकेली रहती हैं, पति का निधन हो चुका है, इकलौती विवाहित बेटी अपनी फैमिली के साथ आस्ट्रेलिया में सैटल्ड है. आंटी हम सब के लिए प्रेरणास्रोत हैं. हम में से किसी ने भी कभी उन्हें किसी भी बात पर झींकते हुए नहीं देखा. वे अपने अकेलापन को बहुत ही पौजिटिव तरीके से लेती हैं, ऐसा भी नहीं कि उन्हें कभी कोई परेशानी नहीं होती. तबीयत खराब होने पर खुद ही डाक्टर के पास जाती हैं, कभी किसी को नहीं कहतीं कि उन्हें कंपनी चाहिए. मेड जरूरी काम निबटा जाती है, वही अगर किसी को बताए कि आंटी की तबीयत ठीक नहीं है, तो तभी पता चलता है.

महीने में एक बार मुंबई में किसी रिश्तेदार से मिल आती हैं. कैब भी खुद बुक करना सीख लिया है, बेटी दिन में एक बार बात करती है, उन की हर प्रौब्लम को वहीं से निबटा देती है. शाम को अच्छी तरह तैयार हो कर आंटी नीचे उतरती हैं, सैर करती हैं, अपनी हमउम्र महिलाओं के साथ बैठती हैं, जो महिलाएं अपने बेटेबहू, घरपरिवार की बुराई करती हैं, उन से फौरन दूरी बना लेती हैं. हंसमुख, शालीन आंटी का स्वभाव ऐसा है कि जब भी उन्हें हमारी कोई हैल्प चाहिए होती है, कोई पीछे नहीं हटता. ऐसा नहीं कि उन्हें घर में अकेलापन कभी खलता नहीं होगा पर यह अकेलापन उन्होंने स्वीकार कर लिया है और अब इसे ऐंजौय करने लगी हैं. गु्रप में किसी को पार्टी करनी हो और यदि वह अपने घर में न कर पा रही हो, कारण कुछ भी हो, आंटी का घर हमेशा सब के लिए हर काम के लिए खुला है.

हंस कर कहती हैं, ‘‘अरे, यहां कर लो पार्टी, मेरी क्रौकरी भी इस बहाने निकल जाएगी, कुछ रौनक होगी.’’

देखते ही देखते उन के यहां पार्टी हो जाती है और किसी की भी अपने घर पार्टी न कर पाने की प्रौब्लम खत्म.

जीवन में किसी के सामने कभी भी अकेले रहने का समय आए तो सब यही सोचती हैं कि अकेले रहने की प्रेरणा आंटी से लेनी है.

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नीरजा के बेटेबहू जब भी विदेश से मुंबई आते, तो उन का मन खुशी से नाच उठता. पति विशाल के साथ मिल कर ढेरों प्लानिंग कर लेतीं, कितनी ही चीजें उन की पसंद की बना कर रख देतीं. उन के वापस जाने के बाद जीवन में फिर से छाए अकेलेपन के अवसाद में कई दिनों तक घिरी रहतीं. पर धीरेधीरे बेटेबहू के बदलते लाइफस्टाइल ने उन के सोचने की भी दिशा बदल दी.

अब वे उन के जाने पर जरा भी अकेलापन महसूस नहीं करतीं, अब वे अपने अनुभव कुछ इस तरह से बताती हैं, ‘‘बच्चों की शिकायत नहीं कर रही हूं. उन का लाइफस्टाइल अलग है हमारा अलग. वे

11 बजे सो कर उठते हैं, रात दोस्तों से मिलमिला कर पार्टी कर के 2-3 बजे लौटते हैं. हमारे पास तो बहुत ही थोड़ी देर बैठते हैं पर मेरा पूरा रूटीन घर के हर काम का समय बुरी तरह बिगड़ जाता है, रात को नींद डिस्टर्ब होती है, हमें जल्दी सुबह उठने की आदत है. मगर बच्चे घर में रहते हैं तो पूरा दिन किचन समेटने की नौबत ही नहीं आती. बहू किचन में झांकती भी नहीं. मेरी हालत खराब हो जाती है. उन की दुनिया अलग ही है. हमारी भी अलग. अब तो जब वे चले जाते हैं चैन की सांस आती है. अब अकेलेपन में आराम दिखता है, शांति है. साथ रहने पर किसी न किसी बात में मनमुटाव भी हो जाता है, जो अच्छा नहीं लगता. वे वहां खुश रहें, हम यहां खुश रहें, बच्चों के बिना अब अकेलेपन को खलता नहीं, हम अकेलेपन को ऐंजौय करते हैं.’’

70 वर्षीय सुधा रिटायर्ड टीचर हैं. उन के बेटाबेटी उसी शहर में अपनेअपने परिवार के साथ अलग रहते हैं. सुधा पति की डैथ के बाद से अकेली ही रह रही हैं. उन्हें कभी किसी पर आश्रित हो कर रहना भाया ही नहीं. हमेशा अकेली रहीं.

उन का कहना है, ‘‘मुझे अकेले रहने की आदत है, मैं नहीं चाहती साथ रह कर बेटे के साथ कोई खटपट हो. अभी सब अलग हैं, सब को अपनी प्राइवेसी चाहिए, कोई जरूरत होने पर एक फोन पर कोई भी आ ही जाता है. मिलतेजुलते तो रहते ही हैं, किसी के साथ रहने का बंधन नहीं है. जब मन हुआ अपनी फ्रैंड्स को बुलाती हूं, जब मन हुआ घूमने चली जाती हूं, सब अपनी मरजी से जीएं, क्या बुरा है. अकेलापन कोई समस्या है ही नहीं, लाइफ एंजौय करनी आनी चाहिए.’’

26 वर्षीय संजय विदेश में पढ़ता है. इंडिया आने पर वहां के लाइफस्टाइल के बारे में पूछने पर कहता है, ‘‘शुरू में मन नहीं लगता था, काम करने की आदत नहीं थी, बहुत अकेलापन लगता था, फ्रैंड्स भी नहीं थे पर अब सब काम खुद करतेकरते अकेले रहने की आदत सी पड़ गई है, लेट आने पर किसी की रोकटोक की आदत नहीं रही. अपनी मरजी से जब जो मन होता है, करता हूं. अब अकेले रहने को ऐंजौय करता हूं. अब लगता है किसी के साथ रहने पर काफी ऐडजस्ट करना पड़ेगा,’’ और फिर हंस पड़ता है.

42 वर्षीय दीपा तो अकेले रहने की कल्पना पर ही जोश से भर उठती है. वह कहती है, ‘‘यार, सपना होता है कि कभी अकेली भी रहूं. पति टूर पर जाएं तो मजा आ जाता है. वे हर तरह से अच्छे पति हैं पर उन के टूर पर जाने पर जो थोड़ी फ्री होती हूं न, जो रूटीन चेंज होता है, अच्छा लगता है और उस पर बच्चे भी बाहर व्यस्त हों तो क्या कहने, यह भी टाइम बहुत बड़ा गिफ्ट लगता है नहीं तो सुबह से रात तक अपने लिए सोचने का टाइम मुश्किल से ही मिलता है. मुझे तो इंतजार है उस दिन का जब बच्चे पढ़लिख कर सैटल हों और मुझे अकेले रहने का टाइम मिले और मैं अपने हिसाब से अपने कुछ शौक पूरे कर लूं.’’

24 वर्षीय वीनू को मुंबई में जब ट्रेनिंग के लिए आना पड़ा तो पूरा परिवार हैरानपरेशान हो गया, भोपाल से मुंबई आ कर वह 2 और लड़कियों के साथ रूम शेयर कर के रहने लगी. उस के पेरैंट्स बहुत परेशान कि कैसे रहेगी, क्या करेगी, यह तो एक दिन भी हमारे बिना नहीं रही. सब का रोरो कर बुरा हाल, 1 महीना ही लगा वीनू को मुंबइया लाइफ में सैट होने में. हमेशा घरपरिवार की सुरक्षा में रहने वाली वीनू बाहर निकल कर आत्मविश्वास से भरती चली गई. सारे काम गूगल की हैल्प लेले कर पूरी तरह आत्मनिर्भर हो गई और अपनी इस नई दुनिया में अकेलापन ऐसा भाया कि अब घर वाले  उसे अकेले इतनी खुश देख हैरान रह जाते.

45 वर्षीय दीपा को लिखने का शौक है, वे कभी रात में घर में अकेली नहीं रहीं. पति टूर पर  होते हैं तो दोनों बच्चे तो साथ होते ही.

एक बार कुछ ऐसा हुआ कि पति टूर पर और दोनों बच्चों को तेज बारिश के कारण 2 दिन मुंबई में अपने फ्रैंड्स के घर रुकना पड़ा. वे बताती हैं, ‘‘पहले तो मैं यह सोच कर घबराई कि अकेली कैसे रहूंगी, पर सच मानिए, इस अकेलेपन को मैं ने इतना ऐंजौय किया कि मैं खुद हैरान रह गई. अपने रूटीन से फ्री हो कर अपने लेखनकार्य में इतनी व्यस्त रही कि पता नहीं कब का सोचा हुआ शांति से लिख कर पूरा कर पाई. इतना कुछ घर के कामों में मन में ही रखा रह जाता है. अब पता नहीं इतना अच्छा मौका कब मिलेगा जो मैं इस तरह से कुछ लिख पाऊंगी.’’

अकेलापन इतनी बड़ी समस्या है ही नहीं जितना लोग समझते हैं. अकेलापन अकसर नैगेटिव विचारों से भर देता है, इसलिए लोग अकसर अकेले रहने से बचते हैं. आप को अकेलापन बोझ न लगे इस के लिए ये टिप्स आजमा सकती हैं:

– इस समय करने के लिए कोई रोचक ऐक्टिविटी ढूंढ़ें, सिर्फ बैठ कर टीवी देखना ही काम न हो.

– स्वयं से जुड़ें, फोन, टैब, लैपटौप से थोड़ा ब्रेक ले कर कुछ और करें, आप को महसूस होगा, आप को किसी की जरूरत नहीं. आप अकेले बहुत कुछ ऐंजौय कर सकती हैं.

– स्वयं से जुड़ने का, खुद को समझने का यह समय बहुत अच्छा होता है. यह आप का टाइम होता है. आप जो चाहें कर सकती हैं.

– इस का मतलब यह नहीं कि आप को घर में ही अकेले रहना है. आप बाहर जाएं, कहीं कौफी पीएं, सैर करें, पार्क में बैठ कर कुछ पढ़ें.

– डाक्टर शैरी के अनुसार अपने साथ ही समय बिताने से खुद को समझने में आसानी होती है. आप सोचें कि आप को जीवन में क्या चाहिए, अपनी पसंद से जरूर कुछ करें.

– अकेले रहने का मतलब यह समझ लें कि आप खुद पर फोकस कर सकते हैं. अपनी फन लिस्ट पर ध्यान देना शुरू करें, जो अभी तक आप के मन में थी.

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– लाइफ ऐंजौय न करने का यह बहाना न ढूंढ़ें कि आप अकेले हैं. जीवन में अच्छी चीजों को देखना सीखें, आशावादी दृष्टिकोण रखें.

– कई बार आप अपने पार्टनर या फ्रैंड को नहीं, उन के साथ बिताया गया समय, मूवी या डिनर पर जाना याद कर रहे होते हैं, तो अब भी स्वयं को रोके नहीं, बाहर जाएं, मूवी देखें, अच्छी जगह कुछ खाएं भी.

– ऐक्सरसाइज जरूर करें, नए दोस्त बनाना चाहते हैं तो जिम जौइन कर लें. अपने घर में ही सिमट कर न रहें. नेचर को ऐंजौय करें. बाहर जाएं, घूमेंफिरें, लोगों से जोश, खुशी से मिलें, आप के नए दोस्त बनेंगे.

– कुछ चैरिटी वर्क करें, किसी हौस्पिटल, किसी संस्था या अनाथालय से जुड़ सकते हैं.

– कुछ लिखें. लिखने से न सिर्फ आप की कल्पनाशक्ति बढ़ती है, लिखना आप को सकारात्मक विचारों से भर कर खुशी भी देता है.

– अच्छी किताबें पढ़ें, पढ़ने का शौक पूरा करने के लिए अकेलापन वरदान है.

– म्यूजिक, डांस या कोई इंस्ट्रूमैंट सीखें.

– लोगों से, पड़ोसियों से मिलने पर अच्छी मधुर बातें करें, किसी से कट कर जीने की आदत न डालें.

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