आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में महिलाएं अपनी सेहत के प्रति लापरवाह होती जा रही हैं. इस से घर और कैरियर दोनों के बीच तालमेल बैठाए रखना उन के लिए चुनौती बनता जा रहा है. सेहत का ध्यान न रखने की वजह से महिलाएं कम उम्र में ही कई बीमारियों की शिकार हो जाती हैं, जिन्हें लाइफस्टाइल डिसऔर्डर बीमारियां भी कहा जा सकता है. इस के बारे में मुंबई के फोर्टिस हौस्पिटल की स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञा डा. वंदना सिन्हा बताती हैं कि बीमारियां कभी भी अचानक नहीं होतीं. उन का अलार्म तो पहले ही बज चुका होता है, जिसे महिलाएं नजरअंदाज करती रहती हैं. ये बीमारियां तो दरअसल युवावस्था से ही शुरू हो जाती हैं.
महिलाओं के बदले लाइफस्टाइल की वजह से उन का मोटापा भी खूब बढ़ा है, जिस की वजहें जंक फूड का अत्यधिक सेवन, समय से भोजन न करना, डाइटिंग करना आदि हैं. इन से हारमोनल बैलेंस बिगड़ता है. आजकल करीब 40% महिलाओं में पौलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम भी पाया जाता है. इस में ओवरीज ठीक से काम नहीं करतीं और हारमोनल संतुलन बिगड़ता है, जिस से चेहरे और बौडी पर अधिक हेयर ग्रो होने लगता है. त्वचा रफ हो जाती है और ऐक्ने का प्रभाव दिखता है.
एक सर्वे के मुताबिक, आज के दौर में 75% महिलाओं का कोई न कोई लाइफस्टाइल डिसऔर्डर है. इस से 42% को पीठ दर्द, मोटापा, डिप्रैशन, डायबिटीज, हाइपरटैंशन की शिकायत है. ऐसा न हो इस के लिए लड़कियों को किशोरावस्था से ही लाइफस्टाइल में परिवर्तन करना आवश्यक है, जिस के लिए सही व्यायाम, सही डाइट, मोटापे को न बढ़ने देना आदि सभी विषयों पर मातापिता को ध्यान देना आवश्यक है, क्योंकि ये आदतें ऐसी हैं, जिन्हें उन्हें कम उम्र से ही अभ्यास में लाना जरूरी है.
कम उम्र में दिल का दौरा
डा. वंदना बताती हैं कि दिल की बीमारी का खतरा भी महिलाओं में तेजी से बढ़ रहा है. आजकल 24-25 साल की उम्र में भी लड़कियों को दिल का दौरा पड़ जाता है, जो चिंता का विषय है. अगर लड़कियां ओवरवेट हैं, तो वे पतला होने के लिए खाना छोड़ देती हैं. तब जरूरत से कम खाना खाने पर वे ऐनीमिया और हीमोग्लोबिन की मात्रा कम होने से बारबार इन्फैक्शन की शिकार होती हैं.
इस के अलावा जब लड़कियों का स्वास्थ्य खराब रहने लगता है, तो वे मानसिक बीमारी की शिकार हो जाती हैं, जिस में डिप्रैशन, सुसाइडल टैंडैंसी आदि प्रमुख हैं. दरअसल, इस उम्र में पीयर प्रैशर अधिक होता है, जिस से बौयफ्रैंड या रिलेशनशिप न होने पर वे अपनेआप को कमतर समझना आदि को अपने अंदर पाल लेती हैं. क्या सही क्या गलत है यह समझना उन के लिए मुश्किल हो जाता है, तो वे दोस्तों की संगत में जाती हैं, जहां सही राय नहीं मिल पाती. ऐसे में मातापिता ही उन्हें सही दिशानिर्देश दे सकते हैं. युवावस्था में स्ट्रैस लैवल बढ़ने की वजह से नींद में कमी आती है, जिसे स्लीपिंग डिसऔर्डर कहते हैं. आजकल की लड़कियों में स्मोकिंग, ड्रिंकिंग की आदत भी बढ़ चुकी है, जो उन के लिए खतरनाक है.
विटामिन डी की कमी
विटामिन डी की कमी भी आजकल की युवतियों और महिलाओं में कौमन है. डा. वंदना का कहना है कि इस से महिलाओं में मैंस्ट्रुअल समस्या बढ़ रही है और शहरी क्षेत्रों में इस की संख्या अधिक है. विटामिन डी की कमी से महिलाओं को और भी कई गंभीर बीमारियों की शुरुआत हो जाती है. मसलन इम्यूनिटी का कम हो जाना, इनफर्टिलिटी का बढ़ना, मधुमेह की बीमारी, पीरियड की अनियमितता, स्तन कैंसर आदि. ओवरी के सही फंक्शन के लिए विटामिन डी जरूरी है. अत्यधिक दर्द के साथ पीरियड होने पर ऐंड्रोमैट्रियौसिस का खतरा रहता है, जिस में ओवरी में सिस्ट बन जाता है, जिस से आगे चल कर इनफर्टिलिटी बढ़ती है. यह समस्या आजकल 15 से 25 वर्ष की लड़कियों में अधिक देखने को मिल रही है, जो विटामिन डी की कमी की वजह से हो रही है. ये सभी बीमारियां लाइफस्टाइल की वजह से हैं, जिस का परिणाम स्ट्रैस है. विटामिन डी पूरे शरीर के लिए जरूरी है. यह हमारे शरीर में कैल्सियम के स्तर को नियंत्रित करता है.
संक्रमण का खतरा
संक्रमण की बीमारी भी आजकल महिलाओं में अधिक है. आजकल के युवा कम उम्र में अनप्रोटैक्टेड सैक्स में लिप्त होते हैं, तो उन के मल्टीपल सैक्सुअल पार्टनर्स भी होते हैं. ऐसे में हाइजीन पर ध्यान न देने से वे इन्फैक्शन के शिकार हो जाते हैं. जबकि पर्सनल हाइजीन पर अधिक ध्यान देना आवश्यक है. महिलाएं आजकल जेनाइटल ट्यूबरकुलोसिस की शिकार भी हो रही हैं. इस बीमारी की जब तक सही जांच न हो पता नहीं चलता. इस बीमारी के तहत वे मां नहीं बन पातीं. अगर गर्भधारण करती भी हैं, तो बच्चा पूरे 9 महीने नहीं ठहरता. बायोप्सी से इस का पता चलता है. कई जगह पर तो इस की जांच भी संभव नहीं होती. लाइफस्टाइल से जुड़ी सब से खतरनाक बीमारी हार्ट डिजीज है. अधिकतर महिलाएं शहरों में कामकाजी हैं. उन के खाने में फैट अधिक होता है और वे व्यायाम नहीं करतीं, इसलिए उन का कोलैस्ट्रौल लैवल बढ़ जाता है. इस से कम उम्र में ही हाई ब्लडप्रैशर, डायबिटीज, थायराइड आदि सब दिखने लगता है. डा. वंदना कहती हैं कि पहले जो बीमारी 45 वर्ष के बाद दिखती थी अब 27-28 साल की उम्र में ही दिखने लगी है. कामकाजी महिलाओं में स्ट्रैस लैवल काफी बढ़ चुका है.
मेनोपौज के बाद बीमारी बढ़ने की वजह कम उम्र में अपना ध्यान न रखना है. कुछ बीमारियां आनुवंशिक होती हैं. पर अधिकतर हमारे लाइफस्टाइल की वजह से ही होती हैं. मैटाबौलिज्म ठीक न रहने की वजह से रोगप्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है. इस से बीमारियां दिनोंदिन बढ़ती जाती हैं. अगर शुरू से ही कुछ खास बातों पर ध्यान दिया जाए तो इन बीमारियों से काफी हद तक बचा जा सकता है. डा. वंदना के अनुसार, इस के लिए कुछ टिप्स निम्न हैं:
- 30 मिनट फिजिकल ऐक्टिविटी हर दिन करें.
- 10 मिनट ब्रीदिंग ऐक्सरसाइज अवश्य करें. सुबह 5 मिनट शाम को 5 मिनट.
- रोज 10 से 15 गिलास पानी अवश्य पीएं.
- शुगर वाले खाद्यपदार्थ कम खाएं, प्रोटीन अधिक लें.
- फाइबर, कार्बोहाइड्रेट और कौंप्लैक्स कार्बोहाइड्रेट को डाइट में जरूर शामिल करें. फैट को कम से कम लें.
- चाय, कौफी अधिक न पीएं. ग्रीन टी का सेवन करें, जो स्वास्थ्य के लिए अच्छी है.
- स्ट्रैस लैवल कम करने के लिए अपने लिए समय निकालें. अपनी मनपसंद की किताबें व पत्रिकाएं पढ़ें और मूवी आदि देखें, जिस से आप को खुशी मिले.
- सर्वाइकल कैंसर का वैक्सिन 11-12 साल की उम्र में अवश्य लगवाएं.
- मोटापे को बढ़ने से रोकना बेहद जरूरी है. अगर यह समस्या आनुवंशिक है, तो डाक्टर की सलाह के आधार पर दिनचर्या बनाएं और फिट रहें.