लाइफ पार्टनर चुनने से पहले ध्यान रखें ये 8 बातें

जब तक 2 इंसान अकेले होते हैं वे अजनबी कहलाते हैं. फिर जब इन अजनबियों में जान-पहचान होती है, तो यह परिचय कहलाता है. धीरेधीरे परिचय दोस्ती की ओर कदम बढ़ाता है. फिर जब घनिष्टता बढ़ कर प्रगाढ़ हो जाती है तब इस घनिष्टता को संबंध में बदलने के वादे किए जाते हैं. लेकिन दोस्ती तक तो काफी कुछ सहन और नजरअंदाज किया जा सकता है, लेकिन जब बात इस सीमा को लांघ कर पतिपत्नी बनने की दहलीज पर आ रुके तो बहुत से गंभीर निर्णय लेने पड़ते हैं. आइए, उन की चर्चा कर ली जाए.

1. जन्मकुंडली कहां तक मान्य

हिंदू समाज में रिश्ता तय करने से पहले पंडितजी से लड़केलड़की की कुंडली मिलान कराने की आदत बढ़ रही है. मान्यता है कि 36 या कम से कम 20 गुणों का मेल हो जाए तो बात आगे बढ़ाई जाती है. किंतु क्या गुणों का मिलान रिश्ते की सफलता का पैमाना है? कदाचित नहीं. गुण नहीं स्वभाव अधिक महत्त्वपूर्ण है. कहते हैं यदि एक को अग्नि और दूसरे को जल मान लिया जाए तो भी जोड़ी समझबूझ के साथ जम जाती है. यदि दोनों जल हैं तब भी चिंता की कोई बात नहीं. लेकिन यदि दोनों अग्नि तत्त्व हैं तो जीवन नरक बन सकता है, क्योंकि समझौता दोनों को मान्य नहीं होता. यह कुंडली का पाखंड है, जिसे पंडितों ने अपना हित साधने के लिए हिंदू समाज पर थोपा है ताकि विवाह जैसे नितांत व्यक्तिगत मामले में भी दखल दे कर मोटी कमाई की जा सके.

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2. क्या है आय का साधन 

जीवननैया जिस बल के आधार पर चलती या खिसकती है वह है पैसा. अत: यह जानना बेहद जरूरी होता है कि भावी वर काम क्या करता है? किस ओहदे पर है और कमाता कितना है? भावी तरक्की के क्या आसार हैं? यह वह पक्ष है जिसे किसी भी सूरत में हलके में नहीं लिया जा सकता. क्या वह सरकारी नौकर है? क्या वह प्राइवेट कौरपोरेट सैक्टर का कर्मचारी है या फिर अपना कामधंधा है?

3. पति-पत्नी की आयु में अंतर

हालांकि बहुत से मामलों में (क्योंकि वे अपरिहार्य होते हैं) वरवधू के बीच आयु के अंतर को गंभीरता से नहीं लिया जाता, लेकिन ऐसा करना सरासर गलत है. अधिक से अधिक 3 से 5 वर्ष का अंतर मान्य होता है, इस से अधिक समझौता और 10 या अधिक वर्षों का अंतर मजबूरी और या फिर जबरदस्ती कही जाएगी. यदि दोनों युवा हैं और आयु में अंतर भी अधिक नहीं है तो आपसी तालमेल जल्दी और सरलता से हो सकता है. यह भी आवश्यक है कि पुरुष स्त्री से शारीरिक रूप से अधिक पुष्ट हो.

4. शादी मनोरंजन नहीं जिम्मेदारी है

आमतौर पर युवामन विवाह को स्वच्छंदता, यौन स्वतंत्रता और मनोरंजन का लाइसैंस मान लेता है. लेकिन यह बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि विवाह एक जिम्मेदारी है, जो जीवन के अंत तक निभानी होती है. शादी से पहले का और बाद का जीवन परिवर्तन की पराकाष्ठा का चरम है. पतिपत्नी एक ही रात में (फेरों के बाद) वयस्क हो जाते हैं. इस बिंदु पर जीवन में गंभीरता आ जानी चाहिए.

5. पारिवारिक सजगता

यह अलग बात है कि लाइफपार्टनर को जीवन भर आप का साथ देना है, आप के साथ ही रहना है, लेकिन उस के पारिवारिक संस्कार क्या हैं, रीतिरिवाज क्या हैं, भावी सोच कैसी है, यह सब कुछ जानना भी आवश्यक है.

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6. पार्टनर कितना स्वस्थ

विवाह जैसे गंभीर विषय पर चर्चा, भागदौड़, लेनदेन व अन्य कार्यकलापों के बीच संभवतया किसी का इस बात पर ध्यान नहीं होता कि भावी दंपती का स्वास्थ्य कैसा है? विवाह से पूर्व ब्लड टैस्ट (एच.आई.वी. टैस्ट भी), ब्लड ग्रुप व अन्य परीक्षण जरूर करवाएं ताकि वैवाहिक जीवन निर्बाध चल सके.

7. लाइफस्टाइल कैसा है

वह किसी बुरी आदत जैसे धूम्रपान, शराब अथवा अन्य किसी नशे का आदी तो नहीं है? दूसरी महिलाओं के विषय में क्या सोचता है? बुजुर्गों की इज्जत करता है या नहीं? अपने कैरियर के प्रति कितना गंभीर है? भावी बच्चों को ले कर क्या सोच है? ये सब बातें सुनने में भले अटपटी लगती हैं, लेकिन है गंभीर.

8. कान का कच्चा है या समझदार

शादी के बाद कभीकभी यह समस्या शुरुआती दिनों में ही उठ खड़ी होती है कि अमुक लड़की का तो बौयफ्रैंड था. लड़के की गर्लफ्रैंड थी. ऐसा कोई एकतरफा इश्क के चलते भी कह सकता है, तो कोई द्वेषवश भी ऐसा जहर उगल सकता है. अत: किसी की बात पर ध्यान न दें और अपना परिवार अपने तरीके से चलाएं.

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