आखिर क्यों बढ़ रहा है कोहैबिटेशन का ट्रेंड और क्यों बन रहा है यह युवाओं का फेवरेट

कोहैबिटेशन को आमतौर पर लोग लिव इन रिलेशनशिप बोलते हैं. पिछले कुछ सालों में कोहैबिटेशन का ट्रेंड युवाओं में काफी बढ़ा है.

लगभग दो साल की डेटिंग के बाद, 38 साल के आशीष ने अपनी 31 साल की गर्लफ्रेंड पूजा के साथ रहने का फैसला लिया. पूजा अपनी एक रूममेट के साथ दूसरे फ्लैट में रहती थी. लेकिन वे ज्यादातर समय आशीष के घर ​ही बिताती थी. इस लंबे रिलेशनशिप के बाद आशीष और पूजा दोनों ने अपने रिश्ते में एक कदम और आगे बढ़ने की सोची और भविष्य में शादी करने का फैसला भी लिया. हालांकि इससे पहले दोनों ने मजबूत रिश्ते के लिए एक और अहम फैसला किया. और यह था कोहैबिटेशन. कोहैबिटेशन को आमतौर पर लोग लिव इन रिलेशनशिप बोलते हैं. पिछले कुछ सालों में कोहैबिटेशन का ट्रेंड युवाओं में काफी बढ़ा है. युवाओं का मानना है कि शादी से पहले का यह समय उन्हें एक दूसरे को करीब से जानने का मौका देता है. कुछ घंटों की मुलाकात की जगह कुछ समय साथ रहने से एक दूसरे की पसंद, नापसंद, बिहेव, आदतों का आसानी से पता चल पाता है. यह एक रूममेट टेस्ट जैसा है.

चौका देंगे ये आंकड़े

एक समय था जब लिव इन रिलेशनशिप या कोहैबिटेशन को समाज स्वीकृति नहीं देता था, लेकिन विदेशों और देश के बड़े शहरों में अब ये चलन चल पड़ा है. नेशनल सर्वे ऑफ फैमिली ग्रोथ डेटा के 2021 के आंकड़े बताते हैं कि 18 से 44 साल के जिन लोगों ने साल 2015 से 2019 के बीच शादी की है, उनमें से 76 % कपल कोहैबिटेशन में रह चुके हैं. साल 1965 से 1974 के बीच यह आंकड़ा मात्र 11 % था. ऐसे में साफ है कि कोहैबिटेशन आज के युवाओं की मंजिल का सिर्फ एक पड़ाव है. उनका असली उद्देश्य एक अच्छा साथी खोज कर शादी करना ही है. नेशनल सर्वे आॅफ फैमिली एंड हाउसहोल्ड और नेशनल सर्वे ऑफ फैमिली ग्रोथ के अनुसार साल 2019 में मिले आंकड़े बताते हैं कि शादी से पहले एक कपल एवरेज ढाई साल से ज्यादा समय तक साथी के साथ रहता है.

सफलता की गारंटी नहीं

कोहैबिटेशन भले ही शादी की सफलता की गारंटी के लिए किया जाता है. लेकिन असल में ऐसा है नहीं. साल 2023 की एक रिपोर्ट में पाया गया कि जो विवाहित जोड़े सगाई या शादी करने से पहले कोहैबिटेशन में रहते हैं, उनके तलाक की आशंका उन लोगों की तुलना में 48 % ज्यादा थी, जो केवल प्रपोज करने के बाद शादी कर लेते हैं. हालांकि इसके कई कारण हो सकते हैं. ऐसे में एक दूसरे के प्रति कमिटमेंट जरूरी है.

इसलिए बढ़ रहा है कोहैबिटेशन का चलन

कोहैबिटेशन को शादी का रन टेस्ट कहा जा सकता है. यह एक कपल को कई अच्छे मौके देता है, एक-दूसरे को समझने के. कई कारणों से कोहैबिटेशन का चलन बढ़ा है.

1. सामाजिक स्वीकृति

पहले की तुलना में, आजकल समाज कोहैबिटेशन को ज्यादा स्वीकार करता है. कई बॉलीवुड कपल्स भी इसका उदाहरण हैं. पारंपरिक मूल्यों में बदलाव के साथ ही आज के युवा पर्सनल इंडिपेंडेंस पर ज्यादा फोकस करते हैं. आज के युवाओं के लिए शादी ही जिंदगी का लास्ट गोल नहीं रह गया है. वे लाइफ में बहुत कुछ करना चाहते हैं.

2. आर्थिक कारण

शादी और बच्चों का पालन-पोषण करना महंगा हो सकता है. यही कारण है कि आज के युवा फाइनेंशली इंडिपेंडेंट होने के बाद ही शादी करना चाहते हैं. कोहैबिटेशन उन्हें साथ रहकर, अपनी लाइफ बनाने का मौका देता है. दो वर्किंग पर्सन मिलकर आसानी से अपने फ्यूचर को सिक्योर कर सकते हैं.

3. एक-दूसरे को जानने का मौका

कोहैबिटेशन, कपल को शादी करने से पहले एक-दूसरे को बेहतर ढंग से जानने का मौका देता है. वे एक साथ रहकर यह देख सकते हैं कि क्या वे इतनी लंबी जिंदगी एक साथ बिता सकते हैं. ऐसे में उन्हें आगे चलकर परेशानियां नहीं हो.

लिव इन रिलेशनशिप में रहने के लिए क्या सावधानी बरतनी चाहिए?

सवाल-

मैं अपने बौयफ्रैंड के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहना चाहती हूं. मैं जानना चाहती हूं कि इस दौरान जब हम शारीरिक संबंध बनाएं तो हमें क्याक्या सावधानी बरतनी चाहिए, ताकि मैं गर्भवती न होऊं?

जवाब-

शारीरिक संबंध बनाने के उपरांत गर्भधारण से बचने के लिए आप को अपनी सुविधानुसार कोई गर्भनिरोधक प्रयोग करना चाहिए. 

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आज राहुल के दोस्त विनय के बेटे का नामकरण था, इसलिए वह औफिस से सीधे उस के घर चला गया था.

वैसे, राहुल को ऐसे उत्सव पसंद नहीं आते थे, पर विनय के आग्रह पर उसे वहां जाना ही पड़ा, क्योंकि विनय उस का जिगरी दोस्त जो था.

‘‘यार, अब तू भी सैटल हो ही जा, आखिर कब तक यों ही भटकता रहेगा,’’ फंक्शन खत्म होने के बाद नुक्कड़ वाली पान की दुकान पर पान खाते हुए विनय ने राहुल से कहा. ‘‘नहीं यार,’’ राहुल पान चबाता हुआ बोला, ‘‘तुझे तो पता है न कि मुझे इन सब झमेलों से कितनी कोफ्त होती है?

‘‘भई, मैं तो अपनी पूरी जिंदगी पति नाम का पालतू जीव बन कर नहीं गुजार सकता. मैं सच कहूं तो मुझे शादी के नाम से ही चिढ़ है और बच्चा… न भई न.’’

‘‘अच्छा यार, जैसी तेरी मरजी,’’ इतना कह कर विनय खड़ा हुआ, ‘‘पर हां, एक बात तेरी जानकारी के लिए बता दूं कि मेरी पत्नी राशि की मुंहबोली बहन करिश्मा फिदा है तुझ पर. उस बेचारी ने जब से तुझे मेरी शादी में देखा है तब से वह तेरे नाम की रट लगाए बैठी है. उस ने जो मुझ से कहा वह मैं ने तुझे बता दिया, अब आगे तेरी मरजी.’’

उस के बाद काफी समय तक दोनों की मुलाकात नहीं हो पाई, क्योंकि अपने घर वालों के तानों से तंग आ कर अब राहुल ज्यादातर टूर पर ही रहता था.

‘‘न जाने क्या है हमारे बेटे के मन में, लगता है पोते का मुंह देखे बिना ही मैं इस दुनिया से चली जाऊंगी,’’ जबजब राहुल की मां उस से यह कहतीं, तबतब राहुल की बेचैनी बहुत बढ़ जाती.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

लिवइन रिलेशनशिप: क्यों अकेली पड़ गई कनिका

कच्चा रिश्ता है लिव इन

टीवी स्टार प्रत्यूषा बनर्जी अपने घर में फांसी के फंदे पर लटकी पाई गई, जो मूलतया जमशेदपुर की थी. प्रत्यूषा अपने बौयफ्रैंड राहुल राज के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रह रही थी. वह राहुल से शादी करना चाहती थी. पुलिस तफ्तीश में यह बात भी सामने आई कि वह प्रैगनैंट थी.

जाहिर है प्रत्यूषा लिव इन के अपने कमजोर रिश्ते को विवाह के मजबूत बंधन में तबदील करना चाहती होगी, मगर उस का बौयफ्रैंड शायद इस के लिए तैयार नहीं था. नतीजा सब के सामने है. इस मानसिक पीड़ा ने अंतत: उस के जीवन को लील लिया.

लिव इन आज की बदलती जीवनशैली के अनुरूप युवाओं द्वारा ईजाद किया गया थोड़ा कम आजमाया कौंसैप्ट है. पहले लड़के बाइयों के यहां पड़े रहते थे या फिर उन के भाभियों, कजिनों के साथ संबंध तो होते थे पर वे एक घर में नहीं रहते थे. घर नहीं चलाते थे.

लड़केलड़की की कपल्स की तरह साथ रहने की व्यवस्था यानी लिव इन में वैवाहिक जिंदगी की हसरतें तो पूरी होती हैं, एकदूसरे का साथ भी मिलता है पर लंबी जिम्मेदारियां निभाने का कोई वादा नहीं होता. कभी भी अलग हो जाने की आजादी रहती है. यह कौंसैप्ट शादी के लिए तैयार नहीं लोगों को लुभावना नजर आता है, पर अंदर से उतना ही खोखला और अस्थाई तो है ही, पर उस में भी बहुत जिम्मेदारियां भरी पड़ी हैं. शायद यही वजह है कि ज्यादातर लोग खासकर लड़कियां आज भी इसे स्वीकार नहीं कर पातीं.

अधूरेपन की कसक

एक तरह से यह रिश्ता धार्मिक मान्यताओं की जकड़न, सामाजिक रीतिरिवाजों और शोशेबाजी के रंग से दूर है और कानून ने भी इसे कुछ हद तक मान्यता दे दी है. मगर फिर भी इस रिश्ते के अधूरेपन को अनदेखा नहीं किया जा सकता खासकर लड़कियां इस तरह के रिश्ते में कई बार गहरी मानसिक पीड़ा से गुजरती हैं.

दरअसल, लिव इन में रिश्ता जब गहरा होता है और दोनों एकदूसरे के करीब आते हैं, शारीरिक संबंध बनते हैं, तो वह जज्बा लड़की के मन में हमेशा साथ रहने की चाहत को जन्म देता है.

50 मिनट की नजदीकी 50 सालों के साथ की इच्छा में बदलने लगती है. मगर जरूरी नहीं कि लड़का भी इसी रूप में सोचे और जिम्मेदारियां निभाने को तैयार हो जाए.

ज्यादातर मामलों में इस बात पर रिश्ता टूट जाता है और अंतत: शारीरिक प्रेम की बुनियाद पर बना यह रिश्ता उम्र भर की कसक बन कर रह जाता है. कई दफा इस टूटन से उत्पन्न पीड़ा इतनी गहरी होती है कि लड़की स्वयं को खत्म कर लेने जैसा बेवकूफी भरा कदम उठाने को भी तैयार हो जाती है जैसाकि प्रत्यूषा ने किया.

ऐसे रिश्तों में प्यार कम विवाद ज्यादा

इस रिश्ते में लड़केलड़कियों का एकदूसरे पर पूरा हक नहीं होता. वे जौइंट डिसीजन भी नहीं ले सकते. जैसाकि विवाहित दंपती लेते हैं. उदाहरण के लिए संपत्ति या तो लड़के की होती है या फिर लड़की की. दोनों का हक नहीं होता. दूसरे का यह पूछने का हक नहीं कि रुपए किस प्रकार खर्च हो रहे हैं. दोनों अपने रुपए अपने हिसाब से खर्च करते हैं.

इसी वजह से अकसर इन के बीच हक और अधिकार की लड़ाई होती रहती है. इन विवादों का निबटारा सहज नहीं होता. वे प्रयास करते हैं कि प्यार जता कर या आपस में बात कर मसला सुलझाया जाए, मगर अकसर ऐसा हो नहीं पाता, क्योंकि किसी भी रिश्ते को बनाए रखने और 2 लोगों को करीब रखने के लिए जो गुण सब से ज्यादा जरूरी हैं वे हैं, विश्वास, ईमानदारी, पारदर्शिता और आत्मिक निकटता.

इन्हें विकसित करने के लिए समय चाहिए होता है. महज भौतिक या शारीरिक निकटता मानसिक और भावनात्मक जुड़ाव भी दे, यह जरूरी नहीं. ऐसे खोखले रिश्ते में कड़वाहट का दौर आसानी से खत्म नहीं होता.

जिम्मेदारियों से भागना सिखाता है लिव इन

लिव इन रिलेशनशिप वास्तव में भावनात्मक बंधन के आधार पर साथ रहने का एक व्यक्तिगत और आर्थिक प्रबंध मात्र है. इस में हमेशा के लिए एकदूसरे का साथ देने का कोई वादा नहीं होता, न ही पूरे समाजकानून के आगे इस तरह का कोई अनुबंध ही किया जाता है. इस वजह से पार्टनर्स एकदूसरे पर (लिखित/मौखिक) किसी तरह का कोई दबाव नहीं बना सकते. ऐसा रिश्ता एक तरह से रैंटल ऐग्रीमैंट के समान होता है. यह बड़ी सहजता से बनाया जाता है और जब तक दोनों पक्ष सही व्यवहार करते हैं, एकदूसरे को खुश रखते हैं तभी तक वे साथ होते हैं. इस के विपरीत शादी इस पार्टनरशिप से बहुत ज्यादा गहरी है. यह एक सार्वभौमिक तौर पर किया गया अनुबंध है, जिस के साथ कानूनी और सामाजिक जिम्मेदारियां जुड़ी होती हैं. वस्तुत: शादी न सिर्फ 2 लोगों वरन 2 परिवारों व समुदायों के बीच बनाया गया रिश्ता है, जो उम्र भर के लिए स्वीकार्य है. जीवन में कितने भी दुख, परेशानियां आएं, आपसी बंधन कायम रखने का वादा किया जाता है.

कहा जा सकता है कि जब दिल मिल रहे हों तो रस्मोरिवाज की क्या जरूरत? मगर यहां बात सिर्फ रस्मों की नहीं वरन सामाजिक तौर पर की गई कमिटमैंट की है, सदैव जिम्मेदारियां उठाने की कमिटमैंट, हमेशा साथ निभाने की कमिटमैंट, विवाह में एक डिफरैंट लैवल की कमिटमैंट होती है, इसलिए एक डिफरैंट लैवल की सुरक्षा, आजादी और परिणामस्वरूप डिफरैंट लैवल की खुशी भी प्राप्त होती है. यह उस से बिलकुल अलग है, जो रिश्ता महज तब तक निभाया जाता है जब तक कि परस्पर प्यार और आकर्षण कायम है. बेहतर विकल्प मिलते ही अलग होने का रास्ता खुला होता है. हमेशा इस बात के लिए तैयार रहना पड़ता है कि कभी भी रिश्ता खत्म हो सकता है.

वफा चाहिए तो लिव इन नहीं

जब बात वफा की आती है, तो शादीशुदा पार्टनर इस दृष्टि से काफी लौयल पाए जाते  हैं. 5 सालों के एक अध्ययन के मुताबिक 90% विवाहित महिलाएं पतिव्रता पाई गईं, जबकि लिव इन में रह रहीं सिर्फ 60% महिलाएं ही लौयल निकलीं.

पुरुषों के मामले में स्थिति और भी ज्यादा आश्चर्यजनक रही. 90% विवाहित पुरुष अपनी पत्नी के प्रति वफादार रहे, जबकि लिव इन के मामले में केवल 43% पुरुष.

यही नहीं, लिव इन का प्रकोप यानी प्रीमैरिटल सैक्सुअल ऐटीट्यूड और बिहेवियर शादी के बाद भी नहीं बदलता. यदि एक महिला शादी से पहले किसी पुरुष के साथ रहती है, तो यह काफी हद तक संभव है कि वह शादी के बाद भी अपने पति को धोखा देगी.

अध्ययनों व अनुसंधानों के मुताबिक यदि कोई शख्स शादी से पहले सैक्स का अनुभव करता है, तो इस की संभावना काफी ज्यादा रहती है कि शादी के बाद भी उस के ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर्स रहेंगे. यह खासतौर पर महिलाओं के लिए ज्यादा सच है.

पेरैंट्स से दूरी

लिव इन में रह रहे लड़केलड़कियों की जिंदगी में सामान्यतया मांबाप का दखल नाममात्र का होता है, क्योंकि इस बाबत उन की सहमति नहीं होती और वे अपने बच्चों से दूरी बना लेते हैं.

यदि वे घर वालों को इस बात की जानकारी नहीं देते, तो ऐसे में इस राज को छिपा कर रखना भी आसान हीं होता. कई तरह के मसले जैसे मांबाप से पैसों की मदद लेना, पार्टनर और उस के सामान को छिपाना जब अभिभावक अचानक मिलने आ रहे हों, लगातार उन की इच्छा के विरुद्ध जाने का अपराधबोध और झूठ बोलना जैसी बहुत सी बातें हैं, जो लिव इन में रहने वालों को बेचैन करती हैं.

विश्वास की कमी

जो शादी से पहले साथ रहते हैं, उन में अकसर अविश्वास का भाव विकसित होता है. परिपक्व प्रेम में गहरा विश्वास होता है कि आप का प्यार सिर्फ आप का है और कोई बीच में नहीं. मगर शादी से पहले ही नजदीकी बना लेने पर व्यक्ति के मन में कई तरह के शक पैदा होने लगते हैं कि कहीं इस की जिंदगी में मुझ से पहले भी तो कोई नहीं रहा या मेरे अलावा भविष्य में किसी और के साथ भी इस के संबंध तो नहीं बन जाएंगे.

इस तरह के अविश्वास और संदेह के भाव गहराने से व्यक्ति धीरेधीरे अपने पार्टनर के प्रति प्यार व सम्मान खोने लगता है जबकि शादीशुदा जिंदगी में विश्वास एक अहम फैक्टर होता है.

– 68% युवाओं का कहना था कि लिव इन प्यार (लव) नहीं वासना (लस्ट) है.

– 72% ने माना कि लिव इन का अंत ब्रेकअप में होता है.

– 36% महिलाओं ने ही इसे अच्छा माना.

– 52% युवा लड़कों ने लिव इन की जिंदगी जीने में रुचि दिखाई.

– 89% अभिभावकों ने कहा कि विवाह से पूर्व सैक्स स्वीकार्य नहीं.

– 51% युवाओं ने ही इसे गलत माना.

यशराज प्रोडक्शंस व औरमैक्स मीडिया द्वारा किए गए ‘शुद्ध देशी इंडिया की रोमांटिक सोच’ सर्वे से प्राप्त आंकड़े.

 

लिव इन रिलेशनशिप

भावनात्मक बंधन के आधार पर साथ रहने का एक व्यक्तिगत व आर्थिक प्रबंध मात्र है. इस में हमेशा के लिए एकदूसरे का साथ देने का कोई वादा नहीं होता…

पहले मजा बाद में सजा

‘‘देश की अदालतों में लिव इन में रहने वाले जोड़ों के मुकदमे दिनबदिन बढ़ रहे हैं. शारीरिक व भौतिक जरूरत के लिए लिव इन में रहना बाद में मुश्किल भी खड़ी कर सकता है. इन मामलों में आमतौर पर शादी का वादा कर के मुकरना, घरेलू हिंसा और यहां तक कि बलात्कार करने तक का संगीन आरोप लगता है. आपसी झगड़े का रूप कईकई बार बेहद आपराधिक हो जाता है. लड़कियां आत्महत्या कर लेती हैं, तो कई मामलों में लड़कियों की हत्या भी कर दी जाती है. हालिया हुई कई वारदातें इस बात का सुबूत हैं.’’

– अवधेश कुमार दुबे, ऐडवोकेट, दिल्ली हाई कोर्ट

आसान नहीं रहती जिंदगी

‘‘भारत में शहरी जनसंख्या खुले विचारों की है. उस पर पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव भी है. आज शिक्षा और नौकरी के कारण युवा बड़ी संख्या में अपने घरों से दूर रह रहे हैं, इसलिए लिव इन रिलेशनशिप का चलन लगातार बढ़ रहा है. आज की पीढ़ी के लिए यह एक अच्छा चलन है, क्योंकि इस में विवाह जितनी जटिलताएं नहीं हैं. इस में मूव इन और मूव आउट काफी आसान है. लेकिन यही इस रिश्ते की सब से बड़ी कमी भी है, क्योंकि इसी के कारण इस रिश्ते में असुरक्षा और अनिश्चित भविष्य की चिंताएं घर करने लगती हैं. अकसर लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाले लोग असुरक्षा, गुस्सा, दुख, भ्रम, अवसाद और भावनात्मक उथलपुथल के शिकार हो जाते हैं.

‘‘भारतीय समाज का तानाबाना ऐसा है कि यहां आज भी लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाले लोगों पर परिवार और समाज का बहुत अधिक दबाव होता है. थोड़ी उम्र बीतने के बाद हर इनसान अपने जीवन में स्टैबिलिटी चाहता है, अपना परिवार बढ़ाना चाहता है. लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाले लोगों में बच्चों को जन्म देने, उन्हें समाज, परिवार की मान्यता मिलने और उन के भविष्य को ले कर कई प्रकार की आशंकाएं होती हैं. वे हमेशा इस द्वंद्व में रहते हैं कि परिवार बढ़ाएं या न बढ़ाएं? इन पर हमेशा एक मानसिक दबाव रहता है. इस सब का मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. मानसिक दबाव के कारण

इन लोगों का इम्यून सिस्टम भी कमजोर हो जाता है, जो इन्हें बीमारियों का आसान शिकार बनाता है.’’

– डा. गौरव गुप्ता, मनोचिकित्सक, तुलसी है

क्या करें लिव इन रिलेशन में रहने से पहले

करीब 4 साल तक लिव इन रिलेशनशिप में रहने के बाद स्मृति ने जब देखा कि उस के बौयफ्रैंड सूरज ने किसी और लड़की से शादी कर ली है, तो उस के पैरों तले धरती खिसक गई.

पिछले कुछ दिनों से वह सूरज के हावभाव में बदलाव देख रही थी. पूछने पर वह अलगअलग बहाने बना देता था. कभी कहता कि औफिस में समस्या है, तो कभी कहता कि तबीयत ठीक नहीं है. एक दिन जब उस ने जोर दिया तो उस ने बताया कि जब वह अपने शहर गया, तो मातापिता ने उस की जबरदस्ती शादी करवा दी. वह अपनी और स्मृति की बात उन्हें इसलिए नहीं बता पाया, क्योंकि वे दोनों के अलगअलग जाति के होने की वजह से इस रिश्ते को मंजूरी नहीं देते.

स्मृति उस की सहजता से कह गई इस बात से हैरान हो गई. फिर उसी दिन वहां से अपनी मां के पास चली गई. फिर वह एक सामाजिक संस्था से मिली और कोशिश कर रही है कि सूरज उसे अपना ले. वह कोर्ट नहीं गई, क्योंकि उसे लगा कि इस से उस की बदनामी होगी. उस का कहना है कि सूरज कोशिश कर रहा है. वह अपनी पत्नी को तलाक दे कर उसे अपनाएगा, क्योंकि यह शादी उस ने अपने मातापिता की जिद से की है.

यहां सवाल यह उठता है कि अब तक सूरज अगर अपने रिश्ते को परिवार की नहीं बता पाया है, तो आगे कैसे बता कर स्मृति के साथ रहेगा? और अपनी पत्नी को छोड़ेगा कैसे? उस के लिए वजह क्या बनाएगा?

लिव इन रिलेशनशिप आज के समय में तेजी से बढ़ रहा है. एक समय ऐसा था जब ऐसे संबंध होने पर लोग खुल कर बात करना पसंद नहीं करते थे. लेकिन आजकल लोग खुल कर इस रिलेशनशिप में रहते हैं खासकर युवा इस रिश्ते को अपनाने में सहजता का अनुभव करते हैं, क्योंकि इस में दायित्व कम होता है.

सैक्स की आजादी

इस बारे में मुंबई की सोशल ऐक्टिविस्ट नीलम गोरहे कहती हैं, ‘‘यह रिश्ता तब तक ठीक रहता है जब तक महिलाओं को कोई समस्या नहीं आती. महिलाएं मेरे पास तब आती हैं जब उन का बौयफ्रैंड उन्हें छोड़ कर चला गया हो या चोरीछिपे शादी कर ली हो. ऐसे में हरेक महिला यही चाहती है कि रिश्ते को मैं ठीक कर दूं. उस लड़के से कहूं कि उसे अपना ले.

‘‘असल में इस रिश्ते के लिए अधिकतर लड़के ही आगे आते हैं, क्योंकि प्यार से अधिक इस में सैक्स की आजादी होती है. यह रिश्ता जितनी आजादी देता है, उतना ही खतरनाक भी होता है. मेरे पास एक मातापिता ऐसे आए जिन की लड़की का मर्डर हो चुका था पर कोई पू्रफ नहीं था. उसे मारने वाला उस का बौयफ्रैंड ही था.

3-4 साल से वह लड़की उस लड़के के साथ लिव इन रिलेशनशिप में थी, जिस का पता उस के मातापिता को नहीं था. जब पता चला तो मातापिता ने लड़की से उस से शादी करने के लिए कहा. लेकिन वह लड़का तब आनाकानी करने लगा, जिसे देख लड़की ने उस रिश्ते से बाहर निकलना चाहा. यह बात लड़के को जब पता चली तो उस ने उस का मर्डर कर दिया. उस का शव बाथरूम में मिला.

‘‘दरअसल, लड़के को यह लगा था कि अलग होने के बाद लड़की कोर्ट जा सकती है, क्योंकि वह पढ़ीलिखी थी. पू्रफ के अभाव में लड़का अभी बाहर है.’’

लिव इन रिलेशनशिप के अधिकतर मामले महानगरों में पाए जाते हैं, जहां काम या पढ़ाई के लिए युवा घर से दूर रहते हैं. उन के बीच अकसर इस तरह के रिश्ते हो जाते हैं. दरअसल, फ्लैट कल्चर में घर शेयर करने यानी साथ रहने में इन्हें फायदा भी नजर आता है.

इन रिश्तों को लड़के ही अधिकतर तोड़ते हैं, लेकिन रिश्ता टूटने पर भावनात्मक से सहज हो जाना कई बार लड़कियों के लिए मुश्किल हो जाता है, क्योंकि इस में लड़की के परिवार की भूमिका न के बराबर होती है.

नीलम कहती हैं, ‘‘इस तरह के रिश्ते को बढ़ावा देने में धर्म भी कम नहीं. अधिकतर लोग विपरीत धर्म या जाति में शादी करने के लिए इजाजत नहीं देते, इसलिए रिश्ते को छिपाना पड़ता है. कई बार तो लोग दोहरी जिंदगी भी जीते हैं, जो डिप्रैशन, मर्डर, आत्महत्या जैसी कई घटनाओं को जन्म देती है.

‘‘इस रिश्ते को शादी का नाम देने के लिए मातापिता, परिवार व समाज के सहयोग की आवश्यकता होती है, जो आमतौर पर नहीं मिलता. इस रिश्ते में बड़ी समस्या तब आती है जब दोनों के बीच में बच्चा आ जाता है. बच्चा जब स्कूल जाने लगता है तब उत्तरदायित्व समझ में आता है. हालांकि आजकल डी.एन.ए. टैस्ट का प्रावधान हो चुका है, जिस से महिला को काफी राहत मिल रही है.

‘‘शादी करना आजकल काफी खर्चीला भी होता है. इस के लिए समय और संसाधन की भी जरूरत होती है. वहीं अगर शादी असफल हो जाए तो तलाक के लिए कानूनी झंझट से गुजरना पड़ता है. लिव इन रिलेशन दरअसल शादी का प्रिव्यू है जिस से व्यक्ति यह अंदाजा लगा सकता है कि शादी सफल होगी या नहीं.

ठगी की शिकार महिलाएं

सीनियर ऐडवोकेट आभा सिंह कहती हैं कि लिव इन रिलेशनशिप बड़े शहरों में अधिक है और इसे सामाजिक कलंक अभी भी हमारे समाज में माना जाता है. बहुत कम महिलाएं हिम्मत कर अपना कानूनी अधिकार पाती हैं, क्योंकि कोर्ट, वकील की बातें बहुत कठोर होती हैं. उन्हें सह पाना आसान नहीं होता.

बहुत सारी ऐसी घटनाएं हैं जिस में महिलाएं ठगी गईं पर उन्होंने रिपोर्ट नहीं लिखवाई. बौलीवुड के सुपरस्टार राजेश खन्ना की मौत के बाद उन के बंगले का विवाद सामने आया. उन के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाली अनिता आडवाणी को परिवार के लोगों ने धक्के मार कर घर से बाहर निकाल दिया. जबकि वे 8 साल से राजेश खन्ना के साथ रह रही थीं. जब वे मेरे पास आईं, तो मैं ने पहली बात यही पूछी कि आप इतने दिनों तक कहां थीं? पहले क्यों नहीं आईं जब राजेश खन्ना जीवित थे? दरअसल, उन के पास ऐसा कोई पू्रफ यानी सुबूत नहीं था कि वे उन के साथ रह रही थीं, ऐसे केस में पू्रफ के लिए निम्न जगहों पर साथ रहने वाली का नाम होना चाहिए:

– जौइंट अकाउंट में.

– बिजली या मोबाइल बिल में.

– राशन कार्ड में.

ऐसा होने पर ही आप सिद्ध कर सकती हैं कि आप उस व्यक्ति से कुछ पाने की हकदार हैं.

अनिता आडवाणी को 200 करोड़ की प्रौपर्टी में से कुछ भी नहीं मिला. हाई कोर्ट में भी उन की अर्जी खारिज कर दी गई. अब वे सुप्रीम कोर्ट जा रही हैं.

इन शर्तों को जानें

गुजारा भत्ता पाने के लिए भी सुप्रीम कोर्ट ने यह साफ कर दिया है कि लिव इन रिलेशन में निम्न 4 शर्तें पूरी होना जरूरी हैं:

– ऐसे युगल समाज के सामने पतिपत्नी के तौर पर आएं.

– वे शादी की कानूनी उम्र पूरी कर चुके हों.

– उन के रिश्ते कानूनी रूप से शादी करने के लिए वर्जित न हों.

– दोनों स्वेच्छा से लंबे वक्त तक यानी कम से कम 6 साल साथ रहे हों.

रिश्ता खराब नहीं

26 नवंबर 2013 को एक अदालती आदेश में रिलेशनशिप को क्राइम नहीं माना गया. इस से इस रिश्ते को अपनाने वाले युवाओं को काफी राहत मिली. मैरिज काउंसलर संजय मुखर्जी कहते हैं कि ऐसे केसेज में दिनोंदिन बढ़ोतरी हो रही है. यह रिश्ता खराब नहीं है. कई बार शादी के बाद पतिपत्नी में अनबन हो जाती है, इसलिए बहुत से यूथ इसे अपनाते हैं. अधिकतर आत्मनिर्भर महिलाएं ही इस रिश्ते को पसंद करती हैं, क्योंकि इस में सासससुर, ननद, देवर आदि का झंझट नहीं रहता.

यह रिश्ता एक तरह से ऐक्सपैरिमैंटल होता है, जिस में 3-4 महीने तो ठीक ही चल जाते हैं. समस्या 1 साल बाद आती है. मेरे हिसाब से 1 साल तक इस रिश्ते में रहने के बाद महिलाओं को शादी करने के बारे में सोचना चाहिए. इस के अलावा कुछ बातों पर उन्हें खास ध्यान देना चाहिए:

– अगर लड़का शादी न करना चाहे, तो वजह पता करें.

– दोनों अपनी कमाई जौइंट अकाउंट में साथसाथ डालें और दोनों उसी से खर्च करें.

– अगर शादी नहीं करनी है, तो पहले ही वकील से परामर्श कर स्टैंप पेपर पर अपने हिस्से को सुनिश्चित करवा लें.

इस के अलावा संजय कहते हैं कि लिव इन रिलेशन में बच्चे की प्लानिंग न करें ताकि आगे चल कर आने वाले बच्चे को अपराधबोध न हो.

वैसे हर रिश्ते की अपनी अलग अहमियत होती है. लेकिन जहां शादी एक महिला को सुरक्षित जीवन देती है, वहीं लिव इन रिलेशनशिप में असुरक्षा अधिक रहती है. सही यही होगा कि आप अपने रिश्ते को समझने की कोशिश करें और अपने भविष्य में आने वाली परेशानियों से अपनेआप को बचाएं.

लिवइन रिलेशनशिप- भाग 2: क्यों अकेली पड़ गई कनिका

‘जी नहीं, ऐसा तो कुछ भी नहीं.’ उस ने सकुचाते हुए कहा पर उसे लगा मानो उस की चोरी पकड़ी गई हो.

उस के बाद उन की दोस्ती बढ़ती ही गई. कनिका को रोनित का साथ बड़ा अच्छा लगता. दोनों का साथ में कौफी पीना, घूमनाफिरना आम बात हो गई थी. ऐसे ही एक दिन जब वे ‘मोहनजोदाड़ो’ फिल्म देखने गए तो शो के छूटतेछूटते रात के 11 बज गए. हौल के बाहर निकल कर घड़ी देखते ही रोनित बोला, ‘कनु, अब इतनी रात में तुम कहां जाओगी, होस्टल तो बंद हो गया होगा.’

‘मैं अपनी मौसी के घर चली जाती हूं, वे होस्टल के पास ही रहती हैं,’ कनिका ने कहा.

‘अब तो वे सो गई होंगी, इतनी रात में कहां उन्हें जगाओगी. ऐसा करो, आज तुम मेरे फ्लैट पर ही रुक जाओ. होस्टल सुबह चली जाना.’

‘नहीं रोनित, तुम्हारे फ्लैट पर कैसे, तुम तो अकेले रहते हो न,’ उस ने अचकचाते हुए कहा.

‘अरे, तो क्या हुआ, मैं तुम्हें खा थोड़े ही जाऊंगा, चलो,’ और रोनित ने हाथ पकड़ कर उसे अपने पीछे बैठा लिया.

वह रोनित से सट कर बैठ गई. रोनित के साथ अकेले रहने की बात सोच कर उसे अंदर ही अंदर थोड़ी घबराहट तो हो रही थी पर रोमांच भी कुछ कम नहीं था. फ्लैट पर पहुंच कर रोनित ने कहा, ‘तुम बैठो, मैं चेंज कर के आता हूं.’

कुछ ही देर में रोनित अपनी नाइट ड्रैस में था. उसे देख कर अचकचाते हुए बोला, ‘अरे, तुम कैसे चेंज करोगी?’ फिर कुछ सोच कर बोला, ‘मेरी टीशर्ट और लोअर पहन लो, एक रात की ही तो बात है, सुबह चेंज कर लेना.’

कुछ ही देर में कनिका लोअर व टीशर्ट में थी. उसे देख कर रोनित खुश होते हुए बोला, ‘क्या बात है, बड़ी सैक्सी और खूबसूरत लग रही हो.’

कनिका थोड़ा शरमा गई. तभी रोनित ने उसे अपनी बांहों में भींच लिया. न जाने क्यों वह चाह कर भी प्रतिरोध न कर सकी, बल्कि उस की बांहों में समाती ही चली गई. रोनित उसे बांहों में उठा कर अपने बैड पर ले आया और दोनों ने उस दिन सारी सीमाओं को पार करते हुए अपने मध्य स्थित लाजशर्म के उस  झीने परदे को भी तारतार कर दिया जो अब तक उन के मध्य मौजूद था.

दोनों की बढ़ती दोस्ती औफिस में भी चर्चा का विषय बन चुकी थी. अब अकसर ही रोनित उसे अपने फ्लैट पर ले जाने लगा था. धीरेधीरे स्थिति यह हो गई कि वे एकदूसरे के बिना रहने में असमर्थ हो गए. तभी एक दिन रोनित ने उस से कहा, ‘यार, ऐसा करो, अगले माह से तुम मेरे ही फ्लैट पर आ जाओ. एकसाथ चैन से रहेंगे. क्योंकि मु झे लगता है अब हम अलग नहीं रह सकते.’

‘हां, बात तो तुम ठीक कह रहे हो, मु झे भी ऐसा ही लगता है, पर कैसे, शादी तो मैं करना नहीं चाहती,’ कनिका ने धीरे से कहा.

‘न बाबा, आम लड़कियों की तरह तुम भी ये शादीवादी की बातें मत करो. तुम सब से अलग हो, इसीलिए तो मु झे पसंद हो,’ रोनित ने उस की आंखों में आंखें डाल कर कहा.

‘‘रियली रोनित, मु झे स्वयं यह शादी और बच्चों के  झं झट पसंद नहीं हैं. मैं तो बिंदास, मस्त और आजाद पंछी की तरह उड़ना चाहती हूं. न शादी, न बच्चा, न कोई टैंशन. कमाओ, खाओपिओ और मौज करो, यह विश्वास है मेरा,’ कनिका ने अपनी जुल्फें लहराते हुए कहा.

‘तो बस, फिर देर किस बात की है. अगले महीने से मैं, तुम साथसाथ एक छत के नीचे, हर पल एकदूसरे के साथ,’ कहते हुए रोनित ने उस के गाल पर एक पप्पी जड़ दी.

‘पर रोनित, तुम्हारे अड़ोसपड़ोस वाले क्या सोचेंगे?’

‘अरे नहीं, यह तुम्हारा छोटा सा इंदौर नहीं है. यह पुणे है पुणे, मेरी जान. यहां किसी से किसी को कोई मतलब नहीं होता. इस तरह बिना शादी किए रहने को महानगरीय भाषा में लिवइन रिलेशनशिप कहा जाता है और यहां अधिकांश लोग इसी रिलेशनशिप में रहना पसंद करते हैं और अपनी जिंदगी को बिना किसी बंधन के आजाद तरीके से जीते हैं.’ रोनित ने उसे सम झाते हुए अपने बाहुपाश में बांध लिया.

‘सच रोनित, मैं ने भी कुछ समय पहले इस के बारे में सुना था और तभी मैं ने सोचा था कि यह रिलेशनशिप मेरे जैसे लोगों के लिए बनी है. तो ठीक है, मु झे तुम्हारा यह लिवइन रिलेशनशिप का प्रस्ताव पसंद है,’ कनिका ने संकोच से कहा और अगले माह से वे दोनों एकसाथ रहने लगे. उस के बाद तो दोनों का एकसाथ घूमनाफिरना, लेटनाइट क्लब और पार्टियां करना, देररात सोना, सुबह देर से जागना, जैसे अनेक ऐसे कार्य प्रारंभ हो गए थे जो आज तक नहीं किए थे. औफिस में जब उस की सहकर्मी आयशा को इस बात की भनक लगी तो उस ने एक दिन लंच में कनिका से पूछा, ‘क्या यह सच है, कनु, कि तुम और रोनित एकसाथ फ्लैट में रहते हो?’

‘हां, तो इस में बुरा क्या है?’ कनिका ने कंधे उचका कर खुश होते हुए कहा तो आयशा बोली, ‘कनु, तू पागल तो नहीं हो गई, तू पढ़ीलिखी और सम झदार है. क्या तू नहीं जानती कि इस सब के परिणाम अच्छे नहीं होते. एक मर्द के साथ बिना शादी किए रह रही है, यह ठीक नहीं है. और क्या लाइफस्टाइल बना रखा है तुम लोगों ने, सुना है आजकल बड़ीबड़ी लेटनाइट पार्टियां अटैंड कर रहे हो तुम दोनों?’

‘तू रहेगी वही छोटे शहर की छोटी मानसिकता वाली. तेरी सोच दकियानूसी ही रहेगी. इसे लिवइन रिलेशनशिप कहते हैं, मैडम, और यहां अधिकांश कपल ऐसे ही रहते हैं. जिस में न कोई बंधन, न जिम्मेदारी, और न कोई  झं झट. बस मस्ती, मौज और मौज. तू नहीं सम झेगी, तू तो एक पतिव्रता और आदर्श नारी है न. तू इस जिंदगी के लिए नहीं बनी, सो नहीं सम झेगी,’ कह कर अपने बालों को  झटकाते हुए कनिका रोनित के केबिन में चली गई थी.

जब पिछली बार रक्षाबंधन पर इंदौर गई थी तो मां को उस के रंगढंग कुछ ठीक नहीं लगे थे. एक दिन वे उस के सिरहाने आ कर बैठ गईं और बड़े प्यार से उस के सिर पर हाथ फिराते हुए बोलीं, ‘बेटा, अब तू 28 साल की होने जा रही है.

शादी कर ले. तेरे पापा इसी बात को ले कर बड़े तनाव में रहते हैं. पिछले 4 वर्षों से तु झे कहती आ रही हूं पर तू है कि अभी नहीं, अभी नहीं की रट लगा रखी है. शादीब्याह समय पर हो जाए तो ही अच्छा रहता है.’

लिवइन रिलेशनशिप- भाग 1: क्यों अकेली पड़ गई कनिका

डा. बत्रा की टेबल पर पड़ी उस की रिपोर्ट्स मानो उस से अब तक की लाइफस्टाइल का हिसाब मांग रही हों. डा. बत्रा की एकएक बात उस के कानों में गूंज रही थी. ‘‘इट्स टू लेट मिस कनिका, नाउ यू हैव टू गिव बर्थ टू दिस चाइल्ड. वी कांट टेक रिस्क.’’ डाक्टर बत्रा ने सीधे शब्दों में जब उस से कहा तो वह गिरतेगिरते बची. रोनित ने बड़ी मुश्किल से उसे संभाला. कुछ चैतन्य होने पर उस ने फिर डाक्टर से कहा, ‘‘डाक्टर, कोई उपाय तो होगा. मैं इन सब  झं झटों में नहीं पड़ना चाहती. ऐंड आई कांट अफोर्ड दिस चाइल्ड, प्लीज एनी हाउ अबौर्ट इट.’’

‘‘नहीं मिस कनिका, आप का अबौर्शन नहीं हो सकता. इट्स टू लेट नाउ. दूसरे, आप को फिजिकली इतनी प्रौब्लम्स हैं कि अबौर्शन से आप की जान को खतरा हो सकता है. आप की बौडी अबौर्शन नहीं सह सकती. मैं ने दवाएं लिख दी हैं, आप इन्हें लेती रहेंगी तो समस्या कम होगी,’’ कह कर डाक्टर अपने केबिन से बाहर राउंड पर चली गईं.

उस ने रोनित की ओर देखा, पर उस की आंखों में भी कुछ न कर पाने की बेबसी  झलक रही थी. उस ने सहारा दे कर कनिका को उठाया और बाहर आ कर एक टैक्सी को आवाज लगाई. टैक्सी में दोनों ने आपस में कोई बात नहीं की. घर पहुंच कर रोनित ने उस से कहा, ‘‘तुम आराम करो, मैं औफिस जा रहा हूं. दवाइयां टेबल पर रखी हैं.’’ और उस के उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना ही वह घर से चला गया. जरूरी दवाइयां ले कर कनिका बिस्तर पर लेट गई.

आंखें बंद करते ही वह आज से 8 वर्ष पूर्व की यादों में जा पहुंची जब उस का बीए कर के टीसीएस कंपनी में प्लेसमैंट हुआ था. अपौइंटमैंट लैटर हाथ में आते ही उस के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे. उसे लग रहा था आज ही जा कर नौकरी जौइन कर ले. पर जौइनिंग 3 माह बाद की थी. घर में घुसते ही मां के गले लिपट गई थी वह.

‘मां, मां, कहां हो? जल्दी से मिठाई बांटो.’

‘क्या हुआ? क्यों इतना खुश हो रही है?’ मां ने कमरे से बाहर आते हुए पूछा.

‘मां, आप की बेटी की नौकरी लग गई, यह देखो अपौइंटमैंट लैटर.’ कनिका ने अपना नियुक्तिपत्र मां के हाथों में रख दिया. मां की खुशी का पारावार नहीं था. पिताजी के आने पर मां ने उन का मुंह मीठा कराते हुए उस की सफलता की सूचना दी. पिताजी ने बिना कोई उत्साह दिखाए मिठाई खा ली और अपने कमरे में चले गए. पिता की ऐसी प्रतिक्रिया देख कर कनिका हैरान हो कर उन के पीछेपीछे चल दी और उन के गले में बांहें डाल कर बड़े लाड़ से बोली, ‘पापा, आप मेरी सफलता से खुश नहीं हैं क्या?’

‘नहीं बेटा, ऐसा नहीं है कि मैं खुश नहीं हूं, पर मैं चाहता हूं कि तू पीजी कर ले ताकि और अधिक अच्छे पैकेज वाली नौकरी मिले क्योंकि यह नौकरी ऐसी है कि घर छोड़ कर इतनी दूर रहना पड़ेगा. यहां इंदौर में ही मिल जाती तो ठीक था. इतनी सैलरी से तो पुणे में तेरा ही खर्च नहीं निकलेगा,’ पापा ने प्यार से उसे सम झाते हुए कहा.

‘नहीं पापा, पीजीवीजी करना तो अब मेरे बस का है ही नहीं. क्योंकि अब और पढ़ाई मु झ से नहीं होगी. अब तो बस मैं नौकरी कर के महानगर में रह कर लाइफ एंजौय करना चाहती हूं,’ कह कर मानो उस ने अपना निर्णय सुना दिया था.

‘जैसी तुम्हारी मरजी,’ कह कर पापा कमरे से बाहर चले गए थे. यों भी पापा कभी किसी से अपनी बात जबरदस्ती नहीं मनवाते थे. सो, उस ने इतना ध्यान नहीं दिया. फिर मां तो पूरी तरह उस के साथ थीं. 3 माह बाद पापा की इच्छा के विरुद्ध वह पुणे जैसे महानगर में नौकरी करने आ गई. यहां आ कर शहर की चकाचौंध ने तो उसे अभिभूत ही कर दिया था. आते समय मां के कहे शब्द आज उसे बारबार याद आ रहे थे.

‘बेटी, अभी तक तू छोटे शहर में रही है. इतने बड़े शहर में जा कर वहां की चकाचौंध में भटक मत जाना. बड़े नाजों से पाला है तु झे. कहीं भी रहना, पर अपने परिवार के मानसम्मान और संस्कार कभी मत भूलना.’

उफ, वह कैसे यहां आ कर सब भूल गई और आज इस स्थिति में आ गईर् कि उस का अपना जीवन ही दांव पर लग गया है. उसे याद है वह दिन जब उस की अपने औफिस के सहकर्मी रोनित से दोस्ती हुई थी. शाम के साढ़े 5 बजे वह औफिस से होस्टल जाने के लिए बसस्टौप पर खड़ी हुई थी कि तभी रोनित की बाइक उस के सामने आ कर रुकी. ‘आइए, मैं आप को होस्टल छोड़ देता हूं.’

‘नहीं, मैं चली जाऊंगी, आप निकल जाएं.’ कनिका ने सकुचाते हुए कहा तो रोनित बोला, ‘‘पानी बरस रहा है. भीग जाएंगी. संकोच मत करिए. आइए, बैठ जाइए. औफिस का ही बंदा हूं, विश्वास तो कर ही सकती हैं आप.’ जब रोनित ने इतना आग्रह किया तो वह टाल न सकी और उस के पीछे सट कर बैठ गई.

किसी पुरुष के पीछे इस प्रकार बैठने का उस का यह पहला अनुभव था. उस का रोमरोम उस समय खिल उठा था, मन कर रहा था यह सुहाना सफर कभी समाप्त ही न हो. पर कुछ ही देर बाद रोनित ने बाइक रोक दी तो मानो वह नींद से जागी थी. हड़बड़ा कर नीचे उतर कर खड़ी हो गई. होस्टल के बाहर उसे छोड़ते समय रोनित मुसकराते हुए बोला, ‘जब भी जरूरत पड़े, याद करिएगा. बंदा हाजिर हो जाएगा.’

कनिका ने खुशी से हुलसते हुए ‘जी’ कहा और पर्स को हवा में  झुलाते हुए अपने कमरे में पहुंची. आज न जाने क्यों उसे मन ही मन बहुत अच्छा और अलग सा महसूस हो रहा था. पूरी रात वह रोनित के बारे में ही सोचती रही. अगले दिन जब वह औफिस पहुंची तो रोनित गेट पर ही मिल गया.

‘हैलो, गुडमौर्निंग मैडम, रात में नींद आई कि नहीं या मेरे बारे में ही सोचती रहीं.’ उस ने खिलखिलाते हुए कहा तो वह भी हंस पड़ी.

लिव इन रिलेशन: क्या करें जब हो जाए ब्रेकअप

राखी कुछ दिनों से बेहद परेशान दिख रही थी. दफ्तर के काम में भी उस का मन नहीं लग रहा था. वह एक जिम्मेदार पद पर कार्यरत थी. ऐसे में बौस का उस पर झल्लाना लाजिम था. यह सब उस की सहकर्मी नीलिमा से न देखा गया और एक दिन लंच टाइम में उस ने राखी के मन को कुरेदा तो वह फफक उठी, ‘‘नीलिमा, मैं और मिहिर 1 साल से लिव इन रिलेशनशिप में रह रहे थे. मैं ने तो अपने मातापिता को भी मना लिया था शादी के लिए, लेकिन अब वह कह रहा है कि वह इस रिश्ते से ऊब चुका है. उसे स्पेस चाहिए. कुछ हफ्तों से हम एक छत के नीचे रह कर भी अजनबियों की तरह रह रहे हैं. 3 दिन से वह मुझे मिला भी नहीं है. न कौल, न मैसेज. कुछ भी रिप्लाई नहीं कर रहा,’’ और फिर वह फूटफूट कर रोने लगी.

नीलिमा ने राखी को जी भर कर रोने दिया. फिर दफ्तर के बाद उसे अपने घर ले गई. नीलिमा अपने मम्मीपापा और भैयाभाभी के साथ रहती थी. राखी को एक परिवार का भावनात्मक सहारा मिला और अपनी एक सहेली का हौसला, जिस से उस का मनोबल मजबूत हुआ और वह आगे की जिंदगी हंसतेहंसते बिता पाई. राखी जैसी न जाने कितनी लड़कियों को सहजीवन या लिव इन रिलेशनशिप ने अपने मकड़जाल में फंसाया हुआ है, जिस से निकलतेनिकलते वे टूट कर पूरी तरह बिखर जाती हैं और हाथ लगती है सिर्फ हताशा और मानसिक अवसाद. कुछ वर्षों पहले जब सुप्रीम कोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप को कानूनी मान्यता दी थी तब युवावर्ग खुशी से झूम उठा था मानो खुले आसमान के साथसाथ अब उन्हें सुनहरे पंख भी मिल गए हों. मगर अब इस रिश्ते की स्वच्छंदता बहुतों को घायल कर रही है, जिन में महिलाएं, लड़कियां ज्यादा हैं.

नैंसी के साथ तो बहुत ही बुरा हुआ. 6 महीने तक प्रकाश के साथ सहजीवन में रहने के बाद अचानक एक हादसे में प्रकाश की मौत हो गई. किसी तरह वह इस सदमे से खुद को उबारती है तो पता चलता है कि वह मां बनने वाली है और अब गर्भपात की समयसीमा भी निकल चुकी है. ऐसे में वह जीवन से हताश हो कर आत्महत्या जैसा गलत कदम उठा लेती है और पीछे छोड़ जाती है अपना रोताबिलखता परिवार और उन के अनमोल सपने जो कभी उन्होंने नैंसी के लिए देखे थे.

महानगरों में ऐसे कई उदाहरण मिल जाएंगे. अब सवाल यह उठता है कि यदि विवाह संस्था बंधन और लिव इन आजादी है, तो फिर इस आजादी में इतनी तकलीफ क्यों सहन करनी पड़ रही है लड़कियों को? इस का जवाब है समाज की दोयमदर्जे की मानसिकता. भारतीय महिलाओं के लिए संबंधों को तोड़ पाना अभी भी आसान नहीं है. सामाजिक ही नहीं भावनात्मक स्तर पर भी. पुरुष तो ऐसे रिश्तों से अलग हो कर शादी भी कर लेता है और समाज स्वीकार भी लेता है, परंतु वही समाज महिला के चरित्र पर उंगली उठाता है.

ऐसी स्थिति में क्यों न हम कुछ बातों का खयाल रखते हुए एक सुकून भरी जिंदगी जीएं. लिव इन रिश्ते के टूटने पर पलायनवादी होने से अच्छा है कि हम इसे अपना अनुभव समझते हुए सबक लें. यह सच है कि महिलाओं के लिए साथी के साथ को भूलना और जीवन के आगामी संघर्षों से मुकाबला करना आसान नहीं होता. लेकिन जिंदगी रुकने का नहीं, निरंतर चलने का नाम है. बस जरूरत है तो इस रिश्ते से जुड़े कुछ पहलुओं पर गौर करने की ताकि लिव इन रिलेशनशिप से टूट कर न बिखरें. खुद को रखें व्यस्त: यदि आप नौकरी करती हैं, तो आप के लिए खुद को व्यस्त रखना थोड़ा आसान होगा. अपने औफिशियल टारगेट को पूरा करने पर ध्यान केंद्रित करें. हर वक्त यह न सोचती रहें कि अपने पार्टनर को कैसे मनाया जाए क्योंकि आप के पार्टनर ने मानसिक तैयारी के साथ ही आप को छोड़ा है, इसलिए वह तो आने से रहा.

नौकरी न करने वाली लड़कियों को भी चाहिए कि वे ज्यादा से ज्यादा समय परिवार के साथ बिताएं और साथ ही अपने अंदर के किसी हुनर को पहचानते हुए उसे निकालने का प्रयास करें. वे सारे कार्य करें जो कभी आप समय की कमी के कारण नहीं कर पाती थीं. कभीकभी अपनी भावनाओं को डायरी के पन्नों में भी ढालने का प्रयास करें. मन की तकलीफ कुछ कम हो जाएगी.

कुछ तो लोग कहेंगे:

जब आप ने लिव इन रिलेशनशिप में रहने का फैसला किया होगा तब अवश्य ही लोगों की बातों को नजरअंदाज किया होगा. लोग क्या कहेंगे, इस वाक्य को कई बार सिरे से खारिज किया होगा. तो बस अभी वही करते रहिए. शांति से उन की नकारात्मक बातों को अनसुना कीजिए. कभी भी अपनी तरफ से सफाई देने या अपना पक्ष रखने की कोशिश न कीजिए, क्योंकि आप ने कोई अपराध नहीं किया है.

हीनभावना न पनपने दें:

आप केवल दोस्ती के एक रिश्ते से अलग हुए हैं. अत: स्वयं को तलाकशुदा न समझें. आप ने कोई अपराध नहीं किया है. यौन शुचिता के तराजू पर भी खुद को न तौलें. शारीरिक संबंध बनाना एक प्राकृतिक क्रिया है. इसे लेकर अपने मन में हीनभावना न पालें. साथी के साथ बिताए सुखद पलों को ही जीवन में स्थान दें. साथी के प्रति मन में नफरत का भाव न रखें. आमनेसामने होने पर भी दोस्ताना व्यवहार करें और किसी भी प्रकार का ताना या उलाहना न दें. कानून है आप के साथ: यदि आप लंबे समय से लिव इन रिलेशनशिप में रह रहे हैं और आप का बच्चा भी है तो ऐसे में यदि आप का साथी आप को आप की मरजी के खिलाफ छोड़ना चाहता है तो आप कानून का सहारा ले सकती हैं. सुप्रीम कोर्ट ने 2010 में यह फैसला सुनाया है कि लिव इन के कारण पैदा हुए बच्चे नाजायज नहीं कहे जाएंगे. आप सीआरपीसी की धारा 125 के तहत बच्चे के गुजाराभत्ते के लिए अर्जी दाखिल कर सकती हैं, क्योंकि अधिक समय तक लिव इन रिश्ते में रहने के कारण आप को कानूनन पत्नी का दर्जा मिलता है.

साथी के द्वारा मारपीट या जबरदस्ती करने पर भी आप न्यायालय से घरेलू हिंसा कानून के तहत इंसाफ एवं गुजाराभत्ते की मांग कर सकती हैं या हिंदू अडौप्शन ऐंड मैंटनैंस एक्ट की धारा 18 के तहत भी अर्जी दाखिल कर सकती हैं. न छिपाएं होने वाले जीवनसाथी से: टूटे रिश्ते के गम से बाहर निकलने के लिए शादी एक बेहतर विकल्प है, पर इतना याद रखें कि शादी

से पहले आप अपने भावी जीवनसाथी को अपने लिव इन रिलेशनशिप के बारे में अवश्य बताएं, साथ ही उन्हें यह आश्वस्त करें कि आप अपने पुराने रिश्ते को नए रिश्ते पर कभी हावी नहीं होने देंगी.

पुरुष भी दें ध्यान:

यह सही है कि सहजीवन से अलग होने का परिणाम सब से ज्यादा लड़कियों को ही भुगतना पड़ता है, परंतु कुछ समय संवेदनशील पुरुष भी प्रभावित होते हैं, इस बात को नकारा नहीं जा सकता. जयंत की पार्टनर ने उसे छोड़ने के बाद उस के खिलाफ शादी का झांसा दे कर बलात्कार करने का इलजाम लगा दिया था. काफी मुश्किलें झेलने के बाद वह इस से छुटकारा पा सका.

ऐसे पुरुषों के लिए ही दिल्ली हाईकोर्ट ने ऐसे मामलों में पुलिस को बलात्कार के बजाय विश्वास भंग (क्रिमिनल ब्रीच औफ ट्रस्ट)का मुकदमा दर्ज कर जांच करने का आदेश दिया है, ताकि पुरुषों को भी न्याय मिल सके.

लिवइन रिलेशनशिप- भाग 3: क्यों अकेली पड़ गई कनिका

‘ओह मां, जब भी घर आती हूं आप यह शादीशादी की रट लगानी शुरू कर देती हो. आगे से मैं आना बंद कर दूंगी. मु झे नहीं करनी शादी. शादी, बच्चे, ससुराल, मायका, मैं ये सब मैनेज नहीं कर सकती. मैं जैसी हूं वैसी ही रहूंगी. मैं बस कमाओ, खाओ, पिओ और मौज करो में यकीन करती हूं और शायद मैं इसी के लिए बनी भी हूं.’

‘पर बेटा, ऐसा नहीं है, शादीब्याह कोई  झं झट नहीं है. शादी तो प्यार का दूसरा नाम है. एकदूसरे के लिए कुछ कर गुजरने की चाहत होती है. विवाह समाज द्वारा मान्यताप्राप्त है जो आप को एक पार्टनर देता है जिस से एक ओर जहां आप अपनी शारीरिक जरूरतें पूरी करते हो वहीं दुखसुख को बांटते हो और जहां आप अपना सुरक्षित भविष्य प्राप्त करते हो. विवाह करने में ही जीवन का असली सुख है, बेटा,’ मां ने अपना अनुभवयुक्त ज्ञान उसे देने की कोशिश की थी.

‘इन सब दकियानूसी बातों में मु झे यकीन नहीं. यह कहां की तुक है कि एक आदमी को ही पूरी जिंदगी हवाले कर दो.’

मां आगे और भी कुछ बोलना चाहती थीं पर वह उन की बातों को अनसुना कर के कमरे से बाहर चली गई. पहली बार उसे लगा कि वह मां की नजरों का सामना नहीं कर पाई.

सोचतेसोचते कब उस की आंख लग गई, उसे पता ही नहीं चला. दरवाजे की घंटी की आवाज से उस की नींद खुली. दरवाजा खोला तो सामने रोनित खड़ा था. कनिका 2 कप कौफी ले आई. और बोली, ‘‘रोनित, अब हम क्या करेंगे?’’

‘‘हां कनु, मु झे भी सम झ नहीं आ रहा. डाक्टर ने प्रैग्नैंसी के साथसाथ और भी तो कितनी बीमारियां बताईं तुम्हें, डायबिटीज, मोटापा, बीपी आदि. और ये बीमारियां तो पूरी जिंदगी तुम्हारा साथ नहीं छोड़ने वालीं. अब तुम सोच लो, क्या करना है?’’

‘‘क्या करना है, मतलब? जो करना है हम दोनों को करना है,’’ कनिका ने लगभग  झुं झलाते हुए कहा.

‘‘तो क्या करूं, तुम से शादी कर लूं? यह मौजमस्ती तुम ने अपने से की थी. मैं ने तुम्हें फोर्स नहीं किया था. जो तुम मु झ पर अपना गुस्सा निकाल रही हो. जो किया है, अब भुगतो. जिस लड़की ने शादी से पहले ही सबकुछ मु झे सौंपने में तनिक भी संकोच नहीं किया, वह लड़की तो शादी के बाद भी न जाने किसकिस को…’’ कह कर रोनित अपना बैग उठा कर कमरे से बाहर निकल गया. कनिका रोनित के बदले रूप को अचरज से देखती रह गई. निढाल हो कर वह बिस्तर पर गिर गई. उस की आंखों से आंसू बह निकले. तभी फोन की घंटी बजी. उठाया, तो उस की सहेली आयशा थी.

‘‘हैलो कनु, क्या हुआ 2 दिनों से औफिस क्यों नहीं आ रही हो?’’

उस की आवाज सुनते ही कनिका अपनेआप को रोक नहीं सकी और फूटफूट कर रोने लगी. उसे रोता सुन कर आयशा घबरा गई और बोली, ‘‘चल, मैं आधे घंटे में तेरे पास पहुंचती हूं.’’

आधे घंटे में आयशा उस के सामने थी. कनिका के बिखरे बाल, सूजी आंखें और अस्तव्यस्त कपड़े देख कर वह हैरत से बोली, ‘‘क्या हुआ? यह क्या हालत बना रखी है? लग रहा है जैसे महीनों से बीमार है.’’

‘‘आयशा, सब खत्म हो गया. मु झे कुछ सम झ नहीं आ रहा क्या करूं. लग रहा है खुद को ही खत्म कर लूं,’’ कहते हुए कनिका ने रोतेरोते सारी दास्तान आयशा को कह सुनाई.

उस की बातें सुन कर आयशा बोली, ‘‘अच्छा, यह बात है, तभी 2 दिनों से रोनित कुछ अपसैट है और तेरे बारे में पूछने पर भी कुछ नहीं बोला. पर कनु, इस में गलती तो तेरी ही है. मैं ने कितना सम झाया था. पर तु झे तो लिवइन रिलेशनशिप का जनून चढ़ा था. कनु, आजादी और उच्छृंखलता में बहुत बारीक सा अंतर होता है. तू ने तो हमेशा ही आजादी का गलत मतलब निकाल कर मस्ती और ऐयाशी का जीवन जिया है.

‘‘कनु, जिम्मेदारियों से भागना जिंदगी नहीं है. विवाह जिम्मेदारी निभाना नहीं है, बल्कि सम्मानसहित जीवन जीने का नाम है. तू ने चंद जिम्मेदारियों के डर से अपना पूरा जीवन ही दांव पर लगा दिया. अब बता कहां गई तेरी बिंदास और मस्तीभरी जिंदगी और कहां गया लिवइन रिलेशनशिप में साथ देने वाला तेरा वह मस्तीखोर साथी. तेरे साथ दिनरात रहने के बाद भी आज तु झे मुसीबत में छोड़ कर भाग गया न. कनु, कुछ भी हो, अंत में भोगना स्त्री को ही पड़ता है.’’

‘‘आयशा, तू सही कह रही है. आज मु झे इस हालत में छोड़ कर रोनित खुद बड़े आराम से घूम रहा है. फंस तो मैं गई. अब क्या करूं? ऊपर से मु झे ताना दे रहा है कि मैं ने जो किया, अपनी मरजी से किया. ठीक है, मैं ने मरजी से किया, पर क्या इस में रोनित का कोई दोष नहीं?’’ कनिका ने आयशा का हाथ पकड़ कर दर्दभरी नजरों से पूछा.

‘‘कनु, जब हम घर से बाहर आते हैं तो अपनी सुरक्षा की जिम्मेदारी हमारे ऊपर स्वयं होती है. भले ही मर्द कितना भी दोषी क्यों न हो, हमारे भारतीय समाज में दोषी स्त्री को ही माना जाता है. अब तेरे पास इस बच्चे को जन्म देने के अलावा चारा भी क्या है. रोनित ने अपने व्यवहार से जता दिया है कि वह अब तु झे पूछेगा भी नहीं,’’ आयशा ने कहा तो कुछ देर तक शांत रहने के बाद कनिका किसी तरह हिम्मत कर के उठी और हाथमुंह धो कर आयशा से बोली, ‘‘तू सही कह रही है. जो मैं ने किया है उसे भोगना तो मु झे पड़ेगा ही. अब इसे जन्म तो देना ही होगा.’’

कनिका ने अगले दिन से औफिस जाना शुरू कर दिया. इस बीच उस ने कई बार रोनित से संपर्क करने का प्रयास किया, परंतु कोई नतीजा नहीं निकला. बाद में उस के साथियों से पता चला कि उस ने दूसरी कंपनी जौइन कर ली है.

9 माह बाद कनिका ने एक खूबसूरत सी बेटी को जन्म दिया. उसे पालने के साथसाथ उस ने एक एनजीओ भी प्रारंभ किया जो अनाथ बच्चों को शिक्षित करने के साथसाथ स्कूल और कालेज जा कर बालिकाओं को उन के कैरियर बनाने की शिक्षा तो देता ही था, साथ ही, महानगरों में रह कर उन्हें कैसे अपने अस्तित्व की रक्षा करनी है, के प्रति जागरूक भी करता था. वहां वह बालिकाओं को बताती थी कि आजादी का मतलब उच्छृंखलताभरी जिंदगी, अस्तव्यस्त लाइफस्टाइल और ऊलजलूल कपड़े पहनना नहीं, बल्कि अपने विचारों की आजादी है. जिंदगी का असली मजा जीवन में आने वाली चुनौतियों से भागना नहीं, बल्कि उन का सामना करने में है.

लिवइन रिलेशनशिप और कानून

जब मन को कोई अच्छा लगे तो उस की बैकग्राउंड बेमतलब हो जाती है. गुडग़ांव में अभी एक जोड़े के शव किराए के मकान में मिले 22-23 के साल के दोनों लिवइन में रह रहे थे जबकि युवक शादीशुदा था और उस की पत्नी बूटान की थी. लडक़ी जानते हुए थी कि लडक़ा शादीशुदा है 15 महीने से उस के साथ रह रही थी. दोनों अच्छाखासा कमा रहे थे. एक 5 स्टार होटल में शैफ था. दूसरी फूड डिलिवरी चेन में मैनेजर थी.

उन्होंने किस कारण जान दीं, यह नहीं पता पर यह अवश्य पहली बार में पता चला कि बाहर के किसी जने ने आकर उन्हें मारा नहीं था. पुलिस को लडक़ी बैड पर मिली और लडक़ा पंखे से लटका.

अपनी ङ्क्षजदगी अपने मनचाहे के साथ मनमर्जी से जीने का हक सब को है पर जब यह हक विवाह में बदल जाए तो बहुत चुभता है. लिवइन में सब से बड़ा खतरा यही है कि पार्टनर कभी भी बिना नोटिस दिए वर्क आउट कर सकता है और दूसरे के सुखदुख का तब उसे कोई ख्याल नहीं रहता. लिवइन रिलेशनशिप में जिम्मेदारी वर्षों बाद आ पाती है. अगर दोनों में से एक भी शादीशुदा हुआ या मातापिता पर निर्भर हो या उन की जिम्मेदारी हो तो लिवइन के लिए मुश्किलें बढ़ जाती है. पैसे और समय को ले कर कभी भी तकरार हो सकती है क्योंकि लिवइन पार्टनर आमतौर पर साथ वाले की समस्याओं को अपनी समझना.

लिवइन का मतलब ही टैंपरेरी अरेजमैंट होता है और इस में एक कुर्सी तक खरीदने पर 4 बार सोचना पड़ता कि कौन खर्च करेगा और रास्ते अलग हो जाने के बाद इस का क्या होगा? अब जब तक साथ रहेंगे तो 4 कुर्सियां, 1 बैड, 1-2 टेबल, गैस, बर्तन तो चाहिए होंगे न. पार्टनरशिप टूटने पर क्या होगा.

लिवइन रिलेशनशिप न कानून है, न होना चाहिए. यह 2 व्यस्कों की अपनी टेलेंट और अपना नीडबेस्ड है. इसे कानूनी दायरों में नहीं बांध जाना चाहिए. अदालतों को लिवइन पार्टनर की हर शिकायत को पहली बार में ही खिडक़ी से बाहर फेंक देना चाहिए क्योंकि जो लोग अपनी प्रौब्लम्स खुद सोल्व नहीं कर सकते उन्हें लिवइन के रास्ते पर जाना ही नहीं चाहिए.

पुलिस को मारपीट में भी दखल कम करना चाहिए क्योंकि जरा सा गुस्सा दिखाने पर दूसरे के पास घर का हक है. जब लडक़ालडक़ी राजी तो क्या करेगा काजी का फार्मूला निभाया जाना चाहिए.

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