लिव इन रिलेशन: क्या करें जब हो जाए ब्रेकअप

राखी कुछ दिनों से बेहद परेशान दिख रही थी. दफ्तर के काम में भी उस का मन नहीं लग रहा था. वह एक जिम्मेदार पद पर कार्यरत थी. ऐसे में बौस का उस पर झल्लाना लाजिम था. यह सब उस की सहकर्मी नीलिमा से न देखा गया और एक दिन लंच टाइम में उस ने राखी के मन को कुरेदा तो वह फफक उठी, ‘‘नीलिमा, मैं और मिहिर 1 साल से लिव इन रिलेशनशिप में रह रहे थे. मैं ने तो अपने मातापिता को भी मना लिया था शादी के लिए, लेकिन अब वह कह रहा है कि वह इस रिश्ते से ऊब चुका है. उसे स्पेस चाहिए. कुछ हफ्तों से हम एक छत के नीचे रह कर भी अजनबियों की तरह रह रहे हैं. 3 दिन से वह मुझे मिला भी नहीं है. न कौल, न मैसेज. कुछ भी रिप्लाई नहीं कर रहा,’’ और फिर वह फूटफूट कर रोने लगी.

नीलिमा ने राखी को जी भर कर रोने दिया. फिर दफ्तर के बाद उसे अपने घर ले गई. नीलिमा अपने मम्मीपापा और भैयाभाभी के साथ रहती थी. राखी को एक परिवार का भावनात्मक सहारा मिला और अपनी एक सहेली का हौसला, जिस से उस का मनोबल मजबूत हुआ और वह आगे की जिंदगी हंसतेहंसते बिता पाई. राखी जैसी न जाने कितनी लड़कियों को सहजीवन या लिव इन रिलेशनशिप ने अपने मकड़जाल में फंसाया हुआ है, जिस से निकलतेनिकलते वे टूट कर पूरी तरह बिखर जाती हैं और हाथ लगती है सिर्फ हताशा और मानसिक अवसाद. कुछ वर्षों पहले जब सुप्रीम कोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप को कानूनी मान्यता दी थी तब युवावर्ग खुशी से झूम उठा था मानो खुले आसमान के साथसाथ अब उन्हें सुनहरे पंख भी मिल गए हों. मगर अब इस रिश्ते की स्वच्छंदता बहुतों को घायल कर रही है, जिन में महिलाएं, लड़कियां ज्यादा हैं.

नैंसी के साथ तो बहुत ही बुरा हुआ. 6 महीने तक प्रकाश के साथ सहजीवन में रहने के बाद अचानक एक हादसे में प्रकाश की मौत हो गई. किसी तरह वह इस सदमे से खुद को उबारती है तो पता चलता है कि वह मां बनने वाली है और अब गर्भपात की समयसीमा भी निकल चुकी है. ऐसे में वह जीवन से हताश हो कर आत्महत्या जैसा गलत कदम उठा लेती है और पीछे छोड़ जाती है अपना रोताबिलखता परिवार और उन के अनमोल सपने जो कभी उन्होंने नैंसी के लिए देखे थे.

महानगरों में ऐसे कई उदाहरण मिल जाएंगे. अब सवाल यह उठता है कि यदि विवाह संस्था बंधन और लिव इन आजादी है, तो फिर इस आजादी में इतनी तकलीफ क्यों सहन करनी पड़ रही है लड़कियों को? इस का जवाब है समाज की दोयमदर्जे की मानसिकता. भारतीय महिलाओं के लिए संबंधों को तोड़ पाना अभी भी आसान नहीं है. सामाजिक ही नहीं भावनात्मक स्तर पर भी. पुरुष तो ऐसे रिश्तों से अलग हो कर शादी भी कर लेता है और समाज स्वीकार भी लेता है, परंतु वही समाज महिला के चरित्र पर उंगली उठाता है.

ऐसी स्थिति में क्यों न हम कुछ बातों का खयाल रखते हुए एक सुकून भरी जिंदगी जीएं. लिव इन रिश्ते के टूटने पर पलायनवादी होने से अच्छा है कि हम इसे अपना अनुभव समझते हुए सबक लें. यह सच है कि महिलाओं के लिए साथी के साथ को भूलना और जीवन के आगामी संघर्षों से मुकाबला करना आसान नहीं होता. लेकिन जिंदगी रुकने का नहीं, निरंतर चलने का नाम है. बस जरूरत है तो इस रिश्ते से जुड़े कुछ पहलुओं पर गौर करने की ताकि लिव इन रिलेशनशिप से टूट कर न बिखरें. खुद को रखें व्यस्त: यदि आप नौकरी करती हैं, तो आप के लिए खुद को व्यस्त रखना थोड़ा आसान होगा. अपने औफिशियल टारगेट को पूरा करने पर ध्यान केंद्रित करें. हर वक्त यह न सोचती रहें कि अपने पार्टनर को कैसे मनाया जाए क्योंकि आप के पार्टनर ने मानसिक तैयारी के साथ ही आप को छोड़ा है, इसलिए वह तो आने से रहा.

नौकरी न करने वाली लड़कियों को भी चाहिए कि वे ज्यादा से ज्यादा समय परिवार के साथ बिताएं और साथ ही अपने अंदर के किसी हुनर को पहचानते हुए उसे निकालने का प्रयास करें. वे सारे कार्य करें जो कभी आप समय की कमी के कारण नहीं कर पाती थीं. कभीकभी अपनी भावनाओं को डायरी के पन्नों में भी ढालने का प्रयास करें. मन की तकलीफ कुछ कम हो जाएगी.

कुछ तो लोग कहेंगे:

जब आप ने लिव इन रिलेशनशिप में रहने का फैसला किया होगा तब अवश्य ही लोगों की बातों को नजरअंदाज किया होगा. लोग क्या कहेंगे, इस वाक्य को कई बार सिरे से खारिज किया होगा. तो बस अभी वही करते रहिए. शांति से उन की नकारात्मक बातों को अनसुना कीजिए. कभी भी अपनी तरफ से सफाई देने या अपना पक्ष रखने की कोशिश न कीजिए, क्योंकि आप ने कोई अपराध नहीं किया है.

हीनभावना न पनपने दें:

आप केवल दोस्ती के एक रिश्ते से अलग हुए हैं. अत: स्वयं को तलाकशुदा न समझें. आप ने कोई अपराध नहीं किया है. यौन शुचिता के तराजू पर भी खुद को न तौलें. शारीरिक संबंध बनाना एक प्राकृतिक क्रिया है. इसे लेकर अपने मन में हीनभावना न पालें. साथी के साथ बिताए सुखद पलों को ही जीवन में स्थान दें. साथी के प्रति मन में नफरत का भाव न रखें. आमनेसामने होने पर भी दोस्ताना व्यवहार करें और किसी भी प्रकार का ताना या उलाहना न दें. कानून है आप के साथ: यदि आप लंबे समय से लिव इन रिलेशनशिप में रह रहे हैं और आप का बच्चा भी है तो ऐसे में यदि आप का साथी आप को आप की मरजी के खिलाफ छोड़ना चाहता है तो आप कानून का सहारा ले सकती हैं. सुप्रीम कोर्ट ने 2010 में यह फैसला सुनाया है कि लिव इन के कारण पैदा हुए बच्चे नाजायज नहीं कहे जाएंगे. आप सीआरपीसी की धारा 125 के तहत बच्चे के गुजाराभत्ते के लिए अर्जी दाखिल कर सकती हैं, क्योंकि अधिक समय तक लिव इन रिश्ते में रहने के कारण आप को कानूनन पत्नी का दर्जा मिलता है.

साथी के द्वारा मारपीट या जबरदस्ती करने पर भी आप न्यायालय से घरेलू हिंसा कानून के तहत इंसाफ एवं गुजाराभत्ते की मांग कर सकती हैं या हिंदू अडौप्शन ऐंड मैंटनैंस एक्ट की धारा 18 के तहत भी अर्जी दाखिल कर सकती हैं. न छिपाएं होने वाले जीवनसाथी से: टूटे रिश्ते के गम से बाहर निकलने के लिए शादी एक बेहतर विकल्प है, पर इतना याद रखें कि शादी

से पहले आप अपने भावी जीवनसाथी को अपने लिव इन रिलेशनशिप के बारे में अवश्य बताएं, साथ ही उन्हें यह आश्वस्त करें कि आप अपने पुराने रिश्ते को नए रिश्ते पर कभी हावी नहीं होने देंगी.

पुरुष भी दें ध्यान:

यह सही है कि सहजीवन से अलग होने का परिणाम सब से ज्यादा लड़कियों को ही भुगतना पड़ता है, परंतु कुछ समय संवेदनशील पुरुष भी प्रभावित होते हैं, इस बात को नकारा नहीं जा सकता. जयंत की पार्टनर ने उसे छोड़ने के बाद उस के खिलाफ शादी का झांसा दे कर बलात्कार करने का इलजाम लगा दिया था. काफी मुश्किलें झेलने के बाद वह इस से छुटकारा पा सका.

ऐसे पुरुषों के लिए ही दिल्ली हाईकोर्ट ने ऐसे मामलों में पुलिस को बलात्कार के बजाय विश्वास भंग (क्रिमिनल ब्रीच औफ ट्रस्ट)का मुकदमा दर्ज कर जांच करने का आदेश दिया है, ताकि पुरुषों को भी न्याय मिल सके.

लिव इन रिलेशन : कमजोर पड़ रही है डोर

लिव इन रिलेशन में रह रहे पार्टनर की हत्या और खुदकुशी के नएनए मामले रोज सामने आ रहे हैं. ऐसे में इन रिश्तों को ले कर फिर से उंगलियां उठनी शुरू हो गई हैं. अहम सवाल यह है कि पश्चिम की इस परंपरा को तो हम ने स्वीकार कर लिया, लेकिन क्या हम अपनी पारंपरिक और दकियानूसी सोच से बाहर निकल पाए हैं. इन तमाम मामलों पर गौर करें तो यही बात सामने आती है कि हम इस नए मौडल के साथ खुद को एडजस्ट करने में नाकाम साबित हुए हैं. यहां हम लिव इन सिस्टम पर कोई सवाल खड़े नहीं कर रहे हैं. इस की अपनी खूबियां और खामियां हैं, लेकिन जो भी मामले सामने आ रहे हैं उस से यही पता चलता है कि या तो हम पूरी तरह से इस सिस्टम को समझ ही नहीं पाए हैं या फिर इस के हिसाब से खुद को ढाल नहीं पाए हैं.

1. बढ़ रहा है रिश्ते का ग्राफ

एक स्त्री और पुरुष का बिना विवाह किए आपसी रजामंदी से एकसाथ रहने के रिश्ते को लिव इन रिलेशन कहते हैं. इस में एकसाथ रहने की कोई सामाजिक या आर्थिक मजबूरी नहीं होती और न ही कोई दबाव.

युवकयुवतियां सोचसमझ कर साथसाथ रहते हैं और जब चाहें अलग हो सकते हैं. कुछ समय पहले तक सोसायटी के लिए यह एक बड़ा सवाल था, लेकिन आज एक तरह से इस रिश्ते को कुछ हद तक शहरी समाज स्वीकार कर चुका है. महानगरों में यूथ ने लिव इन कल्चर को तेजी से अपना लिया है.

युवाओं ने अपनी सहूलत को ध्यान में रख ऐसे रिश्तों की ओर तेजी से कदम बढ़ाया. इस तेज रफ्तार जिंदगी में संतुलन बनाए रखने और कैरियर में आगे बढ़ने के लिए युवाओं को लिव इन रिलेशनशिप बिना बंधन के आसान रास्ता नजर आता है. यही वजह है कि ऐसे रिश्तों का ग्राफ लगातार बढ़ता जा रहा है.

2. चौराहे पर रिश्ता

आएदिन पार्टनर की हत्या और खुदकुशी के मामलों ने इस रिश्ते को चौराहे पर ला कर खड़ा कर दिया है. जिस स्वतंत्रता की चाहत में युवकयुवती एकदूसरे के करीब आए थे, वहां अब एक नए तरह का बंधन उन्हें नजर आने लगा है.

नोएडा में हुई ब्यूटीशियन श्वेता की मौत ने तरक्की पसंद शहरों में बदलते रिश्ते को ले कर कई सवाल खड़े कर दिए हैं. पति और ससुराल वालों के अत्याचार से परेशान श्वेता ने बागपत से नोएडा आ कर अपना काम शुरू किया था.

करीब डेढ़ साल पहले उस की जिंदगी में मुकेश आया. वह उस का बचपन का साथी था. दोनों आपसी रजामंदी के साथ रहने लगे. श्वेता की इतनी ही ख्वाहिश थी कि मुकेश उस से शादी कर ले, लेकिन शादी के इसी दबाव ने उस की जान ले ली. आरोप है कि मुकेश ने बिल्डिंग की 8वीं मंजिल से उसे नीचे फेंक दिया, जिस के कारण उस की मौत हो गई. पुलिस ने श्वेता की 10 साल की बेटी के बयान पर आरोपी मुकेश को गिरफ्तार कर लिया.

दिल्ली के सुल्तानपुरी में भी कुछ दिन पहले ऐसी ही कहानी दोहराई गई, लेकिन यहां मामला कुछ अलग था. यहां एक महिला मंजू के साथ सुदामा उर्फ राजेश लिव इन रिलेशन में रहता था.

करीब 11 साल पहले दोनों के बीच दोस्ती हुई थी. दोनों 7 साल से एकसाथ रह रहे थे. राजेश को कई साल से बच्चे की चाह थी, लेकिन मंजू इस के लिए तैयार नहीं थी. इसी बात को ले कर दोनों के बीच अकसर लड़ाई होती थी. मंजू का कहना था कि जब बच्चे की चाह थी तो शादी करनी चाहिए थी, फिर लिव इन रिलेशन में रहने का इतने सालों तक बहाना क्यों बनाया. मंजू की यह बात राजेश को नागवार गुजरी और आखिर इसी बात को ले कर उस ने मंजू की हत्या कर दी.

3. नहीं बदली है सोच

दरअसल, पश्चिम की इस परंपरा को हम ने अपनी सुविधा के हिसाब से आत्मसात तो कर लिया, लेकिन हमारी सोच वैसी ही पुरातनपंथी बनी हुई है. सवाल यह है कि जब इस रिलेशनशिप में कोई भी पार्टनर कभी भी अलग हो सकता है तो यहां दबाव बनाने जैसी कोई बात होनी ही नहीं चाहिए थी.

राजेश को यह सोचना चाहिए था कि मंजू उस की पत्नी नहीं थी, इसलिए उस पर बच्चे के लिए दबाव बनाना सरासर गलत था. वहीं श्वेता का मुकेश पर शादी के लिए दबाव बनाना लिव इन रिलेशनशिप की कसौटी पर खरा नहीं कहा जा सकता है.

इस रिलेशन में अलग होने की सुविधा है. यह पारंपरिक शादी की तरह जटिल बंधन नहीं है. अलग होने के लिए लोगों को किसी की सहमति की जरूरत नहीं होती.

लिव इन रिलेशनशिप में अगर पार्टनर के साथ संबंध ठीक है, तो ठीक, नहीं तो उस रिलेशनशिप को वहीं पर खत्म कर दिया जाना चाहिए. इसे आगे बढ़ाने का मतलब है मौत को दावत देना. इस रिलेशनशिप में कंप्रोमाइज के लिए कोई जगह नहीं होती. वैस्टर्न कल्चर में यह ‘वाकइन, वाकआउट’ रिलेशनशिप मानी जाती है.

दोनों पार्टनर में से जो भी जब चाहे, इस से बाहर आ सकता है और दूसरे के खिलाफ नैतिक जिम्मेदारी, बदचलनी का आरोप नहीं लगाता है. दरअसल, पश्चिम के इस मौडल को हम ने अपना तो लिया है, लेकिन हमारी सोच जस की तस बनी हुई है. पुरुष लिव इन पार्टनर को अपनी प्रौपर्टी समझने की भूल कर बैठता है. वह अपनी पार्टनर के साथ आम पति की तरह व्यवहार करने लगता है वहीं युवती भी शादी की जिद करने लग जाती है, जोकि सही नहीं है.

एकदूसरे के साथ ज्यादा वक्त गुजारने पर युवक या युवती भावुक होने लगते हैं, जोकि इस रिलेशनशिप के लिए फिट नहीं बैठता. इसलिए कुछ भी गलत होने से पहले ही इस रिश्ते पर विराम लगा देना चाहिए.

4. भरोसे की कमी

अब मंगोलपुरी की ही वारदात को लीजिए. यहां लिव इन में रह रही युवती ने इसलिए खुदकुशी कर ली, क्योंकि उस का पार्टनर शराब पी कर आएदिन उसे पीटता था.

यहां भी युवक पुरातन पुरुषवादी मानसिकता का शिकार नजर आता है. युवती भी पुरानी फिल्मों की अभिनेत्री की तरह धोखा खाने की हालत में खुदकुशी कर लेती है. वह युवती पुलिस के पास जा सकती थी. उस युवक के खिलाफ केस दर्ज करा सकती थी और उस युवक का साथ छोड़ सकती थी, लेकिन उस ने तंग आ कर खुदकुशी का खतरनाक रास्ता चुन लिया.

कुछ दिन पहले दिल्ली की एक अदालत ने मिजोरम की एक युवती को अपने पार्टनर की हत्या के जुर्म में 7 साल की सजा और 7 लाख रुपए का जुर्माना सुनाया था. इस युवती ने 2008 में अपने नाईजीरियाई पार्टनर विक्टर ओकोन की इसलिए हत्या कर दी थी कि उस ने युवती को बिना बताए उस के अकाउंट से 49 हजार रुपए निकाल लिए थे.

इस से पता चलता है कि साथ रहने के बावजूद पार्टनर के बीच वह विश्वास कायम नहीं हो पाता है जो एक पतिपत्नी के बीच रहता है. अब सवाल यह है कि अगर विक्टर भरोसे के काबिल नहीं था तो वह युवती उस के साथ क्यों रह रही थी? वह उस से अलग हो कर अपने लिए नए पार्टनर की तलाश कर सकती थी, लेकिन बजाय अलग होने के उस ने इस जघन्य वारदात को अंजाम दिया.

5. चलन बढ़ने की वजह

कैरियर की दौड़ में आज शादी एक बंधन जैसी लगने लगी है. युवा पार्टनर एकदूसरे के करीब तो आते हैं, लेकिन उज्ज्वल भविष्य बनाने की वजह से  वे शादी की जिम्मेदारी उठाने को तैयार नहीं होते. वे शादी को एक अड़ंगा मानते हैं लेकिन पार्टनर से वही सब चाहते हैं जो एक शादीशुदा पतिपत्नी का ही अधिकार है.

सैक्स शरीर की नैचुरल डिमांड है. साथ ही एक शख्स अपने इमोशंस को भी शेयर करना चाहता है, ऐसे में लिव इन रिलेशनशिप उन्हें बेहतर औप्शन नजर आता है.

इस दौरान वे पतिपत्नी की तरह एक ही छत के नीचे रहते हैं और फिजिकल रिलेशन भी बनाते हैं. इस से दोनों को न सिर्फ मैंटल सिक्युरिटी मिलती है, बल्कि दोनों का अलगअलग रहने का खर्च भी बच जाता है.

ज्यादातर लिविंग रिलेशन उन युवाओं में पाए गए हैं जो घर से दूर रह रहे हैं. उन के परिवार वालों को ऐसे रिश्ते की कोई खबर नहीं होती. लिविंग रिलेशन में रह रहे युवकयुवतियां अपने मांबाप या घर वालों से अपने रिश्ते को छिपा कर उन्हें अंधेरे में रखते हैं. ऐसे में बिना जवाबदेही के यह रिश्ता युवाओं को शुरुआती दौर में तो खूब रास आता है, लेकिन दिक्कत यह है कि लंबे समय बाद पार्टनर आम पतिपत्नी की तरह व्यवहार करने लग जाते हैं.

6. शादी और लिव इन रिलेशन

शादी महज एक बालिग युवकयुवती का मेल नहीं है. इस में 2 परिवारों का मिलन होता है. शादी से युवकयुवती को सामाजिक तौर पर एकसूत्र में बंधने की मान्यता हासिल होती है.

शादी से दोनों को सामाजिक प्रतिष्ठा मिलती है, लेकिन इस के उलट लिव इन अपनी जरूरतों के हिसाब से 2 युवाओं का मिलन है. शादी जहां एक तरह का स्थायी संबंध माना जाता है, वहीं लिव इन रिलेशनशिप में दोनों पार्टनर असुरक्षा की भावना के शिकार होते हैं.

दोनों के मन में डर रहता है कि न जाने उस का पार्टनर कब साथ छोड़ कर चला जाए. इस तरह के संबंधों में हमेशा तनाव की स्थिति बनी रहती है. यह रिश्ता समाज के दायरे से हट कर नितांत निजी रिश्ता है.

वहीं शादी इतनी जटिल प्रक्रिया है कि वहां दोनों युवकयुवती का अलग होना इतना आसान नहीं है. समाज उन्हें इस कीइजाजत नहीं देता. इस तरह से दोनों रिश्तों की अपनी खूबियां और खामियां हैं.

दरअसल, सवाल हमारी सोच का है. ग्लोबलाइजेशन के बाद से सभी मुल्कों के बीच परंपराओं का तेजी से आदानप्रदान बढ़ा है, लेकिन कईर् मामलों में हमारी स्थिति दो नावों पर सवारी करने जैसी होती है.

हम नई परंपराओं को स्वीकार तो कर लेते हैं, लेकिन अपनी पारंपरिक सोच नहीं  बदलना चाहते और यही वजह है कि हम उस में पूरी तरह से फिट नहीं हो पाते. लिव इन रिलेशन से जुड़े तमाम मामलों के पीछे यह एक महत्त्वपूर्ण कारण है.

7. युवतियों पर पड़ता है सब से अधिक असर

समाज सेविका आरती सिंह का कहना है कि ज्यादातर मामलों में ऐसे संबंध प्रेम पर नहीं, शारीरिक आकर्षण पर निर्भर होते हैं. शरीर का आकर्षण खत्म होते ही रिश्तों में दरार आनी शुरू हो जाती है. कपल के बीच झगड़े शुरू हो जाते हैं.

ऐसे संबंधों के टूटने का सब से ज्यादा असर युवतियों पर पड़ता है. पुरातन सोच रखने वाला हमारा समाज एक ऐसी युवती को कभी सम्मान नहीं देना चाहता है जो शादी से पहले किसी युवक के साथ एक ही घर में रह चुकी हो.

ऐसे में युवतियों को अपना भविष्य अंधकारमय नजर आने लगता है. आज भी इस पुरुष प्रधान समाज में पुरुष की गलती को नजरअंदाज किया जाता है. ऐसे में युवतियां अवसाद की शिकार हो जाती हैं और खुदकुशी जैसा खतरनाक कदम उठा लेती हैं.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें